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ओडिशा में घर में घुसा 11 फुट का कोबरा, रेस्क्यू टीम ने पकड़कर वन्यजीवन में वापस भेजा

ओडिशा के एक घर में 11 फुट का विशालकाय कोबरा घूमता हुआ पकड़ा गया. जैसे ही सांप को देखा गया, अधिकारियों को उसे रेस्क्यू करने और वन्यजीवन में वापस भेजने के लिए बुलाया गया. अब इस विशाल सांप को दिखाने वाला एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

एएनआई के अनुसार, 11 फीट लंबे किंग कोबरा सांप को बंगरा गांव के एक घर से रेस्क्यू किया गया और बाद में मयूरभंज में डुकरा वन्यजीव रेंज में छोड़ दिया गया. वीडियो में अधिकारियों को सांप को घर से बाहर ले जाते और उसे बांधते हुए सावधानीपूर्वक ले जाते हुए दिखाया गया है.

बारीपदा वन प्रभाग के पीथाबाटा रेंज के रेंज अधिकारी, श्रीकांत मोहंती ने एएनआई को बताया, "सांप 11 फीट लंबा था और इसका वजन 6.7 किलोग्राम था. एक स्थानीय पशुचिकित्सक द्वारा जांच के बाद, सांप को आज सुबह उसके प्राकृतिक आवास में छोड़ दिया गया. सांप मॉनिटर छिपकली का पीछा करते हुए घर के अंदर घुस गया था."

इससे पहले, कर्नाटक में अगुम्बे गांव के निवासियों को डराने वाले विशाल किंग कोबरा का रेस्क्यू किया गया था. अगुम्बे रेनफॉरेस्ट रिसर्च स्टेशन (ARRS) के फील्ड डायरेक्टर अजय गिरी ने इंस्टाग्राम पर रेस्क्यू का एक वीडियो पोस्ट किया है. गिरि के अनुसार, जब कोबरा सड़क पार कर रहा था तो कुछ दर्शकों ने उसे परेशान किया. परेशान होकर सांप एक घर में गुस गया. घर के मालिकों ने वन विभाग को फोन किया, एआरआरएस को समस्या के बारे में सूचित किया. यह महसूस करने के बाद कि लोगों और सांप दोनों के लिए खतरा है, एआरआरएस कर्मियों ने तुरंत कार्रवाई की और घटनास्थल पह पहुंच गए.

गणेश चतुर्थी पर क्या करें और क्या न करें: जानें पूजा के नियम और विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है. भादो मास में गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक भगवान गणेश की पूजा अर्चना होती है. भाद्रपद मास भगवान गणेश को समर्पित होता है. इस महीने में भगवान गणेश की पूजा करना बहुत शुभ फलदायी माना जाता है. उदया तिथि के अनुसार, इस वर्ष गणेश चतुर्थी का शुभारंभ 7 सितंबर, दिन शनिवार से होगा. इसी दिन गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना होगी और व्रत रखा जाएगा. वहीं बप्पा की विदाई यानी गणेश विसर्जन 17 सितंबर दिन मंगलवार को अनंत चतुर्दशी के दिन होगा.

गणेश चतुर्थी 2024 मूर्ति स्थापना शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, 7 सितंबर को गणेश चतुर्थी की पूजा और मूर्ति स्थापना का शुभ मुहूर्त, सुबह 11 बजकर 3 मिनट से लेकर दोपहर के 1 बजकर 34 मिनट तक रहेगा. इस प्रकार 7 सितंबर को गणेश चतुर्थी की पूजा और मूर्ति स्थापना का शुभ मुहूर्त 2 घंटे 31 मिनट तक रहेगा, इस दौरान भक्तजन गणपति बप्पा की पूजा अर्चना कर सकते हैं.

गणेश चतुर्थी पर करें ये काम

घर या पूजा स्थल पर गणेश की सुंदर प्रतिमा स्थापित कर, उसे अच्छे से सजाएं फिर उसके बाद पूरे विधि विधान से पूजा करें.

गणेश चतुर्थी के दिन गणपति जी को अपने घर के ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में विधि-विधान से बिठाएं, इस दिशा में उनकी पूजा करना शुभ माना जाता है.

गणेश भगवान जी को लाल रंग बहुत ज्यादा प्रिय है, इसलिए उनकी पूजा में लाल रंग के वस्त्रों का इस्तेमाल करें, जैसे गणपति बप्पा को लाल रंग के वस्त्र के ऊपर विराजमान करें और उनको लाल रंग के वस्त्र पहनाएं.

गणपति जी की पूजा में लाल रंग के पुष्प, फल, और लाल चंदन का प्रयोग जरूर करें.

गणेश भगवान की पूजा में दूर्वा घास, फूल, फल, दीपक, अगरबत्ती, चंदन, और सिंदूर और गणपति जी के प्रिय लड्डू और मोदक का भोग जरूर लगाएं.

गणपति की पूजा में दस दिनों तक भगवान गणेश के मंत्र जैसे “ॐ गण गणपतये नमः” का जाप जरूर करें.

