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देवगौड़ा के पोते पार्टी से सस्पेंड, सेक्स स्कैंडल मामले में फंसे प्रज्‍वल रेवन्ना पर जेडी(एस) ने की कार्रवाई

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कर्नाटक के हासन से सांसद और लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी-जेडीएस के संयुक्त उम्मीदवार प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ कई महिलाओं के यौन शोषण का आरोप लगने की शिकायतें सामने आने के बाद कर्नाटक में राजनीतिक तूफान मच गया है। इस बीच कई महिलाओं से यौन शोषण के आरोप झेल रहे प्रज्ज्वल रेवन्ना को जेडी-एस से निलंबित कर दिया गया है।जद (एस) कोर कमेटी के अध्यक्ष जीटी देवगौड़ा ने इसकी जानकारी दी। 

प्रज्वल रेवन्ना के निलंबन की जानकारी देते हुए जेडीएस कोर कमेटी के अध्यक्ष जीटी देवेगौड़ा ने कहा कि पार्टी ने वीडियो प्रकरण को लेकर रेवन्ना को निलंबित कर दिया है। उन्होंने कहा, हमने जद (एस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा से निलंबित करने की सिफारिश की है। उन्होंने कहा कि हम प्रज्ज्वल रेवन्ना के खिलाफ एसआईटी का स्वागत करते हैं। हमने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को एसआईटी जांच पूरी होने तक उन्हें पार्टी से निलंबित करने की सिफारिश करने का निर्णय लिया है। 

उनके चाचा और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि निलंबन की अवधि एसआईटी जांच पूरी होने तक है। उन्होंने कहा, अगर उनकी भूमिका साबित हो जाती है तो उन्हें स्थायी रूप से निलंबित कर दिया जाएगा। उन्होंने आगे कहा, इस निर्णय का कारण यह है कि जेडीएस ऐसे मामले में किसी भी महिला या परिवार के साथ अन्याय नहीं होने देगी। इस मुद्दे का इस्तेमाल कर हमारे परिवार का नाम खराब करने की साजिश की जा रही है। उनका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा करना नहीं है। इस मामले का उपयोग करते हुए, एचडी देवेगौड़ा का नाम और कुमारस्वामी का नाम बार-बार उछालने से है। इसमें देवगौड़ा जी या मेरा क्या किरदार है? हम उन चीजों के लिए जिम्मेदार नहीं है। यह प्रज्ज्वल रेवन्ना का व्यक्तिगत मामला है। मैं उनके संपर्क में नहीं हूं। उन्हें कानून के सामने लाना सरकार की जिम्मेदारी है। नैतिक रूप से हमने कुछ निर्णय लेने का फैसला किया है।

कर्नाटक के पूर्व मंत्री एच.डी. रेवन्ना और उनके बेटे प्रज्ज्वल रेवन्ना के खिलाफ यौन उत्पीड़न और पीछा करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई है। एच.डी. रेवन्ना पूर्व प्रधानमंत्री एवं जनता दल (सेक्युलर) प्रमुख एच.डी. देवेगौड़ा के बेटे हैं।प्रज्ज्वल रेवन्ना की घरेलू सहायिका की शिकायत के आधार पर जिले के होलेनरासीपुर पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया है। शिकायतकर्ता ने कहा कि वह प्रज्ज्वल रेवन्ना की पत्नी भवानी की रिश्तेदार हैं। पीड़िता ने आरोप लगाया कि काम शुरू करने के चार महीने बाद प्रज्ज्वल रेवन्ना उनका यौन उत्पीड़न करने लगे जबकि प्रज्वल उनकी बेटी को वीडियो कॉल करके ‘अश्लील बातें’ करते थे। शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि उनके साथ-साथ उनके परिवार के अन्य सदस्यों की जान को भी खतरा है।

भ्रामक विज्ञापन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव को पेशी से दी छूट, माफीनामा की ई-फाइलिंग करने पर फटकारा

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पतंजलि आयुर्वेद भ्रामक विज्ञापन मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई हुई।पतंजलि विज्ञापन केस में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में करीब डेढ़ घंटे सुनवाई हुई। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच में रामदेव और बालकृष्ण पांचवीं बार पेश हुए।सुनवाई शुरू होते ही कोर्ट ने पतंजलि के वकील को ओरिजिनल माफीनामा (न्यूज पेपर्स की कॉपी) की जगह ई-फाइलिंग करने पर फटकार लगाई। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने योग गुरु रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण को अगली सुनवाई के लिए व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे दी।

