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तालिबान के सत्ता में आने के बाद पहली बार भारत दौरे पर अफगानी विदेश मंत्री, पाकिस्तान की बढ़ी परेशानी

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तालिबान के सत्ता में आने के बाद पहली बार अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी भारत दौरे पर नई दिल्ली पहुंचे हैं। तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी आज ही भारत पहुंचे हैं। यह भारत और अफगानिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंधों को नई दिशा देने वाला पहला दौरा है। मुत्ताकी विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात करेंगे। मुत्ताकी दारूल उलूम देवबंद मदरसे और ताजमहल भी जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति से छूट हासिल करने के बाद मुत्ताकी भारत आ रहे हैं। दरअसल, मुत्ताकी संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में शामिल हैं।

तालिबान ने अगस्त 2021 में अशरफ गनी की सरकार गिरने के बाद काबुल पर कब्जा कर लिया था। करीब चार वर्ष पूर्व अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज होने के बाद वहां के विदेश मंत्री का यह पहला भारत दौरा है। यह पहली बार है जब तालिबान शासन के किसी वरिष्ठ मंत्री का भारत दौरा इतने उच्च स्तर पर हो रहा है। इस यात्रा का मकसद भारत-अफगानिस्तान संबंधों को मजबूत करना, व्यापार और बुनियादी ढांचे से जुड़ी चुनौतियों पर बात करना और क्षेत्रीय सुरक्षा पर चर्चा करना है।

रद्द हो गया था मुत्ताकी का दौरा

मुत्ताकी को पिछले महीने ही नई दिल्ली आना था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की ओर से लगाए गए यात्रा प्रतिबंध के कारण उनका यह दौरा रद्द कर दिया गया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति ने 30 सितंबर को मुत्ताकी को अस्थायी छूट देते हुए 9 से 16 अक्टूबर तक नई दिल्ली आने की अनुमति दी थी।

क्या है मुत्ताकी के दौरे का एजेंडा?

रॉयटर्स और अन्य रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुत्ताकी न सिर्फ भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर से मिलेंगे, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, भारतीय कारोबारी संगठनों और भारत में रह रहे अफगान नागरिकों से भी मुलाकात करेंगे। पीएम मोदी से उनकी मुलाकात होगी या नहीं, फिलहाल इसकी पुष्टि नहीं की गई है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बातचीत का एजेंडा कुछ इस तरह हो सकता है:

1. व्यापारिक सहयोग पर चर्चा- दोनों देशों के बीच सूखे मेवों, मसालों और दवाओं के निर्यात-आयात को लेकर नए रास्ते तलाशे जाएंगे।

2. स्वास्थ्य क्षेत्र में साझेदारी- भारत अफगानिस्तान को चिकित्सा सहायता, दवाएं और मेडिकल प्रशिक्षण देने पर सहमत हो सकता है।

3. कांसुलर सेवाएं और वीजा प्रक्रिया- अफगान छात्रों और मरीजों के लिए वीजा में ढील और नई कांसुलर सुविधाओं की बात होगी।

4. दूतावासों का विस्तार- काबुल और नई दिल्ली दोनों में पूरी तरह सक्रिय दूतावास और कांसुलेट बहाल करने पर चर्चा होगी।

5. नए राजदूत की नियुक्ति- तालिबान चाहता है कि भारत में अब उनका नियुक्त प्रतिनिधि ही राजदूत के रूप में काम करे।

6. निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स- तालिबान भारत से पुराने प्रोजेक्ट्स दोबारा शुरू करने और नई निवेश योजनाओं की मांग कर सकता है।

7. सुरक्षा गारंटी- भारत अपने सुरक्षा हितों की रक्षा और आतंकवाद के खिलाफ ठोस आश्वासन मांग सकता है।

भारत-पाक तनाव के बीच मुत्ताकी का दौरा कितना अहम?

भारत-पाक संबंधों में आए हालिया तनाव के बीच मुत्ताकी का दौरा दक्षिण एशिया के सुरक्षा परिदृश्य के लिए महत्वपूर्ण है और इस पर सुरक्षा विशेषज्ञों की भी निगाहें हैं। विदेश मामलों के जानकार सुशांत सरीन ने कहा, मुत्ताकी का दौरा इस वास्तविकता को दर्शाता है, जिसमें कूटनीतिक स्तर पर भारत और तालिबान सरकार के रिश्ते बेहतरी की ओर जा रहे हैं। भारत का हित अफगानिस्तान की स्थिरता में है। भारत अपनी क्षमतानुसार आर्थिक स्तर पर अफगानिस्तान की जरूरतें पूरी कर सकता है।

पुतिन ने तालिबान को दी मान्यता, ऐसा करने वाला पहला देश बना, क्या भारत ले सकेगा ये फैसला?

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रूस ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है। ऐसा करने वाला वह पहला देश है।वर्ष 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान में उसकी सरकार को औपचारिक रूप से अभी तक अन्य किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है। मगर अब रूस ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। इसके साथ ही मॉस्को ने तालिबान को अपने प्रतिबंधित संगठनों की सूची से भी हटा दिया।

रूसी विदेश मंत्रालय ने बताया कि उसने अफगानिस्तान के नए राजदूत गुल हसन हसन से प्रमाण पत्र प्राप्त किया है। मंत्रालय ने कहा कि अफगान सरकार की आधिकारिक मान्यता द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देगी। रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा हमारा मानना है कि अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात की सरकार को आधिकारिक मान्यता देने से हमारे देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादक द्विपक्षीय सहयोग के विकास को बढ़ावा मिलेगा।

“साहसी निर्णय दूसरों के लिए उदाहरण होगा”

वहीं, अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया और तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे “अन्य देशों के लिए एक अच्छा उदाहरण” कहा। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने अफगानिस्तान में रूस के राजदूत दिमित्री झिरनोव के साथ काबुल में बैठक की। एक्स पर बैठक का वीडियो पोस्ट करते हुए मुत्ताकी ने कहा, यह साहसी निर्णय दूसरों के लिए उदाहरण होगा। अब जब मान्यता की प्रक्रिया शुरू हो गई है तो रूस सभी से आगे है। मुत्ताकी ने कहा, 'यह हमारे संबंधों के इतिहास में एक बड़ा मील का पत्थर है।

2021 में लागू हुआ था तालिबानी शासन

तालिबान का शासन 2021 में अफगानिस्तान में लागू हुआ था। तालिबान ने अगस्त 2021 में अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। जिसके बाद से वह देश पर शासन कर रहा है। हालांकि, उसे अभी तक किसी देश ने उसकी सरकार को मान्यता नहीं दी थी।

क्या भारत भी तालिबान को मान्यता देगा?

पुतिन के इस फैसले के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत भी तालिबान को मान्यता देगा? दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर के समय पाकिस्तान के दावों पर तालिबान ने भारत का साथ दिया। बिक्रम मिस्री तालिबान विदेश मंत्री से मिल भी चुके हैं।

चीन बढ़ा रहा भारत की टेंशनः पाकिस्‍तान-तालिबान के साथ मिलकर चली नई चाल, काबुल तक होगा CPEC का विस्‍तार

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चीन ये तो अच्छी तरह जानता है कि भारत का मुकाबला करने के लिए उसे साथियों की जरूरत है। यही कारण है कि चीन ने भारत को टेंशन देने वाली बड़ी चाल चली है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान के साथ खुलकर खड़े होने के बाद चीन एक और साजिश कर रहा है। चीन, पाकिस्तान और तालिबान के बीच सुलह समझौता करवाने में जुटा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के साथ खड़ी तालिबान सरकार को चीन साधने में लगा हुआ है। बुधवार को चीन-पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने एक बड़ा फैसला लिया है, भारत की टेंशन बढ़ाने वाला है।

बुधवार को इशाक डार ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी और अफगानिस्तान के अंतरिम विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की। इस दौरान बीजिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल के तहत बन रहे चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने पर सहमति व्यक्त की गई। 

बैठक के बाद इशाक डार ने कहा, पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और विकास के लिए एक साथ खड़े हैं। उन्होंने तीनों नेताओं की एक साथ तस्वीर भी साझा की। इशाक डार ने सोशल मीडिया पर लिखा कि पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान क्षेत्रीय शांति और विकास के लिए एकजुट हैं। बैठक में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को बढ़ावा देने और सीपीईसी को अफगानिस्तान तक ले जाने का फैसला हुआ। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और क्षेत्र में स्थिरता के लिए भी प्रतिबद्धता जताई गई है।

पाकिस्‍तान-तालिबान का तनाव कम करने की कोशिश

पाकिस्तान के विदेश मंत्री तीन दिवसीय बीजिंग यात्रा पर हैं, जो भारत द्वारा पाकिस्तान और इसके कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी स्थलों को निशाना बनाकर शुरू किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पहली उच्चस्तरीय वार्ता है। इस बैठक में सीपीईसी को लेकर चर्चा भले हुई है, लेकिन असल में इसे चीन की अपने पक्के दोस्त पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच तनाव कम कराने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

क्या चाहता है चीन?

