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जम्मू-कश्मीर विधानसभा में हाथापाई और हंगामे के मामले पर बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने दी कड़ी प्रतिक्रिया, कहा, संविधान का गला घोंटा

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में हाल में हुई हाथापाई और हंगामे के मामले पर बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि विधानसभा में संविधान का अपमान करने का प्रयास किया गया और कांग्रेस व नेशनल कॉन्फ्रेंस देश को कमजोर करने में लगी हुई हैं। ईरानी ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में कमी आई है।

स्मृति ईरानी ने यासीन मलिक की पत्नी मुशाल मलिक द्वारा कांग्रेस को लिखे गए पत्र के संदर्भ में भी कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने कश्मीर में आतंक फैलाया और निर्दोष लोगों की जान ली, वे अब गांधी परिवार से मदद की उम्मीद कर रहे हैं। ईरानी ने सवाल उठाया कि आखिर क्यों आतंकियों से सहानुभूति रखने वाले लोग गांधी परिवार से समर्थन मांग रहे हैं।

उन्होंने कहा कि संसद और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय सभी को स्वीकार्य होने चाहिए, और उस फैसले का अपमान करने का अधिकार किसी को नहीं है। ईरानी का आरोप है कि इंडी अलायंस ने जम्मू-कश्मीर में संविधान का गला घोंटने की कोशिश की और अनुच्छेद 370 की बहाली का प्रस्ताव पास कर आदिवासी, दलित और महिलाओं के अधिकारों के हनन का प्रयास किया। उनका कहना है कि इंडी अलायंस के लोग भारतीय संविधान के खिलाफ एक नई लड़ाई छेड़ रहे हैं।

एमवीए की गाड़ी में न पहिया, न ही ब्रेक, ड्राइविंग सीट के लिए भी झगड़ा”, महाराष्ट्र में विपक्षियों पर पीएम मोदी का हमला

#pmmodiattacksmvaopposition 

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। राज्य में 20 नवंबर को वोटिंग होनी है। इससे पहले सभी सियासी दलों ने अपनी-अपनी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद महाराष्ट्र के सियासी मैदान में उतर चुके हैं।पीएम मोदी ने शुक्रवार को धुले जिले में एक जनसभा को संबोधित किया। इस दौरान पीएम महाविकास अघाड़ी पर जमकर बरसे।  

प्रधानमंत्री ने अपनी चुनावी रैली में कहा, 'महाराष्ट्र से मैंने जब भी कुछ मांगा है, महाराष्ट्र के लोगों ने दिल खोलकर मुझे अपना आशीर्वाद दिया है। 2014 के विधानसभा चुनाव में मैं आपके बीच यहां धुले आया था। मैंने आपसे महाराष्ट्र में भाजपा सरकार के लिए आग्रह किया था। आपने महाराष्ट्र में 15 साल के सियासी कुचक्र को तोड़कर भाजपा को अभूतपूर्व जीत दिलाई थी। आज मैं एक बार फिर यहां धुले की धरती पर आया हूं। धुले से ही मैं महाराष्ट्र में चुनाव अभियान की शुरुआत कर रहा हूं।'

हम जनता की सेवा के लिए राजनीति में आए-पीएम मोदी

पीएम मोदी ने कहा कि राजनीति में आने पर हर किसी का अपना एक लक्ष्य होता है। हम जैसे लोग जनता को ईश्वर का रूप मानते हैं। हम जनता की सेवा के लिए राजनीति में आए हैं। वहीं कुछ लोगों की राजनीति का आधार ‘लोगों को लूटना’ है। जब लोगों को लूटने की नीयत वाले महाअघाड़ी जैसे लोग सरकार में आ जाते हैं तो वो विकास ठप्प कर देते हैं, हर योजना में भ्रष्टाचार करते हैं।

अघाड़ी वालों ने हर योजना पर रोक लगा दी-पीएम मोदी

प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि आपने महाअघाड़ी वालों के धोखे से बनी सरकार के 2.5 साल देखें हैं। इन लोगों ने पहले सरकार लूटी और फिर महाराष्ट्र के लोगों को लूटने में भी वो लोग लग गए थे। इन लोगों ने मेट्रो परियोजनाओं को ठप्प कर दिया। वधावन पोर्ट के काम में अड़ंगा लगा दिया, समृद्धि महामार्ग बनने में रुकावटें पैदा की। उन्होंने कहा कि अघाड़ी वालों ने हर उस योजना पर रोक लगा दी, जिससे महाराष्ट्र के लोगों का भविष्य उज्ज्वल होने वाला था। महायुति की सरकार ने ढाई वर्षों में विकास के नए रिकॉर्ड बनाए। महाराष्ट्र को उसका गौरव वापस मिला है।

