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सीजेआई ने पश्चिम बंगाल सरकार से सीसीटीवी कैमरों पर प्रगति पर उठाए सवाल

पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों ने घोषणा की है कि वे कार्यस्थलों पर उनकी सुरक्षा और संरक्षा के बारे में राज्य सरकार के आश्वासन का आकलन करने के बाद मेडिकल कॉलेजों में अपना पूर्ण ‘काम बंद’ करने का फैसला वापस लेंगे । यह निर्णय 30 सितंबर, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में आरजी कर मामले की सुनवाई के बाद लिया जाएगा। मामले में याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में “खतरे की संस्कृति” के बारे में चिंताजनक चिंता जताई है।

उनका तर्क है कि परीक्षा कुंजी की बिक्री, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और मेडिकल छात्रों और जूनियर डॉक्टरों के यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार जैसे व्यापक मुद्दे प्रचलित हैं। कोर्ट ने इन आरोपों की गंभीरता को स्वीकार करते हुए कहा है कि अगर इनमें से कुछ भी सच है, तो वह उन्हें अत्यंत गंभीरता से लेगा।

21 सितंबर को, जूनियर डॉक्टरों ने 42 दिनों के अंतराल के बाद पश्चिम बंगाल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में आंशिक रूप से अपने कर्तव्यों को फिर से शुरू किया। वे आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ड्यूटी पर मौजूद एक महिला डॉक्टर के बलात्कार-हत्या के विरोध में 'काम बंद' कर रहे थे।

गुरुवार को जूनियर डॉक्टरों ने मुख्य सचिव मनोज पंत को एक ईमेल भेजा, जिसमें उन्होंने अपनी मांगों को दोहराया, जिन्हें राज्य सरकार ने "अभी तक पूरा नहीं किया है।" दो पन्नों के पत्र में, पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फोरम के प्रतिनिधियों ने 18 सितंबर को राज्य सचिवालय में पंत के साथ अपनी बैठक का संदर्भ दिया, जिसके दौरान उनकी मांगों पर "मौखिक रूप से सहमति" बनी थी।

पश्चिम बंगाल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों के जूनियर डॉक्टरों ने अन्य नागरिकों के साथ मिलकर रविवार को पूरे राज्य में मशाल जुलूस निकाला। रैलियाँ कई स्थानों पर हुईं, जैसे आरजी कर अस्पताल, सगोर दत्ता अस्पताल, एसएसकेएम अस्पताल, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज और दक्षिण कोलकाता के जादवपुर।

पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट द्वारा आयोजित - राज्य के विभिन्न मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक छाता समूह - रैलियों ने मेडिकल कॉलेजों में "धमकी की संस्कृति" को समाप्त करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला, जहाँ छात्रों को कथित तौर पर धमकी का सामना करना पड़ता है।

बंद कमरे में मीटिंग करके दिए ये आदेश...”, अमित शाह की बैठक पर उद्धव ठाकरे का बड़ा दावा*

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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। इसी बीच शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधा है। उद्धव ठाकरे ने दावा किया कि एक बंद कमरे में हुई बैठक में भाजपा नेताओं को विपक्षी दलों को तोड़ने का निर्देश दिया था।

उद्धव ठाकरे ने कहा, अमित शाह चार दिन पहले नागपुर आए थे। वे बंद दरवाजे के पीछे कार्यकर्ताओं से कहते हैं कि उद्धव ठाकरे को मारो, शरद पवार को मारो, उनकी पार्टी तोड़ो, कार्यकर्ताओं को तोड़ो। अमित शाह बंद दरवाजे छोड़ें, हिम्मत है तो मैदान में आएं और शिव राय की गवाही से हमें खत्म करने की भाषा दिखाएं। आप मुझे दिल्ली से खत्म नहीं कर पाएंगे। अगर मुझे कोई खत्म कर सकता है तो सिर्फ यहां की जनता और यहां के वोटर। अगर वो कहेंगे कि उद्धव ठाकरे घर बैठ जाओ तो मैं घर बैठ जाऊंगा। उद्धव ठाकरे ने भारसभा से सीधे तौर पर अमित शाह की विधानसभा रणनीति की आलोचना की।

शाह मुझे और शरद पवार को राजनीतिक रूप से खत्म करना चाहते हैं-उद्धव ठाकरे

उन्होंने आरोप लगाया कि अमित शाह उद्धव ठाकरे और शरद पवार को राजनीतिक रूप से क्यों खत्म करना चाहते हैं, ताकि बीजेपी महाराष्ट्र को लूट सके। ठाकरे ने कहा, बीजेपी ने 2014 में विधानसभा चुनाव से पहले अविभाजित शिवसेना के साथ अपना तीन दशक पुराना गठबंधन तोड़ दिया था। हालांकि, शिवसेना 63 सीट जीतने में सफल रही।

उद्धव ने पूछा- क्या मोहन भागवत बीजेपी के हिंदुत्व से सहमत?

