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जनपद स्तरीय रबी उत्पादकता गोष्ठी एवं तिलहन मेला का जिलाधिकारी ने किया शुभारंभ

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। जनपद स्तरीय रबी उत्पादकता गोष्ठी एवं तिलहन मेला का आयोजन जिलाधिकारी विशाल सिंह की अध्यक्षता में कृषि भवन घरांव परिसर में सम्पन्न हुआ। जिलाधिकारी द्वारा कृषकों से अपील किया गया कि अधिकारियों एवं कृषकों द्वारा बतायी गयी तकनीकी ज्ञान को अपने खेतों में अपनायें, जिससे उत्पादन बढे एवं उसका लाभ मिल सके। उनके द्वारा गोष्ठी की उपयोगिता के बारे में बताया गया कि रबी की बुवाई प्रारम्भ हो गयी है।

कृषकों को अच्छी प्रजाति के बीज का चयन कर, मृदा स्वास्थ्य कार्ड की संस्तुति के आधार पर उर्वरक का प्रयोग करते हुए बुवाई करें। जिससे अधिक उत्पादन हो सके। जिलाधिकारी द्वारा कृषकों से अपील किया गया कि पराली को न जलायें, बल्कि उसे सड़ा दें, जिससे खेत की उर्वरता बढ़ सके और उत्पादन को बढ़ाया जा सके। उन्होंने सरकार द्वारा चलायी जा रही कृषक कल्याणकारी योजनाओं के बारें में भी बताया। दीपक मिश्र जिलाध्यक्ष भाजपा द्वारा कृषकों के हितार्थ सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सरकार कृषकों के कदम से कदम मिलाकर कार्य कर रही है। कृषकों को किसी भी प्रकार की समस्याएं न हो पाये इसके लिए ऐसे कार्यक्रम सम्पादित किये जाते रहते हैं।

डा० शिवाकान्त द्विवेदी मुख्य विकास अधिकारी द्वारा मृदा की जीवाश्म कार्बन को बढ़ाने एवं उसके उपयोग के बारे में जानकारी देते हुए कृषकों से अपील किया कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बतायी गयी तकनीकी जानकारी को स्वयं के साथ अन्य कृषकों को भी प्रदान करें। जिससे जनपद का उत्पादन बढ़ सके और कृषक लाभान्वित हो सके। उप कृषि निदेशक डा०अश्वनी कुमार सिंह द्वारा गोष्ठी को रेखांकित करते हुए बताया कि रबी सीजन की बुवाई शुरू हो गयी है। इसके लिए खाद, बीज एवं सिंचाई की व्यवस्था के बारे में रूपरेखा तैयार की जाती है।

इन्होंने बताया कि तिलहन मेला से जनपद में तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कृषकों को प्रोत्साहित किया जाता है। उन्होंने कृषकों से अपील किया गया कि पराली को न जलायें। बल्कि आधा किलो यूरिया डालकर खेत का पलेवा करने से पराली सड़ जायेगी और इससे जीवांश्म कार्बन की मात्रा बढ़ेगी, जबकि पराली जलाने से उत्पादन घटता है एवं जीवांश्म कार्बन का क्षरण होता है। उनके द्वारा एफ०पी०ओ० एवं कृषि यंत्रीकरण के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी।

सतीश कुमार पाण्डेय जिला कृषि अधिकारी द्वारा कृषि निवेश के बारे में बताया गया कि जनपद में उर्वरक एवं बीज की कोई कमी नहीं है। कृषक राजकीय कृषि बीज भण्डारों, सहकारी समितियों एवं निजी विक्रेताओं के माध्यम से कय कर बुवाई करें। डा० विश्ववेन्दु द्विवेदी हेड एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक के०वी० के० बेजवां द्वारा मृदा स्वास्थ्य, जैविक खेती के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी। इनके द्वारा श्री अन्न के उत्पादन एवं उसके लाभ के बारे में भी जानकारी दी गयी। डा० किरन कुमार कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र बेजवां के द्वारा सम-सामायिक जानकारी देते हुए बताया कि सरसों की बुवाई, गेहूँ, चना, मटर आदि की बुवाई एवं उसमें लगने वाले रोगों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी।