महाराष्ट्र की प्रगति को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे-पीएम मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि पिछले ढाई साल में महाराष्ट्र के विकास की जो गति मिली है, उसे रुकने नहीं दिया जाएगा। अगले 5 साल महाराष्ट्र की प्रगति को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे। महाराष्ट्र को जिस सुशासन की जरूरत है, वह महायुति सरकार ही दे सकती है। दूसरी तरफ, महाअघाड़ी की गाड़ी में न पहिए हैं, न ब्रेक और ड्राइवर की सीट पर बैठने के लिए भी झगड़ा हो रहा है।

हर महिला को अघाड़ी वालों से सतर्क रहना होगा-पीएम मोदी

पीएम मोदी ने आगे कहा, पूरा महाराष्ट्र देख रहा है कि कांग्रेस और अघाड़ी वाले लोग अब महिलाओं को किस तरह गाली देने पर उतर आए हैं। कैसी-कैसी अभद्र भाषा, कैसे-कैसे कमेंट, महिलाओं को नीचा दिखाने की कोशिश। महाराष्ट्र की कोई माता-बहन कभी भी अघाड़ी वालों के इस कृत्य को माफ नहीं कर सकती। महाराष्ट्र की हर महिला को इन अघाड़ी वालों से सतर्क रहना होगा। ये लोग कभी भी नारी शक्ति को सशक्त होते नहीं देख सकते।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार, सुप्रीम कोर्न ने पलटा इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

#supreme_court_decision_on_amu_minority_status

सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम फैसले में एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के पक्ष में फैसला दिया।

फैसला सुनाते वक्त सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि चार जजों की एक राय है। मैंने बहुमत लिखा है। जबकि 3 जजों की राय अलग है। इस तरह से यह फैसला 4:3 से तय किया गया। फैसले को लेकर जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस शर्मा ने अपनी असहमति जताई, जबकि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने और जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के लिए बहुमत का फैसला लिखा।

साल 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिस पर सुनवाई पूरी कर सुप्रीम कोर्ट ने बीती 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने मामले को सात जजों की पीठ के पास भेज दिया था। सुनवाई के दौरान सवाल उठा था कि क्या कोई विश्वविद्यालय, जिसका प्रशासन सरकार द्वारा किया जा रहा है, क्या वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है?

साल 1967 में अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा खारिज कर दिया था। हालांकि साल 1981 में सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा फिर से बरकरार कर दिया गया था। अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 में 'अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य' मामले में दिए अपने ही फैसले को पलट दिया है।

कौन हैं भारतीय मूल के काश पटेल? ट्रम्प के वफादारों में होती है गिनती, मिल सकती है ये अहम जिम्मेदारी

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अमेरिका को डोनाल्‍ड ट्रंप के रूप में नया राष्‍ट्रपति मिल गया है। डोनाल्ड ट्रम्प 20 जनवरी 2025 को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। इससे पहले ट्रम्प और उनकी टीम अपने नए मंत्रिमंडल के लिए अधिकारियों को चुनने की प्रक्रिया शुरू करेंगे। इस बीच कश्यप पटेल उर्फ काश पटेल नाम की चर्चा बहुत हो रही है। कहा जा रहा है कि अमेरिका में ट्रंप के इस कार्यकाल में खुफिया एजेंसी सीआईए का चीफ काश पटेल को बनाया जाए या फिर ट्रंप की कैबिनेट में उन्हें कोई अन्य ऊँचा पद मिलेगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पटेल को सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) चीफ की जिम्मेदारी मिल सकती है। वे इस पद के लिए शीर्ष दावेदार बताए जा रहे हैं। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक ट्रम्प पहले ही पटेल को सीआईए चीफ बनाने का मन बना चुके हैं। दिसंबर 2023 में रिपब्लिकन पार्टी के एक कार्यक्रम में ट्रम्प ने पटेल से कहा था- "तैयार हो जाओ काश, तैयार हो जाओ।"

बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप के करीबी के तौर पर पहचाने जाने वाले काश पटेल भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक हैं, जिनका जन्म 1980 में न्यूयॉर्क में हुआ, लेकिन उनकी जड़े गुजरात के वडोदरा से हैं। उन्होंने अमेरिका में कानून की पढ़ाई की है और विभिन्न सरकारी पदों पर काम किया है और बाद में उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन में कई महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। उन्होंने ट्रंप के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में आतंकवाद विरोधी सलाहकार के रूप में कार्य किया और कार्यवाहक रक्षा सचिव के चीफ ऑफ स्टाफ का पद भी संभाला। इसके अलावा उन्होंने कई महत्वपूर्ण अभियानों का नेतृत्व किया जैसे आईएसआईएस और अलकायदा आदि।

