आइए जानते है तिरुपति बालाजी की क्या है पौराणिक इतिहास और भक्त क्यों देते हैं अपने बालों का दान
आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमला पर्वत पर स्थित यह मंदिर भारत के सबसे प्रमुख व पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। इसके अलावा यह भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक भी है। चमत्कारों व रहस्यों से भरा हुआ यह मंदिर न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में जाना जाता है। इस मंदिर के मुख्य देवता श्री वेंकटेश्वर स्वामी है, जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं और तिरुमाला पर्वत पर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ निवास करते हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर में बाल-दान की परम्परा
मान्यताओं के मुताबिक, जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, वे मंदिर में आकर वेंकटेश्वर स्वामी को अपना बाल समर्पित (दान) करते हैं। दक्षिण में होने के बावजूद इस मंदिर से पूरे देश की आस्था जुड़ी है। यह प्रथा आज से नहीं बल्कि कई शाताब्दियों से चली आ रही है, जिसे आज भी भक्त काफी श्रद्धापूर्वक मानते आ रहे हैं। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां न सिर्फ पुरुष अपने बाल का दान करते हैं बल्कि महिलाएं व युवतियां भी भक्ति-भाव से अपने बालों का दान करती हैं।
तिरुपति में बाल दान करने के पीछे की कहानी क्या है?
पौराणिक किवदंती के अनुसार, प्राचीन समय में भगवान तिरुपति बालाजी की मूर्ति पर चीटियों ने बांबी बना ली थी, जिसके कारण वह किसी को दिखाई नहीं देती थी। ऐसे में वहां रोज एक गाय आती और अपने दूध से मूर्ति का जल-अभिषेक कर चली जाती। जब इस बात का पता गाय मालिक को चला तो उसने गाय को मार दिया, जिसके बाद मूर्ति के सिर से खून बहने लगा। इस पर एक महिला ने अपने बाल काटकर बालाजी के सिर पर रख दिया। इसके बाद भगवान प्रकट हुए और महिला से कहा, यहां आकर जो भी मेरे लिए अपने बालों का त्याग करेगा, उसकी हर इच्छा पूरी होगी। तभी से ये केश-दान की परंपरा चली आ रही है।
तिरुपति बालाजी मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो भगवान विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था। यह सरोवर तिरुमाला के पहाड़ी पर स्थित है। इसीलिए तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियां शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि मंदिर में स्थित प्रभु की प्रतिमा किसी ने बनाई नहीं है बल्कि ये स्वयं ही उत्पन्न हुई है।
तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास
तिरुपति बालाजी मंदिर को 'टेम्पल ऑफ सेवन हिल्स' भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण करीब तीसरी शाताब्दी के आसपास में हुआ है, जिसका समय-समय अलग-अलग वंश के शासकों द्वारा जीर्णोद्धार कराया गया है। 5वीं शाताब्दी तक यह मंदिर सनातनियों का प्रमुख धार्मिक केंद्र बन चुका था। कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय ने की थी।
9वीं शताब्दी में कांचीपुरम के पल्लव शासकों ने यहां कब्जा कर लिया था। इस मंदिर के ख्याति प्राप्त करने की बात की जाए तो 15वीं शाताब्दी के बाद इस मंदिर काफी प्रसिद्धि मिली, जो आजतक बरकरार है।
तिरुपति बालाजी मंदिर की कहानी
कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में अपने शेषशैय्या पर विश्राम कर रहे थे, तभी वहां भृगु ऋषि आए और उनके छाती पर एक लात मारी। इस पर क्रोधित न होकर विष्णु जी ने भृगु ऋषि के पांव पकड़ लिए और पूछा कि ऋषिवर आपके पैरों में चोट तो नहीं लगी। लेकिन लक्ष्मी जी को ऋषि का यह व्यवहार पसंद नहीं आया और वे क्रोधित होकर बैकुंठ छोड़कर चली गई और पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रूप में जन्म लिया।
इस पर भगवान विष्णु ने अपना रूप बदल वेंकटेश्वर के रूप में माता पद्मावती के पास पहुंच गए और विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया और फिर दोनों की शादी हो गई। आज भी तिरुपति मंदिर में स्थित मूर्ति को आधा पुरुष व आधा महिला कपड़े में सजाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान वेंकटेश्वर स्वामी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ निवास करते हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर में चढ़ने वाला प्रसाद
यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं। इस मंदिर से 23 किमी. दूर एक गांव है, जहां बाहरी व्यक्तियों का जाना वर्जित है। यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं। मान्यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब इसी गांव से आता है। इस गांव में सदियों से परम्परा चली आ रही है, यहां की महिलाएं कभी भी सिले हुए वस्त्र धारण नहीं करती हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
⦁ मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करते ही दाई ओर एक छड़ी रखी है, जिसको लेकर कहा जाता है कि बालाजी की मां उसी छड़ी से उनकी पिटाई करती थी।
⦁ पिटाई के दौरान ही उनकी ठुड्डी पर चोट लग गई थी, जिस पर उनकी मां ने उस चंदन का लेप लगाया था, जो प्रथा के रूप में आज भी चली रही है।
⦁ मंदिर की मूर्ति में वेंकटेश्वर स्वामी खुद निवास करते हैं और इसीलिए मूर्ति के सिर पर लगे बाल असली है, जो कभी आपस में उलझते नहीं और मुलायम बने रहते हैं।
⦁ मूर्ति पर कान लगाकर सुनने पर समुद्री लहरों की ध्वनि सुनाई देती है और मूर्ति में भी हमेशा नमी बनी रहती है।
⦁ मंदिर में एक दीया है, जो कई शाताब्दियों से निरंतर जलता आ रहा है। रहस्यमयी बात यह है कि इस दीपक में न तो कभी तेल डाला जाता है और न कभी घी..।
⦁ गर्भ गृह में प्रवेश करने पर मूर्ति मध्य में स्थित दिखाई देती है लेकिन गर्भ गृह के बाहर से देखने पर मूर्ति गर्भ गृह में दाई ओर स्थित दिखाई देती है।
वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर पचाई कपूर लगाया जाता है। विज्ञान की मानें तो पचाई कपूर लगाने से पत्थर कुछ समय बाद चटक जाता है
लेकिन वर्षों से तिरुपति बालाजी को यह कपूर लगाया जा रहा है लेकिन आज भी मूर्ति एकदम सुरक्षित है।
⦁ हर गुरुवार को तिरुपति जी का चंदन श्रृंगार किया जाता है और जब यह चंदन लेप हटाया जाता है तो मूर्ति के ह्रदय के पास माता लक्ष्मी छवि उभर आती है।
⦁ ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी बालाजी में ही समाहित है। इसीलिए प्रतिदिन मूर्ति के श्रृंगार के समय नीचे धोती और ऊपर साड़ी पहनाई जाती है।
⦁ तिरुपति बालाजी की मूर्ति एक काले पत्थर से बनी है, जो देखने एक जीवंत मूर्ति दिखाई देती है। गर्भगृह का वातावरण काफी ठंडा रखा जाता है, उसे बावजूद मूर्ति पर पसीने की बूंद उभर आती हैं। मान्यता है कि बालाजी को अत्यधिक गर्मी लगती है, जिससे उनकी पीठ भी हमेशा नम रहती है।
Aug 19 2024, 13:00