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दिल्ली सेवा बिल लोकसभा में पास, विपक्ष का सदन से वॉकआउट, आप सांसद सुशील कुमार रिंकू पूरे सत्र के लिए निलंबित

#delhiordinancebillpassedinloksabha

दिल्ली अध्यादेश से जुड़ा ‘राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक, 2023’ लोकसभा से पास हो गया।साथ ही आम आदमी पार्टी के सांसद सुशील कुमार रिंकू को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है।दिल्ली अध्यादेश बिल के पारित होने के बाद विपक्ष ने संसद से वॉकआउट किया जिसके बाद संसद कल तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा।

लोकसभा में बिल पर चर्चा का जवाब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिया।इस दौरान कांग्रेस, टीएमसी और डीएमके सहित अन्य विपक्षी दलों ने बिल का कड़ा विरोध किया।संसद में हो रहे हंगामे के बीच आप सांसद रिंकू सिंह ने कागज फाड़कर चेयर की तरफ फेंका था। संसदीय कार्यमंत्री ने इस बाबत कहा कि सुशील कुमार रिंकू को निलंबित कर देना चाहिए क्योंकि उन्होंने चेयर का अपमान किया है। इसके बाद सभापति ने सुशील कुमार सिंह रिंकू को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया।

शाह ने नेहरू-पटेल और अंबेडकर का किया जिक्र

वहीं, अमित शाह ने विधेयक के पक्ष में तर्क देते हुए सदन में कहा, अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को संदर्भित करता है जिसमें कहा गया है कि दिल्ली को लेकर किसी भी मुद्दे पर सरकार को कानून बनाने का अधिकार है। उन्होंने बताया कि संविधान में भी हमें ये अधिकार दिया गया। अमित शाह ने आगे कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, राजाजी, राजेंद्र प्रसाद और डॉ. बी.आर. अंबेडकर भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने के विरोध में थे। 

नियम पढ़ लिए होते आज यह नहीं कहते- शाह

अमित शाह ने चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि मैंने पहले दिन से कहा कि मणिपुर पर जितनी चर्चा करनी है कर लो। मैं दूंगा जवाब। उनको एक ही दिक्कत है जनता के मन में भ्रांति पैदा कर दो। जनता है सब जानती है। सदन जनता को गुमराह करने की जगह नहीं। सभी लोग राज्य के अधिकार, राज्य के अधिकार कह रहे हैं लेकिन दिल्ली तो राज्य है ही नहीं। राज्य और केंद्र शासित प्रदेश दोनों अलग-अलग है। चुनाव लड़ने से पहले नियम पढ़ लिए होते तो आज नहीं कहते कि अधिकार नहीं है। हम नहीं इसको बनाए हैं।

विपक्ष के लिए देश नहीं गठबंधन जरूरी-शाह

शाह ने आगे कहा कि मणिपुर मुद्दे पर विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग करता रहा। सदन में हंगामा होता रहा, लेकिन आज इस बिल के लिए आप सब यहां आ गए। इसी बिल के लिए क्यों आए? बाकी बिल के लिए क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके लिए देश नहीं गठबंधन जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि इस बिल के पास होने के बाद अरविंद केजरीवाल आपको टाटा-बाय बाय कर देंगे। विपक्षी दलों पर तंज कसते हुए अमित शाह ने दावा किया कि कितने ही गठबंधन कर लो, 2024 में आएंगे मोदी ही।

पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ ने जताई भारत से बातचीत के इच्छा, विदेश मंत्रालय ने दिया ये जवाब

#mearesponseonpakpmshehbazsharifcommentonindiaregarding_talks

भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की खटास कम होने का नाम नहीं ले रही है। पड़ोसी देश पाकिस्तान की नापाक हसरतें इसके लिए जिम्मेदार है। हालांकि, इसी बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में अपने एक बयान में भारत के साथ बातचीत करने की इच्छा जाहिर की थी।पाकिस्‍तान की मीडिया की मानें तो दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों और सन् 1947 में के बाद से हुए तीन युद्धों के बावजूद अब पीएम मूल्यवान रिश्‍तों को तरजीह देना चाहते हैं।इसे लेकर अब विदेश मंत्रालय की ओर से जवाब सामने आया है।

भारत ने कहा-इसके लिए आतंक मुक्त माहौल बनाना होगा

शहबाज शरीफ की भारत के साथ बातचीत को लेकर की गई टिप्पणी पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, हमने रिपोर्ट देखी है। भारत का रुख इस बात पर कायम है कि हम सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहते हैं...लेकिन इसके लिए एक आतंक मुक्त माहौल बनाना होगा। अन्यथा शत्रुता अनिवार्य रूप से कायम रहेगी।

