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क्यों मचा है मेवाड़ राजपरिवार में बवाल? उदयपुर सिटी पैलेस के बाहर फोर्स तैनात

#mewar_royal_family_dispute

वीर महाराणा प्रताप के वंशज इन दिनों राजगद्दी की लड़ाई को लेकर सुर्खियो में हैं। विवाद दादा भगवंत सिंह के समय से ही शुरू हो गया था। भगवंत सिंह ने साल 40 साल पहले अपनी वसीयत में छोटे बेटे अरविंद सिंह को संपत्तियों का एक्ज्यूक्यूटर बना दिया था। साथ ही बड़े बेटे महेंद्र सिंह को ट्रस्ट और संपत्ति से बेदखल कर दिया था। अब महेंद्र सिंह की मौत के बाद जब 25 नवंबर को चित्तौड़गढ़ किले में उनके बेटे विश्वराज सिंह को राजपरिवार के मुखिया के रूप में नियुक्त किया गया तो अरविंद सिंह की फैमिली ने इसका विरोध किया। उनका कहना है कि राजगद्दी पर लक्ष्यराज सिंह का हक है, न कि विश्वराज का।

बवाल तब शुरू हुआ जब धूणी दर्शन के लिए मेवाड़ राजवंश के नए महाराणा विश्वराज अपने समर्थकों के साथ सिटी पैलेस पहुंचे। लेकिन उनके चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ ने परंपरा निभाने से रोकते हुए सिटी पैलेस का गेट बंद कर दिया। इसके चलते विश्वराज के समर्थक गुस्सा गए और पत्थरबाजी शुरू हो गई। आनन-फानन में पुलिस मौके पर पहुंची और दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश की। लेकिन कोई बात बनी नहीं।

चितौड़ में फतेह निवास महल में सोमवार को राज तिलक कार्यक्रम आयोजित किया। देशभर से पूर्व राजा महाराजा और पूर्व जागीरदार शामिल हुए। देर शाम राजतिलक की रस्म पर विवाद छिड़ गया। महेंद्र सिंह मेवाड़ के भाई और विश्वराज के चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के परिवार ने परंपरा निभाने से रोकने के लिए उदयपुर के सिटी पैलेस (रंगनिवास और जगदीश चौक) के दरवाजे बंद कर दिए। चित्तौड़गढ़ में राजतिलक की रस्म होने के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ परंपरा के तहत धूणी दर्शन के लिए उदयपुर पहुंचे लेकिन सिटी पैलेस के रास्ते पर बैरिकेड्स लगे मिले। विश्वराज के समर्थकों ने बैरिकेड्स हटा दिए। 3 गाड़ियां पैलेस के अंदर घुसीं। मौके पर भारी संख्या में पुलिस फोर्स ने हल्का बल प्रयोग किया। कलेक्टर और एसपी ने करीब 45 मिनट तक विश्वराज सिंह मेवाड़ से उनकी गाड़ी में बैठकर बात की लेकिन सहमति नहीं बन सकी।

उदयपुर के जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल और पुलिस अधीक्षक योगेश गोयल भी सिटी पैलेस के गेट पर मौजूद थे। उन्होंने मामले को सुलझाने के लिए विश्वराज और उसके बाद अरविंद सिंह मेवाड़ के बेटे से बात की। हालांकि, सिंह को प्रवेश नहीं दिया गया और वह सिटी पैलेस से कुछ मीटर दूर जगदीश चौक पर बैठे हैंविश्वराज मेवाड़ और उनके समर्थक धूणी के दर्शन करने की बात पर अड़े हैं।

अरविंद सिंह ने दस्तूर कार्यक्रम के तहत विश्वराज के एकलिंग नाथ मंदिर और उदयपुर में सिटी पैलेस में जाने के खिलाफ सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। मंदिर और महल दोनों ही अरविंद के नियंत्रण में हैं जो उदयपुर में श्री एकलिंग जी ट्रस्ट के अध्यक्ष और प्रबंध न्यासी हैं। उनके वकील की तरफ से अखबारों में दिये गये दो सार्वजनिक नोटिस में आरोप लगाया गया कि समारोह के नाम पर 'आपराधिक अतिचार' करने का प्रयास किया जा रहा है और अनधिकृत व्यक्तियों का मंदिर और सिटी पैलेस में प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा।

इधर, मौजूदा हालात को देखते हुए, स्थानीय प्रशासन ने सिटी पैलेस में बड़ी पोल से धूणी व जनाना महल तक के विवादित क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया है। घंटाघर थाना अधिकारी को रिसीवर नियुक्त किया गया है।

महाराष्ट्र में सीएम पर सस्पेंस बरकरार, बीजेपी फडणवीस के नाम पर अड़ी, शिंदे का हठ भी जारी

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 288 सीटों में से 235 सीटों पर महायुति गठबंधन के जीतने के बाद महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिला है। बीजेपी से देवेंद्र फडणवीस और वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अगले मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में हैं। फडणवीस के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने की चर्चा के बीच, शिवसेना के विभिन्न नेताओं ने बयान दिया कि शिंदे को पद पर बने रहना चाहिए, क्योंकि मुख्यमंत्री के रूप में भारी जीत उनके नेतृत्व में ही मिली है। बता दें कि विधानसभा 2019 का कार्यकाल खत्म हो रहा है। हालांकि अभी तक महाराष्ट्र में सीएम पद को लेकर नाम फाइनल नहीं हुआ है।

महायुति के भीतर सीएम के नाम पर खींचतान के चलते महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन में देरी हो रही है। बीजेपी जहां देवेंद्र फडणवीस को फिर से महाराष्ट्र का सीएम बनाना चाहती है, वहीं शिवसेना भी एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बने रहने पर अड़ी हुई है। बीजेपी-शिवसेना के बीच जारी रस्साकशी के बीच फडणवीस सोमवार रात दिल्ली पहुंच गए। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए उम्मीदों पर पानी फेर दिया कि इस मामले पर कोई बैठक की योजना नहीं बनाई गई है।वह लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली में हैं।

क्या है बीजेपी का प्लान?

टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि बीजेपी ने फडणवीस को फिर से सीएम बनवाने की मंशा एनसीपी (अजित पवार) को बता दिया है। पवार खेमे को फडणवीस के सीएम बनने से कोई परेशानी नहीं है। जल्द ही बीजेपी यह बात शिवसेना को भी साफ कर देगी कि सीएम तो उसी का होना चाहिए। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) को डिप्टी सीएम का पद देने की पेशकश करेगी। बीजेपी सूत्रों ने उम्मीद जताई कि शिंदे मान जाएंगे क्योंकि बीजेपी के पास संख्‍या बल है। बीजेपी ने 132 सीटें जीती हैं और एनसीपी की 41 सीटों के साथ वह बहुमत के 145 सीटों के आंकड़े को आसानी से पार कर जाएगी।

नागपुर में देवेंद्र फडणवीस के अगले सीएम बनने के लगे पोस्टर्स

इधर, नागपुर में देवेंद्र फडणवीस को अगला सीएम बनाए जाने के पोस्टर लगे हैं। उनके घर के पास लगे एक होर्डिंग में लिखा है, 'देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे।' पोस्टर ऐसे समय में लगाया गया है, जब राज्य में राजनीतिक हलचल तेज है और मुख्यमंत्री पद की संभावनाओं को लेकर देवेंद्र फडणवीस की चर्चा हो रही है। इन पोस्टरों के जरिए यह संकेत दिया जा रहा है कि देवेंद्र फडणवीस अपनी पार्टी और समर्थकों की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए प्रबल दावेदार हैं। ऐसा पहली बार नहीं है। इससे पहले भी देवेंद्र फडणवीस के कार्यकर्ताओं ने उन्हें भावी मुख्यमंत्री बताते हुए बैनर लगाए थे। इससे पहले भी बारामती में कुछ पोस्टर्स लगे थे, जिसमें प्रदेश के अगले सीएम के तौर पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष अजित पवार को दिखाया गया था।

एकनाथ शिंदे की समर्थकों से अपील

दूसरी तरफ, एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को अपने समर्थकों से कहा कि वे उनके मुख्यमंत्री बने रहने के पक्ष में समर्थन जताने के लिए दक्षिण मुंबई स्थित उनके सरकारी आवास ‘वर्षा’ के बाहर एकत्र नहीं हों। शिंदे ने एक्स पर पोस्ट किया, 'महायुति गठबंधन की बड़ी जीत के बाद राज्य में एक बार फिर हमारी सरकार बनेगी। हमने एक महागठबंधन के रूप में मिलकर चुनाव लड़ा और हम आज भी साथ हैं।' उन्होंने अपने समर्थकों से ‘वर्षा’ के बाहर या उनके समर्थन में किसी अन्य स्थान पर इकट्ठा नहीं होने की अपील की। शिंदे ने कहा, 'मेरे प्रति प्रेम के कारण कुछ लोगों ने सभी से मुंबई आने और एकत्र होने की अपील की है। मैं आपके प्यार के लिए बहुत आभारी हूं लेकिन मैं अपील करता हूं कि कोई भी मेरे समर्थन में इस तरह से एकत्र नहीं हो।'

आज मनाया जाएगा संविधान दिवस, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को करेंगी संबोधित

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संसद का शीतकालीन सत्र कल से यानी 25 नवंबर से शुरू हो चुका है। शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर तक चलेगा।आज यानी 26 नवंबर को संविधान दिवस के अवसर पर सदन में विशेष कार्यक्रम का आयोजन होगा। भारत की राष्ट्रपति ‘संविधान दिवस’ के अवसर पर संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करेंगी।भारत की राष्ट्रपति ‘संविधान दिवस’ के अवसर पर संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करेंगी।

26 नवंबर, को संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ आयोजित की जा रही है। संविधान दिवस का यह कार्यक्रम संविधान सदन (पुराने संसद भवन) के सेंट्रल हॉल में होगा। लोकसभा सचिवालय का कहना है कि भारत के संविधान को अंगीकार किए जाने का यह 75वां वर्ष है।इस दौरान एक सिक्का और डाक टिकट जारी किया जाएगा। पुस्तकों का विमोचन होगा। इसके साथ ही संविधान के संस्कृत और मैथिली संस्करण का संविधान सदन के केंद्रीय कक्ष में विमोचन किया जाएगा।

देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आज ‘संविधान दिवस’ के अवसर पर संविधान सदन के केंद्रीय कक्ष में संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करेंगी। सुबह ग्यारह बजे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के आगमन के साथ संविधान दिवस पर कार्यक्रम का आरंभ होगा। 'भारत के संविधान का निर्माण: एक झलक' नामक पुस्तक का विमोचन किया जाएगा। 'भारत के संविधान का निर्माण और इसकी गौरवशाली यात्रा' शीर्षक से प्रकाशित एक और पुस्तक का विमोचन भी इस दौरान किया जाना है। यहां भारत के संविधान की कला को समर्पित पुस्तिका का विमोचन भी होगा। संस्कृत में भारत के संविधान का विमोचन और मैथिली में भारत के संविधान का विमोचन भी इस कार्यक्रम के मुख्य आकर्षणों में से एक है।

उपराष्ट्रपति भी दोनों सदनों को संबोधित करेंगे

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संबोधन के दौरान उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति, जगदीप धनखड़; प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी; लोक सभा अध्यक्ष, ओम बिरला; केन्द्रीय मंत्री; संसद सदस्य; दिल्ली स्थित मिशनों के प्रमुख और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे। उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति भी दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित करेंगे।

संविधान पर आधारित शॉर्ट फिल्म दिखाई जाएगी

इस अवसर पर, भारतीय संविधान की महिमा, इसके निर्माण और ऐतिहासिक यात्रा को दर्शाते हुए एक शॉर्ट फिल्म भी दिखाई जाएगी। गौरतलब है कि सोमवार 25 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र प्रारंभ हो गया है। राज्यसभा सचिवालय के मुताबिक यह सत्र अगले माह 20 दिसंबर तक चलेगा। सत्र के दूसरे दिन यानी 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने के लिए दोनों सत्रों की संयुक्त बैठक बुलाई गई है।

पुतिन ने दुनिया को दी न्यूक्लियर वॉर की वॉर्निंग, परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की कितनी आशंका?
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रूस-यूक्रेन के बीच लंबे समय से युद्ध हो रहा है। दूसरी तरफ इजराइल भी कई मोर्टों पर जंग लड़ रहा है। इस बीच तीसरा और बड़ा मोर्चा ना खुल जाए इसकी आशंका जोरों पर हैं। अमेरिका समेत यूरोप के कई देश खुलेआम रूस के खिलाफ यूक्रन की मदद कर रहे हैं। इस बीच अमेरिका में ट्रम्प के फिर से राष्ट्रपति चुने जाने के बाद बाइडेन सरकार यूक्रेन की मदद से जुड़े नए-नए फैसले ले रही है। बाइडेन ने यूक्रेन को ATACMS मिसाइलों से रूस पर हमले की मंजूरी दी। इसके बाद यूक्रेन ने रूस पर मिसाइलें दाग भी दी। यूक्रेन ने अमेरिकी और ब्रिटिश मिसाइलों की मदद से रूस पर कई हमले किए। इसके जवाब में रूस की ओर से इस युद्ध में पहली बार इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल किया गया। अमेरिकी मिसाइलों के यूज पर बाइडन से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद जेलेंस्की और फायर हो चुके हैं। यूक्रेन अब रूस पर ताबड़तोड़ अटैक कर रहा है। अमेरिकी लॉन्ग रेंज मिसाइलों से हमला करने के बाद अब यूक्रेन ने ब्रिटिश स्टॉर्म शैडो मिसाइल से रूस पर हमला किया है।यूक्रेन ने लंबी दूरी वाली अमेरिकी मिसाइलें दागने के एक दिन बाद रूसी इलाकों में सैन्य ठिकानों पर ब्रिटिश स्टॉर्म शैडो मिसाइलें दागीं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस सप्ताह अपनी नीति में बदलाव करते हुए यूक्रेन को रूस में अंदर तक हमला करने के लिए अमेरिकी निर्मित हथियारों का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। बाइडेन प्रशासन के इस फैसले के बाद रूस ने अपने न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन में बदलाव करते हुए साफ कर दिया है कि अगर किसी परमाणु संपन्न देश के सहयोग से कोई देश रूस पर हमला करता है तो ऐसी स्थिति में वह परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर विचार कर सकता है। यही नहीं नए परमाणु सिद्धांतों के अनुसार, रूस पर अगर किसी सैन्य गठबंधन का देश हमला करता है तो रूस उसे पूरे ब्लॉक का हमला मानेगा। पुतिन के इस फैसले के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के और भीषण होने की आशंका बढ़ गई है। *रूस की नई परमाणु नीति में क्या?* रूस की नई परमाणु नीति में कहा गया है कि कोई ऐसा देश जिसके पास खुद परमाणु हथियार न हों, लेकिन वो देश किसी परमाणु हथियार संपन्न देश के साथ मिलकर हमला करता है, तो इसे रूस संयुक्त हमला मानेगा। यूक्रेन के पास तो परमाणु हथियार नहीं हैं, लेकिन अमेरिका के पास हैं और इस युद्ध में अमेरिका और ब्रिटेन दोनों यूक्रेन के साथ हैं। साथ ही 32 देशों का सैन्य गठबंधन नेटो भी यूक्रेन को समर्थन दे रहा है। रूस की परमाणु नीति में ये भी कहा गया है कि अगर रूस को पता चला कि दूसरी तरफ़ से रूस पर मिसाइलों, ड्रोन और हवाई हमले हो रहे हैं तो वो परमाणु हथियारों से जवाब दे सकता है। यूक्रेन अब तक रूस पर कई बार हवाई हमले करते आया है जिसमें ड्रोन भी शामिल है, लेकिन अब उसने हमलों के लिए अमेरिकी मिसाइलों का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसके अलावा कुछ और स्थितियों की बात रूस की परमाणु नीति में की गई है। इसमें कहा गया है कि अगर किसी ने नया सैन्य गठबंधन बनाया, पुराने गठबंधन को और बढ़ाया, रूस की सीमा के करीब कोई सैन्य बुनियादी ढांचे को लाया गया या रूस की सीमा के आस-पास कोई सैन्य गतिविधियां की, तो परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकता है। *पहले भी परमाणु हमले को लेकर कर चुके हैं आगाह* रूस परमाणु हमले को लेकर पहले भी अमेरिका और बाक़ी देशों को आगाह कर चुका है। मार्च में रूस में चुनाव से पहले भी पुतिन ने कहा था कि रूस तो परमाणु हमले के लिए तैयार है। अगर अमेरिका ने अपनी सेना यूक्रेन में भेजी, तो मामला बहुत बढ़ सकता है। पुतिन की इन बातों को मीडिया और पश्चिम में रेटरिक कहा जाता है, यानी कि वे बस बोलने के लिए बोलते हैं। तो इस बात की कितनी आशंका है कि वे जो बोल रहे हैं वो वैसा कर भी सकते हैं। *क्या है पुतिन की मंशा?* कुछ विशेषज्ञों मानते हैं कि अगर रूस को बार-बार झटका लगता रहा या अपनी हार का डर हुआ, तो शायद टैक्टिकल हथियार का इस्तेमाल करे। कुछ जानकार इसे ऐसे देख रहे हैं कि पुतिन इस नई नीति से फिर से सबको चिंता में डालना चाहते हैं। उनका मानना है कि पुतिन इससे दुनिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं। *कई बार तबाह हो सकती है दुनिया* रूस के पास दुनिया में परमाणु बमों का सबसे बड़ा भंडार है। रूस को ये परमाणु हथियार सोवियत संघ से विरासत में मिले हैं। दिलचस्प बात ये है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन को भी हजारों परमाणु हथियार मिले थे, लेकिन वो सारे बाद में रूस के पास आ गए। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स (एफएएस) के अनुसार पुतिन के नियंत्रण में वर्तमान में 5580 परमाणु हथियार हैं। एफएएस के अनुसार, इनमें से लगभग 1200 को लगभग हटा दिया गया है, लेकिन वे काफी हद तक बरकरार हैं। लगभग 4380 को ऑपरेशन फोर्सेज के लिए भंडार में रखा गया है। शस्त्रागार में रखे गए परमाणु हथियारों में से 1710 स्ट्रैटेजिक वारहेड्स हैं, जिसमें लगभग 870 जमीन से हमला करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों, 640 पनडुब्बी से लॉन्च होने वाली बैरिस्टिक मिसाइलों और संभवतः 200 भारी बमवर्षकों के ठिकानों पर हैं। इस मात्रा में परमाणु हथियारों का मतलब है कि रूस दुनिया को कई बार नष्ट कर सकता है।
महाराष्ट्र में बीजेपी की 'अप्रत्याशित' जीत, राष्ट्रीय राजनीति पर क्या होगा असर?