पतंजलि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि हमने माफी संबंधी विज्ञापन दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये हमारे आदेश का अनुपालन नहीं है। आपने विज्ञापन की वास्तविक प्रति नहीं दाखिल की, आखिर ऐसा क्यों किया गया। रोहतगी ने कहा कि मैं आपके सामने अखबार की प्रति लेकर सामने हूं। यह मैं आपको यहीं दे रहा हूं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपकी ओर से ई-फाइलिंग प्रति दी गई, वास्तविक नहीं, मसला ये है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने हलफनामा दाखिल किया। उसमें वास्तविक प्रति नहीं लगाई। कैसे पता चलेगा कि विज्ञापन का आकार क्या है? हमने पिछली सुनवाई में विज्ञापन को लेकर स्पष्ट आदेश दिया था। तब भी आप अखबार की प्रति हमें कोर्ट रूम में दे रहे हैं। फाइल क्यों नहीं की।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस माफीनामे को देखने के बाद बाबा रामदेव के प्रति नरमी दिखाई।बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई में पेश नहीं होना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने छूट दी है। हालांकि स्पष्ट किया कि अभी सिर्फ अगली सुनवाई के लिए छूट दे रहे हैं। अगली सुनवाई 14 मई को होगी।

आईएमए को दी चेतावनी

सुनवाई के दौरान ही मुकुल रोहतगी ने आईएमए यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रमुख के बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने पतंजलि के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की थी। मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि आखिर आईएमए चीफ ने क्या कहा था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि आईएमए के अध्यक्ष का बयान रिकॉर्ड पर लाया जाए। ये बेहद गंभीर मामला है, इसका परिणाम भुगतने के लिए वे तैयार हो जाएं।

सुप्रीम कोर्ट से उत्तराखंड सरकार को फटकार

वहीं, उत्तराखंड सरकार ने दवाओं के भ्रामक विज्ञापन को लेकर उठाए गए कदमों पर हलफनामा कोर्ट के सामने पढ़ा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई है। कोर्ट ने पूछा कि पिछले नौ माह से क्या कर रहे थे? राज्य सरकार की हम मौखिक कोई बात नहीं मानेंगे। सिर्फ हलफनामे में सबकुछ बताइए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य प्राधिकार का रवैया बहुत ही शर्मनाक है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को नया और सही हलफनामा दाखिल करने के लिए 10 दिनों का समय दिया।

पतंजलि आयुर्वेद और दिव्य फार्मेसी के 14 उत्पाद निलंबित

इससे पहले सोमवार (29 अप्रैल) को, उत्तराखंड सरकार ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि उसने पतंजलि आयुर्वेद और दिव्य फार्मेसी के 14 उत्पादों के विनिर्माण लाइसेंस को 'तत्काल प्रभाव' से निलंबित कर दिया है। भ्रामक विज्ञापनों के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए राज्य प्राधिकरण की पहले आलोचना की गई थी, जिसके बाद यह कार्रवाई की गई।

कांग्रेस सरकार ने क्यों नहीं की कार्रवाई, प्रज्वल रेवन्ना पर सख्त अमित शाह ने पूछा सवाल

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पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा के पोते और जेडी(एस) सांसद प्रज्वल रेवन्ना से जुड़ा 'अश्लील वीडियो' का मामला तूल पकड़ता दिख रहा है। महिलाओं से यौन उत्पीड़न को लेकर विवादों में घिरे सांसद प्रज्वल रेवन्ना को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।केंद्रीय गृह मंत्री व भारतीय जनता पार्टी के नेता अमित शाह ने असम के गुवाहाटी में मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया।उन्होंने कहा कि प्रज्वल रेवन्ना के मामले में कठोर कार्रवाई की जाएगी। इस दौरान उन्होंने प्रज्वल रेवन्ना के मामले पर कांग्रेस पर हमला बोला।उन्होंने कहा कि ये सहन नहीं किया जा सकता है। बीजेपी देश की मातृशक्ति के साथ खड़ी है। इसके अपमान को स्वीकार नहीं किया जा सकता। मगर कर्नाटक में सरकार किसकी है? कांग्रेस सरकार ने अबतक कार्रवाई क्यों नहीं की है, प्रियका गांधी अपने सरकार से प्रश्न पूछें कि कार्रवाई क्यों नहीं की? जेडीएस उन पर आज बैठक कर कठोर कदम उठाए।

