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दिल को बहलाने का गालिब - ए - ख्याल अच्छा है संदर्भ : इंडिया गठबंधन के घोषणा पत्र
लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए सहित इंडिया गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों का करीब - करीब  चुनावी घोषणा पत्र जारी हो चुका है।  सभी पार्टियों ने अपने अपने घोषणापत्र में जनता से  लोकलुभावन वादे किये हैं। परंतु आज जनता भी समझ चुकी है कि ये सब चुनावी हथकंडे हैं।
ऐसा लगता है कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन देश को आर्थिक और सामरिक दृष्टि से कमजोर करना चाहते हैं। जिस भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनने में इतने बरस लगे। आज भारत का परचम सारी दुनिया में लहरा रहा है। आज का भारत आजादी के वक्त के भारत से बिल्कुल ही अलग और आत्मनिर्भर है। जिसके कारण ही पड़ोसी देशों की नापाक हरकतों में काफी कमी आयी है। एक तरफ कांग्रेस के जारी चुनावी घोषणा पत्र में परमाणु हथियारों को नष्ट करने की बात कही जा रही है।
वहीं दूसरी ओर राजद के चुनावी घोषणा पत्र में तेजस्वी यादव ने कहा है कि हम एक करोड़ लोगों को नौकरियां देंगे। तेजस्वी यह साफ नहीं कर पाये कि उनके पिता लालू प्रसाद जब रेल मंत्री थे तब उन्होंने भी काफी नौकरियां बांटी थीं। कैसे बांटी थीं , यह आज सबको पता चल गया है।
इंडिया गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों के नेता मोदी फोबिया से ग्रस्त लगते हैं। उनको हर जगह मोदी ही नजर आते हैं। इस कारण इंडी गठबंधन की तरफ से कौन कब और कहां क्या बोल देगा कुछ पता नहीं चलता।
कांग्रेस और इंडिया गठबंधन मोदी का विरोध करते  - करते व्यक्तिगत टिप्पणी के साथ साथ ‌देश की सुरक्षा को भी खतरे में डालने का मंसूबा पाले रहे हैं।
और अंत में परमाणु हथियार किसी भी देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाते हैं। उस देश की सामरिक शक्ति का अहसास कराते हैं। उनको खत्म करने की बात सोचना देश को फिर गुलाम बनाने की सोच को दर्शाता है।
मोदी की तीसरी पारी कांग्रेस और राजद पर पड़ेगी भारी संदर्भ : गठबंधन के तरकश में सिर्फ बातों के तीर
         ( चिंता नहीं मित्र , सब सेट कर दिया है। बस आप देखते रहिये। ) इंडिया गठबंधन में शामिल सभी पार्टियां जानतीं हैं कि अगर मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गये तो भ्रष्टाचारियों की नकेल कस  जायेगी। इसी घबराहट में गठबंधन की ओर से उल्टे-सीधे तर्क दिये जा रहे हैं।
एक तरफ एनडीए लोकसभा चुनाव में कमर कस कर उतर चुका है वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद कोई हलचल ही नहीं दिख रही है। सात चरणों में संपन्न होने वाले लोकतंत्र के महापर्व का पहला चरण 19 अप्रैल से शुरू होने वाला है। मगर इंडी गठबंधन में शामिल सभी पार्टियां अपनी-अपनी डफली बजा रही हैं और सिर्फ बातों के तीर छोड़े जा रहे हैं।
लालू परिवार की तरफ से बारी-बारी से ऐसे- ऐसे बयान सामने आ जाते हैं जो गठबंधन के लिए ही नुकसानदेह साबित हो जाते हैं । लालू प्रसाद की पुत्री डा. मीसा भारती के हालिया बयान कि " हमारी सरकार बनी तो पीएम सहित सारे भाजपा नेताओं को जेल भेजा जायेगा"  हताशा ही दर्शाता है। उनके बयान का जब चौतरफा विरोध होने लगा तो मीसा भारती बैकफुट पर आ गयीं और अब कह रहीं हैं कि मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।