गणेश चतुर्थी पर न करें ये काम

गणेश चतुर्थी पर अपने घर में भूलकर भी गणपति की आधी-अधूरी बनी या फिर खंडित मूर्ति की स्थापना या पूजा न करें. ऐसा करना अशुभ माना जाता है.

गणपति जी की पूजा में भूलकर भी तुलसी दल या केतकी के फूल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. मान्यता के अनुसार ऐसा करने पर पूजा का फल नहीं मिलता है.

गणेश चतुर्थी के दिन व्रत एवं पूजन करने वाले व्यक्ति को तन-मन से पवित्र रहते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

गणेश चतुर्थी के दिनों में भूल से भी तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए.

गणेश चतुर्थी के दिनों में गुस्सा करना, विवाद करना या परिवार के सदस्यों के साथ झगड़ना नहीं चाहिए.

पूजा विधि

गणेश चतुर्थी की पूजा में एक साफ और शांत जगह पर आसन बिछाएं और गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें. मूर्ति को गंगाजल से शुद्ध करें. उसके बाद रोली, चंदन और फूलों से गणेश जी को सजाएं. उनकी सूंड पर सिंदूर लगाएं और दूर्वा चढ़ाएं. फिर घी का दीपक और धूप जलाएं. गणेश जी को मोदक और फल का भोग लगाएं. पूजा के आखिर में गणेश जी की आरती और ॐ गण गणपतये नमः मंत्र का जाप कर गणेश जी से अपनी मनोकामनाएं मांगें.

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024: नायब सिंह सैनी की सीट बदली, लाडवा से लड़ेंगे चुनाव

हरियाणा विधानसभा चुनाव-2024 के लिए मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की सीट बदल गई है. करनाल के मौजूदा विधायक नायब सिंह सैनी इस बार लाडवा सीट से किस्मत आजमाते नजर आएंगे.

नायब सिंह सैनी के राजनीतिक करियर का ये 5वां चुनाव है. वहीं, सीट की बात करें तो ये चौथी है. करनाल के मौजूदा विधायक नायब सिंह सैनी कुरुक्षेत्र के सांसद भी रह चुके हैं. इससे पहले वह नारायणगढ़ के विधायक थे.

नायब सिंह सैनी के राजनीतिक करियर की शुरुआत अच्छी नहीं रही थी. 2009 में उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा था. उन्हें महज 8 हजार 82 वोट मिले थे. 39 साल के सैनी 5वें स्थान पर रहे थे. कांग्रेस के राम कृष्ण ने जीत हासिल की थी. हालांकि इस हार के बावजूद बीजेपी का नायब सिंह सैनी पर भरोसा कायम रहा.

पार्टी ने 2014 में फिर उन्हें नारायणगढ़ से टिकट दिया. सैनी पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरे. 5 साल में उनका वोट प्रतिशत 31 प्रतिशत बढ़ गया. 55 हजार 931 वोट हासिल कर वह नारायणगढ़ के विधायक बने. इस जीत से बीजेपी में उनका कद बढ़ गया और मनोहर लाल खट्टर की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया.

2019 में कुरुक्षेत्र से लड़े लोकसभा चुनाव

सैनी को इसके बाद लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया. पार्टी ने 2019 में उन्हें कुरुक्षेत्र से प्रत्याशी बनाया. नायब सिंह ने इस बार भी अपने प्रदर्शन से बीजेपी को जश्न मनाने का मौका दिया. सैनी को यहां पर 6 लाख 88 हजार 629 वोट मिले. उन्होंने कांग्रेस के निर्मल सिंह को हराया. नायब सिंह सैनी ने 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की.

कुरुक्षेत्र के सांसद नायब सिंह सैनी की सियासी जिंदगी में सबसे अहम दौर 2023 में आया. ये वो साल था जब सैनी को हरियाणा बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया. साल बदला और सैनी ने सफलता की नई कहानी लिखी. 12 मार्च, 2024 को पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया.

करनाल से आजमाई किस्मत

सांसद सैनी अब मुख्यमंत्री बन चुके थे. सीएम बने रहने के लिए उन्हें 6 महीने के अंदर विधायक बनना था. इसके लिए पार्टी ने उन्हें मनोहर लाल खट्टर के गढ़ कहे जाने वाले करनाल से लड़ाया. बीजेपी की इस सेफ सीट पर सैनी को जीत दर्ज करने में कोई मुश्किल नहीं हुई और इस तरह वह एक बार फिर विधायक बन गए.

नायब सिंह सैनी के सामने अब नया टेस्ट है. इस बार उन्हें लाडवा सीट से उम्मीदवार बनाया गया. सैनी को एक बार फिर पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरना है. नायब सिंह सैनी को खुद तो जीत दर्ज करनी है साथ ही उनके कंधों पर बीजेपी को लगातार तीसरी बार सत्ता दिलाने की जिम्मेदारी भी है.

करनाल से लड़ने का किया था दावा

नायब सिंह सैनी को लाडवा से तो टिकट मिल गया है लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई थी कि उन्हें करनाल से लड़ाया जाएगा. सैनी से हाल ही में सवाल किया गया था वह किस सीट से चुनाव लड़ेंगे. इसपर उन्होंने कहा कि वह करनाल से ही विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने लाडवा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा को नकार दिया था.

