पश्चिम बंगाल में लॉ एंड ऑर्डर पर बवाल, क्या लगेगा राष्ट्रपति शासन?
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कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुए दुष्कर्म व हत्या के मामले में पूरे देश में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। ट्रेनी डॉक्टर का रेप और हत्या का मामला सामने आने पर भी पश्चिम बंगाल पुलिस के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं। वहीं, राज्य की ममता बनर्जी सरकार पर आरोपियों का बचाव करने के आरोप लगा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज के छात्र इस मुद्दे का विरोध कर रहे हैं। जनता ने इस मुद्दे को पकड़ रखा और राज्य सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरी है। बीजेपी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग कर रही है।
तनावपूर्ण हालात के बीच बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने दिल्ली आकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इसके बाद चर्चा तेज हो गई कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग सकता है।
इस बीच बुधवार को देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी कोलकाता की घटना को लेकर बयान दिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर आक्रोश जाहिर करने के साथ ही इस पर अंकुश लगाने का आह्वान करते हुए कहा कि ‘‘बस! बहुत हो चुका। अब वो समय आ गया है कि भारत ऐसी ‘विकृतियों’ के प्रति जागरूक हो और उस मानसिकता का मुकाबला करे जो महिलाओं को ‘कम शक्तिशाली’, ‘कम सक्षम’ और ‘कम बुद्धिमान’ के रूप में देखती है।
पश्चिम बंगाल में हिंसा कोई नई बात नहीं। यहां, पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक में हिंसा की खबरें आती हैं। कभी महिला को सरे आम सड़क पर पीटा जाता हैं तो कहीं पंचायत में कुछ नेता 'कंगारू कचहरी' लगातर इंसाफ करते है। हालांकि, कभी बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग ने ऐसे जोर नहीं पकड़ा है।
ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन कब और किन परिस्थितियों में लगता है। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्य की व्यवस्था में क्या-क्या बदल जाता है?
कब लगता है राष्ट्रपति शासन
दरअसल राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 में दी हुई है। अनुच्छेद 355 कहता है कि केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाना चाहिए। केंद्र सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य सरकारें संविधान के अनुसार काम करें। अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति को शक्ति प्राप्त है कि वो राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर राज्य सरकार की शक्तियों को अपने अधीन ले सकता है।
राष्ट्रपति शासन की सिफारिश में राज्यपाल की भूमिका
किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा करने के लिए अक्सर इन दो अनुच्छेदों का एक साथ इस्तेमाल होता है। अगर राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम करने में विफल रहती है तो राज्यपाल इस संबंध में एक रिपोर्ट भेज सकता है। राज्यपाल की सिफारिश को जब कैबिनेट की सहमति मिल जाती है तो किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लग सकता है।
जरूरी नहीं कि राष्ट्रपति शासन हमेशा कानून व्यवस्था बिगड़ने पर ही लागू हो, जब किसी राज्य में किसी दल के पास बहुमत ना होने और गठबंधन की सरकार भी ना बन पाने की स्थिति में राज्यपाल राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है।
राष्ट्रपति शासन में सबसे खास बात ये है कि इस अवधि के दौरान राज्य के निवासियों के मौलिक अधिकारों को खारिज नहीं किया जा सकता। इस व्यवस्था में राष्ट्रपति मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्री परिषद को भंग कर देता है। राज्य सरकार के कामकाज और शक्तियां राष्ट्रपति के पास आ जाती हैं। इसके अलावा राष्ट्रपति चाहे तो यह भी घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का इस्तेमाल संसद करेगी।
Aug 29 2024, 18:32