हरियाणा में एमपी-राजस्थान की तरह होंगे 2 डिप्टी सीएम! सैनी कैबिनेट में ये चेहरे हो सकते हैं शामिल
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हरियाणा चुनाव के परिणाम आने के बाद सरकार गठन की कवायद शुरू हो गई हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद बाद प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। कहा जा रहा है कि विजयदशमी के दिन नई सरकार का शपथग्रहण हो सकता है।चर्चाएं हैं कि हरियाणा में भाजपा दो डिप्टी सीएम बना सकती है। इसमें एक दलित तो दूसरा यादव समाज से हो सकता है।
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चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर बीजेपी ने कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन पार्टी के बड़े नेता पहले ही नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री का चेहरा बता चुके हैं। हरियाणा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान तो साफ-साफ कह चुके हैं कि सरकार आने पर सैनी ही मुख्यमंत्री बनेंगे। ऐसे में कहा जा रहा है कि सैनी ही हरियाणा के नए मुख्यमंत्री हो सकते हैं। जल्द ही पार्टी की तरफ से इसकी आधिकारिक घोषणा को लेकर प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
हरियाणा सरकार में मुख्यमंत्री सहित कुल 14 मंत्री हो सकते हैं। पिछली सरकार के 8 मंत्री चुनाव हार चुके हैं। 3 मंत्रियों के टिकट काटे गए थे। सिर्फ 2 मंत्री चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। इसका मतलब है कि भाजपा को 11 नए चेहरों की तलाश करनी होगी। अनिल विज वो सीनियर नेता हैं जिन्होंने अपनी सीट बरकरार रखी है। अनिल विज को मंत्री पद मिल सकता है। बीजेपी जाटों, ब्राह्मणों, पंजाबी और दलितों सहित राज्य की विभिन्न जातियों को ध्यान में रखकर कैबिनेट का गठन करेगी।
बीजेपी के पक्ष में दलित, अहीर, गुर्जर और अन्य गैर-जाट ओबीसी के साथ ब्राह्मण और राजपूतों ने भी जमकर मतदान किया है। ऐसे में सरकार में इन जातियों का सियासी दबदबा दिख सकता है। बीजेपी के पास अब दलित समुदाय से नौ विधायक हैं, आठ पंजाबी मूल के, सात ब्राह्मण और जाटों और यादवों में से प्रत्येक के छह विधायक हैं। पार्टी के पास गुर्जर, राजपूत, वैश्य और एक ओबीसी नेता भी हैं।
नौ दलित विधायकों में एक हैं छह बार के विधायक कृष्ण लाल पंवार और दूसरे हैं दो बार के विधायक कृष्णा बेदी। पंजाबी मूल के आठ लोगों में सात बार के विधायक और पूर्व गृह मंत्री अनिल विज हैं, जो मार्च में मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने के बाद नाराज हो गए थे। जींद के विधायक कृष्ण मिड्ढा भी इस रेस में हैं, जिन्होंने लगातार तीसरी बार अपनी सीट जीती है। एक और अब तीन बार के विधायक यमुनानगर से घनश्याम दास अरोड़ा हैं। लेकिन उनकी नियुक्ति को छोड़ दिया जा सकता है क्योंकि उनकी सीट अम्बाला क्षेत्र के भीतर है। अरोड़ा को हांसी से तीन बार के विधायक विनोद भयाना के लिए नजरअंदाज किया जा सकता है।
ब्राह्मण चेहरों में बल्लभगढ़ से तीन बार के विधायक मूल चंद शर्मा शामिल हैं, जिन्हें मंत्रिमंडल में बरकरार रखा जा सकता है। एक और संभावित दो बार के लोकसभा सांसद अरविंद शर्मा हैं जिन्होंने गोहाना जीता। राम कुमार गौतम, जिन्होंने सफीदों को जीत दिलाई, जिसे भाजपा ने कभी नहीं जीता था। भाजपा के लिए अहीरवाल बेल्ट के छह विधायक महत्वपूर्ण हैं जिन्होंने एक बार फिर पार्टी को भारी मतों से वोट दिया। इनमें बादशाहपुर से छह बार के विधायक राव नरबीर सिंह हैं। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव ने पहली बार अटेली सीट जीती है, लेकिन उनका नाम शॉर्टलिस्ट में है। साथ ही दो बार के विधायक लक्ष्मण यादव का नाम भी है।
जाट नेता महीपाल ढांडा अब पानीपत (ग्रामीण) से दो बार के विधायक हैं और उनके बरकरार रहने की संभावना है। राई से दूसरी बार चुने गए कृष्ण गहलोत भी इस दौड़ में शामिल हैं। एक संभावित बड़ा नया नाम पार्टी के राज्यसभा सांसद किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी का है। अन्य संभावित उम्मीदवारों में वैश्य समुदाय के पूर्व मंत्री विपुल गोयल शामिल हैं। हरियाणा में सबसे अमीर महिला और हिसार से निर्दलीय विधायक सावित्री जिंदल ने औपचारिक रूप से भाजपा को अपना समर्थन दे दिया है। इससे उनके नए मंत्रिमंडल में शामिल होने की संभावना बढ़ गई है।






हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए बड़ी असफलता साबित हुए हैं। पार्टी ने लोकसभा चुनाव के दौरान जो मोमेंटम हासिल किया था, उसे गंवा दिया है। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली के अहम विधानसभा चुनाव होने हैं। जाहिर सी बात है इस हार का असर इन चुनावों में भी देखा जाएगा। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की हार का असर आने वाले विधानसभा चुनावों में भी दिखेगा। महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में कांग्रेस को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। सहयोगियों के साथ मोलभाव कठिन हो सकता है। बता दें कि इस साल के आखिर तक महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव हो सकते हैं। महाराष्ट्र की बात करें तो राहुल गांधी लगातार कांग्रेस की ओर से वहां चुनाव प्रचार करने जा रहे हैं। वह कई सभाओं को संबोधित कर चुके हैं। वहीं, भाजपा भी उस राज्य को हर हाल में अपने साथ रखना चाहती है। इस कारण महाराष्ट्र में भाजपा भी अपनी ताकत लगा रही है। ऐसे में महाराष्ट्र में इस बार जो लड़ाई होगी, वह कांटे की होगी। बीजेपी को हरियाणा में मिल रही जीत से महाराष्ट्र और झारखंड में कई गुना तेजी से पार्टी अपनी ताकत झोंक सकती है। झारखंड चुनाव में भी बीजेपी को उम्मीद ज्यादा है। हेमंत सोरेन की सरकार में जिस तरीके से हिंदुओं पर हमले हुए, लव जिहाद के मामले आए, आदिवासी गांव में बांग्लादेशी घुसपैठियों का आना जाना बढ़ा, उससे झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार निशाने पर आ गई है। यही कारण है कि भाजपा इस चुनाव को लेकर अभी से ही इन्हें मुद्दा बनाते हुए अभी से वहां पूरी ताकत झोंक रही है। खुद पीएम नरेंद्र मोदी बार-बार वहां जा रहे हैं। भाजपा को भी पता है कि वहां दोबारा सत्ता किसी की नहीं आती है। ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि झारखंड में एक बार फिर से उसकी सरकार बन सकती है। यहां कांग्रेस अभी काफी पिछड़ी स्थिति में दिख रही है। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में 99 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस इंडिया ब्लॉक में खुद को बड़े भाई के तौर पर प्रोजेक्ट करने लगी थी। लेकिन हरियाणा और जम्मू कश्मीर की हार से उसका ये भ्रम टूटेगा। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस नेशनल कॉन्फ्रेंस की जूनियर पार्टनर बनकर चुनाव लड़ी। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 51 में से 42 सीटों पर जीत हासिल की है। कांग्रेस 32 सीटों पर चुनाव लड़ी और सिर्फ 6 सीटें जीत पाई है। हरियाणा में कांग्रेस को बीजेपी से सीधी लड़ाई में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के बाद करारी मात मिली है। पार्टी मध्य प्रदेश में 15 साल की सत्ता विरोधी लहर को नहीं भुना पाई तो हरियाणा में पार्टी 10 साल की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद नहीं जीत पाई। हरियाणा में कांग्रेस की हार ने विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन को प्रभावित किया है, जिससे भविष्य के राज्य चुनावों के लिए उनके दृष्टिकोण में बदलाव होने की संभावना है। कांग्रेस को हार के बाद यह सुझाव दिया जा रहा है कि वो अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करे। हरियाणा की हार के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि कांग्रेस को अपनी स्ट्रैटजी पर फिर से सोचने की जरूरत है। बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई में पार्टी कमजोर पड़ जाती है। ऐसा क्यों होता है। पूरे गठबंधन पर फिर से काम करने की जरूरत है। बता दें कि महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस की सहयोगी पार्टनर है। वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 8 अक्टूबर को चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस का सीधे तौर पर जिक्र किए बिना कहा कि किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेना चाहिए। केजरीवाल ने एमसीडी पार्षदों को संबोधित करते हुए कहा कि हरियाणा का चुनावी परिणाम देखिए। वहां क्या हुआ है। इस परिणाम का सबसे बड़ा सबक ये है कि किसी को भी अति आत्म विश्वास का शिकार नहीं होना चाहिए।

Oct 10 2024, 16:24
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