तांत्रिक सिद्धियां के लिए दुर्लभ है।पीला पलाश का फुल ,होलिका दहन के दिन किये जाते हैं चमत्कारी टोटके
विजय कुमार की रिपोर्ट
सरायकेला : झारखंड राज्य में मूल्यवान व बहु आयामी वस्तुएं काफी दुर्लभ होता है। ऐसे ही एक दुर्लभ वस्तु है पीला व सफ़ेद रंग के पलाश का फुल।
वसंत ऋतु में झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल में बहुतायात से केशरिया रंग के पलाश फुल पाया जाता है। अन्य राज्यों में कम संख्या में पलाश का वृक्ष होता है। परंतु दुर्लभ प्रजाति के पीला व सफेद रंग के पलाश फुल काफी कम पाया जाता है। तीनों रंग के पलाश फुल में अलग अलग गुणों का भंडार है। पलास एक पतझड़ वृक्ष है जिसे भारत में छूल,परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, केसू आदि नाम से जाना जाता है।
जिसके फूल बहुत ही आकर्षक होते हैं। पतझड़ के मौसम में वन, जंगल व गांवों के आसपास पलाश फुल से धरती रंगीन दिखने लगता है। पलाश का फूल उत्तर प्रदेश और झारखण्ड का राज्य पुष्प है । और इसको 'भारतीय डाकतार विभाग' द्वारा डाक टिकट पर प्रकाशित कर सम्मानित किया जा चुका है।
प्राचीन काल से ही होली के रंग इसके फूलो से तैयार किये जाते रहे है। भारत भर मे इसे जाना जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा के अनुसार इस वृक्ष के फुल, फल तना, पत्ता व जड़ औषधिय गुणों से भरपूर है। पलाश में तीन रंग केशरिया, पीला व सफेद रंग का फुल होता है। सफेद फुल वाले पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेज़ों में तीनों ही प्रकार के पलाश का वर्णन मिलता है। पीले फुल वाला पलाश का उपयोग तांत्रिक गति-विधियों में भी बहुतायत से किया जाता है।
प्रत्येक वर्ष होलिका दहन के दिन और रात्रि में तंत्र सिद्धि के लिए तांत्रिक वन जंगल में पीला पलाश फुल के तलाश में रहते हैं। पीला व सफेद फुल का वृक्ष सरायकेला खरसावां जिला में पाया जाता है। इस वृक्ष को अन्य घरेलु उपयोग में भी लाया जाता है। पलाश की पत्तियों का उपयोग वैवाहिक कार्यक्रमों मे मंडपाच्छादन के लिए और मेहमानों को भोजन कराने के लिए दोना पत्तल के रूप मेें बहुत प्रचलित था।
यह गांव में सस्ते इंधन का विकल्प है और जलाऊ लकड़ी के रूप मेें उपयोग होता है। पलाश के फूलों का रस तितली, मधुमक्खियों बंदरों के अलावा बच्चों को भी बहुत मधुर लगता है।
Mar 03 2023, 14:41