हरियाणा बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मोहनलाल बड़ौली ने कहा था कि नायब सिंह सैनी लाडवा से चुनाव लड़ेंगे. लेकिन सीएम सैनी ने बड़ौली के बयान को भी नकार दिया था. मुख्यमंत्री सैनी ने हंसते हुए कहा कि प्रदेश अध्यक्ष मोहनलाल बड़ौली को मुझसे ज्यादा जानकारी है, क्योंकि पार्लियामेंट बोर्ड के अंदर जिन्होंने चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी, उनके नाम केंद्रीय नेतृत्व को बताने का काम प्रदेश अध्यक्ष बड़ौली ने किया है.

कंगना रनौत पर हिमाचल मंत्री का तंज, मेकअप को लेकर दिया ये बयान


कंगना अपने बयानों को लेकर इन दिनों लगातार चर्चा में बनी हुई हैं. किसानों पर बयानबाजी से शुरू हुई कंगना की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रहीं हैं. इनके इस बयान के बाद से ही कांग्रेस मंडी सांसद पर हमलावर है. इसी बीच हिमाचल प्रदेश के राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने कंगना पर एक बयान दे दिया. मंत्री के इस बयान से विवाद खड़ा हो गया. हालांकि इसके बाद उन्होंने अपने बयान पर सफाई भी दी है.

हिमाचल सरकार में मंत्री जगत सिंह नगी ने बुधवार को कहा, ‘भाजपा सांसद और अभिनेत्री कंगना रनौत ने त्रासदी के कुछ दिनों बाद बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों का दौरा इसलिए किया क्योंकि बारिश में उनका मेकअप खराब हो जाता.’ सांसद पर कटाक्ष करते हुए नेगी ने कहा कि वो घड़ियाली आंसू बहा रही हैं, जबकि बाकी के सांसद प्रभावित लोगों की मदद के लिए रातभर घटनास्थल पर डटे रहे. उन्होंने कहा, उन्हें बरसात में नहीं आना था क्योंकि उनका मेकअप खराब हो जाता. ऐसे में पहचानना मुश्किल हो जाता कि वह कंगना हैं या उनकी मां हैं.

मंत्री जगत सिंह नेगी की सफाई

नेगा के इस बयान पर विवाद बढ़ने लगा तो हिमाचल प्रदेश के मंत्री जगत सिंह नेगी ने अपने मेकअप वाले बयान पर सफाई दी. उन्होंने कहा, ‘भाजपा के लोग हर बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश करने के लिए जाने जाते हैं. मैंने कंगना का अपमान नहीं किया. यह एक तंज था कि वह ऐसी आपदा के समय स्थान का दौरा नहीं कर रही हैं.’

हमेशा महिलाओं का सम्मान किया- मंत्री

उन्होंने आगे कहा, ‘इसके बजाय वो ट्वीट कर रही हैं कि विधायक और अधिकारी उन्हें बता रहे हैं कि हिमाचल में मौसम खराब है, रेड और ऑरेंज अलर्ट है. तो रेड और ऑरेंज अलर्ट के कारण स्थान का दौरा न करना और संसदीय क्षेत्र में मौतें होने पर अपनी जिम्मेदारी से बचना, उनकी संवेदनशीलता कहां है? तो, यह एक तंज था. मैंने हमेशा महिलाओं का सम्मान किया है, यह महिलाओं का अपमान नहीं था’.

आईसी 814: द कंधार हाईजैक, नेटफ्लिक्स सीरीज पर आतंकवादियों के नामों को लेकर विवाद

IC 814- द कंधार हाईजैक में आतंकियों के हिंदू नामों पर विवाद था और इसे बैन करने की मांग की गई थी।

इस पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने नेटफ्लिक्स को नोटिस भेजकर सफाई मांगी। इसके बाद आज नेटफ्लिक्स की इंडिया कंटेंट हेड मोनिका शेरगिल मंत्रालय पहुंचीं।

वेब सीरीज में आतंकियों के नाम भोला' और 'शंकर'

सीरीज में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट को हाईजैक करने वाले आतंकी, पूरी घटना के दौरान रियल नामों की बजाय, कोड नेम जैसे बर्गर, चीफ, शंकर और भोला इस्तेमाल करते नजर आए।

सोशल मीडिया पर लोगों ने 'IC 814' में हाईजैकर्स के हिंदू नामों को लेकर आपत्ति जताई। आरोप लगाया कि ये आतंकवादियों के रियल नाम छिपाने की कोशिश है। IC 814 सीरीज 29 अगस्त को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई।

नेटफ्लिक्स ने कहा- जो नाम थे, वही हमने दिखाए

नेटफ्लिक्स ने ऑफिशियल बयान में कहा, 'हम दर्शकों के लिए वेब सीरीज के ओपनिंग डिस्क्लेमर में हाईजैकर्स के रियल और कोड नेम को शामिल करेंगे।

