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प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बिबेक देबरॉय ने संविधान को बदलने का दिया सुझाव, विवाद बढ़ा तो ईएसी-पीएम ने किया किनारा, कहा-सरकार और परिषद से संब

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार बिबेक देबरॉय ने भारतीय संविधान को बदलने का सुझाव दिया हैं। बिबेक देबरॉय ने एक अख़बार में नए संविधान की मांग करते हुए लेख लिखा। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसीपीएम) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय द्वारा नए संविधान पर लिखे गए लेख पर विवाद तय था। विवाद बढ़ा तो प्रधानमंत्री ने सफ़ाई पेश करते हुए ख़ुद को और केंद्र सरकार को इससे अलग कर लिया।

दरअसल, 77वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रकाशित देबरॉय ने अपनी लेख में कहा था कि हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देने की जरूरत है। इसपर विपक्ष भड़क उठा। उसने आरोप लगाया कि सरकार ने संविधान को खत्म करने का बिगुल फूंक दिया है, जिसके प्रमुख शिल्पी डॉ. अंबेडकर थे।

बढ़ते विवाद को थामने के लिए अब प्रधानमंत्री की ईएसी ने लेख से खुद को अलग कर लिया है। उसका कहना है कि जो भी लिखा गया, वो बिबेक देबरॉय के व्यक्तिगत विचार थे। इसका परिषद और सरकार से कोई लेना देना नहीं है। गुरुवार को ईएएसी-पीएम ने सोशल मीडिया पर स्पष्टीकरण देते हुए लिखा, “डॉ बिबेक देबरॉय का हालिया लेख उनकी व्यक्तिगत राय थी, वो किसी भी तरह से ईएएसी-पीएम या भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाता। बता दें कि ईएएसी-पीएम भारत सरकार, खासकर प्रधानमंत्री को आर्थिक मुद्दों पर सलाह देने के लिए गठित की गई बॉडी है।

क्या कहा है बिबेक देबरॉय

बिबेक देबरॉय का द मिंट में एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ है। इस आर्टिकल में लिखा कि मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर बेस्ड है। संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन हुआ था, 2022 में इसकी रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था। कानून में सुधार के कई पहलुओं पर काम करने की जरूरत है। कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा। हमें ड्राइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता जैसे शब्दों का अब क्या मतलब है। हम लोगों को, खुद को एक नया संविधान देना होगा। उन्होंने आगे लिखा है कि हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था। 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है?

भारत के वर्तमान संविधान को बताया औपनिवेशिक विरासत

देबरॉय ने लिखा था,अब हमारे पास वह संविधान नहीं है जो हमें 1950 में विरासत में मिला था। इसमें संशोधन किए जाते हैं और हर बार वो बेहतरी के लिए नहीं होते, हालांकि 1973 से हमें बताया गया है कि इसकी 'बुनियादी संरचना' को बदला नहीं जा सकता है। भले ही संसद के माध्यम से लोकतंत्र कुछ भी चाहता हो। जहाँ तक मैं इसे समझता हूं, 1973 का निर्णय मौजूदा संविधान में संशोधन पर लागू होता है, अगर नया संविधान होगा तो ये नियम उस पर लागू नहीं होगा। देबरॉय ने एक स्टडी के हवाले से बताया कि लिखित संविधान का जीवनकाल महज़ 17 साल होता है। भारत के वर्तमान संविधान को औपनिवेशिक विरासत बताते हुए उन्होंने लिखा, हमारा वर्तमान संविधान काफ़ी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इसका मतलब है कि यह एक औपनिवेशिक विरासत है।

जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में हथियारों का बड़ा जखीरा जब्त, सुरक्षाबलों ने की घाटी को दहलाने की साजिश नाकाम

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जम्मू एवं कश्मीर के कुपवाड़ा के माछिल सेक्टर में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली है।सुरक्षाबलों ने यहां तलाशी अभियान के दौरान बड़ी मात्रा में हथियारों की खेप बरामद की है।शुक्रवार को भारतीय सेना, बीएसएफ और कश्मीर पुलिस ने जॉइंट ऑपरेशन चलाया। इस दौरान भारी मात्रा जिंदा कारतूस बरामद किए गए हैं। यह जानकारी भारतीय सेना की चिनार कॉर्प्स ने शेयर की।