डा० ताराचन्द बैरवा द्वारा मृदा स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी। सीआॅट्स वि०वि० नैनी के कृषि वैज्ञानिक डा० शिशिर कुमार द्वारा खेतों में रासायनिक खाद एवं दवाओं का कम या न के बराबर प्रयोग करने पर बल दिया गया। इनके द्वारा बताया गया कि जैविक विधि से खेती करें एवं बीज शोधन हेतु ट्राइकोडर्मा, राइजोबियम कल्चर आदि का प्रयोग करें। ममता यादव जिला उद्यान अधिकारी द्वारा एकीकृत बागवानी योजनान्तर्गत सब्जी की खेती के बारे में विस्तृत जानकारी दिया गया। इनके द्वारा स्प्रिंकलर सेट के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी। रामेश्वर सिंह प्रगतिशील कृषक द्वारा तिलहन खेती के बारे में जानकारी दी गयी। ओमकार नाथ राय द्वारा पराली प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गयी।

मेले में हृदयतोष कुमार उपाध्याय, राम अकबाल तिवारी, इन्द्रजीत मौर्य सहित जनपद के समस्त विकास खण्डों से बड़ी संख्या में कृषकों की सहभागिता रही। मेले में विभिन्न विभागों एवं निजी विकतों द्वारा स्टाल के माध्यम से कृषकों को जानकारी दी गयी। रत्नेश कुमार सिंह जिला कृषि रक्षा अधिकारी द्वारा अध्यक्ष महोदय की अनुमति से उपस्थित समस्त अधिकारियों, कृषकों एवं पत्रकार बन्धुओं का आभार प्रकट करते हुए गोष्ठी का समापन किया गया।

हेमटेक्स्टिल 2025 में भारतीय कालीन उद्योग का प्रतिनिधित्व: सीईपीसी का आमंत्रण, नए अवसरों की उम्मीद

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। भारतीय कालीन उद्योग को हाल ही में एक बड़ा झटका तब लगा, जब हनोवर, जर्मनी में जनवरी 2025 में होने वाला प्रतिष्ठित "डोमोटेक्स अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला" रद्द कर दिया गया। यह मेला भारतीय कालीन उद्योग के लिए वैश्विक मंच पर अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और नए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों को मजबूत करने का महत्वपूर्ण अवसर था।कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) के अध्यक्ष कुलदीपराज वाटल और उनकी प्रशासनिक समिति ने इस चुनौती को अवसर में बदलने के लिए अपने प्रयास तेज किए। उनके अथक प्रयासों और सरकार के सहयोग से वाणिज्य विभाग की एमएआई उप-समिति ने "हेमटेक्स्टिल 2025" में भारतीय भागीदारी को सैद्धांतिक मंजूरी प्रदान की है। यह मेला 14 से 17 जनवरी 2025 के बीच जर्मनी के फ्रैंकफर्ट स्थित मेसे फ्रैंकफर्ट प्रदर्शनी स्थल में आयोजित होगा, जो कालीन निर्यातकों के लिए एक नया वैश्विक मंच प्रदान करेगा।

उच्चस्तरीय समिति की अंतिम मंजूरी का इंतजार

इस प्रस्ताव पर अंतिम अनुमोदन उच्चस्तरीय अधिकार प्राप्त समिति द्वारा होना बाकी है। डीओसी (वाणिज्य विभाग) की ओर से मंजूरी के बाद भारतीय भागीदारी का आधिकारिक ऐलान किया जाएगा। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) ने इस अवसर को भुनाने की पूरी तैयारी कर ली है और सभी आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए तत्पर है। इस मंजूरी के बाद भारतीय कालीन उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपने विस्तार की एक नई दिशा मिल सकती है।