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“मोदी का मौजिक खत्म हो गया है”, “बीजेपी के बूरे दिन शुरू हो गए है।” इस साल जून में जब लोकसभा तुनाव के परिणाम आए तो इसी तरह की बातें शुरू हो गई थी। लोकसभा चुनावों में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा यूपी और महाराष्ट्र ने ही निराश किया था। लेकिन, मई में हुए लोकसभा तुनाव के बाद हरियाणा के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की बातें पूरी तरह से बकवास साबित हुई। उसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा को हासिल हुई सीटों ने तो सारे भ्रम को तोड़ कर रख दिया है। बीजेपी पीएम मोदी की राजनीति पर महाराष्ट्र के वोटरों ने एक बार फिर से जो मुहर लगाई है, उसका असर आने वाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीति में भी देखने को मिल सकता है।

लोकसभा चुनाव परिणाम भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए एक झटके की तरह देखा गया था क्योंकि इससे एनडीए के घटक दलों का महत्व बढ़ गया था। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 240 सीटों पर जीत हासिल की थी और उसके नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी। हालांकि, एनडीए ने सर्वसम्मति से नरेन्द्र मोदी को अपना नेता चुना था, लेकिन एक बात साफ थी कि पीएम मोदी पहले अपने दो कार्यकाल की तरह फैसले लेने से परहेज करेंगे।

सहयोगी दलों की स्थिति भी होगी कमजोर

यही नहीं, महाराष्ट्र में भाजपा की इस जीत से एनडीए के भीतर पार्टी का दबदबा और मजबूत होगा और सहयोगी पार्टियां का दखल अब कमजोर होता दिखाई देगा। क्योंकि अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव है और भाजपा यहां भी नीतीश कुमार के साथ सीटों की साझेदारी में मन मुताबिक़ डील कर सकती है। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के भरोसे भले केंद्र में मोदी सरकार चल रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को मिल रही लगातार जीत से समीकरण बदलेगा। ऐसे में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार से अब बहुत तोलमोल नहीं कर पाएंगे। बीजेपी का मज़बूत होना न केवल विपक्षी पार्टियों के लिए निराशाजनक है, बल्कि एनडीए के भीतर भी सहयोगी दलों को लिए बहुत अच्छी स्थिति नहीं होगी।

