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उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा मंजूर, पीएम मोदी ने की अच्छे स्वास्थ्य की कामना

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया है। धनखड़ ने राष्ट्रपति मुर्मू को पत्र भेजकर पद से इस्तीफे की बात कही थी। उन्होंने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया था। जिसके बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया है। जिसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व उपराष्ट्रपति के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मएक्स पर अपने पोस्ट में कहा, जगदीप धनखड़ को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं।

इस्तीफे से पहले पूरे दिन राज्यसभा में सक्रिय रहे

इससे पहले सोमवार को धनखड़ पूरे दिन राज्यसभा में सक्रिय थे। सुबह उन्होंने विपक्ष को संसद को संवाद एवं चर्चा का सकारात्मक मंच बनाने की नसीहत दी और दोपहर बाद जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार करते हुए पूरी प्रक्रिया को स्पष्ट किया। जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ पेश महाभियोग के नोटिस में एक सांसद के दोहरे दस्तखत पर जांच बैठाने की भी घोषणा की थी।

मानसून सत्र के पहले दिन इस्तीफा

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन ही उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा भेजकर कहा, 'स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सा सलाह का पालन करने के लिए' मैं तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं।

कांग्रेस बोली- पीछे कुछ और गहरे कारण

उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद सियासी पारा भी चढ़ गया है। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर हो रहा है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में कहा, इस अप्रत्याशित इस्तीफे में जो दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा है। इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं। पीएम मोदी धनखड़ को मन बदलने के लिए मनाएं। यह राष्ट्रहित में होगा। खासतौर पर कृषक समुदाय को बहुत राहत मिलेगी।

उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे के पीछे कोई और अधिक गहरे कारण”, कांग्रेस के दावे में कितनी सच्चाई?

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देश की सियासत में सोमवार को उस वक्त उबाल आ गया जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा दिया। इस्तीफे के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने मंगलवार को दावा किया कि जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के पीछे कहीं ज्यादा गंभीर कारण हैं। यह उनकी ओर से बताए गए स्वास्थ्य कारणों से कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में कहा- इस अप्रत्याशित इस्तीफे में जो दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा है। पीएम मोदी धनखड़ को मन बदलने के लिए मनाएं। यह राष्ट्रहित में होगा। खासतौर पर कृषक समुदाय को बहुत राहत मिलेगी।

जयराम रमेश ने कहा- मैं आज शाम (21 जुलाई) लगभग 5 बजे तक कई अन्य सांसदों के साथ उनके साथ था। कल दोपहर 12:30 बजे जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की अध्यक्षता की। इस बैठक में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू समेत ज्यादातर सदस्य मौजूद थे। थोड़ी देर की चर्चा के बाद तय हुआ कि समिति की अगली बैठक शाम 4:30 बजे फिर से होगी। शाम 4:30 बजे धनखड़ की अध्यक्षता में समिति के सदस्य दोबारा बैठक के लिए इकट्ठा हुए। सभी नड्डा और रिजिजू का इंतजार करते रहे, लेकिन वे नहीं आए।

इसके पीछे कुछ और गहरे कारण- जयराम रमेश

जयराम ने लिखा, 'इससे साफ है कि कल दोपहर 1 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे के बीच जरूर कुछ गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बैठक में हिस्सा नहीं लिया। शाम 7.30 बजे उनसे फोन पर बात की थी। अब एक बेहद चौंकाने वाला कदम उठाते हुए जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इसकी वजह अपनी सेहत को बताया है। हमें इसका मान रखना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं।

विपक्ष को जगह देने की कोशिश की- जयराम रमेश

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि धनखड़ ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ की, लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज उठाई। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बढ़ते अहंकार की आलोचना की और न्यायपालिका की जवाबदेही व संयम की जरूरत पर जोर दिया। मौजूदा ‘जी2’ सरकार के दौर में भी उन्होंने जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की।

उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाने वालों की नीयत पर सवाल

अंत में जयराम रमेश ने कहा कि वह नियमों, प्रक्रियाओं और मर्यादाओं के पक्के थे। उन्हें लगता था कि उनकी भूमिका में लगातार इन बातों की अनदेखी हो रही है। जगदीप धनखड़ का इस्तीफा उनके बारे में बहुत कुछ कहता है। साथ ही यह उन लोगों की नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिन्होंने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था।

जगदीप धनखड़ ने दिया इस्तीफा, संसद सत्र के बीच पद छेड़ने वाले पहले उपराष्ट्रपति

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। धनखड़ ने इस संबंध में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक लेटर लिखा है। इसमें स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला दिया है। धनखड़ ने कहा कि उन्होंने अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए डॉक्टरी सलाह के आधार पर यह फैसला किया है। उन्होंने अपने इस्तीफे को तत्काल प्रभाव से स्वीकार करने की बात कहते हुए संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का हवाला दिया है।

सत्र के बीच में पद से इस्तीफा

जगदीप धनखड़ ने अपने पत्र में राष्ट्रपति को उनके सहयोग और सौहार्दपूर्ण संबंधों के लिए धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल को भी सहयोग के लिए आभार जताया। हालांकि, राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही उनका इस्तीफा प्रभावी होगा। इस समय संसद का मानसून सत्र चल रहा है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं। सत्र के बीच में पद से इस्तीफा देने वाले धनखड़ देश के पहले उपराष्ट्रपति हैं। साथ ही कार्यकाल के बीच में इस्तीफा देने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति भी हैं।

1969 में वीवी गिरी ने किया था इस प्रावधान का उपयोग

भारत के संविधान के आर्टिकल 67(A) के तहत उन्‍होंने ये कदम उठाया। भारत के 75 साल के इतिहास में यह दूसरी बार है जब इस नियम का इस्‍तेमाल किया गया है। यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जो उपराष्ट्रपति के पद की गरिमा को भी अंडरलाइन करती है। इससे पहले साल 1969 में वीवी गिरी ने इस प्रावधान का उपयोग किया था। इससे पहले 20 जुलाई 1969 को वीवी गिरी ने राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद छोड़ा था। गिरी बाद में भारत के राष्ट्रपति बने। वीवी गिरी का इस्तीफा एक महत्वपूर्ण मिसाल है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति बनने की महत्वाकांक्षा के चलते पद छोड़ा था।

क्‍या कहता है आर्टिकल 67(A)?