पाकिस्तान ने कहा- युद्ध अब कोई विकल्प नहीं

इससे पहले इस्लामाबाद में मिनरल समिट के ओपनिंग सेरेमनी को संबोधित करते हुए शहबाज ने कहा कि पाकिस्‍तान ने पिछले 75 वर्षों में भारत के साथ तीन युद्ध लड़े हैं। इन युद्धों की वजह से मुल्‍क को सिर्फ गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य व्‍यवस्‍था और संसाधनों की कमी झेलनी पड़ी है। शहबाज ने कहा, 'हम हर किसी के साथ बात करने के लिए तैयार हैं, यहां तक कि अपने पड़ोसी के साथ भी। मगर शर्त बस यह है कि पड़ोसी मेज पर गंभीर मुद्दों पर बात करे क्योंकि युद्ध अब कोई विकल्प नहीं है।

वार्ता के साथ पाक के परमाणु संपन्न होने की दिलाई याद

शहबाज एक तरफ तो वार्ता की बात कर रहे थे तो दूसरी तरफ वह यह याद दिलाना भी नहीं भूले कि पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति से लैस देश है।शहबाज शरीफ ने अपने संबोधन में कहा कि पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश है। उन्होंने कहा कि यह आक्रामक होने के लिए नहीं बल्कि खुद की रक्षा के लिए है। हम नहीं चाहते कि कभी परमाणु युद्ध की नौबत आए। उन्होंने कहा कि युद्ध से किसी का कोई भला नहीं होता।

पहले भी दे चुके हैं ऐसा बयान

शहबाज ने इसी तरह का बयान इस साल की शुरुआत में दिया था। दुबई के अरेबिक न्‍यूज चैनल को दिए इंटरव्‍यू में शहबाज ने कहा था कि भारत के साथ तीन युद्धों के बाद पाकिस्तान ने सबक सीख लिया है और वह भारत के साथ शांति से रहना चाहता है।शरीफ ने कश्मीर जैसे कई और मुद्दों पर भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी से ईमानदारी के साथ वार्ता की अपील की थी। अगस्त 2019 में जब भारत ने जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द कर दिया था तब से ही पाकिस्‍तान के साथ बातचीत बंद है। द्विपक्षीय संबंधों पर गंभीर असर पड़ा है और राजनयिक स्‍तर पर भी कोई प्रगति नहीं हुई है।

*ज्ञानवापी के सर्वे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती, अंजुमन इंतेजामिया सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

#gyanvapi_survey_muslim_side_plea_in_supreme_court_over_allahabad_high_court_order 

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। ज्ञानवापी सर्वे पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है।मस्जिद कमेटी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में मामले का जिक्र करते हुए कहा कि एएसआई को सर्वे की इजाजत न दी जाए। वहीं सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह इस मुद्दे पर गौर करेगा। बता दें कि आज ही ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एएसआई को अनुमति दी है। 

मुस्लिम पक्ष के वकील निजाम पाशा ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में मेंशनिंग करते हुए कहा कि एएसआई सर्वे पर रोक लगाई जानी चाहिए, हमने आपको इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश ई-मेल कर दिया है। वहीं मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम ई-मेल देखकर कोई फैसला करेंगे।

इससे पहले काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिंदू याचिकाकर्ताओं में से एक ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कैविएट अर्जी दायर की। इसमें मांग की गई है कि अगर मुस्लिम पक्ष एएसआई को मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर करता है तो कोई भी आदेश पारित करने से पहले उसका पक्ष सुना जाए। दरअसल, एक वादी कैविएट आवेदन यह सुनिश्चित करने के लिए दायर करता है कि बिना उसका पक्ष सुने उसके खिलाफ कोई आदेश पारित न किया जाए।

इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के एएसआई का सर्वे को लेकर गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की याचिका को खारिज कर दिया और ज्ञानवापी परिसर के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण सर्वे को हरी झंडी दे दी। अब कल से सर्वे शुरू होगा।

अंजुमन इंतेजामिया कमेटी की ओर से वाराणसी की जिला अदालत के 21 जुलाई के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हालांकि हाई कोर्ट ने जिला अदालत के फैसले को बरकरार रखा और अपने फैसले में कहा कि एएसआई की ओर से यह कहा जाना कि ढांचा क्षतिग्रस्त नहीं होगा, इसे इस पर विश्वास करना चाहिए। साथ ही हाई कोर्ट कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे के लिए किसी तरह की खुदाई नहीं का जानी चाहिए।

