*राजस्व कर्मचारियों की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे हैं किसान*
ललितपुर- असमान भूमि वितरण आजादी के बाद से ही अधिकांश किसानों की बेहतरी की राह में एक बाधा बना रहा है। जमीन के इस असमान वितरण पर नियंत्रण के लिए कोशिशें भी की गईं। इस संदर्भ में भूमि सुधार कार्यक्रम, हदबंदी का जिक्र हमने सुना है। हदबंदी में वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या मिनजुमला नंबरों से है जिनका वटे राजस्व कर्मचारियों की लापरवाही के कारण नहीं हो पाया है, जब किसानों द्वारा हदबंदी के लिए मुकदमा दायर किया जाता है तब अधिकारी यह कहते हुए मुकदमा खारिज कर देते हैं कि यह गाटा संख्या मिनजुमला नंबर है जबकि जिन राजस्व कर्मचारियों द्वारा नक्शा तरमीम नही किया गया उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है।
इस समस्या पर परिचर्चा करते हुए अधिवक्ताओं ने अपने विचार रखें। इस सम्बन्ध में वरिष्ठ अधिवक्ता पूर्व डी.जी.सी. राजस्व गोविंद नारायण सक्सेना कहते हैं कि अगर राजस्व अधिकारी एक समय निर्धारित मिनजुमला नंबरों का नक्शा तरमीम करके बटा नंबर निर्धारित कर दे तब इस समस्या का समाधान संभव है। अधिवक्ता बृजेन्द्र सिंह चौहान कहते हैं कि हदबंदी के मुकदमों को प्रशासन द्वारा लगातार खारिज करना सिर्फ राजस्व कर्मचारियों की लापरवाही पर पर्दा डालना है जबकि इस तरह से सिर्फ दूर दराज से आने वाले किसानों का शोषण हो रहा है जबकि भूमि सुधार के लिए आजादी के पूर्व से अभियान चल रहे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता हरदयाल सिंह लोधी अधिकारियों के उदासीन रवैया के कारण किसान और आदिवासियों का लगातार शोषण हो रहा है। मिनजुमला नंबरों की जानकारी राजस्व अधिकारियों को रहती है किसान इससे अनभिज्ञ रहता है, लगातार हदबंदी के मुकदमों का खारिज होना अधिकारियों की तानाशाही दिखाता है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रकाशचंद्र लोहिया कहते है कि मिनजुमला नम्बरान के सम्बन्ध मे धारा 116 उ.प्र. राजस्व संहिता एवं धारा 24 उ.प्र. राजस्व संहिता के सम्बन्ध मे राजस्व न्यायालयों मे सर्व सम्मति से दिये गये निर्देशो का पालन नही किया जा रहा है और मनमाने तरीके से सैकड़ों की संख्या में वाद निरस्त कर दिये गये है व किये जा रहे है और कुछ वाद विसंगत तरीके से पड़े हुये है तदानुसार अनुपालन नही कराया जा रहा है जो न्यायिक उदासीनता दिखलाता है।
Feb 10 2024, 20:34