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बुलडोजर एक्शन पर शीर्ष कोर्ट ने रोक तो लगाई लेकिन इन जगहों पर नहीं होगा लागू, पढ़िए,

सुप्रीम फैसला सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाते हुए ये भी बता दिया कि उसका फैसला किन जगहों पर लागू नहीं होगा. सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि उसका निर्देश उन जगहों पर लागू नहीं होगा, जहां सार्वजनिक भूमि पर कोई अनधिकृत निर्माण है. साथ ही वहां भी जहां न्यायालय द्वारा ध्वस्तीकरण का आदेश है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मनमानी तरीके से बुलडोजर चलाने वाली सरकारें कानून को हाथ में लेने की दोषी हैं. घर बनाना संवैधानिक अधिकार है. राइट टू शेल्टर मौलिक अधिकार है. अदालत ने आगे कहा कि मकान सिर्फ एक संपत्ति नहीं है, बल्कि पूरे परिवार के लिए आश्रय है और इसे ध्वस्त करने से पहले राज्य को यह विचार करना चाहिए कि क्या पूरे परिवार को आश्रय से वंचित करने के लिए यह अतिवादी कदम आवश्यक है.
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर कहा, 15 दिन के नोटिस के बगैर निर्माण गिराया तो अफसर के खर्च पर दोबारा बनाना पड़ेगा, 15 गाइडलाइंस भी दीं

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अफसर जज नहीं बन सकते। वे तय न करें कि दोषी कौन है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने ये भी कहा कि 15 दिन के नोटिस के बगैर निर्माण गिराया तो अफसर के खर्च पर दोबारा बनाना पड़ेगा। अदालत ने 15 गाइडलाइंस भी दीं। कोर्ट ने कहा, जीवनभर की मेहनत के बाद परिवार एक मकान बना पाता है। इसे सरकारें यूं हीं नहीं तोड़ सकती है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्‍शन को लेकर लंबी चौड़ी गाइडलाइन जारी की है, जिनका मकसद सरकारों को इस तरह की कार्रवाई से रोकना है। सरकारी तंत्र के पास यह पूरा अधिकार है कि वो अवैध रूप से बनाए गए मकान पर एक्‍शन लें। कोर्ट ने कहा किसी एक की गलती से सबको मकान से वंचित नहीं किया जा सकता। भारत के संविधान की धारा-142 के तहत नई गाइडलाइन जारी की गई है। बता दें, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सरकार ने आरोपियों के घर बुलडोजर से तोड़ दिए थे। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिनमें प्रॉपर्टी तोड़ने को लेकर गाइडलाइंस बनाने की मांग की गई थी। बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन अगर बुलडोजर एक्शन का ऑर्डर दिया जाता है तो इसके खिलाफ अपील करने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए। रातोंरात घर गिरा दिए जाने पर महिलाएं-बच्चे सड़कों पर आ जाते हैं, ये अच्छा दृश्य नहीं होता। उन्हें अपील का वक्त नहीं मिलता। हमारी गाइडलाइन अवैध अतिक्रमण, जैसे सड़कों या नदी के किनारे पर किए गए अवैध निर्माण के लिए नहीं है। शो कॉज नोटिस के बिना कोई निर्माण नहीं गिराया जाएगा। रजिस्टर्ड पोस्ट के जरिए कंस्ट्रक्शन के मालिक को नोटिस भेजा जाएगा और इसे दीवार पर भी चिपकाया जाए। नोटिस भेजे जाने के बाद 15 दिन का समय दिया जाए। कलेक्टर और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को भी जानकारी दी जाए। डीएम और कलेक्टर ऐसी कार्रवाई पर नजर रखने के लिए नोडल अफसर की नियुक्ति करें। नोटिस में बताया जाए कि निर्माण क्यों गिराया जा रहा है, इसकी सुनवाई कब होगी, किसके सामने होगी। एक डिजिटल पोर्टल हो, जहां नोटिस और ऑर्डर की पूरी जानकारी हो। अधिकारी पर्सनल हियरिंग करें और इसकी रिकॉर्डिंग की जाए। फाइनल ऑर्डर पास किए जाएं और इसमें बताया जाए कि निर्माण गिराने की कार्रवाई जरूरी है या नहीं। साथ ही यह भी कि निर्माण को गिराया जाना ही आखिरी रास्ता है। ऑर्डर को डिजिटल पोर्टल पर दिखाया जाए। अवैध निर्माण गिराने का ऑर्डर दिए जाने के बाद व्यक्ति को 15 दिन का मौका दिया जाए, ताकि वह खुद अवैध निर्माण गिरा सके या हटा सके। अगर इस ऑर्डर पर स्टे नहीं लगाया गया है, तब ही बुलडोजर एक्शन लिया जाएगा। निर्माण गिराए जाने की कार्रवाई की वीडियोग्राफी की जाए। इसे सुरक्षित रखा जाए और कार्रवाई की रिपोर्ट म्युनिसिपल कमिश्नर को भेजी जाए। गाइडलाइन का पालन न करना कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। इसका जिम्मेदार अधिकारी को माना जाएगा और उसे गिराए गए निर्माण को दोबारा अपने खर्च पर बनाना होगा और मुआवजा भी देना होगा। हमारे डायरेक्शन सभी मुख्य सचिवों को भेज दिए जाएं।
5 साल पहले भाजपा संग सरकार बनाने को शरद पवार की जानकारी में हुई बैठक में अमित शाह, गौतम अदाणी, प्रफुल पटेल, देवेंद्र फडणवीस भी थे, अजीत पवार ने