-चीन की कोशिश है कि फिर से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पुराने रिश्ते बहाल हो. दोनों ही देश आपसी भाईचारे के साथ रहे. पिछले कुछ सालों से तालिबान और पाकिस्तान के बीच के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे है.

-चीन की कोशिश अपना व्यापार अफगानिस्तान तक बढ़ाने की है. इसी कड़ी में चीन ने अफगानिस्तान में CPEC प्रोजेक्ट को विस्तार करने का फैसला किया है. यह प्रोजेक्ट अभी पाकिस्तान में है.

-चीन की कोशिश भारत को अफगानिस्तान में रोकने की है. 10 मई को काबुल में जो बैठक हुई थी, उसमें चीन और पाकिस्तान ने तालिबान से कहा था कि भारत को सिर्फ कूटनीतिक दायरे तक सीमित किया जाए

नई दिल्ली-काबुल के सुधरते रिश्तों पर चीन का बुरी नजर

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंधों को सुधारने की कोशिश ऐसे समय में हो रही है, जब नई दिल्ली और काबुल के रिश्ते हाल के दिनों में तेजी से गहरे हुए हैं। बीती 15 मई को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कार्यवाहक अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से बात की थी, जिसमें दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ सहयोग को और गहरा करने पर चर्चा की थी। यह अफगानिस्तान में तालिबान प्रशासन की वापसी के बाद पहली मंत्री स्तरीय बातचीत थी। ऐसे में सवाल है कि क्या चीन की कोशिश के बाद तालिबान पाकिस्तान को लेकर नरम रुख अपनाएंगे।

पाकिस्तान से तनाव के बीच एस जयशंकर ने अफगानिस्तान के विदेश मंत्री से की बात, नए कूटनीति संबंधों का आगाज

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पहले से ही खराब चल रहे भारत और पाकिस्तान के संबंध इन दिनों नीचले स्तर पर पहुंच गए हैं। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए अटैक और उसके बाद भारत की ओर से की गई एयर स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के बीच युद्ध के हालात पैदा हो गए थे। हालांकि, भारत की जवाबी कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने घूटने टेक दिए। अब भारत-पाक का संघर्ष तो खत्म हो गया है, लेकिन तनाव बरकरार है। इस बीच भारत ने अफगानिस्तान के साथ ने कूटनीतिरक संबंधों की शुरूआत की है। 

दरअसल, एस जयशंकर ने पहली बार अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी से फोन पर बात की है। एस जयशंकर ने ने गुरुवार को अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी के साथ फोन पर बात की। इस बातचीत में भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने के कोशिशों का भी जिक्र हुआ।

भारत-पाक तनाव के बीच अफगानिस्तान का रुख किस तरफ

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 मई को सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर जानकारी दी कि उन्होंने तालिबानी सरकार के विदेश मंत्री से भारत-पाक तनाव के बाद बातचीत की। जयशंकर ने पोस्ट कर कहा, अफगान के एक्टिंग विदेश मंत्री मावलवी अमीर खान मुत्ताकी के साथ अच्छी बातचीत हुई। विदेश मंत्री ने यह बताते हुए कि भारत-पाक तनाव के बीच अफगानिस्तान का रुख किस तरफ है। उन्होंने कहा, पहलगाम आतंकवादी हमले की उनकी निंदा की मैं सराहना करता हूं। दरअसल, अफगानिस्तान ने पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले की निंदा की थी, इस अटैक में 26 टूरिस्ट मारे गए थे। 

तालिबान सरकार के स्टैंड की तारीफ

इसी के साथ जहां पाकिस्तान की तरफ से भारत और अफगानिस्तान के बीच रिश्तों में आग लगाने की कोशिश की गई, उसको लेकर भी जयशंकर ने तालिबान सरकार के स्टैंड की तारीफ की।

उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिए बिना उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा, झूठी और आधारहीन रिपोर्टों के जरिए से भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने की हालिया कोशिशों को अफगानिस्तान ने जो अस्वीकार किया उसका भी स्वागत करता हूं। अफगान लोगों के साथ हमारी पारंपरिक दोस्ती और विकास-सहयोग के लिए लगातार दोनों देशों के एक दूसरे के सहयोग को भी सामने रखा।

बांग्लादेश में बढ़ता कट्टरपंथःमहिलाओं का फुटबॉल खेलना "इस्लाम विरोधी", हाथ पर हाथ धरे बैठे यूनुस

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भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में कट्टरपंथियों की हिम्मत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। एक तरफ जहां वो अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ वो अब महिलाओं के साथ भी सौतेला व्यवहार शुरू हो गया है। सीधे शब्दों में कहें तो बांग्लादेश में तालिबान राज कायम हो गया है। बांग्लादेश में अब महिलाओं का फुटबॉल खेलना इस्लाम विरोधी हो गया है। कट्टरपंथियों ने महिला फुटबॉल मैच को रद्द करा दिया। यह सब तब हो रहा है, जब नोबेल पुरस्कार वाले यूनुस का बांग्लादेश में राज है।

दरअसल, बांग्लादेश के अकेलपुर उपजिला में 28 जनवरी को होने वाले एक महिला फुटबॉल मैच पर भारी विरोध हुआ, जिसमें स्थानीय लोगों ने इसे इस्लामिक विरोधी बताते हुए मैदान में तोड़फोड़ की। अकेलपुर उपजिला में टी-स्टार नाम का स्थानीय स्पोर्ट्स क्लब है, जिसने तिलकपुर हाई स्कूल के मैदान में दो महिला टीमों के बीच फुटबॉल मैच का आयोजन किया था। इस मैच की तैयारियां पिछले एक महीने से चल रही थीं और टिकट भी बेचे जा रहे थे। मैच के लिए जॉयपुरहाट और रंगपुर की महिला टीमों के बीच मुकाबला होना था। लेकिन मैच से पहले ही मदरसा छात्रों और स्थानीय इस्लामवादी लोगों के एक वर्ग ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने मैदान में पहुंचकर हंगामा मचाया और तोड़फोड़ की। उनका कहना था कि महिलाओं का खेल खेलना इस्लामिक मान्यताओं के खिलाफ है। विरोध के कारण आयोजन रद्द करना पड़ा।

बांग्लादेश में पूरी तरह से कट्टरपंथियों का कब्जा हो चुका है। उनको पता है कि वे धर्म के नाम पर हिंसा कर यूनुस के राज में आसानी से बच सकते हैं। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं के घरों को जला दिया, धार्मिक स्थलों को तोड़-फोड़ दिया, शिक्षकों पर हमला किया और ईशनिंदा के आरोपों पर लोगों की हत्या कर दी - फिर भी वे खुलेआम घूम रहे हैं। दूसरी ओर मोहम्मद यूनुस की सरकार चुपचाप बैठकर तमाशा देख रही है। जब कोई हिंसा के खिलाफ आवाज उठाता है तो उसे देशद्रोही, गद्दार, इस्लाम विरोधी का तमगा देकर परेशान किया जाता है

तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का महत्व: भारत-पाकिस्तान आतंकवाद संबंध और वैश्विक सुरक्षा पर प्रभाव

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(बाएं से दाएं): डेविड कोलमैन हेडली उर्फ ​​दाऊद गिलानी, हाफिज सईद और तहव्वुर राणा

26/11 के मुंबई हमले के बाद से आतंकवाद और वैश्विक सुरक्षा को लेकर एक नई दृष्टिकोण सामने आई है। यह हमला न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी थी कि आतंकवाद के जड़ें केवल एक क्षेत्र में नहीं बल्कि कई देशों में फैली हुई हैं। 25 जनवरी 2025 को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी देने के बाद, यह मामला एक बार फिर से वैश्विक सुरक्षा और पाकिस्तान की भूमिका को प्रमुख रूप से उजागर करता है। राणा, जो 26/11 हमले में शामिल था, उसकी गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण के परिणामस्वरूप नई जानकारी और प्रमाण मिल सकते हैं, जो आतंकवाद की जड़ों को और गहरे तक समझने में मदद करेगा। 

1. 26/11 की जांच और तहव्वुर राणा का कनेक्शन

तहव्वुर राणा, जो पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, 26/11 के मुंबई हमले में प्रमुख भूमिका निभाने वालों में से एक था। वह डेविड कोलमैन हेडली के सहयोगी के रूप में काम कर रहा था, जिसने भारत में आतंकवादी ठिकानों का सर्वेक्षण किया था। राणा ने इस हमले के लिए जरूरी रसद, योजना और मार्गदर्शन प्रदान किया था। 25 जनवरी को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसके प्रत्यर्पण को मंजूरी दी, जिससे अब उसे भारत लाया जाएगा। यह महत्वपूर्ण कदम इसलिए है क्योंकि राणा से प्राप्त जानकारी से 26/11 के हमले के पीछे की साजिश और पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी नेटवर्क के बारे में नई जानकारियां मिल सकती हैं।