सेना ने अपने एक ट्वीट में ये जानकारी दी है कि हमारी एक टीम ने राज्य की पुलिस फोर्स यानी जम्मू-कश्मीर पुलिस और बीएसएफ के ज्वाइंट सर्च ऑपरेशन के दौरान भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद किया गया है।इसमें पांच एके राइफल्स, सात पिस्तौल, चार हैंड ग्रेनेड और अन्य आपत्तिजनक सामग्री बरामद की गई।

वहीं, घाटी के सोपोर जिला में पुलिस को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। पुलिस ने लश्कर-ए-तैयबा के दो ओजीडब्ल्यूएस (ओवर ग्राउंड वर्कर्स) को गिरफ्तार किया है। उनके कब्जे से आठ राउंड पिस्तौल और ग्रेनेड बरामद किए गए। पुलिस ने बताया कि मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई है। आतंकी मददगारों से पूछताछ की जा रही है।

मणिपुर में हिंसा का दौर जारी, फिर हुई फायरिंग, कुकी थोवई गांव में मिले तीन क्षत-विक्षत शव, अबतक 160 से अधिक लोगों की जा चुकी जान

मणिपुर में हिंसा थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। प्रदेश के उखरूल जिले के कुकी थोवाई गांव में भारी गोलीबारी के बाद तीन लोगों के क्षत-विक्षत शव मिले हैं। अधिकारियों से मिली जानकारी के मुताबिक, हिंसा लिटान पुलिस थाना क्षेत्र अंतर्गत आने वाले एक गांव में हुई। यहां सुबह-सुबह गोलियों की आवाज सुनाई दी। अधिकारी ने बताया कि पुलिस ने आसपास के गांवों और जंगलों की गहन तलाशी ली और 24 से 35 साल की उम्र के तीन लोगों के शव मिले हैं। बताया जा रहा है कि तीनों शवों पर धारदार चाकू से हमले के निशान है। साथ ही उनके हाथ-पैर भी कटे हुए हैं। बता दें, मणिपुर हिंसा में अबतक 160 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।

इधर, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने मणिपुर हिंसा को लेकर कहा है कि हम मणिपुर में शांति के लिए प्रयास और प्रार्थना कर रहे हैं। हम काफी हद तक शांति बहाल करने की कोशिश में सफल हो रहे हैं। इस दौरान उन्होंने विपक्षी गठबंधन I-N-D-I-A पर निशाना साधते हुए कहा कि हम 'घमंडिया' गठबंधन की बैठक में 'घमंड' और अहंकार ही देखने को मिल सकता है। गौरतलब है कि मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्षी नेताओं ने बवाल काटा हुई है। संसद का पूरा मानसून सत्र मणिपुर हिंसा की भेंट चढ़ गया. एक भी दिन सत्र की कार्यवाही नहीं चल पाई।

शरद पवार ने साधा पीएम मोदी पर निशाना

इधर, गुरुवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने महाराष्ट्र के बीड में एक रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी पर जमकर निशाना साधा। शरद पवार ने कहा कि पीएम मोदी को मणिपुर जाकर वहां लोगों का हाल जानना चाहिए था। एनसीपी नेता शरद पवार ने महाराष्ट्र में रैली में बीजेपी से कहा कि आप स्थिर सरकार देने की बात करते हैं, लेकिन राज्यों में निर्वाचित सरकारों को गिरा देते हैं। इससे पहले कांग्रेस भी मणिपुर मामले को लेकर सराकर पर निशाना साध चुकी है।

महिला आदिवासी संगठन ने दिल्ली में किया प्रदर्शन

वहीं, मणिपुर में हिंसा के खिलाफ एक आदिवासी महिला संगठन ने दिल्ली में प्रदर्शन किया। साथ ही कुकी-जो समुदाय के लिए एक अलग प्रशासन की मांग की। उनाउ ट्राइबल वोमन्स फोरम दिल्ली एंड एनसीआर के नेतृत्व में, कई महिलाओं ने पूर्वोत्तर राज्य में हाल की घटनाओं और बढ़ती हिंसा की निंदा करते हुए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि प्रदर्शन का उद्देश्य मणिपुर में आदिवासी समुदायों की चुनौतियों का समाधान करने के लिए कुकी-जो जनजाति के लिए एक अलग प्रशासन की जरूरत पर जोर देता है। फोरम ने कहा, हमारा मानना है कि अलग प्रशासन राज्य में शांति और सद्भाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