कांग्रेस ने अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की-शाह

एनडीए के लोकसभा उम्मीदवार प्रज्वल रेवन्ना महिलाओं से यौन उत्पीड़न को लेकर विवादों में घिरे हैं। प्रियंका गांधी से लेकर कई विपक्षी नेता भाजपा पर तंज कस रहे हैं। अब गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब दिया है।केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, बीजेपी का रुख स्पष्ट है कि हम देश की 'मातृ शक्ति' के साथ खड़े हैं, देश की नारी शक्ति के साथ हैं। नरेंद्र मोदी जी का देश को एक कमिटमेंट है कि कहीं भी मातृ शक्ति के अपमान को सहन नहीं किया जा सकता। परंतु जो कांग्रेस पार्टी हम पर आरोप लगाना चाहती है, मैं कांग्रेस से पूछना चाहता हूं कि वहां किसकी सरकार है? सरकार कांग्रेस पार्टी की है। उन्होंने अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? हमें इस पर कार्रवाई नहीं करनी है क्योंकि यह राज्य की कानून व्यवस्था का मामला है, राज्य सरकार को इस पर कार्रवाई करनी है। प्रियंका गांधी हमसे सवाल पूछ रही हैं, नरेंद्र मोदी या मुझसे सवाल करने की जगह अपने मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री से सवाल करिए।"

हम जांच के पक्ष में हैं-शाह

गृह मंत्री ने आगे कहा, "हम जांच के पक्ष में हैं और हमारे सहयोगी जेडी(एस) ने भी इसके खिलाफ कार्रवाई करने की घोषणा की है, आज उनकी कोर कमेटी की बैठक है और कदम उठाए जाएंगे।" इस तरह की घटनाओं का सार्वजनिक जीवन में, समाज में या निजी तौर पर कहीं भी स्थान नहीं होना चाहिए। कठोर से कठोर कदम उठाए। ये भारतीय जनता पार्टी के स्टैंड अटल है और उस पर कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए। 

हजारों महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने का आरोप

बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते और हासन सीट से मौजूदा जेडी(एस) सांसद और उम्मीदवार प्रज्वल रेवन्ना पर हजारों महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगा है। उनकी नौकरानी की शिकायत पर उनके खिलाफ केस भी दर्ज हुआ है। प्रज्वल रेवन्ना का एक अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। इस घटना के बाद उनके घर में काम करने वाली कुक ने भी एफआईआर दर्ज कराई। कुक ने दावा किया कि वो रेवन्ना की पत्नी भवानी की रिश्तेदार है। होलेनरासीपुर थाने में दर्ज एफआईआर में कहा गया कि रेवन्ना घर में काम करने वाली महिलाओं को अपने कमरे में बुलाते थे। रेवन्ना पर आरोप है कि उन्होंने करीब 2976 महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया और उन्हें ब्लैकमेल करने के लिए इनकी वीडियो भी बनाई। एक पेन ड्राइव में ये सभी वीडियो मिले हैं। इस मामले में जांच के लिए प्रदेश सरकार ने एसआईटी का गठन कर दिया है।

उत्तराखंड के जंगलों में आग, साल के मुकाबले कुमाऊं और गढ़वाल दोनों मंडलों में दोगुने जंगल जले, पढ़िए, डिटेल रिपोर्ट

उत्तराखंड के जंगलों में आग का दायरा लगातार बढ़ने के बाद वायुसेना के हेलीकाप्टर और एनडीआरएफ के जवान भी मदद में जुट चुके हैं, मगर मौसम का साथ नहीं मिलने से वन विभाग के लिए चुनौतियां बरकरार है। वहीं, पिछले साल से तुलना करने पर पता चलता है कि इस बार हरियाली को दोगुने से ज्यादा नुकसान तो हो चुका है।

एक नवंबर 2022 से 29 अप्रैल 2023 तक उत्तराखंड में 372 हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आया था, जबकि नवंबर 2023 से 29 अप्रैल 2024 तक यह दायरा 814 हेक्टेयर को पार कर चुका है। अगले डेढ़ माह में परेशानी और बढ़ सकती है, क्योंकि मानसून तो 15 जून के बाद ही आएगा।

गांवों में कूड़ा खुले में न जलाने के लिए दिए थे निर्देश

पंचायत के अधिकारियों को भी निर्देश दिए गए हैं कि गांवों में खुली बैठक कर लोगों को समझाएं कि किसी हाल में खुले में कूड़े न जलाएं। कई बार यह जलता हुआ कूड़ा भी जंगल में आग की वजह बनता है। हालांकि, इन तमाम प्रयासों के बावजूद कुमाऊं, गढ़वाल और वन्यजीव विहार से जुड़े जंगलों में आग की घटनाओं संग नुकसान का दायरा काफी बढ़ चुका है।

 