2. पाकिस्तान का आतंकवाद के केंद्र के रूप में उभरना

तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण पाकिस्तान को वैश्विक आतंकवाद के केंद्र के रूप में फिर से उजागर कर सकता है। पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी समूह जैसे लश्कर-ए-तैयबा (LET) और जैश-ए-मोहम्मद (JEM), अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी अभियानों में सक्रिय हैं। ये समूह न केवल भारत बल्कि अफगानिस्तान और अन्य देशों में भी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। राणा का भारत प्रत्यर्पण पाकिस्तान के आतंकवाद में सक्रिय भूमिका को दर्शाता है और यह साबित करता है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद को एक राज्य नीति के रूप में अपनाया है।

3. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई संभावना

राणा का प्रत्यर्पण भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को नई दिशा में जांच करने का अवसर प्रदान करेगा। वह लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद, पाकिस्तानी आईएसआई और अन्य आतंकवादी समूहों के रिश्तों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसके अलावा, राणा भारतीय इलाकों में आतंकवादी गतिविधियों के बारे में भी जानकारी प्रदान कर सकता है, जिससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को आतंकी गतिविधियों को रोकने में मदद मिल सकती है।

4. पाकिस्तान और तालिबान के रिश्ते

तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों पर भी राणा का प्रत्यर्पण प्रकाश डाल सकता है। तालिबान का पाकिस्तान के साथ गहरा संबंध है, खासकर पाकिस्तान की आईएसआई के साथ। हालांकि तालिबान ने भारत के खिलाफ कोई आतंकवादी गतिविधि को मंजूरी नहीं दी है, लेकिन पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी समूहों को तालिबान का समर्थन मिल सकता है। इसके अलावा, तालिबान अफगानिस्तान में भारतीय सहायता को बाधित करने की कोशिश करता है, जबकि पाकिस्तान भी अफगानिस्तान में अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने के प्रयासों में शामिल है।

5. 26/11 के आतंकवादी हमले का वैश्विक संदर्भ

26/11 का हमला केवल भारत के लिए एक आघात नहीं था, बल्कि यह वैश्विक आतंकवाद के खतरों को भी उजागर करता है। इस हमले में शामिल आतंकवादी समूहों ने न केवल भारतीय नागरिकों का नरसंहार किया बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी एक गंभीर खतरा उत्पन्न किया। राणा का प्रत्यर्पण आतंकवादियों के वैश्विक नेटवर्क को तोड़ने और उनकी साजिशों को उजागर करने में मदद कर सकता है। इसके साथ ही यह संकेत करता है कि आतंकवाद का वित्तपोषण और उसकी योजना केवल एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर फैली हुई है।

6. पाकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बढ़ना

राणा का प्रत्यर्पण पाकिस्तान के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाने का एक और अवसर हो सकता है। यह पाकिस्तान के लिए एक नई चुनौती है, क्योंकि उसे आतंकवाद को समर्थन देने के आरोपों का सामना करना पड़ेगा। पाकिस्तान ने कई बार इस आरोप से इनकार किया है कि वह आतंकवाद का समर्थन करता है, लेकिन राणा के प्रत्यर्पण और उससे प्राप्त जानकारी के बाद पाकिस्तान पर नए सिरे से दबाव डाला जा सकता है।

7. अफगानिस्तान और पाकिस्तान के आतंकवाद के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय भूमिका

अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, यह स्थिति और जटिल हो गई है। तालिबान का पाकिस्तान से करीबी संबंध है, और पाकिस्तान की आईएसआई अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी समूहों का समर्थन करती है। तालिबान द्वारा पाकिस्तान से आतंकवादियों की सहायता प्राप्त करना भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। हालांकि तालिबान ने भारत के खिलाफ कोई कार्रवाई की अनुमति नहीं दी है, लेकिन पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी संगठन भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं।

8. भारत का सुरक्षा रणनीति में परिवर्तन

राणा के प्रत्यर्पण से भारतीय सुरक्षा रणनीति में कुछ बदलाव हो सकते हैं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियां अब नए सबूतों और जानकारी के आधार पर पाकिस्तान के आतंकवादी नेटवर्क का पर्दाफाश करने के लिए और सख्त कदम उठा सकती हैं। भारत का यह निर्णय कि वह आतंकवाद के खिलाफ किसी भी प्रकार के समझौते के लिए तैयार नहीं है, यह दिखाता है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपने संघर्ष को और मजबूत करेगा।

तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के बाद भारत को न केवल 26/11 के हमले के संदर्भ में नई जानकारी प्राप्त हो सकती है, बल्कि यह पाकिस्तान और उसके आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दबाव को भी बढ़ा सकता है। यह घटनाक्रम भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान के आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर एक नया मोड़ ला सकता है, और इससे वैश्विक सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है। राणा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और उसके द्वारा दी गई जानकारी से यह उम्मीद की जा सकती है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे और पाकिस्तान की आतंकवाद की नीति को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में और अधिक जागरूकता पैदा होगी।

पाक‍िस्‍तान के 16 परमाणु वैज्ञान‍िकों का अपहरण! TTP ने वीडियो जारी क‍र ली जिम्मेदारी

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पाकिस्तान के 16 परमाणु वैज्ञानिकों के अपहरण कर लिया गया है। पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के 16 वैज्ञानिक पाकिस्तानी तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) के कब्जे में हैं। टीटीपी ने खुद पाकिस्तान के 16 वैज्ञानिकों को अगवा कर लेने का दावा किया है। टीटीपी ने इन वैज्ञानिकों का एक वीडियो जारी किया है। इस वीडियो में ये टीटीपी की मांगों को मानकर अपनी रिहाई की अपील पाकिस्तान की सरकार से करते हुए नजर आ रहे हैं।

सोशल मीडिया में यह वीडियो जमकर वायरल हो रहा है, ज‍िसमें दावा क‍िया जा रहा है क‍ि टीटीपी ने डेरा इस्‍माइल खान में पाक‍िस्‍तान ऊर्जा आयोग के इंजीनियरों को पकड़ ल‍िया है। लोग कह रहे क‍ि साइंटिस्‍ट की यह दशा पाक‍िस्‍तान की बिगड़ती सुरक्षा और सेना की बेबसी का नमूना है। वहीं, कुछ रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि स्थानीय प्रशासन और सरकार ने अपहृत लोगों को वैज्ञानिक नहीं बल्कि आम नागरिक बताया है।

दावा किया जा रहा है कि 16 से 18 कर्मचारियों का अपहरण किया गया है, जो लक्की मरवत में काबुल खेल एटॉमिक एनर्जी खनन परियोजना में काम कर रहे थे। इस दौरान हथियारबंद लोगों ने कंपनी के कर्मचारियों के वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया। टीटीपी लड़ाकों के यूरेन‍ियम लूटने का भी दावा किया गया है। हालांकि टीटीपी ने अपने बयान में कहा है कि हमने सिर्फ कुछ लोगों को कब्जे में लिया है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सरकार से हमारी कुछ मांगे हैं। सरकार को हमारी मांगें माननी चाहिए।