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एवं राकांपा नेता अजीत पवार के ताजा बयान से महाराष्ट्र में सनसनी फैल गई है। उन्होंने कहा है कि पांच वर्ष पहले भाजपा और राकांपा की सरकार बनाने के लिए हुई बैठक में देश के मशहूर उद्योगपति गौतम अदाणी भी शामिल थी। अजीत पवार पहले भी इस बैठक का जिक्र कई बार कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने गौतम अदाणी का नाम पहली बार लिया है।

एक डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म को साक्षात्कार देते हुए अजीत पवार ने कहा कि पांच वर्ष पहले हुई बैठक में कहा कि पांच साल पहले भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए जो बैठक हुई थी, वह शरद पवार की जानकारी में हुई थी। उस बैठक में अमित शाह थे, गौतम अदाणी थे, प्रफुल पटेल थे, देवेंद्र फडणवीस थे, अजीत पवार थे, और पवार साहब खुद भी थे।

इसी क्रम में आगे यह पूछे जाने पर कि आप लोग तो भाजपा के साथ आ गए, लेकिन शरद पवार को क्या हिचक थी, अजीत पवार ने कहा कि शरद पवार एक ऐसे नेता है कि उनके मन में क्या है, ये दुनिया का एक भी आदमी बता नहीं सकता। यहां तक कि मेरी चाची भी नहीं। सुप्रिया सुले भी नहीं।

अजीत पवार द्वारा यह तथ्य उद्घाटित किए जाने के बाद कांग्रेस की ओर से भी प्रतिक्रिया आ गई है। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा है कि और यह वही गौतम अदाणी हैं, जिनको मुंबई की लाखों-करोड़ों की जमीन कौड़ियों के दाम पर भाजपा के फडणवीस और शिंदे सरकार ने दे दी है।

बता दें कि इस वार्तालाप में अजीत पवार पांच साल पहले 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद के घटनाक्रम का जिक्र कर रहे थे। उस समय एक तरफ तब की अविभाजित राकांपा के नेता शरद पवार उद्धव ठाकरे और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की बातचीत कर रहे थे, दूसरी तरफ भाजपा से भी उनकी बातचीत चल रही थी। तीन बार बैठक हुई थी।

अजीत पवार पहले भी यह बात कर चुके हैं, लेकिन नाम का जिक्र पहली बार किया। बता दें कि 20 नवंबर को महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होना है।