29 अप्रैल 2023 को स्थिति 

गढ़वाल में 96 घटनाओं में 123.8 हेक्टेयर नुकसान

कुमाऊं में 160 मामलों में 191 हेक्टेयर जंगल जला

वन्यजीव क्षेत्र के 31 मामलों में 57.3 हेक्टेयर नुकसान

29 अप्रैल 2024 को स्थिति

गढ़वाल: 236 घटनाओं में 267.825 हेक्टेयर जंगल जला

कुमाऊं में 363 मामलों में 480.75 हेक्टेयर जंगल जला

वन्यजीव क्षेत्र के 54 मामलों में 65.52 हेक्टेयर नुकसान

अमृतपुर मोड़ पर हाईवे किनारे जंगल जला, सलड़ी तक धुआं

सोमवार को हल्द्वानी से भीमताल रोड पर अमृतपुर मोड़ से कुछ आगे हाईवे किनारे जंगलों में आग लगी हुई थी। यहां से गुजरने वाले वाहनचालकों को भी तपिश का सामना करना पड़ रहा था। सलड़ी क्षेत्र में आसमान में आग से उठ रहा धुआं साफ नजर आ रहा था। हालांकि, सूचना पर वनकर्मी भी कुछ देर बाद प्रभावित इलाकों में पहुंच गए थे।

उत्तराखंड सरकार ने पतंजलि के 14 उत्पादों का लाइसेंस किया रद्द, भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए किया गया निलंबित

 उत्तराखंड सरकार ने योग गुरु बाबा रामदेव की दवा कंपनी पतंजलि के 14 उत्पादों के विनिर्माण लाइसेंस निलंबित कर दिए हैं। ऐसा कंपनी की ओर से अपने उत्पादों के बारे में बार-बार भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए किया गया है।

पतंजलि आयुर्वेद के दिव्य फार्मेसी के जिन उत्पादों के लाइसेंस निलंबित किए गए हैं उनमें श्वासारि गोल्ड, श्वासारि वटी, दिव्य ब्रोंकोम, श्वासारि प्रवाही, श्वासारि अवलेह, मुक्ता वटी एक्स्ट्रा पावर, लिपिडोम, बीपीिग्रट, मधुग्रिट, मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर, लिवामृत एडवांस, लिवोग्रिट, आईिग्रट गोल्ड और पतंजलि दृष्टि आई ड्रॉप शामिल हैं। गौरतलब है कि पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन का मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान रामदेव, कंपनी के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण और कंपनी को फटकार लगाई थी। रामदेव और बालकृष्ण ने माफी भी मांगी थी।

पतंजलि फूड्स को जीएसटी बकाया के लिए कारण बताओ नोटिस

पतंजलि फूड्स को जीएसटी खुफिया विभाग ने कारण बताओ नोटिस भेजा है, जिसमें कंपनी से यह बताने को कहा गया है कि उससे 27.46 करोड़ रुपये का इनपुट टैक्स क्रेडिट क्यों नहीं वसूला जाना चाहिए। 26 अप्रैल को कंपनी की ओर से नियामक को दी गई जानकारी के अनुसार, उसे जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय, चंडीगढ़ जोनल यूनिट से मिले नोटिस में यह भी कहा गया है कि कंपनी पर जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए।

कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली ब्रिटिश दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका पर 51 लोगों ने ठोका मुकदमा, वैक्सीन से हार्ट स्ट्रोक होने का लगाया आरोप

कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली ब्रिटिश दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने अदालत में स्वीकार किया है कि टीका, दुर्लभ मामलों में, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) के साथ रक्त का थक्का बनने का कारण बन सकता है। इस सिंड्रोम के कारण रक्त के थक्के बन सकते हैं और प्लेटलेट काउंट में कमी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से स्ट्रोक और दिल का दौरा जैसे गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित कोविशील्ड का निर्माण भारत के सीरम इंस्टीट्यूट (SII) द्वारा कोरोना महामारी के दौरान किया गया था और इसे भारत सहित व्यापक रूप से प्रशासित किया गया है।

केरल में नेशनल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) कोविड टास्क फोर्स के सह-अध्यक्ष डॉ. राजीव जयदेवन ने बताया कि TTS रक्त वाहिकाओं में रक्त के थक्के का कारण बन सकता है, हालांकि टीकाकरण के बाद यह बहुत दुर्लभ है। मौतों को रोकने में COVID-19 टीकों की भूमिका को स्वीकार करते हुए, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि TTS के साथ टीके के संबंध के बारे में प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में बताया गया है।

कोविशील्ड, MRNA-आधारित टीकों के विपरीत, एक वायरल वेक्टर प्लेटफॉर्म का उपयोग करके निर्मित किया जाता है। यह ChAdOx1 का उपयोग करता है, एक चिंपैंजी एडेनोवायरस जिसे मानव कोशिकाओं में COVID-19 स्पाइक प्रोटीन ले जाने के लिए संशोधित किया गया है। यह तकनीक, इबोला वैक्सीन के विकास में उपयोग की जाने वाली तकनीक के समान, प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण पैदा किए बिना वायरस पर प्रतिक्रिया करना सिखाती है।