ठाकरे ने सवाल किया कि क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत बीजेपी के हिंदुत्व से सहमत हैं, जिसमें अन्य दलों को तोड़ना और विपक्षी नेताओं को अपने पाले में लाना शामिल है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे ने कहा, आगामी चुनाव सत्ता के लिए नहीं हैं, बल्कि महाराष्ट्र को लूट से बचाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने लोगों से महा विकास आघाड़ी को भारी जीत दिलाने और रामटेक लोकसभा क्षेत्र के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में जीत सुनिश्चित करने की अपील की. इस दौरान कांग्रेस और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के नेता सुनील केदार और अनिल देशमुख भी मौजूद रहे।

महाराष्ट्र में गाय बनी 'राजमाता', विधानसभा चुनाव से पहले शिंदे सरकार का बड़ा फैसला

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महाराष्ट्र सरकार ने स्वदेशी गाय को 'राजमाता-गौमाता' का दर्जा दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा चुनाव के ऐलान से ठीक पहले सोमवार सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए देसी गाय को राज्यमाता का दर्ज दिया। इसके साथ-साथ सरकार ने देसी गायों को पालने के लिए सब्सिडी योजना के शुरुआत को भी मंजूरी दे दी है। माना जा रहा है कि इस दांव के जरिए शिंदे सरकार हिंदुत्व की पिच पर चुनाव में उतरने जा रही है। अब देखना होगा शिंदे सरकार का ये दांव कितना काम करता है?

महाराष्ट्र सरकार की ओर से जारी बयान के अनुसार वैदिक काल से भारतीय संस्कृति में देशी गाय की स्थिति और , मानव आहार में उसके दूध की उपयोगिता बेहद अहम है। आयुर्वेद चिकित्सा, पंचगव्य उपचार पद्धति और जैविक कृषि प्रणालियों में गोबर- गोमूत्र का महत्वपूर्ण स्थान है. इसे ध्यान में रखते हुए देशी गायों को अब से "राज्यमाता गोमाता" घोषित करने की मंजूरी दी गई है।

यह घोषणा महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन की ओर से हस्ताक्षरित एक सरकारी आदेश के जरिए की गई है। इसमें कहा गया, गाय प्राचीन काल से ही मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं। प्राचीन काल से गाय को मान्यता के रूप में कामरेणु का नाम दिया गया। इसका ऐतिहासिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व है। हमें पूरे देश में गायों की विभिन्न नस्लें मिलती हैं, लेकिन देशी गायों की संख्या तेजी से घट रही है।

तिरुपति प्रसाद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र सरकार से पूछे तीखे सवाल, कहा- भगवान को राजनीति से दूर रखें

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तिरुपति मंदिर से प्रसाद के तौर पर मिलने वाले लड्डू में कथित तौर पर पशुओं की चरबी मिले होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सनुवाई हुई। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच इस मामले पर सुनवाई की। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी और तिरुमला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद वाई वी सुब्बा रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के आरोपों की जांच की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तिरुपति प्रसादम विवाद पर आंध्र प्रदेश सरकार से कई कड़े सवाल किए। कोर्ट ने पूछा कि जब यह स्पष्ट नहीं था कि तिरुमाला लड्डू बनाने में मिलावटी घी का इस्तेमाल किया गया था, तो प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? उसने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कहा कि कम से कम हम यह उम्मीद करते हैं कि भगवान को राजनीति से दूर रखें।

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि आपको धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की जरूरत है। इस बात का सबूत कहां है कि यह वही घी था जिसका इस्तेमाल लड्डू बनाने में किया गया? शीर्ष अदालत का कहना है कि भगवान पर चढ़ाने के बाद प्रसाद बनता है, उससे पहले वह केवल तैयार की हुई मिठाई होती है। ऐसे में भगवान-भक्त का हवाला न दिया जाए, उसको विवाद से दूर रखें।

शीर्ष अदालत ने पूछा कि जब सरकार ने जांच के लिए SIT का गठन किया है, तो SIT के किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले सीएम को प्रेस में बयान देने की क्या जरूरत थी। संवैधानिक पदों पर मौजूद लोगों से जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है। अगर आप जांच के नतीजे को लेकर आश्वस्त नहीं थे, तो आपने बयान कैसे दे दिया। अगर आप पहले ही बयान दे रहे है तो फिर जांच का क्या मतलब है?