इससे पहले तेजस्वी यादव भी एक रैली में ऐसा ही बयान दे चुके हैं कि "हम लालू प्रसाद के बेटे हैं किसी से डरने वाले नहीं "। इसी तरह एक रैली में उन्होंने कहा था कि उनके पिता लालू प्रसाद ने लाल कृष्ण आडवाणी के राम रथ को रोका था, हम नरेन्द्र मोदी के विजय रथ को रोकेंगे।
जो गठबंधन अभी तक अपना चेहरा नहीं चुन सका , वह सरकार बनाने के सपने देख रहा है । दिल्ली के मुख्यमंत्री के जेल जाने के बाद पूरा गठबंधन उनके समर्थन में लग गया था, उसे चुनाव की कोई चिंता ही नहीं है। इंडी गठबंधन रूपी जहाज का कप्तान ही जब जहाज छोड़ गया तो वह हिचकोले ही खायेगा।
और अंत में पहले कांग्रेस इंडिया गठबंधन की झंडाबरदार बनी थी, मगर कांग्रेस युवराज राहुल गांधी जब चुनाव की चिंता छोड़ मोहब्बत की दुकान चलाने लगे, तो लालू प्रसाद के परिवार ने गठबंधन का झंडा थामा। मगर एक कहावत है " विनाश काले विपरीत बुद्धि ", यही स्थिति राजद की बन गयी है। लालू परिवार से ऐसे ऐसे बयान आने लगे जो गठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हो रहे हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि बात जुबान से, तीर कमान से और  प्राण शरीर से निकल जाते हैं तो फिर वापस नहीं आते।
हाई प्रोफाइल डिग्री वालों का आईक्यू टेस्ट संदर्भ : नेकी कर सोशल मीडिया पर डाल
आजाद भारत में पहले आम चुनाव 1951- 52 में सर्दियों के मौसम में कराये गये थे। उस समय देश में निरक्षरता का बोलबाला था । 85 फ़ीसदी लोग पढ़- लिख नहीं पाते थे। वहीं संक्रामक रोगों की विभीषिका और अकाल मौतों ने जीवन को तहस-नहस कर रखा था । लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हो पाती थीं। देश के पहले आम चुनाव में मात्र 14 पार्टियां शामिल हुईं थीं। पर, आज देश की स्थितियां भिन्न हैं। आज देश में निरक्षरता की दर 35 फ़ीसदी ही रह गयी है । पर ये कैसी विडंबना है कि आजाद भारत में नेता पढ़े लिखे थे और जनता निरक्षर थी परंतु आज स्थितियां इसकी उलट हैं। आज राजनीति ऐसा क्षेत्र बन गयी है, जहां आपको किसी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती। हम देख सकते हैं कि कितने अशिक्षित और गैर योग्य प्रत्याशी सत्ता प्राप्त कर इसका दुरुपयोग करते हैं। आज जेल में बंद सजायाफ्ता व्यक्ति चुनाव में खड़ा होता है और जीत जाता है। वहीं ऐसे व्यक्ति भी राजनीति से चिपके हुए हैं, जिनकी बात जनता समझ ही नहीं पाती। राजनीति आज काजल की कोठरी बन गयी है, मगर उसमें रहने वाले लोगों के कपड़े बेदाग रहते हैं।
आज की राजनीति ऐन-केन-प्रकारेण यानि साम-दाम-दंड भेद के तहत सिर्फ पर सिर्फ सत्ता प्राप्त करने का प्रयास है । आज के नेता चुनाव के समय जाति और समुदाय के नाम पर लोगों को आपस में लड़ा कर अपना फायदा उठाने की फिराक में रहते हैं। गरीब, शोषित और पिछड़ा वर्ग से इन्हें कोई हमदर्दी नहीं । नेता इनका उपयोग केवल और केवल अपने वोट बैंक के रूप में ही करते हैं। इसका उदाहरण हमें हर राज्य में देखने को मिलता है।
और अंत में जिस प्रकार एक अच्छा शिक्षक ही बच्चों को सही दिशा दिखा कर उन्हें जीवन में सफल होने योग्य बनाता है और अपना सारा ज्ञान छात्रों को देता है। उसी प्रकार एक योग्य और अनुभवी राजनेता ही देश का विकास कर सकता है। आपके पास जो होगा वही आप दूसरे को देते हैं।
इंडिया गठबंधन के दल अपना वजूद बचाने में लगे संदर्भ : 2024 में विपक्ष विहीन लोकसभा की उम्मीद
2024 लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों के नेता करीब 10 साल से ( 2014 से 2024 ) सिर्फ और सिर्फ मोदी विरोध में ही लगे रहे। वहीं इतना तो इंडिया गठबंधन के नेता भी समझ चुके हैं कि 2024 में भी मोदी को सत्ता से बेदखल करना नामुमकिन है । तभी तो एक सभा में ''आप" प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि  2024 में तो नहीं लेकिन 2029 में मोदी को हम जरूर हरायेंगे।