ब्रिटिश अदालत में, एस्ट्राज़ेनेका को 51 व्यक्तियों के दावों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें 100 मिलियन पाउंड तक के हर्जाने की मांग की गई है। पहले शिकायतकर्ता, जेमी स्कॉट का आरोप है कि उन्हें मस्तिष्क में स्थायी चोट लगी थी और अप्रैल 2021 में टीका प्राप्त करने के बाद वह काम करने में असमर्थ हो गए, जिसके कारण रक्त का थक्का जम गया। एस्ट्राज़ेनेका ने अपने कानूनी बचाव में टीटीएस को स्वीकार किया है, यह सुझाव देते हुए कि पीड़ितों और उनके परिवारों को मुआवजा दिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना से "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों को हटाने की मांग की जनहित याचिका (PIL) को किया स्थगित, जाने

भारत की सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना से "समाजवादी" (Socialist) और "धर्मनिरपेक्ष" (Secular) शब्दों को हटाने की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) को स्थगित कर दिया। संक्षिप्त बहस के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने "बहुत अधिक मामले और दिन भर के भारी बोझ" का हवाला देते हुए मामले को जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया। दरअसल, भारत के संविधान में ये स्पष्ट है कि, इसकी प्रस्तावना में कभी भी कोई बदलाव नहीं किया जा सकता, लेकिन इंदिरा सरकार में इमरजेंसी के दौरान ये दो शब्द चुपचाप संविधान की प्रस्तावना में जोड़ दिए गए थे, जिस समय कई विपक्षी नेता, समेत पत्रकार भी जेल में थे। ये खबर ही काफी दिनों के बाद बाहर आई। 

विशेष रूप से, याचिकाएं भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन द्वारा दायर की गई हैं। जबकि राज्यसभा सांसद और CPI नेता बिनॉय विश्वम ने याचिका का विरोध करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की दो जजों की बेंच कर रही है। आज की सुनवाई शुरू होते ही एक वकील ने कहा कि यह एक 'संवैधानिक प्रश्न' है। सुब्रमण्यम स्वामी को जवाब देते हुए जस्टिस खन्ना ने मामले को कोर्ट की गर्मियों की छुट्टियों के बाद यानी जुलाई तक के लिए टाल दिया। 

वकील ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया कि पीठ सवाल पूछ सकती है ताकि याचिकाकर्ता रिकॉर्ड पर जवाब दे सकें। हालाँकि, न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि अदालत में "आज बहुत भारी बोर्ड" था और परिणामस्वरूप मामले को स्थगित कर दिया गया। अदालत की सुनवाई के बाद, मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक, विष्णु जैन ने ट्वीट करते हुए कहा कि, “आज सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई की, जिसमें मैंने भारत के संविधान की प्रस्तावना में आने वाले धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द को चुनौती दी है। अदालत ने मामले को जुलाई में सूचीबद्ध किया है।”

जनहित याचिकाओं ने सोशल मीडिया पर जोरदार चर्चा पैदा कर दी है और कई नेटिज़न्स इन याचिकाओं के पक्ष में वकालत कर रहे हैं, जिसमें बताया गया है कि 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द देश के 'काले अध्याय' आपातकाल के दौरान 42वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से जोड़े गए थे। इस बीच, फरवरी 2024 में आखिरी सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने सवाल उठाया था कि क्या संविधान को अपनाने (संविधान सभा द्वारा) की तारीख 26 नवंबर 1949 को बरकरार रखते हुए संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, “शैक्षणिक उद्देश्य के लिए, क्या एक प्रस्तावना जिसमें तारीख का उल्लेख किया गया है, को अपनाने की तारीख में बदलाव किए बिना बदला जा सकता है। अन्यथा, हाँ प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है। इसमें कोई समस्या नहीं है।” शीर्ष अदालत की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए स्वामी ने कहा, "इस मामले में बिल्कुल यही सवाल है।" न्यायमूर्ति दत्ता ने आगे कहा, “यह शायद एकमात्र प्रस्तावना है, जिसे मैंने देखा है जो एक तारीख के साथ आती है। हम यह संविधान हमें फलां तारीख को देते हैं, मूल रूप से ये दो शब्द (समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष) थे ही नहीं।'

विष्णु जैन ने दलील दी कि भारत के संविधान की प्रस्तावना एक निश्चित तारीख के साथ आती है, इसलिए इसमें बिना चर्चा के संशोधन नहीं किया जा सकता। स्वामी ने अपनी याचिका में कहा था कि आपातकाल के दौरान 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से प्रस्तावना में डाले गए दो शब्द, 1973 में 13-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा प्रसिद्ध केशवानंद भारती फैसले में प्रतिपादित बुनियादी संरचना सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं, जिसके द्वारा संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को संविधान की मूल विशेषताओं के साथ छेड़छाड़ करने से रोक दिया गया था।

सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया था कि, “संविधान निर्माताओं ने विशेष रूप से इन दो शब्दों को संविधान में शामिल करने को खारिज कर दिया था और आरोप लगाया था कि ये दो शब्द नागरिकों पर तब भी थोपे गए थे, जब संविधान के निर्माताओं ने कभी भी लोकतांत्रिक शासन में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' अवधारणाओं को पेश करने का इरादा नहीं किया था।” यह तर्क दिया गया है कि इस तरह का सम्मिलन अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संशोधन शक्ति से परे था।

राज्यसभा सांसद और सीपीआई नेता बिनॉय विश्वम ने भी उन याचिकाओं का विरोध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें दावा किया गया था कि 'धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद' संविधान की अंतर्निहित और बुनियादी विशेषताएं हैं। फरवरी में, अदालत ने सुनवाई 29 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी थी, लेकिन जैसे ही पीठ आज याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जुटी, उसने एक बार फिर मामले को जुलाई में अगली सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया।

पन्नू की हत्या की साजिश वाली वॉशिंगटन पोस्ट रिपोर्ट पर भड़का भारत, कहा-आरोप अनुचित और निराधार

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भारत ने अमेरिका में सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की कथित हत्या की साजिश पर ‘वाशिंगटन पोस्ट’ की एक रिपोर्ट पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।विदेश मंत्रालय ने इस दावे को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि इस पर अटकलें लगाना और गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी करना मददगार नहीं है। मामले पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा कि ये एक गंभीर मामला है और आरोप निराधार हैं। दरअसल, अमेरिकी अखबार द वॉशिंगटन पोस्ट में दावा किया गया कि गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में भारत के रॉ ऑफिसर शामिल थे।

द वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट क्या कहती है?

‘वाशिंगटन पोस्ट’ की रिपोर्ट में दावा किया गया कि अमेरिका में विक्रम यादव नामक रॉ अधिकारी पन्नू की हत्या की साजिश में शामिल थे। इस कदम को भारतीय जासूसी एजेंसी के तत्कालीन प्रमुख सामंत गोयल ने मंजूरी दी थी। वाशिंगटन पोस्ट अखबार की एक खबर में कहा कि अमेरिका में विक्रम यादव नामक रॉ अधिकारी सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में शामिल थे और इस कदम को भारतीय जासूसी एजेंसी के तत्कालीन प्रमुख सामंत गोयल ने मंजूरी दी थी। विक्रम यादव की पहचान और संबद्धता पहले सामने नहीं आ पाई थी। यह खोजी रिपोर्ट आज तक का सबसे ठोस सबूत प्रदान करती है कि हत्या की साजिश भारतीय जासूसी एजेंसी ने रची थी जिसे अमेरिकी अधिकारियों ने नाकाम कर दिया। अखबार की खबर में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति जो बाइडन के नेतृत्व वाली अमेरिकी सरकार ने यादव के खिलाफ कोई आरोप लगाने से परहेज किया है। अमेरिका में पन्नू को मारने की कथित साजिश पिछले साल जून में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के सरे में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून को हुई घातक गोलीबारी के साथ मेल खाती है। पश्चिमी देशों के अधिकारियों के अनुसार वह अभियान भी यादव से जुड़ा था।

भारत ने सुनाई खरी-खरी

वाशिंगटन पोस्ट द्वारा कथित तौर पर पन्नू को खत्म करने की साजिश रचने के लिए एक भारतीय अधिकारी का नाम बताए जाने के भारत ने भी अमेरिका को खरी-खरी सुनाया है। आरोप के एक दिन बाद भारत ने कहा कि रिपोर्ट में एक गंभीर मामले पर अनुचित और निराधार आरोप लगाए गए हैं। मंगलवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन रिपोर्ट्स को बेबुनियाद बताकर खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि 'रिपोर्ट में एक गंभीर मामले पर बेबुनियाद और अनुचित आरोप लगाए गए हैं। अमेरिकी सरकार ने संगठित अपराध, आतंकवाद और अन्य को लेकर जो सुरक्षा चिंताएं साझा की हैं, उनकी भारत सरकार द्वारा उच्च स्तरीय जांच की जा रही है।' जायसवाल ने कहा कि गैरजिम्मेदाराना और सिर्फ अनुमानों के आधार पर टिप्पणी करने से कोई मदद नहीं मिलेगी।

व्हाइट हाउस ने क्या कहा?*

इससे पहले ‘वाशिंगटन पोस्ट’ की रिपोर्ट पर व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव ज्यां-पियरे ने कहा, जांच की जा रही है और न्याय विभाग आपराधिक जांच कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत, अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है और हम कई क्षेत्रों में अपने सहयोग को बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।