अभी वेब सीरीज में कोड नेम रियल घटना के दौरान उपयोग किए गए नाम ही हैं। हम हर कहानी का ओरिजिनल रिप्रेजेंटेशन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।'

मंत्रालय ने कहा था, 'भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का हक नहीं

मंत्रालय ने 2 सितंबर को कहा, 'किसी को भी देश के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का हक नहीं है। भारत की संस्कृति और सभ्यता का सम्मान हमेशा सर्वोपरि है। किसी भी चीज को गलत तरीके से दिखाने से पहले आपको सोचना चाहिए। सरकार इसके प्रति बेहद सख्त है।'

वेब ​​​​​​​सीरीज पर विवाद, 3 पॉइंट

1. हाईकोर्ट में बैन की याचिका

दिल्ली हाईकोर्ट में सोमवार को एक जनहित याचिका के जरिए OTT वेब सीरीज 'IC 814: द कंधार हाईजैक' को बैन करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने फिल्म मेकर पर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाया गया। यह याचिका हिंदू सेना के अध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव ने दायर की है।

2. आतंकियों के हिंदू नाम

सुरजीत सिंह ने कहा कि कि वेब सीरीज में आतंकवादियों के हिंदू नाम दिखाए गए हैं, जिनमें भगवान शिव के अन्य नाम 'भोला' और 'शंकर' शामिल हैं, जबकि उनके असली नाम कुछ और थे। याचिका में कहा गया है कि इससे हिंदू समुदाय की भावनाएं आहत हुई हैं। हाईजैक करने वाले आतंकियों के नाम इब्राहिम अख्तर, शाहिद अख्तर, सन्नी अहमद, जहूर मिस्त्री और शाकिर थे, लेकिन वेब सीरीज में इनके नाम बदल भोला, शंकर, चीफ, डॉक्टर और बर्गर किए गए हैं।

3. BJP बोली- गलत काम छिपाने का वामपंथी एजेंडा

वेब सीरीज रिलीज होने के बाद पिछले दिनों भाजपा IT सेल प्रमुख अमित मालवीय ने इसके कंटेंट पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा कि डायरेक्टर अनुभव सिन्हा ने गलत काम को छिपाने के लिए वामपंथियों के एजेंडे का सहारा लिया। IC 814 के हाईजैकर्स खूंखार आतंकी थे। उन्होंने अपनी मुस्लिम पहचान छिपाने के लिए काल्पनिक नाम अपनाए थे।

वेब ​​​​​​​सीरीज की कहानी क्या है?

इस वेब सीरीज की कहानी 24 दिसंबर 1999 की सत्य घटना पर आधारित है। जब पांच आतंकियों ने इंडियन एयरलाइंस के विमान IC 814 को काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से नई दिल्‍ली के लिए उड़ान भरते वक्त हाईजैक कर लिया था। जिसमें 176 यात्री सफर कर रहे थे।

आतंकवादी प्लेन को अमृतसर, लाहौर, दुबई होते हुए कंधार में ले जाते हैं। यात्रियों को सात दिन तक बंधक बना कर रखा गया था। इस दौरान प्लेन के अंदर यात्रियों का क्या हाल होता है। उनके परिवार वालों पर क्या बीतती है। सरकार के सामने इन यात्रियों को छुड़ाने के लिए क्या शर्त रखी जाती है। यह सब इस सीरीज में दिखाया गया है।

किताब फ्लाइट इन टु फियर से ली गई वेब ​​​​​​​सीरीज की कहानी

इस वेब सीरीज की कहानी सीनियर जर्नलिस्ट श्रींजॉय चौधरी और देवी शरण की किताब 'फ्लाइट इन टु फियर- द कैप्टंस स्टोरी' से ली गई है। सीरीज के डायरेक्टर अनुभव सिन्हा हैं। 6 एपिसोड की इस सीरीज में नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर, विजय वर्मा, दीया मिर्जा, पत्रलेखा,अरविंद स्वामी और कुमुद मिश्रा ने मुख्य भूमिका निभाई है।

हिमाचल की आर्थिक स्थिति चिंताजनक, सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन पर खतरा

हिमाचल सरकार आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है. न संसाधन हैं और न सहूलियत यही वजह है किआय, कर्ज और खर्च के असंतुलन ने सरकार को इतना लाचार कर दिया है कि नौबत सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और पेंशन पर आ गई है. हर महीने की एक तारीख को खाते में आने वाली राशि इस बार क्रेडिट ही नहीं हुई. सरकार हिसाब-किताब लगाने में जुटी है और विपक्ष लगातार हमले करने में. हिमाचल सरकार का दावा है कि राज्य की इस स्थिति की जिम्मेदार पूर्व की भाजपा सरकार है, जबकि बीजेपी यही आरोप सुक्खू सरकार पर मढ़ रही है. सरकार की उम्मीद 5 सितंबर को केंद्र से मिलने वाली रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट है, मगर यह राशि इतनी नहीं कि इससे समस्या हल कर दी जाए.

