सीएए को लेकरभ्रांतियां और समाधान
रमेश दूबे संत कबीर नगर।भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के माध्यम से नागरिकता कानून में कुछ परिवर्तन किए गए । इस अधिनियम के तहत धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़े व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए विशेष प्रक्रियाएं स्थापित की गईं।
इसका लक्ष्य, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हुए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।
नागरिकता कानून 2019 को धार्मिक आधार पर नागरिकता प्राप्ति के लिए विशेष प्रक्रियाएं स्थापित करने के लिए आरोप किया गया है। मुसलमानों के कथित रहनुमाओं के मुताबिक यह उनके खिलाफ एक भेदभावपूर्ण कदम है और संविधान के समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के मूल्यों के खिलाफ है।कुछ मुसलमान समुदायों में विचार प्रवेशित कराया जा रहा है कि नागरिकता कानून उनके समुदाय को अलग करने और समाज को विभाजित करने का प्रयास है।
जिसके मुताबिक वे इसको एक राजनीतिक फैसले के रूप में देखते हैं जिसका उद्देश्य उन्हें मानवाधिकारों और समानता से वंचित करना है।
भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 मुसलमानों को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं करता है, और नागरिकता प्राप्ति के लिए किसी विशेष धार्मिक समुदाय को नहीं निर्दिष्ट करता है।
मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को यह अधिनियम नागरिकता प्राप्ति के लिए कोई नया प्रक्रियात्मक ढांचा नहीं लागू करता है और उनके समान अधिकारों और विशेषाधिकारों को यह अधिनियम किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करता है।यह अधिनियम विभाजन के पश्चात भारत में अवैध प्रवासी समस्याओं का समाधान करने के लिए बनाया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य एक निश्चित अवधि तक भारत में शरणार्थी के रूप में मौजूद,हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी समुदायों को नागरिकता प्रदान करना है।
इस अधिनियम का निर्माण विशेष रूप से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हुए अल्पसंख्यक समुदायों को, जो एक निश्चित अवधि तक भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं संरक्षित करने के लिए किया गया है।
जगह जगह किए जा रहे धरना और प्रदर्शनों में एक महत्वपूर्ण तथ्य का उल्लेख किया जा रहा था और वो था संविधान का प्रियेंबल यानी प्रस्तावना।जिसका उल्लेख करते हुए नागरिकता कानून 2019 के विरोधियों के द्वारा लगातार कैंपेन चलाए जा रहे थे । प्रस्तावना की दुहाई देते हुए नागरिकता कानून 2019 का विरोध किया जा रहा था।
संविधान की प्रस्तावना का आशय भारत के नागरिकों के लिए है। जिस नागरिकता कानून 2019 का विरोध उद्देश्य अथवा प्रस्तावना के आधार पर किया जा रहा था, उस कानून का कोई संबंध भारत के किसी भी नागरिक से नहीं है । उपरोक्त कानून में उन्हीं लोगों को जो पाकिस्तान,बांग्लादेश, अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक समूह हैं,उनके उन शरणार्थियों जो सीएए की शर्तों के मुताबिक एक अवधि से भारत में निवास कर रहे हैं, उन लोगों को भारत की नागरिकता देने के लिए यह अधिनियम लागू किया गया है।
जहां तक सवाल यह इन तीन देशों के अल्पसंख्यक समुदाय को भारत की नागरिकता देने का वो मात्र इसलिए कि कहीं न कहीं इन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों का जुड़ाव भारत से है और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन तीनों देशों में इस्लामी चरमपंथी शक्तियों का प्रभुत्व है जो अपनी ही विपरीत विचारधारा के मुसलमानों को उन देशों में शांतिपूर्ण ढंग से जीने नहीं देती तो अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों का क्या हाल होगा इसका अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता है।
अफगानिस्तान एक ऐसा देश है जहां शरीयत कानून लागू है और पाकिस्तान में इसे लागू करने के लिए बकायदा तौर पर आंदोलन किए जा रहे हैं । हिमायते इस्लामी नामक संगठन के द्वारा बकायदा इसके लिए समूहों की स्थापना कर दी गई है जो कैंपेन चला कर शरीयत निजाम को लागू करवाने के लिए आंदोलन किया जा रहा है जिसके मुताबिक शरीयत निजाम लागू करने पर गैर मुस्लिमो को जिम्मी करार देकर उनसे जिजिया वसूला जाएगा और शासन प्रशासन में उनकी कोई भूमिका नहीं होगी ।
