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आ गई शुभांशु शुक्ला के स्पेस जाने की नई तारीख, 25 जून को लॉन्च होगा एक्सिओम-4 मिशन

#nasaannouncesnewlaunchdateforaxiom4mission

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) के लिए जाने वाले एक्सिओम-4 मिशन के लॉन्चिंग की नई तारीख आ चुकी है। नासा और स्पेसएक्स के एक्सिओम मिशन को अब 25 जून को लॉन्च करने की तैयारी है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला 25 जून को एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन रवाना होंगे। छह बार तकनीकी खामियों के कारण टलने के बाद अब लॉन्चिंग तय हुई है।

अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने जानकारी दी है कि एक्सिओम-4 मिशन अब 25 जून को लॉन्च किया जाएगा। एक्सिओम-4 मिशन की लॉन्चिंग फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से होगी। नासा ने बताया कि यह मिशन 25 जून को भारतीय समयानुसार सुबह 12:01 बजे स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा।

अब तक 6 बार टला मिशन

इससे पहले इस मिशन को 29 मई को लॉन्च करने की योजना थी, लेकिन तकनीकी खामी की वजह से इसे टाल दिया गया। एक्सिओम-4 मिशन को अब तक 6 बार टाला जा चुका है। पहले यह मिशन 29 मई को शुरू होने वाला था, लेकिन मौसम की वजह से इसे 8 जून तक के लिए टाल दिया गया। बाद में, फाल्कन-9 रॉकेट के बूस्टर में लिक्विड ऑक्सीजन के रिसाव के कारण तारीख 10 जून और फिर 11 जून कर दी गई। इसके बाद, तकनीकी खराबी के कारण इसे 19 जून और फिर 22 जून के लिए स्थगित कर दिया गया।

मिशन में भारत के साथ हंगरी और पोलैंड भी शामिल

एक्सिओम-4 मिशन एक निजी अंतरिक्ष यात्री मिशन है। इस मिशन में भारत के साथ हंगरी और पोलैंड भी शामिल हैं। खास बात यह है कि यह मिशन तीनों देशों के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है। भारत के लिए यह मिशन इसलिए अहम है क्योंकि लंबे समय बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में जाएगा। इस मिशन में अमेरिका से डॉ. पेगी व्हिटसन मिशन कमांडर हैं। पोलैंड से स्लावोज उज्नान्स्की-विस्निएव्स्की और हंगरी से टिबोर कापू (दोनों मिशन विशेषज्ञ) शामिल हैं। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को पायलट बनाया गया है।

*২৪ মে কি কোনো বিপদ আসছে পৃথিবীতে?*

ডেস্ক : এই বছরের ২৪ মে অ্যাস্টেরয়েড ২০০৩ MH4 পৃথিবীর খুব কাছাকাছি দিয়ে যাবে। এমনটাই আঁচ করেছে নাসার জেট প্রোপালশন ল্যাবরেটরি। এটি ‘সম্ভাব্য বিপজ্জনক অ্যাস্টেরয়েড’ ক্যাটেগরিতে পড়ে। সূত্রের খবর, পৃথিবীর দিকে একটি মহাজাগতিক অ্যাস্টেরয়েড এগিয়ে আসছে। তা যদি ধাক্কা খায়, তাহলে ধ্বংস অনিবার্য। নাম ‘অ্যাস্টেরয়েড ২০০৩ MH4’। এটি প্রায় ৩৩৫ মিটার চওড়া, অর্থাৎ প্রায় তিনটি ফুটবল মাঠের সমান বড়। নাসার মতে, এই অ্যাস্টেরয়েড ২৪ মে ২০২৫-এ পৃথিবীর কাছাকাছি দিয়ে যাবে। এত দ্রুত গতিতে যে শুনে গায়ে কাঁটা দেবে। এর গতি ১৪ কিলোমিটার প্রতি সেকেন্ড।

NASA-এর Jet Propulsion Laboratory (JPL)-এর মতে, এই অ্যাস্টেরয়েড পৃথিবী থেকে ৬.৬৮ মিলিয়ন কিলোমিটার দূর দিয়ে যাবে। শুনতে অনেক বেশি লাগলেও, মহাকাশ বিজ্ঞানের ভাষায় এই দূরত্ব খুব কম ধরা হয়। 0এই অ্যাস্টেরয়েড Apollo গ্রুপের অংশ। এটি অ্যাস্টেরয়েডের এমন একটি গ্রুপ যার অরবিট পৃথিবীর অরবিটকে ক্রস করে। Apollo গ্রুপের অ্যাস্টেরয়েডের সংখ্যা ২১,০০০-এরও বেশি, এবং এদের মধ্যে অনেকের সঙ্গে ভবিষ্যতে সংঘর্ষের আশঙ্কা প্রকাশ করা হয়েছে।

कौन हैं भारतीय मूल नीला राजेंद्र? जिसे नासा ने दिखाया बाहर का रास्ता


#neela_rajendra_nasa_terminated 

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप जबसे दोबारा राष्ट्रपति बने हैं अपने फैसलों के कारण सुर्खियों में हैं। अवैध प्रवास सेलकर टैरिफ के जरिए दुनियाभर के देशों को निशाने बना चुके ट्रंप के फैसलों के गाज इस बार भारतीय मूल की एक अफसर पर गिरी है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में बड़े पद पर नियुक्त नीला राजेंद्र को नौकरी से निकाल दिया गया है। डोनाल्ड ट्रंप के डाइवर्सिटी प्रोग्राम बंद करने के आदेश पर नासा ने यह बड़ा एक्शन लिया है। नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी (जेपीएल) ने ईमेल के जरिए सभी कर्मचारियों को नीला को बर्खास्त करने की जानकारी दी है।

सत्ता में आने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में सभी डाइवर्सिटी प्रोग्राम बंद करने के आदेश दिए थे। ट्रंप ने आदेश निकाला था कि ऐसी डाइवर्सिटी पहल (हर तबके को प्रतिनिधित्व देने की पहल) के तहत नौकरी पर रखे सभी व्यक्तियों को हटाना होगा, और देश भर में ऐसे सभी कार्यक्रमों को समाप्त करना होगा। इसी के तहत अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा में डाइवर्सिटी, इक्विटी और इंक्लूजन यानी डीईआई की चीफ नीला राजेंद्र को हटा दिया गया है। 

नीला राजेंद्र भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक हैं। उनकी बर्खास्तगी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अरबपति एलन मस्क के डीईआई पहलों के विरोध के बीच हुई। डीईआई एक ऐसी नीति है जो कार्यस्थलों या संगठनों में विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को शामिल करने, उनके लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है। लेकिन ट्रंप और मस्क मानते हैं कि ये पहलें अनुचित प्रथाओं को बढ़ावा देती हैं। 

हालांकि, ऐसा नहीं है कि नासा ने नीला राजेंद्र को बचाने की कोशिश नहीं की। उन्हें नौकरी से निकाले जाने से बचाने के प्रयास में, ट्रंप के कार्यकारी आदेश के तुरंत बाद नासा ने कथित तौर पर उनके पद का नाम बदलकर 'हेड ऑफ ऑफिस ऑफ टीम एक्सीलेंस एंड एम्प्लॉई सक्सेस' कर दिया था। लेकिन आखिरकार उनको बचाने की कोशिश अंततः विफल रही।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि डाइवर्सिटी प्रोग्राम की वजह से अमेरिका नस्ल, रंग और लिंग के आधार पर बंट गया है। इस तरह के प्रोग्राम्स सिर्फ पैसों की बर्बादी है। इससे भेदभाव को बढ़ावा मिलता है। यही वजह है कि ट्रंप ने अमेरिका में चलने वाले सभी डाइवर्सिटी प्रोग्राम्स को बंद करने का आदेश दे दिया है।

कौन हैं शुभांशु शुक्ला? स्पेस एक्स ड्रैगन के पायलट बनेंगे, ISS पर जाने वाले पहले भारतीय होंगे

#who_is_shubhanshu_shukla_become_first_indian_astronaut_to_pilot_axiom_4_ws

इंडियन एयरफोर्स के ऑफिसर शुभांशु शुक्ला को नासा के एग्जियम मिशन 4 के लिए पायलट चुना गया है। जल्द ही वे स्पेस एक्स ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट को लेकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर जाएंगे। शुभांशु आईएसएस पर जाने वाले पहले भारतीय होंगे। यह मिशन 14 दिन तक चलेगा। इसके तहत रिसर्च की जाएगी। शुभांशु इसरो के मिशन गगनयान के लिए ट्रेनिंग ले रहे है।