हेमटेक्स्टिल 2025: एक नई संभावनाओं का मंच

हेमटेक्स्टिल, विश्व के सबसे प्रमुख व्यापार मेलों में से एक है, जहाँ घरेलू वस्त्र और इंटीरियर डिजाइन से जुड़े उत्पादों का प्रदर्शन होता है। यह मेला विश्व के कोने-कोने से खरीदारों, डीलरों, और व्यवसायियों को आकर्षित करता है, जो इस क्षेत्र में संभावित भागीदारियों और खरीद के अवसरों की तलाश में होते हैं। भारतीय कालीन उत्पादों की बेहतरीन शिल्पकला और गुणवत्ता को देखते हुए, यह मंच भारत के कालीन उद्योग को नया आयाम दे सकता है।

मेला विवरण और भागीदारी आमंत्रण

मेला विवरण:

तिथि: 14-17 जनवरी 2025

स्थान: हॉल 3.0, मेसे फ्रैंकफर्ट, फ्रैंकफर्ट, जर्मनी

आयोजन अवधि: 4 दिन

सीईपीसी ने हेमटेक्स्टिल 2025 में भाग लेने के लिए सभी भारतीय कालीन निर्यातकों और निर्माताओं को आवेदन करने के लिए आमंत्रित किया है। रजिस्ट्रेशन की अंतिम तिथि 15 दिसंबर 2024 निर्धारित की गई है। इसके बाद कोई भी रजिस्ट्रेशन स्वीकार नहीं किया जाएगा।

कालीन उद्योग के लिए नए अवसर

हेमटेक्स्टिल 2025 में भागीदारी भारतीय कालीन उद्योग को वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा और पहुँच को मजबूत करने का अवसर प्रदान करेगी। यह मेला न केवल व्यापारिक समझौतों और निर्यात को बढ़ावा देगा, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और पारंपरिक शिल्प कौशल को भी विश्व पटल पर पेश करेगा।

सीईपीसी के अध्यक्ष ने कहा, "हेमटेक्स्टिल 2025 में भारत की उपस्थिति न केवल व्यापारिक हितों के लिए बल्कि भारतीय शिल्पकला और गुणवत्ता को प्रदर्शित करने का एक शानदार मौका है। हम उम्मीद करते हैं कि इस मंच से भारतीय कालीन उद्योग को नई ऊंचाइयाँ प्राप्त होंगी।"

उद्योग को नई दिशा

हेमटेक्स्टिल 2025 में भारतीय उपस्थिति से अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों के साथ बेहतर संबंध स्थापित होने की उम्मीद है। भारतीय निर्यातकों के लिए यह मेला नई तकनीकों और रुझानों से रूबरू होने का भी एक सुनहरा अवसर होगा। इस मेले में भागीदारी से भारतीय उत्पादों की मांग में वृद्धि हो सकती है, जो अंततः भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा।

सीईपीसी ने सभी इच्छुक कंपनियों और निर्यातकों से अनुरोध किया है कि वे इस अवसर का लाभ उठाने के लिए जल्द से जल्द आवेदन करें और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को समय से पूरा करें।

*छात्रवृत्ति परीक्षा में 2023 विद्यार्थियों ने दर्ज की योग्यता, भदोही के चार केंद्रों पर रही कड़ी सुरक्षा; 197 अनुपस्थित*

रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव

भदोही- राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति के लिए परीक्षा रविवार को जिले के चार केंद्रों पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच हुई। चारों केंद्रों पर मिलाकर परीक्षा में पंजीकृत 2230 विद्यार्थियों में 2023 बच्चों ने प्रतिभाग किया, जबकि 197 बच्चे परीक्षा देने नहीं पहुंचे। परीक्षा को लेकर केंद्रों पर गहमागहमी का माहौल रहा। कक्षा आठ में अध्ययनरत बच्चों को राष्ट्रीय आय एवं योग्यता आधारित छात्रवृत्ति परीक्षा के लिए जिले में चार केंद्र बनाए गए थे।