जाहिर है उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनना होगा या पलायन करना होगा ऐसी स्थिति में सिवाय भारत के कोई ऐसा देश नहीं जहां वह अपनी आस्था पर रहते हुए स्वतंत्रता पूर्वक अपना जीवन जी सकें।
भारत के मुसलमानों को इस अधिनियम का स्वागत करना चाहिए ताकि कट्टरपंथियों द्वारा सताए गए इंसानों को न्याय और सुरक्षित पनाह मिले और उन शरणार्थियों के दिलों में मुसलमानों के प्रति सद्भावना जाग्रत हो,वो मैल निकल जाए जिसे कुछ कट्टरपंथी शक्तियों ने नागरिकता कानून की पूर्व में की गई हिंसा के कारण उन शरणार्थियों के दिलों में डालने का प्रयास किया है।
(सूफ़ी मोहम्मद कौसर हसन मजीदी एडवोकेट)
राष्ट्रीय अध्यक्ष, सूफ़ी खानकाह एसोसियेशन
CAA में भारतीय अल्पसंख्यकों के हितों का पूरा ध्यान रखा गया है
भारतीय नागरिकता (संशोधन) कानून पर 5 साल पहले ही मुहर लग गई थी। हालांकि, यह अब तक लागू नहीं हो पाया है। सीएए को लेकर पूरे देश में प्रदर्शन हुए थे, जोकि सही तथ्यों की जानकारी के अभाव में हुए थे। सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के लागू होने पर तीन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल्य देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए उन लोगों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी, जो दिसंबर 2014 तक किसी ना किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए। यह तर्क दिया जा सकता है कि सीएए का उद्देश्य 31 दिसंबर, 2014 से पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए उत्पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को शरण प्रदान करना है। विचार यह है कि उन्हें भारत में नागरिकता और सुरक्षा प्रदान की जाए, और इसका भारत में मुस्लिम नागरिकों की नागरिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
इसके पक्ष में पहला तर्क मानवीय आधार पर है की सीएए पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का सामना कर रहे धार्मिक अल्पसंख्यकों की दुर्दशा के प्रति एक मानवीय प्रतिक्रिया है। उन्हें भारतीय नागरिक बनने का मौका देकर, इस कानून को उन लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करने के तरीके के रूप में देखा जाता है जो धार्मिक उत्पीड़न से भाग गए हैं।
चूंकि जिन देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान) से सताए गए अल्पसंख्यकों को सुविधा दी जाएगी, वहां मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है और वहां उन्हें धर्म के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जाता, इसलिए उन्हें इस अधिनियम से बाहर रखा गया है। दूसरे तथ्य के आधार पर अगर हम देखें तो ऐतिहासिक संदर्भों पर ध्यान दें तो इसमें हमें नजर आएगा कि सीएए सताए गए समुदायों को आश्रय प्रदान करने के भारत के ऐतिहासिक लोकाचार के अनुरूप है। ऐतिहासिक उदाहरणों का हवाला दिया जा सकता है जहां भारत उत्पीड़न का सामना करने वाले समुदायों के लिए शरणस्थली रहा है, जिसके कारण भारत में एक समन्वयवादी संस्कृति विकसित हुई।
नागरिकता प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर सीएए पात्र शरणार्थियों के लिए नागरिकता प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है, जिससे यह उन लोगों के लिए अधिक सुलभ और कम बोझिल हो जाता है जो उचित दस्तावेज के बिना भारत में रह रहे हैं, और बिना दस्तावेज के रहने वाले शरणार्थियों के बजाय सरकार द्वारा उनकी निगरानी में मदद मिलेगी। राष्ट्रीय सुरक्षा में भी CAA अहम योगदान दे सकता है, सीएए कुछ शरणार्थी समुदायों की स्थिति को औपचारिक बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान देता है, जिससे देश के भीतर ऐसी आबादी की उपस्थिति को ट्रैक करना और प्रबंधित करना आसान हो जाता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य में वृद्धि होती है।
भारतीय संविधान में समानता और धर्मनिरपेक्षता निहित है क्योंकि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में मुसलमानों को धर्म के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जाता था। इससे भारतीय मुसलमानों की नागरिकता की स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। CAA को लेकर एक कथित भेदभाव की भावना को भी बढ़ावा दिया जा रहा है बल्कि ऐसा नहीं है चूंकि यह अधिनियम 2019 में अस्तित्व में आया और इसने अभी तक किसी भी भारतीय मुस्लिम की नागरिकता की स्थिति को प्रभावित नहीं किया है, इसलिए यह चिंताएं कि अधिनियम से मुसलमानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, निराधार हैं।
Mar 25 2024, 18:35