एसजी तुषार मेहता ने कहा कि ये आस्था का मामला है। इसकी जांच होनी चाहिए कि कौन जिम्मेदार था और किस मकसद से था. इस पर जस्टिस गवई ने कहा हां, बिल्कुल जांच होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आपके रुख की सराहना करते हैं। हम तो यही चाहेंगे कि आप (एसजी) जांच करें कि क्या जांच इस एसआईटी से कराई जानी चाहिए? क्या ऐसा बयान देना चाहिए था, जिससे भक्तों की भावनाएं प्रभावित हों? जब एसआईटी का आदेश दिया गया तो प्रेस में जाने और सार्वजनिक बयान देने की क्या जरूरत थी?

जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि इस बात का सबूत कहां है कि लड्डू बनाने में इसी घी का इस्तेमाल किया गया था? लूथरा ने बताया कि मार्च में टेंडर खुले, अप्रैल से सप्लाई शुरू हुई। जून, जुलाई में हफ्तावार सप्लाई हुई। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, कितने ठेकेदार सप्लाई कर रहे थे, क्या अप्रूव किए गए घी में ये घी मिलाए गए हैं? कहीं भी यह स्पष्ट नहीं है कि इसे उपयोग किया गया था। यह परीक्षण किया गया है और रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में है, लेकिन जांच अभी लंबित है। वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, एक बार जब यह पाया जाता है कि प्रोडक्ट उचित नहीं है, तो दूसरा परीक्षण भी किया जाता है। उसके बाद प्रयोगशाला में परीक्षण किया जाता है। 6 जुलाई को नई सप्लाई आई। इसे लैब में भेजा गया। हमें लैब रिपोर्ट मिली। ये घी इस्तेमाल नहीं हुए थे।

जस्टिस गवई ने कहा, क्या लैब ने 12 जून के टैंकर और 20 जून के टैंकर के सैंपल लिए थे? जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, एक बार जब आप सप्लाई को मंजूरी दे देते हैं, घी लाया जाता है और सब एक में मिल जाता है, तो आप यह कैसे पहचानते हैं कि कौन सा ठेकेदार ने सप्लाई किया है?

एक देश-एक चुनाव पर बनेगा कानून! संसद में 3 बिल पेश करेगी मोदी सरकार

भारत सरकार ने देश में एक साथ चुनाव कराने की योजना को लागू करने के लिए तीन विधेयकों का प्रस्ताव लाने की तैयारी की है। इनमें से दो विधेयक संविधान संशोधन से संबंधित होंगे। प्रस्तावित संविधान संशोधन विधेयकों में एक स्थानीय निकाय चुनावों को लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ कराने का प्रावधान है, जिसके लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों का समर्थन आवश्यक होगा। सरकार ने अपनी 'एक देश, एक चुनाव' योजना के तहत देशव्यापी सहमति बनाने की कोशिशें शुरू की हैं। इसके र्गत, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया गया है।

प्रस्तावित पहले संविधान संशोधन विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का प्रावधान होगा। इस विधेयक में अनुच्छेद 82A में 'नियत तिथि' से संबंधित उप-खंड जोड़ने का प्रयास किया जाएगा, जिससे लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ समाप्त किया जा सकेगा। इसके साथ ही अनुच्छेद 83(2) में संशोधन और नए उप-खंड जोड़ने का भी प्रस्ताव है, जिसमें विधानसभाओं के भंग करने और 'एक साथ चुनाव' शब्द को शामिल करने का प्रावधान होगा। दूसरा संविधान संशोधन विधेयक स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य निर्वाचन आयोगों के परामर्श से मतदाता सूची तैयार करने के प्रावधान में संशोधन करने का प्रस्ताव करेगा। यह सुनिश्चित करेगा कि स्थानीय निकायों के चुनाव भी अन्य चुनावों के साथ एक ही समय पर कराए जाएं।

