तालिबान से बचकर अमेरिका में ली शरण, फिर वहां 'जिहाद' करने लगा नासिर अहमद, सुरक्षा एजेंसियों ने किया गिरफ्तार
अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों ने नासिर अहमद तौहीदी नाम के एक इस्लामी आतंकवादी को गिरफ्तार किया है, जो अमेरिका में चुनाव के दिन एक आतंकी हमले की योजना बना रहा था। तौहीदी तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान से भागकर अमेरिका में शरण लेने आया था। 7 अक्टूबर, 2024 को पकड़े गए तौहीदी ने इस्लामी आतंकवादी संगठन ISIS की विचारधारा से प्रभावित होकर हमले की साजिश रची थी। उसने इसके लिए हथियारों की खरीदारी की तैयारी शुरू कर दी थी।
तौहीदी के साथ एक नाबालिग भी इस योजना में शामिल था, जो लगातार इंटरनेट पर ISIS से जुड़ा सामग्री देखता था और ऐसे संगठनों को वित्तीय सहायता भी देता था। तौहीदी ने अपने लक्ष्य के तहत वाइट हाउस और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की फुटेज दिखाने वाले कैमरों की तलाश की। उसने चुनाव के दिन भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर हमले की योजना बनाई थी और AK-47 राइफल खरीदने की सोच रखी थी। इसके लिए वह उन राज्यों की खोज कर रहा था जहाँ हथियार खरीदने के कानून सख्त नहीं हैं। अभियान के दौरान, तौहीदी ने कहा कि वह और उसका साथी इस हमले के बाद "गाजी" बनना चाहते थे।
उसने बच्चों को 'शहीद' होने के फायदों के बारे में भी बताया और उन्हें आतंकवाद की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। FBI ने तौहीदी को एक फर्जी बंदूक विक्रेता के रूप में पकड़ा। उन्होंने तौहीदी और उसके साथी से मिलकर उन्हें एक बंदूक और 500 गोलियां बेचीं। तौहीदी पर ISIS को सहायता देने और षड्यंत्र रचने के आरोप लगाए गए हैं, जिसके लिए उसे 20 साल तक की जेल हो सकती है। साथ ही, आतंकवादी हमले के लिए हथियार खरीदने के आरोप में उसे 15 साल की सजा भी हो सकती है। तौहीदी को सितंबर 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अमेरिका में विशेष वीजा पर शरण दी गई थी, और वह अपने परिवार के साथ अमेरिका आया था। हालांकि, उसने अमेरिकी नागरिकों के खिलाफ हमले की योजना बनानी शुरू कर दी।





प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय लाओस दौरे पर पहुंचे हैं। प्रधानमंत्री यहां 21वें आसियान-भारत समिट और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। लाओस की राजधानी वियनतियाने में समिट का आयोजन किया जाएगा। इस साल लाओस आसियान सम्मेलन का मेजबान और वर्तमान अध्यक्ष है। लाओस एक छोटा सा देश है, जिसकी कुल आबादी महज 75 लाख के करीब है। भारत में बिहार की राजधानी पटना की कुल आबादी भी मौजूदा वक्त में करीब 75 लाख ही है। पीएम मोदी की लाओस यात्रा के बीच ये जानना जरूरी है कि आखिर भारत के लिए ये छोटा सा देश रणनीतिक रूप से कितना जरूरी है। भारत-लाओस के संबंध कैसे हैं और भारत के लिए इसे प्राथमिकता देना क्यों जरूरी है। रणनीतिक रूप से यह इसलिए अहम है क्योंकि लाओस की सीमा उत्तर-पश्चिम में म्यांमार और चीन, पूर्व में वियतनाम, दक्षिण-पूर्व में कंबोडिया और पश्चिम और दक्षिण पश्चिम में थाईलैंड से लगती है। चीन और म्यांमार से घिरे होने के कारण भारत के लिए इस देश की रणनीतिक महत्ता बढ़ जाती है। दरअसल, दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण, लाओस हमेशा से व्यापारिक नजरिए से भी अहम रहा है। यही कारण है कि इसपर कभी फ्रांस ने तो कभी जापान ने कब्जा जमाया। 1953 में जब लाओस को आजादी मिली तो चीन ने भी लाओस में अपने प्रभाव को आजमाना शुरू किया।दक्षिण चीन सागर में ड्रैगन की दादागिरी से हर कोई वाफिफ है। चीन इस क्षेत्र में अपने सभी पड़ोसियों पर धोंस जमाने की कोशिश से बाज नहीं आता। इन देशों में लाओस भी शामिल है। *भारत के लिए क्यों अहम है लाओस?* लाओस वैसे तो एक छोटा सा देश है लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति के चलते यह भारत के लिए रणनीतिक और व्यापारिक तौर पर काफी अहम माना जाता है। इसकी सीमा चीन और म्यांमार से लगती है, लिहाजा चीन और म्यांमार से घिरे होने के कारण यह देश रणनीतिक तौर पर भारत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह भारत के इंडो-पैसिफिक विजन का महत्वपूर्ण स्तंभ है, साथ ही साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दखल के कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है। व्यापारिक नजरिए की बात करें तो दक्षिण पूर्व एशिया में लाओस की भौगोलिक स्थिति के कारण भी यह हमेशा से अहम रहा है। भारत के लिए लाओस कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में और पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने 1959 में ही लाओस का दौरा किया था। लाओस को फ्रांस के कब्जे से मुक्ति दिलाने में भी भारत ने इंटरनेशनल कमीशन फॉर सुपरविजन एंड कंट्रोल (ICSC) के चेयरमैन के तौर पर अहम भूमिका निभाई थी। जुलाई 1954 में जेनेवा संधि के आधार पर ICSC की स्थापना की गई थी, इसका उद्देश्य भारत-चीन के बीच दुश्मनी को खत्म करने और लाओस से फ्रांसिसी उपनिवेशवादी शक्तियों की वापसी कराना था। *भारत और लाओस के बीच संबंध* भारत और लाओस के बीच दशकों पुराने मजबूत संबंध रहे हैं। दोनों देशों के बीच 1956 में डिप्लोमैटिक संबंध स्थापित हुए। तब से अब तक दोनों देशों की ओर से द्विपक्षीय यात्राएं होती रहीं हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में ही लाओस का दौरा किया था। इसके बाद 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने लाओस की आधिकारिक यात्रा की थी। 2004 में मनमोहन सिंह और 2016 में प्रधानमंत्री मोदी आसियान-भारत समिट में हिस्सा लेने के लिए लाओस का दौरा कर चुके हैं। कोरोना महामारी के दौरान भारत की ओर से 50 हजार कोवैक्सीन की डोज और दवाइयां लाओस भेजी गईं थीं। हाल ही में आए तूफान यागी के दौरान भी भारत ने करीब एक लाख डॉलर की आपदा राहत सामग्री लाओस भेजी थी। इसके अलावा लाओस के साथ भारत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सिविलाइजेशनल संबंध रहें हैं। बौद्ध धर्म और रामायण दोनों देशों की साझा विरासत का हिस्सा हैं। इसी साल 15 से 31 जनवरी के बीच लाओस के रॉयल बैलेट थियेटर के 14 आर्टिस्ट ने भारत में 7वें इंटरनेशनल रामायण मेला में भी हिस्सा लिया था।

Oct 10 2024, 19:51
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