अफगानिस्तान के साथ रिश्तों की नई शुरूआत! तालिबान प्रशासन ने भारत के लिए खतरा नहीं बनने का दिया आश्वासन
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* भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों में नए दौर की शुरूआत हो रहा है। अफगानिस्‍तान में तालिबान के काबिज होने के बाद भारत ने तालिबान की सरकार के साथ सीमित दायरे में ही संपर्क रखा था। हालांकि, अब दोनों देशों के रिश्ते करवट ले रहे हैं। तालीबान के साथ पहली बार भारत सरकार की उच्‍च स्‍तरीय बातचीत हुई है। दुबई में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की। इस दौरान दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ क्षेत्रीय विकास से संबंधित कई मुद्दों पर चर्चा की।बैठक में अफगानिस्तान ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को वरीयता देने का आश्वासन दिया और दोनों देशों के बीच क्रिकेट के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी। तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए भारत को धन्यवाद दिया और कहा कि हम एक महत्वपूर्ण और आर्थिक देश के रूप में भारत के साथ संबंध रखना चाहते हैं। इस दौरान भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि भारत और अफगानिस्तान के ऐतिहासिक रिश्ते हैं। उन्होंने कहा कि उनके देश ने बीते साढ़े तीन वर्षों में अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान की है और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में अफगानिस्तान के साथ सहयोग करना चाहता है। बैठक में निर्णय लिया गया कि भारत अफगानिस्तान में चल रहे मानवीय सहायता कार्यक्रम के अलावा निकट भविष्य में विकास योजनाओं में शामिल होने पर विचार करेगा। बैठक में व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ावा देने पर भी सहमति बनी। भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र और शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए मानवीय मदद बढ़ाने का आश्वासन दिया। *तालिबान को राजनीतिक संबंधों के बढ़ने की उम्मीद* तालिबान विदेश मंत्री मुत्ताकी ने राजनीतिक संबंधों को बढ़ाने की उम्मीद के साथ ही छात्रों, व्यापारियों, मरीजों के लिए वीजा से संबंधित सुविधाएं बनाने की उम्मीद जताई। तालिबान की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष व्यापार और वीजा को सुविधाजनक बनाने पर सहमत हुए हैं। *अफगानिस्‍तान को भेजी मदद* भारत ने अब तक अफगहानिस्तान को 50,000 मीट्रिक टन गेहूं, 300 टन दवाइयां, 27 टन भूकंप राहत सहायता, 40,000 लीटर कीटनाशक, 100 मिलियन पोलियो खुराक, कोविड वैक्सीन की 1.5 मिलियन खुराक, नशा मुक्ति कार्यक्रम के लिए 11,000 यूनिट स्वच्छता किट, 500 यूनिट सर्दियों के कपड़े और 1.2 टन स्टेशनरी किट आदि के कई शिपमेंट भेजे हैं। इस मुलाकात में भारत ने कहा कि वह अफगानिस्‍तान को आगे भी मदद करना जारी रखेगा। विशेष तौर पर स्वास्थ्य क्षेत्र और शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए भारत ज्‍यादा सामग्री और सहायता देगा। *क्रिकेट पर भी हुई चर्चा* भारत-पाकिस्‍तान के बीच हुई इस बातचीत में दोनों पक्षों ने खेल (क्रिकेट) सहयोग को मजबूत करने पर भी चर्चा की, जिसे अफगानिस्तान की युवा पीढ़ी बहुत अहमियत दे रही है। इसके अलावा अफगानिस्तान के लिए मानवीय सहायता के उद्देश्य सहित व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों का समर्थन करने के लिए चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ावा देने पर भी सहमति हुई। *अब तक तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता नहीं* भारत ने अब तक तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत थोड़ा इंतजार करेगा। अगर तालिबान का रुख वाकई सकारात्मक रहा तब चरणबद्ध तरीके से वहां की सरकार को आधिकारिक मान्यता देने के अलावा फिर से दूतावास खोलने, नई दिल्ली स्थिति बंद पड़े अफगान दूतावास में तालिबान सरकार के राजनयिक की नियुक्ति पर हामी भरेगा।
पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर पर जंग की आहट, तनाव के बीच पुतिन की एंट्री!*
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पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर विवाद बेहद गंभार स्थिति में पहुंच गया है। दोनों देश डूरंड लाइन को पार कर एक-दूसरे के इलाके में लगातार हमले कर रहे हैं।पाकिस्तान द्वारा दो दिन पूर्व अफगानिस्तान में घुसकर टीटीपी के आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले करने के बाद अफगानिस्तान ने जवाब दिया है। अफगान तालिबान बल ने पाकिस्तान की सीमा चौकियों पर गोलीबारी की। गोलीबारी में पाकिस्तान के अर्धसैनिक बल के एक सैनिक की मौत हो गई। जबकि 11 अन्य सैनिक घायल हो गए। यह गोलीबारी पाकिस्तान की ओर से अफगानिस्तान में प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) के आतंकियों को निशाना बनाकर किए गए हमलों के बाद की गई। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच जारी तनाव में रूस की भी एंट्री हो गई है। अफगान मीडिया के मुताबिक रूस ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने रविवार को एक बयान में कहा कि मॉस्को ‘पाकिस्तान-अफगान सीमा’ पर बढ़ते तनाव को लेकर चिंतित है और वह दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील करता है। ज़खारोवा ने कहा, “हम संबंधित पक्षों से संयम बरतने और रचनात्मक वार्ता करने की अपील करते हैं, जिसका उद्देश्य सभी मतभेदों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना है।” इससे पहले शनिवार को सीमा चौकियों पर हुए भीषण संघर्ष में शनिवार को 19 पाकिस्तानी सैनिक और तीन अफगान नागरिकों की मौत हो गई। अमू टीवी के मुताबिक पाकिस्तानी सेना ने स्वीकार किया है कि तालिबान ने सीमा के पास उसकी चौकियों पर ‘बिना उकसावे के भारी हथियारों से गोलीबारी’ की है। अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि उसके बलों ने पिछले हफ्ते देश पर हुए घातक हवाई हमलों के जवाब में पाकिस्तान के अंदर कई स्थानों पर हमला किया। पाकिस्तान ने गत मंगलवार को अफगानिस्तान के पूर्वी पाक्तिका प्रांत में एक प्रशिक्षण केंद्र को नष्ट करने और विद्रोहियों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था। पाकिस्तान के हवाई हमलों में कई लोग मारे गए जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे। तालिबान के रक्षा मंत्रालय की ओर से शनिवार को ‘एक्स’ पर पोस्ट की गई टिप्पणियों में कहा गया कि उसकी सेनाओं ने पाकिस्तान के उन स्थानों को निशाना बनाया, जिन्हें अफगानिस्तान पर हमलों की योजना और समन्वय से जुड़े तत्वों एवं उनके समर्थकों के लिए ठिकाने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था। मंत्रालय के प्रवक्ता इनायतुल्ला ख्वारजामी ने हमलों के बारे में और कोई जानकारी नहीं दी। यह भी नहीं बताया गया कि हमलों को कैसे अंजाम दिया गया। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि दोनों तरफ से कोई हताहत हुआ है या नहीं।
तालिबान ने घर में खिड़की बनाने पर लगाया बैन, जानें किस डर से जारी किया फरमान

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अफगानिस्तान में तालिबानी राज में महिलाओं की जिंदगी बद से बदतर होती जा रही है। तालिबान ने एक और महिला विरोधी कदम उठाया है। तालिबान के सर्वोच्च नेता ने रेसिडेंशियल बिल्डिंगों में खिड़कियां लगाने पर बैन लगाने का आदेश दिया है। तालिबान के नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने आदेश दिया है कि इमारतों में ऐसी खिड़कियां नहीं होनी चाहिए जहां महिलाएं बैठ या खड़ी हो सकती हैं। साथ ही मौजूदा खिड़कियों को भी बंद करने के लिए कहा गया है।

सरकारी प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने सर्वोच्च नेता के फरमान को पोस्ट किया। एक्स पर पोस्ट किए गए चार-खंडों के आदेश के मुताबिक यह आदेश नई इमारतों के साथ-साथ मौजूदा इमारतों पर भी लागू होता है। खिड़कियां यार्ड या रसोई जैसे घरेलू हिस्सों को नहीं दिखानी चाहिए या उनमें नहीं खुलनी चाहिए। अगर कोई खिड़की ऐसी जगह की ओर दिखती है, तो उस मकान के लिए जिम्मेदार इंसान को दीवार, बाड़ या स्क्रीन लगाकर उसे बंद करने का कोई तरीका खोजना होगा। तालिबान के आदेश में कहा गया है कि नगर पालिकाओं और अन्य अधिकारियों को आवासीय संपत्तियों के अंदर या ऊपर देखने वाली खिड़कियां लगाने से बचने के लिए नई इमारतों के निर्माण की निगरानी करनी चाहिए।

महिलाओं को काम पर रखने वाले समूहों को बंद करने के आदेश

वहीं इसी कड़ी के एक दूसरे आदेश में तालिबान ने कहा कि वे अफगानिस्तान में महिलाओं को काम पर रखने वाले सभी राष्ट्रीय और विदेशी गैर सरकारी समूहों को बंद कर देंगे। एक पत्र में अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने चेतावनी दी कि ताजा आदेश का पालन न करने पर अफगानिस्तान में काम करने के लिए गैर सरकारी संगठनों का लाइसेंस रद्द हो जाएगा। मंत्रालय ने कहा कि वह राष्ट्रीय और विदेशी संगठनों द्वारा की जाने वाली सभी गतिविधियों के रजिस्ट्रेशन, समन्वय, नेतृत्व और निगरानी के लिए जिम्मेदार है। पत्र के मुताबिक सरकार एक बार फिर तालिबान द्वारा नियंत्रित नहीं किए जाने वाले संस्थानों में सभी महिला काम को रोकने का आदेश दे रही है। आदेश में कहा गया कि सहयोग की कमी के मामले में, उस संस्थान की सभी गतिविधियां रद्द कर दी जाएंगी और मंत्रालय द्वारा दिए गए उस संस्थान का गतिविधि लाइसेंस भी रद्द कर दिया जाएगा। यह तालिबान का एनजीओ गतिविधि को नियंत्रित करने या उसमें हस्तक्षेप करने की ताजा कोशिश है।

बता दें कि दो साल पहले तालिबान ने अफगान महिलाओं को काम पर रखने से मना किया था। इसका कारण ये बताया गया था कि कामकाजी महिलाएं कथित तौर पर इस्लामी हिजाब सही तरीके से नहीं पहनती थीं।

महिलाओं पर बढ़ते प्रतिबंध

अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में के बाद से देश में महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों से धीरे-धीरे हटा दिया गया है। तालिबान ने पहले ही लड़कियों और महिलाओं के लिए प्राथमिक शिक्षा के बाद की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है, रोजगार को भी प्रतिबंधित कर दिया है। साथ ही पार्कों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भी महिलाओं को बैन किया गया है। तालिबान सरकार ने इस्लामी कानून का अत्यधिक सख्त अनुप्रयोग लागू कर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से गाने या कविता पाठ करने से भी रोक दिया है। कुछ स्थानीय रेडियो और टेलीविजन स्टेशनों ने भी महिलाओं की आवाज़ों का प्रसारण बंद कर दिया है।

तालिबान के सत्ता में आने के बाद पहली बार भारत दौरे पर अफगानी विदेश मंत्री, पाकिस्तान की बढ़ी परेशानी

