सोशल मीडिया का बच्चों पर बुरा असर: ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन, क्या भारत में भी होना चाहिए?
अपने मोबाइल और अपने लैपटॉप के साथ अपने कमरे में ही बिजी टीएनएजर आजकल महानगरों के पेरेंट्स के लिए चिंता की बात बने हुए हैं. ऐसे में दूर देश ऑस्ट्रेलिया से उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन की ख़बर से हिंदुस्तानी पैरेंट्स भी उत्साहित है बच्चों में स्क्रीन टाइम के लिए आई ग्लोबल अवेयरनेस बताती है मामला सीरियस है. जानिए कैसे?
15 साल की लड़की घर में पेंटिंग बनाती और अंग्रेजी गाने सुनती थी. घर वालों को अंग्रेजी आती नहीं थी लेकिन बेटी के व्यवहार में उन्हें कभी कुछ असामान्य नहीं लगा. अलार्म तो तब बजा जब उसने बिना वजह खुद को नुकसान पहुचांने की कोशिश की. ऐसा दो तीन बार और हुआ. परिवार ने साइकॉलजिस्ट की मदद ली. मालूम चला वो जो गाने सुनती है, वो डिप्रेशन से भरे हैं और वो जो तस्वीरे बनाती हैं, वो हिंसा से भरी हैं. गाने के लिरिक्स एडल्ट और पेंटिंग खून-खराबे से भरी. उनके पेरेंट्स को पता ही नहीं था कि बच्ची सोशल मीडिया पर एक्टिव है और वहीं का वर्चुअल तनाव वो अपने सिर पर लिए बैठी है.
ये केस साइबर सेफ्टी एक्सपर्ट मुकेश चौधरी के पास आया था. वो बताते हैं, टीएनएजर बच्चों के ऐसे कई मामले उनके पास आते हैं जहां सोशल मीडिया की वजह बच्चा एकदम बदल गया है.
टीएनएजर बच्चों पर सोशल मीडिया का असर
साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट मुकेश चौधरी एक और केस का जिक्र करते हैं. 16 साल के दसवीं में पढ़ने वाले बच्चे ने अपनी टीचर की फेक प्रोफाइल बनाकर उनकी ऑब्जेक्शनेबल ऑफ सीन फोटो एडिट करके सोशल मीडिया पर शेयर कर दिए. स्कूल के बच्चों को पता था, लेकिन ना तो किसी फैकल्टी को पता था और ना ही उस बच्चे के पेरेंट्स को. खोजबीन करके जब मामला खुला तो पेरेंट्स भी हैरत में थे कि उन्हें लगता था, बच्चा लैपटॉप पर पढ़ाई कर रहा है.
ऐसे ही एक बच्ची हाफ स्क्रीन पर क्लास खोल के दूसरी तरफ चैटिंग करती थी. घरवालों को बहुत दिन बाद पता चला कि वो पढ़ाई नहीं करती थी बल्कि चैटिंग करती थी. मुकेश चौधरी कहते हैं, कई बार सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा एक्टिव रहने से कुछ चीजें आपको ऐसी दिख जाती है, जो हिट कर जाती हैं. बच्चों को समझ में नहीं आता कि वो सही है या फिर गलत. वो उसे फॉलो करने लगते हैं.
कम उम्र में सोशल मीडिया के नुकसान
हमने साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट मुकेश चौधरी, साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल, मनोचिकित्सक समीर मल्होत्रा और शिक्षाविद अनुराधा जोशी से लेकर तमाम अभिभावकों से भी बात की और सब सोशल मीडिया के जो नुकसान देख रहे हैं वो शरीर और मन दोनों पर असर कर रहा है.
फिजिकल प्रॉब्लम
स्लीप साइकल डिस्टर्ब-डॉक्टर भी रिकमेंड करते हैं कि सोने के कुछ घंटे पहले तक आपको मोबाइल नहीं चलाना है. फोन से निकलने वाली ब्लू रे खतरा हैं. अगर बच्चे रात में ठीक से सोते नहीं हैं तो उनको सुबह उठने में भी दिक्कत होती है. अगर उनका कोई एग्जाम है तो उस पर भी असर पड़ता है.