इंडियन एयरफोर्स के शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में जाने को बेताब हैं। वे एक्सिओम मिशन 4 के पायलट के रूप में चुने गए हैं। यह मिशन नासा और इसरो के बीच एक संयुक्त प्रयास का हिस्सा है। मिशन की कमांड पैगी व्हिटसन संभालेंगी । शुभांशु पायलट होंगे। इनके साथ मिशन स्पेशलिस्ट पोलैंड के स्लावोज उजनांस्की-विश्निवस्की और हंगरी के तिबोर कापू अप्रैल और जून 2025 के बीच एग्जियम मिशन-4 पर जाएंगे।

ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस में, एक्सिओम मिशन-4 के चालक दल के सदस्यों ने अभियान के लिए प्रशिक्षण के अपने अनुभव साझा किए। भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुक्ला ने कहा, ‘‘मैं ‘माइक्रोग्रैविटी’ में जाने और अपने दम पर अंतरिक्ष उड़ान का अनुभव करने के लिए वास्तव में बहुत उत्साहित हूं। मिशन के लिए उत्साह लगातार बढ़ रहा है और मुझे लगता है कि हम एक ऐसे चरण में हैं जहां सभी चीजें साकार हो रही हैं।’

शुक्ला इस मिशन को लेकर बेहद उत्साहित हैं। शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष स्टेशन के मिशन पर जब उड़ान भरेंगे तो यह भारत के 1.4 अरब लोगों का सफर होगा। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने खुद कहा कि वह 1.4 अरब भारतीयों की तरफ से इस सफर पर निकल रहे हैं। उन्होंने कहा, 'अंतरिक्ष की यह यात्रा मेरी व्यक्तिगत नहीं, बल्कि 1.4 अरब लोगों की यात्रा है।' यह मिशन 14 दिनों तक चलेगा। इस दौरान, अंतरिक्ष यात्री वैज्ञानिक प्रयोग, आउटरीच कार्यक्रम और कम ग्रैविटी में कई एक्टिविटी करेंगे।

कौन हैं शुभांशु शुक्ला?

10 अक्टूबर 1985 को लखनऊ में जन्मे शुभांशु शुक्ला जून 2006 में भारतीय वायु सेना में एक फाइटर पायलट के रूप में शामिल हुए। मार्च 2024 में उन्हें ग्रुप कैप्टन का पद मिला। उन्होंने Su-30 MKI, MiG-21, MiG-29, Jaguar, Hawk, Dornier और An-32 जैसे कई विमानों पर 2,000 घंटे से अधिक उड़ान भरी है। 2019 में रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में एस्ट्रोनॉट की ट्रेनिंग ली है। भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम, गगनयान मिशन के लिए इसरो द्वारा चुने गए। NASA-Axiom Space सहयोग के तहत आईएसएस की यात्रा करने वाले पहले इसरो अंतरिक्ष यात्री होंगे। अपने अंतरिक्ष अनुभव को तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से देशवासियों के साथ साझा करने की योजना बना रहे हैं।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा: सफलता के पीछे की रणनीतियाँ और प्रेरक कारण

#isrosreasonsforcontinoussuccessful_projects

भारत की अंतरिक्ष यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं रही है, जो उल्लेखनीय उपलब्धियों की एक श्रृंखला से भरी हुई है, जिसे वैश्विक पहचान मिली है। उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण से लेकर अंतर-ग्रहण अन्वेषण तक, भारत ने लगातार अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा नेतृत्व किए गए देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने वैज्ञानिक उन्नति, आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं, जो इस लेख में विस्तार से बताए गए हैं।

 1. मजबूत सरकारी समर्थन और दृष्टिकोण

भारत के अंतरिक्ष प्रयास 1969 में ISRO की स्थापना के साथ शुरू हुए, जिसे डॉ. विक्रम साराभाई ने स्थापित किया था, जिनका दृष्टिकोण था कि अंतरिक्ष कार्यक्रम राष्ट्रीय हितों की सेवा करेगा। दशकों तक, भारत सरकारों ने ISRO के मिशनों का लगातार वित्तीय समर्थन किया है और इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति से प्रोत्साहित किया है। विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अभूतपूर्व उत्साह दिखाया है, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा दिया है। अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता ने भारत की इस क्षेत्र में प्रगति के रास्ते को मजबूत किया है।

2. लागत-प्रभावीता और संसाधनों का कुशल उपयोग

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह अन्य देशों द्वारा किए गए समान परियोजनाओं की तुलना में सफलता को एक मामूली लागत पर प्राप्त करता है। ISRO ने अपनी मितव्ययिता और नवाचार के कारण एक लागत-प्रभावी संगठन के रूप में ख्याति प्राप्त की है। 2013 का मंगल मिशन (मंगलयान) इसका प्रमुख उदाहरण है। केवल 74 मिलियन डॉलर की लागत से यह एशिया का पहला मिशन बन गया, जो मंगल की कक्षा में पहुंचा और भारत ने इसे पहली बार प्रयास में हासिल किया। इस मिशन की सफलता ने भारत की क्षमता को सीमित संसाधनों के साथ उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम प्राप्त करने में साबित किया।

 3. प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता पर आधारित है। हालांकि ISRO की शुरुआत में विदेशों से मदद प्राप्त की जाती थी, लेकिन वर्षों में संगठन ने स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास किया है, जैसे रॉकेटों का प्रक्षेपण, उपग्रहों का निर्माण और अंतर-ग्रहण मिशनों का संचालन। PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) दो ऐसे उदाहरण हैं जो भारत की प्रौद्योगिकी में प्रगति को दर्शाते हैं। उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहनों को स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्माण करने की क्षमता ने भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया है और इसने देश की क्षमता में विश्वास को मजबूत किया है।

 4. शिक्षा और प्रतिभा विकास पर जोर

ISRO ने भारत में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को पोषित करने पर भी जोर दिया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि देश अंतरिक्ष विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों का निरंतर उत्पादन करता है। भारत में बड़ी संख्या में सक्षम इंजीनियर, वैज्ञानिक और तकनीशियन हैं, जिन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रशिक्षित किया जाता है। इस बौद्धिक पूंजी ने देश की अंतरिक्ष सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 5.सहयोग और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां

भारत के अंतरिक्ष मिशन अकेले नहीं किए गए हैं। ISRO ने वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष एजेंसियों और संगठनों के साथ मजबूत साझेदारियां बनाई हैं। NASA, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), रूसी अंतरिक्ष एजेंसी और अन्य देशों के साथ सहयोग ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूत किया है। विशेष रूप से, ISRO द्वारा विदेशी देशों के लिए उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया जाना, एक व्यावसायिक दृष्टिकोण से, ISRO को एक विश्वसनीय अंतरिक्ष भागीदार के रूप में स्थापित करता है। इन साझेदारियों के माध्यम से भारत को उन्नत प्रौद्योगिकियों, डेटा साझाकरण और अतिरिक्त वित्तीय अवसरों का लाभ मिलता है, जो उसकी अंतरिक्ष क्षमताओं को और अधिक मजबूत करता है।

6. व्यावहारिक और सामाजिक अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करना

भारत के अंतरिक्ष मिशन केवल अन्वेषण तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि देश ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए किया है, जो समाज के लिए लाभकारी हैं। इसमें उपग्रह आधारित संचार, मौसम पूर्वानुमान, कृषि निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग, आपदा प्रबंधन और शहरी योजना शामिल हैं। ISRO का पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रहों का काम भारत के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण संकटों जैसे बाढ़, सूखा और चक्रवातों से निपटने के तरीके को बदलने में क्रांतिकारी साबित हुआ है।

7. जनसामान्य का उत्साह और राष्ट्रीय गर्व

ISRO के मिशनों की सफलता ने एक राष्ट्रीय गर्व और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए जनसामान्य के उत्साह को बढ़ावा दिया है। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मील के पत्थरों के आसपास पूरे देश में उत्साह और उत्सव का माहौल था, जिससे आगे और अन्वेषण के लिए समर्थन मिला। ISRO की उपलब्धियों को व्यापक पहचान मिली है, जिससे युवा भारतीयों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए प्रेरणा मिली है, जो देश के अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास में योगदान कर रहे हैं।

 8. प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति

ISRO की क्षमता को जटिल अंतरिक्ष मिशनों को सफलता से अंजाम देने का श्रेय उसकी अत्यधिक प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति को भी जाता है। संगठन को समयसीमा से पहले और बजट के भीतर मिशन पूरा करने के लिए जाना जाता है। यह दक्षता एक सुव्यवस्थित संगठन, स्पष्ट उद्देश्यों और ISRO की विभिन्न टीमों के बीच सहयोग पर आधारित है।

भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता एक संयोजन है दृष्टि, लागत-प्रभावी रणनीतियों, प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता का। जैसे-जैसे देश अंतरिक्ष अन्वेषण में नए शिखर प्राप्त करता जाएगा, जिसमें मानव अंतरिक्ष मिशन की योजनाएं भी शामिल हैं, इसकी उपलब्धियां भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। भारत की अंतरिक्ष यात्रा यह उदाहरण पेश करती है कि कैसे रणनीतिक योजना, धैर्य और नवाचार से कोई भी देश सीमित संसाधनों के बावजूद वैश्विक स्तर पर सफलता प्राप्त कर सकता है। सरकार के समर्थन, लोगों की प्रतिभा और दूरदृष्टि के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम आने वाले वर्षों में और भी बड़े मील के पत्थर हासिल करने के लिए तैयार है।

41 साल के अरबपति को ट्रंप ने सौंपी नासा की कमान, जानिए कौन हैं जेरेड इसाकमैन

#trumpchosenewheadofnasanominatedthisbillionaire_businessman

अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शपथ ग्रहण से पहले ही अपनी 'ड्रीम टीम' बनाने में जुटे हैं। इस दौरान डोनाल़्ड ट्रंप लगातार अपने फैसलों से सभी को हैरान कर रहे हैं। ट्रंप ने अपनी कैबिनेट में भी कई ऐसे लोगों को शामिल किया, जिनके नाम सुनकर सब चौंक गए। अब डोनाल्ड ट्रंप ने एलन मस्क की स्पेसएक्स से अंतरिक्ष की पहली निजी अंतरिक्ष यात्रा करने वाले अरबपति जेरेड इसाकमैन को नासा का नेतृत्व करने के लिए नामित किया।

ट्रंप ने क्या कहा?

ट्रंप ने एक्स पर कहा, "मैं एक कुशल बिजनेस लीडर, परोपकारी, पायलट और अंतरिक्ष यात्री जेरेड इसाकमैन को नासा चीफ के रूप में नामित करते हुए प्रसन्न हूं। जेरेड नासा के खोज और प्रेरणा के मिशन को आगे बढ़ाएंगे, जिससे अंतरिक्ष विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अन्वेषण में अभूतपूर्व उपलब्धियां मिलेंगी।"

सीनेट यदि उनकी नियुक्ति की पुष्टि कर देती है तो वह फ्लोरिडा के पूर्व डेमोक्रेटिक सीनेटर 82 वर्षीय बिल नेल्सन का स्थान लेंगे, जिन्हें राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नामित किया था।

एलन मस्क से भी खास नाता

इसाकमैन का दिग्गज कारोबारी और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क से भी खास नाता है। दरअसल, इसाकमैन स्पेसएक्स के सहयोग से ही अंतरिक्ष में स्पेसवॉक करने वाले पहले निजी अंतरिक्षयात्री बने थे। कार्ड प्रोसेसिंग कंपनी के सीईओ और संस्थापक 41 वर्षीय जेरेड इसाकमैन ने 2021 की उस यात्रा पर प्रतियोगिता विजेताओं को साथ अंतरिक्ष की यात्रा की और सितंबर में एक मिशन के साथ भी अंतरिक्ष में गए, जहां पर उन्होंने स्पेसएक्स के नए स्पेसवॉकिंग सूट का परीक्षण करने के लिए कुछ समय के लिए अंतरिक्ष में विचरण किया।

एलन मस्क ने इसाकमैन को दी बधाई

एलन मस्क ने एक्स पर इसाकमैन को बधाई देते हुए उन्होंने उच्च क्षमता वाला ईमानदार शख्स बताया है। जेरेड इसाकमैन एक प्रमुख अमेरिकी कारोबारी, पायलट और अंतरिक्ष यात्री हैं, जो अब दुनिया की सबसे शक्तिशाली अंतरिक्ष एजेंसी की कमान संभालेंगे। ट्रंप के ऐलान के बाद इसाकमैन ने कहा कि वह काफी सम्मानित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर लिखा कि वह दुनिया के अविश्वसनीय साहसिक कार्य का नेतृत्व करने के लिए उत्साहित हैं।

आज और 12 नवंबर की रात दिखेगी अद्भुत घटना, आसमान से लाखों उल्काओं की होगी बारिश, आतिशबाजी जैसा नजारा भी दिखेगा

11 और 12 नवंबर की रात खगोलीय विज्ञान के क्षेत्र में एक अद्भुत घटना होने वाली है और खगोलीय घटनाओं में दिलचस्पी रखने वालों के लिए ये एक ऐसा मौका है जिसमें ये लोग अंतरिक्ष-ब्रह्मांड के रोमांच से ओत-प्रोत हो जाएंगे। दरअसल इस दिन आसमान लाखों उल्काओं (Meteor) की बारिश दिखाई देगी, जिससे आसमान में आतिशबाजी जैसा नजारा देखने को मिलेगा। इसे टॉरिड उल्का वर्षा कहते हैं। इस साल ये घटना फिर घटित हो रही है इसलिए इसे टॉरिड उल्का वर्षा 2024 कहा जा रहा है। क्या है ये टॉरिड उल्का वर्षा और कब, कहां, कितने समय और कैसे इसे देख सकते हैं, यहां डिटेल में जानिए।

अंतरिक्ष की खबरें देने वाली स्पेस डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक टॉरिड उल्का वर्षा धूमकेतु 2P/Encke के मलबे, बर्फ और धूल की वजह से होती है, जब ये हमारे सौर मंडल से होकर गुजरता है। ये मलबा इतना बड़ा और फैला हुआ होता है कि पृथ्वी को मलबे के पूरे भाग से गुजरने में काफी लंबा समय लगता है, जिसके चलते इस वर्षा के दो अलग-अलग भागों का अनुभव होता है – उत्तरी टॉरिड्स और दक्षिणी टॉरिड्स। धूमकेतु एन्के और टॉरिड उल्का वर्षा को एक बहुत बड़े धूमकेतु के अवशेष माना जाता है, जो पिछले 20,000 से 30,000 सालों में टूटकर बिखर गया था।

टॉरिड उल्काएं दूसरी उल्काओं के मुकाबले काफी बड़ी होती हैं। ये धरती के वायुमंडल से गुज़रने के बाद भी लंबे समय तक जिंदा रहती हैं। NASA की रिपोर्ट ने एक उदाहरण देेते हुए समझाया कि ओरियोनिड्स (उल्काएं) आमतौर पर 58 मील (93 किमी) की ऊँचाई पर जाकर जल जाते हैं जबकि टॉरिड्स आमतौर पर 42 मील (66 किमी) की दूरी तक पहुंचते हैं। हालांकि वे ओरियोनिड्स के मुकाबले धीमी रफ्तार से चलते हैं। ये लगभग 17 मील (27 किलोमीटर) प्रति सेकंड या 65,000 मील (104,000 किमी) प्रति घंटे की गति से आकाश में घूमते हैं। वहीं पर्सिड्स (उल्काएं) 37 मील (59 किमी) प्रति सेकंड की गति से आकाश में उड़ते हैं।

टॉरिड्स वर्षा दो तरह की हो रही है दक्षिणी टॉरिड्स और उत्तरी टॉरिड्स, दक्षिणी टॉरिड्स 28 सितंबर से 2 दिसम्बर तक एक्टिव रहते हैं और 4 नवम्बर और 5 नवम्बर के आसपास चरम पर होते हैं जबकि उत्तरी टॉरिड्स 13 अक्टूबर से 2 दिसम्बर के बीच सक्रिय रहते हैं और 11-12 नवम्बर के आसपास चरम पर होते हैं। ऐसे में 11 और 12 नवंबर को आप आसानी से सीधे आंखों से उन्हें देख सकते हैं।

कश्मीर कभी मीठे पानी की झील थी, ये वो दौर था जब यहां एक भी शख्स नहीं रहता था।NASA ने दिए सबूत

डेस्क :– हिमालय के तराई क्षेत्र की सबसे खूबसूरत घाटी कश्मीर कभी मीठे पानी की झील थी। ये वो दौर था जब यहां एक भी शख्स नहीं रहता था। पहाड़ों से घिरी ये झील धीरे-धीरे खत्म हो गई। ये सब हुआ इंसानों के बढ़ते हस्तक्षेप से। अब घाटी में कुछ झीलें हैं, लेकिन उन पर भी संकट मंडरा रहा है। यह हैरान करने वाला दावा NASA ने किया है।