तीसरा विधेयक केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित तीन कानूनों में संशोधन करेगा, ताकि इनकी चुनावी प्रक्रिया भी अन्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनावों के साथ समन्वयित हो सके। जिन कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव है, उनमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम-1991, केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम-1963 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 शामिल हैं। यह प्रस्तावित विधेयक सामान्य कानून होगा, जिसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी और राज्यों के समर्थन की भी जरूरत नहीं होगी। उच्च-स्तरीय समिति ने 18 संशोधनों और नए प्रविष्टियों का प्रस्ताव रखा है, जिसमें तीन अनुच्छेदों में संशोधन और मौजूदा अनुच्छेदों में 12 नए उप-खंड शामिल हैं।

सरकार ने इस साल लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले 'एक देश, एक चुनाव' को दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की है। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव होंगे, जबकि दूसरे चरण में आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर पंचायतों और नगर निकायों के चुनाव कराए जाने का सुझाव दिया गया है। इस योजना का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाना, लागत में कमी लाना, और राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देना है।

पहले एकसाथ होते थे चुनाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का विजन पेश किया था और इसे स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से भी समर्थन मिला। उन्होंने इस विचार को लागू करने की आवश्यकता को बार-बार रेखांकित किया है। इसके तहत, देशभर में एक ही दिन या चरणबद्ध तरीके से लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएंगे। ऐसा पहले भी हुआ करता था, जब 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। हालांकि, 1967 के बाद की स्थिति ने इस परंपरा को तोड़ दिया। कांग्रेस पार्टी के सत्ता (इंदिरा कार्यकाल) में रहते हुए विपक्ष द्वारा शासित कई विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गईं और इसके बाद लोकसभा भी भंग कर दी गई। यह प्रक्रिया कई दशकों तक नहीं बदली।

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ (One Nation, One Election) के लागू होने से चुनाव के भारी-भरकम खर्च में कमी आएगी। आजादी के बाद 1952 में चुनाव पर लगभग 10 करोड़ रुपए खर्च हुए थे, जबकि 2019 में चुनावों पर 50 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। वर्तमान में यह खर्च बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। चुनाव एक साथ होने पर खर्च केंद्र और राज्य दोनों में बंट जाएगा और पूरे 5 सालों तक सरकार के कर्मचारी चुनाव की तैयारी में व्यस्त नहीं रहेंगे, जिससे विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे। राजनीतिक दलों को भी चुनाव पर अधिक खर्च नहीं करना पड़ेगा, जिससे राजनीतिक भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा।

हालांकि, कुछ विपक्षी दल एक साथ चुनाव कराने पर सहमत नहीं हैं। उन्हें डर है कि इससे उनकी सत्ता खो सकती है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस डर को तार्किक नहीं माना जाता है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर 62 सियासी दलों से संपर्क किया था और इस पर जवाब देने वाले 47 पार्टियों में से 32 ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कुल 15 पार्टियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ से चुनाव के खर्च और आचार संहिता की बार-बार की बाधाओं से निजात मिलेगी, जिससे आम आदमी भी बहुत परेशान होता है। अचार संहिता में कई विकास कार्य रुक जाते हैं। चुनाव आयोग के लिए पहले चरण में दिल्ली समेत चार राज्यों के चुनाव कराने की योजना है। दूसरे चरण में बिहार, असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, और पुदुचेरी के चुनाव होंगे। तीसरे चरण में उत्तर प्रदेश, गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल, मेघालय, नगालैंड, और त्रिपुरा के चुनाव होंगे।

नेपाल में बाढ़ से 192 लोगों की मौत, कई अब भी लापता, बचाव कार्य जारी, बारिश, बाढ़, और भूस्खलन से जन जीवन अस्त व्यस्त

नेपाल में भारी बारिश, बाढ़, और भूस्खलन के कारण मरने वालों की संख्या 192 तक पहुंच गई है, कई लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं। देशभर में राहत और बचाव कार्य जारी है, खासकर त्रिभुवन राजमार्ग जैसे क्षेत्रों में, जहां भूस्खलन ने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया है और कई वाहन दब गए हैं। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, मलबे में चार बसें फंसी होने की संभावना है, जिनमें से तीन दिखाई दे चुकी हैं। बचाव दल लगातार मलबे में दबे लोगों के शव निकालने में जुटे हुए हैं, जिन्हें पोस्टमार्टम के लिए काठमांडू भेजा जा रहा है।