बता दें कि ज्ञानवापी के अंदर से आई तस्वीरों में दीवारों और खंभों पर कई कलाकृतियां दिख रही हैं। दावा ये किया जा रहा है कि कलाकृतियां नागर शैली में बनी हैं और ऐसा प्राचीन मंदिरों में होता था। बताया जा रहा है कि ज्ञानवापी में खंडित मुर्ति तो दिखी ही, दीवारों पर स्वास्तिक के निशान दिख रहे हैं। हिंदू पक्ष पूछ रहा है कि मस्जिद में स्वास्तिक का निशान तो होता नहीं है फिर ज्ञानवापी में क्यों है। स्वास्तिक ही नहीं, ज्ञानवापी की दीवारों पर डमरू के चिन्ह होने का भी दावा किया जा रहा है। इसके अलावा मंदिर के मंडर के ऊपर गर्भगृह होने के दावे की एक और भी तस्वीर सामने आई। ज्ञानवापी के अंदर की जो दीवारें हैं, उनका कंस्ट्रक्शन बिल्कुल वैसा ही है, जैसा प्राचीन मंदिरों का होता है। इतना ही नहीं दीवारों पर श्लोक लिखे होने का दावा किया गया है।

तीन राज्यों के बजट से अधिक है 4001 विधायकों की संपत्ति , वाईएसआर कांग्रेस के विधायक हैं सबसे अमीर, एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच ने जारी की खबर


एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच ने विधायकों द्वारा जमा किए गए हलफनामों का अध्ययन कर पता लगाया है कि देश के 4001 विधायकों के पास तीन राज्य के बजट से भी अधिक संपत्ति है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि वाईएसआरसीपी के विधायक सबसे अमीर हैं।

  चुनाव पर नजर रखने वाली एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईब्ल्यू) ने विधायकों द्वारा जमा कराए गए हलफनामों का अध्यन कर चौंकाने वाला खुलासा किया है। देश के कुल 4033 विधायकों में से 4001 विधायक के पास कुल संपत्ति 54545 करोड़ है। इन सभी विधायकों की संपत्ति तीन राज्य के बजट से भी ज्यादा है। नागालैंड , मिजोरम और सिक्किम तीन राज्यों का कुल सालाना बजट 49103 करोड़ है जो इन विधायकों की संपत्ति से काफी कम है। उल्लेखनीय है कि साल 2023 - 24 में नागालैंड का बजट 23086 करोड़ , मिजोरम का बजट 14210 करोड़ और सिक्किम का बजट 23086 करोड़ पेश किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक देश के हर विधायक के पास औसतन संपत्ति 13.63 करोड़ रुपये है।

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के 1356 विधायक के पास औसतन 11.97 करोड़ रुपये की संपत्ति है। वहीं कांग्रेस के 719 विधायक के पास 21.97 करोड़ की औसत संपत्ति है। तृणमूल कांग्रेस के 227 विधायक के पास 03.51 करोड़ रुपये की औसत संपत्ति है। वहीं आम आदमी पार्टी के विधायकों की बात करें तो संपत्ति के मामले में यह भी पीछे नहीं हैं। आप के 161 विधायकों के पास 10.20 करोड़ की संपत्ति है। वहीं वाईएसआरसीपी के 146 विधायकों के पास औसतन 23.14 करोड़ रुपये की संपत्ति है जो देश भर के विधायकों में सबसे अधिक है।

 

अगर पार्टी की बात की जाए तो बीजेपी के विधायकों की कुल संपत्ति 16234 करोड़ , कांग्रेस की 15798 करोड़ , वाईएसआरसीपी की 3379 करोड़ , द्रमुक की कुल संपत्ति 1663 करोड़ है। वहीं आम आदमी पार्टी के विधायकों के पास कुल 1642 करोड़ की संपत्ति है।

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक के विधायकों के पास सबसे ज्यादा संपत्ति पाई गई है। 21 राज्यों के विधायकों की कुल संपत्ति से भी ज्यादा कर्नाटक के विधायकों की संपत्ति पाई गई है। 21 राज्यों के विधायकों की कुल संपत्ति 13976 करोड़ है वहीं कर्नाटक के विधायकों के पास कुल 14359 करोड़ की संपत्ति है।

रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र के 288 में से 284 विधायक के पास 6679 करोड़ की संपत्ति है , आंध्र प्रदेश के 175 में से 174 विधायक के पास 4914 करोड़ रुपये की संपत्ति है। वहीं यूपी के 403 विधायक की कुल संपत्ति 3255 करोड़ , गुजरात के 182 विधायक के पास 2987 करोड़ , तमिलनाडु के 224 विधायक के पास 2767 करोड़ और मध्य प्रदेश के 230 विधायक के पास 2476 करोड़ रुपये की संपत्ति पाई गई है।