नासा की अर्थ ऑब्ज़र्वेटरी ने दावा किया है 4.5 मिलियन साल पहले कश्मीर घाटी कभी 84 मील लंबी और 20 मील चौड़ी झील थी। पहाड़ों से घिरी ये झील दुनिया की सबसे ऊंची और बड़ी झीलों में शुमार थी, जो समुद्र तल से औसतन 6000 फीट की ऊंचाई पर मीठे पानी का सबसे बड़ा स्रोत थी। नासा के मुताबिक घाटी का कटोरे जैसा आकार और उसके तल पर रेतीले, मिट्टी जैसे तलछट इस बात का सबूत हैं।

*धरती से ऐसी दिखती है कश्मीर घाटी*

नासा की अर्थ ऑब्ज़र्वेटरी ने कश्मीर घाटी की जो तस्वीर ली है, उसमें आसमान से यह पूरी तरह झील की तरह दिखती है, जिसके ऊपर धुंध के बादल छाए नजर आते हैं।इसमें आसपास बर्फ पर जमी दिख रही है, नासा के मुताबिक ऐसा तब होता है जब जमीन ठंडी होती है। ऊपर धरती से यह बर्फ पाउडर की तरह नजर आती है। अर्थ ऑब्जर्वेटरी के अनुसार, तस्वीर जिस दिन ली गई उस दिन वायु प्रदूषण का उच्च स्तर था।

*अब कई छोटी झीलों का घर है कश्मीर*

कश्मीर घाटी पर लाइव साइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अब कश्मीर घाटी झील नहीं रही, अब यह कई छोटी झीलों का घर है। हालांकि अब ये झीलें मानव संबंधित तनावों को महसूस कर रही हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में उपग्रह से ली गई तस्वीरों से पता चला है कि कश्मीर घाटी की ज्यादातर झीलें यूट्रोफिकेशन से प्रभावित हैं, यानी जलीय जीवों के लिए जहर बन चुकी हैं।

*क्या होता है यूट्रोफिकेशन*

यूट्रोफिकेशन वह अवस्था है, जिसमें शहरीकरण की वजह से कई तरह के तत्व झीलों में जातें हैं। ये कई तरह के शैवाल बनाते हैं, इससे झीलों की सतह पर पौधे बढ़ जाते हैं, जिससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और पानी जलीय जीवों के लिए जहर बन जाता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि घाटी की सबसे बड़ी झील वुलर पिछले एक दशक से काफी हद तक यूट्रोफिकेशन से पीड़ित थी। अन्य झीलों का भी यही हाल हो रहा है।
अंतरिक्ष में आठ जून से फंसी सुनीता विलियम्स को लाने के लिए धरती से उड़ा स्पेसक्राफ्ट, 5 महीने बाद इसी में वापसी

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में आठ जून से फंसे अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुल विल्मोर को वापस लाने के लिए बचाव अभियान शुरू हो गया। नासा और अरबपति कारोबारी एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने मिलकर एक स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में भेजा है। दोनों को धरती पर वापस लाने के लिए दो यात्रियों का छोटा सा दल भेजा गया है, लेकिन यह अभियान अगले साल फरवरी तक ही पूरा हो सकेगा। इस मिशन को NASA SpaceX Crew 9 नाम दिया गया है।

सुनीता विलियम्स और बुल विल्मोर आठ दिन के लिए धरती से अंतरिक्ष यान में सवार होकर उड़े थे, लेकिन उनकी वापसी अभी तक नहीं हो पाई है। नासा के तमाम प्रयासों के बावजूद अभी उनकी वापसी मुमकिन नहीं है। दोनों यात्री स्पेसएक्स के जिस यान पर बैठकर उड़े थे, उसमें तकनीकी खामी के कारण उनकी वापसी अभी सुरक्षित नहीं है। ऐसे में नासा ने इसके लिए बीते शनिवार को बचाव अभियान की शुरुआत कर दी। स्पेसक्रॉफ्ट 28 सितंबर को लॉन्च किया गया। इस विमान में नासा के अंतरिक्ष यात्री निक हेग और रूसी अंतरिक्ष यात्री अलेक्जेंडर गोरबुनोव सवार हैं।

चूंकि नासा अंतरिक्ष स्टेशन के कर्मचारियों को लगभग हर छह महीने में बदलता है, इस नई उड़ान में विलमोर और विलियम्स के लिए दो खाली सीटें हैं और यह फरवरी के अंत में वापस आएगी। नासा प्रमुख बिल नेल्सन ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "सफल प्रक्षेपण के लिए NASA और SpaceX को बधाई।"

जब निक हेग और गोरबुनोव फरवरी में अंतरिक्ष स्टेशन से लौटेंगे, तो वे बुच विल्मोर और सुनीता विलियम्स को साथ लेकर आएंगे। सुनीता विलियम्स और विल्मोर का आईएसएस पर प्रवास स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान में आई समस्याओं के कारण महीनों तक लंबा खिंच गया है।

अब खून के आंसू रोएगा इजराइल”, हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह की खुली धमकी, जानें इजराइल ने क्या कहा

#hezbollah_hassan_nasarllah_open_threat_says_israel_will_weep

हमास चीफ इस्माइल हानिया और हिजबुल्लाह कमांडर फउद शुकर की हत्या के बाद पहली बार हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह का रिएक्शन आया। उन्होंने इजराइल से बदला लेने का वादा किया है। नसरल्ला उसने कहा कि फिलहाल इजराइली बहुत खुश लग रहे हैं, लेकिन आने वाले दिनों में वे खूब रोएंगे। नसरल्लाह ने इजराइल से सभी मोर्चे पर खुली लड़ाई का ऐलान किया।

हिजबुल्लाह कमांडर फउद शुकर के अंतिम संस्कार के दौरान नसरल्ला ने किसी गुप्त जगह से टीवी पर जनता को संबोधित किया। इस दौरान चीफ हसन नसरल्लाह ने इजरायल को धमकाया। हसन नसरल्लाह ने कहा कि हिजबुल्लाह कमांडर फुआद शुक्र और हमास चीफ इस्माइल हानिया की हत्या करके इजरायल ने रेड लाइन क्रॉस कर दी है। उसे प्रतिशोध का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जंग अब नए चरण में प्रवेश कर गई है। आने वाले दिनों में इजराइली बहुत रोएंगे।

हिजबुल्लाह के टॉप कमांडर फउद शुकर के जनाजे पर अपने भाषण में नसरल्लाह ने कहा कि हिजबुल्लाह गाजा और फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन की कीमत चुका रहा है लेकिन उन्होंने कहा कि उनका समूह अब समर्थन के चरण से आगे निकल चुका है और उन्होंने सभी मोर्चों पर खुली लड़ाई का ऐलान कर दिया है।

बता दें कि हिजुबल्लाह ने बदला लेना शुरू भी कर दिया है। फउद शुकर की हत्या के 48 घंटे के भीतर ही हिजबुल्लाह ने लेबनान से इजरायल में रॉकेट दागे और खलबली मचा दी। हिजबुल्लाह ने संकेत दे दिया है कि वह इजरायल पर हमला करके ही मानेगा।

वहीं, नसरल्लाह की चेतावनी के बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि इजराइल अपने खिलाफ किसी भी अटैक के लिए तैयार है। अगर हम पर हमला होता है तो हम देख लेंगे। उन्होंने कहा, इजराइल किसी भी परिदृश्य के लिए पूरी तरह से तैयार है। हम अपनी रक्षा भी कर सकते हैं और आक्रमण भी। हम किसी भी क्षेत्र से हमारे खिलाफ अटैक की बहुत भारी कीमत वसूल करेंगे।

इजरायल ने मगंलवार शाम को लेबनान की राजधानी बेरूत में हिजबुल्लाह के सैन्य प्रमुख फुआद शुकर को हवाई हमले में मार दिया था। ईरान समर्थित चरमपंथी समूह के लिए पिछले दो दशक में ये सबसे बड़ा झटका था। शुकर हिजबुल्लाह प्रमुख नसरल्लाह का बेहद ही करीबी था। इजरायल ने उसे हाल ही में गोलन हाइट्स पर हुए हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया था, जिसमें 12 द्रूज बच्चों की मौत हो गई थी। शुकर की मौत ने लेबनान सीमा पर हो रहे हमलों के एक युद्ध में बदलने का डर बढ़ा दिया है।

आ गई शुभांशु शुक्ला के स्पेस जाने की नई तारीख, 25 जून को लॉन्च होगा एक्सिओम-4 मिशन