भारतीय संविधान का आर्टिकल 67 उपराष्ट्रपति के कार्यकाल और पद से हटने की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। इसके खंड (A) के तहत राष्ट्रपति को लिखित रूप में उपराष्ट्रपति इस्तीफा सौंपकर स्वेच्छा से पद छोड़ सकता है। खंड (B) में प्रावधान है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा में बहुमत और लोकसभा की सहमति से प्रस्ताव पारित कर हटाया जा सकता है, बशर्ते 14 दिन का नोटिस दिया जाए। धनखड़ ने अनुच्छेद 67(A) के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दिया, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य और चिकित्सकीय सलाह को प्राथमिकता देने की बात कही।

संसद ही सर्वोच्च…,न्यायपालिका की आलोचना के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर दोहराई बात


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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर न्यायापलिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्रों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक बार फिर भारत के संविधान में निर्धारित शासन व्यवस्था के ढांचे के भीतर न्यायपालिका की भूमिका और उसकी सीमाओं पर सवाल उठाए हैं। उपराष्ट्रपति ने न्यायिक "अधिकारों के अतिक्रमण" की आलोचना की और दोहराया कि "संसद ही सर्वोच्च है"।

संविधान में संसद से ऊपर कोई नहीं-धनखड़

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान धनखड़ ने कहा कि संविधान के तहत किसी भी पद पर बैठे व्यक्ति की बात हमेशा राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर होती है। धनखड़ ने यह भी कहा कि कुछ लोग यह सोचते हैं कि संवैधानिक पद सिर्फ औपचारिक या दिखावटी होते हैं, लेकिन यह गलत सोच है। संविधान लोगों के लिए है और यह उनके चुने हुए प्रतिनिधियों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि संविधान में संसद से ऊपर किसी भी संस्था की कल्पना नहीं की गई है। संसद सबसे सर्वोच्च है।

लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका-धनखड़

धनखड़ ने आगे कहा कि किसी भी लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका होती है। मुझे यह बात समझ से परे लगती है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि संवैधानिक पद औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं। इस देश में हर किसी की भूमिका (चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक) के बारे में गलत समझ से कोई भी दूर नहीं हो सकता।

लोकतंत्र में चुप रहना खतरनाक है-धनखड़

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में बातचीत और खुली चर्चा बहुत जरूरी है। अगर सोचने-विचारने वाले लोग चुप रहेंगे तो इससे नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को हमेशा संविधान के मुताबिक बोलना चाहिए। हम अपनी संस्कृति और भारतीयता पर गर्व करें। देश में अशांति, हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना सही नहीं है। जरूरत पड़ी तो सख्त कदम भी उठाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई थी चिंता

यहां, उपराष्ट्रपति ने किसी का नाम नहीं लिया। हालांकि, साफ है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर की गई अपनी टिप्पणी को लेकर आलोचना करने वालों पर निशाना साधा। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हाल में कहा था कि राज्यपाल अगर कोई विधेयक राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को उस पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने पिछले शुक्रवार को कहा था कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां जज कानून बनाएंगे, शासकीय कार्य करेंगे और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में कार्य करेंगे।

कपिल सिब्बल का उपराष्ट्रपति धनखड़ पर पलटवार, बोले- राष्ट्रपति नाम का मुखिया, कोई निजी अधिकार नहीं

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने के फैसले पर सवाल उठाया। अब राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जगदीप धनखड़ की टिप्पणी की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि उपराष्ट्रपति को पता होना चाहिए कि राज्यपाल और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की ‘सहायता और सलाह’ पर कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड हैं और गवर्नर का भी पद ऐसा है।

निष्पक्ष बात करने की सलाह

सिब्बल ने शुक्रवार को कहा, आज अखबारों में मुझे धनखड़ साहब का भाषण पढ़कर दुख और आश्चर्य हुआ। उनको किसी पार्टी के स्पोक्सपर्सन की तरह बात नहीं करनी चाहिए बल्कि निष्पक्ष बात करें। आज पूरे देश में अगर किसी संस्था पर भरोसा किया जाता है तो वह न्यायपालिका है। जब सरकार के कुछ लोगों को न्यायपालिका के फैसले पसंद नहीं आते तो वे आरोप लगाते हैं।जब अच्छी लगे तो वपक्ष से कहते हैं कि कोर्ट का फैसला है।

राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड-सिब्बल

कपिल सिब्बल ने इस पर आगे कहा कि वह उपराष्ट्रपति का सम्मान करते हैं, लेकिन उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। उन्होंने कहा, आर्टिकल 142 की शक्ति सुप्रीम कोर्ट को संविधान देता है। राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड हैं। गवर्नर का भी पद ऐसा है। गवर्नर बिल नहीं रोक सकते, राष्ट्रपति को भेजते हैं। राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह और सहयोग से ही काम करते हैं, तो राष्ट्रपति के अधिकार पर सवाल उठाने की बात नहीं है।

सभापति पार्टी के प्रवक्ता की तरह काम नहीं कर सकते-सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा, न्यायपालिका के अधिकारों पर ऐसे बयान हमला हैं। क्या राष्ट्रपति संसद से पास बिल को अनंत समय तक रोक सकते हैं? ऐसे काम कैसे चलेगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2 जज का हो या 5 जज का, सबको मानना होता है। सभापति सदन में पक्ष-विपक्ष के बीच बैठते हैं, निष्पक्ष होते हैं। किसी पार्टी के प्रवक्ता की तरह काम नहीं कर सकते।

अनुच्छेद–142 न्यूक्लियर मिसाइल बना, राष्ट्रपति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भड़के धनखड़

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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय की थी। इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे और कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे।

