सोनभद्र : मौत का कुआं! 2016 से चल रही खदान बनी मजदूरों और पर्यावरण के लिए काल, जलस्तर घटा प्रशासन की अनदेखी
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विकास कुमार अग्रहरी, सोनभद्र। ओबरा के रास पहाड़ी इलाके में मे. साई बाबा स्टोन वर्कस की पत्थर खदान सालों से विवादों और खतरों का पर्याय बनी हुई है। 2016 से संचालित यह खदान अब मजदूरों की जान और आसपास के पर्यावरण के लिए "मौत का कुआं" साबित हो रही है। नियमों की धज्जियां उड़ाते इस खदान में न केवल जानलेवा रास्ते हैं, बल्कि अंधाधुंध ब्लास्टिंग से उड़ता धूल और धुआं स्थानीय लोगों के लिए "गब्बर" बन गया है, जो उनके स्वास्थ्य और घरों को लील रहा है। वन्यजीवों पर भी खतरा मंडरा रहा है, लेकिन प्रशासन और खनन विभाग गहरी नींद में सोया हुआ है।
अंजू राय के स्वामित्व वाली यह खदान, जिसकी लीज 2016 से 2026 तक है, आराजी संख्या 5414 में 3.43 एकड़ में फैली है। लेकिन इस लीज के भीतर मौत का कारोबार फल-फूल रहा है। खदान तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता लगभग 12 फीट की सीधी और खतरनाक चढ़ाई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस दुर्गम रास्ते पर भारी वाहन कभी भी धोखा दे सकते हैं, जिससे बड़ा हादसा हो सकता है। उनका सवाल है कि आखिर जिम्मेदार अधिकारी ऐसे जानलेवा खनन कार्य की अनुमति कैसे दे रहे हैं।
खनन माफिया की बेलगाम गतिविधियों के कारण पहले ही क्षेत्र का जलस्तर काफी नीचे चला गया है, और अब यह जानलेवा चढ़ाई मजदूरों के लिए हर पल मौत का डर लेकर आती है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो इस खड़ी चढ़ाई की भयावहता को बयां करते हैं, जिसे देखकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं। खदान संचालक चंद रुपयों के लालच में गरीब मजदूरों और ड्राइवरों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं, जो अपनी जान जोखिम में डालकर इन खतरनाक रास्तों पर भारी वाहन चलाने को मजबूर हैं।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस गंभीर स्थिति पर जिम्मेदार अधिकारियों की रहस्यमय चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। अंदर की खबरों के अनुसार, खदान में बिना किसी सुरक्षा मानक के अंधाधुंध खनन जारी है, जिससे यह खड़ी चढ़ाई और भी खतरनाक हो गई है।इसके अलावा, खदान में ब्लास्टिंग के नियमों का भी जमकर उल्लंघन हो रहा है। निर्धारित समय दोपहर 1 से 2 बजे के बाद भी ब्लास्टिंग की जाती है, जिससे जहरीले धुएं का गुबार कई किलोमीटर तक फैल जाता है। स्थानीय निवासी सांस लेने में तकलीफ और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। ब्लास्टिंग से उड़ने वाली धूल की मोटी परत उनके घरों को पाट देती है, और लगातार हो रहे कंपन से घरों में दरारें आ रही हैं, जिससे उन्हें भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। उनका सवाल है कि इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा?
स्थानीय लोगों का यह भी आरोप है कि खदान में सीमा से ज्यादा बोल्डर निकाले जा चुके हैं, लेकिन प्रभावशाली लोगों के संरक्षण के कारण खतरनाक क्षेत्रों में भी जबरन लोडिंग का काम जारी है। उन्होंने बार-बार शिकायत करने के बावजूद कोई कार्रवाई न होने पर गहरी चिंता व्यक्त की है।
अब देखना यह है कि जिला प्रशासन और संबंधित विभाग कब इस "मौत के कुएं" पर लगाम लगाते हैं और कब तक मजदूरों और स्थानीय लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। यह खदान न केवल नियमों का उल्लंघन कर रही है, बल्कि यह प्रशासन की अनदेखी और खनन माफिया के बेलगाम हौसलों की भी जीती जागती तस्वीर है।
May 18 2025, 12:18