न्यूरोलाजी विभाग का स्थापना दिवस और पार्किंसंस रोग जागरूकता कार्यक्रम
लखनऊ। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के न्यूरोलॉजी विभाग की ओर से 15 अप्रैल को सुबह 7 बजे पार्किंसंस जागरूकता वॉक का आयोजन किया गया। इसे न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर संजीव झा ने हरी झंडी दिखा कर रवाना किया, जिसके बाद अपराह्न 1:00 बजे संस्थान के लेक्चर थियेटर में एक वैकल्पिक चिकित्सा सत्र आयोजित किया गया।
न्यूरोलॉजी विभाग के स्थापना दिवस कार्यक्रम और पार्किंसंस रोग पर दूसरे जागरूकता कार्यक्रम का उद्घाटन संस्थान के कार्यवाहक निदेशक प्रो. एस.पी. अंबेश ने किया, जो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने बढ़ती उम्र की आबादी के कारण पार्किंसंस रोग के बढ़ते प्रसार के बारे में बात की और इस तरह के और अधिक जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रोफेसर संजीव झा ने पार्किंसंस रोग में तनाव की भूमिका के बारे में बात की और सकारात्मक सोच पर जोर दिया। डॉ रुचिका टंडन ने कहा कि पार्किंसंस रोग में मस्तिष्क के बेसल गैन्ग्लिया में डोपामाइन की कमी शामिल है और सुझाव दिया कि दवाओं से संबंधित कुछ साइड इफेक्ट वाले रोगियों में डीप ब्रेन स्टिमुलेशन की भूमिका उत्पन्न होती है।न्यूरोसर्जरी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर राजकुमार ने कहा कि कुछ आयुर्वेदिक दवाएं भी हैं, जो पार्किंसंस के लक्षणों से राहत दिला सकती हैं।
प्रोफेसर नवनीत कुमार, पूर्व प्राचार्य, जीएसवीएम, मेडिकल कॉलेज, कानपुर ने संस्थान के न्यूरोलॉजी विभाग को बधाई दी और पार्किंसंस रोग के रोगियों में प्राकृतिक उपचार और जीवन शैली प्रबंधन की भूमिका पर भी जोर दिया।
प्रोफेसर दीपिका जोशी, विभागाध्यक्ष न्यूरोलॉजी, आईएमएस, बीएचयू, वाराणसी ने मरीजों को समय पर दवा लेने और जरूरत पड़ने पर डीबीएस से परहेज न करने की सलाह दी। उन्होंने प्राकृतिक उत्पादों पर शोध पर भी जोर दिया। प्रोफेसर आर.के. गर्ग ने हंसी को थेरेपी के तौर पर बहुत प्रभावी बताया।डॉ जफर नियाज, प्रोफेसर, रेडियोलॉजी, एसजीपीजीआई ने पार्किंसंस रोग के निदान हेतु एम आर आई की आवश्यकता के विषय में जानकारी दी।
डाक्टर पवन कुमार वर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, न्यूरोसर्जरी विभाग, एसजीपीजीआई ने कहा कि डीबीएस में एक बहुत छोटा चीरा शामिल होता है और जरूरत पड़ने पर इसे उलटा भी किया जा सकता है। तत्पश्चात विभाग के रेजिडेन्ट चिकित्सकों द्वारा इस बीमारी से पीड़ित उन रोगियों के मामले पर चर्चा की गई, जो डीबीएस से लाभान्वित हुए हैं।डॉ. शिल्पी त्रिपाठी द्वारा इस रोग के प्रबंधन की दिशा में आहार से संबंधित विशिष्टताओं को बताया गया और श्री रितेश सिंह द्वारा एक न्यूरोस्टिम्यूलेशन के रूप में संगीत की भूमिका पर जोर दिया गया।
इस अवसर पर डॉ. वी के पालीवाल, प्रोफेसर, न्यूरोलॉजी व विभाग के अन्य संकाय सदस्य भी उपस्थित थे।धन्यवाद ज्ञापन डॉ रुचिका टंडन द्वारा किया गया ।इस अवसर पर संस्थान के निदेशक ने रोगियों के बीच पार्किंसंस सप्ताह प्रतियोगिता के विजेताओं को स्मृति चिन्ह भी वितरित किए। कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रत्येक रोगी को भी स्मृति चिन्ह प्रदान किये गये ।
Apr 17 2023, 07:58