प्रधानमंत्री मोदी अब होंगे और मजबूत

इससे पहले साल 2014 और 2019 में भाजपा ने केंद्र में अपने दम पर सरकार बनाई थी। इस बार बहुमत नहीं मिलने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम होती लोकप्रियता से जोड़ा गया था, लेकिन हरियाणा में जीत, जम्मू-कश्मीर में अच्छे प्रदर्शन के बाद महाराष्ट्र की जीत ने एक बार फिर से पीएम मोदी की लोकप्रियता पर लग रहे प्रश्न चिह्न को खत्म कर दिया है। महाराष्ट्र में बीजेपी सबसे अधिक 149 सीटों पर चुनाव लड़ी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने मोदी की लोकप्रियता और नीतियों के अधार पर ही चुनाव लड़ा। ऐसे में महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत को मोदी की जीत बताया जा रहा है। ऐसे में भाजपा के अंदर अब मोदी का रुतबा और मजबूत होगा, क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद मोदी की लोकप्रियता पर सवाल खड़े होने लगे थे। ऐसे में कहा कि जा सकता है कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता वैसी ही बनी है।

कोर एजेंडे को फिर से पूरी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाएगी

प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र में भारी जीत के बाद नई दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में जो भाषण दिया, उसमें इस बात के कई संकेत दिखे हैं कि आने वाले दिनों में भाजपा सरकार अपने उस कोर एजेंडे को फिर से पूरी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ा सकेगी, जिसमें लोकसभा चुनावों के बाद एक हिचकिचाहट सी महसूस होने लगी थी। भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने जो कुछ कहा है, उससे स्पष्ट होता है कि उनकी सरकार का फोकस विकास पर और बढ़ेगा, जिसके आधार में हिंदुत्व का प्रभाव और भारत की प्राचीन विरासत का असर नजर आएगा। इसके साथ ही उन्होंने जो कुछ कहा है कि उससे लगता है कि केंद्र सरकार अब यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) और वन नेशन, वन इलेक्शन के अपने इरादे को और ज्यादा हौसले के साथ आगे बढ़ाएगी।

कांग्रेस की कमजोरी फिर सामने

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव केवल बीजेपी के लिए ही नहीं कांग्रेस के लिए भी काफी अहम है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 10 साल के बाद सबसे बेहतर प्रदर्शन किया था। कांग्रेस ने 2024 के आम चुनाव में 99 सीट जीते थे। जिसके बाद से कांग्रेस के नई ऊर्जा के साथ बढ़ने के संकेत मिल रहे थे। हालांकि, पहले हरियाणा और अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम सोचने पर मजबूर कर देंगे। एक बार फिर राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठने लगेंगे। पार्टी को भविष्य की रणनीति पर फिर से विचार करना होगा।

शिव सेना और एनसीपी पर क्या होगा असर?

महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम केवल बीजेपी कांग्रेस के लिए ही अहम नहीं है, बल्कि ये ही शिव सेना और एनसीपी के लिए भी महत्वपूर्ण है। शिव सेना और एनसीपी दोनों बँट चुकी हैं। ऐसे में असली शिव सेना और एनसीपी पर दावेदारी मज़बूत होगी। उद्धव ठाकरे और शरद पवार की चुनौतियां बढ़ेंगी क्योंकि उन्हें ख़ुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए सोचना होगा।

महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत से हिन्दुत्व की राजनीति पर बाल ठाकरे के परिवार की दावेदारी कमज़ोर होगी। यानी महाराष्ट्र में हिन्दुत्व की राजनीति पर शिव सेना से वैसी प्रतिद्वंद्विता नहीं मिलेगी।

मणिपुर में हिंसा और प्रदर्शनों का उभार: एक गहरी संकट की ओर बढ़ता हुआ राज्य

हालिया हफ्तों में, मणिपुर हिंसा और प्रदर्शनों से जूझ रहा है, जिससे उत्तर-पूर्वी राज्य में अशांति फैल गई है। जो शुरुआत में कुछ स्थानीय संघर्षों के रूप में था, वह अब एक व्यापक संघर्ष में बदल चुका है, जिसने राज्य के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित किया है। जैसे-जैसे तनाव बढ़ रहा है, राज्य और केंद्र सरकारों पर व्यवस्था बहाल करने और हिंसा के मूल कारणों को संबोधित करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। प्रदर्शन, जो मुख्य रूप से जातीय और राजनीतिक विभाजन से प्रेरित हैं, शुरुआत में मणिपुर के मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त करने की विवादास्पद मांग से उत्पन्न हुए थे। मेइती समुदाय, जो मणिपुर की जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त करने की मांग कर रहा है, जिससे राज्य के आदिवासी समुदायों में तीव्र विरोध उत्पन्न हुआ है।