#nasaannouncesnewlaunchdateforaxiom4mission

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) के लिए जाने वाले एक्सिओम-4 मिशन के लॉन्चिंग की नई तारीख आ चुकी है। नासा और स्पेसएक्स के एक्सिओम मिशन को अब 25 जून को लॉन्च करने की तैयारी है। भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला 25 जून को एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन रवाना होंगे। छह बार तकनीकी खामियों के कारण टलने के बाद अब लॉन्चिंग तय हुई है।

अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने जानकारी दी है कि एक्सिओम-4 मिशन अब 25 जून को लॉन्च किया जाएगा। एक्सिओम-4 मिशन की लॉन्चिंग फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से होगी। नासा ने बताया कि यह मिशन 25 जून को भारतीय समयानुसार सुबह 12:01 बजे स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया जाएगा।

अब तक 6 बार टला मिशन

इससे पहले इस मिशन को 29 मई को लॉन्च करने की योजना थी, लेकिन तकनीकी खामी की वजह से इसे टाल दिया गया। एक्सिओम-4 मिशन को अब तक 6 बार टाला जा चुका है। पहले यह मिशन 29 मई को शुरू होने वाला था, लेकिन मौसम की वजह से इसे 8 जून तक के लिए टाल दिया गया। बाद में, फाल्कन-9 रॉकेट के बूस्टर में लिक्विड ऑक्सीजन के रिसाव के कारण तारीख 10 जून और फिर 11 जून कर दी गई। इसके बाद, तकनीकी खराबी के कारण इसे 19 जून और फिर 22 जून के लिए स्थगित कर दिया गया।

मिशन में भारत के साथ हंगरी और पोलैंड भी शामिल

एक्सिओम-4 मिशन एक निजी अंतरिक्ष यात्री मिशन है। इस मिशन में भारत के साथ हंगरी और पोलैंड भी शामिल हैं। खास बात यह है कि यह मिशन तीनों देशों के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है। भारत के लिए यह मिशन इसलिए अहम है क्योंकि लंबे समय बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में जाएगा। इस मिशन में अमेरिका से डॉ. पेगी व्हिटसन मिशन कमांडर हैं। पोलैंड से स्लावोज उज्नान्स्की-विस्निएव्स्की और हंगरी से टिबोर कापू (दोनों मिशन विशेषज्ञ) शामिल हैं। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को पायलट बनाया गया है।

*২৪ মে কি কোনো বিপদ আসছে পৃথিবীতে?*

ডেস্ক : এই বছরের ২৪ মে অ্যাস্টেরয়েড ২০০৩ MH4 পৃথিবীর খুব কাছাকাছি দিয়ে যাবে। এমনটাই আঁচ করেছে নাসার জেট প্রোপালশন ল্যাবরেটরি। এটি ‘সম্ভাব্য বিপজ্জনক অ্যাস্টেরয়েড’ ক্যাটেগরিতে পড়ে। সূত্রের খবর, পৃথিবীর দিকে একটি মহাজাগতিক অ্যাস্টেরয়েড এগিয়ে আসছে। তা যদি ধাক্কা খায়, তাহলে ধ্বংস অনিবার্য। নাম ‘অ্যাস্টেরয়েড ২০০৩ MH4’। এটি প্রায় ৩৩৫ মিটার চওড়া, অর্থাৎ প্রায় তিনটি ফুটবল মাঠের সমান বড়। নাসার মতে, এই অ্যাস্টেরয়েড ২৪ মে ২০২৫-এ পৃথিবীর কাছাকাছি দিয়ে যাবে। এত দ্রুত গতিতে যে শুনে গায়ে কাঁটা দেবে। এর গতি ১৪ কিলোমিটার প্রতি সেকেন্ড।

NASA-এর Jet Propulsion Laboratory (JPL)-এর মতে, এই অ্যাস্টেরয়েড পৃথিবী থেকে ৬.৬৮ মিলিয়ন কিলোমিটার দূর দিয়ে যাবে। শুনতে অনেক বেশি লাগলেও, মহাকাশ বিজ্ঞানের ভাষায় এই দূরত্ব খুব কম ধরা হয়। 0এই অ্যাস্টেরয়েড Apollo গ্রুপের অংশ। এটি অ্যাস্টেরয়েডের এমন একটি গ্রুপ যার অরবিট পৃথিবীর অরবিটকে ক্রস করে। Apollo গ্রুপের অ্যাস্টেরয়েডের সংখ্যা ২১,০০০-এরও বেশি, এবং এদের মধ্যে অনেকের সঙ্গে ভবিষ্যতে সংঘর্ষের আশঙ্কা প্রকাশ করা হয়েছে।

कौन हैं भारतीय मूल नीला राजेंद्र? जिसे नासा ने दिखाया बाहर का रास्ता


#neela_rajendra_nasa_terminated 

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप जबसे दोबारा राष्ट्रपति बने हैं अपने फैसलों के कारण सुर्खियों में हैं। अवैध प्रवास सेलकर टैरिफ के जरिए दुनियाभर के देशों को निशाने बना चुके ट्रंप के फैसलों के गाज इस बार भारतीय मूल की एक अफसर पर गिरी है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में बड़े पद पर नियुक्त नीला राजेंद्र को नौकरी से निकाल दिया गया है। डोनाल्ड ट्रंप के डाइवर्सिटी प्रोग्राम बंद करने के आदेश पर नासा ने यह बड़ा एक्शन लिया है। नासा की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी (जेपीएल) ने ईमेल के जरिए सभी कर्मचारियों को नीला को बर्खास्त करने की जानकारी दी है।

सत्ता में आने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में सभी डाइवर्सिटी प्रोग्राम बंद करने के आदेश दिए थे। ट्रंप ने आदेश निकाला था कि ऐसी डाइवर्सिटी पहल (हर तबके को प्रतिनिधित्व देने की पहल) के तहत नौकरी पर रखे सभी व्यक्तियों को हटाना होगा, और देश भर में ऐसे सभी कार्यक्रमों को समाप्त करना होगा। इसी के तहत अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा में डाइवर्सिटी, इक्विटी और इंक्लूजन यानी डीईआई की चीफ नीला राजेंद्र को हटा दिया गया है। 

नीला राजेंद्र भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक हैं। उनकी बर्खास्तगी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अरबपति एलन मस्क के डीईआई पहलों के विरोध के बीच हुई। डीईआई एक ऐसी नीति है जो कार्यस्थलों या संगठनों में विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को शामिल करने, उनके लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है। लेकिन ट्रंप और मस्क मानते हैं कि ये पहलें अनुचित प्रथाओं को बढ़ावा देती हैं। 

हालांकि, ऐसा नहीं है कि नासा ने नीला राजेंद्र को बचाने की कोशिश नहीं की। उन्हें नौकरी से निकाले जाने से बचाने के प्रयास में, ट्रंप के कार्यकारी आदेश के तुरंत बाद नासा ने कथित तौर पर उनके पद का नाम बदलकर 'हेड ऑफ ऑफिस ऑफ टीम एक्सीलेंस एंड एम्प्लॉई सक्सेस' कर दिया था। लेकिन आखिरकार उनको बचाने की कोशिश अंततः विफल रही।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि डाइवर्सिटी प्रोग्राम की वजह से अमेरिका नस्ल, रंग और लिंग के आधार पर बंट गया है। इस तरह के प्रोग्राम्स सिर्फ पैसों की बर्बादी है। इससे भेदभाव को बढ़ावा मिलता है। यही वजह है कि ट्रंप ने अमेरिका में चलने वाले सभी डाइवर्सिटी प्रोग्राम्स को बंद करने का आदेश दे दिया है।

कौन हैं शुभांशु शुक्ला? स्पेस एक्स ड्रैगन के पायलट बनेंगे, ISS पर जाने वाले पहले भारतीय होंगे

#who_is_shubhanshu_shukla_become_first_indian_astronaut_to_pilot_axiom_4_ws

इंडियन एयरफोर्स के ऑफिसर शुभांशु शुक्ला को नासा के एग्जियम मिशन 4 के लिए पायलट चुना गया है। जल्द ही वे स्पेस एक्स ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट को लेकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर जाएंगे। शुभांशु आईएसएस पर जाने वाले पहले भारतीय होंगे। यह मिशन 14 दिन तक चलेगा। इसके तहत रिसर्च की जाएगी। शुभांशु इसरो के मिशन गगनयान के लिए ट्रेनिंग ले रहे है।