बेशक हिमाचल की खराब वित्तीय हालात के बीच राजनीतिक शह मात के खेल खेला जा रहा हो, मगर ये समस्या बहुत बड़ी है. खासकर हिमाचल जैसे राज्य के लिए जहां आय के पर्याप्त संसाधन नहीं है. कर्ज पहले से ही बहुत है और फ्रीबीज और सब्सिडी योजनाओं पर बेतहाशा खर्च हो रहा है. सत्ता पक्ष और विपक्ष फ्रीबीज को लेकर एक-दूसरे पर हमलावर हैं. कर्ज में डूबे राज्य के लिए काफी हद तक यह जिम्मेदार भी है, दरअसल हिमाचल सरकार की इस हालत के पीछे कोई एक नहीं बल्कि 5 कारण हैं, आइए समझते हैं कैसे?

1- आय का पर्याप्त साधन नहीं

हिमाचल प्रदेश पहाड़ी राज्य और यहां की आय खेती-किसानी और पर्यटन पर निर्भर है. यहां की जीडीपी में तकरीबन 45 प्रतिशत हिस्सा कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का है. दूसरे नंबर पर पर्यटन है. न तो यहां बड़ी इंडस्ट्री हैं और न ही आय का कोई और साधन. लघु-उद्योग इकाईयां हैं भी तो वे सरकार की आय में योगदान देने की बजाय खुद ही उन पर निर्भर हैं. यहां जमीन लगभग खत्म हो चुकी है, जिसे बेचकर सरकार आय प्राप्त कर सके. जंगलों को काटा नहीं जा सकता. यहां की आमदनी का एक और जरिया डैम, पावर प्रोजेक्ट जस के तस हैं, जबकि आबादी लगातार बढ़ रही है, खर्चे भी बढ़ते जा रहे हैं.

2- प्राकृतिक आपदाओं के कारण मची तबाही

हिमाचल की इस हालत के लिए प्राकृतिक आपदाएं भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. पहाड़ भूस्खलन से जूझ रहे हैं, बादल फट रहे हैं, सड़कें तबाह हो रही हैं, बाढ़ भी अपना प्रकोप दिखा रही है. ऐसे में सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा प्रदेश के हालात संभालने में खर्च हो रहा है. सबसे खास बात ये है कि आपदाओं की वजह से राज्य की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देने वाला पर्यटन व्यवसाय बेपटरी हो चुका है. यही वजह है कि सरकार ने निजी होटलों को दी जाने वाली सब्सिडी भी वापस ले लिया है.

3- केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाली ग्रांट और GST में कटौती

हिमाचल के इस हालात के पीछे जो तीसरी सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है वह है केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाली रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में कटौती. इसे राजस्व घाटा अनुदान कहते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक हिमाचल सरकार को मिलने वाली यह राशि अब तक 8058 करोड़ रुपये सालाना थी, अब इसमें 1800 करोड़ रुपये की कमी कर दी गई है. अब यह राशि महज 6258 रुपये सालाना रह गई है. यानी 5 सितंबर को इसकी मासिक किस्त तकरीबन 521 करोड़ रुपये के आसपास सरकार के खाते में आएंगे. मगर सैलरी और पेंशन का भार इससे कहीं ज्यादा है. इसके अलावा GST लागू होने से अगले पांच साल तक मिलने वाला मुआवजा भी अब बंद हो गया है, इससे भी हिमाचल प्रदेश को तकरीबन 4 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

4- सरकार की ओर से चल रही फ्रीबीज योजनाएं

हिमाचल सरकार की ओर से कई फ्रीबीज योजनाएं चलाई जा रही हैं, इनसे राज्य के खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है. इनमें पहली योजना मुफ्त बिजली की है. अब तक 300 यूनिट मुफ्त बिजली दी जा रही थी, हालांकि राज्य पर आए वित्तीय संकट के बाद सरकार ने इसे सीमित कर दिया है. अब एक मीटर तक 125 यूनिट फ्री बिजली ही दी जा रही है. इसके अलावा महिलाओं को 1500 रुपये हर माह अनुदान देने का ऐलान, इससे प्रतिमाह तकरीबन 800 करोड़ का भार सरकार पर बढ़ा है. इसके अलावा ओल्ड पेंशन स्कीम भी अहम कारण है, इसकी वजह से सरकार पर जो भार पड़ा वो तो पड़ा ही, सरकार को केंद्र से मिलने वाले एनपीएस कंट्रीब्यूशन के बदले मिलने वाला 2 हजार करोड़ रुपये लोन भी नहीं मिला.

5- लगातार बढ़ रहा कर्ज

हिमाचल सरकार के ऊपर लगातार कर्ज बढ़ रहा है. ऐसे में कर्ज अदाएगी भी उसके लिए जरूरी बन गई है. वर्तमान में हिमाचल सरकार के ऊपर तकरीबन 86 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. प्रतिव्यक्ति के हिसाब से देखें तो राज्य के हर व्यक्ति पर औसत कर्ज तकरीबन 1 लाख 19 हजार रुपये है. सरकार सैलरी-पेंशन और कर्ज अदायगी में ही तकरीबन 42 हजार करोड़ रुपये खर्च कर देती है. केंद्र सरकार बीच में कर्ज देती भी है. इस राज्य सरकार ने हिमाचल प्रदेश के लिए 6200 करोड़ रुपये की लोन लिमिट तय की थी. अब तक राज्य सरकार की ओर से इसमें से 3900 करोड़ रुपये कर्ज लिया जा चुका है. अब सरकार के पास 2300 करोड़ लिमिट ही बची है, जबकि अभी चार माह बाकी हैं.