इंडिया गठबंधन के हर घटक दल की अपनी - अपनी और अलग-अलग मजबूरियां हैं और वे सभी उसी में उलझे हुए हैं । 19 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग होनी है। विपक्ष शायद इसी के आधार पर आगे की रणनीति बनायेगा । दूसरी ओर जनता जब मतदान के लिए लाइन में लगी होगी तो उसके सामने सिर्फ एक चेहरा मोदी ही दिखायी देगा । वहीं इंडिया गठबंधन अब तक कोई चेहरा ही  तय नहीं कर पाया है । वह जनता को कैसे यकीन दिलायेगा कि मोदी का कोई विकल्प भी उसके पास है । आप , राजद, टीएमसी , सपा , उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी सभी आंतरिक कलह से जूझ रही हैं।
कांग्रेस अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित है और अपनी आंतरिक एकजुटता को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है। वहीं एनडीए ताल ठोक कर कह रहा है कि " अबकी बार 400 पार" ,  वहीं इंडिया गठबंधन यह तय ही नहीं कर पाया है कि वह कितनी सीटें जीतने में सफल होगा।
और अंत में आज तीन युवाओं ( राहुल, अखिलेश और तेजस्वी ) का भविष्य 2024 का लोकसभा चुनाव तय करेगा। अगर 2019 वाला प्रदर्शन इन तीनों का रहा तो अपने-अपने राज्य में सत्ता में आने का इनका सपना " मुंगेरीलाल के हसीन सपने " के समान साबित होगा।
सहानुभूति वोट की उम्मीद कर रहे केजरीवाल संदर्भ : 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में
अब 15 अप्रैल तक तिहाड़ जेल में रहेंगे केजरीवाल। कोर्ट में उनके वकील ने ईडी की दलीलों का कोई विरोध नहीं किया। दूसरी ओर ईडी की पूछताछ में भी केजरीवाल सहयोग नहीं कर रहे हैं। वहीं उन्होंने अभी तक मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी नहीं दिया है।
आज उनकी दिली तमन्ना भी पूरी हो गयी। क्योंकि उन्होंने ही एक बार कहा था कि अगर मैंने भी चोरी की तो मुझे भी जेल जाना होगा। शराब घोटाले में आप सरकार के तीन - चार मंत्री भी अभी तिहाड़ जेल में बंद हैं।
वहीं दूसरी ओर केजरीवाल को तिहाड़ जेल जाने के कोर्ट के आदेश के बाद रामायण की याद आयी है। इससे पहले इंडी गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं के रामचरित मानस के बारे में की गयी अमर्यादित टिप्पणी पर उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला था। अब वे जेल में बैठ कर अपने सहयोगियों को रामायण पढ़ कर सुनायेंगे। जेल भेजे जाने पर केजरीवाल ने कोर्ट से  तीन किताबें 'रामायण', 'गीता' और 'हाऊ पीएम डिसाइड' ले जाने की इजाजत मांगी है।
केजरीवाल जानते हैं कि जनता कान की कच्ची होती है, इसलिए वे अपनी गिरफ्तारी का सारा दोष केंद्र सरकार पर डाल कर सहानुभूति वोट प्राप्त करना चाहते हैं।
ईडी को केजरीवाल ने शराब घोटाले में आप प्रवक्ता आतिशी का भी नाम लिया है। इससे लगता है कि उनसे भी ईडी पूछताछ कर सकती है।
और अंत में चेले तो पहले से ही जेल में हैं, अब स्वामी जी ( केजरीवाल) रामायण, गीता आदि लेकर तिहाड़ जेल जा रहे हैं। अब तिहाड़ में उनका प्रवचन होगा। खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे चार यार।
दिल्ली में भ्रष्टाचारियों का शक्ति प्रदर्शन संदर्भ : लोकसभा चुनाव की चिंता नहीं, केजरीवाल की गिरफ्तारी रही मुख्य मुद्दा