इंडियन एयरफोर्स के शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में जाने को बेताब हैं। वे एक्सिओम मिशन 4 के पायलट के रूप में चुने गए हैं। यह मिशन नासा और इसरो के बीच एक संयुक्त प्रयास का हिस्सा है। मिशन की कमांड पैगी व्हिटसन संभालेंगी । शुभांशु पायलट होंगे। इनके साथ मिशन स्पेशलिस्ट पोलैंड के स्लावोज उजनांस्की-विश्निवस्की और हंगरी के तिबोर कापू अप्रैल और जून 2025 के बीच एग्जियम मिशन-4 पर जाएंगे।

ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस में, एक्सिओम मिशन-4 के चालक दल के सदस्यों ने अभियान के लिए प्रशिक्षण के अपने अनुभव साझा किए। भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुक्ला ने कहा, ‘‘मैं ‘माइक्रोग्रैविटी’ में जाने और अपने दम पर अंतरिक्ष उड़ान का अनुभव करने के लिए वास्तव में बहुत उत्साहित हूं। मिशन के लिए उत्साह लगातार बढ़ रहा है और मुझे लगता है कि हम एक ऐसे चरण में हैं जहां सभी चीजें साकार हो रही हैं।’

शुक्ला इस मिशन को लेकर बेहद उत्साहित हैं। शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष स्टेशन के मिशन पर जब उड़ान भरेंगे तो यह भारत के 1.4 अरब लोगों का सफर होगा। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने खुद कहा कि वह 1.4 अरब भारतीयों की तरफ से इस सफर पर निकल रहे हैं। उन्होंने कहा, 'अंतरिक्ष की यह यात्रा मेरी व्यक्तिगत नहीं, बल्कि 1.4 अरब लोगों की यात्रा है।' यह मिशन 14 दिनों तक चलेगा। इस दौरान, अंतरिक्ष यात्री वैज्ञानिक प्रयोग, आउटरीच कार्यक्रम और कम ग्रैविटी में कई एक्टिविटी करेंगे।

कौन हैं शुभांशु शुक्ला?

10 अक्टूबर 1985 को लखनऊ में जन्मे शुभांशु शुक्ला जून 2006 में भारतीय वायु सेना में एक फाइटर पायलट के रूप में शामिल हुए। मार्च 2024 में उन्हें ग्रुप कैप्टन का पद मिला। उन्होंने Su-30 MKI, MiG-21, MiG-29, Jaguar, Hawk, Dornier और An-32 जैसे कई विमानों पर 2,000 घंटे से अधिक उड़ान भरी है। 2019 में रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में एस्ट्रोनॉट की ट्रेनिंग ली है। भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम, गगनयान मिशन के लिए इसरो द्वारा चुने गए। NASA-Axiom Space सहयोग के तहत आईएसएस की यात्रा करने वाले पहले इसरो अंतरिक्ष यात्री होंगे। अपने अंतरिक्ष अनुभव को तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से देशवासियों के साथ साझा करने की योजना बना रहे हैं।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा: सफलता के पीछे की रणनीतियाँ और प्रेरक कारण

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भारत की अंतरिक्ष यात्रा किसी चमत्कार से कम नहीं रही है, जो उल्लेखनीय उपलब्धियों की एक श्रृंखला से भरी हुई है, जिसे वैश्विक पहचान मिली है। उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण से लेकर अंतर-ग्रहण अन्वेषण तक, भारत ने लगातार अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अपनी बढ़ती ताकत का प्रदर्शन किया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा नेतृत्व किए गए देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने वैज्ञानिक उन्नति, आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं, जो इस लेख में विस्तार से बताए गए हैं।

 1. मजबूत सरकारी समर्थन और दृष्टिकोण

भारत के अंतरिक्ष प्रयास 1969 में ISRO की स्थापना के साथ शुरू हुए, जिसे डॉ. विक्रम साराभाई ने स्थापित किया था, जिनका दृष्टिकोण था कि अंतरिक्ष कार्यक्रम राष्ट्रीय हितों की सेवा करेगा। दशकों तक, भारत सरकारों ने ISRO के मिशनों का लगातार वित्तीय समर्थन किया है और इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति से प्रोत्साहित किया है। विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अंतरिक्ष अन्वेषण के प्रति अभूतपूर्व उत्साह दिखाया है, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा दिया है। अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता ने भारत की इस क्षेत्र में प्रगति के रास्ते को मजबूत किया है।

2. लागत-प्रभावीता और संसाधनों का कुशल उपयोग

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह अन्य देशों द्वारा किए गए समान परियोजनाओं की तुलना में सफलता को एक मामूली लागत पर प्राप्त करता है। ISRO ने अपनी मितव्ययिता और नवाचार के कारण एक लागत-प्रभावी संगठन के रूप में ख्याति प्राप्त की है। 2013 का मंगल मिशन (मंगलयान) इसका प्रमुख उदाहरण है। केवल 74 मिलियन डॉलर की लागत से यह एशिया का पहला मिशन बन गया, जो मंगल की कक्षा में पहुंचा और भारत ने इसे पहली बार प्रयास में हासिल किया। इस मिशन की सफलता ने भारत की क्षमता को सीमित संसाधनों के साथ उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम प्राप्त करने में साबित किया।

 3. प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता पर आधारित है। हालांकि ISRO की शुरुआत में विदेशों से मदद प्राप्त की जाती थी, लेकिन वर्षों में संगठन ने स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास किया है, जैसे रॉकेटों का प्रक्षेपण, उपग्रहों का निर्माण और अंतर-ग्रहण मिशनों का संचालन। PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) दो ऐसे उदाहरण हैं जो भारत की प्रौद्योगिकी में प्रगति को दर्शाते हैं। उपग्रहों और प्रक्षेपण वाहनों को स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्माण करने की क्षमता ने भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया है और इसने देश की क्षमता में विश्वास को मजबूत किया है।

 4. शिक्षा और प्रतिभा विकास पर जोर

ISRO ने भारत में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को पोषित करने पर भी जोर दिया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि देश अंतरिक्ष विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों का निरंतर उत्पादन करता है। भारत में बड़ी संख्या में सक्षम इंजीनियर, वैज्ञानिक और तकनीशियन हैं, जिन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (IITs) और भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रशिक्षित किया जाता है। इस बौद्धिक पूंजी ने देश की अंतरिक्ष सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 5.सहयोग और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां

भारत के अंतरिक्ष मिशन अकेले नहीं किए गए हैं। ISRO ने वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष एजेंसियों और संगठनों के साथ मजबूत साझेदारियां बनाई हैं। NASA, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA), रूसी अंतरिक्ष एजेंसी और अन्य देशों के साथ सहयोग ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूत किया है। विशेष रूप से, ISRO द्वारा विदेशी देशों के लिए उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया जाना, एक व्यावसायिक दृष्टिकोण से, ISRO को एक विश्वसनीय अंतरिक्ष भागीदार के रूप में स्थापित करता है। इन साझेदारियों के माध्यम से भारत को उन्नत प्रौद्योगिकियों, डेटा साझाकरण और अतिरिक्त वित्तीय अवसरों का लाभ मिलता है, जो उसकी अंतरिक्ष क्षमताओं को और अधिक मजबूत करता है।

6. व्यावहारिक और सामाजिक अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करना

भारत के अंतरिक्ष मिशन केवल अन्वेषण तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि देश ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए किया है, जो समाज के लिए लाभकारी हैं। इसमें उपग्रह आधारित संचार, मौसम पूर्वानुमान, कृषि निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग, आपदा प्रबंधन और शहरी योजना शामिल हैं। ISRO का पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रहों का काम भारत के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण संकटों जैसे बाढ़, सूखा और चक्रवातों से निपटने के तरीके को बदलने में क्रांतिकारी साबित हुआ है।

7. जनसामान्य का उत्साह और राष्ट्रीय गर्व

ISRO के मिशनों की सफलता ने एक राष्ट्रीय गर्व और अंतरिक्ष विज्ञान के लिए जनसामान्य के उत्साह को बढ़ावा दिया है। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मील के पत्थरों के आसपास पूरे देश में उत्साह और उत्सव का माहौल था, जिससे आगे और अन्वेषण के लिए समर्थन मिला। ISRO की उपलब्धियों को व्यापक पहचान मिली है, जिससे युवा भारतीयों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए प्रेरणा मिली है, जो देश के अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास में योगदान कर रहे हैं।