पोस्चर पेन- जब आप बहुत देर तक सिर झुकाकर या बैठकर फोन देखते हैं तो बॉडी का पोस्चर बिगड़ता है. रीढ़ की हड्डी से लेकर सर्वाइकल पेन तक की संभावना बनती है.
कम उम्र में चश्मा-अगर बच्चा ज्यादा समय सोशल मीडिया पर इन्वेस्ट करेगा तो उसकी आंखों पर अभी असर पड़ेगा. इसकी वजह से बहुत कम उम्र में बच्चों के चश्मे भी लग रहे हैं.
एक्स्ट्रा एक्टिविटीज पर असर- कई घंटे लगातार फ़ोन चलाने की वजह से बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी कम हो रही है. सोशल मीडिया की वजह से एक्स्ट्रा-करिकुलम एक्टिविटीज में बच्चों की भागीदारी कम हो गई है.
स्टंट वीडियो बना खतरा- बच्चे सोशल मीडिया पर स्टंट करते लोगों के वीडियो देख खुद भी वही करते हैं, इसमें चोट लगने का खतरा होता है.
नशे की प्रवृत्ति– पहले 16 से 18 साल तक के बच्चे नशे करते थे लेकिन अब 9 से 10 साल के बच्चे भी कई तरह के नशे करने लगे हैं. नशे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है.
दिमाग पर इम्पैक्ट- मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन्स में थर्मल और मैग्नेटिक रेडिएशन होता है, जिसका बच्चों के दिमाग पर भी बुरा असर पड़ता है. उससे सिर दर्द की भी समस्या होती है और हार्मोनल इंबैलेंस भी रहता है.
सेल्फ हार्म: बच्चे सेल्फ हार्म भी करने लगे हैं और अगर आप उनको फोन नहीं देंगे तो वो पेरेंट्स के अगेंस्ट बहुत एग्रेसिव हो जाते हैं.
मेंटल प्रॉब्लम
डिप्रेशन-मोबाइल के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से डिप्रेशन, सुसाइडल थॉट और बिहेवियर में कई तरह से बदलाव आ रहे हैं.
फोकस में कमी-बहुत ज्यादा मोबाइल के इस्तेमाल करने से बच्चों का फोकस भी कम हुआ है. ये बात कई रिसर्च भी सामने आई है.
लर्निंग एबिलिटी पर असर-बच्चे बहुत ज्यादा फ़ोन चलाने की वजह से लर्निंग एबिलिटी और आत्मनियंत्रण खो रहे हैं. जिसकी वजह से कई बीमारियां भी हो रही हैं.
एग्रेशन– सोशल मीडिया पर लाइक डिस्लाइक के प्रेशर में बच्चों के अंदर बढ़ते तनाव ने उन्हें चिड़चिड़ा और आक्रामक बना दिया है और बच्चों में अपराधी बनने की भी प्रबल संभावना रहती है.
ऑस्ट्रेलिया में बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन
आस्ट्रेलिया में सरकार ने 16 साल के कम बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बैन कर दिया है. इसके पीछे का कारण है कि बच्चों की मेंटल हेल्थ ठीक रहे. सोशल मीडिया के एडिक्शन, साइबर बुलिंग और हानिकारक कंटेंट से बच्चे बहुत प्रभावित होते हैं. इस नियम के अनुसार, बच्चों को इंस्टाग्राम, टिक टॉक और स्नेपचैट जैसे प्लेटफॉर्म पर अकाउंट बनाने और उन्हें एक्सप्लोर करने की इजाजत नहीं होगी.
