विश्व निमोनिया दिवसः सरकारी खर्चे से लगते हैं बच्चों को बीमारी से बचाव के टीके
गोरखपुर- निमोनिया को सामान्य भाषा में फेफड़ों के संक्रमण या सूजन के रूप में जानते हैं। समय से इस बीमारी की पहचान हो जाए तो यह इलाज से ठीक हो सकता है, लेकिन अगर देरी की जाए तो जानलेवा बन जाता है। छोटे बच्चों और शुगर, किडनी, लीवर या हर्ट के सहरूग्णता वाले रोगियों में निमोनिया के प्रति अधिक सतर्कता जरूरी है। बच्चों को निमोनिया से बचाने के टीके सभी सरकारी अस्पतालों पर सरकारी खर्चे से लगाए जा रहे हैं। यह जानकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने दी। डॉ दूबे श्वसन रोग विशेषज्ञ भी हैं।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि यह बीमारी आमतौर पर छोटे बच्चों और बुजुर्गों में अधिक होती है। जन्म के समय बच्चे का वजन कम होने पर और समय से पहले बच्चे का जन्म होने पर उसे निमोनिया होने की आशंका अधिक है। बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह से विकसित नहीं होती है और उनकी श्वसन नली भी छोटी होती है, इसलिए बच्चों के निमोनिया के प्रति अपेक्षाकृत ज्यादा सतर्क रहने की आवश्यकता है। विश्व में हर 43 सैकेंड में निमोनिया के कारण एक बच्चे की मौत हो जाती है। यूनिसेफ संस्था द्वारा नवम्बर 2023 में सार्वजनिक की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के प्रति एक लाख बच्चों पर निमोनिया के 1400 मामले देखे गये हैं।
डॉ दूबे ने बताया कि नियमित टीकाकरण के जरिये बच्चों में निमोनिया के मामले नियंत्रित किये जा रहे हैं। बच्चे के जन्म के छह हफ्ते और चौदह हफ्ते पर एवं इसके बाद नौ माह पर निमोनिया से बचाव के लिए उन्हें निमोकॉकल वैक्सीन (पीसीवी) लगाई जाती है। हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी निमोनिया से बचाव में पेंटावेलेंट टीका भी मददगार है। यह टीका बच्चे के जन्म के छह, दस और चौदहवें सप्ताह में सरकारी खर्चे पर लगाया जा रहा है। नवजात को शीघ्र स्तनपान, छह माह तक सिर्फ स्तनपान और छह माह बाद स्तनपान के साथ साथ दो वर्ष की उम्र तक पोषणयुक्त घरेलू पूरक आहार भी बच्चों को निमोनिया से बचाता है। बच्चों में दस्त के कारण भी निमोनिया की आशंका अधिक होती है । दस्त से बचाव के लिए ओआरएस के पैकेट और जिंक की गोलियां स्वास्थ्य विभाग द्वारा दी जाती हैं।
इन लक्षणों पर हो जाएं सतर्क
सीएमओ ने बताया कि सूखी या फिर बलगम के साथ खांसी, सामान्य से अधिक बुखार, सांस फूलना, सांसो की घरघराहट और सीने में दर्द निमोनिया के प्रारंभिक लक्षण हैं। अगर यह लक्षण नवजात या बच्चों में हो तो 102 नंबर एम्बुलेंस की मदद से सरकारी अस्पताल में जाना चाहिए। अन्य लोगों को भी अतिशीघ्र चिकित्सक की देखरेख में इलाज शुरू करवाना चाहिए।
ऐसे होती है बीमारी
जब नाक और गले का वायरस या बैक्टेरिया श्वसन नलिका में चला जाता है तो फेफड़े संक्रमित होने से निमोनिया हो जाता है। यह कफ या छींक से भी हवा में फैल सकता है। बच्चों के जन्म के शुरूआती दिनों में यह प्रदूषण, संक्रमण या रक्त के माध्यम से भी हो सकता है। धूल और प्रदूषण के कारण फेफड़े कमजोर हो जाते हैं और इस वजह से भी निमोनिया संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।
कर सकते हैं बचाव
डॉ दूबे ने बताया कि चिकित्सक के परामर्श के अनुसार छह माह से अधिक उम्र के लोग और खासतौर से शुगर, किडनी, लीवर और हार्ट के मरीजों को इससे बचाव के टीके भी लगवाने चाहिए। नियमित व्यायाम और प्राणायाम करने से फेफड़ों की क्षमता मजबूत होती है और निमोनिया संक्रमण होने पर जटिलताएं बढ़ने की आशंका कम हो जाती है।
Nov 12 2024, 10:43