का काश पटेल के माता-पिता युगांडा में रहते थे. काश पटेल के माता-पिता 1970 के दशक में अमेरिका आए थे। 1988 में पटेल के पिता को अमेरिका की नागरिकता मिलने के बाद एक एरोप्लेन कंपनी में नौकरी मिली। 2004 में कानून की डिग्री हासिल करने के बाद जब पटेल को किसी बड़े लॉ फर्म में नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने एक सरकारी वकील के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। हालांकि ड्रीम जॉब के लिए उन्हें 9 साल तक इंतजार करना पड़ा। काश पटेल 2013 में वॉशिंगटन में न्याय विभाग में शामिल हुए। यहां तीन साल बाद 2016 में पटेल को खुफिया मामले से जुड़ी एक स्थायी समिति में कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया। इस विभाग के चीफ डेविड नून्स थे, जो ट्रम्प के कट्टर सहयोगी थे।

पटेल को 2016 के चुनाव में रूसी हस्तक्षेप को लेकर बनी एक समिति में शामिल किया गया। इस पर काम करने के दौरान ही वे पहली बार ट्रम्प की नजर में आए थे। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति रहने के दौरान ट्रम्प ने 2019 में जो बाइडेन के बेटे के बारे में जानकारी जुटाने के लिए यूक्रेन पर दबाव बनाया था। इस वजह से विपक्ष उन पर नाराज हो गया। किसी कानूनी पचड़े से बचने के लिए ट्रम्प ने इस मामले में मदद के लिए सलाहकारों की एक टीम बनाई। इसमें काश पटेल का भी नाम शामिल था। तब उनका नाम देख हर किसी को हैरानी हुई थी।

काश पटेल 2019 में ट्रम्प प्रशासन से जुड़ने के बाद तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए। ट्रम्प प्रशासन में वे सिर्फ 1 साल 8 महीने रहे, लेकिन सबकी नजरों में आ गए। मैगजीन द अटलांटिक की एक रिपोर्ट में पटेल को 'ट्रम्प के लिए कुछ भी करने वाला' शख्स बताया गया है। अब ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में सीआईए चीफ बनने की रेस में सबसे आगे हैं।

अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा 2024 भारत में नवंबर ज्यादा गर्म

रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव

विश्व में जलवायु परिवर्तन के चलते 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष होगा। भारत में नवंबर अन्य वर्षों के मुकाबले अधिक गर्म होने का अनुमान है। यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस ने अपनी एक रिपोर्ट में इसे दुनिया के लिए खतरे की घंटी बताया है। एजेंसी ने चेताया कि औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में कम से कम 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहेगा। यह दूसरा वर्ष है जब इतिहास में अक्तूबर सबसे गर्म दर्ज किया गया।कॉपरनिकस के निदेशक कार्लो बुओनटेंपो ने कहा, मैं समझता हूं कि तापमान में निरंतर वृद्धि चिंताजनक है। आंकड़े बताते हैं कि यदि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की निरंतर वृद्धि के कारण वैश्विक गर्मी नहीं होती, तो धरती पर रिकॉर्ड तोड़ तापमान का इतना लंबा क्रम देखने को नहीं मिलता।

बुओनटेंपो ने दी जानकारी

बुओनटेंपो ने कहा कि तापमान में लंबे समय तक उतार-चढ़ाव होना दुनिया के लिए एक बुरा संकेत है। पेरिस में 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में विश्व नेताओं ने जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की प्रतिबद्धता जताई थी। यूरोप, उत्तरी कनाडा में तापमान औसत से अधिक व मध्य-पश्चिमी अमेरिका में काफी अधिक पाया गया।

1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाला पहला वर्ष

कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) की उप निदेशक सामंथा बर्गेस ने कहा, इस वर्ष के 10 माह बीतने के बाद अब यह तय है कि 2024 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष होगा। यह वर्ष वैश्विक तापमान रिकॉर्ड में एक नया मील का पत्थर है, जो आगामी जलवायु परिवर्तन सम्मेलन सीओपी29 में जलवायु संबंधी लक्ष्य को पाने के लिए एक उत्प्रेरक के तौर पर काम करेगा।

1.55 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की संभावना

यूरोपीय एजेंसी के वैज्ञानिकों ने कहा कि 2023 का तापमान पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से 1.48 डिग्री सेल्सियस अधिक था, इसलिए यह भी लगभग निश्चित है कि 2024 का वार्षिक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा। इसके 1.55 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की संभावना है।

खत्म हुआ जेट एयरवेज का “सफर”, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विक जाएंगी एयरलाइन की सभी संपत्तियां