तीन राज्यों के बजट से अधिक है 4001 विधायकों की संपत्ति , वाईएसआर कांग्रेस के विधायक हैं सबसे अमीर, एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच ने जारी की खबर


एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच ने विधायकों द्वारा जमा किए गए हलफनामों का अध्ययन कर पता लगाया है कि देश के 4001 विधायकों के पास तीन राज्य के बजट से भी अधिक संपत्ति है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि वाईएसआरसीपी के विधायक सबसे अमीर हैं।

  चुनाव पर नजर रखने वाली एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईब्ल्यू) ने विधायकों द्वारा जमा कराए गए हलफनामों का अध्यन कर चौंकाने वाला खुलासा किया है। देश के कुल 4033 विधायकों में से 4001 विधायक के पास कुल संपत्ति 54545 करोड़ है। इन सभी विधायकों की संपत्ति तीन राज्य के बजट से भी ज्यादा है। नागालैंड , मिजोरम और सिक्किम तीन राज्यों का कुल सालाना बजट 49103 करोड़ है जो इन विधायकों की संपत्ति से काफी कम है। उल्लेखनीय है कि साल 2023 - 24 में नागालैंड का बजट 23086 करोड़ , मिजोरम का बजट 14210 करोड़ और सिक्किम का बजट 23086 करोड़ पेश किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक देश के हर विधायक के पास औसतन संपत्ति 13.63 करोड़ रुपये है।

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के 1356 विधायक के पास औसतन 11.97 करोड़ रुपये की संपत्ति है। वहीं कांग्रेस के 719 विधायक के पास 21.97 करोड़ की औसत संपत्ति है। तृणमूल कांग्रेस के 227 विधायक के पास 03.51 करोड़ रुपये की औसत संपत्ति है। वहीं आम आदमी पार्टी के विधायकों की बात करें तो संपत्ति के मामले में यह भी पीछे नहीं हैं। आप के 161 विधायकों के पास 10.20 करोड़ की संपत्ति है। वहीं वाईएसआरसीपी के 146 विधायकों के पास औसतन 23.14 करोड़ रुपये की संपत्ति है जो देश भर के विधायकों में सबसे अधिक है।

 

अगर पार्टी की बात की जाए तो बीजेपी के विधायकों की कुल संपत्ति 16234 करोड़ , कांग्रेस की 15798 करोड़ , वाईएसआरसीपी की 3379 करोड़ , द्रमुक की कुल संपत्ति 1663 करोड़ है। वहीं आम आदमी पार्टी के विधायकों के पास कुल 1642 करोड़ की संपत्ति है।

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक के विधायकों के पास सबसे ज्यादा संपत्ति पाई गई है। 21 राज्यों के विधायकों की कुल संपत्ति से भी ज्यादा कर्नाटक के विधायकों की संपत्ति पाई गई है। 21 राज्यों के विधायकों की कुल संपत्ति 13976 करोड़ है वहीं कर्नाटक के विधायकों के पास कुल 14359 करोड़ की संपत्ति है।

रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र के 288 में से 284 विधायक के पास 6679 करोड़ की संपत्ति है , आंध्र प्रदेश के 175 में से 174 विधायक के पास 4914 करोड़ रुपये की संपत्ति है। वहीं यूपी के 403 विधायक की कुल संपत्ति 3255 करोड़ , गुजरात के 182 विधायक के पास 2987 करोड़ , तमिलनाडु के 224 विधायक के पास 2767 करोड़ और मध्य प्रदेश के 230 विधायक के पास 2476 करोड़ रुपये की संपत्ति पाई गई है।

बंगले की सच्चाई छुपाने के लिए हो रहा अध्यादेश का विरोध..', आम आदमी पार्टी पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बड़ा हमला, विपक्ष पर भी साधा निशाना

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को आम आदमी पार्टी (AAP) पर हमला बोलते हुए उस पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बंगले के नवीनीकरण को छिपाने के लिए दिल्ली अध्यादेश का विरोध करने का आरोप लगाया। उन्होंने संसद में कहा कि, “वर्ष 2015 में, एक पार्टी दिल्ली में सत्ता में आई, जिसका एकमात्र उद्देश्य सेवा करना नहीं, बल्कि लड़ना था, समस्या ट्रांसफर-पोस्टिंग करने का अधिकार प्राप्त करना नहीं है, बल्कि अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए सतर्कता विभाग पर नियंत्रण प्राप्त करना है, जैसे कि उनके (केजरीवाल के) बंगले का निर्माण करने में किया गया है।'

