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नो-पार्किंग में ऑटो खड़ी करने वालों के खिलाफ पुलिस ने चलाया अभियान

रायपुर- सड़क बाधित करने वाले सवारी ऑटो चालकों के खिलाफ विशेष अभियान चलाया गया, जिसमें लगभग 150 से अधिक सवारी आटो वाहनों के विरूद्ध मोटर यान अधिनियम के तहत चालानी कार्रवाई किया गया। बता दें कि अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक यातायात रायपुर सचिन्द्र कुमार चौबे द्वारा शहर की सुगम यातायात व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न करने वाले तथा यातायात नियमों का उल्लंघन कर व्यवस्था बिगाड़ने वाले वाहन चालकों पर सख्त कार्रवाई।

बड़े अधिकारियों के निर्देश पर उप पुलिस अधीक्षक यातायात रायपुर गुरजीत सिंह, सुशांतो बनर्जी एवं कर्ण कुमार उके के नेतृत्व में शहर के सभी यातायात थाना प्रभारियों द्वारा दल बल के साथ शहर के प्रमुख मार्गो एवं चौक-चौराहों में यातायात को बाधित कर नोपार्किंग में सवारी उतारने-चढ़ाने एवं सवारियों के इंतजार में खड़े सवारी आटो वाहनों के विरूद्ध विशेष अभियान चलाते हुए लगभग 150 से अधिक आटो चालकों के विरूद्ध मोटर यान अधिनियम के तहत चालानी कार्रवाई किया गया। पुलिस ने ऑटो चालकों को भविष्य में दोबारा यातायात को बाधित कर नोपार्किंग में सवारी उतारते-चढ़ाते या वाहन खड़ी पाये जाने पर भारतीय दण्ड विधान (IPC) के तहत कार्रवाई कर वाहन जप्त कर कार्रवाई किया जाएगा।

मुख्यमंत्री का दौरा कार्यक्रम : सीएम विष्णुदेव साय रामलला के ननिहाल से 3 हजार क्विंटल चावल आज भेजेंगे अयोध्या, जानिए मिनट टू मिनट कार्यक्रम

रायपुर- मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय आज राजधानी रायपुर में व्हीआईपी रोड स्थित राम मंदिर में अयोध्या श्री रामलला के लिए चावल अर्पण कार्यक्रम के अलावा मुख्यमंत्री अन्य कार्यक्रमों में शामिल होंगे. रायपुर से राम मंदिर के लिए 3 हजार क्विंटल चावल ट्रक के जरिए भेजे जाएंगे. जिसे महाभंडारे में परोसा जाएगा.

देखिये मुख्यमंत्री का मिनट टू मिनट कार्यक्रम

निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जशपुर जिले के ग्राम बगिया से सुबह 10 बजे हेलीकॉप्टर से रवाना होकर पूर्वान्ह 11.15 बजे पुलिस ग्राउण्ड हेलीपेड रायपुर वापस लौटेंगे. मुख्यमंत्री दोपहर 12.15 बजे से व्हीआईपी रोड स्थित राम मंदिर में आयोजित श्री रामलला के लिए चावल अर्पण कार्यक्रम में शामिल होंगे. मुख्यमंत्री दोपहर 12.35 बजे से होटल बेबीलॉन इंटरनेशनल में छत्तीसगढ़ प्रदेश राईस मिलर्स एसोसिएशन रायपुर द्वारा आयोजित अभिनंदन समारोह में शामिल होने के बाद राज्य अतिथि गृह पहुना आएंगे. मुख्यमंत्री यहां से दोपहर 2.15 बजे सरस्वती शिक्षा संस्थान सरस्वती विहार रोहणीपुरम् जाएंगे और वहां मेधावी छात्र अलंकरण समारोह में शामिल होने के पश्चात् अपरान्ह 3.45 बजे राज्य अतिथि गृह पहुना लौट आएंगे.