जज 'सुपर संसद' के रूप में काम करेंगे-धनखड़

राज्यसभा के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक हालिया फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें इसे लेकर बेहद संवेदनशील होने की जरूरत है। हमने इस दिन की कल्पना नहीं की थी, जहां राष्ट्रपति को तय समय में फैसला लेने के लिए कहा जाएगा और अगर वे फैसला नहीं लेंगे तो कानून बन जाएगा।उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब जज विधायी चीजों पर फैसला करेंगे। वे ही कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और सुपर संसद के रूप में काम करेंगे। उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होगी क्योंकि इस देश का कानून उन पर लागू ही नहीं होता।

अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल

उपराष्ट्रपति ने कहा, हम ऐसे हालात नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत मिले कोर्ट को विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24x7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। दरअसल, अनुच्छेद 142 भारत के सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय (कम्पलीट जस्टिस) करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो।

जस्टिस यशवंत वर्मा के मिली नगदी का किया जिक्र

उपराष्ट्रपति ने दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी मिलने की घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा, '14 और 15 मार्च की रात नई दिल्ली में एक जज के घर पर एक घटना हुई। सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। क्या इस देरी को समझा जा सकता है? क्या इसे माफ किया जा सकता है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? किसी भी सामान्य स्थिति में, और सामान्य स्थितियां कानून के शासन को परिभाषित करती हैं - चीजें अलग होतीं। यह केवल 21 मार्च को एक अखबार द्वारा खुलासा किया गया था, जिससे देश के लोग पहले कभी नहीं इतने हैरान हुए।

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?

दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। अदालत ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा।

इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। 11 अप्रैल की रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी।

Political COVID’ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस खतरनाक वायरस से की किसकी तुलना?*l

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारत में चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने में यूएसएजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) द्वारा कथित तौर पर वित्त पोषण किए जाने को लेकर शुक्रवार को चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसे ‘Political COVID’ करार दिया। कथित तौर पर वित्त पोषण किए जाने को लेकर कहा कि जिन लोगों ने देश के लोकतांत्रिक मूल्यों पर इस तरह के हमले की अनुमति दी, उन्हें बेनकाब किया जाना चाहिए।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, मैं दंग रह गया जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने खुद स्वीकार किया कि भारत में चुनावी नतीजों को प्रभावित करने के लिए वित्तीय ताकत का उपयोग किया गया। किसी और को निर्वाचित कराने की साजिश रची गई। चुनाव का अधिकार केवल भारतीय जनता का है, कोई भी बाहरी ताकत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।” उन्होंने सभी नागरिकों से आह्वान किया कि वे इस ‘Political COVID’ के खिलाफ एकजुट हों।

समाज में ‘Political COVID’ ने घुसपैठ की-धनखड़

उपराष्ट्रपति निवास में शनिवार को 5वें आरएस इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा कि समय आ गया है कि हम पूरी तरह से इस बीमारी की जांच करें। हमारे लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए हमारे समाज में इस ‘Political COVID’ ने घुसपैठ की है। इस भयावह गतिविधि में शामिल सभी लोगों को पूरी तरह से बेनकाब किया जाना चाहिए। उन्होंने यहां तक कहा कि चुनाव करना केवल भारतीय लोगों का अधिकार है। कोई भी उस प्रक्रिया से छेड़छाड़ कर रहा है तो, वह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है. इससे हमारे लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है।

संवैधानिक संस्थाओं पर व्यवस्थित तरीके से हमले हो रहे-धनखड़

उपराष्ट्रपति ने चिंता जताई कि भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर व्यवस्थित तरीके से हमले हो रहे हैं। उन्होंने कहा, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री – ये सभी संवैधानिक पद हैं. लेकिन इनका मजाक उड़ाया जा रहा है। यह एक नई तरह की ‘वोकिज्म’ है, जहां सम्मान की जगह अपमान को बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों पर कड़ा ऐतराज जताया। भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति को उनकी संवैधानिक भूमिका निभाने के लिए भी निशाना बनाया जाता है। उनका लंबा प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव है, लेकिन उनकी जनजातीय पहचान पर सवाल उठाए जाते हैं। यह अस्वीकार्य है।

महाकुंभ में आएंगे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, जानें कौन कब लगाएगा आस्था की डुबकी
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भारच में लगने वाला महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम माना जाता है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजत महाकुंभ 2025 में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। महाकुंभ में लगभग 45 करोड़ भक्तों के शामिल लेने की उम्मीद है। देश और दुनिया से लोग महाकुंभ में स्नान करने आ रहे हैं। महाकुंभ में तमाम बड़े नेता और हस्तियां पहुंच रही हैं। इस बीच खबर आ रही है कि महाकुंभ में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी जाएंगे। महाकुंभ में संगम स्नान के लिए PM मोदी 5 फरवरी को आएंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 10 फरवरी तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 1 फरवरी को आएंगे। इससे पहले 27 जनवरी को गृह मंत्री अमित शाह संगम में स्नान करेंगे।

प्रयागराज महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी 5 फरवरी को पहुंचेंगे। उसी दिन दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोट भी डाले जाएंगे। इसलिए, प्रयाग से 'इंद्रप्रस्थ' साधने पर भी नजर होगी। पीएम पिछले महीने 13 दिसंबर को भी प्रयाग आए थे और महाकुंभ की तैयारियों और प्रयागराज के विकास से जुड़ी 5000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं का लोकार्पण किया था। इसके बाद भी मोदी महाकुंभ के प्रमुख आयोजनों और स्नान के दिन सक्रिय रहे हैं।

पीएम मोदी के अलावा देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी महाकुंभ की साक्षी बनेंगी। सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रपति 10 फरवरी को प्रयागराज पहुंचेंगी। राष्ट्रपति के दौरे को लेकर तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। इसके साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी महाकुंभ पहुंचकर संगम में आस्था की डुबकी लगाएंगे। धनखड़ एक फरवरी को पवित्र स्नान करेंगे।

इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह 27 जनवरी को महाकुंभ का दौरा करेंगे। शाह के कार्यक्रम का शेड्यूल जारी हो चुका है। वह संगम स्नान, गंगा पूजा के बाद अधिकारियों के साथ बैठक भी करेंगे।

इन संभावित दौरों को देखते हुए प्रशासनिक अफसरों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। सुरक्षा एजेंसियां भी नए तरीके से रिव्यू में जुट गई हैं। गंगा जल की रोज जांच कराई जा रही है। अब जांच टीम में एटीएस भी शामिल हो गए हैं।
मंदिरों में वीआईपी कल्चर बंद हो”, उप राष्ट्रपति धनखड़ बोले-समानता के प्रतीक हैं धार्मिक स्थल

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उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा कि हमें वीआईपी संस्कृति को खत्म करना चाहिए, खासकर मंदिरों में क्योंकि वीआईपी दर्शन का विचार ही देवत्व के खिलाफ है। वीआईपी दर्शन भक्ति और समरसता की भावना का अपमान है। साथ ही उन्होंने लोगों से विघटनकारी राजनीति से ऊपर उठने और देश को 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करने की अपील भी की।

श्री मंजूनाथ मंदिर में देश के सबसे बड़े प्रतीक्षा परिसर ‘श्री सानिध्य’ के उद्घाटन के मौके पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने धार्मिक स्थलों पर होने वाली वीआईपी व्यवस्था को लेकर बयान दिया। धनखड़ ने कहा कि जब किसी को वरीयता दी जाती है और प्राथमिकता दी जाती है एवं जब हम उसे वीवीआईपी या वीआईपी कहते हैं तो यह समानता की अवधारणा को कमतर आंकना है। वीआईपी संस्कृति एक पथभ्रष्टता है। यह एक अतिक्रमण है। समानता के नजरिए से देखा जाए तो समाज में इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए, धार्मिक स्थलों में तो बिल्कुल भी नहीं।

गलत सूचना के माध्यम से हमें कमजोर करने की कोशिश-धनखड़

धनखड़ ने अपने मुख्य संबोधन में मौजूदा राजनीतिक परिवेश में प्रचलित प्रवृत्ति की आलोचना की, जहां लोग संवाद करने के बजाय लोकतांत्रिक मूल्यों को बाधित करते हैं। उप राष्ट्रपति के मुताबिक भारत में हो रहे राजनीतिक परिवर्तन ‘जलवायु परिवर्तन से भी अधिक खतरनाक हैं’ जो भारतीय लोकतंत्र के विरोधी राजनीतिक ताकतों द्वारा संचालित हैं। धनखड़ ने कहा कि हमें भारत विरोधी ताकतों को बेअसर करना होगा जो विभाजन और गलत सूचना के माध्यम से हमें कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं। हमें उन्हें हमारे देश के महान नाम और समावेशिता, कल्याण और हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में हासिल की गई सभी उपलब्धियों को कलंकित करने से रोकना होगा।

विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एकजुट होने की अपील

उप राष्ट्रपति ने कहा कि भारत विकास के कई मोर्चों पर आगे बढ़ रहा है। ऐसे में हमें विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एकजुट होकर काम करना चाहिए। उन्होंने समाज से आग्रह किया कि भौतिकवाद से ऊपर उठकर सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण संरक्षण और नागरिक अधिकारों को मजबूत करने पर ध्यान दें।

विपक्ष को बड़ा झटका, राज्यसभा सभापति के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव खारिज

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राज्यसभा के सभापति और उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष की तरफ से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को उप-सभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया है।इस तरह अब इसे सदन में पेश नहीं किया जा सकेगा। अनुच्छेद 67(बी) का इस्तेमाल करते हुए उपराष्ट्रपति को हटाने पर विचार करने वाले किसी भी प्रस्ताव के लिए अनिवार्य रूप से कम से कम 14 दिन पूर्व नोटिस देना अनिवार्य होता है, जिसका पालन नहीं किया गया। इस वजह से तकनीकी आधार पर विपक्ष के प्रस्ताव को खारिज किया गया।

उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने कहा कि यह अविश्वास प्रस्ताव देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ नैरेटिव बनाने के उद्देश्य से लाया गया था। उन्होंने बताया कि उस प्रस्ताव में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम भी ठीक से नहीं लिखा गया था। बताया जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव में दस्तावेज और वीडियो को जिक्र नहीं किया गया। उपसभापति ने कहा, संसद और उसके सदस्यों की प्रतिष्ठा के लिए चिंताजनक बात ये है कि यह नोटिस मौजूदा उपराष्ट्रपति को बदनाम करने के दावों से भरा हुआ है, जिसमें अगस्त 2022 में उनके पदभार ग्रहण करने के समय की घटनाओं का जिक्र किया गया है। नोटिस में प्रामाणिकता की कमी और बाद में सामने आई घटनाओं से पता चला कि यह राजनीतिक प्रचार को चमकाने का एक प्रयास था।

संसद के शाीतकालीन सत्र के 10वें दिन (10 दिसंबर) विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा के जनरल सेक्रेटरी पीसी मोदी को धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था। पीसी मोदी ने ही आज उप-सभापति का जवाब सदन में रखा।

राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर INDIA ब्लॉक ने 11 दिसंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा- सभापति राज्यसभा में स्कूल के हेडमास्टर की तरह व्यवहार करते हैं। विपक्ष का सांसद 5 मिनट भाषण दे तो वे उस पर 10 मिनट तक टिप्पणी करते हैं। सभापति सदन के अंदर प्रतिपक्ष के नेताओं को अपने विरोधी के तौर पर देखते हैं। सीनियर-जूनियर कोई भी हो, विपक्षी नेताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर अपमानित करते हैं। उनके व्यवहार के कारण हम अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर हुए हैं।

उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा मंजूर, पीएम मोदी ने की अच्छे स्वास्थ्य की कामना