पीएम मोदी साध लेते हैं चुप्पी- अरविंद केजरीवाल

मणिपुर हिंसा मामले को लेकर दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा है कि कम से कम वे शांति की अपील तो कर सकते थे। दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल ने कहा कि जब भी देश में संकट की स्थिति आती है तो प्रधानमंत्री चुप्पी साध लेते हैं. सीएम केजरीवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री पिता तुल्य हैं। उन्होंने मणिपुर की बेटियों से मुंह मोड़ लिया। आप अपने कमरे में बैठे रहे। पूरा देश प्रधानमंत्री की चुप्पी का कारण पूछ रहा है। यह पहली बार नहीं है कि वह चुप हैं। जब भी पिछले नौ वर्षों में संकट की स्थिति आई प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहे।

मणिपुर अशांति की दवा सिर्फ संगीत है : कुकी, मैतेई कलाकार

इधर, मणिपुर हिंसा में शामिल मैतेई और कुकी समुदायों से जुड़े संगीतकारों का कहना है कि मणिपुर में शांति के लिए संगीत ही सबसे कारगर हथियार है। माइकल जैक्सन के प्रसिद्ध गीत 'मुझे अच्छे संगीत से प्यार है, इसका कोई रंग नहीं, इसकी कोई सीमा नहीं' का जिक्र किया और कहा कि अशांति के इस माहौल को समाप्त करने में संगीत जादू सा असर डाल सकता है। कुकी और मैतेई दोनों समुदाय के संगीतकारों ने कहा कि मतभेदों को दूर करने में अभी भी देर नहीं हुई है और संगीत सबसे बेहतर मरहम का काम कर सकता है।

3 मई से हिंसा की आग में जल रहा मणिपुर

तीन मई को राज्य में पहली बार जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 160 से अधिक लोग मारे गए हैं, और कई सौ लोग घायल हुए हैं। बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किये जाने के दौरान यह हिंसा भड़की थी। मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी नगा और कुकी समुदाय के लोगों की संख्या 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।

अडानी एनर्जी में अपना निवेश दोगुना करेगी UAE के अबू धाबी की राष्ट्रीय ऊर्जा कंपनी, 2.5 बिलियन डॉलर लगाने पर कर रही विचार

अबू धाबी की राष्ट्रीय ऊर्जा कंपनी, TAQA, गौतम अडानी के थर्मल उत्पादन से लेकर ट्रांसमिशन, स्वच्छ ऊर्जा और हरित हाइड्रोजन में अपने निवेश को दोगुना करने पर विचार कर रही है। सूत्रों के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में यह जानकारी दी गई है। सूत्रों ने आगे बताया कि TAQA, जिसे यूरोप, पश्चिम एशिया और अफ्रीका में सबसे बड़ी एकीकृत उपयोगिताओं में से एक कहा जाता है, अडानी समूह की कंपनियों या किसी एकल इकाई में $1.5 बिलियन से $2.5 बिलियन के बीच निवेश करने का इच्छुक है।

रिपोर्ट के अनुसार, अबू धाबी कंपनी कंपनी में प्राथमिक निवेश और प्रमोटर परिवार संस्थाओं से शेयरों की द्वितीयक खरीद के संयोजन के माध्यम से अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस में 19.9% हिस्सेदारी लेना चाहती है। बता दें कि अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस का वर्तमान मूल्य 91,660 करोड़ रुपये है, जिसमें प्रमोटरों के पास 68.28% हिस्सेदारी है। मौजूदा बाजार मूल्य के अनुसार, 20% हिस्सेदारी का मूल्य 18,240 करोड़ रुपये (2.19 बिलियन डॉलर) होगा। इस लेख को लिखे जाने तक अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस का स्टॉक 2.99% बढ़कर 846.75 रुपये प्रति शेयर पर कारोबार कर रहा था। TAQA ने बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण परिसंपत्तियों, अपस्ट्रीम और मिडस्ट्रीम तेल और गैस संचालन में निवेश किया है। इसकी संपत्ति संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कनाडा, घाना, भारत, इराक, मोरक्को, ओमान, नीदरलैंड, यूके और अमेरिका में फैली हुई है।