सैलरी और पेंशन पर कितना खर्च करती है हिमाचल सरकार

हिमाचल सरकार की ओर से अपने कर्मचारियों को सैलरी और पूर्व कर्मचारियों का पेंशन देने पर प्रतिमाह तकरीबन 2 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं. इनमें 1200 करोड़ से सैलरी और 800 करोड़ रुपये से सैलरी बांटी जाती है. राज्य में ओपीएस आने के बाद सरकार पर पेंशन का बोझ बढ़ा है. दरअसल अब तक राज्य के कुल बजट में पेंशन का हिस्सा 13 प्रतिशत था जो ओपीएस के बाद 17 प्रतिशत हो गया है. माना जा रहा है कि आज से 15 साल बाद प्रदेश में पेंशन का बजट ही तकरीबन 19728 करोड़ रुपये सालाना हो जाएगा जो वर्तमान में दोगुना होगा.

कितनी है हिमाचल सरकार की आय

हिमाचल सरकार को होने वाली कुल आय 58 हजार 444 करोड़ रुपये है, जबकि व्यय इससे ज्यादा है. इनमें 9 हजार करोड़ रुपये तो सरकार को कर्ज अदायगी ही करनी है. इसके अलावा अगर देखें तो सरकार ने 46,667 करोड़ रुपये राजस्व व्यय और 6,270 करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय के लिए निर्धारित कर रखे हैं.

अब सरकार के पास क्या हैं सैलरी पेंशन देने के विकल्प

सरकार को सरकारी कर्मियों की इस महीने की सैलरी और पेंशन देने के लिए तकरीबन 2 हजार करोड़ रुपये की दरकार है. इसके लिए सरकार ने अपने मंत्रिमंडल की दो माह तक सैलरी और भत्ते रोकने का ऐलान कर दिया है. अब सरकार की नजर केंद्र सरकार से मिलने वाले रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट पर है. इसके अलावा सरकार को जो करों से आय होती है वह भी 10 तारीख तक खजाने में आने की संभावना है. इसके अलावा सरकार की कोषागार में ओवरड्राफ्ट लिमिट भी तकरीबन 700 करोड़ रुपये के आसपास है. हालांकि ये पूरी रकम मिलकर 2 हजार करोड़ रुपये नहीं होती. सरकार के पास एक और विकल्प ये है कि वह कर्ज की लिमिट को पूरा कर कर्मियों को पैसे दे दे, लेकिन इससे आपात संकट के समय सरकार क्या करेगी? ऐसे कई सवाल हैं जिन पर सरकार को गौर कर आगे कदम बढ़ाना होगा.

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: कश्मीरी पंडितों की रिहैबिलिटेशन बड़ा चुनावी मुद्दा,जाने

जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद होने जा रहे विधानसभा चुनावों में कश्मीरी पंडितों की रिहैबिलिटेशन एक बार फिर से बड़ा चुनावी मुद्दा बनकर उभरा है. सभी राजनीतिक दल कश्मीरी पंडित वोटरों को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे उनकी घर वापसी के लिए एक ठोस योजना बनाएंगे और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे.

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को विधानसभा के लिए तीन सदस्यों को नामित करने का अधिकार है, जिसमें से दो कश्मीरी प्रवासी और एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति होगा. नामित किए जाने वाले कश्मीरी प्रवासियों में से एक महिला होगी. इस व्यवस्था के तहत कश्मीरी पंडितों को विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की गई है.

कश्मीर पंडितों की सुरक्षा, विस्थापन और रोजगार जैसे मुद्दे धारा 370 हटने से पहले और बाद में जम्मू-कश्मीर में हमेशा से सबसे बड़े मुद्दे रहे हैं. अब जब केंद्रशासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है, तो कश्मीरी पंडित समाज के लोगों की चुनावों को लेकर क्या सोच है, 

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कश्मीरी पंडितों के लिए दो नामित सीटें आरक्षित की गई हैं. वहीं, बीजेपी ने कश्मीर घाटी में दो कश्मीरी पंडित उम्मीदवारों को जगह है. हालाकि अभी तक बीजेपी का घोषणा पत्र जारी नही हुआ है. बता दें कि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के अलायंस और पीडीपी ने अभी तक कश्मीरी पंडित उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है लेकिन दोनों पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का विशेष जिक्र किया है।

लंबे समय से आतंकियों के निशाने पर रहे कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा भी इस बार का एक अहम चुनावी मुद्दा है. कश्मीरी पंडितों का कहना है कि उनकी स्थायी रिहैबिलिटेशन के लिए यह आवश्यक है कि कश्मीर में काम कर रहे सभी कश्मीरी पंडितों को जहां-जहां वे रहते हैं, वहां सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे बिना डर के रह सकें.