हिंसा का फैलाव

प्रदर्शन उस समय हिंसक हो गए जब मेइती समर्थकों और आदिवासी समुदायों के बीच झड़पें हुईं, जिसमें भूमि अतिक्रमण, असमान विकास और भेदभाव जैसे मुद्दों ने हिंसा को बढ़ावा दिया। इन संघर्षों के परिणामस्वरूप व्यापक विनाश हुआ, जिसमें संपत्तियों को जलाना, वाहनों पर हमले और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाना शामिल था। इसके अतिरिक्त, शारीरिक हमलों, आगजनी और जातीय लक्षित हिंसा की रिपोर्ट्स में नागरिकों की हताहत होने और भय का माहौल उत्पन्न हो गया है।

मणिपुर, जो पहले से ही जटिल सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य का सामना कर रहा है, में स्थिति को संभालने के लिए सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, हिंसा ने और अधिक तीव्र रूप ले लिया है और कई जिलों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया है। इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया है और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आवाजाही पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।

आदिवासी अधिकारों और प्रतिनिधित्व पर प्रदर्शन

चल रहे प्रदर्शनों का मूल कारण जातीय अधिकारों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे से जुड़ा हुआ है। मेइती समुदाय, जो मुख्य रूप से इंफाल घाटी में स्थित है, यह तर्क करता है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने से वे जो सामाजिक-आर्थिक असमानताएं झेल रहे हैं, जैसे शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व, उनका समाधान हो सकेगा। हालांकि, राज्य के आदिवासी समूह, जो मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में निवास करते हैं, इस कदम को अपनी सांस्कृतिक पहचान और स्वायत्तता के लिए खतरा मानते हैं। उन्हें डर है कि इस निर्णय से मेइती समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में बस जाएंगे, जो उनके समुदायों को और अधिक हाशिए पर डाल देगा। आदिवासी समूहों का कहना है कि मेइती समुदाय को पहले से ही कई फायदे प्राप्त हैं, जैसे बेहतर राजनीतिक प्रतिनिधित्व और संसाधनों तक पहुंच, और उनका मानना है कि ST का दर्जा देने से राज्य की शक्ति संरचना में असंतुलन पैदा होगा। स्वायत्तता और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा की चिंता के कारण आदिवासी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया है, और वे किसी भी बदलाव का विरोध कर रहे हैं जो वर्तमान आरक्षण प्रणाली को प्रभावित कर सके।

सरकारी प्रतिक्रिया और शांति की अपील

हिंसा की बढ़ती स्थिति के मद्देनजर, राज्य और केंद्रीय सरकारों ने विभिन्न समुदायों के बीच शांति और संवाद की अपील की है। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने नागरिकों से शांति बनाए रखने की अपील की है और कहा है कि हिंसा से बचने और शांति वार्ता के जरिए समाधान खोजना जरूरी है। केंद्रीय सरकार ने भी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त केंद्रीय बल तैनात किए हैं और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में कदम उठाए हैं। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, स्थिति में तत्काल सुधार की कोई संभावना नहीं दिखती। मानवाधिकार संगठनों ने सुरक्षा बलों द्वारा शक्ति के असंतुलित उपयोग और कुछ क्षेत्रों में नागरिक अधिकारों के उल्लंघन पर चिंता व्यक्त की है। कई नागरिकों ने राजनीतिक समाधान की स्पष्ट दिशा की कमी पर नाराजगी जताई है और सरकार से अनुरोध किया है कि वह केवल कानून और व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय संघर्ष के मूल कारणों का समाधान करे।

आगे का रास्ता: एक विभाजित राज्य

मणिपुर अब हिंसक प्रदर्शनों के परिणामस्वरूप एक गहरी संकट की ओर बढ़ता हुआ दिख रहा है, और यह सवाल उठता है कि कैसे जातीय विभाजन को हल किया जाएगा। राज्य की नाजुक शांति, जो दशकों से जटिल समझौतों और संतुलनों के आधार पर बनी थी, अब खतरे में पड़ सकती है। केंद्रीय और राज्य सरकारों के लिए चुनौती यह होगी कि वे विभिन्न समुदायों की मांगों को संतुलित करते हुए क्षेत्र की दीर्घकालिक स्थिरता को सुनिश्चित करें।

आगे का रास्ता एक जटिल संतुलन की आवश्यकता होगी, जिसमें मेइती समुदाय की राजनीतिक आकांक्षाओं और आदिवासी समूहों की चिंताओं का समाधान करना होगा। संवाद, विश्वास निर्माण की प्रक्रिया और सभी समुदायों की सांस्कृतिक अखंडता और स्वायत्तता की रक्षा करने की प्रतिबद्धता हिंसा को कम करने और रक्तपात को रोकने के लिए महत्वपूर्ण होगी।

तब तक, मणिपुर के लोग अनिश्चितता के बीच जी रहे हैं, क्योंकि प्रदर्शनों और हिंसा ने राज्य को एक गहरे संकट के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। तत्काल राजनीतिक और मानवतावादी हस्तक्षेप की आवश्यकता अधिक से अधिक बढ़ती जा रही है, क्योंकि यह क्षेत्र पूरे उत्तर-पूर्वी भारत के लिए एक बड़ा संकट बन सकता है।

महाराष्ट्र में सीएम पद को लेकर सियासी हलचल तेज, दिल्ली के लिए रवाना हुए देवेंद्र फडणवीस