गृह मंत्री ने दिल्ली अध्यादेश के खिलाफ AAP की लड़ाई का समर्थन करने के लिए विपक्ष पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि, ''विपक्ष गठबंधन की खातिर, खर्च किए जा रहे इस करोड़ों रुपये का समर्थन करने के लिए मजबूर है। मैं विपक्ष से गठबंधन के बारे में भूल जाने का अनुरोध करता हूं, क्योंकि नरेंद्र मोदी की जीत निश्चित है।'' शाह, केजरीवाल के बंगले के नवीनीकरण का जिक्र कर रहे थे, जिससे AAP और भाजपा के बीच बड़े पैमाने पर SIYAS खींचतान शुरू हो गई थी। भाजपा और कांग्रेस ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पर अपने बंगले को 'सुंदर बनाने' के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने का आरोप लगाया था, जब राजधानी कोविड-19 से जूझ रही थी।

दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने उपराज्यपाल को एक 'तथ्यात्मक रिपोर्ट' में कहा था कि केजरीवाल के आधिकारिक आवास के नवीनीकरण पर कुल 52.71 करोड़ रुपये की लागत आई। लोक निर्माण विभाग (PWD) के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें से 33.49 करोड़ रुपए घर के निर्माण पर और 19.22 करोड़ रुपए मुख्यमंत्री के कैंप कार्यालय पर खर्च किए गए। लोकसभा में अध्यादेश का बचाव करते हुए शाह ने कहा कि भारत का संविधान केंद्र को दिल्ली के लिए कानून बनाने की अनुमति देता है।

 उन्होंने कहा, यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संदर्भित करता है जो कहता है कि संसद को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से संबंधित किसी भी मुद्दे पर कानून बनाने का अधिकार है।

मोदी सरनेम मामले में झुकने को तैयार नहीं राहुल गांधी, सुप्रीम कोर्ट में कहा-माफ़ी नहीं मागूंगा

.#rahul_gandhi_reply_to_sc_in_modi_surname_defamation_case

कांग्रेस नेता राहुल गांधी मोदी सरनेम मामले में झुकने को तैयार नहीं है। राहुल गांधी ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में मानहानि केस को लेकर एक हलफ़नामा दाख़िल कर कहा है कि केस को रफ़ा-दफ़ा करने के लिए वो माफ़ी नहीं मागेंगे।उनकी ओर से कहा गया है कि यदि उन्हें माफी मांगनी होती तो पहले ही कर लिया होता। राहुल गांधी की ओर से बुधवार सुप्रीम कोर्ट से उनकी दो साल की सजा पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया जिससे कि वह लोकसभा की चल रही बैठकों और उसके बाद के सत्रों में भाग ले सकें।

अपने जवाबी हलफ़नामें में राहुल गांधी ने यह भी कहा कि सूरत अदालत से मिली सज़ा उचित नहीं है और उन्हें पूरी उम्मीद है कि देश की सर्वोच्च अदालत में ये अपील सफल साबित होगी, क्योंकि यह एक "असाधारण मामला" है, जहाँ एक मामूली बात की बड़ी क़ीमत चुकायी जा रही है और निर्वाचित सांसद के रूप में उन्हें लंबे वक़्त से अयोग्य ठहरा दिया गया है। यह पहली बार है जब राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वह माफ़ी नहीं मांगेंगे। उन्होंने कहा कि भले ही वह ये चाहते हैं कि इस सज़ा पर रोक लगे और वो सांसद का दर्जा फिर से हासिल कर सकें लेकिन इसके लिए वो माफ़ी मांगने को तैयार नहीं हैं।

हलफनामा में राहुल गांधी की तरफ से कहा गया है कि उन्हें अहंकारी कहने पर पूर्णेश मोदी की प्रतिक्रिया "निंदनीय" है।'अहंकारी' जैसे निंदनीय शब्दों का उपयोग केवल इसलिए किया गया है क्योंकि उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया है।माफी मांगने के लिए मजबूर करने के लिए आरपी एक्ट के तहत आपराधिक प्रक्रिया और उसके परिणामों का उपयोग करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। बिना किसी गलती के माफी मांगने के लिए मजबूर करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल न्यायिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है। इस न्यायालय द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट से अपनी सज़ा पर रोक लगाने की अपील करते हुए राहुल गांधी ने कोर्ट को बताया कि पूर्णेश मोदी ने उनके कथित आपराधिक इतिहास को दिखाने के लिए उनके ख़िलाफ़ कई लंबित मामलों का सहारा लिया है, लेकिन उन्हें किसी अन्य मामले में दोषी नहीं ठहराया गया है और ज्य़ादातर मामले प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के नेताओं की ओर से दर्ज कराए गए हैं। हलफ़नामे में कहा, “याचिकाकर्ता एक सांसद और विपक्ष के नेता हैं और इसलिए सत्ता में बैठे लोगों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करना ज़रूरी था। मानहानि का इरादा था या नहीं इसे समझने के लिए भाषण को पूरा पढ़ना जरूरी होगा। इसके अलावा, ये साफ़ है कि मानहानि एक नॉन-कॉग्निज़ेबल, कंपाउंडेबल और ज़मानती अपराध है।