#jetairwaysassetswillbe_auctioned

भारत में बजट एयरलाइंस के तौर पर चर्चित जेट एयरवेज अब कभी भी उड़ान नहीं भर पाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने बंद पड़ी एयरलाइंस जेट एयरवेज के ऐसेट्स को बेचने का आदेश दे दिया। इसके साथ ही जेट एयरलाइन का सफर हमेशा के लिए खत्म हो गया है। जेट एयरवेज ने 25 साल तक पूर्ण सेवा एयरलाइन के रूप में उड़ान भरने के बाद पांच साल पहले अप्रैल के महीने में अस्थाई रूप से अपना परिचालन बंद करने की घोषणा की थी। नकदी संकट की वजह से एयरलाइन ने यह कदम उठाया था। अब सुप्रीम कोर्ट के एयरलाइन के परिसमापन के आदेश के बाद इसके फिर से उड़ान भरने की संभावना पूरी तरह समाप्त हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 7 नवंबर को जेट एयरवेज को लिक्विडेट करने का आदेश दे दिया। लिक्विडेशन का मतलब है- किसी कंपनी की परिसंपत्तियों को जब्त करके उन्हें बेचने से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल उसके कर्ज और देनदारियों को चुकाने में करना। अदालत ने इस आदेश में नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) के फैसले को पलट दिया। एनसीएलएटी ने मार्च में समाधान योजना (एयरलाइन को संकट से उबारने) के तहत जेट एयरवेज का मालिकाना हक जालान-कालरॉक कंसोर्टियम (जेकेसी) को देने का फैसला सुनाया था।

बता दें कि आर्थिक संकट की वजह से जेट एयरवेज का ऑपरेशन 2019 से बंद है। उस वक्त एयरवेज पर कई बैंकों का 4783 करोड़ का कर्ज था। सबसे ज्यादा लोन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने दिया था। एयरलाइन के घाटे में जाने के बाद बैंकों ने दिवालिया की कार्रवाई शुरू की थी। समाधान योजना के तहत जेकेसी को मालिकाना हक मिलना था। दरअसल, समाधान योजना के अनुसार जालान-कलरॉक कंसोर्टियम को 4783 करोड़ रुपए का भुगतान करना था। पहली किश्त में 350 करोड़ रुपए देने थे, जिसमें कंसोर्टियम 200 करोड़ रुपए ही दे पाई थी।

इसके खिलाफ बैंकों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिक्कतों से जूझ रही जेट एयरवेज को लिक्विडेट करने यानी कि इसकी संपत्तियों को बेचने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि लिक्विडेशन इसके ऋणदाताओं और कर्मचारियों के हित में होगा, क्योंकि जालान-कालरॉक कंसोर्टियम मंजूरी के 5 साल बाद भी समाधान योजना को लागू करने में विफल रहा है।

बिक जाएंगी ये सम्पतियां

• बैंकों के पास सबसे बड़ी संपत्ति मुंबई, दिल्ली और हैदराबाद के हवाई अड्डों पर खड़े ग्यारह जेट एयरवेज विमान हैं।

• तीन बोइंग 777, दो एयरबस ए330 और एक बोइंग 737 सहित छह विमान मुंबई हवाई अड्डे पर खड़े हैं।

• दिल्ली हवाई अड्डे पर दो बोइंग 777 और एक बोइंग 737 हैं, जबकि एक बोइंग 737 और एक एयरबस ए330 हैदराबाद हवाई अड्डे पर हैं।

• बैंकों के अनुमान के मुताबिक, ये विमान ₹1,000 करोड़ से ₹1,500 करोड़ के बीच प्राप्त कर सकते हैं, हालांकि अंतिम मूल्यांकन परिसमापक द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

• अन्य संपत्तियों में इंजन, सहायक बिजली इकाइयां (एपीयू), विमान के पुर्जे, और जनरेटर, टो ट्रैक्टर, वाहन, कंप्रेसर, कोच और ट्रॉलियां जैसे जमीनी उपकरण शामिल हैं।

• जेट एयरवेज़ ब्रांड नाम भी बिक्री के लिए उपलब्ध होगा. इसके अलावा, जेट एयरवेज के पास मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में एक व्यावसायिक इमारत में आधी मंजिल है, जिसका मूल्य जून 2019 तक ₹245 करोड़ है।

• बैंकों को जेट एयरवेज के बैंक खाते में जमा लगभग ₹100 करोड़ भी भुनाने का मौका मिलेगा।

• इसके अलावा, बैंकों के पास जालान-कलरॉक कंसोर्टियम द्वारा जमा की गई लगभग ₹350 करोड़ की सीधी नकदी तक पहुंच है।

• सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को अपने समाधान योजना प्रस्तुत करने के दौरान जालान-कलरॉक कंसोर्टियम द्वारा दी गई ₹150 करोड़ की प्रदर्शन बैंक गारंटी को भुनाने का आदेश दिया।

• शीर्ष अदालत ने कंसोर्टियम द्वारा एस्क्रो खाते में जमा किए गए ₹200 करोड़ को जब्त करने का भी आदेश दिया।

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में आतंकी हमला, ग्राम रक्षा समूह के दो सदस्यों की अपहरण के बाद हत्या