राजिम पुन्नी मेला को राजिम कुंभ कराने सरकार लाएगी अध्यादेश

रायपुर- देशभर में राजिम कुंभ के नाम से पहचान बनाने वाले माघी पूर्णिमा मेले को अब फिर यही नाम दिया जाएगा। कांग्रेस सरकार ने इस मेले का नाम बदलकर राजिम पुन्नी मेला कर दिया था लेकिन जैसे की भाजपा सरकार में बृजमोहन अग्रवाल को पर्यटन, संस्कृति व धर्मस्व विभाग की जिम्मेदारी दी गई उन्होंने इस मेले को राजिम कुंभ का नाम दिलाने की कोशिश शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि अध्यादेश लाकर राजिम पुन्नी मेले का नाम बदलकर राजिम कुंभ किया जाएगा तथा इस बार इसे भव्यता के साथ आयोजित किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि पर्यटन, धर्मस्थ और संस्कृति के माध्यम से प्रदेश की पहचान पूरे देश और दुनिया में बनाने की कोशिश की जाएगी। राजिम कुंभ को पहले से ज्यादा बेहतर और भव्य रूप में फिर से शुरू किया जाएगा। पर्यटन, संस्कृति व धर्मस्व के साथ बृजमोहन अग्रवाल को उच्च-स्कूल शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। इस पर उन्होंने कहा कि शिक्षा किसी भी राज्य के विकास का महत्वपूर्ण आधार होती है। प्रदेश के बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर राष्ट्रीय स्तर पर लाने की कोशिश होगी। उन्होंने कहा कि सभी मंत्रियों को उनकी योग्यता के हिसाब से विभाग दिए गए हैं। प्रदेश को विकसित राज्य बनाने की दिशा में काम किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश में करीब आठ लाख सरकारी कर्मचारी हैं। उनमें से करीब चार लाख कर्मचारी अकेले स्कूल और उच्च शिक्षा में काम कर रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री ने मुझे एक बड़ी जिम्मेदारी दी है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई शिक्षा नीति को राज्य में लागू करने की जिम्मेदारी दी है। हमारी कोशिश होगी कि प्रदेश की शिक्षा को राष्ट्रीय स्तर पर स्थान दिलाया जाए।

शिक्षकों की समस्याओं को लेकर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने दिया बड़ा बयान, शिक्षा व्यवस्था पर भी दिये ये संकेत

रायपुर-    बृजमोहन अग्रवाल प्रदेश के नये शिक्षा मंत्री होंगे। स्कूल शिक्षा विभाग के साथ-साथ उच्च शिक्षा विभाग का भी जिम्मा उनके पास होगा। इससे पहले भी बृजमोहन अग्रवाल शिक्षा मंत्री रह चुके हैं। बृजमोहन अग्रवाल पहले भी शिक्षा मंत्री रह चुके हैं। संविलियन की लड़ाई के दौरान बृजमोहन अग्रवाल काफी करीब से शिक्षकों की समस्याओं को देखते रहे हैं, लिहाजा शिक्षकों को ये जरूर उम्मीद होगी, कि उनकी मांगों को लेकर मंत्री तत्परता से काम करेंगे। स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी संभालने के बाद मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने बड़ा बयान भी दिया है।

मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश में 8 लाख कर्मचारी है, जिसमें से शिक्षक और शिक्षा विभाग से जुड़े कर्मचारियों की संख्या मिलाकर करीब चार लाख है। प्रदेश में नयी शिक्षा नीति को लागू करना और प्रदेश की स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा को राष्ट्रीय स्तर पर लाना उनकी प्राथमिकता होगी। बृजमोहन अग्रवाल ने शिक्षकों की समस्याओं को दूर करने को लेकर भी बड़ा बयान दिया है। मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश में शिक्षा विभाग प्रदेश के विकास का मुख्य आधार है। शिक्षकों की समस्याओं का अगर समाधान होगा, तो वो बेहतर ढंग से शिक्षा व्यवस्था के संचालन में अपना योगदान देंगे। मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि शिक्षकों की समस्याओं पर आने वाले वक्त में मिलकर हम जरूर विचार करेंगे और उसे दूर करेंगे।

मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि शिक्षा प्रदेश के विकास का मुख्य आधार हौता है। शिक्षा व्यवस्था को प्रदेश में बेहतर किया जायेगा। विभाग और मंत्री के नाते वो इस पर बेहतर ढंग से काम करेंगे।

साय मंत्रिमंडल में विभागों का बंटवारा, जानिए किस मंत्री को मिला कौन सा विभाग…

रायपुर-   साय सरकार में आज विभागों का बंटवारा कर दिया गया. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपने पास सामान्य प्रशासन, खनिज साधन, ऊर्जा, जनसंपर्क, वाणिज्यिक कर (आबकारी), परिवहन विभाग रखा है. साथ ही जो विभाग किसी मंत्री को आबंटित नहीं किए गए हैं उन विभागों की जिम्मेदारी भी मुख्यमंत्री के अधीन होगी.