अबू धाबी स्थित ऊर्जा कंपनी, तमिलनाडु के नेवेली में 250 मेगावाट के लिग्नाइट-आधारित थर्मल पावर प्लांट की मालिक है और इसका संचालन करती है। कथित तौर पर कंपनी, भारत में अपने पोर्टफोलियो का विस्तार करने की योजना बना रही है और यहां तक ​​कि इसने 2014 में जेपी समूह से 9,689 करोड़ रुपये में दो पनबिजली परियोजनाएं खरीदने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए थे, लेकिन वैश्विक रणनीति में बदलाव के चलतेअधिग्रहण सफल नहीं हुआ और उसने सौदे से बाहर निकलने का फैसला किया। रिपोर्ट के अनुसार, TAQA अदानी पर ध्यान केंद्रित करने से पहले कई भारतीय निजी उपयोगिताओं के साथ बैठक कर रहा था। जबकि, कहा जाता है कि वरिष्ठ प्रबंधन की बैठकें और तकनीकी सावधानी बरती गई है। टैरिफ-आधारित प्रतिस्पर्धी बोली (TBCB) परियोजनाओं में अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस की बाजार हिस्सेदारी 22% है। कंपनी ने तीन स्थानों - सौराष्ट्र, नवी मुंबई और बुलंदशहर में दूसरे लाइसेंस के लिए आवेदन किया है। इसने 5,800 करोड़ रुपये की ऑर्डर बुक के साथ स्मार्ट मीटरिंग सेगमेंट में भी प्रवेश किया है।

12 दिन की शांति के बाद मणिपुर में फिर भड़की हिंसा, गोलीबारी में तीन कुकी नागरिकों की मौत

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मणिपुर पिछले तीन महीने से ज्यादा समय से जल रहा है। राज्य में रूक रूककर हिंसा भड़क जा रही है। पिछले 12 दिनों से घाटी में शांति थी, लेकिन आज शुक्रवार की सुबह एक बार फिर हिंसा की खबर सामने आई है। मणिपुर के उखरुल जिले में शुक्रवार सुबह भड़की ताजा हिंसा के दौरान तीन कुकी लोगों की मौत हो गई।बताया जा रहा है कि सुबह करीब 4.30 गांव में उपद्रवियों ने गोलीबारी की जिसमें 3 लोगों की मौत हो गई है। इस हमले के पीछे मैतेई समुदाय का हाथ बताया जा रह है। फिलहाल पुलिस गोलीबारी करने वालों की पहचान करने में जुटी है।

मणिपुर पुलिस ने बताया कि यह घटना उखरूल जिले से लगभग 47 किलोमीटर दूर स्थित थोवई गांव में सुबह करीब 4.30 बजे हुई, यह कुकी बहुल गांव है। उखरुल के पुलिस अधीक्षक एन वाशुम के मुताबिक, हथियारबंद उपद्रवियों का एक समूह गांव के पूर्व में स्थित पहाड़ियों से गांव के पास आया और ग्राम रक्षकों पर गोलीबारी शुरू कर दी। घटना में गांव के 3 लोगों की मौत हो गई है। किसी के घायल होने की खबर नहीं है।

बताया जा रहा है कि मैतेई उपद्रवियों ने सबसे पहले गांव के ड्यूटी पोस्ट पर हमला किया, जहां स्वयंसेवक गांव की सुरक्षा के लिए ड्यूटी कर रहे थे। इस गोलीबारी में कुकी स्वयंसेवकों के तीन लोगों के मारे जाने की खबर है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अधिकारियों ने बचाया है कि जब पुलिस ने सर्च अभियान चलाया तब यहां जंगल के इलाके से 3 शव बरामद हुए हैं। मारे गए लोगों की पहचान जामखोगिन हाओकिप (26), थांगखोकाई हाओकिप (35) और होलेनसोन बाइते (24) के रूप में हुई है।चाकू से इनके शरीर पर निशान बनाए गए हैं, जबकि अंगों को भी काटा गया है।

