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प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करने में डूबे इंसान को अंदाजा ही नहीं कि वह अपने साथ-साथ लाखों वन्य जीवों के लिए इस धरती पर रहना कितना दूभर कर दिया



अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करने में डूबे इंसान को अब यह अंदाजा ही नहीं रह गया है कि वह अपने साथ-साथ लाखों वन्य जीवों के लिए इस धरती पर रहना कितना दूभर कर दिया है। तथाकथित विकास एवं स्वार्थ के नाम पर धरती पर मौजूद संसाधनों का प्रबंधन और दोहन इस तरह से किया जा रहा है कि वन्य जीवों का अस्तित्व ही समाप्त हो रहा हैं। कितने ही पशु-पक्षियों की प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं, तो कितनी विलुप्ती कगार पर हैं।

दुनियाभर में तेजी से विलुप्त हो रहे वन्य पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं वन्यजीवों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तस्करी आदि अन्य खतरों पर नियंत्रण के उद्देश्य से विश्व वन्य जीव दिवस हर साल 3 मार्च को मनाया जाता है। इस दिन लोगों को जंगली वनस्पतियों और जीवों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण के फायदे बताकर जागरूक किया जाता है और वन्यजीव अपराध और वनों की कटाई के कारण वनस्पतियों और जीवों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए आह्वान किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर 2013 को, अपने 68वें अधिवेशन में वन्यजीवों की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं वनस्पति के लुप्तप्राय प्रजाति के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल विश्व वन्यजीव दिवस मनाने की घोषणा की थी। महासभा ने वन्यजीवों के पारिस्थितिकी, आनुवांशिकी, वैज्ञानिक, सौंदर्य सहित विभिन्न प्रकार से अध्ययन अध्यापन को बढ़ावा देने को प्रेरित किया। विभिन्न जीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों के अस्तित्व की रक्षा भी इसका उद्देश्य कहा जा सकता है। इस दिवस की शुरुआत थाईलैंड में हुई थी।

विश्व वन्यजीव दिवस मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य वन्यजीवों से हमें भोजन तथा औषधियों के अलावा और भी कई प्रकार के लाभ मिलते हैं। इसमें से एक है वन्यजीव जलवायु संतुलित बनाए रखने में मदद करते हैं। वन्यजीव मानसून को नियमित रखने तथा प्राकृतिक संसाधनों की पुनःप्राप्ति में सहयोग करते हैं। पर्यावरण में जीव-जंतु तथा पेड़-पौधों के योगदान को पहचानकर तथा धरती पर जीवन के लिए वन्यजीवों के अस्तित्व का महत्व समझते हुए हर साल विश्व वन्यजीव दिवस अथवा वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ डे मनाया जाता है। वन्य जीवों के सामने तस्करी के अलावा अन्य अनेक खतरे हैं। अब इन वन्य जीवों में ‘फॉरएवर केमिकल्स’ पाये जाने से इनका जीवन लुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है।  वैज्ञानिकों को ध्रुवीय भालू से लेकर बाघ, बंदर और डॉलफिन जैसी मछलियों की 330 वन्यजीव प्रजातियों में ‘फॉरएवर केमिकल्स’ के पाए जाने के सबूत मिले हैं। जो दर्शाते हैं कि इंसानों द्वारा बनाया यह केमिकल न केवल पर्यावरण बल्कि उसमें रहने वाले अनगिनत जीवों के शरीर में पहुंच चुका है और उन्हें नुकसान पहुंचा रहा है। इनमें से कई प्रजातियां पहले ही खतरे में हैं।

पृथ्वी पर जीवन का विकास पर्यावरण के अनुकूल ऐसे माहौल में हुआ है, जिसमें जल, जंगल, जमीन और जीव-जंतु सभी आपस में एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं। प्रकृति ने धरती से लेकर वायुमंडल तक विस्तृत जैवविविधता को इतनी खूबसूरती से विकसित एवं संचालित किया है कि अगर उसमें से एक भी प्रजाति का वजूद खतरे में पड़ जाए तो सम्पूर्ण जीव-जगत का संतुलन बिगड़ जाता है। प्राकृतिक संतुलन के लिए सभी वन्य प्राणियों का सरंक्षण बेहद जरूरी है, अन्यथा किसी भी एक वन्य प्राणी के विलुप्त होने पर पूरी संरचना धीरे-धीरे बिखरने लगती है। चूंकि पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न जीव एक दूसरे पर निर्भर हैं, इसलिए अन्य प्राणियों की विलुप्ति से हम इंसानों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। नए वैज्ञानिक अध्ययन चेताते हैं कि इंसान जानवर को महज जानवर न समझे, बल्कि अपना वजूद बनाए रखने का सहारा समझे। दो या तीन दशकों के भीतर इंसान अगर वन्य जीवों की संख्या में हो रहे गिरावट को नहीं रोक पाया, तो मानव अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा।
प्रकृति मानव जीवन का एक अभिन्न अंग