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तालिबान के सत्ता में आने के बाद पहली बार अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी भारत दौरे पर नई दिल्ली पहुंचे हैं। तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी आज ही भारत पहुंचे हैं। यह भारत और अफगानिस्तान के बीच कूटनीतिक संबंधों को नई दिशा देने वाला पहला दौरा है। मुत्ताकी विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात करेंगे। मुत्ताकी दारूल उलूम देवबंद मदरसे और ताजमहल भी जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति से छूट हासिल करने के बाद मुत्ताकी भारत आ रहे हैं। दरअसल, मुत्ताकी संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंधित सूची में शामिल हैं।

तालिबान ने अगस्त 2021 में अशरफ गनी की सरकार गिरने के बाद काबुल पर कब्जा कर लिया था। करीब चार वर्ष पूर्व अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज होने के बाद वहां के विदेश मंत्री का यह पहला भारत दौरा है। यह पहली बार है जब तालिबान शासन के किसी वरिष्ठ मंत्री का भारत दौरा इतने उच्च स्तर पर हो रहा है। इस यात्रा का मकसद भारत-अफगानिस्तान संबंधों को मजबूत करना, व्यापार और बुनियादी ढांचे से जुड़ी चुनौतियों पर बात करना और क्षेत्रीय सुरक्षा पर चर्चा करना है।

रद्द हो गया था मुत्ताकी का दौरा

मुत्ताकी को पिछले महीने ही नई दिल्ली आना था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की ओर से लगाए गए यात्रा प्रतिबंध के कारण उनका यह दौरा रद्द कर दिया गया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति ने 30 सितंबर को मुत्ताकी को अस्थायी छूट देते हुए 9 से 16 अक्टूबर तक नई दिल्ली आने की अनुमति दी थी।

क्या है मुत्ताकी के दौरे का एजेंडा?

रॉयटर्स और अन्य रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुत्ताकी न सिर्फ भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर से मिलेंगे, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, भारतीय कारोबारी संगठनों और भारत में रह रहे अफगान नागरिकों से भी मुलाकात करेंगे। पीएम मोदी से उनकी मुलाकात होगी या नहीं, फिलहाल इसकी पुष्टि नहीं की गई है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बातचीत का एजेंडा कुछ इस तरह हो सकता है:

1. व्यापारिक सहयोग पर चर्चा- दोनों देशों के बीच सूखे मेवों, मसालों और दवाओं के निर्यात-आयात को लेकर नए रास्ते तलाशे जाएंगे।

2. स्वास्थ्य क्षेत्र में साझेदारी- भारत अफगानिस्तान को चिकित्सा सहायता, दवाएं और मेडिकल प्रशिक्षण देने पर सहमत हो सकता है।

3. कांसुलर सेवाएं और वीजा प्रक्रिया- अफगान छात्रों और मरीजों के लिए वीजा में ढील और नई कांसुलर सुविधाओं की बात होगी।

4. दूतावासों का विस्तार- काबुल और नई दिल्ली दोनों में पूरी तरह सक्रिय दूतावास और कांसुलेट बहाल करने पर चर्चा होगी।

5. नए राजदूत की नियुक्ति- तालिबान चाहता है कि भारत में अब उनका नियुक्त प्रतिनिधि ही राजदूत के रूप में काम करे।

6. निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स- तालिबान भारत से पुराने प्रोजेक्ट्स दोबारा शुरू करने और नई निवेश योजनाओं की मांग कर सकता है।

7. सुरक्षा गारंटी- भारत अपने सुरक्षा हितों की रक्षा और आतंकवाद के खिलाफ ठोस आश्वासन मांग सकता है।

भारत-पाक तनाव के बीच मुत्ताकी का दौरा कितना अहम?

भारत-पाक संबंधों में आए हालिया तनाव के बीच मुत्ताकी का दौरा दक्षिण एशिया के सुरक्षा परिदृश्य के लिए महत्वपूर्ण है और इस पर सुरक्षा विशेषज्ञों की भी निगाहें हैं। विदेश मामलों के जानकार सुशांत सरीन ने कहा, मुत्ताकी का दौरा इस वास्तविकता को दर्शाता है, जिसमें कूटनीतिक स्तर पर भारत और तालिबान सरकार के रिश्ते बेहतरी की ओर जा रहे हैं। भारत का हित अफगानिस्तान की स्थिरता में है। भारत अपनी क्षमतानुसार आर्थिक स्तर पर अफगानिस्तान की जरूरतें पूरी कर सकता है।

पुतिन ने तालिबान को दी मान्यता, ऐसा करने वाला पहला देश बना, क्या भारत ले सकेगा ये फैसला?

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रूस ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है। ऐसा करने वाला वह पहला देश है।वर्ष 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान में उसकी सरकार को औपचारिक रूप से अभी तक अन्य किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है। मगर अब रूस ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। इसके साथ ही मॉस्को ने तालिबान को अपने प्रतिबंधित संगठनों की सूची से भी हटा दिया।

रूसी विदेश मंत्रालय ने बताया कि उसने अफगानिस्तान के नए राजदूत गुल हसन हसन से प्रमाण पत्र प्राप्त किया है। मंत्रालय ने कहा कि अफगान सरकार की आधिकारिक मान्यता द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देगी। रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा हमारा मानना है कि अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात की सरकार को आधिकारिक मान्यता देने से हमारे देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादक द्विपक्षीय सहयोग के विकास को बढ़ावा मिलेगा।

“साहसी निर्णय दूसरों के लिए उदाहरण होगा”

वहीं, अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया और तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए इसे “अन्य देशों के लिए एक अच्छा उदाहरण” कहा। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने अफगानिस्तान में रूस के राजदूत दिमित्री झिरनोव के साथ काबुल में बैठक की। एक्स पर बैठक का वीडियो पोस्ट करते हुए मुत्ताकी ने कहा, यह साहसी निर्णय दूसरों के लिए उदाहरण होगा। अब जब मान्यता की प्रक्रिया शुरू हो गई है तो रूस सभी से आगे है। मुत्ताकी ने कहा, 'यह हमारे संबंधों के इतिहास में एक बड़ा मील का पत्थर है।

2021 में लागू हुआ था तालिबानी शासन

तालिबान का शासन 2021 में अफगानिस्तान में लागू हुआ था। तालिबान ने अगस्त 2021 में अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। जिसके बाद से वह देश पर शासन कर रहा है। हालांकि, उसे अभी तक किसी देश ने उसकी सरकार को मान्यता नहीं दी थी।

क्या भारत भी तालिबान को मान्यता देगा?

पुतिन के इस फैसले के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत भी तालिबान को मान्यता देगा? दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर के समय पाकिस्तान के दावों पर तालिबान ने भारत का साथ दिया। बिक्रम मिस्री तालिबान विदेश मंत्री से मिल भी चुके हैं।

चीन बढ़ा रहा भारत की टेंशनः पाकिस्‍तान-तालिबान के साथ मिलकर चली नई चाल, काबुल तक होगा CPEC का विस्‍तार

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चीन ये तो अच्छी तरह जानता है कि भारत का मुकाबला करने के लिए उसे साथियों की जरूरत है। यही कारण है कि चीन ने भारत को टेंशन देने वाली बड़ी चाल चली है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान के साथ खुलकर खड़े होने के बाद चीन एक और साजिश कर रहा है। चीन, पाकिस्तान और तालिबान के बीच सुलह समझौता करवाने में जुटा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के साथ खड़ी तालिबान सरकार को चीन साधने में लगा हुआ है। बुधवार को चीन-पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने एक बड़ा फैसला लिया है, भारत की टेंशन बढ़ाने वाला है।

बुधवार को इशाक डार ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी और अफगानिस्तान के अंतरिम विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की। इस दौरान बीजिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल के तहत बन रहे चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने पर सहमति व्यक्त की गई। 

बैठक के बाद इशाक डार ने कहा, पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और विकास के लिए एक साथ खड़े हैं। उन्होंने तीनों नेताओं की एक साथ तस्वीर भी साझा की। इशाक डार ने सोशल मीडिया पर लिखा कि पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान क्षेत्रीय शांति और विकास के लिए एकजुट हैं। बैठक में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को बढ़ावा देने और सीपीईसी को अफगानिस्तान तक ले जाने का फैसला हुआ। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और क्षेत्र में स्थिरता के लिए भी प्रतिबद्धता जताई गई है।

पाकिस्‍तान-तालिबान का तनाव कम करने की कोशिश

पाकिस्तान के विदेश मंत्री तीन दिवसीय बीजिंग यात्रा पर हैं, जो भारत द्वारा पाकिस्तान और इसके कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी स्थलों को निशाना बनाकर शुरू किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पहली उच्चस्तरीय वार्ता है। इस बैठक में सीपीईसी को लेकर चर्चा भले हुई है, लेकिन असल में इसे चीन की अपने पक्के दोस्त पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच तनाव कम कराने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

क्या चाहता है चीन?