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया है। धनखड़ ने राष्ट्रपति मुर्मू को पत्र भेजकर पद से इस्तीफे की बात कही थी। उन्होंने इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया था। जिसके बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया है। जिसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व उपराष्ट्रपति के अच्छे स्वास्थ्य की कामना की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मएक्स पर अपने पोस्ट में कहा, जगदीप धनखड़ को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं।

इस्तीफे से पहले पूरे दिन राज्यसभा में सक्रिय रहे

इससे पहले सोमवार को धनखड़ पूरे दिन राज्यसभा में सक्रिय थे। सुबह उन्होंने विपक्ष को संसद को संवाद एवं चर्चा का सकारात्मक मंच बनाने की नसीहत दी और दोपहर बाद जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार करते हुए पूरी प्रक्रिया को स्पष्ट किया। जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ पेश महाभियोग के नोटिस में एक सांसद के दोहरे दस्तखत पर जांच बैठाने की भी घोषणा की थी।

मानसून सत्र के पहले दिन इस्तीफा

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन ही उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा भेजकर कहा, 'स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सा सलाह का पालन करने के लिए' मैं तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं।

कांग्रेस बोली- पीछे कुछ और गहरे कारण

उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद सियासी पारा भी चढ़ गया है। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर हो रहा है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में कहा, इस अप्रत्याशित इस्तीफे में जो दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा है। इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं। पीएम मोदी धनखड़ को मन बदलने के लिए मनाएं। यह राष्ट्रहित में होगा। खासतौर पर कृषक समुदाय को बहुत राहत मिलेगी।

उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे के पीछे कोई और अधिक गहरे कारण”, कांग्रेस के दावे में कितनी सच्चाई?

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देश की सियासत में सोमवार को उस वक्त उबाल आ गया जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा दिया। इस्तीफे के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने मंगलवार को दावा किया कि जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के पीछे कहीं ज्यादा गंभीर कारण हैं। यह उनकी ओर से बताए गए स्वास्थ्य कारणों से कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में कहा- इस अप्रत्याशित इस्तीफे में जो दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा है। पीएम मोदी धनखड़ को मन बदलने के लिए मनाएं। यह राष्ट्रहित में होगा। खासतौर पर कृषक समुदाय को बहुत राहत मिलेगी।

जयराम रमेश ने कहा- मैं आज शाम (21 जुलाई) लगभग 5 बजे तक कई अन्य सांसदों के साथ उनके साथ था। कल दोपहर 12:30 बजे जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की अध्यक्षता की। इस बैठक में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू समेत ज्यादातर सदस्य मौजूद थे। थोड़ी देर की चर्चा के बाद तय हुआ कि समिति की अगली बैठक शाम 4:30 बजे फिर से होगी। शाम 4:30 बजे धनखड़ की अध्यक्षता में समिति के सदस्य दोबारा बैठक के लिए इकट्ठा हुए। सभी नड्डा और रिजिजू का इंतजार करते रहे, लेकिन वे नहीं आए।

इसके पीछे कुछ और गहरे कारण- जयराम रमेश

जयराम ने लिखा, 'इससे साफ है कि कल दोपहर 1 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे के बीच जरूर कुछ गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बैठक में हिस्सा नहीं लिया। शाम 7.30 बजे उनसे फोन पर बात की थी। अब एक बेहद चौंकाने वाला कदम उठाते हुए जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इसकी वजह अपनी सेहत को बताया है। हमें इसका मान रखना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं।

विपक्ष को जगह देने की कोशिश की- जयराम रमेश

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि धनखड़ ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ की, लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज उठाई। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बढ़ते अहंकार की आलोचना की और न्यायपालिका की जवाबदेही व संयम की जरूरत पर जोर दिया। मौजूदा ‘जी2’ सरकार के दौर में भी उन्होंने जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की।

उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाने वालों की नीयत पर सवाल

अंत में जयराम रमेश ने कहा कि वह नियमों, प्रक्रियाओं और मर्यादाओं के पक्के थे। उन्हें लगता था कि उनकी भूमिका में लगातार इन बातों की अनदेखी हो रही है। जगदीप धनखड़ का इस्तीफा उनके बारे में बहुत कुछ कहता है। साथ ही यह उन लोगों की नीयत पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिन्होंने उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचाया था।

जगदीप धनखड़ ने दिया इस्तीफा, संसद सत्र के बीच पद छेड़ने वाले पहले उपराष्ट्रपति

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। धनखड़ ने इस संबंध में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक लेटर लिखा है। इसमें स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला दिया है। धनखड़ ने कहा कि उन्होंने अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए डॉक्टरी सलाह के आधार पर यह फैसला किया है। उन्होंने अपने इस्तीफे को तत्काल प्रभाव से स्वीकार करने की बात कहते हुए संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का हवाला दिया है।

सत्र के बीच में पद से इस्तीफा

जगदीप धनखड़ ने अपने पत्र में राष्ट्रपति को उनके सहयोग और सौहार्दपूर्ण संबंधों के लिए धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल को भी सहयोग के लिए आभार जताया। हालांकि, राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही उनका इस्तीफा प्रभावी होगा। इस समय संसद का मानसून सत्र चल रहा है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं। सत्र के बीच में पद से इस्तीफा देने वाले धनखड़ देश के पहले उपराष्ट्रपति हैं। साथ ही कार्यकाल के बीच में इस्तीफा देने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति भी हैं।

1969 में वीवी गिरी ने किया था इस प्रावधान का उपयोग

भारत के संविधान के आर्टिकल 67(A) के तहत उन्‍होंने ये कदम उठाया। भारत के 75 साल के इतिहास में यह दूसरी बार है जब इस नियम का इस्‍तेमाल किया गया है। यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जो उपराष्ट्रपति के पद की गरिमा को भी अंडरलाइन करती है। इससे पहले साल 1969 में वीवी गिरी ने इस प्रावधान का उपयोग किया था। इससे पहले 20 जुलाई 1969 को वीवी गिरी ने राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए उपराष्ट्रपति पद छोड़ा था। गिरी बाद में भारत के राष्ट्रपति बने। वीवी गिरी का इस्तीफा एक महत्वपूर्ण मिसाल है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति बनने की महत्वाकांक्षा के चलते पद छोड़ा था।

क्‍या कहता है आर्टिकल 67(A)?