बता दें कि बीते साल नवंबर में अमेरिका के संघीय अभियोजक ने आरोप लगाए थे कि भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता ने भारत सरकार के एक कर्मचारी के साथ मिलकर सिख कट्टरपंथी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू को अमेरिका में ही मारने की योजना बनाई थी। इस मामले में निखिल गुप्ता को चेक गणराज्य में गिरफ्तार किया गया था। आरोपों को बाद भारत सरकार भी मामले की उच्च स्तरीय जांच कर रही है। बीते साल 7 दिसंबर को भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में कहा था कि अमेरिका से मिले इनपुट के आधार पर भारत ने इस मामले की जांच के लिए एक जांच समिति बनाई है क्योंकि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम है।

गुरपतवंत सिंह पन्नून खालिस्तान आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक है। गुरपतवंत सिंह पन्नू के पास अमेरिका और कनाडा की दोहरी नागरिकता है। वह सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) का कानूनी सलाहकार और प्रवक्ता है। एसएफजे का उद्देश्य एक अलग सिख राष्ट्र के विचार को बढ़ावा देना है। भारत सरकार ने पन्नू को आतंकवादी घोषित किया है।

एस्ट्राजेनेका ने कोरोना वैक्सीन के दुष्प्रभाव की बात मानी, इस बीमारी का बढ़ सकता है खतरा

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कोरोना महामारी से बचाव के लिए दुनियाभर के वैज्ञनिकों ने कई वैक्सीन की खोज की। जिसके बाद बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन भी हुआ। हालांकि, कई बार कोरोना वैक्सीन को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं। इस बीच ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी कोविड-19 वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटेन की अदालत में पहली बार माना है कि कोविड-19 की उसकी वैक्सीन से टीटीएस जैसे दुर्लभ साइड इफेक्ट हो सकते हैं। टीटीएस यानी थ्रोम्बोसइटोपेनिया सिंड्रोम शरीर में खून के थक्के जमने की वजह बनती है। इससे पीड़ित व्यक्ति को स्ट्रोक, हृदयगति थमने जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।  

कंपनी कोर्ट में एक मुकदमे का सामना कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उनके टीके के गंभीर दुष्प्रभाव हैं और इससे मौत का खतरा है। द टेलीग्राफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि दो बच्चों के पिता एमी स्कॉट ने पिछले साल कोर्ट में मुकदमा दायर किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लेने के बाद उनके शरीर में खून का थक्का जम गया था, जिससे वह काम करने में असमर्थ हो गए थे। अप्रैल 2021 में टीका लगने के बाद उन्हें मस्तिष्क में स्थायी चोट लग गई थी। दिमाग में यह चोट खून का थक्का यानी ब्लड क्लॉट की वजह से हुई थी। रिपोर्ट के अनुसार, उच्च न्यायालय में इस तरह के 51 मामले दर्ज किए गए हैं। जिनमें पीड़ितों ने मुआवजे के रूप में एस्ट्राजेनेका से करीब 1 हजार करोड़ का हर्जाना मांगा है।

भारत में इसी फॉर्मूले से कोवीशील्ड बनी

यह खबर भारत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां कोविड-19 के प्रसार के दौरान बड़े पैमाने पर ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रोजेनेका की इसी वैक्सीन को कोविशील्ड के नाम से इस्तेमाल किया गया था। भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एस्ट्राजेनेका से हासिल लाइसेंस के तहत देश में इस वैक्सीन का उत्पादन किया था और इसे सिर्फ भारत के कोविड टीकाकरण अभियान में ही नहीं इस्तेमाल किया गया था, बल्कि दुनिया के कई देशों को निर्यात किया गया। कोविशील्ड के अलावा इस वैक्सीन को कई देशों में वैक्सजेवरिया ब्रांड नाम से भी बेचा गया था।

टीटीएस कौन सी बीमारी है

फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ साझेदारी में वैक्सीन विकसित की है। ब्रिटेन के हाईकोर्ट में पेश दस्तावेजों में एस्ट्राजेनेका ने साइड इफेक्ट्स की बात कबूल की है। हालांकि, वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट्स को स्वीकार करने के बाद भी कंपनी इससे होने वाली बीमारियों या बुरे प्रभावों के दावों का विरोध कर रही है। अब सवाल उठता है कि टीटीएस यानी थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम क्या है। टीटीएस शरीर में खून में थक्के जमने यानी ब्लड क्लॉट की वजह बन रही है, जिसकी वजह से ब्रेन स्ट्रोक, कार्डियक अरेस्ट जैसे जानलेवा खतरे बढ़ते हैं। इसके अलावा इस सिंड्रोम की वजह से प्लेटलेट्स काउंट भी गिर सकता है।