धाडिंग जिले के पुलिस प्रमुख गौतम केसी के अनुसार, यहाँ से अब तक 35 शव बरामद किए जा चुके हैं और तलाशी अभियान जारी है। पुलिस, सेना, और सशस्त्र बलों के लगभग सौ सुरक्षाकर्मी चौबीसों घंटे बचाव कार्यों में लगे हुए हैं। शनिवार शाम तक, बुटवाल से काठमांडू जा रहे एक वाहन से 14 शव निकाले गए, और रविवार को अन्य दो वाहनों से 21 और शव बरामद हुए। इसके अलावा, चितवन से रवाना हुई माइक्रोबस से 16 शव और गोरखा जिले से निकली एक बस से 5 शव मिले हैं। लगातार बारिश और भूस्खलन के चलते हजारों वाहन राजमार्गों पर फंसे हुए हैं, और नेपाल में सड़क मार्ग से यात्रा करने में डर का माहौल है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इस साल नेपाल में औसत से अधिक बारिश दर्ज की गई है, और मानसून की अवधि को अक्टूबर के अंत तक बढ़ा दिया गया है। जून से अब तक नेपाल में 1,586.3 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है, जो औसत से 107.2 प्रतिशत अधिक है।

राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन प्राधिकरण (NDRRMA) का अनुमान है कि इस मौसम से 1.8 मिलियन लोग प्रभावित होंगे और 412 हजार घरों को नुकसान पहुंचेगा। नेपाल में मानसून का मौसम सामान्य रूप से जून से सितंबर तक रहता है, लेकिन हाल के वर्षों में इसे खत्म होने में अधिक समय लग रहा है।

देश भर में जारी लड्डू विवाद के बीच तिरुपति मंदिर पहुंचे CJI चंद्रचूड़, की पूजा अर्चना


आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी मंदिर में लड्डू को लेकर विवाद चल रहा है, और इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने तिरुपति मंदिर का दौरा किया। रविवार, 29 सितंबर को उन्होंने तिरुमाला के वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में पूजा-अर्चना की। इस विवाद का मुख्य मुद्दा आंध्र प्रदेश सरकार के उस दावे से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने कहा कि लड्डू बनाने में इस्तेमाल होने वाले घी में मिलावट पाई गई है।

सरकार का कहना है कि यह मिलावट पिछली सरकार के दौरान दिए गए घी के ठेके के कारण हुई है। मंदिर समिति, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने स्पष्ट किया कि घी का ठेका एक ब्लैकलिस्टेड सप्लायर को दिया गया था, जो कि पिछली जगन मोहन सरकार के दौरान हुआ था। घी में मिलावट के इन आरोपों को लेकर केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी है और जांच के बाद आवश्यक कार्रवाई का भरोसा दिया है। इस खुलासे के बाद सनातन धर्म के अनुयायियों में नाराजगी देखी जा रही है, और कई जगहों पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की जा रही हैं। वहीं, इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस भी जारी है, जहां बीजेपी ने दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग की है, जबकि कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नायडू पर सवाल उठाए हैं कि उन्होंने तीन महीने तक इस मामले को छिपाकर क्यों रखा।

रिपोर्ट के अनुसार, लड्डू में इस्तेमाल किए जा रहे घी में फिश ऑयल, एनिमल टैलो (जानवरों के फैट) और लार्ड (जानवरों की चर्बी) जैसे तत्व भी शामिल हो सकते हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुछ परिस्थितियों में गाय के घी में इन तत्वों की उपस्थिति से फॉल्स पॉजिटिव रिजल्ट्स आ सकते हैं, यानी जांच में मिलावट के संकेत मिल सकते हैं, जबकि वास्तविकता में ऐसा न हो।

कम से कम भगवान को तो राजनीति से दूर रखें…तिरुपति लड्डू विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कही बड़ी बात

आंध्र प्रदेश के तिरुपति में सामने आए लड्डू विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखें. जस्टिस भूषण आर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच के समक्ष सुब्रमण्यन स्वामी के वकील ने कहा कि निर्माण सामग्री बिना जांच के रसोई घर में जा रही थी. जांच से खुलासा हुआ. इसके सुपरविजन के लिए सिस्टम को जिम्मेदार होना चाहिए क्योंकि ये देवता का प्रसाद होता है जनता और श्रद्धालुओं के लिए वो परम पवित्र है.