भारतीय संविधान का आर्टिकल 67 उपराष्ट्रपति के कार्यकाल और पद से हटने की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। इसके खंड (A) के तहत राष्ट्रपति को लिखित रूप में उपराष्ट्रपति इस्तीफा सौंपकर स्वेच्छा से पद छोड़ सकता है। खंड (B) में प्रावधान है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा में बहुमत और लोकसभा की सहमति से प्रस्ताव पारित कर हटाया जा सकता है, बशर्ते 14 दिन का नोटिस दिया जाए। धनखड़ ने अनुच्छेद 67(A) के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दिया, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य और चिकित्सकीय सलाह को प्राथमिकता देने की बात कही।

संसद ही सर्वोच्च…,न्यायपालिका की आलोचना के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर दोहराई बात


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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने फिर न्यायापलिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्रों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक बार फिर भारत के संविधान में निर्धारित शासन व्यवस्था के ढांचे के भीतर न्यायपालिका की भूमिका और उसकी सीमाओं पर सवाल उठाए हैं। उपराष्ट्रपति ने न्यायिक "अधिकारों के अतिक्रमण" की आलोचना की और दोहराया कि "संसद ही सर्वोच्च है"।

संविधान में संसद से ऊपर कोई नहीं-धनखड़

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान धनखड़ ने कहा कि संविधान के तहत किसी भी पद पर बैठे व्यक्ति की बात हमेशा राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर होती है। धनखड़ ने यह भी कहा कि कुछ लोग यह सोचते हैं कि संवैधानिक पद सिर्फ औपचारिक या दिखावटी होते हैं, लेकिन यह गलत सोच है। संविधान लोगों के लिए है और यह उनके चुने हुए प्रतिनिधियों की रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि संविधान में संसद से ऊपर किसी भी संस्था की कल्पना नहीं की गई है। संसद सबसे सर्वोच्च है।

लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका-धनखड़

धनखड़ ने आगे कहा कि किसी भी लोकतंत्र के लिए हर नागरिक की अहम भूमिका होती है। मुझे यह बात समझ से परे लगती है कि कुछ लोगों ने हाल ही में यह विचार व्यक्त किया है कि संवैधानिक पद औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं। इस देश में हर किसी की भूमिका (चाहे वह संवैधानिक पदाधिकारी हो या नागरिक) के बारे में गलत समझ से कोई भी दूर नहीं हो सकता।

लोकतंत्र में चुप रहना खतरनाक है-धनखड़

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में बातचीत और खुली चर्चा बहुत जरूरी है। अगर सोचने-विचारने वाले लोग चुप रहेंगे तो इससे नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा, संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को हमेशा संविधान के मुताबिक बोलना चाहिए। हम अपनी संस्कृति और भारतीयता पर गर्व करें। देश में अशांति, हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना सही नहीं है। जरूरत पड़ी तो सख्त कदम भी उठाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जताई थी चिंता

यहां, उपराष्ट्रपति ने किसी का नाम नहीं लिया। हालांकि, साफ है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर की गई अपनी टिप्पणी को लेकर आलोचना करने वालों पर निशाना साधा। सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हाल में कहा था कि राज्यपाल अगर कोई विधेयक राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजते हैं, तो राष्ट्रपति को उस पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने पिछले शुक्रवार को कहा था कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां जज कानून बनाएंगे, शासकीय कार्य करेंगे और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में कार्य करेंगे।

कपिल सिब्बल का उपराष्ट्रपति धनखड़ पर पलटवार, बोले- राष्ट्रपति नाम का मुखिया, कोई निजी अधिकार नहीं

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने के फैसले पर सवाल उठाया। अब राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जगदीप धनखड़ की टिप्पणी की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि उपराष्ट्रपति को पता होना चाहिए कि राज्यपाल और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की ‘सहायता और सलाह’ पर कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड हैं और गवर्नर का भी पद ऐसा है।

निष्पक्ष बात करने की सलाह

सिब्बल ने शुक्रवार को कहा, आज अखबारों में मुझे धनखड़ साहब का भाषण पढ़कर दुख और आश्चर्य हुआ। उनको किसी पार्टी के स्पोक्सपर्सन की तरह बात नहीं करनी चाहिए बल्कि निष्पक्ष बात करें। आज पूरे देश में अगर किसी संस्था पर भरोसा किया जाता है तो वह न्यायपालिका है। जब सरकार के कुछ लोगों को न्यायपालिका के फैसले पसंद नहीं आते तो वे आरोप लगाते हैं।जब अच्छी लगे तो वपक्ष से कहते हैं कि कोर्ट का फैसला है।

राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड-सिब्बल

कपिल सिब्बल ने इस पर आगे कहा कि वह उपराष्ट्रपति का सम्मान करते हैं, लेकिन उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। उन्होंने कहा, आर्टिकल 142 की शक्ति सुप्रीम कोर्ट को संविधान देता है। राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड हैं। गवर्नर का भी पद ऐसा है। गवर्नर बिल नहीं रोक सकते, राष्ट्रपति को भेजते हैं। राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह और सहयोग से ही काम करते हैं, तो राष्ट्रपति के अधिकार पर सवाल उठाने की बात नहीं है।

सभापति पार्टी के प्रवक्ता की तरह काम नहीं कर सकते-सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा, न्यायपालिका के अधिकारों पर ऐसे बयान हमला हैं। क्या राष्ट्रपति संसद से पास बिल को अनंत समय तक रोक सकते हैं? ऐसे काम कैसे चलेगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2 जज का हो या 5 जज का, सबको मानना होता है। सभापति सदन में पक्ष-विपक्ष के बीच बैठते हैं, निष्पक्ष होते हैं। किसी पार्टी के प्रवक्ता की तरह काम नहीं कर सकते।

