जय कारों से गूंजा माता कोटही दरबार,शारदीय नवरात्र के पहले दिन उमड़ी भक्तों की भीड़
खजनी गोरखपुर।माना जाता है कि नित नई आशाऐं संजोए विपदाओं और संघर्षों से भरे मानव जीवन में हमें जहां कहीं भी कुछ पल के लिए ही सही राहत और सुख,शांति मिल जाती है वही स्थान आस्था का केंद्र बन जाता है।
कुछ ऐसा ही है खजनी रूद्रपुर की "कोटही माता मंदिर का दरबार" जो कि वर्षों से क्षेत्र के लाखों आस्थावान श्रद्धालुओं के विश्वास, भक्ति,आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। "माता कोटही का मंदिर" जहां भक्तों का विश्वास ही नित्य साकार और मूर्त रूप ले लेता है।
क्षेत्र के श्रद्धालु भक्तों की सभी मनोकामनाएं यहां आकर पूरी होती रही हैं। मान्यता है कि "मां कोटही मंदिर" के दर्शन और पूजन से भक्तों की सभी मनोकामनाऐं पूरी होती हैं। यही कारण है कि यहां वर्ष भर मां के भक्तों का मजमा लगा रहता है। विशेष कर शारदीय और वासंतिक नवरात्र तथा सभी धार्मिक पर्वों पर यहां पर सबेरे दिन निकलने से पहले ही पूजापाठ करने वाले भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
फिर चाहे वह सत्यनारायण व्रत कथा हो, यज्ञ्योपवीत (जनेऊ),मुंडन संस्कार हो या वर-वधू के विवाह पूर्व छेका (मंगनी) दिखाई और फलदान की रश्म या अन्य कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या आयोजन। श्रद्धालुओं का पूरा विश्वास है कि "कोटही माता मंदिर" में सभी प्रकार के शुभ आयोजन की शुरूआत करने से सभी प्रकार की विघ्न बाधाऐं दूर हो जाती हैं और आयोजन में सफलता मिलती है।
बेलघाट क्षेत्र के भिसियां निवासी राम नजर गुप्ता बताते हैं कि रेलवे में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं वे चार बेटियों और दो बेटों के पिता हैं उन्होंने अपनी सबसे बड़ी बेटी के विवाह से पहले दिखाई की रश्म यहीं मंदिर पर ही की थी आज उनकी बेटी दो बच्चों की मां है बेटे की भी एक संतान है और उनका सफल सुखमय वैवाहिक जीवन है। इसीलिए राम नजर ने अपनी बाकी तीनों बेटियों और बेटे के विवाह से पहले वर-वधू के दिखाई की रश्म कोटही माता मंदिर में ही कराई।
राम नजर की तरह ही सभी की अपनी एक अलग कहानी है। किंतु इतना तो तय है कि "मां कोटही" के प्रति आस्था और विश्वास सभी श्रद्धालुओं का एक जैसा ही है।
कोटही माता मंदिर का कोई प्रामाणिक इतिहास तो नहीं मिलता किंतु मान्यता है कि सदियों पहले जब यह पूरा क्षेत्र घना जंगल हुआ करता था और इस क्षेत्र का पूरा इलाका आदिवासी थारूओं की बस्ती हुआ करता था। तब उनवल राजघराने के राजपुरोहित ब्राह्मणों ने यहां के घने जंगलों में अकोल्ह नामक जंगली पेडों के झुरमुट में एक पेड़ के खोखले कोट में देवी की प्रतिकात्मक स्थापना की थी।कारण यह बताया जाता है कि "माता कोटही" एक वन देवी हैं और जंगलों में ही इनका निवास माना जाता है। पेड़ के कोटर में निवास होने के कारण ही इनका नाम "कोटही मां" के नाम से प्रसिद्ध हुआ है।
कालांतर में इस पूरे क्षेत्र में वनों का अस्तित्व समाप्त हो गया किंतु आज भी परिसर में दो अकोल्ह के पेड़ बचे हुए हैं।
"कोटही माता" का मूल स्वरूप आज भी माता महाकाली,महा सरस्वती,महालक्ष्मी की तीन पिंडियों के रूप में विद्यमान है। वर्ष भर यहां पर कथा कड़ाही हलवा पूरी,जेवनार चढाने के साथ ही नारियल,चुनरी,धूप,कपूर,धार चढा कर पूजा की जाती है। मान्यता है कि श्रद्धापूर्वक एक बार दर्शन के बाद भक्तों की मनोकामनाऐं पूरी होती है। जिससे भक्तों का विश्वास बढता ही जाता है यही कारण है कि खजनी कस्बे और तहसील क्षेत्र ही नहीं बल्की अन्य जनपदों और महानगरों से भी लोग यहां पहुंचते हैं। अन्य देवी मंदिरों की तरह यहां पर पारंपरिक पंडे पुजारियों का कोई अतिक्रमण नहीं है।
यहां बलि प्रथा और जानवरों की बलि देने की परंपरा भी नहीं है। परिसर में कई छोटे-बड़े अन्य मंदिरों में हनुमान मंदिर,शीतला माता मंदिर,मां वैष्णवी मंदिर,दुर्गा मंदिर,शिवालय, धर्मशाला,यज्ञशाला आदि का निर्माण हो जाने से भीड़ बढते ही परिसर में स्थान की कमी से श्रद्धालुओं को परेशान होना पड़ता है।
परिसर में अभी तक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण नहीं हुआ है।और नित्य सफाई का कोई स्थाई प्रबंध भी नहीं है। जिससे आसपास कूड़े कचरे और गंदगी का ढेर लगा रहता है। यहां पर भक्त श्रद्धालुओं द्वारा खुद ही सफाई की जाती है|
शारदीय नवरात्र के पहले दिन आज आस्थावान श्रद्धालुओं की भीड उमड़ पड़ी लोग सूर्योदय के पहले से ही पहुंचने लगे। मंदिर को मनमोहक ढंग से सजाया गया है और यहां पहुंचे श्रद्धालुओं ने नारियल चुनरी नेवेद्य धार चढाकर और कपूर धूपबत्ती आदि जलाकर पूजा अर्चना की।
साथ ही खुटभार काली मंदिर,भैंसा बाजार कस्बे के काली मंदिर समेत गांवों के काली मंदिरों और क्षेत्र के अन्य देवी मंदिरों पर भी पहुंच कर शारदीय नवरात्र पर श्रद्धालुओं ने विधिपूर्वक पूजा अर्चना की। बड़ी संख्या में नवरात्र व्रत रहने वाले श्रद्धालुओं ने अपने घरों में भी कलश स्थापना की और दुर्गा शप्तशती का पाठ किया गया। वहीं पांडालों में कलश स्थापना तथा मूर्तियों की स्थापना के आयोजन में लोग व्यस्त रहे।
Oct 03 2024, 19:45