हलफनामे में दावा किया गया है कि कि रिकॉर्ड में मोदी नाम का कोई समुदाय या समाज नहीं है और इसलिए, समग्र रूप से मोदी समुदाय को बदनाम करने का अपराध नहीं बनता है। हलफनामे में कहा गया है, रिकॉर्ड में कोई मोदी समाज या समुदाय नहीं है और केवल मोदी वणिका समाज या मोध घांची समाज ही अस्तित्व में है... उन्होंने (शिकायतकर्ता) यह भी स्वीकार किया है कि मोदी उपनाम विभिन्न अन्य जातियों के अंतर्गत आता है। यह भी स्वीकारोक्ति है कि नीरव मोदी, ललित मोदी और मेहुल चोकसी सभी एक ही जाति में नहीं आते।

राहुल गांधी के खिलाफ गुजरात के बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था। राहुल गांधी ने कर्नाटक में दिए एक भाषण में कहा था कि सभी चोरों का सरनेम मोदी होता है। शिकायतकर्ता के अनुसार राहुल गांधी ने अपनी टिप्पणी पर माफी मांगने के बजाय अहंकार दिखाया है और उनका रवैया नाराज समुदाय के प्रति असंवेदनशीलता और कानून की अवमानना को दर्शाता है। उन्होंने अपने किए के लिए माफी नहीं मांगी।

मैं 45 सालों से शादीशुदा हूं, गुस्सा नहीं करता”, जानें राज्यसभा में ऐसा बोले सभापति जगदीप धनखड़

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संसद का मानसून सत्र 20 जुलाई से शुरू हुआ था, लेकिन लगातार हंगामे के कारण सदर की कार्यवाही प्रभावित हो रही है।इस बीच राज्यसभा की कार्यवाही जरूर रुक-रुक कर चल रही है और थोड़ी बहुत चर्चा भी हुई है।गुरुवार को उच्च सदन की कार्यवाही के दौरान सदन में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी बात रख रहे थे। इस दौरान एक बार फिर मणिपुर मामले को लेकर गहमागहमी दिखी। इस बीच गुरुवार को राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे के बीच तीखी बहस हुई। तो वहीं, ठहाके भी लगते दिखे। 

राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होने के बाद मणिपुर के मुद्दे पर नियम 267 के तहत चर्चा पर जोर दे रहे नेता विपक्ष खरगे ने कहा कि इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।मैंने अपने नोटिस में 8 पॉइंट में ये बताया है कि नियम 267 के तहत चर्चा क्यों होनी चाहिए। हमारा सुझाव है कि आप हमें अपने चेंबर में बुलाइए और 1 बजे तक सदन को स्थगित कीजिए। इस मसले पर समाधान होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि कल मैंने आपसे अनुरोध किया था, लेकिन आप शायद नाराज थे। 

इस पर धनखड़ ने मजाकिया लहजे में कहा कि मैं 45 सालों से शादीशुदा हूं, गुस्सा नहीं करता। वकील के तौर पर भी हमें गुस्सा करने का अधिकार नहीं है।इसके बाद उन्होंने कांग्रेस नेता पी.चिदंबरम का जिक्र किया और कहा कि चिदंबरम एक प्रख्यात वरिष्ठ वकील हैं। वह जानते हैं कि एक वरिष्ठ वकील के रूप में हमें गुस्सा करने का कोई अधिकार नहीं है, कम से कम प्राधिकार के समक्ष तथा आप (नेता प्रतिपक्ष खरगे) एक प्राधिकार हैं। मैं कभी गुस्सा नहीं करता। सभापति के इस बयान को सुनकर सदन में मौजूद सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर के सदस्य खुद को ठहाके मारने से नहीं रोक सके।

खड़गे ने कहा- सभापति प्रधानमंत्री को डिफेंड करते हैं

इसके बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा की सभापति प्रधानमंत्री को डिफेंड करते हैं, पता नहीं क्यों करते हैं? उनकी इस टिप्पणी का जवाब देते हुए सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा, मुझे प्रधानमंत्री को डिफेंड करने की जरूरत नहीं है। मुझे किसी का बचाव करने की आवश्यकता नहीं है।मुझे संविधान…आपके अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता है। एलओपी का ऐसा अवलोकन अच्छा नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिख रहा है, भारत इतनी तेजी से विकास कर रहा है, जितना पहले कभी नहीं करता था। इसको लेकर भी विपक्ष के सांसदों ने हंगामा किया।