#jammu_kashmir_kishtwar_terror_attack_2_members_of_village_defense_group_killed

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में आतंकवादियों ने दो ग्राम रक्षा रक्षकों का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी है। मृतकों की पहचान नजीर अहमद और कुलदीप कुमार के रूप में हुई है। वह ओहली कुंतवाड़ा गाँव के निवासी थे। आतंकियों ने इस घटना को तब अंजाम दिया जब दोनों लोग शाम के समय में मवेशी चराने के लिए जंगल गए थे। इसी दौरान आतंकवादियों ने उन्हें अगवा किया और बाद में उन्हें तड़पाकर उनकी हत्या कर दी।यह हमला श्रीनगर के रविवार के बाजार में ग्रेनेड हमले में कम से कम 12 लोगों के घायल होने के कुछ दिनों बाद हुआ है।

घटना की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद संगठन की एक शाखा कश्मीर टाइगर्स ने ली है। कश्मीर टाइगर्स की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि वीडीजी के दो सक्रिय सैनिक कुलदीप कुमार और नाजीर किश्तवाड़ इलाके में मुजाहिद्दीन इस्लाम को पीछा करते पहुंचे। कश्मीर के मुजाहिद्दीन ने पहले उन्हें इग्ननोर किया, लेकिन उनलोगों ने पीछा करना नहीं छोड़ा और करीब आ गए। उसके बाद मुजाहिद्दीन ने उन्हें पकड़ लिया और दोनों ने अपने अपराध कबूल किए। उसके बाद उन्हें सजा दी गई।

वहीं जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने इस बर्बरता की निंदा की है। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पार्टी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला दोनों ने हत्याओं की निंदा की है। पार्टी के ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किया गया, "जेकेएनसी अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला और उप-राष्ट्रपति एवं मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने किश्तवाड़ के दो ग्राम रक्षा रक्षकों नजीर अहमद और कुलदीप कुमार की वन क्षेत्र में नृशंस हत्या की निंदा की है। उन्होंने कहा है कि इस तरह की बर्बर हिंसा की घटनाएं जम्मू-कश्मीर में दीर्घकालिक शांति प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा बनी हुई हैं। दुख की इस घड़ी में उनकी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं मृतकों के परिवारों के साथ हैं।"

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी हत्या की निंदा की। लेफ्टिनेंट गवर्नर सिन्हा ने एक्स पर लिखा, "किश्तवाड़ में वीडीजी सदस्यों पर हुए जघन्य आतंकवादी हमले की निंदा करने के लिए कोई भी शब्द पर्याप्त नहीं है। मैं इस कायरतापूर्ण हमले में शहीद हुए वीर सपूतों के परिवारों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं। हम सभी आतंकवादी संगठनों को नष्ट करने और इस बर्बर कृत्य का बदला लेने के लिए दृढ़ संकल्प हैं।

ट्रूडो सरकार की ये कैसी करतूत, जयशंकर की प्रेस कॉन्फ्रेंस टेलीकास्ट के बाद ऑस्ट्रेलियाई चैनल को किया बैन

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ख़ालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत-कनाडा के बीच संबंध पहले ही निम्नतम स्तर पर पहुंच चुका है। इस बीच हाल ही में हिंदू मंदिर पर हमले और हिंदू समुदाय को निशाना जाने को लेकर घमासान अभी थमा भी नहीं था। इसी बीच कनाडा सरकार की एक और करतूत पर भारत ने सवाल उठाए हैं। इस बार कनाडा ने एक ऑस्ट्रेलियाई मीडिया संस्थान 'ऑस्ट्रेलिया टुडे' के सोशल मीडिया अकाउंट को ब्लॉक कर दिया। यह कार्रवाई भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और ऑस्ट्रेलिया में उनकी समकक्ष पेनी वोंग की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के कुछ घंटों बाद हुई।

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और पेनी वोंग के बीच प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद कनाडा ने ऑस्ट्रेलियाई चैनल 'ऑस्ट्रेलिया टुडे' के सोशल मीडिया पेज को ब्लॉक कर दिया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में, एस जयशंकर ने कनाडा पर आरोप लगाया था कि वह बिना किसी ठोस सबूत के भारत पर झूठे आरोप लगा रहा है। इसके तुरंत बाद ही कनाडा ने 'ऑस्ट्रेलिया टुडे' के सोशल मीडिया अकाउंट्स को ब्लॉक कर दिया।