भारतीय बच्चे और सोशल मीडिया
Sentiment की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 13 साल से 17 साल तक के करीब 93 परसेंट बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. अमेरिका में 4 करोड़ बच्चों में से 3 करोड़ 70 लाख बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. एक व्यक्ति करीब सोशल मीडिया पर प्रति दिन 1 घंटा और 40 मिनट बिताते हैं.
International Journal of Pediatric Research की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 87.82% बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. जिसमें से 81.14% बच्चे व्हाट्सएप, 54.94% बच्चे फेसबुक, 10.5% बच्चे ट्विटर, 70.61% बच्चे यूट्यूब, 65.34% ईमेल और 9% बच्चे अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ्रॉम का इस्तेमाल करते हैं.
भारत में क्या कोई कानून है?
भारत में बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल करने को लेकर कोई अलग से कानून नहीं बनाया गया है. डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023 में कुछ नियम बनाए गए हैं. DPDPA की धारा 9 में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के डेटा को संभालने के लिये 3 शर्तें बताई गई हैं. जिसमें किसी बच्चे की प्रोफाइल बनाने के लिए कंपनी को माता-पिता या अभिभावक से सहमति लेनी होती है. इसके साथ बच्चों के कल्याण, उनपर निगरानी और उन्हें किस तरह के विज्ञापन दिखें, इस पर ध्यान भी देना है.
भारत में भी होना चाहिए बैन?
मुकेश चौधरी कहते हैं, दुनिया ने इससे पहले ब्लू व्हेल जैसा गेम देखा है, जिसमें बच्चे कई तरह के टास्क पूरे करते-करते अपनी जान तक दे देते थे. ये सब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से ही आया है. पेरेंट्स अपनी लाइफ स्टाइल में बिज़ी हैं जो बिनी किसी रिस्ट्रिक्शन के बच्चों को मोबाइल थमा देते हैं. ऐसी कोई पॉलिसी भी बच्चों के लिए नहीं बनाई गई है कि बच्चे इंटरनेट पर क्या देख रहे हैं.अनरिस्ट्रिक्टेड मोबाइल हाथ में होने से बच्चे के हाथ से क्या बटन दब रहा है और उसके सामने कैसे वीडियो आ रहे हैं, इस तरह के कंटेंट को भी रेगुलेट करने के लिए कोई रिस्ट्रिक्शन नहीं है. अगर कोई नियम बने भी हैं तो कोई उन्हें फॉलो नहीं करता है.
साइबर सुरक्षा एक्सपर्ट डॉ पवन दुग्गल कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में जो बैन हुआ है, इसका उद्देश्य सही है लेकिन ये बहुत ज्यादा enforcement नहीं होगा क्योंकि आपने शेर के मुंह में खून लगा दिया है. उसे वापस लेना बहुत मुश्किल हो जाएगा. भारत में इस तरह की चीज संभव ही नहीं उसके पीछे का कारण है कि भारत में 18 साल से कम बच्चे को नाबालिग माना जाता है और नाबालिग में इतनी क्षमता नहीं है कि वो किसी भी कानून के अंदर आ सके. किसी एप को बैन करें तो उससे उसका ट्रैफिक और बढ़ जाता है. जो ऑस्ट्रेलिया में हुआ वो भारत में नहीं हो सकता अगर होगा तोबहुत ज्यादा विरोध होगा. ये भारतीय संविधान के कानून का उल्लंघन होगा. आप बच्चे ही क्यों ना हो लेकिन आपके मौलिक अधिकार तो हैं. आज जीवन जीने के मौलिक अधिकार में आपका राइट टू एक्सेस इंटरनेट तो है ही. वह कहते हैं भारत ऑस्ट्रेलिया से अलग है, वहां से भारत का संविधान भी अलग है. यहां का लीगल फ्रेमवर्क अलग है इसलिए यहां पर इस तरह की चीज संभव नहीं है. अगर ऐसा होता भी है तो उसे अदालतों में कई तरह की चुनौती का सामना करना ही पड़ेगा.
Dec 11 2024, 12:41