रविवार को सुबह आठ बजे के बाद से ही विभूति नारायण राजकीय इंटर कॉलेज और जिला पंचायत बालिका इंटर कॉलेज ज्ञानपुर में छात्र-छात्राओं संग उनके अभिभावक पहुंचने शुरू हुए। जांच के बाद सभी को केंद्र परिसर में प्रवेश दिया गया। सुबह 11 बजे से एक बजे तक परीक्षा हुई। जिसके बाद बच्चे अभिभावक संग घर गए। विभूति नारायण राजकीय इंटर काॅलेज ज्ञानपुर में पंजीकृत 600 में से 448 बच्चों ने प्रतिभाग। इसी तरह काशिराज महाविद्यालय इंटर कालेज औराई में 600 में से 541, जिला पंचायत बालिका इंटर कालेज ज्ञानपुर में बने केंद्र पर पंजीकृत 420 व इंद्र बहादुर सिंह नेशनल इंटर कालेज भदोही में 600 में 546 ने परीक्षा दी।

*16 नवंबर को मनाया जाएगा ऊदा देवी का शहादत दिवस:भदोही में पूर्वांचल के कजरी कलाकार बांधेंगे समा, तैयारियों में जुटे लोग*

रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव

भदोही- 16 नवंबर को ज्ञानपुर नगर के अर्पित लोन में वीरांगना ऊदा देवी पासी का शहादत दिवस ऐतिहासिक रूप से मनाया जाएगा। कार्यक्रम में कजरी महोत्सव का आयोजन किया गया है। समाज के लोगों ने आज बैठक कर कार्यक्रम के सफलता के लिए पदाधिकारी कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी गई।

बैठक में समाज के संयोजक रमेश पासी ने कार्यकर्ता पदाधिकारी को संबोधित करते हुए कहा कि 16 नवंबर को आयोजित ऊदा देवी पासी का शहादत दिवस ऐतिहासिक होगा। जिसके लिए आप सभी कार्यकर्ताओं मनोयोग के साथ कार्यक्रम के सफलता में लग जाए। उन्होंने कहा कि 16 नवंबर को ऐतिहासिक कजरी महोत्सव का भी आयोजन किया गया है। जिसमें जनपद समेत पूर्वांचल के कजरी गायक कलाकार शामिल होंगे। रमेश पासी ने कहा कि शहादत दिवस में जहां समाज के लोग शामिल होंगे तो वही सर्व समाज के संभ्रांत जन भी कार्यक्रम में प्रतिभाग करेंगे। कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाना हम सभी कार्यकर्ता का दायित्व है। बैठक में काफी संख्या में पैसी समाज के लोग मौजूद रहे।

पशु पालन विभाग के बेड़े में शामिल कैटल कैचर वाहन बना शो-पीस

रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव

भदोही- छुट्टा पशुओं को पकड़ने के लिए पशुपालन विभाग के बेड़े में करीब एक साल पूर्व शामिल कैटल कैचर वाहन शोपीस बनकर मंडलीय पॉली क्लीनिक में महीनों से खड़ा है। छुट्टा पशुओं को पकड़ने वाला वाहन अब किसी का नहीं है। विभाग का कहना है कि उसके लिए न तो अलग से डीजल का बजट है और न ही चालक की तैनाती है। जिससे उसका प्रयोग नहीं हो पा रहा है।

जिले में शहर से लेकर गांव तक छुट्टा पशुओं टहल रहे हैं। इन्हें संरक्षित करने में पशुपालन विभाग, ग्राम पंचायत और निकाय प्रशासन पूरी तरह से विफल साबित हो रहे हैं। हाल ही मोढ़ में एक सांड के हमले से एक गोवंश की मौत हो गई थी। पूर्व में जनहानि भी हो चुकी है, लेकिन इन पर रोक नहीं लगाया जा रहा है। जिले में तीन स्थायी और 28 अस्थायी सहित कुल 31 गोशाला है। इसमें आठ हजार गोवंश संरक्षित है।