 8. प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति

ISRO की क्षमता को जटिल अंतरिक्ष मिशनों को सफलता से अंजाम देने का श्रेय उसकी अत्यधिक प्रभावी परियोजना प्रबंधन और संगठनात्मक संस्कृति को भी जाता है। संगठन को समयसीमा से पहले और बजट के भीतर मिशन पूरा करने के लिए जाना जाता है। यह दक्षता एक सुव्यवस्थित संगठन, स्पष्ट उद्देश्यों और ISRO की विभिन्न टीमों के बीच सहयोग पर आधारित है।

भारत की अंतरिक्ष मिशनों में सफलता एक संयोजन है दृष्टि, लागत-प्रभावी रणनीतियों, प्रौद्योगिकी नवाचार और आत्मनिर्भरता का। जैसे-जैसे देश अंतरिक्ष अन्वेषण में नए शिखर प्राप्त करता जाएगा, जिसमें मानव अंतरिक्ष मिशन की योजनाएं भी शामिल हैं, इसकी उपलब्धियां भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। भारत की अंतरिक्ष यात्रा यह उदाहरण पेश करती है कि कैसे रणनीतिक योजना, धैर्य और नवाचार से कोई भी देश सीमित संसाधनों के बावजूद वैश्विक स्तर पर सफलता प्राप्त कर सकता है। सरकार के समर्थन, लोगों की प्रतिभा और दूरदृष्टि के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम आने वाले वर्षों में और भी बड़े मील के पत्थर हासिल करने के लिए तैयार है।

41 साल के अरबपति को ट्रंप ने सौंपी नासा की कमान, जानिए कौन हैं जेरेड इसाकमैन

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अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शपथ ग्रहण से पहले ही अपनी 'ड्रीम टीम' बनाने में जुटे हैं। इस दौरान डोनाल़्ड ट्रंप लगातार अपने फैसलों से सभी को हैरान कर रहे हैं। ट्रंप ने अपनी कैबिनेट में भी कई ऐसे लोगों को शामिल किया, जिनके नाम सुनकर सब चौंक गए। अब डोनाल्ड ट्रंप ने एलन मस्क की स्पेसएक्स से अंतरिक्ष की पहली निजी अंतरिक्ष यात्रा करने वाले अरबपति जेरेड इसाकमैन को नासा का नेतृत्व करने के लिए नामित किया।

ट्रंप ने क्या कहा?

ट्रंप ने एक्स पर कहा, "मैं एक कुशल बिजनेस लीडर, परोपकारी, पायलट और अंतरिक्ष यात्री जेरेड इसाकमैन को नासा चीफ के रूप में नामित करते हुए प्रसन्न हूं। जेरेड नासा के खोज और प्रेरणा के मिशन को आगे बढ़ाएंगे, जिससे अंतरिक्ष विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अन्वेषण में अभूतपूर्व उपलब्धियां मिलेंगी।"

सीनेट यदि उनकी नियुक्ति की पुष्टि कर देती है तो वह फ्लोरिडा के पूर्व डेमोक्रेटिक सीनेटर 82 वर्षीय बिल नेल्सन का स्थान लेंगे, जिन्हें राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नामित किया था।

एलन मस्क से भी खास नाता

इसाकमैन का दिग्गज कारोबारी और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क से भी खास नाता है। दरअसल, इसाकमैन स्पेसएक्स के सहयोग से ही अंतरिक्ष में स्पेसवॉक करने वाले पहले निजी अंतरिक्षयात्री बने थे। कार्ड प्रोसेसिंग कंपनी के सीईओ और संस्थापक 41 वर्षीय जेरेड इसाकमैन ने 2021 की उस यात्रा पर प्रतियोगिता विजेताओं को साथ अंतरिक्ष की यात्रा की और सितंबर में एक मिशन के साथ भी अंतरिक्ष में गए, जहां पर उन्होंने स्पेसएक्स के नए स्पेसवॉकिंग सूट का परीक्षण करने के लिए कुछ समय के लिए अंतरिक्ष में विचरण किया।

एलन मस्क ने इसाकमैन को दी बधाई

एलन मस्क ने एक्स पर इसाकमैन को बधाई देते हुए उन्होंने उच्च क्षमता वाला ईमानदार शख्स बताया है। जेरेड इसाकमैन एक प्रमुख अमेरिकी कारोबारी, पायलट और अंतरिक्ष यात्री हैं, जो अब दुनिया की सबसे शक्तिशाली अंतरिक्ष एजेंसी की कमान संभालेंगे। ट्रंप के ऐलान के बाद इसाकमैन ने कहा कि वह काफी सम्मानित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर लिखा कि वह दुनिया के अविश्वसनीय साहसिक कार्य का नेतृत्व करने के लिए उत्साहित हैं।

आज और 12 नवंबर की रात दिखेगी अद्भुत घटना, आसमान से लाखों उल्काओं की होगी बारिश, आतिशबाजी जैसा नजारा भी दिखेगा

11 और 12 नवंबर की रात खगोलीय विज्ञान के क्षेत्र में एक अद्भुत घटना होने वाली है और खगोलीय घटनाओं में दिलचस्पी रखने वालों के लिए ये एक ऐसा मौका है जिसमें ये लोग अंतरिक्ष-ब्रह्मांड के रोमांच से ओत-प्रोत हो जाएंगे। दरअसल इस दिन आसमान लाखों उल्काओं (Meteor) की बारिश दिखाई देगी, जिससे आसमान में आतिशबाजी जैसा नजारा देखने को मिलेगा। इसे टॉरिड उल्का वर्षा कहते हैं। इस साल ये घटना फिर घटित हो रही है इसलिए इसे टॉरिड उल्का वर्षा 2024 कहा जा रहा है। क्या है ये टॉरिड उल्का वर्षा और कब, कहां, कितने समय और कैसे इसे देख सकते हैं, यहां डिटेल में जानिए।

अंतरिक्ष की खबरें देने वाली स्पेस डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक टॉरिड उल्का वर्षा धूमकेतु 2P/Encke के मलबे, बर्फ और धूल की वजह से होती है, जब ये हमारे सौर मंडल से होकर गुजरता है। ये मलबा इतना बड़ा और फैला हुआ होता है कि पृथ्वी को मलबे के पूरे भाग से गुजरने में काफी लंबा समय लगता है, जिसके चलते इस वर्षा के दो अलग-अलग भागों का अनुभव होता है – उत्तरी टॉरिड्स और दक्षिणी टॉरिड्स। धूमकेतु एन्के और टॉरिड उल्का वर्षा को एक बहुत बड़े धूमकेतु के अवशेष माना जाता है, जो पिछले 20,000 से 30,000 सालों में टूटकर बिखर गया था।

टॉरिड उल्काएं दूसरी उल्काओं के मुकाबले काफी बड़ी होती हैं। ये धरती के वायुमंडल से गुज़रने के बाद भी लंबे समय तक जिंदा रहती हैं। NASA की रिपोर्ट ने एक उदाहरण देेते हुए समझाया कि ओरियोनिड्स (उल्काएं) आमतौर पर 58 मील (93 किमी) की ऊँचाई पर जाकर जल जाते हैं जबकि टॉरिड्स आमतौर पर 42 मील (66 किमी) की दूरी तक पहुंचते हैं। हालांकि वे ओरियोनिड्स के मुकाबले धीमी रफ्तार से चलते हैं। ये लगभग 17 मील (27 किलोमीटर) प्रति सेकंड या 65,000 मील (104,000 किमी) प्रति घंटे की गति से आकाश में घूमते हैं। वहीं पर्सिड्स (उल्काएं) 37 मील (59 किमी) प्रति सेकंड की गति से आकाश में उड़ते हैं।

टॉरिड्स वर्षा दो तरह की हो रही है दक्षिणी टॉरिड्स और उत्तरी टॉरिड्स, दक्षिणी टॉरिड्स 28 सितंबर से 2 दिसम्बर तक एक्टिव रहते हैं और 4 नवम्बर और 5 नवम्बर के आसपास चरम पर होते हैं जबकि उत्तरी टॉरिड्स 13 अक्टूबर से 2 दिसम्बर के बीच सक्रिय रहते हैं और 11-12 नवम्बर के आसपास चरम पर होते हैं। ऐसे में 11 और 12 नवंबर को आप आसानी से सीधे आंखों से उन्हें देख सकते हैं।

कश्मीर कभी मीठे पानी की झील थी, ये वो दौर था जब यहां एक भी शख्स नहीं रहता था।NASA ने दिए सबूत