राज्य में अब तक 190 लोगों की मौत

मैतइ और कुकी समुदाय के बीच आरक्षण को लेकर शुरू हुई जातीय हिंसा ने धीरे-धीरे पूरे राज्य में हिंसा का स्वरूप ले लिया था, जिसके बाद कई जान चली गई। हिंसा की ताजा घटना के साथ, मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष में कम से कम 190 लोग मारे गए हैं। राज्य में 3 मई से कुकी और मैतेई समुदायों के बीच व्यापक हिंसा देखी गई है। हिंसा भड़कने के बाद से लगभग 60,000 लोग अपने घरों से भागने को मजबूर हो गए हैं। राज्य में बलात्कार और हत्या के मामले सामने आए हैं और केंद्रीय सुरक्षा बलों की भारी उपस्थिति के बावजूद भीड़ ने पुलिस शस्त्रागार लूट लिया और कई घरों में आग लगा दी।

हिंसा की वजह

बता दें कि मणिपुर में बहुसंख्यक मैतई समुदाय जनजातीय आरक्षण देने की मांग कर रहा है। इसकी वजह ये है कि मैतई समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है लेकिन ये लोग राज्य के सिर्फ 10 प्रतिशत मैदानी इलाके में रहते हैं। वहीं कुकी और नगा समुदाय राज्य के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं जो की राज्य का करीब 90 फीसदी है। जमीन सुधार कानून के तहत मैतई समुदाय के लोग पहाड़ों पर जमीन नहीं खरीद सकते, जबकि कुकी और नगा समुदाय पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। यही वजह है, जिसकी वजह से हिंसा शुरू हुई और अब तक इस हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

शोएब अख्तर का बड़ा बयान, कहा-भारत के पैसे से पलते हैं पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी

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पाकिस्तानी के पूर्व तेज गेंदबाज शोएब अख्तर रिटायरमेंट के बाद भी अपने बयानों के कारण सुर्खियों में बने रहते हैं। एक बार फिर पूर्व क्रिकेटर ने ऐसा बयान दिया है, जिससे विवाद गहरा सकता है। उन्होंने भारतीय खेल पत्रकार को दिए इंटरव्यू में पाकिस्तान क्रिकेट को लेकर बड़ी बात कही है। शोएब अख्तर ने कहा कि भारत के पैसों से पाकिस्तान के क्रिकेटर पलते हैं।अख्तर के इस बयान पर पाकिस्तान में काफी बवाल हो सकता है।

शोएब अख्तर ने वरिष्ठ खेल पत्रकार बोरिया मजूमदार से खास बातचीत में बताया कि बीसीसीआई वर्ल्ड क्रिकेट में कितनी पावरफुल एसोसिएशन है।एशिया कप में भारत-पाकिस्तान के मुकाबले को लेकर बोरिया मजूमदार से बातचीत के दौरान शोएब अख्तर ने इस बात को माना कि बीसीसीआई के जरिए जो पैसा आईसीसी के पास आता है और फिर इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल रेवेन्यू शेयरिंग के तहत वो पैसा पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को भेजती है। उसी पैसे के दम पर ही पाकिस्तान में घरेलू क्रिकेटर्स को मैच फीस मिल पाती है।

शोएब अख्तर ने ये भी कहा कि वर्ल्ड कप 2023 सुपरहिट होने वाला है। अख्तर ने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि बीसीसीआई इस वर्ल्ड कप से काफी पैसा कमाएगी। इससे बीसीसीआई की आर्थिक स्थिति और ज्यादा मजबूत हो जाएगी।साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि मैं चाहता हूं कि भारत इस विश्व कप से खूब पैसे बनाए।कई लोग इस बात को कहने से हिचकेंगे।लेकिन मैं साफ कहता हूं कि भारत से जो रेवेन्यू आईसीसी को जाता है। उसका हिस्सा पाकिस्तान में भी आता है और इससे हमारे घरेलू क्रिकेटरों को मैच फीस मिलती है। यानी भारत से जो पैसा आ रहा है, उससे हमारे युवा क्रिकेटर पल रहे हैं।

शोएब अख्तर ने आईगे कहा कि भारत-पाकिस्तान मैच में एक बार फिर टीम इंडिया पर ही दबाव होगा। अख्तर ने कहा कि ये दबाव मीडिया की वजह से बनता है। लगातार टीम इंडिया की जीत के ही दावे किए जाते हैं। स्टेडियम भी बिल्कुल ब्लू कर दिए जाते हैं। इससे पाकिस्तान को मदद ही मिलती है क्योंकि वो अपने आप ही डार्कहॉर्स बन जाती है और इससे उसके खिलाड़ियों को खुलकर खेलने में मदद मिलती है।

