जदयू,में जान फुकने 16 अक्टूबर को रांची आएंगे ललन सिंह,क्या झारखंड में संगठन को नए सिरे से खड़ा करना जदयू के लिए है बड़ी चुनौती...?
राँची, (डेस्क): बिहार में भाजपा से नाता तोड़ राजद से गठबंधन जोड़ सरकार बनाने के बाद जनता दल यूनाइडेट (जेडीयू) झारखंड में अपनी खोयी सियासी जमीन तलाशने में जुट गयी है। इसके पहले जदयू की कमान झारखंड के कुर्मी जाति के नेता पूर्व विधायक खीरू महतो को सौंपी गई। फिर उन्हें बिहार से राज्यसभा का सदस्य बना कर भेजा गया। अब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह 16 अक्टूबर को संगठन में नई जान फूंकने आ रहे हैं।
जदयू के लिए झारखंड में संगठन को नए सिरे से खड़ा करना बड़ी चुनौती होगी। पुराने और स्थापित चेहरे पार्टी छोड़ चुके हैं। झारखंड में जदयू का पिछले दो विधानसभा चुनावों में खाता तक नहीं खुला। प्रदेश की नई कमेटी और जिलों में संगठन का विस्तार तक नहीं हो पाया है। पिछले दो दशक में जदयू यहां अपने सर्वाधिक बुरे दिनों से गुजर रहा है।
झारखंड में लंबे समय तक भाजपा के साथ सत्ता की राजनीति करने और झामुमो-राजद-कांग्रेस का विरोधी रहने के कारण जदयू की अलग पहचान रही है। बिहार में नए सियासी समीकरण बनने के बाद झारखंड में अब जदयू को राजद, झामुमो और कांग्रेस का साझीदार बनकर राजनीति करनी होगी।
साझीदारी में जदयू को विधानसभा की सीटें मिलेंगी या नहीं, यह सवाल तो भविष्य के गर्त में है। वर्तमान में जदयू को अपना सियासी वजूद कायम करने के लिए काफी जद्दोजहद करनी होगी।
आदिवासी नेतृत्व रहा विफल,खीरु महतो बनाये गए अध्यक्ष
झारखंड में लगातार नेतृत्व के बदलाव के कारण संगठन पर प्रतिकूल असर पड़ा है। इंदर सिंह नामधारी, गौतम सागर राणा, जलेश्वर महतो जैसे नेताओं से जदयू को यहां पहचान मिली। बाद में जदयू ने यहां आदिवासी नेतृत्व भी खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हो पाया। सालखन मुर्मू दल में न जान फूंक पाए न कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी कर पाए।
खीरू महतो को दोबारा अध्यक्ष बनाया गया है। उनका पहला कार्यकाल भी बहुत दमदार नहीं था। दूसरे कार्यकाल में भी वे अभी तक कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं। संगठन के नामी और चर्चित चेहरे पहले ही पार्टी से बाहर हो चुके हैं।
2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 18 सीटों पर उतारे थे प्रत्याशी
2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें 6 पर जीत मिली थी। वोट प्रतिशत 4 फीसदी रहा। एनडीए सरकार में जदयू की हिस्सेदारी थी। हालांकि, 2009 में वोट प्रतिशत और सीटों में भी गिरावट आई। भाजपा के साथ गठबंधन में जदयू को 14 सीटें मिलीं, जिसमें मात्र 2 सीटों पर पार्टी जीत दर्ज कर सकी। वोट भी घटकर 4 से 2.78 प्रतिशत रह गया।
Jun 17 2023, 14:41