5 साल पहले भाजपा संग सरकार बनाने को शरद पवार की जानकारी में हुई बैठक में अमित शाह, गौतम अदाणी, प्रफुल पटेल, देवेंद्र फडणवीस भी थे, अजीत पवार ने

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एवं राकांपा नेता अजीत पवार के ताजा बयान से महाराष्ट्र में सनसनी फैल गई है। उन्होंने कहा है कि पांच वर्ष पहले भाजपा और राकांपा की सरकार बनाने के लिए हुई बैठक में देश के मशहूर उद्योगपति गौतम अदाणी भी शामिल थी। अजीत पवार पहले भी इस बैठक का जिक्र कई बार कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने गौतम अदाणी का नाम पहली बार लिया है। एक डिजिटल मीडिया प्लेटफार्म को साक्षात्कार देते हुए अजीत पवार ने कहा कि पांच वर्ष पहले हुई बैठक में कहा कि पांच साल पहले भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए जो बैठक हुई थी, वह शरद पवार की जानकारी में हुई थी। उस बैठक में अमित शाह थे, गौतम अदाणी थे, प्रफुल पटेल थे, देवेंद्र फडणवीस थे, अजीत पवार थे, और पवार साहब खुद भी थे। इसी क्रम में आगे यह पूछे जाने पर कि आप लोग तो भाजपा के साथ आ गए, लेकिन शरद पवार को क्या हिचक थी, अजीत पवार ने कहा कि शरद पवार एक ऐसे नेता है कि उनके मन में क्या है, ये दुनिया का एक भी आदमी बता नहीं सकता। यहां तक कि मेरी चाची भी नहीं। सुप्रिया सुले भी नहीं। अजीत पवार द्वारा यह तथ्य उद्घाटित किए जाने के बाद कांग्रेस की ओर से भी प्रतिक्रिया आ गई है। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा है कि और यह वही गौतम अदाणी हैं, जिनको मुंबई की लाखों-करोड़ों की जमीन कौड़ियों के दाम पर भाजपा के फडणवीस और शिंदे सरकार ने दे दी है। बता दें कि इस वार्तालाप में अजीत पवार पांच साल पहले 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद के घटनाक्रम का जिक्र कर रहे थे। उस समय एक तरफ तब की अविभाजित राकांपा के नेता शरद पवार उद्धव ठाकरे और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की बातचीत कर रहे थे, दूसरी तरफ भाजपा से भी उनकी बातचीत चल रही थी। तीन बार बैठक हुई थी। अजीत पवार पहले भी यह बात कर चुके हैं, लेकिन नाम का जिक्र पहली बार किया। बता दें कि 20 नवंबर को महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होना है।
तांत्रिक बोला, आपके घर में खजाना गड़ा हुआ है, मकान मालिक ने खुदवा डाला घर तो उड़ गए होश, पांच लाख भी गंवाए, पढ़िए, पूरी कहानी