कार्ट में दायर की गई याचिकाओं में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा लगाए गए आरोपों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई है. उनका दावा है कि तिरुपति मंदिर में लड्डू बनाने में जानवरों की चर्बी और मछली के तेल का इस्तेमाल किया गया. इस बीच, राज्य सरकार की एक सोसायटी प्रसादम की गुणवत्ता और लड्डू में इस्तेमाल किए गए घी की जांच करने के लिए तिरुपति में है. तिरुपति मंदिर बोर्ड की तरफ से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ और आंध्र प्रदेश राज्य की तरफ से सीनियर एडवोकेट अधिवक्ता मुकुल रोहतगी पेश हुए.

जस्टिस बीआर गवई ने आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी के सवाल का जवाब देते हुए कहा, “जब आप संवैधानिक पद पर होते हैं, तो आपसे यह उम्मीद की जाती है कि देवताओं को राजनीति से दूर रखा जाएगा.” कोर्ट ने रोहतगी से यह भी पूछा, “आपने एसआईटी के लिए आदेश दिया, नतीजा आने तक प्रेस में जाने की क्या जरूरत है? आप हमेशा से ही ऐसे मामलों में पेश होते रहे हैं, यह दूसरी बार है.”

चंद्रबाबू नायडू सरकार की तरफ से रोहतगी ने तर्क दिया कि ये ‘वास्तविक याचिकाएं नहीं हैं. पिछली सरकार द्वारा मौजूदा सरकार पर हमला करने की कोशिश की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि इस बात के क्या सबूत हैं कि लड्डू बनाने में दूषित घी का इस्तेमाल किया गया था. इस पर तिरुपति मंदिर की ओर से पेश हुए वकील सिद्धार्थ लूथरा ने पीठ को बताया, “हम जांच कर रहे हैं.” इसके बाद जस्टिस गवई ने पूछा, “फिर तुरंत प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी? आपको धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए.”

जब लूथरा ने कोर्ट को बताया कि लोगों ने शिकायत की थी कि लड्डू का स्वाद ठीक नहीं था, तो कोर्ट ने पूछा, “जिस लड्डू का स्वाद अलग था, क्या उसे लैब में यह पता लगाने के लिए भेजा गया था कि उसमें दूषित पदार्थ तो नहीं है?” जस्टिस विश्वनाथन ने तब पूछा, “क्या विवेक यह नहीं कहता कि आप दूसरी राय लें? सामान्य परिस्थितियों में, हम दूसरी राय लेते हैं. इस बात का कोई सबूत नहीं है कि दूषित घी का इस्तेमाल किया गया था.” अदालत सीनियर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी, राज्यसभा सांसद और टीटीडी के पूर्व अध्यक्ष वाईवी सुब्बा रेड्डी और इतिहासकार विक्रम संपत और आध्यात्मिक प्रवचन वक्ता दुष्यंत श्रीधर द्वारा दायर की गई तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

आईएएस अधिकारी की पत्नी से रेप, बंदूक की नोक पर हुआ था बलात्कार, हाईकोर्ट ने पुलिस को लगाई फटकार

पश्चिम बंगाल महिलाओं के लिए खतरनाक बन चुका है। आरजी कर मेडिकल एंड हॉस्पिटल में महिला डॉक्टर की बलात्कार और हत्या के मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। इसी बीच अब एक आईएएस अधिकारी की पत्नी से रेप के मामले में पुलिस की आलोचना हो रही है।

कोर्ट में सवाल उठा कि रेप की शिकायत दर्ज होने के बाद भी मेडिकल जांच क्यों नहीं हुई। बीते जुलाई में उस घटना में निचली अदालत के आदेश पर आरोपी जमानत पर था। कलकत्ता हाई कोर्ट ने शुक्रवार को जमानत आदेश रद्द कर दिया। इसके साथ ही जांच अधिकारी का भी तबादला कर दिया है।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल के बाहर तैनात एक सिविल सेवक की पत्नी के साथ कथित बलात्कार के मामले की जांच एक डिप्टी कमिश्नर स्तर के अधिकारी को सौंपने का आदेश जारी किया है। कोर्ट के आदेश के बाद विपक्ष ने एक बार फिर ममता सरकार पर सवाल उठाए है। बीजेपी का दावा है कि आरजी कर मामले की तरह इस मामले में भी सबूतों को दबाने की कोशिश की गई।