-चीन की कोशिश है कि फिर से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पुराने रिश्ते बहाल हो. दोनों ही देश आपसी भाईचारे के साथ रहे. पिछले कुछ सालों से तालिबान और पाकिस्तान के बीच के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे है.

-चीन की कोशिश अपना व्यापार अफगानिस्तान तक बढ़ाने की है. इसी कड़ी में चीन ने अफगानिस्तान में CPEC प्रोजेक्ट को विस्तार करने का फैसला किया है. यह प्रोजेक्ट अभी पाकिस्तान में है.

-चीन की कोशिश भारत को अफगानिस्तान में रोकने की है. 10 मई को काबुल में जो बैठक हुई थी, उसमें चीन और पाकिस्तान ने तालिबान से कहा था कि भारत को सिर्फ कूटनीतिक दायरे तक सीमित किया जाए

नई दिल्ली-काबुल के सुधरते रिश्तों पर चीन का बुरी नजर

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंधों को सुधारने की कोशिश ऐसे समय में हो रही है, जब नई दिल्ली और काबुल के रिश्ते हाल के दिनों में तेजी से गहरे हुए हैं। बीती 15 मई को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कार्यवाहक अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से बात की थी, जिसमें दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ सहयोग को और गहरा करने पर चर्चा की थी। यह अफगानिस्तान में तालिबान प्रशासन की वापसी के बाद पहली मंत्री स्तरीय बातचीत थी। ऐसे में सवाल है कि क्या चीन की कोशिश के बाद तालिबान पाकिस्तान को लेकर नरम रुख अपनाएंगे।

पाकिस्तान से तनाव के बीच एस जयशंकर ने अफगानिस्तान के विदेश मंत्री से की बात, नए कूटनीति संबंधों का आगाज

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पहले से ही खराब चल रहे भारत और पाकिस्तान के संबंध इन दिनों नीचले स्तर पर पहुंच गए हैं। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए अटैक और उसके बाद भारत की ओर से की गई एयर स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के बीच युद्ध के हालात पैदा हो गए थे। हालांकि, भारत की जवाबी कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने घूटने टेक दिए। अब भारत-पाक का संघर्ष तो खत्म हो गया है, लेकिन तनाव बरकरार है। इस बीच भारत ने अफगानिस्तान के साथ ने कूटनीतिरक संबंधों की शुरूआत की है। 

दरअसल, एस जयशंकर ने पहली बार अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी से फोन पर बात की है। एस जयशंकर ने ने गुरुवार को अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी के साथ फोन पर बात की। इस बातचीत में भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने के कोशिशों का भी जिक्र हुआ।

भारत-पाक तनाव के बीच अफगानिस्तान का रुख किस तरफ

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 15 मई को सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर जानकारी दी कि उन्होंने तालिबानी सरकार के विदेश मंत्री से भारत-पाक तनाव के बाद बातचीत की। जयशंकर ने पोस्ट कर कहा, अफगान के एक्टिंग विदेश मंत्री मावलवी अमीर खान मुत्ताकी के साथ अच्छी बातचीत हुई। विदेश मंत्री ने यह बताते हुए कि भारत-पाक तनाव के बीच अफगानिस्तान का रुख किस तरफ है। उन्होंने कहा, पहलगाम आतंकवादी हमले की उनकी निंदा की मैं सराहना करता हूं। दरअसल, अफगानिस्तान ने पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले की निंदा की थी, इस अटैक में 26 टूरिस्ट मारे गए थे। 

तालिबान सरकार के स्टैंड की तारीफ

इसी के साथ जहां पाकिस्तान की तरफ से भारत और अफगानिस्तान के बीच रिश्तों में आग लगाने की कोशिश की गई, उसको लेकर भी जयशंकर ने तालिबान सरकार के स्टैंड की तारीफ की।

उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिए बिना उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा, झूठी और आधारहीन रिपोर्टों के जरिए से भारत और अफगानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने की हालिया कोशिशों को अफगानिस्तान ने जो अस्वीकार किया उसका भी स्वागत करता हूं। अफगान लोगों के साथ हमारी पारंपरिक दोस्ती और विकास-सहयोग के लिए लगातार दोनों देशों के एक दूसरे के सहयोग को भी सामने रखा।

बांग्लादेश में बढ़ता कट्टरपंथःमहिलाओं का फुटबॉल खेलना "इस्लाम विरोधी", हाथ पर हाथ धरे बैठे यूनुस

#taliban_rule_in_bangladesh

भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में कट्टरपंथियों की हिम्मत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। एक तरफ जहां वो अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ वो अब महिलाओं के साथ भी सौतेला व्यवहार शुरू हो गया है। सीधे शब्दों में कहें तो बांग्लादेश में तालिबान राज कायम हो गया है। बांग्लादेश में अब महिलाओं का फुटबॉल खेलना इस्लाम विरोधी हो गया है। कट्टरपंथियों ने महिला फुटबॉल मैच को रद्द करा दिया। यह सब तब हो रहा है, जब नोबेल पुरस्कार वाले यूनुस का बांग्लादेश में राज है।

दरअसल, बांग्लादेश के अकेलपुर उपजिला में 28 जनवरी को होने वाले एक महिला फुटबॉल मैच पर भारी विरोध हुआ, जिसमें स्थानीय लोगों ने इसे इस्लामिक विरोधी बताते हुए मैदान में तोड़फोड़ की। अकेलपुर उपजिला में टी-स्टार नाम का स्थानीय स्पोर्ट्स क्लब है, जिसने तिलकपुर हाई स्कूल के मैदान में दो महिला टीमों के बीच फुटबॉल मैच का आयोजन किया था। इस मैच की तैयारियां पिछले एक महीने से चल रही थीं और टिकट भी बेचे जा रहे थे। मैच के लिए जॉयपुरहाट और रंगपुर की महिला टीमों के बीच मुकाबला होना था। लेकिन मैच से पहले ही मदरसा छात्रों और स्थानीय इस्लामवादी लोगों के एक वर्ग ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने मैदान में पहुंचकर हंगामा मचाया और तोड़फोड़ की। उनका कहना था कि महिलाओं का खेल खेलना इस्लामिक मान्यताओं के खिलाफ है। विरोध के कारण आयोजन रद्द करना पड़ा।

बांग्लादेश में पूरी तरह से कट्टरपंथियों का कब्जा हो चुका है। उनको पता है कि वे धर्म के नाम पर हिंसा कर यूनुस के राज में आसानी से बच सकते हैं। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं के घरों को जला दिया, धार्मिक स्थलों को तोड़-फोड़ दिया, शिक्षकों पर हमला किया और ईशनिंदा के आरोपों पर लोगों की हत्या कर दी - फिर भी वे खुलेआम घूम रहे हैं। दूसरी ओर मोहम्मद यूनुस की सरकार चुपचाप बैठकर तमाशा देख रही है। जब कोई हिंसा के खिलाफ आवाज उठाता है तो उसे देशद्रोही, गद्दार, इस्लाम विरोधी का तमगा देकर परेशान किया जाता है

तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का महत्व: भारत-पाकिस्तान आतंकवाद संबंध और वैश्विक सुरक्षा पर प्रभाव

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(बाएं से दाएं): डेविड कोलमैन हेडली उर्फ ​​दाऊद गिलानी, हाफिज सईद और तहव्वुर राणा

26/11 के मुंबई हमले के बाद से आतंकवाद और वैश्विक सुरक्षा को लेकर एक नई दृष्टिकोण सामने आई है। यह हमला न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी थी कि आतंकवाद के जड़ें केवल एक क्षेत्र में नहीं बल्कि कई देशों में फैली हुई हैं। 25 जनवरी 2025 को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी देने के बाद, यह मामला एक बार फिर से वैश्विक सुरक्षा और पाकिस्तान की भूमिका को प्रमुख रूप से उजागर करता है। राणा, जो 26/11 हमले में शामिल था, उसकी गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण के परिणामस्वरूप नई जानकारी और प्रमाण मिल सकते हैं, जो आतंकवाद की जड़ों को और गहरे तक समझने में मदद करेगा। 

1. 26/11 की जांच और तहव्वुर राणा का कनेक्शन

तहव्वुर राणा, जो पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, 26/11 के मुंबई हमले में प्रमुख भूमिका निभाने वालों में से एक था। वह डेविड कोलमैन हेडली के सहयोगी के रूप में काम कर रहा था, जिसने भारत में आतंकवादी ठिकानों का सर्वेक्षण किया था। राणा ने इस हमले के लिए जरूरी रसद, योजना और मार्गदर्शन प्रदान किया था। 25 जनवरी को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसके प्रत्यर्पण को मंजूरी दी, जिससे अब उसे भारत लाया जाएगा। यह महत्वपूर्ण कदम इसलिए है क्योंकि राणा से प्राप्त जानकारी से 26/11 के हमले के पीछे की साजिश और पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी नेटवर्क के बारे में नई जानकारियां मिल सकती हैं।