उत्तर प्रदेश के बरेली में तांत्रिक ने एक दंपति को घर में जमीन के अंदर गढ़े खजाने को निकालने का झांसा देकर पांच लाख रुपये की ठगी की वारदात को अंजाम दे दिया. हालांकि बाद में तांत्रिक और उसका सहयोगी पकड़ा गया और उनसे 50 हजार रुपये भी बरामद हुए. बरेली के भभोरा इलाके में एक तांत्रिक ने दंपति को अपनी बातों में उलझा लिया और उनसे पांच लाख रुपये की ठगी कर ली. तांत्रिक ने पीड़ित दंपति से कहा कि उनके घर में माया (खजाना) गढ़ी हुई है. इसको निकालने के लिए पूजा-पाठ करनी होगी, जिसमें पांच लाख रुपये का खर्च आएगा. ठगों ने मिट्टी की एक हांडी में बुजुर्ग से पांच लाख रखवाए. पूजा शुरू होने से ठीक पहले 5 फीट का एक गड्डा खोदा गया और इसके बाद पड़ोस में पूजा शुरू की गई. दंपति पर छिडका इत्र, किया बेहोश पूजा शुरू करने के बाद ठगों ने बुजुर्ग दंपति पर कोई सुगंधित पदार्थ डाला. इत्र डालते ही बुजुर्ग दंपति बेहोश हो गए और तीनों ठग पांच लाख रुपये लेकर चंपत हो गए. बताया जा रहा है इत्र के अंदर नशीली दवाई मिली हुई थी जिसके सूंघते ही सभी लोग बेहोश हो गए. होश में आए तो हुआ ठगी का एहसास कई घंटे के बाद जब दंपति होश में आए तो उनको ठगी का एहसास हुआ. पीड़ित की ओर से 10 नवंबर को एसएसपी से शिकायत की गई. इसके बाद मुकदमा दर्ज हुआ. पुलिस ने 12 नवंबर को घटना के दो आरोपियों सादिक अली और शेर खां को गिरफ्तार कर उनके पास से 50 हजार रुपये बरामद कर लिए. एसपी सिटी ने बताया कि उनका एक साथी नजाकत अली फरार है. एसपी सिटी के मुताबिक, 10 नवंबर को भमौरा थाना इलाके के बलिया गांव के रहने वाले व्यक्ति ने सूचना दी कि उनके साथ ये घटना हुई है. इस वारदात में शामिल सादिक अली और शेर खां को 12 नवंबर को गिरफ्तार कर लिया गया है. पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि पहले उन्होंने शान मोहम्मद के साथ दोस्ती की और बताया कि वो तंत्र मंत्र का कार्य करते थे. इन लोगों ने उन्हें झांसा दिया कि आपके घर में खजाना गढ़ा हुआ है. यदि वो किसी प्रकार का अनुष्ठान करते हैं तो खजाना ढूंढ कर उनको दे देंगे. यह प्रक्रिया उन्होंने घर के अंदर शुरू की. इसके बाद इन्होंने शान मोहम्मद और उसकी पत्नी को बताया कि एक इत्र लगाना होगा और इत्र लगाने के बाद आगे की प्रक्रिया की जाएगी. यह वस्तु प्रयोग होते ही दोनों लोग बेहोश हो गए. इस प्रक्रिया के लिए इन्होंने 5 लाख रुपये इकट्ठे किए थे. ये लोग उन पैसों को लेकर फरार हो गए. इस घटना में शामिल तीसरा आरोपी फरार है, उसकी तलाश की जा रही है.
अल-कायदा भारत में आतंकी हमले की रच रहा साजिश, जानें पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से क्या है कनेक्शन?*
#how_al_qaeda_instigate_muslim_youth_in_india_connection_with_bangladesh
नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने सोमवार को देश भर में कई जगहों पर छापेमारी की। ये छापेमारी अल-कायदा से जुड़े कुछ बांग्लादेशी नागरिकों के खिलाफ की गई। यह छापेमारी बांग्लादेशी नागरिकों द्वारा भारत में प्रतिबंधित आतंकी संगठन अल-कायदा की गतिविधियों को बढ़ावा देने से जुड़ी थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक एनआईए ने ऐसी 9 जगहों पर रेड की जो अल-कायदा की गतिविधियों का समर्थन और उन्हें कथित तौर पर फंड मुहैया कराने वाले संदिग्ध लोगों से जुड़े थे। एनआईए के मुताबिक, छापेमारी में बैंक लेनदेन से जुड़े कई कागजात, मोबाइल फोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण मिले हैं। ये सभी चीजें आतंकवाद को फंडिंग करने के मामले में अहम सबूत हो सकते हैं। एनआईए ने बताया, 'जिन लोगों के ठिकानों पर छापेमारी की गई, वो बांग्लादेशी अल-कायदा नेटवर्क के समर्थक हैं। एनआईए ने कहा कि ये तलाशी 2023 के एक मामले में चल रही जांच का हिस्सा है, जिसमें बांग्लादेश स्थित अल-कायदा के गुर्गों द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के साथ मिलकर रची गई साजिश शामिल है। *भारत में भोले-भाले युवाओं को गुमराह करना मकसद* एनआईए के मुताबिक अल-कायदा का बांग्लादेश बेस्ड एक नेटवर्क है, जो भारत के खिलाफ हमले की साजिश रच रहा है और युवाओं को चरमपंथी गतिविधियों के लिए उकसा रहा है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी कई महीनों से इसकी पड़ताल कर रही है। एजेंसी ने एक बयान में कहा कि 11 नवंबर की रेड एनआईए की 2023 से चल रही जांच का हिस्सा थी। जिसमें कई गिरफ्तारियां भी हुई थीं। इन पर आरोप था कि इनका उद्देश्य अल-कायदा की आतंकवादी गतिविधियों को फैलाना और भारत में भोले-भाले युवाओं को कट्टरपंथी बनाना था। *चार बांग्लादेशी समेत पांच लोगों के खिलाफ चार्जशीट* पिछले साल नवंबर में एनआईए ने पांच आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी, जिनमें चार मोहम्मद सोजीब मियां, मुन्ना खालिद अंसान उर्फ मुन्ना खान, अजरुल इस्लाम उर्फ जहांगिर या आकाश खान और अब्दुल लतीफ उर्फ मोमिनुल अंसारी बांग्लादेशी नागरिक शामिल थे। पांचवां आरोपी फरीद भारतीय नागरिक था। एनआईए की जांच में पता चला कि आरोपियों ने अपनी गतिविधियों को गुप्त रूप से अंजाम देने के लिए जाली दस्तावेज तैयार किए थे। एनआईए के अनुसार वे भारत में मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और प्रेरित करने, अल-कायदा की हिंसक विचारधारा फैलाने, धन जुटाने और इस धन को संगठन को पहुंचाने में सक्रिय रूप से शामिल थे।
अवैध निर्माण पर बुलडोजर एक्शन के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस, जिसे फॉलो कर तोड़ा जा सकता है मकान
#supreme_court_guideline_on_bulldozer_action

* सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्‍शन पर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि किसी का भी आशियाना तोड़ना अवैध है। अदालत ने कहा है कि अधिकारी न्यायाधीश नहीं बन सकते। आरोपी को दोषी घोषित नहीं कर सकते और उसका घर नहीं गिरा सकते। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्‍शन को लेकर लंबी चौड़ी गाइडलाइन जारी की है, जिनका मकसद सरकारों को इस तरह की कार्रवाई से रोकना है। बुलडोजर एक्शन पर गाइडलाइन जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी का घर सिर्फ इसलिए नहीं गिराया जा सकता क्योंकि उस पर किसी अपराध का आरोप है, जिसकी सच्चाई का निर्धारण सिर्फ न्यायपालिका ही करेगी। कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसी संपत्तियों को ध्वस्त करता है तो यह सही नहीं होगा। यदि कार्यपालिका संपत्ति को ध्वस्त करता है तो यह कानून के नियमों का उल्लंघन है। किसी को भी बिना ट्रायल के दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन है। ऐसे सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। *बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए ये निर्देश* • यदि ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए समय दिया जाना चाहिए। • बिना अपील के रात भर ध्वस्तीकरण के बाद महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर देखना सुखद तस्वीर नहीं है। • सड़क, नदी तट आदि पर अवैध संरचनाओं को प्रभावित न करने के निर्देश। • बिना कारण बताओ नोटिस के ध्वस्तीकरण नहीं। • मालिक को पंजीकृत डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा और संरचना के बाहर चिपकाया जाएगा। • नोटिस से 15 दिनों का समय नोटिस तामील होने के बाद है। • तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी। • कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे। • नोटिस में उल्लंघन की प्रकृति, निजी सुनवाई की तिथि और किसके समक्ष सुनवाई तय की गई है, निर्दिष्ट डिजिटल पोर्टल उपलब्ध कराया जाएगा, जहां नोटिस और उसमें पारित आदेश का विवरण उपलब्ध होगा। • प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई सुनेगा और मिनटों को रिकॉर्ड किया जाएगा और उसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा/ इसमें यह उत्तर दिया जाना चाहिए कि क्या अनधिकृत संरचना समझौता योग्य है, और यदि केवल एक भाग समझौता योग्य नहीं पाया जाता है और यह पता लगाना है कि विध्वंस का चरम कदम ही एकमात्र जवाब क्यों है। • आदेश डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाएगा। • आदेश के 15 दिनों के भीतर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का अवसर दिया जाएगा और केवल तभी जब अपीलीय निकाय ने आदेश पर रोक नहीं लगाई है, तो विध्वंस के चरण होंगे। • विध्वंस की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाएगी वीडियो को संरक्षित किया जाना चाहिए। उक्त विध्वंस रिपोर्ट नगर आयुक्त को भेजी जानी चाहिए। • सभी निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। • इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी और अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा। • सभी मुख्य सचिवों को निर्देश दिए जाने चाहिए। *यूपी की योगी सरकार में शुरू हुआ बुलडोजर एक्‍शन?* उत्‍तर प्रदेश की योगी आदित्‍यनाथ सरकार ने सबसे पहले बुलडोजर एक्‍शन का चलन शुरू किया था, जिसे धीरे धीरे अन्‍य बीजेपी शासित राज्‍यों में भी अपनाया गया. इसके तहत अगर कोई व्‍यक्ति हिंसक घटना या दंगों में शामिल पाया गया जाता है तो उसके घर पर बुलडोजर की कार्रवाई की होती है. आमतौर पर हर किसी के घर पर थोड़ा बहुत अवैध निर्माण तो होता ही है. बस इसी को तोड़ने में पूरा सरकारी तंत्र लग जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर माना क‍ि किसी आरोपी के घर को तोड़ना एक गलत प्रथा है. हालां‍कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भविष्‍य में बुलडोजर एक्‍शन बंद हो जाएगा, ऐसा होना मुश्किल नजर आता है
ट्रंप कैबिनेट का हिस्सा बने भारतवंशी विवेक रामास्वामी, एलन मस्क के साथ मिलकर निभाएंगे ये अहम ज़िम्मेदारी