डेस्क :– हिमालय के तराई क्षेत्र की सबसे खूबसूरत घाटी कश्मीर कभी मीठे पानी की झील थी। ये वो दौर था जब यहां एक भी शख्स नहीं रहता था। पहाड़ों से घिरी ये झील धीरे-धीरे खत्म हो गई। ये सब हुआ इंसानों के बढ़ते हस्तक्षेप से। अब घाटी में कुछ झीलें हैं, लेकिन उन पर भी संकट मंडरा रहा है। यह हैरान करने वाला दावा NASA ने किया है।

नासा की अर्थ ऑब्ज़र्वेटरी ने दावा किया है 4.5 मिलियन साल पहले कश्मीर घाटी कभी 84 मील लंबी और 20 मील चौड़ी झील थी। पहाड़ों से घिरी ये झील दुनिया की सबसे ऊंची और बड़ी झीलों में शुमार थी, जो समुद्र तल से औसतन 6000 फीट की ऊंचाई पर मीठे पानी का सबसे बड़ा स्रोत थी। नासा के मुताबिक घाटी का कटोरे जैसा आकार और उसके तल पर रेतीले, मिट्टी जैसे तलछट इस बात का सबूत हैं।

*धरती से ऐसी दिखती है कश्मीर घाटी*

नासा की अर्थ ऑब्ज़र्वेटरी ने कश्मीर घाटी की जो तस्वीर ली है, उसमें आसमान से यह पूरी तरह झील की तरह दिखती है, जिसके ऊपर धुंध के बादल छाए नजर आते हैं।इसमें आसपास बर्फ पर जमी दिख रही है, नासा के मुताबिक ऐसा तब होता है जब जमीन ठंडी होती है। ऊपर धरती से यह बर्फ पाउडर की तरह नजर आती है। अर्थ ऑब्जर्वेटरी के अनुसार, तस्वीर जिस दिन ली गई उस दिन वायु प्रदूषण का उच्च स्तर था।

*अब कई छोटी झीलों का घर है कश्मीर*

कश्मीर घाटी पर लाइव साइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अब कश्मीर घाटी झील नहीं रही, अब यह कई छोटी झीलों का घर है। हालांकि अब ये झीलें मानव संबंधित तनावों को महसूस कर रही हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में उपग्रह से ली गई तस्वीरों से पता चला है कि कश्मीर घाटी की ज्यादातर झीलें यूट्रोफिकेशन से प्रभावित हैं, यानी जलीय जीवों के लिए जहर बन चुकी हैं।

*क्या होता है यूट्रोफिकेशन*

यूट्रोफिकेशन वह अवस्था है, जिसमें शहरीकरण की वजह से कई तरह के तत्व झीलों में जातें हैं। ये कई तरह के शैवाल बनाते हैं, इससे झीलों की सतह पर पौधे बढ़ जाते हैं, जिससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और पानी जलीय जीवों के लिए जहर बन जाता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि घाटी की सबसे बड़ी झील वुलर पिछले एक दशक से काफी हद तक यूट्रोफिकेशन से पीड़ित थी। अन्य झीलों का भी यही हाल हो रहा है।
अंतरिक्ष में आठ जून से फंसी सुनीता विलियम्स को लाने के लिए धरती से उड़ा स्पेसक्राफ्ट, 5 महीने बाद इसी में वापसी

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में आठ जून से फंसे अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुल विल्मोर को वापस लाने के लिए बचाव अभियान शुरू हो गया। नासा और अरबपति कारोबारी एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने मिलकर एक स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में भेजा है। दोनों को धरती पर वापस लाने के लिए दो यात्रियों का छोटा सा दल भेजा गया है, लेकिन यह अभियान अगले साल फरवरी तक ही पूरा हो सकेगा। इस मिशन को NASA SpaceX Crew 9 नाम दिया गया है।

सुनीता विलियम्स और बुल विल्मोर आठ दिन के लिए धरती से अंतरिक्ष यान में सवार होकर उड़े थे, लेकिन उनकी वापसी अभी तक नहीं हो पाई है। नासा के तमाम प्रयासों के बावजूद अभी उनकी वापसी मुमकिन नहीं है। दोनों यात्री स्पेसएक्स के जिस यान पर बैठकर उड़े थे, उसमें तकनीकी खामी के कारण उनकी वापसी अभी सुरक्षित नहीं है। ऐसे में नासा ने इसके लिए बीते शनिवार को बचाव अभियान की शुरुआत कर दी। स्पेसक्रॉफ्ट 28 सितंबर को लॉन्च किया गया। इस विमान में नासा के अंतरिक्ष यात्री निक हेग और रूसी अंतरिक्ष यात्री अलेक्जेंडर गोरबुनोव सवार हैं।

चूंकि नासा अंतरिक्ष स्टेशन के कर्मचारियों को लगभग हर छह महीने में बदलता है, इस नई उड़ान में विलमोर और विलियम्स के लिए दो खाली सीटें हैं और यह फरवरी के अंत में वापस आएगी। नासा प्रमुख बिल नेल्सन ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "सफल प्रक्षेपण के लिए NASA और SpaceX को बधाई।"

जब निक हेग और गोरबुनोव फरवरी में अंतरिक्ष स्टेशन से लौटेंगे, तो वे बुच विल्मोर और सुनीता विलियम्स को साथ लेकर आएंगे। सुनीता विलियम्स और विल्मोर का आईएसएस पर प्रवास स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान में आई समस्याओं के कारण महीनों तक लंबा खिंच गया है।

अब खून के आंसू रोएगा इजराइल”, हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह की खुली धमकी, जानें इजराइल ने क्या कहा

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हमास चीफ इस्माइल हानिया और हिजबुल्लाह कमांडर फउद शुकर की हत्या के बाद पहली बार हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह का रिएक्शन आया। उन्होंने इजराइल से बदला लेने का वादा किया है। नसरल्ला उसने कहा कि फिलहाल इजराइली बहुत खुश लग रहे हैं, लेकिन आने वाले दिनों में वे खूब रोएंगे। नसरल्लाह ने इजराइल से सभी मोर्चे पर खुली लड़ाई का ऐलान किया।

हिजबुल्लाह कमांडर फउद शुकर के अंतिम संस्कार के दौरान नसरल्ला ने किसी गुप्त जगह से टीवी पर जनता को संबोधित किया। इस दौरान चीफ हसन नसरल्लाह ने इजरायल को धमकाया। हसन नसरल्लाह ने कहा कि हिजबुल्लाह कमांडर फुआद शुक्र और हमास चीफ इस्माइल हानिया की हत्या करके इजरायल ने रेड लाइन क्रॉस कर दी है। उसे प्रतिशोध का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जंग अब नए चरण में प्रवेश कर गई है। आने वाले दिनों में इजराइली बहुत रोएंगे।

हिजबुल्लाह के टॉप कमांडर फउद शुकर के जनाजे पर अपने भाषण में नसरल्लाह ने कहा कि हिजबुल्लाह गाजा और फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन की कीमत चुका रहा है लेकिन उन्होंने कहा कि उनका समूह अब समर्थन के चरण से आगे निकल चुका है और उन्होंने सभी मोर्चों पर खुली लड़ाई का ऐलान कर दिया है।

बता दें कि हिजुबल्लाह ने बदला लेना शुरू भी कर दिया है। फउद शुकर की हत्या के 48 घंटे के भीतर ही हिजबुल्लाह ने लेबनान से इजरायल में रॉकेट दागे और खलबली मचा दी। हिजबुल्लाह ने संकेत दे दिया है कि वह इजरायल पर हमला करके ही मानेगा।

वहीं, नसरल्लाह की चेतावनी के बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि इजराइल अपने खिलाफ किसी भी अटैक के लिए तैयार है। अगर हम पर हमला होता है तो हम देख लेंगे। उन्होंने कहा, इजराइल किसी भी परिदृश्य के लिए पूरी तरह से तैयार है। हम अपनी रक्षा भी कर सकते हैं और आक्रमण भी। हम किसी भी क्षेत्र से हमारे खिलाफ अटैक की बहुत भारी कीमत वसूल करेंगे।

इजरायल ने मगंलवार शाम को लेबनान की राजधानी बेरूत में हिजबुल्लाह के सैन्य प्रमुख फुआद शुकर को हवाई हमले में मार दिया था। ईरान समर्थित चरमपंथी समूह के लिए पिछले दो दशक में ये सबसे बड़ा झटका था। शुकर हिजबुल्लाह प्रमुख नसरल्लाह का बेहद ही करीबी था। इजरायल ने उसे हाल ही में गोलन हाइट्स पर हुए हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया था, जिसमें 12 द्रूज बच्चों की मौत हो गई थी। शुकर की मौत ने लेबनान सीमा पर हो रहे हमलों के एक युद्ध में बदलने का डर बढ़ा दिया है।