आर्य समाज मंदिर, जहानाबाद में मनाई गई महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती
जहानाबाद : आज दिनांक 11/02/2024 दिन रविवार को स्थानीय आर्य समाज मंदिर, जहानाबाद में महान समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी का 200वा जन्मजयंती समारोह का आयोजन किया गया| जिसमे प्रातः 8 बजे से वैदिक महायज्ञ का आयोजन किया गया।
यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य प्रकाश चंद्र आर्य तथा आचार्य दीप नारायण शास्त्री जी एवं चार सपत्नीक यजमान अजय आर्य, और संजय कुमार, डॉ. संतोष कुमार, राकेश ने यज्ञ किया। जिसमे स्वस्तिवाचन के मंत्रों का पाठ कर पूरे विश्व के कल्याण की कामना की तथा शांतिप्रकरण के मंत्रों का पाठ कर पूरे विश्व में शांति स्थापित हो इसकी प्रार्थना की | इसके बाद वेद मंत्रों से सबों ने आहुति दी |
इसके बाद आचार्य प्रकाश चंद्र आर्य ने स्वामी दयानंद जी के जीवन पर चर्चा करते हुए बतया की स्वामी जी वेदों का अध्ययन कर पूरे देश में वेदों का प्रचार, भारतीय संस्कृति और शिक्षा के गौरव को पुनः स्थापित किया| स्वामी जी ने वेदों को सनातन धर्म का मूल धर्म ग्रंथ बतया क्योंकि वेद आदि ग्रंथ है |
उन्होंने वेदों का भाष्य किया, अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश, आर्योंदेशरत्नमाला, गोकरुणानिधि सहित दर्जनों ग्रंथों की रचना की |देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले में स्वामी दयानंद जी की भूमिका महत्वपूर्ण थी उनके ही प्रेरणा से शहीद भगत सिंह, लाला राजपात राय, राम प्रसाद विस्मिल , वीर सवारकर, असफाक उल्लाह खान ये सभी स्वामी जी के विचरों से प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई में कूदे थे | 1857 की क्रांति की प्रमुख सूत्रधारो में से एक थे। लोगों को उनके भारतीय शिक्षा और सांकृति से अवगत करा कर उसे पुनः स्थापित किया | विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा, सब को वेद पढ़ने का अधिकार दिया तथा छुआ- छूत, अंधविस्वास को खत्म कर लोगों को तार्किक बनने का संदेश दिया | गोकरुणानिधि नामक पुस्तक की रचना कर गोरक्षिणी सभा का गठन किए और उनके ही प्रेरणा से उस समय के देशी रियासत ने अपने यहां गोरक्षिणी गौ रक्षा और संवर्धन के लिए स्थापित किए।
स्वामी जी प्रत्येक मनुष्य को पंचमहायज्ञ धारण करने के लिए कहा जिससे की पूरे संसार का कल्याण संभव है जिसमे प्रथम यज्ञ संध्या है जिसे प्रातः साँय परमात्मा का ध्यान योग और स्वाध्याय है दूसरा देवयज्ञ जिसे हवन कहा जाता है जिससे पर्यावरण की शुद्धि हेतु औषधि की आहुति दी जाती है तीसरा पितृयज्ञ जिसमे माता-पिता और घर परिवार के वृद्ध कि सेवा चौथा अतिथि यज्ञ जिसमे विद्वान, गुरुजनो की सेवा सत्कार पाँचवा बलिवैश्य देवयज्ञ जिसमे पशु पंछी असहायों की सेवा करना है जिसमे पूरे समाज और विश्व का कल्याण निहित है |
इसके बाद आचार्य दीपनारायण शास्त्री ने बताया कि महर्षि दयानंद सरस्वती जी जिनके बचपन का नाम मूल शंकर था जो टंकारा गुजरात में एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया । उनके पिता कर्षण जी तिवारी एक शिव भक्त थे। मूल शंकर भी शिव भक्त थे लेकिन शिवरात्री के व्रत के बाद वो सच्चे शिव अर्थात परमात्मा की खोज में निकल गए। विभिन्न संतों और गुरुओं के सानिध्य में अध्ययन किया लेकिन वेदों की शिक्षा गुरुवर वीरजानंद दंडी से प्राप्त कर वेदों के प्रचार प्रसार में तथा स्वदेशी और स्वराज्य के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिए। आर्य समाज की स्थापना की| आर्य का अर्थ श्रेष्ठ, आदर्श है सब श्रेष्ठ बने | उनके ही शिष्य हंसराज के द्वारा डीएवी स्कूल की स्थापना की गई जो आज शिक्षा का अलख जन जन तक फैला रहा है।
अंत में धन्यबाद ज्ञापन आर्य समाज जहानाबाद के प्रधान अजय कुमार आर्य जी ने किया| कार्यक्रम के मुख्य आयोजक आर्य समाज जहनाबाद के प्रधान अजय आर्य, कोषाध्यक्ष महेंद्र प्रसाद, प्रकाश चंद्र आर्य, सरिता देवी जी रहे एवं विशेष सहयोग विनोद चंचल, सुजीत आर्य, आशुतोष, अनिल आर्य, योगगुरु राकेश, संजय आर्य, डॉ संतोष कुमार, सत्य प्रकाश, सरिता देवी, सुचांदनी, योगशिक्षिका रंजना, शोभा, मंजू, राजू प्रसाद इत्यादि गणमान्य लोगों का विशेष सहयोग किया | कार्यक्रम का समापन शांति पाठ एवं ओउम के जय घोष के साथ हुआ।
जहानाबाद से वरुण कुमार
Feb 17 2024, 19:38