#elonmuskandvivekramaswamytolead_doge

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सरकार के अहम पदों पर नियुक्तियां शुरू कर दी हैं। इसी क्रम में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दिग्गज कारोबारी एलन मस्क और उद्यमी विवेक रामास्वामी को बड़ी जिम्मेदारी दी है। वे अब सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) का नेतृत्व करेंगे। इसे लेकर नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने बड़ा ऐलान किया है. ट्रंप ने कहा है कि मस्क और रामास्वामी गैर-जरूरी खर्च पर लगाम लगाने वाले डिपार्टमेंट ऑफ गर्वमेंट इफिशियंसी को लीड करेंगे। ट्रंप ने इसकी घोषणा करते हुए एलन मस्क को 'ग्रेट एलन मस्क' कहा है और विवेक रामास्वामी को 'देशभक्त अमेरिकी' बताया है।

ट्रंप ने एक बयान में कहा, मस्क और रामास्वामी मेरे प्रशासन के लिए सरकारी नौकरशाही को खत्म करने, अतिरिक्त नियमों को कम करने, फिजूल खर्चों में कटौती करने और संघीय एजेंसियों के पुनर्गठन का मार्ग प्रशस्त करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी जिम्मेदारी चार जुलाई 2026 को समाप्त हो जाएगी, जब अमेरिकी आजादी की 250वीं वर्षगांठ होगी। यह कुशल सरकार देश के लिए एक 'तोहफा' होगी।

ट्रंप का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। ट्रंप ने अरबपति एलन मस्क और कंजरवेटिव नेता/बिजनेसमैन विवेक रामास्वामी को मंगलवार सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) का नेतृत्व करने के लिए नामित किया है। यह विभाग सरकार के नौकरशाह पर हो रहे खर्चे को मॉनिटर करने का काम करेगा। मस्क और ट्रंप ने चुनावी प्रचार में सरकारी खर्च में बड़े स्तर में कटौती की वादा किया था। खास बात ये है कि ट्रंप ने इसकी तुलना ‘द मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ से की है। ट्रंप ने कहा है कि यह सरकार में बहुत बड़ा बदलाव लाएगा।

‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ क्या है जिससे ट्रंप ने की तुलना?