पशु पालन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि कैटल कैचर वाहन के लिए अगल से बजट नहीं है। विभागीय मद से इधर - उधर करके डीजल की व्यवस्था की जाती है। इसे चलाने के लिए शासन स्तर से ड्राइवर की तैनाती भी नहीं की गई है। उच्चाधिकारियों का दबाव पड़ने पर वाहन रोड पर निकलता है। इसके बाद ज्ञानपुर जीआईसी मैदान पर खड़ा हो जाता है। सीवीओ डॉ डीपी सिंह ने बताया कि सूचना मिलने पर छुट्टा पशु पकड़े है। डीजल के लिए कोई अलग से मद नहीं है।

जयंती पर याद किए गए दत्तोपंत ठेंगड़ी, उनके मार्ग पर चलने का दोहराया गया संकल्प

आज दुनिया के सामने पर्यावरण, आर्थिक असमानता, आतंकवाद जैसे संकट गहराते जा रहे हैं। विश्व के कुछ देश और वर्ग की अधिनायकत्व वाली प्रवृत्ति के कारण एक ओर जहां संसाधनों का केंद्रीयकरण बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर दुनिया के एक बड़े तबके के बीच विकास की कोई पदचाप सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में महान चिंतक, दार्शनिक एवं समाज सुधारक दत्तोपंत ठेंगड़ी के विचारों की प्रासंगिकता बढ़ गई है। दत्तोपंत ठेंगड़ी बौद्धिक प्रवर्तक, संगठनकर्ता और दार्शनिक से आगे बढ़कर समाज सुधारक इसलिए थे, क्योंकि उन्होंने भारतीयता के दर्शन को अपने कृतित्व से फलीभूत किया।

10 नवंबर, 1920 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के अरवी में जन्मे दत्तोपंत ठेंगड़ी महज 12 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन में शामिल हुए। ठेंगड़ी ने भारतीय मजदूर संघ (1955), भारतीय किसान संघ (1979), सामाजिक समरसता मंच (1983) और स्वदेशी जागरण मंच (1991) जैसे अनेक संगठनों की स्थापना की। ये सभी संगठन आज अपने-अपने कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। दत्तोपंत ठेंगड़ी सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों पर इतनी सूक्ष्म दृष्टि रखते थे कि उनके आख्यान भविष्य की राह बताने वाले होते थे। शीत युद्ध की समाप्ति के दौर में ही उन्होंने भविष्यवाणी कर दी थी कि दुनिया से लाल झंडे की विदाई का समय आ गया है। यह बात आज सच प्रतीत होती है। रविवार को भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ के संस्थापक स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी की जयंती मनाई गई है।

स्वदेशी जागरण मंच एवं स्वालंबी भारत अभियान के तत्पावधान में सुर्यबलि सिंह भवन सोनखरी गोपीगंज भदोही में राष्ट्र ऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की जयंती मनायी गयी। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि ईश्वर शरण सिंह ने दत्तोपंत ठेगडी के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित की। ईश्वर शरण सिंह ने कहा कि दत्तोपंत ठेगड़ी समाज व देश के लिए जीवन पर्यंत काम किया। उन्होंने कहा कि आज ऐसे महान पुरुष के जयंती में शामिल होकर गौरवांवित महसूस कर रहा हूं। स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक मनोज कुमार सिंह ने कहा कि संगठन का लक्ष्य है कि भारत को आत्मनिर्भर भारत बनाने का काम किया जाए। जिसके क्रम में हम सभी कार्यकर्ता पदाधिकारी लगातार कार्य कर रहे हैं। संगठन के निर्देश पर आज दत्तोपंत ठेगड़ी का जयंती मनाया गया है।

*देव‌उठनी एकादशी को योग निद्रा से जागेंगे श्रीहरि, 12 नवंबर के बाद शुरू होंगे रूके हुए मांगलिक कार्य*

रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव

भदोही- आगामी 12 नवंबर को देव‌उठनी एकादशी का महापर्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह बाद योग निद्रा से उठते हैं। जिससे बाद मांगलिक कार्यों का दौर शुरू होता है। 12 नवंबर के बाद सहालग सीजन भी शुरू हो जाएगा। इस साल नवंबर और दिसंबर के दो महीने में शादी विवाह के कुल 18 शुभ मुहूर्त है। भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने के बाद आगामी 12 नवंबर से शुभ दिनों की शुरुआत हो जाएगी। देव‌उठनी एकादशी के अवसर पर लोग गन्ने के मंडप में भगवान विष्णु की आराधना और आरती के बाद दिन भर गंगा - यमुना के तटों, मठों - मंदिरों से लेकर घरों तक तुलसी विवाह का आयोजन होगा।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देव‌उठनी एकादशी को करीब चार महीने के बाद भगवान विष्णु नींद से उठते हैं। इस के साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। आने वाले सहालग सीजन को देखते हुए जिन - जिन घरों में शादियों की तैयारियां चल रही है। वहां शादी विवाह को लेकर वर और वधु पक्ष तैयारी में जुट गए हैं। इसके लिए मैरिज लॉन ,ब्यूटी पार्लर,हलवाई, कैटरर्स माली आदि की बुकिंग हो चुकी है। लोग विद्वान आचार्यों की सलाह पर शुभ मुहूर्त भी पता कर रहे हैं। वहीं खरीददारी भी शुरू हो चुकी है।

आचार्यों के अनुसार देव‌उठनी एकादशी पर तुलसी - शालिग्राम विवाह के साथ मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। चार महीने तक भगवान विष्णु के विश्राम के कारण मांगलिक कार्य विवाह आदि वर्जित रहते हैं। 12 नवंबर से मुहूर्तों की शुरुआत होगी। फिर 16 दिसंबर से 15 जनवरी 2025 तक खरमास चलेगा। खरमास के समय मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। खरमास के बाद फिर से मांगलिक कार्य शुरू होंगे।

16 दिसंबर से शुरू होगा खरमास

आचार्यों के अनुसार देव‌उठनी एकादशी का पर्व 12 नवंबर है‌। इस दिन घरों में देव यानी भगवान उठाए जाते हैं। 16 दिसंबर से सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास की शुरुआत हो जाएगी, जो 15 जनवरी 2025 मकर संक्रांति तक रहेगा। इस दौरान मांगलिक कार्य बंद रहते हैं। 15 जनवरी को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास समाप्त होगा और फिर से लग्न मुहूर्त की शुरुआत हो जाएगी।

नवंबर - दिसंबर में विवाह के मुहुर्त

नवंबर- 16,17,18,22,23,24,25,26,27

दिसंबर - 2,3,4,5,9,10,13,14,15,

भदोही में क्रॉप कटिंग को लेकर डीएम-सीडीओ ने परखी धान की पैदावार

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। भदोही में खरीफ की प्रमुख फसल धान की पैदावार परखने के लिए शुक्रवार को डीएम विशाल सिंह ने उसकी कटाई कर उत्पादन को परखा। औसत उत्पादन पर्याप्त मिलने पर डीएम ने किसानों को इसी हिसाब से पैदावार करने की सलाह दी। सुबह करीब 10 बजे डीएम ज्ञानपुर के बडवापुर उर्फ तिवारीपुर गांव पहुंचे। जहां धान के फसल की क्राप कटिंग स्वंय कराई। किसान सुनील तिवारी के गाटा संख्या 371 खेत में 43.3 वर्ग मीटर में क्राप कटिंग कराकर वजन को परखा गया। जिसमें कुल 22.720 किलोग्राम उत्पादन मिला। उसके हिसाब से एक हेक्टेयर में 52.450 क्विंटल का अनुमानित लक्ष्य प्राप्त हुआ।

