जाति,धर्म और आरक्षण, विकास,के बीच होने जा रहा मिल्कीपुर का उपचुनाव
अमानीगंज अयोध्या । अक्टूबर के अंतिम सप्ताह व नवंबर के पहले सप्ताह में चुनाव होने की उम्मीद के कयास लगाए जा रहे हैं। मिल्कीपुर निर्वाचन क्षेत्र में धर्म और जाति के बीच चुनाव सिमटता दिखाई पड़ रहा है। लोकसभा चुनाव का घाव भूल नहीं पा रहा जैसे सूल की तरह पीड़ा दे रहा है। मिल्कीपुर की जनता अब वह दोबारा पुनरावृति नहीं दोहराना चाहती है जो समाज में देश में प्रदेश में जलालत न झेलना पड़े। जहां एक बार फिर मंडल और कमंडल के बीच निर्णायक लड़ाई देखने को मिलेगी ,मिल्कीपुर के उपचुनाव में जहां कांटों का मुकाबला है भाजपा के लिए आसान काम नहीं है। यह स्वर्गीय मित्र सेन यादव सांसद की धरती है और इतिहास गवाह है मिल्कीपुर सपा का गढ़ माना जाता है। यहां हमेशा लोकसभा और विधानसभा विपरीत के ही विधायक और सांसद रहे हैं। कभी सत्ता के सांसद ना रहे हैं ना विधायक रहे हैं यह मिल्कीपुर की जनता का दुर्भाग्य है।फैजाबाद लोकसभा की जनता जहां 14 भाषा के ज्ञाता आचार्य नरदेव कांगड़ी को निरहू के सामने हार का मुंह देखना पड़ा है।
2014 की मोदी लहर से लेकर अब तक दो चुनाव से लगातार भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लल्लू सिंह अपने विजय श्री पताका फहराते चले आ रहे थे। लेकिन 2024 के चुनाव में ढऊअ के सयुंक्त प्रत्याशी अवधेश प्रसाद ने लल्लू सिंह के जीत की हैट्रिक के मंसूबों पर पानी फेर दिया। एक ओर जहां भाजपा पूरे देश में राम मंदिर के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही थी वहीं अयोध्या फैजाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में राम मंदिर का मुद्दा हाबी होता नहीं दिखाई पड़ा।
वैसे इस बार मिल्कीपुर विधानसभा चुनाव में वोटो का ध्रुवीकरण होता दिख रहा है । जहां पर सपा से अजीत पासी,बसपा से रामगोपाल कोरी, आजाद समाज पार्टी से रणधीर कोरी और कम्युनिस्ट पार्टी से लल्लन कोरी ने अपना प्रत्याशी बनाया है। वहीं पर अभी भाजपा ने अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। जहां पर देखा जाए तो मुख्य मुकाबला सपा, भाजपा,बसपा के बीच मुख्य मुकाबला देखने को मिल रहा है।
लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में सीट बँटवारे को लेकर इंडिया गठबंधन में दरार आ चुकी है लेकिन इस बार का मुकाबला सपा के लिए जीत पाना बहुत ही नामुमकिन है।
मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में दलितों की अच्छी खासी संख्या है जिसका लाभ समाजवादी पार्टी को मिलता दिखाई पड़ रहा था लेकिन अबकी बार वह नहीं दिखाई पड़ रहा है । इस चुनाव में राम लहर व राष्ट्रवाद का मुद्दा हाबी होता नहीं दिखाई पड़ रहा है लोग अपनी रोजी-रोटी,बच्चों की पढ़ाई, छुटटा पशुओं की समस्या,बढ़ती हुई महंगाई, बेरोजगारी आदि जैसी समस्याएं चुनाव में मुंह बाये खड़ी हैं इसका जवाब भाजपा कार्यकतार्ओं के पास नहीं है।
ऐसे में यदि चुनाव जातीय गणित पर उलझा तो भाजपा के लिए मिल्कीपुर की सीट बचा पाना आसान नहीं होगा। इन्हीं वजहों से भारतीय जनता पार्टी ने क्षेत्र में अपनी पूरी ताकत लगा रही हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जहां चुनाव के समय चार सभाएं की स्वयं मिल्कीपुर की उपचुनाव की कमान संभाली रखी है और विकास की गंगा बहा रहे हैं फिर भी चुनाव जितना आसान नहीं है। यादव और पासी व मुस्लिम यह सपा की खांटी मतदाता है इनको तोड़ना आसान काम नहीं है ये भाजपा के लिए चुनौती का विषय है। जहां पर भाजपा के पांच मंत्रियों ने मिल्कीपुर यूपी चुनाव में डेरा डाले हुए हैं रोज मीटिंग कर रहे हैं लेकिन वहीं पर ग्रामीण क्षेत्रों में छुट्टा मवेशी जानवर को लेकर काफी आक्रोश देखा जा रहा है यही मुद्दा चुनाव में खेल कर सकता है।
एक ओर जहां बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी रामगोपाल कोरी अपने कैडर वोटो को बचाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। वहीं फैजाबाद की राजनीति में बड़ा नाम रहे स्वर्गीय मित्र सेन यादव के ज्येष्ठ पुत्र अरविंद सेन यादव अपनी पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से प्रत्याशी लल्लन कोरी को मैदान में उतार रहे हैं।
स्थानीय प्रकरणो से कटना समाजवादी पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है जैसे राय पट्टी कांड व भदरसा कांड वर्तमान में इस बार अवधेश प्रसाद को यह घातक साबित हो सकता है।
Oct 01 2024, 19:09