झामुमो छोड़ कर अधिकतर नेता नहीं कर पाए खास चमत्कार,पर भाजपा को है चम्पाई से बहुत उम्मीद, पढ़िए क्यों...?
झारखंड डेस्क
कोल्हान के टाइगर कहे जाने वाले चंपई सोरेन जेएमएम छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। पर सवाल उठ खड़ा हुआ है कि भाजपा में आने के बाद कोल्हान के आदिवासी उन्हें उतना ही प्यार और सम्मान देंगे जितना झारखंड मुक्तिमोर्चा में मिल रहा था.
क्या वे झारखंड में कुछ नया और करिश्मा कर पाएंगे ? यह सवाल इसलिए भी उठता है कि दल छोड़ कर भाजपा ज्वाइन करने वाली शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन या फिर मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा भी कुछ कमाल नहीं कर सकीं।
और भी कई नाम हैं जिसमें हेमंत मुर्मू, सूरज मंडल जैसी शख्सियत भी दल से अलग हो कर विशेष कुछ नहीं कर सके।
सीता सोरेन से भाजपा को थी उम्मीद
शिबू सोरेन के बड़ी बहू होने के नाते भाजपा के रणनीतिकारों को सीता सोरेन से झारखंड में प्रभाव की उम्मीद थी। पर हुआ उलट ऐसा कि वे स्वयं दुमका लोकसभा से चुनाव हार गईं।
दुमका लोकसभा सीट से सीता सोरेन को एक कड़े मुकाबले में दुमका 22527 वोट से हार का सामना करना पड़ा। झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे नलिन सोरेन ने दुमका में जीत का परचम लहराया। जेएमएम उम्मीदवार नलिन सोरेन को 547370 वोट मिले जबकि भाजपा के टिकट पर पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहीं सीता सोरेन को 524843 वोट मिले।
हालांकि सीता सोरेन ने काफी टक्कर दी। केवल एक विधान सभा क्षेत्र का परिणाम ने सीता सोरेन की जीत को हार में बदल डाला। और वह विधानसभा सीट थी जामताड़ा, जहां जेएमएम उम्मीदवार नलिन सोरेन को 44 हजार वोट मिला। यहां कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी ने नलिन के लिए इस कदर फील्डिंग सजाई कि विधान सभा में हासिल 39 हजार से भी आगे बढ़ गए। और यही से सीता सोरेन की हार की नींव पड़ी।
गीता कोड़ा भी कुछ खास नहीं कर पायी
कांग्रेस से भाजपा में आईं मधु कोड़ा ने भी झारखंड की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सिंहभूम लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं। पर गीता कोड़ा को भी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की जोबा माझी ने बुरी तरह पराजित कर दिया। गीता कोड़ा को झारखंड की मंत्री जोबा ने 1,68,402 वोटों से हराया। गीता कोड़ा को इस बार 3,51,762 वोट मिले जबकि जोबा मांझी को 5,20,164 वोट मिले। कहा जाता है कि गीता कोड़ा को उनके पति और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार ने हराया।
क्या चंपाई सोरेन कुछ अलग हैं?
राजनीतिक गलियारों में चंपई सोरेन का हश्र सीता सोरेन जैसा नहीं माना जा रहा है। इसकी कई वजहें हैं...
जमीन से जुड़े नेता हैं चंपई सोरेन
ये राजनीति में वंशवाद की उपज नहीं हैं. आदिवासी के कल्याण हेतु ये भी शिबू सोरेन के साथ आंदोलन की उपज है। यूं कह लें तो शिबू सोरेन के काफी विश्वसनीय और आंदोलन के दौरान वे इनके राइट हैंड रहे हैं
इनका साफ सुथरा छवि है
कुछ माह का ही सही पर इनका मुख्यमंत्री काल भ्रष्टाचार मुक्त और जनप्रिय था। सीएम रहते कई जनप्रिय योजनाओं को लेकर ख्यात हैं। सीएम रहते हुए इनके तय कार्यक्रमों का रद्द कर देने से जनता के बीच हेमंत सोरेन की छवि बिगड़ी । जिस तरीके से चंपई सोरेन को सीएम पद से हटाया गया, उसे कोल्हान की जनता ने आदिवासियों का अपमान माना
कितना करिश्मा दिखाएंगे चंपई
राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा तो है कि जो हेमंत सोरेन आदिवासियों के हक हकुक की बात करते हैं, वे एक बड़े आदिवासी चेहरा को संभाल नहीं पाए। इस नैरेटिव के साथ भाजपा चुनावी समर में जा सकती है। पर यह झारखंड की आदिवासी जनता पर निर्भर है कि वे इस नैरेटिव के साथ खड़ी होती है या नहीं। जाहिर है जेएमएम भी तो डिफेंस में भाजपा पर सामंती पार्टी होने का आरोप लगाते बताएगी कि कैसे धन बल से पार्टी को तोड़ने का काम करती है। इन दो धाराओं के बीच झारखंड की जनता की भी परीक्षा है कि वे किसके साथ खड़ी होती है। और यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा।
Aug 31 2024, 10:09