गोविंद देव जी मंदिर का इतिहास: आखिर क्यों नहीं दिखते है राधा रानी के पांव,जानिए वजह
गोविंद देव जी एक विश्व विख्यात मंदिर है और यहां ठाकुर जी की कोई साधारण प्रतिमा नहीं है. इस प्रतिमा को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के पपौत्र वज्रनाभ जी ने बनवाई थी. वज्रनाभ जी अनिरुद्ध के पुत्र थे. पूरे देशभर से लोग इस मंदिर में गोविंद जी के दर्शन करने आते हैं. कृष्ण जन्माष्टमी पर इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. जयपुर स्थित इस प्रसिद्ध मंदिर की खासियत है कि इस मंदिर में कोई शिखर नहीं है. बिना शिखर वाला इस मंदिर को माना जाता है.वज्रनाभ जी ने अपनी दादी से पूछा कि श्रीकृष्ण कैसे लगते थे और फिर दादी के कहे अनुसार उस शीला से जिस शीला से कंस ने उनके 7 भाइयों का वध किया था उस शीला से निर्माण किया
श्रीकृष्ण के पपौत्र वज्रनाभ को दादी जैसे-जैसे बताती गई वैसे-वैसे वो प्रतिमा को आकार देते गए. जब पहली प्रतिमा बनाई तो उसके पैर तो वैसे ही बन गए बाकी स्वरूप वैसा नहीं था जिसके बाद उन्होंने दूसरी प्रतिमा बनाई. जब दूसरी प्रतिमा बनाई तो पैर और शरीर दोनों एक जैसे बन गए लेकिन वह श्रीकृष्ण जैसे नहीं थे. जो पहले प्रतिमा बनाई गई थी, तो उसको मदन मोहन जी का नाम दिया गया जो करौली में विराजित है और दूसरी प्रतिमा बनाई वो गोपिनाथ जी कहलाए जो कि पुरानी बस्ती जयपुर में विराज रहे हैं. इसके बाद उन्होंने तीसरी प्रतिमा बनाई और जैसे ही तीसरी प्रतिमा पूर्ण हुई, तो उनकी दादी ने सिर हिलाते हुए हां कहा क्योंकि श्रीकृष्ण का पूर्ण रूप था वो यही स्वरूप था जो कि इस मंदिर में स्थित गोविंद की प्रतिमा में है.
कालांतर में जब औरंगजेब का आतंक बढ़ा तो बहुत से हिंदू मंदिर तोड़े गए, तब यह 7 मंजिला मंदिर वृंदावन में था. फिर आमेर के राजा मानसिंह जी इस प्रतिमा को लेकर पहले गोवर्धन में विराजे, इसके बाद कामा में विराजे और उसके बाद फिर गोविंदपुर रोपाड़ा से आमेर होते हुए यहां विराजित की गई. अब यह प्रतिमा सूर्य महल में विराजमान है. यह एक मंदिर नहीं सूर्य महल है
पहली छवि का नाम मदन मोहन जी है जो राजस्थान के करौली में स्थापित है.
दूसरी छवि गोपीनाथ जी के नाम से जानी जाती है जो जयपुर की पुरानी बस्ती में स्थापित है.
तीसरी दिव्य छवि हैं गोविंद देवजी की.
इस प्रकार गोविंद देवजी की पवित्र छवि को ‘बज्रकृत’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है वज्रनाभ द्वारा निर्मित.
श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ने बनवाई थी मूर्तियां
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि एक बार भगवान कृष्ण के प्रपौत्र ने अपनी दादी से भगवान कृष्ण के स्वरूप के बारे में पूछा और कहा कि आपने तो भगवान कृष्ण के दर्शन किए थे तो बताइए कि उनका स्वरूप कैसा था. भगवान कृष्ण के स्वरूप को जानने के लिए उन्होंने जिस काले पत्थर पर कृष्ण स्नान करते थे उस पत्थर से 3 मूर्तियों का निर्माण किया. पहली मूर्ति में भगवान कृष्ण के मुखारविंद की छवि आई जो आज भी जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर में विराजमान है.
क्यों नहीं दिखते राधा रानी के पैर?
ऐसी मान्यता है कि राधा रानी के चरण कमल बहुत दुर्लभ हैं और श्री कृष्ण हमेशा उनके चरणों को अपने हृदय के पास रखते हैं, श्री कृष्ण जिनकी पूजा पूरी सृष्टि करती है, वे भी उनके चरणों की स्पर्श करते थे. राधा देवी के चरण बहुत दुर्लभ हैं और कोई भी व्यक्ति उनके चरणों को इतनी आसानी से प्राप्त नहीं कर सकता है, इसलिए उनके पैर हमेशा ढके रहते हैं. कुछ मंदिरों में जन्माष्टमी पर या राधाष्टमी पर उनके चरणों को कुछ समय के लिए खुला रखा जाता है.
मान्यता के अनुसार माता राधा के चरण बेहद पवित्र हैं और उनके दर्शन मात्र से जीवन सफल हो जाता है. भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि उन्हें स्वयं राधा रानी के चरण कमलों के दर्शन करने का सौभाग्य नहीं मिलता था. इसलिए, उनके चरण हमेशा ढके रहते हैं.
गोविंद देव जी मंदिर का इतिहास
श्री शिव राम गोस्वामी 15वीं शताब्दी में भगवान गोविंद देवजी के सेवाधिकारी थे. मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में कई हिंदू मंदिरों को तोड़ दिया गया था. श्री शिव राम गोस्वामी ने पवित्र प्रतिमाओं को पहले कामा (भरतपुर), राधाकुंड और फिर गोविंदपुरा गांव (सांगानेर) में स्थानांतरित किया. तब आमेर शासकों ने पवित्र प्रतिमाओं को स्थानांतरित कर 1714 में दिव्य प्रतिमाएं आमेर घाटी के कनक वृंदावन पहुंचाई. आखिर में 1715 में उन्हें आमेर के जय निवास ले जाया गया.
मान्यता के अनुसार, सवाई जयसिंह पहले सूरज महल में रहते थे. एक दिन उन्हें स्वप्न आया कि उन्हें महल खाली कर देना चाहिए क्योंकि यह महल स्वयं श्री गोविंद देवजी के लिए है. इसके बाद वह स्थान छोड़कर चंद्रमहल चले गए. इस प्रकार, जयपुर की नींव रखे जाने से पहले ही भगवान गोविंद देव जी को सूरज महल में प्रतिष्ठित कर दिया गया था.
Sep 14 2024, 13:07