दिल्ली से पुणे जा रही फ्लाइट में बम होने की खबर, सभी यात्रियों को उतारा गया

#bomb_threat_on_delhi_pune_vistara_flight_at_delhi_airport

दिल्ली एयरपोर्ट पर दिल्ली-पुणे विस्तारा फ्लाइट में बम की धमकी मिली।जिसके बाद एयरपोर्ट पर ही फ्लाइट की जांच शुरू हो गई। सभी यात्रियों को उनके सामान सहित सुरक्षित उतारा गया।विमान में बम होने की जानकारी जीएमआर सेंटर को दी गई।

जानकारी के अनुसार जीएमआर कॉल सेंटर में शुक्रवार सुबह फ्लाइट में बम होने की कॉल मिली। काल मिलते ही सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट हो गईं।सुरक्षा एजेसिंयों की तरफ से विमान की जांच की गई।बम रखे जाने की सूचना मिलते ही यात्रियों में हड़कंप मच गया।

एयरपोर्ट पर आइसोलेशन बे में विमान का निरीक्षण किया गया। विमान में कोई भी संदिग्ध सामान नहीं मिला है। सीआईएसएफ और दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है।

यह पहली बार नहीं है जब विस्तारा की फ्लाइट में बम होने की सूचना मिली है। जून महीने में दिल्ली से एक शख्स दुबई जा रहा था जब उसने कथित रूप सै गुस्से में कहा कि उनके बैग में बम है। बस क्या था, यात्री के बगल में बैठी एक महिला यात्री ने गलत सुन लिया और घबरा गई। उसने शोर मचाया और केबिन क्रू को बुलाया। शख्स को दिल्ली एयरपोर्ट पर ही हिरासत में ले लिया गया था।

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा-हमें ये देखना है संविधान का उल्लंघन तो नहीं हुआ

#supreme_court_hearing_on_article_370_abrogation

जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को हटाने को लेकर शीर्ष अदालत में बहस जारी है।आर्टिकल 370 को बेअसर करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।गुरुवार को सुनवाई के सातवें दिन के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने को सिर्फ इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि इसमें संवैधानिक प्रावधानों का कथित तौर पर उल्लंघन हुआ है। इस आधार पर नहीं कि इस कदम को उठाने के लिए सरकार की मंशा क्या थी। अगली सुनवाई अब 22 अगस्त मंगलवार को होगी।

सुनवाई के दौरान सीजआई के नेतृत्व में बनी संविधान पीठ ने गुरुवार को याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे से पूछा, क्या आप अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सरकार के फैसले की समझदारी की समीक्षा करने के लिए अदालत को आमांत्रित कर रहे हैं? आप कह रहे हैं कि सरकार के फैसले के आधार का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए कि अनुच्छेद 370 को जारी रखना राष्ट्रीय हित में नहीं था? इस पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्यकांत शामिल हैं।

अनुच्छेद 370 हटाए जाने के विरोध में दलील पेश करते हुए एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि वो संविधान के साथ धोखाधड़ी की तरफ इशारा कर रहे हैं। केंद्र सरकार का फैसला पूरी तरह सियासी था। उन्होंने कहा कि अगर आप पूरे घटनाक्रम को देखें तो फैसले से पहले जम्मू कश्मीर की विधानसभा भंग कर दी गई थी और संसद के पास शक्ति के साथ राष्ट्रपति को भी अनुच्छेद 356 के तहत शक्ति हासिल थी। उन्होंने अनुच्छेद 370 के उपखंड तीन का हवाला देते हुए कहा कि इस आधार पर अनुच्छेद 370 को हटाया ही नहीं जा सकता था। केंद्र सरकार ने संविधान के साथ धोखाधड़ी की थी।

सुनवाई के दौरान दवे ने ये भी दलील दी कि आर्टिकल 370 को सिर्फ संविधान में संशोधन के जरिए ही खत्म किया जा सकता था। उन्होंने कहा, एक नैरेटिव है कि आर्टिकल 370 की वजह से ही जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है, लेकिन ये पूरी तरह गलत है। जम्मू-कश्मीर हमेशा से भारत का अभिन्न हिस्सा रहा है। यहां तक कि जवाहर लाल नेहरू ने भी इस नैरेटिव को खारिज किया।

इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्रपति को आर्टिकल 356 के तहत संविधान के कुछ प्रावधानों को निलंबित करने की शक्ति है। बेंच ने कहा कि जनवरी 1957 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा भंग होने के बाद अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के प्रावधान को अकेले अस्तित्वहीन नहीं माना जा सकता है। आर्टिकल 370 के कुछ हिस्से अगले 62 सालों तक प्रभाव में रहे।

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा-हमें ये देखना है संविधान का उल्लंघन तो नहीं हुआ

#supreme_court_hearing_on_article_370_abrogation

जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को हटाने को लेकर शीर्ष अदालत में बहस जारी है।आर्टिकल 370 को बेअसर करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।गुरुवार को सुनवाई के सातवें दिन के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने को सिर्फ इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि इसमें संवैधानिक प्रावधानों का कथित तौर पर उल्लंघन हुआ है। इस आधार पर नहीं कि इस कदम को उठाने के लिए सरकार की मंशा क्या थी। अगली सुनवाई अब 22 अगस्त मंगलवार को होगी।

सुनवाई के दौरान सीजआई के नेतृत्व में बनी संविधान पीठ ने गुरुवार को याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे से पूछा, क्या आप अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के सरकार के फैसले की समझदारी की समीक्षा करने के लिए अदालत को आमांत्रित कर रहे हैं? आप कह रहे हैं कि सरकार के फैसले के आधार का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए कि अनुच्छेद 370 को जारी रखना राष्ट्रीय हित में नहीं था? इस पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्यकांत शामिल हैं।

अनुच्छेद 370 हटाए जाने के विरोध में दलील पेश करते हुए एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि वो संविधान के साथ धोखाधड़ी की तरफ इशारा कर रहे हैं। केंद्र सरकार का फैसला पूरी तरह सियासी था। उन्होंने कहा कि अगर आप पूरे घटनाक्रम को देखें तो फैसले से पहले जम्मू कश्मीर की विधानसभा भंग कर दी गई थी और संसद के पास शक्ति के साथ राष्ट्रपति को भी अनुच्छेद 356 के तहत शक्ति हासिल थी। उन्होंने अनुच्छेद 370 के उपखंड तीन का हवाला देते हुए कहा कि इस आधार पर अनुच्छेद 370 को हटाया ही नहीं जा सकता था। केंद्र सरकार ने संविधान के साथ धोखाधड़ी की थी।

सुनवाई के दौरान दवे ने ये भी दलील दी कि आर्टिकल 370 को सिर्फ संविधान में संशोधन के जरिए ही खत्म किया जा सकता था। उन्होंने कहा, एक नैरेटिव है कि आर्टिकल 370 की वजह से ही जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है, लेकिन ये पूरी तरह गलत है। जम्मू-कश्मीर हमेशा से भारत का अभिन्न हिस्सा रहा है। यहां तक कि जवाहर लाल नेहरू ने भी इस नैरेटिव को खारिज किया।

इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्रपति को आर्टिकल 356 के तहत संविधान के कुछ प्रावधानों को निलंबित करने की शक्ति है। बेंच ने कहा कि जनवरी 1957 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा भंग होने के बाद अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के प्रावधान को अकेले अस्तित्वहीन नहीं माना जा सकता है। आर्टिकल 370 के कुछ हिस्से अगले 62 सालों तक प्रभाव में रहे।

साल दर साल तबाह हो रहा हिमाचल प्रदेश, केवल कुदरत का कहर या मानवीय चूक भी इसके लिए जिम्मेदार?

#himachal_cause_of_disaster

पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रही बारिश से हिमाचल प्रदेश में भारी तबाही हो रही है।पिछले दो महीने से राज्य के किसी न किसी क्षेत्र में बादल फट जाने की घटना हो जाती है।बारिश के साथ-साथ बादल फटने की घटनाएं भयानक तबाही मचा रही हैं। इसके अलावा भूस्खलन से पहाड़ टूट रहे हैं, जिसके कारण मंडी, शिमला, कुल्लू और अन्य क्षेत्रों में हालात काफी बिगड़े हुए हैं।हिमाचल प्रदेश में इस हफ्ते हुई तबाही में अब तक कम से कम 70 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 7500 करोड़ का अभी तक नुकसान हुआ है। यह आंकड़ा और भी बढ़ सकता है।