कनाडा सरकार की ओर से ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख आउटलेट 'ऑस्ट्रेलिया टुडे' को ब्लॉक/बैन करने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि हमें पता चला है कि कनाडा में एक महत्वपूर्ण प्रवासी आउटलेट के सोशल मीडिया हैंडल, पेज को ब्लॉक/बैन कर दिया गया है। यह इस विशेष हैंडल से पेनी वोंग के साथ विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की प्रेस कॉन्फ्रेंस को प्रसारित करने के ठीक कुछ घंटों बाद हुआ। इस कार्रवाई को लेकर हमें आश्चर्य हुआ।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति कनाडा के पाखंड को उजागर करता है। विदेश मंत्री ने अपने मीडिया कार्यक्रमों में तीन चीजों के बारे में बात की। पहला, कनाडा की ओर से बिना किसी विशेष सबूत के आरोप लगाना। दूसरा, कनाडा में भारतीय राजनयिकों की अस्वीकार्य निगरानी करना। तीसरा, कनाडा में भारत विरोधी तत्वों को राजनीतिक स्थान दिया जाना...इससे आप निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ऑस्ट्रेलिया टुडे चैनल को कनाडा द्वारा क्यों ब्लॉक किया गया।

बता दें कि यह घटना कनाडा के ब्रैम्पटन में स्थित हिंदू मंदिर पर हुए हमले के वीडियो के सामने आने के बाद हुई। इस हमले की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कनाडाई समकक्ष जस्टिन ट्रूडो ने निंदा की थी। कनाडा में रविवार को ब्रैम्पटन में हिंदू मंदिर पर खालिस्तान समर्थक प्रदर्शनकारियों ने हमला बोला था। इस दौरान भारतीय कांसुलेट वहां एक कार्यक्रम आयोजित कर रहा था। खालिस्तान समर्थकों ने लाठी डंडों के साथ वहां मौजूद लोगों पर हमला बोल दिया था।

अमेरिका में ट्रंप की वापसी, क्या बढ़ेगी भारत के “दुश्मनों” की दुश्वारियां?

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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं, वह अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होंगे। चार साल बाद वॉइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी कई मायनों में खास है। ट्रंप की वापसी से दुनियाभर में खलबली मची हुई है।डोनाल्ड ट्रंप की वापसी को प्रधानमंत्री मोदी के लिए सकारात्मक घटनाक्रम के तौर पर देखा जा रहा है। पीएम मोदी का पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मजबूत रिश्ता रहा है। चुनाव से पहले दिवाली पर संदेश में डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी को दोस्त बताया था। दोनों नेता पहले भी एक दूसरे की तारीफ करते रहे हैं। अब सवाल ये है कि ट्रंप का अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव जीतने का भारत के ‘दुश्मन’ देशों पर क्या असर होगा?

डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं। दोनों विश्व नेताओं की जुगलबंदी जगजाहिर है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत-अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं। इसमें और मजबूती आने की उम्मीद है। वहीं, ट्रंप की जीत भारत के साथ दुश्मनी वाला रवैया रखने वाले देशों के लिए बुरी खबर हो सकती है। इस लिस्ट में चीन से लेकर बांग्लादेश और कनाडा तक का नाम शामिल हो सकता है।यहां सावल ये भी है कि क्या ट्रंप, भारत के दुश्मनों से सख्ती से निपटेंगे या फिर डिप्लोमेटिक खेल खेलेंगे जैसा बाइडेन प्रशासन करता आ रहा था?

जानबूझ कर दुश्मनी निकाल रहे कनाडा का क्या होगा?

भारत के लिए इन दिनों कनाडा दुश्मन नंबर एक बनकर उभरा है। अमेरिका और कनाडा में खालिस्‍तानी गतिविधियां के बढ़ने से हाल के महीनों में भारत को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कनाडा में भारतीय हिंदुओं की सुरक्षा भी खतरे में आ गई है। ट्रूडो ने पिछले साल कनाडा में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाए। भारत सरकार ने जब ट्रूडो के एजेंडे को बेनकाब कर दिया तब जाकर उन्होंने यह बात स्वीकार की कि उन्होंने सारे आरोप बिना सबूत के लगाए थे। अब तक बाइडेन प्रशासन काफी हद तक इस मामले में ट्रूडो का साथ दे रहा था लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ऐसे मामलों में कनाडा का साथ नहीं देने वाले। ट्रंप के प्रशासन में अमेरिका में भारतीय हिंदुओं को खालिस्तान से होने वाले खतरे और धमकी को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। कनाडा को सुरक्षा और खालिस्तान समर्थकों के मसले पर गंभीर और साफ संदेश भी जाएगा।।

नए नवेले दुश्मन का क्या हाल होगा?

भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने वाले देशों में एक नाम बांग्लादेश का भी है। जिसके साथ दशकों तक भारत के अच्छे संबंध रहे। जिसके साथ भारत ने पूरी शिद्दत से दोस्ती निभाई लेकिन इस साल अगस्त महीने में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट होते ही बांग्लादेश के सुर बदल गए। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ जमकर हिंसा की गई। अपने चुनावी अभियान के दौरान दिवाली के मौके पर धर्म विरोधी एजेंडे के तहत हिंदू अमेरिकन की रक्षा की बात करने वाले ट्रंप बांग्लादेश में हिंदू और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की भर्त्सना कर चुके हैं।बांग्लादेश की यूनुस सरकार को भी ट्रंप ने अपने निर्वाचन से पहले ही साफ संदेश दे दिया था। यही नहीं, हसीने के बाद बाद आए मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने भारत को आंख दिखाने की जुर्रत भी की। जान बचाकर भारत आईं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जब भारत ने शरण दी तो यूनुस सरकार के मंत्री धमकी भरे लहज़े में बात करने लगे।

कहा जाता है कि बांग्लादेश यह सब कुछ अमेरिका की शह पर कर रहा था। बाइडेन और मोहम्मद यूनुस की मुलाकात की उस तस्वीर को याद करिए जब वह यूनुस से ऐसे मिल रहे थे मानो कोई पिता अपने बेटे की किसी उपलब्धि पर उसे दुलार रहा हो।

चीन की बढ़ेगी मुश्किल

ट्रंप के आने से चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। चीन के आक्रामक और विस्तारवादी रवैये के चलते दुनिया के ज्यादातर मुल्क चीन की आलोचना करते रहे हैं। ट्रंप जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उन्होंने चीन के खिलाफ काफी सख्त रुख अपनाया था। इस बार वह इससे एक कदम आगे बढ़ सकते हैं। ट्रंप ने अपनी चुनावी रैलियों में चीन के आयात पर टैरिफ बढ़ाने का वादा किया था। पूरी संभावना है कि वह जब व्हाइट हाउस में होंगे तो चीन के खिलाफ कई कड़े फैसले ले सकते हैं। व्यापार और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच टकराव और प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, मुमकिन है कि दोनों के बीच एक बार फिर ट्रेड वॉर की शुरुआत हो।

चीन की अर्थव्यवस्था इस वक्त काफी कमजोर दौर से गुजर रही है, ऐसे में ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना बीजिंग के लिए बड़ा झटका है। ट्रंप की जीत को लेकर ड्रैगन की निराशा उसके बयान में भी झलकती दिखी, चीन की ओर से कहा गया कि वह अमेरिका के साथ परस्पर सम्मान के आधार पर काम करता रहेगा। चीन के बयान में कोई जोश नहीं दिखा जैसा भारतीय प्रधानमंत्री के बधाई संदेश में था। उन्होंने ट्रंप को अपना दोस्त बताते हुए बधाई दी।

पाकिस्तान को पहले ही मिल चुका है सबक

भारत में पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद के लिए ट्रंप एक सीधा और साफ संदेश है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान को प्रायोजित आतंकवाद के लिए लताड़ चुके हैं और यही नहीं ट्रंप ने पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक सहायता भी रोक दी थी। पाकिस्तान इस वक्त आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में आतंकवाद समेत किसी मसले पर पाकिस्तान से ट्रंप की नाराजगी उसे न सिर्फ अमेरिका से मिलने वाली मदद बल्कि अलग-अलग संगठनों से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर भी तेज आंच डाल सकती है।