इस मौके पर एसडीएम अरूण गिरी, अपर सांख्यिकी अधिकारी रवि प्रकाश, फसल बीमा प्रतिनिधि धर्मेंद्र कुमार, ग्राम प्रधान रमाशंकर आदि रहे। इस तरह मुख्य विकास अधिकारी डॉ. शिवाकांत द्विवेदी ने औराई तहसील के खेमईपुर में धान के फसल की क्राप कटिंग कराई। यहां पर 43.3 वर्ग मीटर में करीब 60.89 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त हुआ। इस मौके पर अपर सांख्यिकी अधिकारी हीना संग लेखपाल, कानूनगो आदि मौजूद रहे।

भदोही में छठ पूजा का समापन, महिलाओं ने सूर्यदेव को अर्घ्य देकर समृद्धि की कामनी की , पारण कर तोड़ा व्रत

रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव

भदोही। आज यानी 08 नवंबर को छठ पूजा का आखिरी दिन था । चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन प्रातः काल उगते सूर्य को जल दिया जाता है। इसी के साथ छठ पर्व का समापन होता है। छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इसके बाद दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन को ऊषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। छठ का पर्व बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। छठ का व्रत संतान की लंबी उम्र और उनके खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है।



इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त हो जाएगा। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती हैं।चार दिवसीय छठ पूजा का समापन उषा अर्घ्य होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उदित होते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद सूर्य देव और छठ माता से संतान के सुखी जीवन और परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं।शुक्रवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्‍य देने के साथ ही चार दिवसीय छठ पूजा (डाला छठ) का समापन हुआ। भोर से ही व्रती महिलाएं परिवार के सदस्‍यों के साथ नदी घाटों पर पहुंचीं। नदी के जल में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्‍य दिया और विधिवत पूजन-अर्चन किया। इसी के साथ ही 36 घंटे के निर्जला व्रत का समापन हुआ। इस दौरान जनपद के विभिन्न गंगा घाटों व पवित्र जलाशयों  के घाटों पर हजारों की संख्‍या में भीड़ जुटी। त्याग, विश्वास, सुख व समृद्धि के महापर्व डाला छठ पर नदियों के तट पर शुक्रवार की भोर में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा।


कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्‍तमी तिथि पर गंगा-यमुना व संगम तट पर निर्जला व्रत रखने वाली हजारों महिलाएं परिवार के सदस्यों के साथ पहुंचीं। घाट पर स्वयं के चिह्नित स्थान पर गन्ने के मंडप बनाकर विधि-विधान से पूजन किया। सुहागिन महिलाओं ने एक-दूसरे को सौभाग्य के प्रतीक सिंदूर लगाया। व्रती महिलाओं ने पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया और पुत्र, परिवार और कुल की कुशलता के लिए कामना की। छठ महापर्व के तीसरे दिन गुरुवार को संध्या अर्घ्य के साथ पूजा अर्चना की गई। श्रद्धालुओं ने गंगा घाटों व सरोवरों के किनारों  पर पहुंचकर श्रद्धा के साथ भगवान सूर्य देव को अर्घ्य समर्पित किए और छठ मैया की विधि विधान से पूजा अर्चना की गई। बच्चों में त्येाहार को लेकर उत्साह था। युवा और पुरुष भी त्योहार की खुशियों में सराबोर थे।


रविवार को छठ पूर्व के तीसरे दिन श्रद्धालु़ और व्रती महिलाएं परिवार के साथ सूर्यास्त से पहले गंगा व जलाशयों  के तट पर पहुंचे। रास्ते में महिलाएं छठ मैया के गीत गाते हुए यमुना नदी पर पहुंची। व्रती महिलाओं ने सूर्य देव की ओर मुख करके डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा की छठ मइया के गीतों से गंगा व पवित्र सरोवरों तट गूंज उठे। हाथ में गन्ना और प्रसाद की थाली थी। जबकि पुरुष सिर पर बांस की टोकरी में सूप, फल, सब्जी व पूजन की अन्य सामग्री लेकर साथ चल रहे थे। घाट पहुंचने पर व्रती महिलाएं स्वयं की बनाई वेदी के पास बैठकर उसके चारों ओर गन्ने का मंडप तैयार किया। मंडप के अंदर बैठकर छठ मइया का विधिवत पूजन किया।  घाट पर ढोल-नगाड़े की थाप पर युवाओं के साथ बुजुर्ग भी थिरके। बच्चों ने पटाखे जलाकर खुशी मनाई। शुक्रवार को नहाय-खाय से छठ पर्व का आरंभ हुआ था। खरना पर बुधवार को डाला छठ का 36 घंटे के निर्जला व्रत शुरू हुआ था। कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर शुक्रवार की सुबह डाला छठ व्रत का व्रती महिलाओं ने पारण ठेकुआ खाकर किया
भदोही में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर की मंगल कामना