आज से दस बारह वर्ष पहले इसी रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के आंदोलन में अरविंद केजरीवाल ने यूपीए के भ्रष्टाचार के विरोध में खूब माहौल बनाया था। उसी मैदान में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में वही 'कांग्रेस' 'आप' के साथ मंच साझा कर रही है। यह बड़ी विचित्र बात है। इंडी गठबंधन की यह लोकतंत्र बचाओ रैली भ्रष्टाचारियों को बचाओ रैली में परिवर्तित हो गयी।
दिल्ली के रामलीला मैदान में रविवार को आयोजित इंडी गठबंधन की लोकतंत्र बचाओ रैली मफलर मैन अरविंद केजरीवाल की शराब घोटाले में की गयी गिरफ्तारी के विरोध में 'आप' और कांग्रेस की ही रैली मानी जायेगी। रैली में दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के ही कार्यकर्ता ही ज्यादा दिखे। रैली को गठबंधन के नेता अवश्य संबोधित करेंगे, लेकिन मुख्य फोकस केजरीवाल की गिरफ्तारी पर ही होगा।
एक तरफ इंडी गठबंधन अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के लिए रैली पर रैली कर रहा है, मगर उसका बिखराव रुक नहीं रहा है। दूसरी ओर यूपी में 'अपना दल'
की नेता पल्लवी पटेल ने गठबंधन को अलविदा कह औवेसी के साथ तीसरे मोर्चे का गठन कर लिया। इससे अखिलेश यादव सहित विपक्षी दलों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। एनडीए का रास्ता साफ होता जा रहा है।
दूसरी ओर एक तरह से यह कहा जा सकता है कि इंडी गठबंधन में शामिल सारे दलों के प्रमुखों पर भ्रष्टाचार का कोई न कोई मामला अवश्य चल रहा है और वे जमानत पर बाहर हैं। रैली में शामिल तमाम नेताओं के संबोधन में केजरीवाल की गिरफ्तारी ही मुख्य बात रही। उनकी गिरफ्तारी को प्रजातंत्र पर हमला बताया।
चोर - चोर मौसेरे भाई वाली कहावत आज चरितार्थ हो रही है। चोरी और सीनाजोरी। सारे भ्रष्टाचारी आज एकजुट होकर गठबंधन बना कर चुनाव लड़ रहे हैं। ये कितने सफल होंगे ये तो चार जून को देश को मालूम हो ही जायेगा।
और अंत में इंडी गठबंधन की सारी की सारी कवायद एनडीए का ही रास्ता साफ करती नजर आ रही है। कांग्रेस के युवराज को लोकसभा चुनाव क्रिकेट मैच के समान लग रहा है। आज अलीबाबा रूपी इडी और सीबीआई ने भ्रष्टाचारियों के जमा किये गये खजाने को जनता के सामने उजागर कर दिया है।

सिर्फ ऊपरी एकता दिखाने का प्रयास संदर्भ : इंडी गठबंधन की होने वाली दिल्ली की रैली
अरविंद केजरीवाल बहुत सोच समझ कर ही इंडी के द्वारा जारी समन की अनदेखी कर रहे थे। वे नौवें समन का इंतजार कर रहे थे। वे जानते थे कि तब तक लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो जायेगी और वे इसका फायदा अपनी गिरफ्तारी  के बाद उठाने का प्रयास करेंगे।
मालूम हो कि ये वही रामलीला मैदान है जहां अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान इंडी गठबंधन में शामिल मफलर मैन अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ खूब जोर शोर से नारे लगाये थे और आवाज बुलंद की थी, आज वे ही शराब घोटाले के आरोप में इंडी की हिरासत में हैं।
अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में आप और कांग्रेस ने उसी रामलीला मैदान में रविवार को भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए इंडी गठबंधन की रैली आयोजित की है। गठबंधन की इस रैली का मकसद सिर्फ ऊपरी एकता दिखाने का प्रयास करना ही लगता है। जिस गठबंधन में सीटों की शेयरिंग में आज तक माथापच्ची हो रही है, वह रैली कर क्या दिखाना चाहता है।
यह बड़ी विचित्र बात है कि रविवार को दिल्ली में इंडी गठबंधन की होने वाली रैली में जितने भी दल शामिल हैं, करीब करीब सबके प्रमुख किसी न किसी मामले में जमानत पर हैं।
इस रैली का भी वही नतीजा निकलेगा, जैसा पिछली कई बैठकों में निकला था।