अमेरिका में ट्रंप की वापसी, क्या बढ़ेगी भारत के “दुश्मनों” की दुश्वारियां?*
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डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं, वह अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होंगे। चार साल बाद वॉइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी कई मायनों में खास है। ट्रंप की वापसी से दुनियाभर में खलबली मची हुई है।डोनाल्ड ट्रंप की वापसी को प्रधानमंत्री मोदी के लिए सकारात्मक घटनाक्रम के तौर पर देखा जा रहा है। पीएम मोदी का पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मजबूत रिश्ता रहा है। चुनाव से पहले दिवाली पर संदेश में डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी को दोस्त बताया था। दोनों नेता पहले भी एक दूसरे की तारीफ करते रहे हैं। अब सवाल ये है कि ट्रंप का अमेरिका में राष्‍ट्रपति चुनाव जीतने का भारत के ‘दुश्मन’ देशों पर क्या असर होगा? डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं। दोनों विश्व नेताओं की जुगलबंदी जगजाहिर है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत-अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं। इसमें और मजबूती आने की उम्मीद है। वहीं, ट्रंप की जीत भारत के साथ दुश्मनी वाला रवैया रखने वाले देशों के लिए बुरी खबर हो सकती है। इस लिस्ट में चीन से लेकर बांग्लादेश और कनाडा तक का नाम शामिल हो सकता है।यहां सावल ये भी है कि क्या ट्रंप, भारत के दुश्मनों से सख्ती से निपटेंगे या फिर डिप्लोमेटिक खेल खेलेंगे जैसा बाइडेन प्रशासन करता आ रहा था? *जानबूझ कर दुश्मनी निकाल रहे कनाडा का क्या होगा?* भारत के लिए इन दिनों कनाडा दुश्मन नंबर एक बनकर उभरा है। अमेरिका और कनाडा में खालिस्‍तानी गतिविधियां के बढ़ने से हाल के महीनों में भारत को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। कनाडा में भारतीय हिंदुओं की सुरक्षा भी खतरे में आ गई है। ट्रूडो ने पिछले साल कनाडा में आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाए। भारत सरकार ने जब ट्रूडो के एजेंडे को बेनकाब कर दिया तब जाकर उन्होंने यह बात स्वीकार की कि उन्होंने सारे आरोप बिना सबूत के लगाए थे। अब तक बाइडेन प्रशासन काफी हद तक इस मामले में ट्रूडो का साथ दे रहा था लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ऐसे मामलों में कनाडा का साथ नहीं देने वाले। ट्रंप के प्रशासन में अमेरिका में भारतीय हिंदुओं को खालिस्तान से होने वाले खतरे और धमकी को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। कनाडा को सुरक्षा और खालिस्तान समर्थकों के मसले पर गंभीर और साफ संदेश भी जाएगा।। *नए नवेले दुश्मन का क्या हाल होगा?* भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने वाले देशों में एक नाम बांग्लादेश का भी है। जिसके साथ दशकों तक भारत के अच्छे संबंध रहे। जिसके साथ भारत ने पूरी शिद्दत से दोस्ती निभाई लेकिन इस साल अगस्त महीने में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट होते ही बांग्लादेश के सुर बदल गए। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ जमकर हिंसा की गई। अपने चुनावी अभियान के दौरान दिवाली के मौके पर धर्म विरोधी एजेंडे के तहत हिंदू अमेरिकन की रक्षा की बात करने वाले ट्रंप बांग्लादेश में हिंदू और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की भर्त्सना कर चुके हैं।बांग्लादेश की यूनुस सरकार को भी ट्रंप ने अपने निर्वाचन से पहले ही साफ संदेश दे दिया था। यही नहीं, हसीने के बाद बाद आए मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने भारत को आंख दिखाने की जुर्रत भी की। जान बचाकर भारत आईं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जब भारत ने शरण दी तो यूनुस सरकार के मंत्री धमकी भरे लहज़े में बात करने लगे। कहा जाता है कि बांग्लादेश यह सब कुछ अमेरिका की शह पर कर रहा था। बाइडेन और मोहम्मद यूनुस की मुलाकात की उस तस्वीर को याद करिए जब वह यूनुस से ऐसे मिल रहे थे मानो कोई पिता अपने बेटे की किसी उपलब्धि पर उसे दुलार रहा हो। *चीन की बढ़ेगी मुश्किल* ट्रंप के आने से चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। चीन के आक्रामक और विस्तारवादी रवैये के चलते दुनिया के ज्यादातर मुल्क चीन की आलोचना करते रहे हैं। ट्रंप जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे तो उन्होंने चीन के खिलाफ काफी सख्त रुख अपनाया था। इस बार वह इससे एक कदम आगे बढ़ सकते हैं। ट्रंप ने अपनी चुनावी रैलियों में चीन के आयात पर टैरिफ बढ़ाने का वादा किया था। पूरी संभावना है कि वह जब व्हाइट हाउस में होंगे तो चीन के खिलाफ कई कड़े फैसले ले सकते हैं। व्यापार और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच टकराव और प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, मुमकिन है कि दोनों के बीच एक बार फिर ट्रेड वॉर की शुरुआत हो। चीन की अर्थव्यवस्था इस वक्त काफी कमजोर दौर से गुजर रही है, ऐसे में ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना बीजिंग के लिए बड़ा झटका है। ट्रंप की जीत को लेकर ड्रैगन की निराशा उसके बयान में भी झलकती दिखी, चीन की ओर से कहा गया कि वह अमेरिका के साथ परस्पर सम्मान के आधार पर काम करता रहेगा। चीन के बयान में कोई जोश नहीं दिखा जैसा भारतीय प्रधानमंत्री के बधाई संदेश में था। उन्होंने ट्रंप को अपना दोस्त बताते हुए बधाई दी। *पाकिस्तान को पहले ही मिल चुका है सबक* भारत में पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद के लिए ट्रंप एक सीधा और साफ संदेश है। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप पाकिस्तान को प्रायोजित आतंकवाद के लिए लताड़ चुके हैं और यही नहीं ट्रंप ने पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली आर्थिक सहायता भी रोक दी थी। पाकिस्तान इस वक्त आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में आतंकवाद समेत किसी मसले पर पाकिस्तान से ट्रंप की नाराजगी उसे न सिर्फ अमेरिका से मिलने वाली मदद बल्कि अलग-अलग संगठनों से मिलने वाली आर्थिक सहायता पर भी तेज आंच डाल सकती है।