प्रकृति मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है। यह हमें हवा, पानी, भोजन और अन्य संसाधन प्रदान करती है, जिन पर हमारी जीविका निर्भर करती है। प्रकृति की गोद में पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदियाँ, पहाड़ और वनस्पतियाँ शामिल हैं। ये सभी मिलकर एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं, जो हमारे पर्यावरण को सुरक्षित और स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है।

आज के समय में मानव गतिविधियों के कारण प्रकृति पर गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं। वनों की कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि जैसी समस्याओं ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। हमें अपने संसाधनों का सतत उपयोग करना चाहिए, पेड़ लगाने चाहिए, और पर्यावरण को संरक्षित करने के उपाय अपनाने चाहिए।

प्रकृति का संरक्षण न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि यह हमारे अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है। अगर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण छोड़ना चाहते हैं, तो हमें अभी से कदम उठाने होंगे और प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहना सीखना होगा।
क्या शेर को भी किसी जीव से डर लगता है?


शेर, यानी जंगल का राजा, जंगल का सबसे खूंखार शिकारी, जिसके सामने हर कोई गीदड़ बन जाता है…पर क्या शेर भी किसी के सामने गीदड़ बनता है? क्या शेर को भी किसी जीव से डर लगता है? आपने शेर को डलते हुए कम ही देखा होगा, पर इन दिनों एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक शेर की दादागिरी हिप्पो के सामने गायब होती दिख रही है. वो पानी में हिप्पो से इतना ज्यादा डर जाता है कि जान बचाकर भागने पर मजबूर हो जाता है.

हाल ही में एक वीडियो शेयर किया गया है जिसमें एक शेर और हिप्पो के बीच लड़ाई होती दिख रही है. पर ये लड़ाई पूरी तरह एक तरफा ही नजर आ रही है. वो इसलिए क्योंकि शेर हिप्पो के घर में, यानी तालाब में घुस गया है. पानी में हिप्पो कितना शक्तिशाली होता है, ये तो सब जानते ही हैं.

*हिप्पो ने कर दिया शेर पर हमला*

इस वीडियो में 3 शेर नजर आ रहे हैं जो तालाब में मौजूद हैं. तभी पीछे से एक हिप्पो तेजी से एक शेर की तरफ आता है और उसे अपने विशाल मुंह से काटने चलता है. तभी शेर बचकर भागने लगता है. शेर बार-बार खुद को उस दरियाई घोड़े से बचाने की कोशिश में लगा हुआ है. बाकी दोनों शेर भी वहां से भाग निकलता है. कुछ देर बचने के बाद शेर पानी से बाहर भागने में ही समझदारी समझता है और दरियाई घोड़ा आखिरकार जीत जाता है.

काला भालू आकस्मिक रूप से एक पारिवारिक पिकनिक में हुया शामिल

घुमक्कड़ी के शौकीन लोग अक्सर अपने बिजी शेड्यूल से वक्त निकालकर अपने फेवरेट डेस्टिनेशन्स पर घूमने के लिए निकल जाते हैं. खासकर, अगर बात करें एनिमल लवर्स  की तो वो घूमने के लिए जंगल का रुख कर लेते हैं. इस बीच सोशल मीडिया  पर एक वीडियो तेजी से वायरल  हो रहा है, जिसमें एक फैमिली जंगल में पिकनिक  मनाने पहुंचते हैं, जहां वो साथ मिलकर खाने के लिए बैठते हैं और तभी वहां भालू पहुंच जाता है. जंगली काला भालू  इस परिवार के साथ पिकनिक पार्टी को एन्जॉय करते हुए खाने का लुत्फ उठाने लगता है.
गोताखोरों ने ताइवान के तट पर विशालकाय ओरफिश की खोज की


गोताखोरों ने ताइवान के उत्तरी तट पर विशालकाय ओरफिश की खोज की छह फुट से अधिक लंबे इस प्राणी को "समुद्र देवता के महल का दूत" कहा जाता है।
गोताखोरों को ताइवान के उत्तर-पूर्वी तट के पास एक अद्भुत खोज मिली: एक विशाल गहरे समुद्र की ओरफिश।

जून के अंत में लिए गए वीडियो में छह फुट से अधिक लंबे इस जीव को दिखाया गया है, जिसके शरीर पर बड़े-बड़े काटने के निशान दिखाई दे रहे हैं।