उप मुख्यमंत्री अरूण साव को लोक निर्माण, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, विधि और विधायी कार्य एवं नगरीय प्रशासन, उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा को गृह एवं जेल, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, तकनीकी शिक्षा एवं रोजगार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, बृजमोहन अग्रवाल को स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा, संसदीय कार्य, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व, पर्यटन एवं संस्कृति, राम विचार नेताम को आदिम जाति विकास, अनुसूचित जाति विकास, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक विकास, कृषि विकास किसान कल्याण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

दयाल दास बघेल खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण, केदार कश्यप को वन एवं जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन, कौशल विकास एवं सहकारिता, लखनलाल देवांगन वाणिज्य और उद्योग एवं श्रम, श्याम बिहारी जायसवाल लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, ओपी चौधरी वित्त, वाणिज्यिक कर, आवास एवं पर्यावरण, योजना आर्थिक एवं सांख्यिकी, लक्ष्मी राजवाडे महिला एवं बाल विकास तथा समाज कल्याण, टंक राम वर्मा खेलकूद एवं युवा कल्याण, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग संभालेंगे.

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय

सामान्य प्रशासन, खनिज साधन, ऊर्जा एवं जनसंपर्क, वाणिज्यकर, (आबकारी), परिवहन एवं अन्य विभाग जो किसी मंत्री को आबंटित न हो

उप मुख्यमंत्री अरुण साव

लोक निर्माण, नगरीय प्रशासन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, विधि एवं विधायी कार्य

उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा

गृह एवं जेल, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, तकनीकी शिक्षा एवं रोजगार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी

बृजमोहन अग्रवाल

स्कूल एवं उच्च शिक्षा, संसदीय कार्य, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व, पर्यटन एवं संस्कृति

रामविचार नेताम

आदिमजाति विकास, अनुसूचित जाति विकास, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक विकास, कृषि विकास एवं किसान कल्याण

केदार कश्यप

वन एवं जलवायु परिवर्तन, जलसंसाधन, कौशल विकास एवं सहकारिता

दयालदास बघेल

खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, उपभोक्ता संरक्षण

ओपी चौधरी

वित्त, वाणिज्य कर, आवास एवं पर्यावरण, योजना आर्थिक एवं संख्यिकी

लखनलाल देवांगन

वाणिज्य, उद्योग एवं श्रम

लक्ष्मी राजवाड़े

महिला एवं बाल विकास विभाग, समाज कल्याण

श्याम बिहारी जायसवाल

लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा बीस सूत्रीय कार्यन्वयन विभाग,

टंकराम वर्मा

खेलकूद एवं युवा कल्याण, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन

एक जोड़ी जूते के नीचे दबा दबदबा,(आलेख : बादल सरोज)

