सूबे की नजूल किसी को नहीं क़बूल, विपक्ष ही नहीं बीजेपी के लोग भी कर रहे इसका विरोध, जानिये क्यों
लखनऊ । यूपी में नजूल की ज़मीनसे जुड़ा एक बिल योगी सरकार के गले की फांस बन गई है। नजूल यानी वो जमीन का टुकड़ा जिसका कोई वारिस नहीं होता.।ये ज़मीन राज्य सरकार के अधीन आती है और राज्य सरकार अपने विवेक से किसी को लीज़ या पट्टे पर दे सकती है। इसी नजूल की जमीन से जुड़े एक विधेयक का यूपी में जमकर विरोध हो रहा है। विधानसभा से बिल पास होने के बाद नाराजगी जताने वाले बीजेपी विधायकों ने प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और केशव मौर्य से मिलकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी।ऐसा शायद पहली बार हुआ है, जब योगी सरकार के किसी विधेयक को विधानसभा से मंजूरी मिलने के बावजूद विधान परिषद ने प्रस्ताव पास नहीं किया। इस विधेयक का विरोध न सिर्फ विपक्ष कर रहा है, बल्कि खुद बीजेपी के लोग भी इसके खिलाफ हैं।
नजूल की जमीनों पर यह होता रहा खेल जानकारी के लिए बता दें कि सरकार का मानना है कि पूर्व की सरकारों में अरबों रुपये की नजूल जमीन को कौड़ियों में फ्रीहोल्ड करने का बड़ा खेल किया जाता रहा है। इसमें लिप्त भू-माफिया से लेकर नेता और नौकरशाह ही जनहित को ढाल बनाकर अपने हितों को साधने के लिए विरोध कर रहे हैं। कानून के लागू होने से न केवल अरबों रुपये की नजूल जमीन का सार्वजनिक हित में इस्तेमाल किया जा सकेगा बल्कि पूर्व में गड़बड़ी कर नजूल जमीन को फ्रीहोल्ड कराने का खेल भी उजागर होगा।
यूपी में लगभग 75 हजार एकड़ नजूल जमीन प्रदेश में लगभग 75 हजार एकड़ नजूल जमीन है, जिसकी कीमत दो लाख करोड़ रुपये आंकी गई है। नजूल जमीन पर कब्जे के विवाद भी कम नहीं हैं। कई कीमती व बड़ी जमीनों पर भूमाफिया व रसूखदार लोगों का कब्जा भी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भूमाफिया के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित कराने के लिए चार स्तरीय एंटी भूमाफिया टास्क फोर्स का गठन किया था। बीते लगभग सवा चार साल में राजस्व व पुलिस विभाग ने भूमाफिया के विरुद्ध अभियान के तहत कार्रवाई है। राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार लगभग 1,54,249 एकड़ भूमि को कब्जा मुक्त कराया गया है। 2,464 कब्जेदारों को चिन्हित कर 187 भूमाफिया को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।इन मामलों में 22,992 राजस्व वाद, 857 सिविल वाद व 4,407 एफआइआर दर्ज कराई गईं। प्रदेश में फर्जी दस्तावेजों व रसूख के बलबूते नजूल भूमि पर कब्जे तथा उसे फ्रीहोल्ड करा लेने का खेल काफी पुराना है। सरकारी जमीनों को सर्किल रेट का केवल 10 प्रतिशत भुगतान कर फ्रीहोल्ड कराने का खेल चलता रहा है। सर्वाधिक नजूल भूमि प्रयागराज, कानपुर, अयोध्या, सुलतानपु, गोंडा व बाराबंकी में हैं। नजूल की जमीनों को फ्रीहोल्ड कराने का सबसे बड़ा केंद्र प्रयागराज रहा है, जहां सिवालि लाइन क्षेत्र की अधिकतर जमीन नजूल की है।
इन शहरों में खाली कराई नजूल भूमिलखनऊ के सरोजनीनगर में नजूल भूमि को खाली कराकर फारेंसिक इंस्टीट्यूट स्थापित कराया गया है। यह जमीन भूमाफिया खुर्शीद आगा के कब्जे में थी। वर्ष1955 में 57 एकड़ जमीन एक ट्रैक्टर कंपनी को 10 वर्ष की लीज पर दी गई थी।प्रशासन ने जमीन सरोजनीनगर ब्लाक के पिपरसंड क्षेत्र की ग्राम सभा के नाम दर्ज करा दी थी। वर्ष 2014 में जमीन भूमि माफिया के हाथों में चली गई थी।प्रयागराज के लूकरगंज इलाके में माफिया अतीक अहमद (अब मृत) के कब्जे में रही करोड़ों रुपये कीमत की भूमि को खाली कराकर सरकार ने गरीबों के लिए 76 आवास बनवाए।कानपुर के सिविल लाइन क्षेत्र में माफिया गिरोह ने नजूल की लगभग सात एकड़ भूमि पर कब्जा करने का प्रयास किया। लगभग एक हजार करोड़ रुपये की इस भूमि के अवैध कब्जे को हटवाया गया।स्वतंत्रता से पहले का राजस्व बोर्ड कार्यालय लखनऊ के राणा प्रताप मार्ग पर था। इसे फ्रीहोल्ड कराने को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। पिछले दिनों एलडीए ने इस मामले की जांच शुरू की तो कर्मचारियों की मिलीभगत से इसकी फाइल ही गायब करा दी गई।