ओरफिश गहरे समुद्र में रहने वाली प्रजाति है, जो समुद्र की सतह से 200 से 1,000 मीटर नीचे मेसोपेलाजिक क्षेत्र में अपना घर बनाती है, इसलिए इनका दिखना दुर्लभ है।

नेशनल ज्योग्राफिक के अनुसार, जापानी लोककथाओं में, ओरफिश को "समुद्र देवता के महल से आए दूत" के रूप में जाना जाता है और इसे एक प्रकार से प्रलय के अग्रदूत के रूप में ख्याति प्राप्त है ।

स्थानीय किंवदंती का दावा है कि ओरफ़िश सुनामी या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से ठीक पहले दिखाई देती है। वास्तव में, दक्षिणी फिलीपींस में 2017 में आए घातक भूकंप से कुछ दिन पहले छह ओरफ़िश देखी गई थीं , नेटजीओ ने बताया।

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि विज्ञान कहता है कि यह किंवदंती सत्य नहीं है।

लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के समुद्र विज्ञानी और पारिस्थितिकीविद् मार्क बेनफील्ड ने नेटजीओ को बताया, "यह कल्पना करना कठिन है कि भूकंप से पहले किस प्रकार की घटना घटेगी, जिसके कारण ये ओर्फिश  छोड़कर किनारे की ओर चले जाएंगे।"

ओरफिश समुद्र तल के पास नहीं रहती जहां गहरे समुद्र में भूकंपीय गतिविधियां होती हैं, और यदि यह सिद्धांत सत्य होता, तो ओरफिश भूकंप से पहले देखी जाने वाली एकमात्र प्रजाति नहीं होती।

कैटालिना द्वीप समुद्री संस्थान के अनुसार, ओरफिश 50 फीट से अधिक तक बढ़ सकती है, जिससे यह दुनिया की सबसे लम्बी हड्डीदार मछली बन जाती है।

संभवतः वे पूरे इतिहास में समुद्री सर्पों से संबंधित किंवदंतियों के लिए जिम्मेदार हैं।
प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवन तथा उसका संरक्षण

कुंवारी वनस्पति जो बिना किसी मानवीय सहायता के अस्तित्व में है, जिसमें प्राकृतिक वृद्धि प्रक्रिया है और जो मनुष्यों द्वारा बिना किसी व्यवधान के बनी हुई है, उसे प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं। मनुष्यों द्वारा लगाई गई फसलें और फल वनस्पति का हिस्सा होते हैं, लेकिन उन्हें प्राकृतिक वनस्पति नहीं माना जाता है। भारत में, पौधों की एक विविध श्रेणी है, जिसमें 47,000 प्रजातियाँ हैं।

भारत में जानवरों की 90,000 प्रजातियाँ और पक्षियों की 2,000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसके अलावा, यहाँ मछलियों की 2,546 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। देश के जीव-जंतुओं में भी काफ़ी विविधता है।

प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन की विविधता को संरक्षित करने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न कदम उठाए गए हैं, जिनकी चर्चा नीचे की गई है:

जीवमंडल: जीवमंडल स्थलमंडल, जलमंडल और वायु के बीच संपर्क का सघन क्षेत्र है जहां सामान्य वनस्पति और अदम्य जीवन मौजूद है

पारिस्थितिकी तंत्र: जीवमंडल में जीवित प्राणी आपस में जुड़े हुए हैं और जीवित रहने के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं। इस जीवन-सहायक ढांचे को पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में जाना जाता है

वनस्पति का महत्व/महत्व: वनस्पति एक मूल्यवान संसाधन है। पौधे हमें लकड़ी प्रदान करते हैं, जीवों को आश्रय देते हैं, हमारे द्वारा साँस में ली जाने वाली ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं, और मिट्टी को सुरक्षित रखते हैं। इसके अतिरिक्त, हमें जैविक उत्पाद, मेवे, लेटेक्स, तारपीन का तेल, गोंद, औषधीय पौधे आदि प्रदान करते हैं

वन्यजीवों का महत्व/महत्व: वन्यजीवों में समुद्री जीवों की तरह ही जीव, पक्षी और कीड़े शामिल हैं। वे हमें दूध, मांस, छिपने की जगह और ऊन देते हैं। मधुमक्खियों जैसे खौफनाक जीव हमें शहद देते हैं, फूलों के निषेचन में मदद करते हैं और पर्यावरण में अपघटक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मृत जानवरों से लाभ उठाने की उनकी क्षमता के कारण, गिद्ध एक चारागाह हैं और उन्हें जलवायु के एक आवश्यक सफाई एजेंट के रूप में माना जाता है।