जूतों और मनुष्य समाज का साथ नया नहीं है - होने को तो जब से आदिमानव ने चलना सीखा होगा, तभी से पंजों के निचले हिस्से के बचाव के लिए पांवों के नीचे जन्नत का कोई न कोई उपाय आजमाया होगा। मानव इतिहास के खोजियों की मानें, तो सबसे पुराने जूते कोई पांच से साढ़े पांच हजार साल पहले के मिले हैं। चमड़े के जूते करीब साढ़े तीन हजार साल पहले चलन में आये ; हालांकि सैंडल्स जैसा कुछ पहने जाने का रिवाज तो और भी पहले लगभग 8 से 9 हजार साल पहले ही आरम्भ होने के प्रमाण मिले हैं। धरती के इस हिस्से में भले आर्यों के साथ नहीं आये, मगर लगता है यहाँ आकर उन्हें उसका महत्व पता चला और करीब-करीब वैदिक काल से ही कहीं पादुका, कहीं खड़ाऊँ के रूप में मिलने लगे थे ; बाद में मोजरी, खुस्सा, नागरा, पनहा से होते हुए चप्पल, जूते और जूती तक आ गए। अलबत्ता चमड़े के जूतों के मामले में ऊंच-नीच होती रही -- शुरू में आये फिर धर्म शाकाहारी हुआ, तो उन्हें धारण करना बंद कर दिया गया, मगर बाद में फिर आ गए। जरूरत के अलावा इन्हें शान का भी प्रतीक माना गया -- इस कदर कि बिना जूते बाहर निकलने की तौहीन से बचने के लिए जूते पहनते और उनके फीते बांधते में हुयी देरी के चलते अवध के नवाब वाजिद अली शाह मारे भी गए। हालांकि बिना जूतों के नंगे पाँव जाना स्वागत सत्कार के प्रोटोकॉल का सर्वोच्च रूप भी माना गया। बहरहाल पांवों को चलने में सहूलियत देने वाले जूते धीरे-धीरे इतने चलायमान हो गए कि खुद चलने लगे और चलते-चलते साहित्य और वर्तनी में आ पहुंचे। संज्ञा से सर्वनाम, विशेषण से क्रिया और अक्सर प्रतिक्रिया के रूप धारण करते रहे। मानव समाज के लिखित साहित्यिक इतिहास में जूतों ने तकरीबन धर्म जैसी हैसियत हासिल कर ली। धर्म के बारे में मार्क्स के कहे की तर्ज पर कहें, तो वे एक साथ शोषक वर्गों के हाथ में शोषण का हथियार और उसी के साथ शोषण के विरोध और उसके खिलाफ प्रतिवाद का जरिया भी बन गए। भारतीय समाज में जहां "हमारे पाँव पाँव उनके पाँव चरण" का विभाजन ही विधान रहा, वहां पाँव नंगे ही रहे, पादुकाएं सिर्फ चरण कमलों के हिस्से में आयीं ; और यह अतीत की बात नहीं है, देश के बड़े हिस्से में आज की भी बात है। आज भी जिनके पाँव, पाँव हैं, वे अगर चरण कमलधारियों के सामने से गुजरते हैं, तो जूते उतारकर ही गुजरते हैं ; कई बार तो अपने ही जूते सर पर धर कर ही गुजर पाते हैं। अभी इसी महीने तमिलनाडु के तिरुपुर में दलितों को जूते-चप्पल पहनने से रोके जाने का मामला सामने आया है। बुन्देलखण्ड और चम्बल के कुछ इलाकों में यह रोज की बात है। यही वजह रही कि शुरुआती सामाजिक प्रतिरोध आंदोलनों में जूते पहनकर निकलना भी एक बड़ी विरोध कार्यवाही की तरह इस्तेमाल किया गया। जूतों से मारा गया, तो प्रतिरोध में जूते उछाले भी गये हैं। जूतों ने अगर राज किया है, तो राज करने वाले जुतियाये भी गए हैं। 

जूतों का व्याकरण और इतिहास ही नहीं है, उनकी रस्मुलखत - लिपि - भी होती है। इसे भाल, गाल और कपाल पर लिखा और दर्ज किया जाता है, हर कालखण्ड में किया जाता रहा है। जूतों का आविष्कार करने वाले शायद ही जानते होंगे कि उनके मनुष्य की चाल और उसके चलन को आसान बनाने के लिए बनाए गए ये उपकरण आगे जाकर बहुविध और बहुआयामी हो जायेंगे ; उनके अनुसंधान निदान, समाधान और बयान की तरह भी काम में लाये जायेंगे। हाल के दौर में सबसे मशहूर रहा ईराकी पत्रकार मुंतजर अल जैदी का 10 नम्बर का जूता - जिसे उसने 15 वर्ष पहले 14 दिसंबर 2008 को बग़दाद में तब के अमरीकी राष्ट्रपति बुश जूनियर पर उछाला था। अल हदाद नाम की कम्पनी का मॉडल नम्बर 271 जूता इस कदर मशहूर हुआ कि इसका नाम ही बुश का जूता पड़ गया। कुछ महीने की सजा जरूर उसे भुगतनी पड़ी, मगर उसके बाद पूरी दुनिया ने इस जूता प्रक्षेपण करने वाले को इनाम - इकरामों से लाद दिया। लन्दन के एक मूर्तिकार पावेल वानिन्सकी ने तो खांटी 24 कैरट के सोने की पॉलिश वाली कांसे की 21 किलोग्राम की कलाकृति ही बना दी। यह सचमुच में जूते के गौरवान्वित होने का पल था, जो इसने अपने पात्र के चयन के कारण हासिल किया था। जुतियाये गए बुश का अमरीका इस बुश जूते की धड़ाधड़ बढ़ती बिक्री से इतना खिसिया गया कि उसने इसे बनाने वाली कंपनी में अपनी फ़ौज भेजकर जहरीले रासायनिक हथियारों की खोज के नाम पर सारे के सारे जूते ही नष्ट कर आया। पादुकाओं के अस्त्र बनने की इस घटना ने बाद में इतनी ख्याति प्राप्त कर ली कि अधिकाँश नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के दफ्तरों के बाहर बाकायदा बोर्ड्स लगाए जाने लगे कि जूते बाहर उतारकर ही अन्दर आयें। मगर जूते तो बने ही चलने के लिए थे, उन्हें कोई बोर्ड या सूचना क्या ख़ाक रोक पाती।   