2. पाकिस्तान का आतंकवाद के केंद्र के रूप में उभरना

तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण पाकिस्तान को वैश्विक आतंकवाद के केंद्र के रूप में फिर से उजागर कर सकता है। पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी समूह जैसे लश्कर-ए-तैयबा (LET) और जैश-ए-मोहम्मद (JEM), अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी अभियानों में सक्रिय हैं। ये समूह न केवल भारत बल्कि अफगानिस्तान और अन्य देशों में भी आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। राणा का भारत प्रत्यर्पण पाकिस्तान के आतंकवाद में सक्रिय भूमिका को दर्शाता है और यह साबित करता है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद को एक राज्य नीति के रूप में अपनाया है।

3. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई संभावना

राणा का प्रत्यर्पण भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को नई दिशा में जांच करने का अवसर प्रदान करेगा। वह लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद, पाकिस्तानी आईएसआई और अन्य आतंकवादी समूहों के रिश्तों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसके अलावा, राणा भारतीय इलाकों में आतंकवादी गतिविधियों के बारे में भी जानकारी प्रदान कर सकता है, जिससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को आतंकी गतिविधियों को रोकने में मदद मिल सकती है।

4. पाकिस्तान और तालिबान के रिश्ते

तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों पर भी राणा का प्रत्यर्पण प्रकाश डाल सकता है। तालिबान का पाकिस्तान के साथ गहरा संबंध है, खासकर पाकिस्तान की आईएसआई के साथ। हालांकि तालिबान ने भारत के खिलाफ कोई आतंकवादी गतिविधि को मंजूरी नहीं दी है, लेकिन पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी समूहों को तालिबान का समर्थन मिल सकता है। इसके अलावा, तालिबान अफगानिस्तान में भारतीय सहायता को बाधित करने की कोशिश करता है, जबकि पाकिस्तान भी अफगानिस्तान में अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करने के प्रयासों में शामिल है।

5. 26/11 के आतंकवादी हमले का वैश्विक संदर्भ

26/11 का हमला केवल भारत के लिए एक आघात नहीं था, बल्कि यह वैश्विक आतंकवाद के खतरों को भी उजागर करता है। इस हमले में शामिल आतंकवादी समूहों ने न केवल भारतीय नागरिकों का नरसंहार किया बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी एक गंभीर खतरा उत्पन्न किया। राणा का प्रत्यर्पण आतंकवादियों के वैश्विक नेटवर्क को तोड़ने और उनकी साजिशों को उजागर करने में मदद कर सकता है। इसके साथ ही यह संकेत करता है कि आतंकवाद का वित्तपोषण और उसकी योजना केवल एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर फैली हुई है।

6. पाकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बढ़ना

राणा का प्रत्यर्पण पाकिस्तान के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाने का एक और अवसर हो सकता है। यह पाकिस्तान के लिए एक नई चुनौती है, क्योंकि उसे आतंकवाद को समर्थन देने के आरोपों का सामना करना पड़ेगा। पाकिस्तान ने कई बार इस आरोप से इनकार किया है कि वह आतंकवाद का समर्थन करता है, लेकिन राणा के प्रत्यर्पण और उससे प्राप्त जानकारी के बाद पाकिस्तान पर नए सिरे से दबाव डाला जा सकता है।

7. अफगानिस्तान और पाकिस्तान के आतंकवाद के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय भूमिका

अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, यह स्थिति और जटिल हो गई है। तालिबान का पाकिस्तान से करीबी संबंध है, और पाकिस्तान की आईएसआई अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी समूहों का समर्थन करती है। तालिबान द्वारा पाकिस्तान से आतंकवादियों की सहायता प्राप्त करना भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। हालांकि तालिबान ने भारत के खिलाफ कोई कार्रवाई की अनुमति नहीं दी है, लेकिन पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी संगठन भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं।

8. भारत का सुरक्षा रणनीति में परिवर्तन

राणा के प्रत्यर्पण से भारतीय सुरक्षा रणनीति में कुछ बदलाव हो सकते हैं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियां अब नए सबूतों और जानकारी के आधार पर पाकिस्तान के आतंकवादी नेटवर्क का पर्दाफाश करने के लिए और सख्त कदम उठा सकती हैं। भारत का यह निर्णय कि वह आतंकवाद के खिलाफ किसी भी प्रकार के समझौते के लिए तैयार नहीं है, यह दिखाता है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपने संघर्ष को और मजबूत करेगा।

तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के बाद भारत को न केवल 26/11 के हमले के संदर्भ में नई जानकारी प्राप्त हो सकती है, बल्कि यह पाकिस्तान और उसके आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दबाव को भी बढ़ा सकता है। यह घटनाक्रम भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान के आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर एक नया मोड़ ला सकता है, और इससे वैश्विक सुरक्षा पर भी असर पड़ सकता है। राणा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और उसके द्वारा दी गई जानकारी से यह उम्मीद की जा सकती है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे और पाकिस्तान की आतंकवाद की नीति को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में और अधिक जागरूकता पैदा होगी।

पाक‍िस्‍तान के 16 परमाणु वैज्ञान‍िकों का अपहरण! TTP ने वीडियो जारी क‍र ली जिम्मेदारी

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पाकिस्तान के 16 परमाणु वैज्ञानिकों के अपहरण कर लिया गया है। पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के 16 वैज्ञानिक पाकिस्तानी तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) के कब्जे में हैं। टीटीपी ने खुद पाकिस्तान के 16 वैज्ञानिकों को अगवा कर लेने का दावा किया है। टीटीपी ने इन वैज्ञानिकों का एक वीडियो जारी किया है। इस वीडियो में ये टीटीपी की मांगों को मानकर अपनी रिहाई की अपील पाकिस्तान की सरकार से करते हुए नजर आ रहे हैं।

सोशल मीडिया में यह वीडियो जमकर वायरल हो रहा है, ज‍िसमें दावा क‍िया जा रहा है क‍ि टीटीपी ने डेरा इस्‍माइल खान में पाक‍िस्‍तान ऊर्जा आयोग के इंजीनियरों को पकड़ ल‍िया है। लोग कह रहे क‍ि साइंटिस्‍ट की यह दशा पाक‍िस्‍तान की बिगड़ती सुरक्षा और सेना की बेबसी का नमूना है। वहीं, कुछ रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि स्थानीय प्रशासन और सरकार ने अपहृत लोगों को वैज्ञानिक नहीं बल्कि आम नागरिक बताया है।

दावा किया जा रहा है कि 16 से 18 कर्मचारियों का अपहरण किया गया है, जो लक्की मरवत में काबुल खेल एटॉमिक एनर्जी खनन परियोजना में काम कर रहे थे। इस दौरान हथियारबंद लोगों ने कंपनी के कर्मचारियों के वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया। टीटीपी लड़ाकों के यूरेन‍ियम लूटने का भी दावा किया गया है। हालांकि टीटीपी ने अपने बयान में कहा है कि हमने सिर्फ कुछ लोगों को कब्जे में लिया है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सरकार से हमारी कुछ मांगे हैं। सरकार को हमारी मांगें माननी चाहिए।