डेस्क: महाराष्ट्र का नया सीएम कौन होगा, इसे लेकर सियासी हलचल तेज है। भाजपा, एनसीपी अजित गुट और शिवसेना शिंदे गुट में इसे लेकर खींचतान जारी है। हालांकि अजित पवार गुट ने देवेंद्र फडणवीस के सीएम बनने को लेकर समर्थन देने की बात कही है लेकिन शिवसेना शिंदे गुट इसे फिलहाल स्वीकार नहीं कर पा रहा है।

इस सियासी हलचल के बीच देवेंद्र फडणवीस दिल्ली रवाना हो गए हैं। जानकारी के मुताबिक मुंबई से देवेंद्र फडणवीस अपने घर से निकले और दिल्ली जाएंगे। हालांकि कहा जा रहा है कि उन्हें सुनियोजित कार्यक्रम के लिए दिल्ली जाना था। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के बेटी की शादी में शामिल होने देवेंद्र फडणवीस दिल्ली जा रहे हैं। लेकिन फडणवीस दिल्ली में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात करेंगे।

बाबा बागेश्वर की यात्रा पर खतरा, कहा- 'हमारी सुरक्षा भले ही कम कर दें, लेकिन साथ चलने वालों का बाल बांका ना हो'

डेस्क: बाबा बागेश्वर धाम के कथावाचक पंडित धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा पर खतरे की बात सामने आई है। इसके बाद धीरेंद्र शास्त्री का कहना है कि भले ही उनकी सुरक्षा कम कर दी जाए, लेकिन उनके साथ चलने वाले लाखों लोगों का बाल भी बांका नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार और पुलिस का फोन आया तो उन्हें भी खतरे का एहसास हुआ। इसके साथ ही उन्होंने अलीपुरा का नाम हरिपुरा करने की बात कही।

उत्तर प्रदेश के संभल में हुई घटना को लेकर उन्होंने कहा कि उन लोगों ने कानून हाथ में लिया। बहुत बुरा हुआ। जिनके हाथों में पत्थर थे, उन्हें जेलर के हाथों में देना चाहिए। बुलडोजर कार्रवाई को जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा "आतंकी का कोई नाम नहीं होता। आतंक मतलब आतंक। इसकी कोई जाति नहीं होती। उनको सबक देना जरूरी होता है। उनको मिट्टी में मिलाना जरूरी होता है।

यूपी में धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा का बुलडोजर और राममंदिर से स्वागत हुआ। इसके लिए उन्होंने गांव वालों, उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन को धन्यवाद कहा। इंडिया टीवी से बातचीत में उन्होंने कहा "चैनल के माध्यम से निवेदन है कि हमारी सुरक्षा भले ही काम कर दी जाए, लेकिन हमारे साथ जो लाखों लोग चल रहे हैं, उनका बाल बांका ना हो, क्योंकि वह बड़ी श्रद्धा से आध्यात्मिक यात्रा में आए हैं। यह बागेश्वर का मिलन राम राजा ओरछा से हो रहा है।

पटना से एक लड़का परीक्षा छोड़कर धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा में शामिल होने आया। इस पर उन्होंने कहा कि लड़का बोला बाबा आपके चरण में चोट लगानी थी। हमसे बर्दाश्त नहीं हुआ इसलिए हम परीक्षा छोड़कर आ गए हैं। कह रहा है कि भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा।

मदनी ने कहा है कि मस्जिद में मंदिर नहीं देखना चाहिए। इस पर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि मुगल अकबर, बाबर ने मंदिर में मस्जिद में बनाई। अब घर वापसी हो रही है। अब मुगलों अकबर-बाबर का साम्राज्य नहीं है। अब हिंदुत्व विचारधारा के लोग हैं, अब जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। वक्फ बोर्ड को लेकर उन्होंने कहा कि सनातन बोर्ड या तो बनना चाहिए या वक्फ बोर्ड खत्म होने चाहिए। एक देश में एक संविधान, एक कानून, एक नियम चलेगा, दस नहीं।

बेंगुलुरू में जामियाते उलेमा की बैठक में कहा गया है कि मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड संसबोधन बिल पास किया तो कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर जाम कर देंगे। इस पर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा "गलत बात है, जो निर्णय सरकार ले उसे मानना चाहिए। हिन्दुओं के खिलाफ कई निर्णय हुए, हमने आतंक नहीं फैलाया। हिन्दुओं को कभी ऐसा नहीं करना चाहिए।

इस प्रकार की बात करना देश के कानून के खिलाफ है।" जब धीरेंद्र शास्त्री से पूछा गया कि आपके बारे में कहा जा रहा है कि यात्रा से साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ेगा तो उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक सौहार्द इससे बनेगा। देश एक होगा और देश के टुकड़े करने वालों की रोटियां जरूर बंद हो जाएंगी। शांति बनाए रखें, कानून को काम करने दें और प्रशासन का साथ दें।

एलन मस्क ने क्यों की भारत में चुनाव की तारीफ, जानें क्या कहा?