दस साल पहले 2013 में केदार नाथ हादसा हुआ था, जिससे पूरा गढ़वाल क्षेत्र चौपट हो गया था। उस समय चूंकि चार धाम यात्रा भी चल रही थी, इसलिए कोई दस हजार के करीब तीर्थ यात्री मारे गये थे।यही अब हिमाचल में हो रहा है। जुलाई में मंडी के आसपास का इलाका नष्ट हुआ था और अगस्त की बारिश ने राजधानी शिमला को ध्वस्त कर दिया।

इन हालात में तबाही के लिए पूरी तरह कुदरत को दोष देना सही नहीं है। कहीं न कही मानवीय चूक भी इसके लिए जिम्मेदार है।हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राज्य में इस हफ्ते हुई तबाही के लिए अंधाधुंध निर्माण कार्य को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा है कि बिना नक्शे के गलत तरीके से बन रहे मकान और प्रवासी वास्तुकारों के कारण प्रदेश को आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय लोग बिना नक्शे का उपयोग किए घर बना रहे हैं। हाल ही में बनी इमारतों में जल निकासी की व्यवस्था बहुत खराब है। वो बिना यह जाने पानी बहा रहे हैं कि पानी कहीं और नहीं बल्कि पहाड़ियों में जा रहा है, जिससे यहां की स्थिति नाजुक हो रही है।राजधानी शिमला पर टिप्णणी करते हुए सीएम ने कहा, शिमला डेढ़ सदी से भी अधिक पुराना शहर है और इसकी जल निकासी व्यवस्था उत्कृष्ट थी। लेकिन अब नालों पर इमारतें बन गई हैं।आजकल जो मकान गिर रहे हैं, वो स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के मानकों से नहीं गुजरे हैं।

शिमला तो ब्रिटिश कालीन भारत की समर कैपिटल हुआ करती थी। गर्मियां शुरू होते ही वायसरॉय कलकत्ता से शिमला आ जाया करते। कालका एक्सप्रेस ट्रेन चलाई ही इसीलिए गई थी। हावड़ा से वाया दिल्ली कालका और फिर टॉय ट्रेन से शिमला।इतना करने के बाद भी ब्रिटिशर्स ने किसी भी पहाड़ी शहर का प्राकृतिक दोहन नहीं किया। क्योंकि उन्हें पता था, कि हिमालय के पहाड़ कच्चे हैं। उनका व्यावसायिक इस्तेमाल किया तो वे ढह जाएंगे। यही कारण है कि जब तक अंग्रेज रहे न यहां कभी बादल फटा न आफत की बारिश आई।

आजादी के बाद से भारत की हर चीजों को लूटने का सिलसिला शुरू हुआ। तो वहीं विकास के नाम पर प्रकृति के साथ खिलवाड़ का भी सिलसिला शुरू हो गया। आज हिमाचल की स्थिति बहुत ख़राब हो चली है। कालका-शिमला रोड को चौड़ा करने के पहले भी कई बार आगाह किया गया था, कि यहां पहाड़ों का खनन ठीक नहीं है। पर तब सरकार नहीं चेती। कालका से शिमला जाते हुए धर्मपुर को इतना व्यावसायिक स्वरूप दे दिया गया है, कि पूरा क्षेत्र बर्बादी के कगार पर है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के एक 2017 में हुए एक शोध से पता चला था कि हिमाचल प्रदेश में कुल 118 हाइड्रो प्रोजेक्ट हैं जिनमें से 67 पहाड़ खिसकने वाले ज़ोन में हैं। राज्य के आदिवासी बहुल ज़िले किन्नौर, कुल्ली और कई अलग हिस्सों में जब हाइड्रो प्रोजेक्ट लगाये जा रहे थे तब पर्यावरणविदों और प्रभावित स्थानीय नागरिकों ने उनका विरोध भी किया था और कई जन अभियान भी चले थे। हिमालय के पहाड़ अभी छोटे बच्चे की तरह हैं, जो निरंतर बढ़ रहे हैं। माउंट एवरेस्ट की हाइट भी हर साल एक सेंटीमीटर से ज्यादा बढ़ रही है। ऐसे हिमालय में अवैज्ञानिक व अंधाधुंध कटिंग तबाही का बड़ा कारण है।