सरकार के खर्च में कटौती और रिस्ट्रक्चर का काम कैसे किया जाएगा इसे लेकर कोई विस्तृत योजना पेश नहीं की गई है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने अपने इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट की तुलना ‘द मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ से की है। दरअसल मैनहट्टन प्रोजेक्ट के जरिए ही अमेरिका ने दुनिया का पहला परमाणु बम बनाया था। जिसका इस्तेमाल दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के हीरोशिमा और नागासाकी पर किया गया था। साल 1942 में न्यूयॉर्क के मैनहट्टन में इस प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था। बताया जाता है कि इसमें करीब 1.25 लाख लोग शामिल थे, जो जंगल में छिपकर न्यूक्लियर बम बना रहे

एलन मस्क ने कटौती का किया था दावा

मस्क इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला, सोशल मीडिया मंच एक्स के मालिक हैं। मस्क ने ट्रंप के चुनाव अभियान के लिए लिए लाखों डॉलर का योगदान दिया था और उनके साथ कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी नजर आए थे। एलन मस्क ने चुनाव प्रचार के दौरान दावा किया था कि वह डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने पर संघीय बजट में 2 ट्रिलियन डॉलर की कटौती करने में मदद करेंगे। लेकिन उन्होंने इसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी कि वह यह काम कैसे करेंगे या फिर वह सरकार के किस विभाग या हिस्से में कटौती करेंगे। ट्रंप ने भी कहा था कि दुनिया के सबसे अमीर शख्स मस्क उनके प्रशासन में सरकारी कार्यक्षमता को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाएंगे।

चुनाव में रामास्वामी ने दिया था ट्रंप को समर्थन

वहीं, रामास्वामी एक फार्मास्यूटिकल कंपनी के संस्थापक हैं। रामास्वामी पिछले साल रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों की दौड़ में शामिल थे। हालांकि, बाद में उन्होंने ट्रंप को समर्थन देने का फैसला किया था। ट्रंप की ओर से अहम जिम्मेदारी मिलने पर विवेक रामास्वामी ने लिखा है- हमलोग नरमी से पेश नहीं आने वाले हैं। यानी विवेक रामास्वामी ने संकेत दे दिया है कि जो ज़िम्मेदारी मिली है, उसे आक्रामकता के साथ लागू करेंगे और ट्रंप यही चाहते भी हैं।

विवेक को ट्रंप ने वही ज़िम्मेदारी दी है, जिसकी वो वकालत करते रहे हैं. जैसे कई सरकारी विभागों और एजेंसियों को बंद करने की वकालत विवेक रामास्वामी करते रहे हैं। एलन मस्क के साथ विवेक रामास्वामी सरकार में नौकरशाही, अतिरिक्त नियम-क़ानून और 'अनावश्यक खर्चों' को रोकने के अलावा फेडरल एजेंसियों के पुनर्गठन पर काम करेंगे। ट्रंप ने इसे 'सेव अमेरिका' अभियान के लिए ज़रूरी बताया है

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कहा-घर सपना, कभी ना टूटे...

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाया है। अपराधियों और अवैध निर्माण को लेकर ‘बुलडोजर’ एक्शन काफी पॉपुलर है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के बाद देश की कई राज्यों ने क्रिमिनल्स के खिलाफ नकेल कसने के लिए ‘बुलडोजर’ एक्शन को अपनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है। बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता।. जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया।

सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए

कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है। हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं। फैसला पढ़ते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है।सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है

जस्टिस बीआर गवई बुलडोजर एक्शन पर फैसला पढ़ते हुए कहा कि, घर होना एक ऐसी लालसा है जो कभी खत्म नहीं होती। हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो। एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका को दंड के रूप में आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए? हमें विधि के शासन के सिद्धांत पर विचार करने की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान का आधार है।सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है।

अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें

बिना मुकदमे के घर तोड़कर सजा नहीं दी जा सकती है। हमारे पास आए मामलों में यह स्पष्ट है कि प्राधिकारों ने कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन किया। गाइडलाइन्स पर हमने विचार किया है। अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें। मनमानी करने वाले अधिकारियों पर एक्शन की सख्त जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था अंतरिम आदेश

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या उसे दोषी ठहराए जाने के आधार पर उसके घरों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं। किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।

तालिबान ने मुंबई में नियुक्त किया अपना “राजदूत”, मान्यता नहीं...फिर कैसे हो रही नियुक्ति?
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* तालिबान सरकार ने इकरामुद्दीन कामिल को मुंबई में अफगान मिशन में कार्यवाहक काउंसल के रूप में नियुक्त किया है। अफगान मीडिया के अनुसार, यह भारत में किसी अफगान मिशन के लिए तालिबान द्वारा की गई पहली ऐसी नियुक्ति है।तालिबान के कंट्रोल वाली अफगान न्यूज एजेंसी बख्तर न्यूज एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इकरामुद्दीन कामिल नाम के एक शख्स की मुंबई काउंसुलेट में नियुक्ति की है। इस नियुक्ति की खबर तब आ रही है जब बीते हफ्ते काबुल में तालिबान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री मुल्ला मुहम्मद याकूब से भारतीय अधिकारियों की मुलाकात की थी। रिपोर्ट के अनुसार, कामिल वर्तमान में मुंबई में हैं और इस्लामी अमीरात का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। कामिल का अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय में महत्वपूर्ण अनुभव रहा है, जहां उन्होंने सुरक्षा सहयोग और सीमा मामलों के विभाग में उप निदेशक के रूप में कार्य किया है। अंतरराष्ट्रीय कानून में पीएचडी धारक कामिल से अब मुंबई में अफगान नागरिकों के लिए काउंसलर सेवाएं सुगम बनाने और भारत में अफगानिस्तान के हितों का प्रतिनिधित्व करने की अपेक्षा की जा रही है। भारत ने अभी तक इस मुद्दे पर आधिकारिक रूप से कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी है। मामले की जानकारी रखने वालों ने बताया कि विदेश मंत्रालय (एमईए) की स्‍कॉलरशिप पर भारत में सात साल तक अध्ययन करने वाले कामिल ने वाणिज्य दूतावास में “राजनयिक” के रूप में काम करने पर सहमति जताई है। हालांकि उनका स्‍टेटस फिलहाल भारत में अफगानों के लिए काम करने वाले एक अफगान नागरिक का ही है। कामिल की नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब भारत और तालिबान सरकार के बीच संवाद का दौर जारी है। हाल ही में भारत के विदेश मंत्रालय के अफगानिस्तान मामलों के प्रमुख ने काबुल में तालिबान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब से मुलाकात की थी। तालिबान के उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई ने भी कामिल की नियुक्ति को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, जिससे दोनों देशों के बीच बढ़ते संपर्क की झलक मिलती है। काबुल का यह कदम भारत के साथ अपने राजनयिक संबंधों को मजबूत करने और अपनी उपस्थिति बढ़ाने के प्रयास का हिस्सा माना जा रहा है। इकरामुद्दीन कामिल की नियुक्ति भारत और तालिबान के बीच एक नया संपर्क स्थापित करने का प्रयास हो सकती है। तालिबान सरकार के साथ भारत की यह बढ़ती निकटता भारत की विदेश नीति में एक बदलाव का संकेत देती है। तालिबान के इस फैसले से भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को मिर्ची लग सकती है, क्योंकि उसके तालिबानी सरकार और भारत के साथ रिश्ते सामान्य नहीं है। इसके अलावा पाकिस्तान हमेशा तालिबान पर आतंक फैलाने का आरोप लगाता रहता है।