आजमगढ़:::ज्योतिष सिद्धार्थ के अनुशार महाकुम्भ का रहस्य और मानव जीवन से सम्बन्ध
उपेन्द्र कुमार पांडेय
आजमगढ़:: भगवान ब्रह्मा ने भारत वर्ष के चार तीर्थस्थल में अमृत रसायन डालने का आदेश देवगुरु बृहस्पति को दिया, साक्षी बने सूर्य और चन्द्र ,प्रश्न यह है कि ब्रह्मा ने गुरु को क्यों आदेश दिया और साक्षी सूर्य और चन्द्र ही क्यो बने । और इसका मानव जीवन से क्या सम्बन्ध है। मानव शरीर में इडा और पिंगला का सम्बन्ध चन्द्र और सूर्य से है। बायी ओर जो इडा नाड़ी है , वह पीत है,और चन्द्र स्वरुपिडी है। दक्षिण की ओर जो पिंगला है,यह सूर्य स्वरुपा पुंरुपा है - वामगा या इडा नाड़ी शुक्ल चन्द स्वरुपिडी , शक्ति रुपा हि सा देवी साक्षादमृतविग्रहा ।
दक्षे तु पिंगला नाम पुंरुपा सूर्य विग्रहा, रौद्रात्मिका महादेवी दाडिमीकेसरप्रभा ।। और यह अंडकोष से सम्बंधित और सुषुम्ना से संयुक्त दाहिने कन्धे के जोड के निकट से जाने वाली धनु के समान हृदय पर झुलती रहती है। धनु को ज्योतिष में गुरु की राशि कहा गया ,और वाम स्कन्ध की सन्धि पर पहुचकर नासिका की ओर चली जाती है ,इस प्रकार जो दक्षिण अंडकोष आती है ,वह नासिका के वामरन्ध्र की ओर चली जाती है। और जब भूमध्य पर्यन्त पहुचती है तब सुषुम्ना से मिलकर यह तीनो एक ग्रन्थ बनाती है, जिसे त्रिवेणी कहते हैं। श्लोक-इडायां यमुना देवी पिंगलायां स सरस्वती, सुषुम्णायां वसेद गंगा तासां योगस्त्रिधा भवेत ।
संगता ध्वज मूले च विमुक्ता भ्रू वियोगत:,त्रिवेणी योग: सा प्रोक्तस्तत्र स्नानं महाफलम् ।। इडा यमुना देवी है,(चन्द्र) और पिंगला सरस्वती है,(सूर्य) और सुषुम्ना में गंगा का निवास है(गुरु) इनसे त्रिमुखी ग्रन्धि बनती है, इसीलिए इसे त्रिवेणी योग कहते हैं। जिस प्रकार से जब तक व्यक्ति गुरु की शरण में नही जाता तब ज्ञान की प्राप्ति नही होती, उसीप्रकार जब चन्द्र और सूर्य जब गुरु का सानिध्य प्राप्त करते हैं। तब महाकुम्भ का प्रादुर्भाव होता है, और तब मानव इस त्रिवेणी में स्नान करने का महाफल प्राप्त करता है। अत्: जब साधक का मानस इस चक्र (पद्म) के ज्ञान से ओत प्रोत हो जाता है,तो इस ज्ञान से महान लाभ प्राप्त करता है। और मानव शरीर के नाड़ियों की संख्या जो बताई गयी ,वह वहत्तर सहस्त्र (72000) बताई गयी है, और इसकी समाप्ति 12दल वाले कमल पर होती है।
जिसका स्थान सिर में स्थित अधोमुख सहस्त्रदल कमल की कर्णिकाओं परागकोश के समीप्य में ही गुरु पाद का स्तोत्र में कहा गया है- कुंडली विवर कांड मंडितं। द्वादशार्णं सर सीरुहं भजे । मैं द्वि-दश कमल दल की बन्दना करता हू जो नदियों का सिरमौर है , और यही बह्म नाडी चित्रिणी के आन्तर में है। और यही कुंडलिनी का आरोह अवरोह मार्ग है। अत: जन मानस को अवश्?य इस महाकुम्भ में स्नान का लाभ प्राप्त करना चाहिए ,जिससे तीनों ताप दूर हो । श्री देवर्षि आश्रम ब्लॉक-8 मार्ग ,भूखंड- 8अ-75 सेक्टर -8 नागवासुकी मंदिर के उत्तर,माघमेला प्रयागराज
ज्योतिषचार्य भूपेन्द्रानन्द महराज जी
Jan 12 2025, 22:11