कांग्रेस की चुप्पी कहीं आत्म समर्पण तो नहीं संदर्भ : बिहार में कांग्रेस को मिलीं नौ सीटें
यह राजनीति है साहब, जहां 5 साल तक एक- दूसरे को पानी पी -पीकर कोसने वाले , एक -दूसरे की बखिया उघेड़ने वाले और न जाने क्या-क्या कहने वाले दल चुनाव आने पर अपने-अपने स्वार्थ वश एकत्रित होकर गठबंधन बना लेते हैं ।
गठबंधन तो बन जाता है लेकिन जब सीटों के बंटवारे की बात आती है तो सभी ज्यादा से ज्यादा सीटें चाहते हैं । अपने-अपने प्रदेशों में मजबूत क्षेत्रीय दल अपना जनाधार खोना नहीं चाहते। इसलिए सीटों के बंटवारे पर आपसी सहमति बनाने में ही काफी माथापच्ची होती है ।
ठीक यही स्थिति आज 2024 के लोकसभा चुनाव में दिख रही है। बेमन से ही सही महा गठबंधन तो बन गया पर भानुमती का कुनबा कब तक इकट्ठा रहता, सो बिखराव शुरू हुआ । गठबंधन के सूत्रधार ही बीच भंवर में महागठबंधन रूपी नाव को छोड़कर एनडीए के जहाज पर सवार हो गये। फिर तो झड़ी ही लग गयी। आप , तृणमूल कांग्रेस , सपा आदि पार्टियों ने भी गठबंधन से अलग राह पकड़ ली। 
वहीं विलुप्त होने के कगार पर पहुंच रही कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और अपनी आधी उम्र गुजार देने के बाद भी युवा राहुल गांधी लगता है कांग्रेस का बोरिया बिस्तर समेटकर इटली में शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं। कांग्रेस की चुप्पी उसके आत्म समर्पण को ही दरसा रही है ।
थोड़ी बहुत उछल कूद राजद मचा रहा है। पूर्णिया से टिकट मिलने की शर्त पर अपनी पार्टी जाप का कांग्रेस में विलय कर पप्पू यादव निश्चित हो गये थे । मगर उनके साथ राजद प्रमुख ने गेम खेल दिया । लालू प्रसाद ने पप्पू यादव से राजद में अपनी पार्टी जाप का विलय करने पर मधेपुरा से टिकट देने की पेशकश की थी। इस पर पप्पू यादव ने कहा कि सोचेंगे, मगर दूसरे ही दिन कांग्रेस से मिल गये।
इसके बाद लालू प्रसाद ने जदयू  से टिकट नहीं मिलने पर राजद में शामिल हुईं बीमा भारती को सिंबल देकर पूर्णिया से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। पप्पू यादव से नाराज लालू प्रसाद की इस गुगली से परेशान पप्पू बैकफुट पर आ गये और इमोशनल कार्ड खेल रहे हैं।
करीब -करीब हर प्रदेश में जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं , वे कांग्रेस को ज्यादा से ज्यादा सीटें देना नहीं चाहते। इसलिए इंड़ी गठबंधन में शामिल कांग्रेस को अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए मजबूरीवश राजद से समझौता करना पड़ा है। यह भी कह सकते हैं कि लालू प्रसाद ने कांग्रेस को उसकी हैसियत बता दी है।
और अंत में सभी पार्टियां चुनाव लड़ तो रही हैं मगर सभी की छठी इंद्री उनको यह आभास करा रही है कि कहीं न कहीं मामला गड़बड़ है।
राष्ट्रीय पार्टियों को आंखें दिखा रही क्षेत्रीय पार्टियां संदर्भ : पूर्णिया की सीट पर राजद हावी, पप्पू का सपना टूटा
2024 लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है । प्रथम चरण में बिहार की चार सीटों के लिए नामांकन का आज जहां अंतिम दिन है , वहीं दूसरे चरण के लिए गुरुवार को ही अधिसूचना जारी होते ही नामांकन की भी प्रक्रिया शुरू हो जायेगी।
वहीं दूसरी ओर सीटों की शेयरिंग पर सहमति बने बिना राजद प्रमुख लालू प्रसाद द्वारा चुनाव सिंबल बांटने से गठबंधन में शामिल घटक दल खासकर कांग्रेस और राजद के बीच तकरार बढ़ सकती है ।
राजद पहले कांग्रेस को मात्र 6  सीटें देने को तैयार था । मगर इंडी गठबंधन की पटना की महा रैली में लालू प्रसाद द्वारा जोश में होश खोने और प्रधानमंत्री मोदी पर की गयी पारिवारिक टिप्पणी का उल्टा असर होता देख लालू कांग्रेस को 8 सीटें देने पर सहमत हो गये लगते हैं , मगर कांग्रेस कम से कम 11 सीटें चाहती है। 