अनुच्छेद–142 न्यूक्लियर मिसाइल बना, राष्ट्रपति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर भड़के धनखड़

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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय की थी। इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे और कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे।

जज 'सुपर संसद' के रूप में काम करेंगे-धनखड़

राज्यसभा के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक हालिया फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें इसे लेकर बेहद संवेदनशील होने की जरूरत है। हमने इस दिन की कल्पना नहीं की थी, जहां राष्ट्रपति को तय समय में फैसला लेने के लिए कहा जाएगा और अगर वे फैसला नहीं लेंगे तो कानून बन जाएगा।उपराष्ट्रपति ने कहा कि अब जज विधायी चीजों पर फैसला करेंगे। वे ही कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और सुपर संसद के रूप में काम करेंगे। उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होगी क्योंकि इस देश का कानून उन पर लागू ही नहीं होता।

अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल

उपराष्ट्रपति ने कहा, हम ऐसे हालात नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत मिले कोर्ट को विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24x7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। दरअसल, अनुच्छेद 142 भारत के सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय (कम्पलीट जस्टिस) करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो।

जस्टिस यशवंत वर्मा के मिली नगदी का किया जिक्र

उपराष्ट्रपति ने दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी मिलने की घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा, '14 और 15 मार्च की रात नई दिल्ली में एक जज के घर पर एक घटना हुई। सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। क्या इस देरी को समझा जा सकता है? क्या इसे माफ किया जा सकता है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? किसी भी सामान्य स्थिति में, और सामान्य स्थितियां कानून के शासन को परिभाषित करती हैं - चीजें अलग होतीं। यह केवल 21 मार्च को एक अखबार द्वारा खुलासा किया गया था, जिससे देश के लोग पहले कभी नहीं इतने हैरान हुए।

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?

दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। अदालत ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा।

इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। 11 अप्रैल की रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी।

Political COVID’ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस खतरनाक वायरस से की किसकी तुलना?*l

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारत में चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने में यूएसएजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) द्वारा कथित तौर पर वित्त पोषण किए जाने को लेकर शुक्रवार को चिंता व्यक्त की। उन्होंने इसे ‘Political COVID’ करार दिया। कथित तौर पर वित्त पोषण किए जाने को लेकर कहा कि जिन लोगों ने देश के लोकतांत्रिक मूल्यों पर इस तरह के हमले की अनुमति दी, उन्हें बेनकाब किया जाना चाहिए।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, मैं दंग रह गया जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने खुद स्वीकार किया कि भारत में चुनावी नतीजों को प्रभावित करने के लिए वित्तीय ताकत का उपयोग किया गया। किसी और को निर्वाचित कराने की साजिश रची गई। चुनाव का अधिकार केवल भारतीय जनता का है, कोई भी बाहरी ताकत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।” उन्होंने सभी नागरिकों से आह्वान किया कि वे इस ‘Political COVID’ के खिलाफ एकजुट हों।

समाज में ‘Political COVID’ ने घुसपैठ की-धनखड़

उपराष्ट्रपति निवास में शनिवार को 5वें आरएस इंटर्नशिप कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा कि समय आ गया है कि हम पूरी तरह से इस बीमारी की जांच करें। हमारे लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए हमारे समाज में इस ‘Political COVID’ ने घुसपैठ की है। इस भयावह गतिविधि में शामिल सभी लोगों को पूरी तरह से बेनकाब किया जाना चाहिए। उन्होंने यहां तक कहा कि चुनाव करना केवल भारतीय लोगों का अधिकार है। कोई भी उस प्रक्रिया से छेड़छाड़ कर रहा है तो, वह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है. इससे हमारे लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है।

संवैधानिक संस्थाओं पर व्यवस्थित तरीके से हमले हो रहे-धनखड़

उपराष्ट्रपति ने चिंता जताई कि भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर व्यवस्थित तरीके से हमले हो रहे हैं। उन्होंने कहा, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री – ये सभी संवैधानिक पद हैं. लेकिन इनका मजाक उड़ाया जा रहा है। यह एक नई तरह की ‘वोकिज्म’ है, जहां सम्मान की जगह अपमान को बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों पर कड़ा ऐतराज जताया। भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति को उनकी संवैधानिक भूमिका निभाने के लिए भी निशाना बनाया जाता है। उनका लंबा प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव है, लेकिन उनकी जनजातीय पहचान पर सवाल उठाए जाते हैं। यह अस्वीकार्य है।

महाकुंभ में आएंगे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, जानें कौन कब लगाएगा आस्था की डुबकी
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भारच में लगने वाला महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम माना जाता है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजत महाकुंभ 2025 में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। महाकुंभ में लगभग 45 करोड़ भक्तों के शामिल लेने की उम्मीद है। देश और दुनिया से लोग महाकुंभ में स्नान करने आ रहे हैं। महाकुंभ में तमाम बड़े नेता और हस्तियां पहुंच रही हैं। इस बीच खबर आ रही है कि महाकुंभ में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी जाएंगे। महाकुंभ में संगम स्नान के लिए PM मोदी 5 फरवरी को आएंगे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 10 फरवरी तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 1 फरवरी को आएंगे। इससे पहले 27 जनवरी को गृह मंत्री अमित शाह संगम में स्नान करेंगे।

प्रयागराज महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी 5 फरवरी को पहुंचेंगे। उसी दिन दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोट भी डाले जाएंगे। इसलिए, प्रयाग से 'इंद्रप्रस्थ' साधने पर भी नजर होगी। पीएम पिछले महीने 13 दिसंबर को भी प्रयाग आए थे और महाकुंभ की तैयारियों और प्रयागराज के विकास से जुड़ी 5000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं का लोकार्पण किया था। इसके बाद भी मोदी महाकुंभ के प्रमुख आयोजनों और स्नान के दिन सक्रिय रहे हैं।