जूतों पर इत्ता विशद विमर्श इसलिए है, क्योंकि पिछले सप्ताह से चरणकमलों और पादुकाओं वाले देश में एक खिलाड़िन के जूते चर्चा का विषय बने हुए हैं। मरहूम अकबर इलाहाबादी साहब के एक लोकप्रिय शेर को मौजूं बनाने के लिए थोडा बदल कर कहें तो : 

"जाल शकुनि ने बिछाया, साक्षी ने जूता रखा / शकुनि का पांसा रह गया, साक्षी का जूता चल गया।"

ओलम्पिक मैडल जीतकर आने वाली अब तक की अकेली महिला कुश्ती खिलाड़ी साक्षी मलिक ने भारत की महिला खिलाड़ियों की प्रतिनिधि के रूप में टेबल पर रखे अपने जूतों के बिम्ब से तेल और पानी में भीगे जूतों की मार को असरदार बताने वाले मुहावरे को नया रूप दे दिया और बता दिया कि उनसे भी ज्यादा ताकतवर मारकता आंसुओं से भीगे जूतों में होती है। यह भी दिखा दिया कि कुछ जूते हजार जूतों के बराबर होते हैं।

जो हुआ उसे अब सारा देश जानता है और वह यह है कि यौन उत्पीड़क भाजपाई सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह की अध्यक्षता वाली भारतीय कुश्ती संघ की मान्यता जब अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक एसोसिएशन ने समाप्त कर दी, दुनिया के कुश्ती महासंघ ने भी उसके लिए सारे दरवाजे बंद कर दिए, तब इस आरोपी का इस्तीफा और नया चुनाव कराना मजबूरी हो गया था। कथित रूप से "कराये गए" इन नए चुनावों में यौन उत्पीड़क भाजपाई ब्रजभूषण शरण सिंह का खडाऊं-उठाऊ संजय सिंह अपने पूरे पैनल के साथ न सिर्फ "जीत कर" आ गया, बल्कि उसके जीतते ही अहंकारी निर्लज्जता के साथ खुद यौन आरोपी गा-बजाकर महिला खिलाड़ियों को धमकाने लगा। अपने चुनवाये गए प्यादे के साथ खड़े होकर, आतिशबाजी और पटाखों के बीच भाजपा के इस अतिप्रिय सांसद ने कहा कि "जिसको सन्देश लेना है, वह ले ले : दबदबा था, दबदबा है, दबदबा रहेगा।" 11 महीने से अपने आत्मसम्मान और अपने यौन उत्पीडन के मामलों में न्याय पाने की लड़ाई लड़ रही महिला खिलाड़ियों और बाकी पहलवानों के लिए यह जीत और उसके बाद की यह बेहूदगी बर्दाश्त की सारी हदों को पार करने वाली थी। उनकी प्रतिनिधि के रूप में साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट के साथ प्रेस क्लब में आयीं और पत्रकारों के बीच महज 1 मिनट 9 सेकंड में अपनी हताशा जताकर आंसुओं के बीच अपने जूते टेबल पर रखकर खेल छोड़ने का एलान कर दिया। खिलाड़ियों का कहना था कि खेल मंत्री ने वादा किया था कि ब्रजभूषण शरण सिंह या उसका कोई आदमी नहीं चुना जायेगा, जबकि उसके सबसे ख़ास व्यक्ति को अध्यक्ष चुनवाया गया है। खिलाड़ियों की मांग थी कि किसी महिला को अध्यक्ष बनाया जाए, मगर हालत यह है कि पूरी कमेटी में एक भी महिला नहीं हैं। हर नियम, विधान, आश्वासन, वायदे को अंगूठा दिखाकर हुए चुनाव और उसके बाद खिलाड़ियों की इस कार्यवाही ने पूरे देश को हिला दिया। लोगों की प्रतिक्रिया इतनी जबरदस्त थी कि तीन दिन के बाद अचानक खेल मंत्रालय ने इस "नवनिर्वाचित" कुश्ती संघ को निलंबित करने का एलान कर दिया। सरकार की इस घोषणा को कई तरीके से पढ़ने और उसके निहितार्थों के बारे में कयास लगाने की कोशिश की जा रही है।