अफगानिस्तान के साथ रिश्तों की नई शुरूआत! तालिबान प्रशासन ने भारत के लिए खतरा नहीं बनने का दिया आश्वासन
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* भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों में नए दौर की शुरूआत हो रहा है। अफगानिस्‍तान में तालिबान के काबिज होने के बाद भारत ने तालिबान की सरकार के साथ सीमित दायरे में ही संपर्क रखा था। हालांकि, अब दोनों देशों के रिश्ते करवट ले रहे हैं। तालीबान के साथ पहली बार भारत सरकार की उच्‍च स्‍तरीय बातचीत हुई है। दुबई में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की। इस दौरान दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ क्षेत्रीय विकास से संबंधित कई मुद्दों पर चर्चा की।बैठक में अफगानिस्तान ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को वरीयता देने का आश्वासन दिया और दोनों देशों के बीच क्रिकेट के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी। तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए भारत को धन्यवाद दिया और कहा कि हम एक महत्वपूर्ण और आर्थिक देश के रूप में भारत के साथ संबंध रखना चाहते हैं। इस दौरान भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि भारत और अफगानिस्तान के ऐतिहासिक रिश्ते हैं। उन्होंने कहा कि उनके देश ने बीते साढ़े तीन वर्षों में अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान की है और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में अफगानिस्तान के साथ सहयोग करना चाहता है। बैठक में निर्णय लिया गया कि भारत अफगानिस्तान में चल रहे मानवीय सहायता कार्यक्रम के अलावा निकट भविष्य में विकास योजनाओं में शामिल होने पर विचार करेगा। बैठक में व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ावा देने पर भी सहमति बनी। भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र और शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए मानवीय मदद बढ़ाने का आश्वासन दिया। *तालिबान को राजनीतिक संबंधों के बढ़ने की उम्मीद* तालिबान विदेश मंत्री मुत्ताकी ने राजनीतिक संबंधों को बढ़ाने की उम्मीद के साथ ही छात्रों, व्यापारियों, मरीजों के लिए वीजा से संबंधित सुविधाएं बनाने की उम्मीद जताई। तालिबान की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष व्यापार और वीजा को सुविधाजनक बनाने पर सहमत हुए हैं। *अफगानिस्‍तान को भेजी मदद* भारत ने अब तक अफगहानिस्तान को 50,000 मीट्रिक टन गेहूं, 300 टन दवाइयां, 27 टन भूकंप राहत सहायता, 40,000 लीटर कीटनाशक, 100 मिलियन पोलियो खुराक, कोविड वैक्सीन की 1.5 मिलियन खुराक, नशा मुक्ति कार्यक्रम के लिए 11,000 यूनिट स्वच्छता किट, 500 यूनिट सर्दियों के कपड़े और 1.2 टन स्टेशनरी किट आदि के कई शिपमेंट भेजे हैं। इस मुलाकात में भारत ने कहा कि वह अफगानिस्‍तान को आगे भी मदद करना जारी रखेगा। विशेष तौर पर स्वास्थ्य क्षेत्र और शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए भारत ज्‍यादा सामग्री और सहायता देगा। *क्रिकेट पर भी हुई चर्चा* भारत-पाकिस्‍तान के बीच हुई इस बातचीत में दोनों पक्षों ने खेल (क्रिकेट) सहयोग को मजबूत करने पर भी चर्चा की, जिसे अफगानिस्तान की युवा पीढ़ी बहुत अहमियत दे रही है। इसके अलावा अफगानिस्तान के लिए मानवीय सहायता के उद्देश्य सहित व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों का समर्थन करने के लिए चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ावा देने पर भी सहमति हुई। *अब तक तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता नहीं* भारत ने अब तक तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत थोड़ा इंतजार करेगा। अगर तालिबान का रुख वाकई सकारात्मक रहा तब चरणबद्ध तरीके से वहां की सरकार को आधिकारिक मान्यता देने के अलावा फिर से दूतावास खोलने, नई दिल्ली स्थिति बंद पड़े अफगान दूतावास में तालिबान सरकार के राजनयिक की नियुक्ति पर हामी भरेगा।
पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर पर जंग की आहट, तनाव के बीच पुतिन की एंट्री!*
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पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर विवाद बेहद गंभार स्थिति में पहुंच गया है। दोनों देश डूरंड लाइन को पार कर एक-दूसरे के इलाके में लगातार हमले कर रहे हैं।पाकिस्तान द्वारा दो दिन पूर्व अफगानिस्तान में घुसकर टीटीपी के आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले करने के बाद अफगानिस्तान ने जवाब दिया है। अफगान तालिबान बल ने पाकिस्तान की सीमा चौकियों पर गोलीबारी की। गोलीबारी में पाकिस्तान के अर्धसैनिक बल के एक सैनिक की मौत हो गई। जबकि 11 अन्य सैनिक घायल हो गए। यह गोलीबारी पाकिस्तान की ओर से अफगानिस्तान में प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) के आतंकियों को निशाना बनाकर किए गए हमलों के बाद की गई। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच जारी तनाव में रूस की भी एंट्री हो गई है। अफगान मीडिया के मुताबिक रूस ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने रविवार को एक बयान में कहा कि मॉस्को ‘पाकिस्तान-अफगान सीमा’ पर बढ़ते तनाव को लेकर चिंतित है और वह दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील करता है। ज़खारोवा ने कहा, “हम संबंधित पक्षों से संयम बरतने और रचनात्मक वार्ता करने की अपील करते हैं, जिसका उद्देश्य सभी मतभेदों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना है।” इससे पहले शनिवार को सीमा चौकियों पर हुए भीषण संघर्ष में शनिवार को 19 पाकिस्तानी सैनिक और तीन अफगान नागरिकों की मौत हो गई। अमू टीवी के मुताबिक पाकिस्तानी सेना ने स्वीकार किया है कि तालिबान ने सीमा के पास उसकी चौकियों पर ‘बिना उकसावे के भारी हथियारों से गोलीबारी’ की है। अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि उसके बलों ने पिछले हफ्ते देश पर हुए घातक हवाई हमलों के जवाब में पाकिस्तान के अंदर कई स्थानों पर हमला किया। पाकिस्तान ने गत मंगलवार को अफगानिस्तान के पूर्वी पाक्तिका प्रांत में एक प्रशिक्षण केंद्र को नष्ट करने और विद्रोहियों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था। पाकिस्तान के हवाई हमलों में कई लोग मारे गए जिनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे। तालिबान के रक्षा मंत्रालय की ओर से शनिवार को ‘एक्स’ पर पोस्ट की गई टिप्पणियों में कहा गया कि उसकी सेनाओं ने पाकिस्तान के उन स्थानों को निशाना बनाया, जिन्हें अफगानिस्तान पर हमलों की योजना और समन्वय से जुड़े तत्वों एवं उनके समर्थकों के लिए ठिकाने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था। मंत्रालय के प्रवक्ता इनायतुल्ला ख्वारजामी ने हमलों के बारे में और कोई जानकारी नहीं दी। यह भी नहीं बताया गया कि हमलों को कैसे अंजाम दिया गया। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि दोनों तरफ से कोई हताहत हुआ है या नहीं।
तालिबान ने घर में खिड़की बनाने पर लगाया बैन, जानें किस डर से जारी किया फरमान

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अफगानिस्तान में तालिबानी राज में महिलाओं की जिंदगी बद से बदतर होती जा रही है। तालिबान ने एक और महिला विरोधी कदम उठाया है। तालिबान के सर्वोच्च नेता ने रेसिडेंशियल बिल्डिंगों में खिड़कियां लगाने पर बैन लगाने का आदेश दिया है। तालिबान के नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा ने आदेश दिया है कि इमारतों में ऐसी खिड़कियां नहीं होनी चाहिए जहां महिलाएं बैठ या खड़ी हो सकती हैं। साथ ही मौजूदा खिड़कियों को भी बंद करने के लिए कहा गया है।

सरकारी प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने सर्वोच्च नेता के फरमान को पोस्ट किया। एक्स पर पोस्ट किए गए चार-खंडों के आदेश के मुताबिक यह आदेश नई इमारतों के साथ-साथ मौजूदा इमारतों पर भी लागू होता है। खिड़कियां यार्ड या रसोई जैसे घरेलू हिस्सों को नहीं दिखानी चाहिए या उनमें नहीं खुलनी चाहिए। अगर कोई खिड़की ऐसी जगह की ओर दिखती है, तो उस मकान के लिए जिम्मेदार इंसान को दीवार, बाड़ या स्क्रीन लगाकर उसे बंद करने का कोई तरीका खोजना होगा। तालिबान के आदेश में कहा गया है कि नगर पालिकाओं और अन्य अधिकारियों को आवासीय संपत्तियों के अंदर या ऊपर देखने वाली खिड़कियां लगाने से बचने के लिए नई इमारतों के निर्माण की निगरानी करनी चाहिए।

महिलाओं को काम पर रखने वाले समूहों को बंद करने के आदेश

वहीं इसी कड़ी के एक दूसरे आदेश में तालिबान ने कहा कि वे अफगानिस्तान में महिलाओं को काम पर रखने वाले सभी राष्ट्रीय और विदेशी गैर सरकारी समूहों को बंद कर देंगे। एक पत्र में अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने चेतावनी दी कि ताजा आदेश का पालन न करने पर अफगानिस्तान में काम करने के लिए गैर सरकारी संगठनों का लाइसेंस रद्द हो जाएगा। मंत्रालय ने कहा कि वह राष्ट्रीय और विदेशी संगठनों द्वारा की जाने वाली सभी गतिविधियों के रजिस्ट्रेशन, समन्वय, नेतृत्व और निगरानी के लिए जिम्मेदार है। पत्र के मुताबिक सरकार एक बार फिर तालिबान द्वारा नियंत्रित नहीं किए जाने वाले संस्थानों में सभी महिला काम को रोकने का आदेश दे रही है। आदेश में कहा गया कि सहयोग की कमी के मामले में, उस संस्थान की सभी गतिविधियां रद्द कर दी जाएंगी और मंत्रालय द्वारा दिए गए उस संस्थान का गतिविधि लाइसेंस भी रद्द कर दिया जाएगा। यह तालिबान का एनजीओ गतिविधि को नियंत्रित करने या उसमें हस्तक्षेप करने की ताजा कोशिश है।

बता दें कि दो साल पहले तालिबान ने अफगान महिलाओं को काम पर रखने से मना किया था। इसका कारण ये बताया गया था कि कामकाजी महिलाएं कथित तौर पर इस्लामी हिजाब सही तरीके से नहीं पहनती थीं।

महिलाओं पर बढ़ते प्रतिबंध

अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में के बाद से देश में महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों से धीरे-धीरे हटा दिया गया है। तालिबान ने पहले ही लड़कियों और महिलाओं के लिए प्राथमिक शिक्षा के बाद की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है, रोजगार को भी प्रतिबंधित कर दिया है। साथ ही पार्कों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भी महिलाओं को बैन किया गया है। तालिबान सरकार ने इस्लामी कानून का अत्यधिक सख्त अनुप्रयोग लागू कर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से गाने या कविता पाठ करने से भी रोक दिया है। कुछ स्थानीय रेडियो और टेलीविजन स्टेशनों ने भी महिलाओं की आवाज़ों का प्रसारण बंद कर दिया है।