पीएम मोदी के अलावा देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी महाकुंभ की साक्षी बनेंगी। सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रपति 10 फरवरी को प्रयागराज पहुंचेंगी। राष्ट्रपति के दौरे को लेकर तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। इसके साथ ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी महाकुंभ पहुंचकर संगम में आस्था की डुबकी लगाएंगे। धनखड़ एक फरवरी को पवित्र स्नान करेंगे।

इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह 27 जनवरी को महाकुंभ का दौरा करेंगे। शाह के कार्यक्रम का शेड्यूल जारी हो चुका है। वह संगम स्नान, गंगा पूजा के बाद अधिकारियों के साथ बैठक भी करेंगे।

इन संभावित दौरों को देखते हुए प्रशासनिक अफसरों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। सुरक्षा एजेंसियां भी नए तरीके से रिव्यू में जुट गई हैं। गंगा जल की रोज जांच कराई जा रही है। अब जांच टीम में एटीएस भी शामिल हो गए हैं।
मंदिरों में वीआईपी कल्चर बंद हो”, उप राष्ट्रपति धनखड़ बोले-समानता के प्रतीक हैं धार्मिक स्थल

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उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा कि हमें वीआईपी संस्कृति को खत्म करना चाहिए, खासकर मंदिरों में क्योंकि वीआईपी दर्शन का विचार ही देवत्व के खिलाफ है। वीआईपी दर्शन भक्ति और समरसता की भावना का अपमान है। साथ ही उन्होंने लोगों से विघटनकारी राजनीति से ऊपर उठने और देश को 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करने की अपील भी की।

श्री मंजूनाथ मंदिर में देश के सबसे बड़े प्रतीक्षा परिसर ‘श्री सानिध्य’ के उद्घाटन के मौके पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने धार्मिक स्थलों पर होने वाली वीआईपी व्यवस्था को लेकर बयान दिया। धनखड़ ने कहा कि जब किसी को वरीयता दी जाती है और प्राथमिकता दी जाती है एवं जब हम उसे वीवीआईपी या वीआईपी कहते हैं तो यह समानता की अवधारणा को कमतर आंकना है। वीआईपी संस्कृति एक पथभ्रष्टता है। यह एक अतिक्रमण है। समानता के नजरिए से देखा जाए तो समाज में इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए, धार्मिक स्थलों में तो बिल्कुल भी नहीं।

गलत सूचना के माध्यम से हमें कमजोर करने की कोशिश-धनखड़

धनखड़ ने अपने मुख्य संबोधन में मौजूदा राजनीतिक परिवेश में प्रचलित प्रवृत्ति की आलोचना की, जहां लोग संवाद करने के बजाय लोकतांत्रिक मूल्यों को बाधित करते हैं। उप राष्ट्रपति के मुताबिक भारत में हो रहे राजनीतिक परिवर्तन ‘जलवायु परिवर्तन से भी अधिक खतरनाक हैं’ जो भारतीय लोकतंत्र के विरोधी राजनीतिक ताकतों द्वारा संचालित हैं। धनखड़ ने कहा कि हमें भारत विरोधी ताकतों को बेअसर करना होगा जो विभाजन और गलत सूचना के माध्यम से हमें कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं। हमें उन्हें हमारे देश के महान नाम और समावेशिता, कल्याण और हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में हासिल की गई सभी उपलब्धियों को कलंकित करने से रोकना होगा।

विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एकजुट होने की अपील

उप राष्ट्रपति ने कहा कि भारत विकास के कई मोर्चों पर आगे बढ़ रहा है। ऐसे में हमें विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एकजुट होकर काम करना चाहिए। उन्होंने समाज से आग्रह किया कि भौतिकवाद से ऊपर उठकर सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण संरक्षण और नागरिक अधिकारों को मजबूत करने पर ध्यान दें।

विपक्ष को बड़ा झटका, राज्यसभा सभापति के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव खारिज

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राज्यसभा के सभापति और उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष की तरफ से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को उप-सभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया है।इस तरह अब इसे सदन में पेश नहीं किया जा सकेगा। अनुच्छेद 67(बी) का इस्तेमाल करते हुए उपराष्ट्रपति को हटाने पर विचार करने वाले किसी भी प्रस्ताव के लिए अनिवार्य रूप से कम से कम 14 दिन पूर्व नोटिस देना अनिवार्य होता है, जिसका पालन नहीं किया गया। इस वजह से तकनीकी आधार पर विपक्ष के प्रस्ताव को खारिज किया गया।

उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने कहा कि यह अविश्वास प्रस्ताव देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ नैरेटिव बनाने के उद्देश्य से लाया गया था। उन्होंने बताया कि उस प्रस्ताव में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम भी ठीक से नहीं लिखा गया था। बताया जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव में दस्तावेज और वीडियो को जिक्र नहीं किया गया। उपसभापति ने कहा, संसद और उसके सदस्यों की प्रतिष्ठा के लिए चिंताजनक बात ये है कि यह नोटिस मौजूदा उपराष्ट्रपति को बदनाम करने के दावों से भरा हुआ है, जिसमें अगस्त 2022 में उनके पदभार ग्रहण करने के समय की घटनाओं का जिक्र किया गया है। नोटिस में प्रामाणिकता की कमी और बाद में सामने आई घटनाओं से पता चला कि यह राजनीतिक प्रचार को चमकाने का एक प्रयास था।

संसद के शाीतकालीन सत्र के 10वें दिन (10 दिसंबर) विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा के जनरल सेक्रेटरी पीसी मोदी को धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था। पीसी मोदी ने ही आज उप-सभापति का जवाब सदन में रखा।

राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर INDIA ब्लॉक ने 11 दिसंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा- सभापति राज्यसभा में स्कूल के हेडमास्टर की तरह व्यवहार करते हैं। विपक्ष का सांसद 5 मिनट भाषण दे तो वे उस पर 10 मिनट तक टिप्पणी करते हैं। सभापति सदन के अंदर प्रतिपक्ष के नेताओं को अपने विरोधी के तौर पर देखते हैं। सीनियर-जूनियर कोई भी हो, विपक्षी नेताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर अपमानित करते हैं। उनके व्यवहार के कारण हम अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर हुए हैं।