नितेश श्रीवास्तव 

भदोही। छठ महापर्व का आज तीसरा दिन है। आज डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जा रहा। छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन नहाय खाय से होती है। पंचमी को खरना, षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और उगते सूर्य सप्तमी को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होता है।

 इस चार दिवसीय त्योहार में सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करना बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि इस व्रत को कठोर नियमों के अनुसार 36 घंटे तक रखा जाता है।छठ पूजा महोत्सव 05 नवंबर, 2024 को शुरू हुआ और 08 नवंबर को समाप्त होगा। यह त्योहार विशेष रूप से बिहार में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह व्रत संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है। छठ पर्व की शुरुआत षष्ठी तिथि से दो दिन पहले यानी की चतुर्थी तिथि से होती है। 

छठ पर्व में मुख्यतः सूर्य देव को अर्घ्य देने का सबसे ज्यादा महत्व माना गया है। मन में श्रद्धा और भक्ति का उल्लास और छठी मइया से परिवार के सुख-समृद्धि की कामना को लेकर व्रती महिलाओं ने बृहस्पतिवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। महिलाओं की अगाध श्रद्धा और कठोर तप वाले पर्व पर घाटों पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। निराजल व्रत रखने वाली महिलाओं ने घुटने भर पानी में खड़े होकर अस्त होते भगवान भास्कर को जल अर्पित किया तो पूरा परिसर छठी मइया के जयकारे से गूंज उठा। 

लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा को लेकर बृहस्पतिवार की दोपहर बाद से ही लोग गाजे-बाजे के साथ नदी और तालाबों पर पहुंचने लगे। दिव्य प्रकाश और छठी मइया के गीतों ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। छठी मइया के पारंपरिक और नए लोक गीतों को गाती-गुनगुनाती महिलाए हाथों में दीप लिए घाटों पर पहुंची। पीछे-पीछे सिर पर दउरा और कांधे पर ईख लेकर चल रहे पुरुष भी छठी मइया की भक्ति में तल्लीन दिखे। तेजस्वी पुत्र और परिवार की सुख समृद्धि की कामना को लेकर नगर से लेकर गांव-देहात तक महिलाओं ने निराजल व्रत रखा था।जिले के रामपुर, सीतामढ़ी, धनतुलसी घाट, कलिजरा, भोगांव, पारीपुर, फुलौरी, इटहरा, बेरवा पहाड़पुर, पुरवां, जगन्नाथपुर सहित ज्ञानसरोवर और अन्य ताल तलैया पर चार बजे के बाद से ही व्रती महिलाओं की भीड़ जुटने लगी। शाम होते-होते घाटों पर पैर रखने की जगह नहीं बची। अपनी-अपनी वेदियों के सामने पूजन सामग्री रख व्रती महिलाएं नदी में पश्चिम मुख किए खड़ी थी, तो साथ के लोग घाट पर थे। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय आया, तो सभी के हाथ आगे बढ़ते गए। व्रती महिलाओं के साथ परिवार के अन्य सदस्यों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। वेदियों पर पूजन-अर्चन के बाद दीप जलाए गए। दीप जलते नदी के घाट जगमगा उठे। विद्युत झालरों से सजे घाट दुधिया रोशनी से नहा उठे। इस दौरान घाटों पर भीड़ पर नजर रखने के लिए पुलिस के पुख्ता इंतजाम किए गए थे।