इन कारणों से विधान परिषद में लटक गया नजूल बिल योगी सरकार नजूल भूमि विधेयक 2024 को भले ही विधानसभा से पास कराने में कामयाब रही हो, लेकिन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के कड़े विरोध के चलते विधान परिषद में यह लटक गया है। विधान परिषद के सभापति मानवेंद्र सिंह ने विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की मंजूरी दे दी है। इस विधेयक ने सूबे के सियासी तापमान को बढ़ा दिया है। विधेयक के विरोध में विपक्षी दल की नहीं बल्कि सत्तापक्ष की तरफ से भी आवाज उठी।सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ कदमताल करने वाले विधायक रघुराज प्रताप सिंह भी नजूल भूमि विधेयक विरोध में खड़े नजर आए।इतना ही नहीं बीजेपी विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी, सिद्धार्थनाथ सिंह के साथ सहयोगी निषाद पार्टी और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के विधायक भी विरोध में आ गए. बीजेपी विधायकों के विरोध के बावजूद योगी सरकार नजूल बिल को विधानसभा से पास कराने में कामयाब रही, लेकिन विधान परिषद में पेश होने से पहले सियासी नफा-नुकसान का आकलन कर लिया। इसके चलते ही विधान परिषद में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने बिल का विरोध कर दिया और उसे पास नहीं होने दिया।
क्या होती है नजूल भूमिनजूल शब्द अरबी भाषा से लिया गया है। सरकार के पास भी जमीन होती है, जिस जमीन को शासकीय जमीन कहा जाता है। इन शासकीय जमीनों में से एक जमीन नजूल जमीन भी होती है। आजादी से पहले अंग्रेजों के विरुद्ध तमाम भारतीयों ने विद्रोह किया था।अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले राजा-रजवाड़े या फिर स्वतंत्रता सेनानी जब युद्ध में परास्त हो जाते थे, तो ब्रिटिश सेना उनसे उनकी जमीनें छीन लेती थी। इन जमीन को अंग्रेजी हुकुमत अपने कब्जे में ले लिया करती थी।अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लड़ने वाले कई लोग ऐसे थे जो खेती करते थे और उनके पास जमीन होती थी। अंग्रेज उनकी जमीन को राजसात कर लेते थे। ऐसी जमीन को नजूल की जमीन कहा गया।देश को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद स्वतंत्रता सेनानियों की जमीन से अंग्रेजों का कब्जा छूट गया। स्वतंत्रता के बाद जिन जमीन मालिकों से अंग्रेजों ने जमीन हड़पी थी, वो उनके वारिसों को वापस लौटा दी गई। हालांकि, कई जमीन ऐसी भी थी जिनके वारिस ही नहीं बचे। इसके अलावा बहुत सी ऐसी भी जमीनें थीं जो राजघरानों को दोबारा वापस नहीं दी सकती थी, क्योंकि राजघरानों के पास इन पर अपना स्वामित्व साबित करने के लिए उचित दस्तावेज नहीं थे। यही जमीन नजूल भूमि है। आजादी के बाद ढेरों रियासतों के विलय होने के बाद अलग-अलग राज्यों को नजूल जमीनें सौंप दी गईं।
बीजेपी नेताओं को वोट बैंक की चिंतानजूल जमीन पर सालों से रह रहे लोगों को उम्मीद थी कि एक दिन फ्री होल्ड का नया कानून उनके आशियाने के सपने को पूरा करेगा, लेकिन अब योगी सरकार के विधेयक आने के बाद लोगों के आशियाने पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सुरेश खन्ना ने बिल पेश करते हुए कहा था, पहले की नीतियों के कारण कई तरह के दावे हुए हैं और ये बैंकों पर बोझ बनती चली गई।भूमि की जरूरत को देखते हुए अब इन नीतियों को जारी रखना और जनहित को देखते हुए नजूल जमीन को फ्री होल्ड में बदलने की अनुमति देना उत्तर प्रदेश सरकार के हित में नहीं है। नजूल जमीन पर विधेयक से बीजेपी नेताओं को वोट बैंक की चिंता सताने लगी है. इससे सीधे तौर पर अकेले प्रयागराज के ही 25 हजार परिवार प्रभावित होने की संभावना है तो लखनऊ, मुरादाबाद, सहारनपुर, गोरखपुर, बरेली और आगरा में बड़ी संख्या में नजूल की जमीनें हैं. इसीलिए बीजेपी के विधायक से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक नजूल भूमि बिल के विरोध में उतर गए।
विरोध के चलते पीछे हटी थी भाजपादरअसल, पिछले दिनों कड़े विरोध और हंगामे के बीच विधानसभा से पारित उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) विधेयक-2024 के एक अगस्त को विधान परिषद में पहुंचने पर भाजपा ही उसे पारित कराने से पीछे हट गई।उच्च सदन में भी बहुमत के बावजूद विधेयक को प्रवर समिति को भेजने की मांग के पीछे विपक्ष द्वारा इस कानून को जनविरोधी बताते हुए बड़ा मुद्दा बनाने की धार को कुंद करना था। योगी सरकार से लेकर भाजपा संगठन नहीं चाहता था कि विधानसभा की 10 सीटों के उपचुनाव से पहले विपक्ष को किसी तरह जनता को गुमराह करने का कोई मौका मिले।
Aug 11 2024, 11:06