7 राज्यों में हुए उपचुनाव में “कुम्हलाया” कमल, आने वाले चुनावों से पहले आत्ममंथन की जरूरत
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लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भारत की राजनीति करवट लेने लगी है। एनडीए के 293 सांसदों के साथ तीसरी बार सरकार बनाने के बाद भी बीजेपी कॉन्फिडेंट नजर नहीं आ रही है, जबकि 234 सीटें जीतने वाले विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। हाल ही में संपन्न विधानसभा उपचुनाव के परिणाम सकी तस्दीक कर रहा है। देश के सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर 10 जुलाई को हुए उपचुनाव के नतीजे में इंडिया गठबंधन ने 10 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि, बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के खाते में केवल दो सीटें आई हैं। वहीं, एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। इंडिया गठबंधन में जहां कांग्रेस ने चार सीटों पर जीत का परचम फहराया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने चार, डीएमके और आम आदमी पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की है।
लोकसभा के बाद हुए पहले चुनाव पर देश की निगाहें लगी थी। राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर आम लोग भी इन चुनावों को बीजेपी की परीक्षा मान रहे थे। विधानसभा उपचुनाव में पंजाब की एक, हिमाचल प्रदेश की तीन, उत्तराखंड की दो, पश्चिम बंगाल की चार, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु की एक-एक सीट पर मतदान हुआ था। इन चुनाव में इंडिया’ गठबंधन में शामिल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव नतीजों में बीजेपी पर इंडिया गठबंधन भारी पड़ा। बीजेपी के लिए हिमाचल में बीजेपी हमीरपुर सीट जीतने में कामयाब रही। वहीं, तमिलनाडु में विक्रवांडी विधानसभा सीट पर डीएमके उम्मीदवार अन्नियूर शिवा ने जीत हासिल की।
सबसे पहले बात मध्य प्रदेश की कर लेते हैं। जहां से बीजेपी के लिए एक शुभ समाचार आया है क्योंकि उसने कांग्रेस के गढ़ रहे छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में शामिल अमरवाड़ा सीट जीत ली है, जो कभी कांग्रेस के पास हुआ करती थी। बीजेपी को सबसे बड़ा झटका पश्चिम बंगाल में लगा है। जहां 4 सीटों पर हुए उप चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी ने क्लीन स्वीप कर के बीजेपी को क्लीन बोल्ड कर दिया है। इनमें से तीन सीट ऐसी थी जो पहले बीजेपी के पास थीं। पश्चिम बंगाल में 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 3 से 77 सीट का सफर तय किया था, लेकिन चार सीटों के इस उपचुनाव में उसके लिए संकेत अच्छे नहीं है। उपचुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि बंगाल में टीएमसी की राजनीतिक दीवारों का जोड़ और मजबूत हो गया है।
सबसे बड़ा खेल बिहार में हुआ हैं। जहां जेडीयू और आरजेडी देखते रह गए और बाजी निर्दलीय उम्मीदवार ने मार ली। 13 में ये इकलौती ऐसी सीट है जहां निर्दलीय की सत्ता आई है। पंजाब में 1 सीट पर हुए उपचुनाव में झाड़ू का जादू चला गया और जालंधर पश्चिम विधानसभा सीट पर आम आदमी पार्टी को बड़ी जीत मिली है। कांग्रेस ने पहाड़ों में कमाल कर लिया क्योंकि हिमाचल प्रदेश की 3 सीट में उसे दो सीट पर जीत मिली है जबकि बीजेपी को एक जीत से संतोष करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी को उपचुनाव में कांग्रेस ने खाली हाथ भेजा है और दोनों सीटों पर जीत हासिल की है। इसके अलावा तमिलनाडु की विक्रवंदी विधानसभा सीट इंडिया गठबंधन की DMK के पास गई है।
अब सबसे बड़ी बात ये है कि आखिर बीजेपी को हुए नुकसान की वजह क्या है? दरअसल, 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि को धक्का लगा है। नीट एग्जाम और यूजीसी जैसे एग्जाम में धांधली के आरोप और बारिश में टपकते एयरपोर्ट जैसे मसलों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 10 साल सत्ता में रहने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की छवि करप्शन के मामले बेदाग रही। हालांकि, पेरपर लीक जैसे मुद्दों ने सरकार को छवि का खासा नुकसान पहुंचाया है।
2014 के दौर को याद कीजिए। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने थे, तब देश की जनता करप्शन और घोटालों की खबरों से परेशान थी। मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री के तौर प्रचारित हुए, जो कांग्रेस अध्यक्ष के मातहत के तौर पर काम करते हैं। विपक्ष ने बड़े घोटालों पर उनकी चुप्पी पर भी सवाल उठाए। कांग्रेस भी आरोपों का सटीक जवाब देने में सक्षम नहीं दिख रही थी। गुजरात में ब्रांड बन चुके नरेंद्र मोदी ने इस माहौल को भुनाया। बदलाव की इंतजार कर रही जनता ने समर्थन दिया और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।
2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक ने पीएम मोदी की साख बढ़ाई। जनता ने उन्हें दूसरी बार सरकार बनाने का मौका दिया। मोदी 2.0 में धारा-370 हटाने और सीएए लागू करने जैसे बुलंद फैसले भी लिए। कोरोना के दौर में भी जनता नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी रही। उन्होंने जैसा कहा, लोगों ने वैसा ही किया। यह उनकी लोकप्रियता का चरम था, जिसे देखकर विपक्ष समेत पूरी दुनिया दंग रह गई। किसान आंदोलन और कोरोना से हुई मौतों के बाद भी यूपी में बीजेपी की वापसी हुई। पिछले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी भारतीय जनता पार्टी की बनी।
2024 के लोकसभा चुनाव में हालात बदल गए। बेहतर चुनाव प्रबंधन और अग्रेसिव कैंपेन के बाद भी बीजेपी पूर्ण बहुमत के 273 के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी। अब महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक जैसे मुद्दों की छाया में हुए उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा को कड़े संदेश दिए हैं। नतीजों ने कई संदेश दिए हैं। आने वाले चुनावों में भाजपा को संगठनात्मक खामियों को समय रहते दूर करना होगा। कार्यकर्ताओं में पुराना जोश भरना होगा। जनता से जुड़े मुद्दों पर त्वरित एक्शन लेकर साधना होगा।
Jul 15 2024, 18:38