सभापति ने कहा-की मौजूदगी को लेकर कोई निर्देश नहीं दे सकते

इससे पहले कल राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सभापति जगदीप धनखड़ के बीच सवाल जवाब देखने को मिला था। खड़गे इस बारे में बातें बता रहे थे कि मणिपुर हिंसा मुद्दे पर सदन में चर्चा क्यों होनी चाहिए और प्रधानमंत्री को सदन में आकर बयान क्यों देना चाहिए। इस पर वीपी जगदीप धनखड़ ने कहा कि वह सदन में प्रधानमंत्री की मौजूदगी को लेकर कोई निर्देश नहीं दे सकते। उन्होंने कहा, इस कुर्सी से, यदि मैं माननीय प्रधानमंत्री की सदन में उपस्थिति के लिए कोई निर्देश देता हूं, तो मैं अपनी शपथ का उल्लंघन करूंगा। ऐसा कभी नहीं किया गया। इस सभापति की ओर से इस प्रकार का कोई निर्देश, जो कभी जारी नहीं किया गया हो, जारी नहीं किया जाएगा। आपको अच्छी सलाह नहीं दी जा रही है। मैं ऐसा कोई निर्देश नहीं दे सकता।

संसद में हंगामे से नाराज लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को मनाने की कोशिश, सत्ता पक्ष और विपक्ष के बड़े नेताओं ने की मुलाकात

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संसद के मानसून सत्र को शुरू हुए 12 दिन का समय बीत चुका है लेकिन मणिपुर मुद्दे पर हंगामे के चलेत सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। सांसदों के हंगामे से सभापति ओम बिरला भी नाराज हैं और लोकसभा की कार्यवाही का संचालन नहीं कर रहे हैं।लोकसभा में सांसदों द्वारा किए जाने वाले हंगामे से आहत होकर स्पीकर ओम बिरला में कार्रवाई में भाग लेने से इनकार कर दिया था। अब इसके बाद कई सांसद उन्हें मनाने की कवायद में जुट गए हैं। इस क्रम तमाम दलों के सांसद उन्हें मनाने के लिए पहुंचे।

सांसदों ने की सभापति से मुलाकात

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले, एनके प्रेमचंद्रन, बसपा के रितेश पांडे, भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल, टीएमसी सांसद सौगत राय, एनसीपी सांसद फारुख अब्दुल्ला और डीएमके सांसद कनिमोझी ने आज लोकसभा सभापति ओम बिरला से मुलाकात की। इस मुलाकात में सांसदों ने लोकसभा स्पीकर से सदन की कार्यवाही का संचालने करने की अपील की गई।इस दौरान सभी ने आश्वासन दिया कि वे सदन की गरिमा बनाए रखेंगे।

लगातार हंगामे के कारण सभापति नाराज

इससे पहले हंगामे से नाराज होकर ओम बिरला ने कहा था कि जब तक दोनों पक्ष संसद सुचारू रूप से चलाने में पहल नहीं करते हैं, तब तक वे सदन की अध्यक्षता नहीं करेंगे। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पक्ष-विपक्ष के सदस्यों को अपनी नाराजगी जाहिर की थी और कहा उनके लिए सदन की गरिमा सर्वोच्च, है, सदन में मर्यादा कायम करना सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है, लेकिन कुछ सदस्यों का व्यवहार सदन की उच्च परपराओं के विपरीत है।

दरअसल, 1 अगस्त को लोकसभा में विपक्ष के नेता नारेबाजी करते हुए न सिर्फ वेल में आ गए गए थे बल्कि चेयर की तरफ पर्चे भी फेंके। ओम बिरला ने कहा कि दिल्ली सेवा बिल पेश करने के दौरान जिस तरह का हंगामा किया गया, एक भी बात नहीं सुनने दी, ऐसे सदन का कामकाज नहीं हो सकता।इसके बाद अगले दिन ओम बिरला लोकसभा में नहीं गए।

बता दें, संसद का मौजूदा सत्र 20 जुलाई से शुरू हुआ था, लेकिन विपक्ष लगातार हंगामा कर रहा है और कोई कामकाज नहीं करने दे रहा है। विपक्ष ने पहले मणिपुर हिंसा पर चर्चा की बात की। सरकार भी राजी हो गई तो किस नियम के तहत चर्चा हो, इस पर विवाद शुरू कर दिया। विपक्ष इस बात पर अड़ा है कि प्रधानमंत्री को सदन में आना चाहिए और जवाब देना चाहिए। जबकि कानून व्यवस्था का मामला होने के कारण यह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जिम्मेदारी और वे सदन में बयान देने के लिए तैयार है।