कश्मीरी पंडित समाज पिछले तीन दशकों से अपनी घर वापसी के लिए संघर्ष कर रहा है. हालांकि, पहले भी कई चुनावों में राजनीतिक दलों ने बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया. बावजूद इसके, कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग इस बार के चुनावों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की तैयारी कर रहे हैं ताकि उनकी आवाज़ केंद्र तक पहुंच सके और उनके मुद्दों का समाधान हो सके.

कोलकाता मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष गिरफ्तार, 8 दिन के लिए भेजे गए सीबीआई हिरासत में ,10 सितंबर को होगी पेशी

कोलकाता में डॉक्टर के साथ हुई दरिंदगी के बाद आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष सवालों के घेरे में हैं. सीबीआई ने बीते दिन सोमवार को उन्हें गिरफ्तार किया था, जिसके बाद उन्हें कोर्ट में पेश गया. जहां से पूर्व प्रिंसीपल को 8 दिन की हिरासत में भेज दिया गया है.

हालांकि सीबीआई ने उनकी 10 दिन की हरिसात मांगी थी लेकिन कोर्ट ने 8 दिन की मंजूरी दी.

वहीं 3 अन्य आरोपियों को भी सीबीआई हिरासत में भेजा गया है. जिसके बाद अब 10 सितंबर को अगली पेशी होगी.

कड़ी सुरक्षा के बीच संदीप घोष को कोर्ट पहुंचाया गया था. घोष की गिरफ्तारी भ्रष्टाचार के मामले में की गई है. 15 दिनों से ज्यादा समय तक पूछताछ के बाद सीबीआई ने ये कार्रवाई की. वहीं कोर्ट ने इस मामले में गिरफ्तार एक अन्य आरोपी अफसर अली खान की जमानत याचिका भी खारिज कर दी है.

कोर्ट में पेश हुए पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष

बीती रात पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और 3 अन्य आरोपियों को सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने गिरफ्तार किया था. आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की वित्तीय अनियमितताओं के मामले में अलीपुर जज कोर्ट में लाया गया था. संदीप घोष के CBI दफ्तर से निकलते ही मौके पर जुटी भीड़ ने संदीप घोष को चोर-चोर चिल्लाना शुरू कर दिया. कड़ी सुरक्षा के बीच उन्हें गाड़ी से बाहर निकाला गया और कोर्ट में पेश किया गया.

अबतक 4 लोग हो चुके हैं गिरफ्तार

ट्रेनी डॉक्टर की हत्या और रेप के मामले में अब तक चार लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. इनमें कोलकाता के आरजी कर मेडिकल के पूर्व प्रिंसिपल डॉ संदीप घोष के अलावा घोष का सुरक्षाकर्मी अफसर अली, अस्पताल के विक्रेता बिप्लव सिंघा और सुमन हजारा शामिल हैं. 24 अगस्त को सीबीआई ने संदीप घोष और अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर एफआईआर दर्ज की थी, जिसके बाद जांच शुरू की थी. अस्पताल के पूर्व उपाधीक्षक डॉ. अख्तर अली ने घोष के प्रिंसिपल रहने के दौरान अस्पताल में वित्तीय अनियमितताएं होने की शिकायत दर्ज कराई थी. जिसके बाद जांच शुरू की गई थी.

मणिपुर में ड्रोन हमला, राज्य और देश के लिए चिंता की बात

मणिपुर फिर सुलगने लगा है. दो महीने की अस्थायी शांति के बाद सितंबर की पहली तारीख को जिस तरह का घातक हमला हुआ वह हिला देने वाला है. इस अटैक में दो लोगों की मौत हो गई और 10 लोग घायल हो गए. इनमें एक 12 साल की किशोरी, दो पुलिसकर्मी और एक मीडियाकर्मी शामिल है.

सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इस हमले में ड्रोन का प्रयोग किया गया. यह पहली बार है जब मैतेइ और कुकी समुदायों के बीच हुई हिंसा के बीच धमाका करने के लिए ड्रोन को अपनाया गया हो. यह सिर्फ राज्य के लिए ही नहीं बल्कि देश के भी बेहद चिंता की बात है. आखिर क्यों मणिपुर में ड्रोन बमों के इस्तेमाल से भारत को चिंतित होना चाहिए? आइए समझते हैं.

यह ड्रोन हमला क्यों इतना महत्वपूर्ण है?

ड्रोन आधुनिक युद्ध का एक सस्ता लेकिन घातक तत्व बन गया है, जिसका उपयोग 2020 में नगोर्नो-काराबाख युद्ध और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे संघर्षों में देखा गया है. भारत के मणिपुर में इसका प्रयोग होना खतरनाक बढ़ोतरी का संकेत देता है. इसकी मदद से हमलावर पारंपरिक हथियारों की बजाय दूर से ही हमला कर सकते हैं. यदि ऐसा होने लगता है तो न तो ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमला कब और कहां होगा और न ही उसे रोका जा सकता है. हमले में ड्रोन के प्रयोग से टारगेटेड हत्याएं बढ़ सकती है और कोई भी इलाका अस्थिर हो सकता है. यह डर है कि ये हमले बड़े पैमाने पर हिंसा भड़का सकते हैं.