कुछ भले मानुष इसके साथ दिए उस नत्थी बयान को सच मानने के मुगालते में हैं, जिसमे चुनाव गलत तरीके से होने, नयी समिति का काम पुराने पदाधिकारियों के नियंत्रण वाले परिसर से चलने और बिना किसी पूर्व तैयारी के 15 और 20 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों और लड़कों की राष्ट्रीय चैंपियनशिप का आयोजन ब्रजभूषण शरण सिंह के घर नंदिनी नगर गोंडा में करने की घोषणा को आधार बताया गया है। मगर ऐसा है नहीं - यदि ऐसा होता तो निलंबन के लिए छुट्टी का दिन रविवार नहीं चुना जाता। ऐसा होता, तो साक्षी मलिक के जूते रख देने के बाद संघी आईटी सैल और गोदी मीडिया उसके खिलाफ जहरीली मुहिम छेड़ने के काम में नहीं लगता। जिस ब्रजभूषण शरण सिंह को बचाने के लिए मोदी सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, जिसके लिए खुद गृह मंत्री अमित शाह खिलाड़ियों को बहलाकर आन्दोलन स्थगित करवाने के लिए वार्ता करने उतरे थे, उस यौन अपराधी के कुकर्मों के बारे में यह अचानक से जागना नहीं है। आहत खिलाड़ियों के जाट समुदाय से होने के चलते जाटों के बीच तीखी प्रतिक्रिया हुयी है ; इतनी तीखी कि उपराष्ट्रपति से खिलवाये गये जाट कार्ड के प्रहसन की भी खाट खड़ी हो गयी है और कि इसकी कीमत कुछ महीनों बाद होने वाले लोकसभा और हरियाणा विधानसभा के चुनाव में चुकानी पड़ सकती है। इसलिए यह डैमेज कण्ट्रोल की हताश कोशिश है। हालांकि इस बात में दम है, लेकिन यह भी कोई नयी बात नहीं है ; यही सत्ता पार्टी और उसका मीडिया इन खिलाड़ियों के आन्दोलन के दौरान पूरे जाट समुदाय को गरियाता रहा है, यौन अपराधी के पक्ष में कथित क्षत्रपों की अयोध्या में हुई महापंचायत को जनता की आवाज बताता रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि साक्षी के खेल छोड़ने के एलान के बाद बजरंग पूनिया और वीरेंदर सिंह द्वारा अपनी-अपनी पदमश्री वापस करने और विनेश फोगाट द्वारा अपना खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड लौटाने से सरकार को लगा कि कहीं यह सिलसिला तूल न पकड़ ले और रायता इतना ज्यादा न बगर जाए कि समेटते न बने। यह बात भी सच है। लेकिन कुछ जानकारों के मुताबिक़ "दबदबा था और दबदबा रहेगा" के अहंकारी बयान में ब्रजभूषण द्वारा मोदी और अमित शाह की बजाय भगवान को इस दबदबे का श्रेय देने से मौजूदा प्रभुओं के ईगो का आहत होना इस निलंबन की वजह है। यह नामुमकिन नहीं है - जिन्होंने 11 महीने तक कंगारू की तरह गोद में रखकर इस यौन आरोपी को बचाया, खिलाड़ियों को ठोक-पीट कर जन्तर मन्तर से कई बार भगाया, उन्हें टुकड़े-टुकड़े गैंग और राष्ट्रद्रोही तक बताया ; गरूर में आकर बंदे द्वारा उन्ही का नाम न लिया जाए, तो बुरा तो लगवेई करेगा।

जूता सम्मान को पादुका पूजन भी कहा जाता है और इसका एक आयाम और है और वह यह कि "पड़त पड़त पादुकाओं से पड़मत होत सुजान" की स्थिति भी आ जाती है। जूते खाने वाले उसके निशाने से बचने के लिए पल भर के लिए झुकना भी सीख जाते हैं। बगदाद में बुश और तबके इराकी प्रधानमंत्री इस कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। इधर वाले तो सौ जूते और सौ प्याज खाते-खाते इस कला में पारंगत हो चुके हैं। इसलिए देश के ज्यादातर लोग मानते हैं कि जो दिखावा हुआ है, वह एक झांसा है - असली तमाशा अभी बाकी है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन के साथ उत्तर प्रदेश के चुनाव के पहले यही तरीका आजमाया गया था ; उनके साथ किये गए वायदों पर अमल आज तक नहीं हुआ। उसी काठ की हांडी को फिर चढ़ाया जा रहा है। लोकसभा चुनाव को देखते हुए निलंबन का दिखावा किया जा रहा है। कृपया ध्यान दें, सिर्फ निलंबन हुआ है, इतना सब कहने के बाद भी भंग नहीं किया गया है ; एक पतली गली बचा कर रखी गयी है। मगर हुक्मरान भूल रहे हैं कि अब जब जूते निकल ही पड़े हैं, तो रुकेंगे थोड़े ही, वे दूर तलक जायेंगे । 