जी20 समिट से पहले हिंसा की चपेट में देश, जैसे ट्रंप के भारत दौरे के दौरान हुआ था दिल्ली दंगा, क्या वैसे ही एक बार फिर रची गई देश को बदनाम करने क

#Was_there_conspiracy_to_defame_country_again

दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह जी 20 के सालाना शिखर सम्मेलन के लिए भारत पूरी तरह से तैयार है। जी 20 शिखर सम्मेलन का आयोजन 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में होना है। बतौर अध्यक्ष इस सम्मेलन के लिए एजेंडे को अंतिम रूप देने की जिम्मेदारी भारत के पास ही है। इस मकसद से पिछले 8 महीने से जी 20 से जुड़ी कई बैठकों का आयोजन देश के 50 से भी ज्यादा शहरों में किया गया। हालांकि, जी 20 के सालाना शिखर सम्मेलन के आयोजन से एक महीने पहले देश एक बार फिर हिंसा की चपेट में हैं। राजधानी दिल्ली के आसपास सांप्रदायिक हिंसा भड़ गई है।

इस बीच, भारत के सबसे अच्छे दोस्तों में शामिल देश अमेरिका ने नूंह हिंसा को लेकर प्रतिक्रिया दी है। अमेरिका के विदेश विभाग ने शांति का आह्वान और पार्टियों से हिंसा से दूर रहने का आग्रह किया। अमेरिकी प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि हमेशा की तरह हम अब भी शांति बनाए रखने की अपील करते हैं। वहीं, उन्होंने पार्टियों से हिंसक कार्रवाइयों से दूर रहने का आग्रह किया। मिलर ने आगे कहा कि हमें इस बारे में नहीं पता था। अमेरिका के लोगों से सुनने में आया। फिर दूतावास से संपर्क किया है। 

यही नहीं पिछले दो दिनों से ग्लोबल मीडिया में गुरुग्राम हिंसा की खबर छाई हुई है। अमेरिकी मीडिया संस्थान सीएनएन ने ट्रेन में मुस्लिम समुदाय के लोगों की गोली मारकर हत्या और हिंसाओं को कवर किया। ‘वर्ल्ड लीडर समिट से एक महीने पहले भारत में घातक सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी’ टाइटल के साथ लिखा कि दिल्ली में जी20 नेताओं के स्वागत से कुछ हफ्ते पहले भारत में गहरी सांप्रदायिक दरार उजागर हुई है।

जी हां अगले महीने दुनिया के ताकतवर नेता हिंदुस्तान में होंगे। ऐसे में देश की राजधानी दिल्ली के आसपास फैली हिंसा ने चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में एक बार फिर से 2020 में दिल्ली दंगे की याद हो आई है जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर थे।ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या एक बार फिर देश को बदनाम करने की साजिश रची गई है? क्या एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने देश को कमजोर दिखाने का षडयंत्र किया जा रहा है? 

दरअसल, 2020 में दिल्ली में 23-24 फरवरी को हिंसा भड़क उठी थी। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन के बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए। जिसमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन दो दिनों के दौरान दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगे भड़के थे, उस दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर थे। ट्रम्प 24 और 25 फरवरी 2020 को भारत में थे - दो दिन दिल्ली जली। जाहिर है, चुनावी साल में अंतरराष्ट्रीय मीडिया ट्रंप के पीछे था और उन्मादी दंगाइयों को पता था कि हिंसा और उसके बाद पुलिस कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय कवरेज मिलेगा। 

दिल्ली में हुए इन दंगों को लेकर पुलिस ने एफआईआर में गहरी साजिश का जिक्र किया था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का कहना था कि जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी (जेसीसी), पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई), पिंजरा तोड़, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट से जुड़े लोगों ने साजिश के तहत दिल्ली में दंगे कराए। पीएम मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि इसके पीछे राजनीति का एक ऐसा डिजाइन है जो राष्ट्र के सौहार्द को खंडित करने का इरादा रखता है। यह सिर्फ अगर कानून का विरोध होता तो सरकार के आश्वसान के बाद खत्म हो जाना चाहिए था। पुलिस को शाहीन बाग में ऐसे लोगों के शामिल होने की सूचना मिली थी जिनका संबंध आइएस जैसे संगठन से था। पुलिस का कहना था कि नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए विरोधी प्रदर्शनों का इस्तेमाल मुस्लिम युवाओं को भड़काकर हिंसा के लिए करना चाहते थे।