एक ऐसा रहस्यमयी मंदिर जहां सिर्फ महिलाएं होती है पुजारी,जाने
दुनिया में रहस्य व अजूबों की कमी नहीं है। लेकिन कुछ ऐसी मान्यताएं व परंपराएं समाज में विकसित है जो तारीख बन जाती है। इसी में एक है सहोदरा (सुभद्रा) शक्तिपीठ।
भारत नेपाल की सीमा पर गौनाहा प्रखंड के उत्तरी छोर पर अवस्थित है सुभद्रा स्थान। जो भारत सहित नेपाल के लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। जिसकी गिनती शक्तिपीठों में होती है।
सहोदरा शक्तिपीठ का इतिहास
सैंकड़ों वर्ष पुराना है।
यहां के लोग इसे महाभारत काल से जोड़ते है। इस मंदिर का सबसे अजूबा इतिहास यह है कि मंदिर के आरंभ से लेकर आजतक इस मंदिर में पुजारी के रूप में सिर्फ महिलाएं ही नियुक्त हुई है।
साथ ही यहां विराजमान माता सुभद्रा को प्रतिदिन स्नान कराकर नयी साड़ी पहनाने व खोइछा भरने की परंपरा काफी पुरानी है।
यहां के लोग माता को बेटी मानकर प्रतिदिन नया वस्त्र व खोइछा प्रदान करते है। वर्तमान में शंभू गुरो की पत्नी आशा देवी इस मंदिर की प्रधान पुजारी है।
रहस्यमयी है माता का इतिहास
वैसे तो शक्तिपीठ सुभद्रा के संबंध में यहां कई कथाएं प्रचलित है। लेकिन जो माता प्रतिमा की प्रमाणिकता सिद्ध करता है, उसके अनुसार प्राचीन काल में दिव्य आभूषण से सुसज्जित एक ग्वालन स्त्री अपने नवजात शिशु के साथ दही बेचकर जंगल के रास्ते वापस जा रही थी। शाम का अंधेरा गहराने लगा था। इतने में कुछ बदमाश उन्हें घेर लिए। स्त्री की आबरू से खिलवाड़ करने के लिए उन्हें निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया।
स्त्री रक्षा के लिए भगवान को पुकारने लगी। इतने में एक दिव्य तेज प्रकाशित हुआ और गोद में बच्चे के साथ स्त्री प्रतिमा बन गई। वहां एक नीम का पेड़ उत्पन्न हो गया। सभी बदमाश मौत को प्राप्त हुए। दूसरी ओर बिहार लोक कथाएंज् के लेखक डा. सीआर प्रसाद के अनुसार हिमालय में जाते समय पाडुओं से सुभद्रा इसी जंगल में बिछड़ गई थी और कुछ बदमाशों ने उन्हें घेर लिया।
जिस कारण उन्हें सती हो जाना पड़ा। इसका वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक में भी किया है। यहां के लोग भी इसे सत्य कथा बताते है। वैसे प्रतिमा के एक हाथ में कमल व दूसरे हाथ में कलश मौजूद है। गोद में एक नवजात बच्चा भी है।बू
महारानी को आया था स्वप्न
करीब तीन सौ वर्ष पूर्व रामनगर इस्टेट की तत्कालीन महारानी छत्रकुमारी देवी को रात में माता का स्वप्न आया। माता ने आदेश दिया कि तुम सहोदरा के जंगलों में मेरी मंदिर बनवाओं। दूसरे दिन जब महारानी अपने सैनिकों के साथ यहां पहुंची तो उन्हें स्वप्न में आए निर्धारित स्थान पर एक नीम का पेड़ दिखा।
महारानी ने कुल्हाड़ी से नीम के पेड़ पर पांच बार प्रहार किया। इसके बाद सैनिकों ने नीम के पेड़ को काटकर उसे साफ किया तो वहां से वर्तमान प्रतिमा निकली। इसके बाद महारानी ने यहां मंदिर की स्थापना करवाई। बाद में स्थानीय प्रसाद महतो ने उस मंदिर को विकसित कर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। जहां आज दो देशों के आस्था का जनसैलाव उमड़ता दिखाई पड़ता है।
यहां दफन है दसवीं शताब्दी के पूर्व का इतिहास
सहोदरा मंदिर निर्माण के समय जब यहां की खुदाई हुई तो उसमें से अष्टकोणीक कुंआ एवं देवी देवताओं की असंख्य मुर्तियां निकली। कई सिक्के भी मिले। जो अवशेष के रूप में आज भी मंदिर परिसर में विद्यमान है।
इन अवशेषों को पुरातत्व विभाग दसवीं शताब्दी का मान रहा है। इसी माह कला एंव संस्कृति मंत्री विनय बिहारी के साथ सहोदरा पहुंचे पुरातत्व विभाग के संरक्षण पदाधिकारी सत्येंद्र झा ने जब इन अवशेषों को देखा तो मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने बताया कि ये समस्त प्रतिमाएं दसवीं शताब्दी की प्रतीत हो रही है। इसका इतिहास जानने के लिए तह में जाना होगा।
करीब एक साल पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने चार दिनों के प्रवास पर दोन आए थे। प्रवास के पहले दिन पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे पहले सहोदरा शक्तिपीठ एवं सोफा मंदिर का दर्शन किया। यहां के इतिहास जान अह्लादित हुए और इसे पर्यटक स्थल बनाने की घोषणा की।
साल में दो बार लगता है मेला
वैसे तो यहां हर रोज मेला का नजारा रहता है। नेपाल व भारत के सुदुरवर्ती इलाकों के सैंकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन माता के दर्शन को आते है। लेकिन शारदीय नवरात्र एवं चैत्र नवरात्र में यहां एक एक माह का मेला लगता है। जिला पुलिस व एसएसबी की चौकसी के बीच लगने वाले इन मेलों में लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन और उनसे मनोवांछित फल की प्राप्ति की कामना से प्रतिदिन पहुंचते है।
सप्तमी से भीड़ अधिक बढ़ने के कारण श्रद्धालुओं को माता के दर्शन के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता है।
Sep 19 2024, 12:42