किसने कराए हमले?

मणिपुर पुलिस ने ड्रोन हमलों के लिए ‘कथित कुकी उग्रवादियों’ को जिम्मेदार ठहराया है. राज्य पुलिस और गृह विभाग के अनुसार, हमला ‘संदिग्ध कुकी आतंकवादियों’ द्वारा किया गया था, जिन्होंने कथित तौर पर रॉकेट चालित ग्रेनेड और अन्य विस्फोटक लॉन्च करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया था. जवाब में, मणिपुर के राज्य और केंद्रीय बलों ने उग्रवादियों को बाहर निकालने और आगे की हिंसा को रोकने के लिए अपने अभियान तेज कर दिए हैं. राज्य सरकार ने जनता से शांत रहने की अपील की है और आश्वासन दिया है कि अपराधियों की पहचान करने और उन्हें मार गिराने के लिए तलाशी अभियान जारी है.

भारत के लिए ड्रोन हमले का क्या है मतलब?

घरेलू संघर्षों में ड्रोन युद्ध की शुरूआत एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकती है, जिससे अधिक परिष्कृत और पता लगाने में कठिन हमले हो सकते हैं. यह कानून प्रवर्तन और सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है, जिन्हें अब ड्रोन के खतरे का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार करना होगा. इसके अलावा, ड्रोन का उपयोग भारत के भीतर अन्य आतंकवादी समूहों को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से अन्य अशांत क्षेत्रों में भी इसी तरह की रणनीति अपनाई जा सकती है. मणिपुर में तनाव बढ़ने से केंद्र सरकार के साथ राज्य के रिश्ते भी तनावपूर्ण हो सकते हैं, क्योंकि अधिक मजबूत हस्तक्षेप और संघर्ष समाधान रणनीतियों की मांग बढ़ रही है.

पुलिस कमिश्नर के इस्तीफे की मांग को लेकर जूनियर डॉक्टरों का धरना प्रदर्शन जारी

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 9 अगस्त को जूनियर डॉक्टर के साथ रेप और हत्या हुई. इसके बाद से ही वहां धरना प्रदर्शन जारी है. कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को हटाने को लेकर जूनियर डॉक्टर अभी भी धरना प्रदर्शन कर रहे है. उनकी मांग है कि पुलिस कमिश्नर अपना इस्तीफा दें

डॉक्टर ऐसा आरोप लगा रहे हैं कि सीबीआई जांच से पहले सबूतों के साथ पुलिस की मौजूदगी में छेड़छाड़ हुई है. डॉक्टरों का कहना है कि जब तक पुलिस कमिश्नर इस्तीफा नहीं देते तब तक उनका धरना प्रदर्शन चलता रहेगा. आज सुबह जब भाजपा संसद अभिजीत गांगुली धरना स्थल पर पहुंचे तो छात्रों ने उनके विरोध में नारे लगाए.

क्या मांग कर रहे हैं डॉक्टर

जूनियर डॉक्टर का आरोप है कि शुरुवाती जांच में पुलिस ने लापरवाही बरती जिसके वजह से सबूतों के साथ छेड़छाड़ हुई है. डेड बॅाडी के पास भीड़ की वजह से काफी सबूत खराब हो गए और पुलिस ने घरवालों को झूठ क्यों बोला कि इनकी लड़की ने आत्महत्या की है. पुलिस पर ये भी आरोप है कि जब प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों पर भीड़ ने हमला किया तब भी उसने कुछ नहीं किया. इन सब बातों को लेकर डॅाक्टर कोलकाता पुलिस कमिश्नर का स्पष्टीकरण और इस्तीफा चाहते हैं.

क्या है अब तक का घटनाक्रम

आज बंगाल विधानसभा में ममता बनर्जी रेप को लेकर एक नया कानून अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) 2024 पेश किया है, जिसमें दोषिओं को फांसी की सजा का प्रावधान है.

सोमवार को सीबीआई ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष को वित्तीय अनियमितता के केस में गिरफ्तार कर लिया था. उनके खिलाफ पूर्व डिप्टी सुपेरिटेंडेंट डॉक्टर अख्तर अली ने शिकायत की थी.

9 अगस्त को जब से ये घटना घटित हुई है तब से ही विरोध प्रदर्शन चल रहा है. शुरू में इसकी जांच कोलकाता पुलिस कर रही थी, बाद में इस केस को सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया था. अभी इसकी जांच सीबीआई ही कर रही है.

इस मामले में राजनीति भी बहुत हो रही है. बीजेपी का आरोप है कि ममता बनर्जी ने इस केस को गंभीरता से नहीं लिया जबकि ममता आरोप लगा रही हैं कि बीजेपी इस पर राजनीति कर रही है और इसी बहाने बंगाल में अराजकता फैला रही है.