बता दें कि इस साल 14 और 15 जुलाई की रात यह घटना घटी। आरोपी ने रात 11:30 बजे पीड़िता के घर में घुसा और बंदूक की नोक पर पीड़िता के साथ बलात्कार किया। घटना के दूसरे दिन पीड़िता ने कोलकाता के लेक पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई। शिकायत दर्ज करने से पहले उसे घंटों इंतजार करवाया गया।

पुलिस ने अपराध की गंभीर प्रकृति के बावजूद कम गंभीर वाली धाराएं लगाई। इसके साथ केस को कमजोर कर दिया। राज्य से बाहर कार्यरत आईएएस अधिकारी की पीड़िता पत्नी ने आरोप लगाया था कि यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोपों के बावजूद शुरुआत में मामूली आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी। शिकायत पर उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस राजर्षि भारद्वाज ने कहा कि शुरुआत में एफआईआर सही तरीके से दर्ज न करने और चार्जशीट को विकृत करने के आरोप इस जांच की पारदर्शिता पर सवाल उठाया है। हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत और अग्रिम जमानत खारिज कर दी। इस मामले को कोलकाता पुलिस के उपायुक्त स्तर की एक महिला पुलिस अधिकारी को सौंपने का आदेश दिया है।

विकसित भारत देखने के लिए 2047 तक जीवित रहें”, पीएम मोदी पर दिए खरगे के बयान पर अमित शाह का पलटवार

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जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनावी माहौल ने देश के सियासी माहौल को भी गर्म कर दिया है। राजनेता एक दूसरे पर जुबानी हमला बोल रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का जम्मू-कश्मीर के जसरोटा में दिए एक बयान पर खूब हो हल्ला हो रहा है। खरगे ने जसरोटा में चुनावी सभा के दौरान कहा कि मैं तब तक जीवित रहूंगा जब तक पीएम मोदी सत्ता से नहीं हट जाते। इस दौरान उनकी तबीयत भी खराब हो गई थी। अब उनके इस बयान पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि मल्लिकार्जुन खरगे ने बेवजह ही पीएम मोदी को अपने स्वास्थ्य के मामले में घसीटा है।

अमित शाह ने अपने एक्स पर शेयर करते हुए कहा कि, कल मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने भाषण के दौरान अपने पार्टी से बढ़कर अभद्र भाषा का प्रयोग किया। उन्होंने अपनी कटुता का परिचय देते हुए पीएम मोदी को अपने निजी स्वास्थ्य के मामले में अनावश्यक रूप से घसीटते हुए कहा कि पीएम मोदी को जब सत्ता से हटा देंगे तभी मरेंगे। अमित शाह ने आगे कहा कि, इससे साफ पता चलता है कि कांग्रेसियों में पीएम के खिलाफ कितनी नफरत और डर है। खरगे के स्वास्थ्य के लिए मोदी जी प्रार्थना करते हैं, मैं प्राथना करता हूं और सभी लोग प्रार्थना करते हैं कि वह काफी लंबे समय तक स्वास्थ्य रहें। वे 2047 तक विकसित भारत का निर्माण देखने के लिए जीवित रहें।

क्या कहा था करगे ने?

बीते दिन मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए जरूर लड़ेंगे, इसके लिए चाहे जो भी हो। मैं जम्मू-कश्मीर को ऐसा छोड़ने वाला नहीं हूं। मैं 83वीं साल में चल रहा हूं और इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूं, जब तक मोदी को नहीं हटाएंगे, तब तक मैं जिंदा ही रहूंगा। आपकी बात सुनूंगा और आपके लिए लडूंगा।

बता दें कि खरगे की मंच में बोलते वक्त अचानक बिगड़ी तबीयत पर पीएम मोदी ने हाल जाना था। मोदी ने फोन कर खरगे के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी। खरगे कल बोलते-बोलते अचानक मंच पर खड़े लड़खड़ाने लगे थे। हालांकि उस वक्त, वहां मौजूद बाकी कांग्रेस नेताओं ने उन्हें संभाला