वहीं पूर्णिया सीट मिलने की उम्मीद में पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का ही कांग्रेस में विलय कर दिया । मगर इससे पहले ही लालू प्रसाद ने पप्पू यादव के साथ खेला कर दिया । उन्होंने बीमा भारती, जो जदयू से टिकट कटने से नाराज थीं,  को राजद का सिंबल देकर उन्हें पूर्णिया से ही अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया ।
वहीं अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस के लिए महा गठबंधन में बने रहना उसकी मजबूरी है। सभी दल उसे आईना ही दिखा रहे हैं। यह हास्यास्पद बात ही लगती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जीरो पर आउट होने वाले दल राजद के सामने कांग्रेस और वाम दल उसकी  ही गणेश परिक्रमा कर रहे हैं। वहीं लालू बिना सहमति के अपने उम्मीदवारों को सिंबल बांट रहे हैं।
और अंत में पहले देश में एक ही पप्पू से निहाल हो रहा था, अब एक और पप्पू कांग्रेस में शामिल हो गये । कांग्रेस का अब भगवान ही मालिक है।
हाट केक बनी पूर्णिया की सीट संदर्भ : इंडी गठबंधन की एकता संदेह के घेरे में
एक एक तरफ लोकसभा चुनाव, जिसका पहला चरण 19 अप्रैल को शुरू हो रहा है और इसके लिए नॉमिनेशन भी चल रहे हैं मगर इंडी गठबंधन में सीटों के बंटवारे की गुत्थी सुलझने का नाम नहीं ले रही है । पूर्णिया , सीवान सहित कुछ सीटों पर मामला फंसा हुआ है।  ये सीटें ऐसी हैं जिस पर राजद और कांग्रेस दोनों ही दावा कर रहे हैं। यादव बहुल होने के कारण पूर्णिया को लालू प्रसाद हाथ से निकलने देना नहीं चाहते।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद पप्पू यादव को इंडी गठबंधन में शामिल करना चाहते थे मगर पप्पू यादव ने पूर्णिया से टिकट मिलने की उम्मीद में अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया । और कहा कि दुनिया छोड़ देंगे मगर पूर्णिया नहीं छोड़ेंगे । वहीं दूसरी ओर जदयू से टिकट नहीं मिलने पर राजद में शामिल होने वाली बीमा भारती भी पूर्णिया से ही चुनाव लड़ने का दावा ठोक रही हैं। पूर्णिया सीट पर अब राजद और कांग्रेस आमने-सामने आ गये हैं।
इंडी  गठबंधन में आपसी कलह और बढ़ती जा रही है जो  कम होने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद  गठबंधन में सब कुछ ठीक हो जाने का दावा कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के दिग्गज  नेता इस मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं।
पूर्णिया सीट को लेकर इंडी गठबंधन में एकता संदेह के घेरे में दिखायी दे रही है। इंडी  गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमार के पहले पाला बदलने , गठबंधन के नेताओं द्वारा सनातन और रामचरितमानस आदि पर आपत्ति जनक बयान जारी करना, राजद प्रमुख लालू प्रसाद द्वारा प्रधानमंत्री मोदी पर की गयी व्यक्तिगत टिप्पणी, राहुल गांधी द्वारा धार्मिक शक्ति का विरोध करने संबंधी बयान और एनडीए द्वारा फिल्म अभिनेत्री कंगना को टिकट दिये जाने पर कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत द्वारा महिलाओं पर किया गया आपत्ति जनक पोस्ट, ये सारे प्रकरण इंडी गठबंधन की मुरझाती जड़ों में मट्ठा ही डाल  रहे हैं।
और अंत में  जब कांग्रेस बेगूसराय से कन्हैया कुमार को नहीं उतार पायी तो उसने पूर्णिया से पप्पू यादव को आगे कर दिया । अब लालू प्रसाद भी माथापच्ची कर रहे हैं कि मामले कैसे सुलझाया जाये। दूसरी ओर वाम दलों का सुर भी बदल रहा है।