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के लक्षण

• हार्ट अटैक के लक्षण

• नाक, मसूड़ों या महिलाओं में पीरियड के दौरान ज्यादा खून आना

• यूरीन में ब्लड आना

• स्किन पर बैंगनी-लाल रंग के दाने होना, जिसे पेटीचिया भी कहते हैं

 

थ्रोम्बोसाइटोपेनिया का इलाज

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया कई दिनों या सालों तक रह सकता है। इस बीमारी की गंभीरता के आधार पर इसका इलाज होता है। अगर यह समस्या किसी दवा या वैक्सीन से हुआ है तो डॉक्टर जांच के आधार पर इलाज करते हैं। जब प्लेटलेट का लेवल काफी कम हो जाता है, तब डॉक्टर खोए ब्लड को पैक्ड लाल रक्त कोशिकाओं या प्लेटलेट्स के बदल सकते हैं। अगर मरीज की कंडीशन इम्यून सिस्टम की समस्या से जु़ड़ी है तो डॉक्टर प्लेटलेट काउंट बढ़ाने के लिए दवाईयां लिख सकते हैं।

भारत सुपरपावर बन रहा और हम भीख मांग रहे... पाकिस्तानी संसद में फूटा विपक्षी नेता का गुस्सा, शहबाज सरकार को सुनाई खरी-खरी

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आज भारत दुनिया के शक्तिशाली देशों में गिना जाने लगा है। हाल के सालों में भारत ने हर क्षेत्र में तरक्की की है। जिसका लोहा अमेरिकी-रूस जैसे देश भी मानने लगे हैं।यहां तक की पाकिस्तान भी जितना भारत का विरोध कर ले, लेकिन एक बात वो भी मानने लगे हैं कि हिंदुस्तान बहुत आगे निकल गया है। इस बीच पाकिस्तान के शीर्ष नेता और जमीयत उलेमा ए इस्लाम (एफ) के अध्यक्ष मौलाना फजलुर रहमान ने अपने ही देश के सरकार को आईना दिखाने की कोशिश की है।

पाकिस्तान के प्रमुख दक्षिणपंथी इस्लामी नेता मौलाना फजलुर रहमान सोमवार को अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थन में सामने आए और कहा कि विपक्षी दल को रैलियां आयोजित करने और यहां तक कि सरकार बनाने का भी अधिकार है। जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल (जेयूआई-एफ) के अपने गुट के प्रमुख रहमान ने पाकिस्तानी नेशनल असेंबली में सोमवार को जोरदार भाषण दिया और कथित तौर पर राजनीतिक व्यवस्था में हेराफेरी यानी चुनाव में धांधली करने के लिए शक्तिशाली प्रतिष्ठान की आलोचना की।

उन्होंने कहा, रैली करना पीटीआई का अधिकार है। हमने 2018 के चुनाव पर भी आपत्ति जताई थी और हमें इस (8 फरवरी के चुनाव) पर भी आपत्ति है। अगर 2018 के चुनाव में धांधली हुई थी, तो मौजूदा चुनाव में धांधली क्यों नहीं हुई? बता दें कि पीटीआई नेता असद कैसर ने रैली आयोजित करने के लिए पार्टी के अधिकार की मांग की थी। रहमान ने अपने भाषण में कहा कि असद कैसर की मांग सही है और रैली आयोजित करना पीटीआई का अधिकार है।

अपने भाषण के दौरान उन्होंने भारत के साथ समानताएं व्यक्त कीं। उन्होंने कहा, जरा भारत और हमारी तुलना करें… दोनों देशों को एक ही दिन आजादी मिली थी, लेकिन आज वे (भारत) महाशक्ति बनने का सपना देख रहे हैं और हम दिवालिया होने से बचने के लिए भीख मांग रहे हैं। उन्होंने कहा कि फैसले कोई और लेता है लेकिन समस्याओं के लिए राजनेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाता है।

रहमान ने इस्लामिक सिद्धांतों को बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए काउंसिल ऑफ इस्लामिक आइडियोलॉजी (सीआईआई) की सिफारिशों को लागू करने में विफलता पर भी अफसोस जताया। मौलाना फजल उर रहमान ने कहा कि हमें देश इस्लाम के नाम पर मिला था, लेकिन आज हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बन गए हैं. 1973 के बाद से सीआईआई की एक भी सिफ़ारिश लागू नहीं की गई है। हम एक इस्लामिक देश कैसे हो सकते हैं। सीसीआई एक संवैधानिक निकाय है जिसे कानूनों के इस्लामीकरण में मदद करने के लिए स्थापित किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान दिवालिया होने से बचने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भीख मांग रहा है।