(लेखक लोकजतन के सम्पादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)

पुष्करणा प्रीमियम लीग (PPL) का मंत्री बृजमोहन ने किया शुभारंभ, क्रिकेट के मैदान में उतरे और बल्लेबाजी में हाथ आजमाया

रायपुर-  खेल का मैदान ऐसी जगह है जहां आकर व्यक्ति अपने जीवन के सारे तनाव और परेशानियों को भूल जाता है वह बस खेल का आनंद लेता है। ये कहना है छत्तीसगढ़ सरकार के वरिष्ठ मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का जिन्होंने गुरुवार को रायपुर के सुभाष स्टेडियम में पुष्करणा प्रीमियम लीग (PPL) सीजन 4 का शुभारंभ किया। इस दौरान उन्होंने बल्लेबाजी पर भी हाथ आजमाया।

मौके पर उपस्थित आयोजकों, खिलाड़ियों, दर्शकों और समाज के लोगों को संबोधित करते हुए बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि, खेल का मैदान बहुत कुछ सीखता है। जीवन में अनुशासन और संयम हमें खेल के मैदान से सीखना चाहिए। यहां अलग प्रकार का अनुशासन होता है जो व्यक्ति घर और बाहर किसी की नहीं सुनता वह खेल के मैदान में अंपायर द्वारा आउट देने या रेफरी के द्वारा फाउल देने पर तुरंत मान जाता है और बाहर चला जाता है। हम सभी को खेलों से सबक लेना चाहिए। जो खेलेगा वही हारे या जीतेगा। हारने पर निराशा नहीं होना चाहिए ना ही जीतने पर अति उत्साहित होना चाहिए जिंदगी में संयम बहुत जरूरी है। उनका यह भी कहना था राजनीति भी एक खेल का ही मैदान है जिसमें कभी हार होती है तो कभी जीत लेकिन हारने पर हमको बैठना नहीं चाहिए बल्कि अपने संघर्ष को जारी रखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि, इस प्रकार के खेल आयोजन के जरिए युवाओं में एकता और सामाजिक सद्भाव की भावना पैदा होती है। बृजमोहन अग्रवाल ने आयोजन के लिए पुष्टिकर ब्राह्मण समाज को बधाई दी और आगे भी इस प्रकार के आयोजन जारी रखने का सुझाव दिया।

कार्यक्रम में चंद्रप्रकाश व्यास, मनीष वोरा, राहुल पुरोहित, पंकज छंगानी, अमिताभ जोशी, लोकेश व्यास, केशव व्यास, माधव व्यास, योगेन्द्र बोहरा, जयकिशन जोशी, रामगोपाल व्यास, अरुण पुरोहित शेफाली पुरोहित भी उपस्थित रहे। पुष्करणा प्रीमियर लीग का आयोजन समाज के युवाओं में खेल प्रतिभा का विकास करने के लिए किया जा रहा है जिसमे छत्तीसगढ़ के अलावा राजस्थान और गुजरात से भी खिलाड़ी हिस्सा लेने आ रहे हैं।

रायपुर में सामूहिक आत्महत्या मामले की जांच के लिये कांग्रेस ने 6 सदस्यीय कमेटी का किया गठन

रायपुर-   राजधानी में हुई सामूहिक आत्महत्या मामले ने झकझोर कर रख दिया है। मां-पिता और बेटी की एक ही पंखे के हुक में फंदे पर लटकी मिली लाश को लेकर पुलिस की जांच चल रही है। प्रथम दृष्टि में ये मामला आर्थिक तंगी का प्रतीत हो रहा है। इधर कांग्रेस ने इस मामले में जांच टीम गठित की है। पूर्व विधायक विकास उपाध्याय समिति के संयोजक है, वहीं गिरिश दुबे, प्रमोद दुबे, नंदकुमार सेन, पार्वती साहू और करुणा कुर्रे को समिति का सदस्य बनाया गया है।

अल्ट्रा टेक सीमेंट बैकुंठ में मंत्री टंक राम वर्मा का भव्य स्वागत*

रायपुर-   छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार में मंत्री पद की शपथ लेने के बाद बलौदाबाजार विधायक और केबिनेट मंत्री टंक राम वर्मा पहली बार अल्ट्रा टेक सीमेंट बैकुंठ पहुंचे। जहां उनके स्वागत के लिए पूरा अल्ट्रा टेक सीमेंट बैकुंठ परिवार उमड़ पड़ा। अल्ट्रा टेक सीमेंट बैकुंठ के यूनिट हेड देवनाथ गुहा ने मंत्री को गुलदस्ता भेंट कर स्वागत किया। मंत्री के आवागमन पर पूरे गांव में जमकर आतिशबाजी की गई और ढोल-नगाड़े के साथ गांव वालो उनका भव्य स्वागत किया।

