'मंदिरों में मुस्लिमों को दूकान लगाने दी जाए..', नवरात्री से पहले कर्नाटक की कांग्रेस सरकार से व्यापारी कमिटी की मांग
भारत के महत्वपूर्ण पर्व 'नवरात्रि' के प्रारंभ होने से पहले, दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिला धार्मिक मेला व्यवसायियों की समन्वय समिति ने मांग की है कि मुस्लिम विक्रेताओं को त्योहार के दिनों में मंदिर परिसर में व्यापार करने की अनुमति दी जाए, भले ही मंदिर अधिकारियों ने उन्हें ऐसा करने से प्रतिबंधित कर दिया हो। समिति के सदस्यों ने दक्षिण कन्नड़ जिले के मंगलुरु में प्रसिद्ध मंगलादेवी मंदिर में नवरात्रि समारोह के दौरान मुस्लिम विक्रेताओं के बहिष्कार पर दक्षिण कन्नड़ के जिला आयुक्त के पास शिकायत दर्ज की थी। समिति के मानद अध्यक्ष डीके इम्तियाज और सुनील कुमार बाजल ने दावा किया है कि मंदिर परिसर में दुकानें आवंटित करने के लिए की गई नीलामी प्रक्रिया के दौरान मुस्लिम विक्रेताओं को बाहर रखा गया था।
वहीं, इम्तियाज और बजाल के दावों के विपरीत, मंदिर प्रबंधन ने कहा है कि मुस्लिम विक्रेताओं पर कोई प्रतिबंध नहीं है और मंदिर प्रांगण में 94 दुकानों की नीलामी प्रक्रिया सभी के लिए खुली थी, हालांकि, किसी भी गैर-हिंदू व्यापारी ने नीलामी में भाग नहीं लिया। मंदिर प्रबंधन ने कहा कि नीलामी प्रक्रिया जिला कलेक्टर द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार की गई थी। बता दें कि मंगलादेवी मंदिर राज्य सरकार के मुजराई (हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती) विभाग के अंतर्गत आता है। देवी शक्ति को समर्पित इस मंदिर में हर साल नवरात्रि मेले का आयोजन किया जाता है। इस बार मेला 15 अक्टूबर से 24 अक्टूबर के बीच लगेगा।
कमाई के हिसाब से कांग्रेस ने मंदिरों को तीन श्रेणी में बांटा
पहले मंदिर प्रबंधन ने मुस्लिम व्यापारियों को मेले में भाग लेने की अनुमति नहीं देने का फैसला किया था और रथबीडी स्ट्रीट पर व्यापारियों को स्टॉल आवंटित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी, जिसका स्वामित्व मंगलुरु सिटी कॉर्पोरेशन के पास है। हालाँकि, मंदिर प्रशासन कई वर्षों से यहाँ अपने मेले आयोजित करता आ रहा है। यह ध्यान रखना उचित है कि राज्य में लगभग 34,563 मंदिरों को उनके राजस्व सृजन के आधार पर मुजराई (हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती) ग्रेड ए, बी या सी के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
कुल मिलाकर, 25 लाख रुपये से अधिक वार्षिक राजस्व वाले कुल 207 मंदिर श्रेणी ए में आते हैं, 5 लाख रुपये से 25 लाख रुपये के बीच वार्षिक राजस्व वाले 139 मंदिर श्रेणी बी में आते हैं, और 5 लाख रुपये से कम वार्षिक राजस्व वाले 34,217 मंदिर श्रेणी सी में आते हैं। यह वर्गीकरण 2019 में कांग्रेस सरकार द्वारा पेश किया गया था। पिछले साल गैर-हिंदू विशेषकर मुस्लिम व्यापारियों को हिंदू मंदिरों के पास स्टॉल लगाने की अनुमति नहीं देने के मुद्दे पर विवाद खड़ा हो गया था। इसकी मांग बजरंग दल समेत हिंदू अधिकार संगठनों ने भी उठाई थी।
हिंदू अधिकार संगठन के अनुसार, कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 2002 के नियम 12 का उद्देश्य गैर-हिंदू व्यापारियों को प्रतिबंधित करना है। कानून कहता है कि "परिसर के पास स्थित भूमि, भवन या स्थलों सहित कोई भी संपत्ति गैर-हिंदुओं को पट्टे पर नहीं दी जाएगी।" कुछ हिन्दू संगठनों का ये भी कहना है कि, जब मुस्लिम समुदाय के लोग हिन्दू देवी-देवताओं में आस्था ही नहीं रखते, तो वे मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के साथ कैसे न्याय कर सकेंगे, केवल कारोबार के लिए और आमदनी करने के लिए वे मंदिरों में आना चाहते हैं, जबकि वे मूर्तिपूजा के सख्त खिलाफ हैं, तो उन्हें कैसे अनुमति दी जाए। उनका एक तर्क यह भी है कि, फूल-माला, प्रसाद आदि का काम करने वाले दलित-पिछड़े यहाँ दूकान लगाते हैं, तो फिर उन्हें हटाकर कहाँ भेजा जाएगा ? क्योंकि मंदिर परिसर में दुकानें तो सीमित हैं।
धर्मान्तरण कानून रद्द कर चुकी है कांग्रेस सरकार
बता दें कि, राज्य की कांग्रेस सरकार पहले ही धर्मान्तरण कानून रद्द कर चुकी है, वो भी ऐसे समय में जब देश के विभिन्न हिस्सों से डरा-धमकाकर, लालच देकर, ब्रेनवाश करके, प्रेम जाल में फंसाकर लोगों का धर्मांतरण करने की घटनाएं लगातार सामने आ रहीं हैं। यहाँ तक कि, गेमिंग एप के जरिए छोटे-छोटे बच्चों का भी ब्रेनवाश कर उनका धर्मान्तरण किया जा रहा है, लेकिन उससे रक्षा करने का कानून अब कर्नाटक में हट चुका है। यानी एक तरह से अब कर्नाटक में धर्मान्तरण की खुली छूट है। वहीं, राज्य के पशुपालन मंत्री वेंकटेश ने गौहत्या रोकने वाले कानून की भी समीक्षा करने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि, 'जब भैंस काटी जा सकती है, तो गाय क्यों नहीं।' उन्होंने कहा था कि, हम चर्चा करेंगे और इस पर फैसला लेंगे। ऐसे में लोग सवाल कर रहे हैं कि, क्या अब राज्य सरकार गौहत्या की भी छूट देने जा रही है ?
Oct 15 2023, 14:26