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माइक्रा ब्‍लॉगिंग साइट के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर बिजनेस मैन एलन मस्क ने भारत की चुनाव व्यवस्था की तारीफ की है। यही नहीं मस्क ने अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया पर सवाल भी उठाए हैं।मस्क ने कहा है कि भारत ने एक ही दिन में 64 करोड़ वोट गिनकर चुनाव का फैसला सुना दिया। वहीं अमेरिका के कैलिफोर्निया में अभी भी 5 नवंबर को हुए चुनावों के लिए गिनती जारी है। बता दें कि भारत में 23 नवंबर को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा समेत 13 राज्यों में विधानसभा उप-चुनावों की गिनती हुई। जिसको लेकर मस्क ने ये टिप्पणी की।

एलन मस्क ने भारत के इलेक्‍शन सिस्‍टम का जिक्र अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव के दौरान कैलिफोर्निया में वोटों की गिनती 18 दिन बाद भी खत्‍म नहीं होने के संदर्भ में किया। मस्क सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट का जवाब दे रहे थे। इस न्‍यूज को शेयर करते हुए उन्‍होंने लिखा “भारत ने एक दिन में 640 मिलियन वोट कैसे गिने”। यूजर द्वारा किए गए पोस्ट के कैप्‍शन में कैलिफोर्निया के नतीजों पर कटाक्ष करते हुए लिखा गया, “इस बीच भारत में, जहां धोखाधड़ी चुनावों का प्राथमिक लक्ष्य नहीं है” पोस्ट का हवाला देते हुए, मस्क ने कहा, “भारत ने 1 दिन में 640 मिलियन वोट गिने। कैलिफोर्निया अभी भी वोटों की गिनती कर रहा है।” एलन मस्‍क ने एक्स पर एक अन्य पोस्ट का जवाब दिया जिसमें कहा गया था, “भारत ने एक ही दिन में 640 मिलियन वोटों की गिनती की। कैलिफोर्निया अभी भी 15 मिलियन वोटों की गिनती कर रहा है…18 दिन बाद।

यूएस में वोटों की गिनती में क्यों लगता है समय?

बता दें कि अमेरिका में ज्यादातर वोटिंग बैलेट पेपर या ईमेल बैलेट से होती है। 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में सिर्फ 5% क्षेत्रों में वोटिंग के लिए मशीन का उपयोग किया गया था। ऐसे में यहां काउंटिंग में काफी समय लगता है। कैलिफोर्निया अमेरिका का सबसे बड़ा राज्य है। यहां 3.9 करोड़ लोग रहते हैं। 5 नवंबर को हुए राष्ट्रपति चुनावों में 1.6 करोड़ लोगों ने वोट डाले थे। मतदान के दो हफ्ते बाद भी अभी तक लगभग 3 लाख वोटों की गिनती होना बाकी है। अमेरिका में हर साल वोटों की गिनती में हफ्ते लग जाते हैं।

संभल हिंसा पर राहुल से लेकर ओवैसी तक ने योगी सरकार को घेरा, जानें क्या कहा?

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संभल जिले में स्थित जामा मस्जिद के सर्वेक्षण को लेकर रविवार को हुए बवाल के बाद सूबे की राजनीति गरमा गई हैं। अब इस मामले पर सियासत शुरू हो गई है। संभल में हुई हिंसा के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीजेपी को हिंसा का जिम्मेदार ठहराया है। साथ ही राहुल गांधी ने यूपी पुलिस को भी घेरा है। वहीं, संभल में हुई हिंसा को पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कोर्ट के फैसले को गलत बताया और पुलिस की मंशा पर सवाल उठाया है।बता दें, संभल में हुई हिंसा के दौरान भीड़ ने पुलिस पर पथराव कर दिया था। इसके बाद स्थिति बेकाबू हो गई थी। इस बवाल में पांच लोगों की मौत की रिपोर्ट है। जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए हैं।

राहुल ने कहा- सीधी ज़िम्मेदार भाजपा सरकार

संभल की घटना पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पोस्ट करते हुए लिखा कि संभल, उत्तर प्रदेश में हालिया विवाद पर राज्य सरकार का पक्षपात और जल्दबाज़ी भरा रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। हिंसा और फायरिंग में जिन्होंने अपनों को खोया है उनके प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं हैं। प्रशासन द्वारा बिना सभी पक्षों को सुने और असंवेदनशीलता से की गई कार्रवाई ने माहौल और बिगाड़ दिया और कई लोगों की मृत्यु का कारण बना। जिसकी सीधी ज़िम्मेदार भाजपा सरकार है। राहुल ने आगे कहा कि भाजपा का सत्ता का उपयोग हिंदू-मुसलमान समाजों के बीच दरार और भेदभाव पैदा करने के लिए करना न प्रदेश के हित में है, न देश के।

ओवैसी ने की सदन में चर्चा की मांग

संभल हिंसा को लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सदन में चर्चा की मांग की। ओवैसी ने कार्य स्थगन का नोटिस दिया है। ओवैसी ने संभल हिंसा को लेकर कहा, हिंसा ने हालात को गंभीर बना दिया है, जिसमें 5 लोगों की मौत हो गई है। उन्होंने कहा कि इस हिंसा के पीछे की वजह और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है। ओवैसी ने चाहते हैं कि सरकार इस मामले में स्थिति साफ करें और दोषियों के खिलाफ जल्द कानूनी कार्रवाई की जाए।

ओवैसी ने कोर्ट के फैसले को गलत बताया और पुलिस की मंशा पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि संभल की मस्जिद 50-100 साल पुरानी नहीं है, यह 250-300 साल से भी ज़्यादा पुरानी है और कोर्ट ने बिना मस्जिद के लोगों की बात सुने एकतरफा आदेश दिया जो गलत है। जब दूसरा सर्वे किया गया तो कोई जानकारी नहीं दी गई।