विकसित भारत के संदर्भ में खैरागढ़ विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने रखे विचार, कला-संस्कृति के साथ बेरोजगारी, सुरक्षा पर भी अभिव्यक्त हुए युवा

खैरागढ़-    इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में विकसित भारत 2047 वॉयस ऑफ यूथ कार्यक्रम के अंर्तगत परिचर्चा आयोजित की गई। इस परिचर्चा में विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों के छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। युवाओं ने अपने विचारों से अवगत कराया कि जब भारत की स्वतंत्रता को 100 वर्ष पूरे हो रहे होंगे, तब वह कला, संस्कृति, परंपरा, शिक्षा, सुरक्षा, पर्याावरण, रोजगार आदि विभिन्न सामाजिक विषयों के संदर्भ में विकसित भारत के कैसे स्वरूप की कल्पना करते हैं। कुलसचिव प्रो.डॉ. नीता गहरवार की अध्यक्षता में संपन्न इस परिचर्चा में विश्वविद्यालय परिवार शामिल हुआ।

कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. देवमाईत मिंज (अधिष्ठाता, छात्र-कल्याण) ने बताया कि कुलपति पद्मश्री डॉ. ममता (मोक्षदा) चंद्राकर के संरक्षण में संपन्न इस कार्यक्रम में रागिनी सिंह, बालेंदू मिश्र, सप्तर्षी मंडल, श्रेयषी बिस्वास, वेणुप्रिया, सूर्यांजलि झा, मोनालिसा मजूमदार, रागेश्री दास चौधरी, जयश्री साहू, मोहित राणा, डेविड सोलंकी और सोनल बागडे़ आदि विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के प्रारंभ में संयोजिका डॉ. देवमाईत मिंज ने विकसित भारत 2047 वॉयस ऑफ यूथ कार्यक्रम के महत्व और उद्देश्य पर विस्तार से संबोधन दिया। उसके बाद विद्यार्थियों को 3-3 मिनट का समय देते हुए विचार अभिव्यक्ति के लिए आमंत्रित किया गया। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में अध्ययनरत अलग-अलग राज्यों के मूल निवासी विद्यार्थियों ने पूरे उत्साह के साथ विकसित भारत पर अपने विचार रखे। विद्यार्थियों ने कई सम-सामयिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए शिक्षा, सुरक्षा, कला, संस्कृति, परंपरा, बेरोजगारी, पर्यावरण आदि अनेक सामाजिक विषयों पर मुक्त और स्वतंत्र स्वर में अपनी अभिव्यक्ति दी।

कार्यक्रम में प्रभारी कुलसचिव प्रो. डॉ. नीता गहरवार, अधिष्ठाता प्रो डॉ. काशीनाथ तिवारी, प्रो. डॉ. राजन यादव, प्रो. डॉ. नमन दत्त, डॉ. योगेंद्र चौबे ने भी अपने प्रेरक उद्बोधनों से विद्यार्थियों को विषय की जानकारी दी तथा देशहित में अपने विचारों को साझा करने लिए प्रोत्साहित किया। कार्यक्रम में प्रो. डॉ. मृदुला शुक्ल, डॉ. लिकेश्वर वर्मा, डॉ. दीपशिखा पटेल, डॉ. दिवाकर कश्यप, डॉ. हरिओम हरि, विवेक नवरे, कपिल वर्मा, डॉ. आशुतोष चौरे, असिस्टेंट रजिस्ट्रार राजेश गुप्ता, विजय सिंह, डॉ. बिहारी तारम, डॉ. नत्थू तोड़े, डॉ. परम आनंद पांडेय, डॉ. शेख मेदिनी होंबल, डॉ. विकास चंद्रा, डॉ. कौस्तुभ रंजन, डॉ. अजय पांडेय, डॉ. मंगलानन्द झा, डॉ. शिवाली सिंह, कपिल वर्मा, डॉ. सुशांत दास, डॉ. जे मोहन, प्रबोध गुप्ता, मुकेश भट्ट, जन सम्पर्क अधिकारी विनोद डोंगरे समेत विश्वविद्यालय परिवार शामिल हुआ।