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अयोध्या धाम की पहचान है सरयू संदर्भ : जा मज्जन से बिनही प्रयासा। मम समीप नर पावहि वासा।।
शबरी की तरह सरयू को भी परम विश्वास था कि भगवान श्री राम जरूर आयेंगे। इसकी निर्मल धारा प्रभु के चरण स्पर्श को व्याकुल हो रही है। प्रभु श्री राम के गौ लोक गमन के बाद से चुपचाप अविरल कलकल बहती रही और सदियों तक कई झंझावातों को झेलते हुए अपने हृदयेश्वर प्रभु श्री राम के दर्शन का इंतजार करती रही।
त्रेता युग में भगवान श्री राम के जन्म स्थान और राज्य की राजधानी अयोध्या सरयू तट पर ही स्थित थी। कहा जाता है कि प्रभु श्री राम की बाल लीलाओं के दर्शन के लिए ही सरयू नदी का धरती पर आगमन श्री राम के जन्म से पहले ही हुआ था।
इसके बाद हजारों हजार साल बाद एक बार फिर सरयू अपने राम लला को भव्य , अलौकिक, सुंदर, अद्भुत और अकल्पनीय मंदिर में विराजित होते देखेगी। सरयू नदी का उल्लेख प्राचीन हिंदू वेद- पुराणों, धर्म शास्त्रों और रामचरितमानस में भी मिलता है। यह करोड़ लोगों की आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ साधु - संतों और तपस्वियों के लिए भी  पूज्यनीय हैं।
सरयू आज अपने आराध्य श्री राम की अयोध्या नगरी को पुनः राम राज वाली अयोध्या के रूप में बदलते हुए देख रही है। आज अयोध्या सारे विश्व में एक अद्भुत और निराली दुनिया के रूप में विकसित हो रही है। इससे लगता है कि वह पुरानी भव्यता की ओर लौट रही है।
अत्याधुनिक रेलवे स्टेशन ( अयोध्या धाम जंक्शन ) , एयरपोर्ट ( महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा)  और बस स्टैंड ( अयोध्या धाम बस स्टेशन)  सहित न जाने अन्य कितनी आधुनिक सुविधाएं लोगों को उपलब्ध होती जा रही है। आज सरयू के घाटों की छटा ही निराली दिखती है। आज सरयू और अयोध्या नगरी सारे विश्व में एक दिव्य पर्यटन स्थल के रूप में उभर रही है ।
आज अयोध्या अपने अद्वितीय अतीत के पुनरुत्थान की ओर अग्रसर है। प्रभु श्री राम की बाल लीला स्थली सरयू और अयोध्या के बारे में श्रीरामचरित मानस में परम पूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि भगवान श्री राम को अयोध्या और सरयू काफी प्रिय थे। आज
             दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहीं काहुहि ब्यापा।।
             सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
की गूंज अयोध्या नगरी से निकल कर पूरे भारत समेत सारे विश्व में फैले और सभी लोग परस्पर प्रेम भाव से रहें। प्रभु श्री राम ने खुद कहा है कि
         अवधपुरी मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिशा बह सरयू पावनि।।




मानव का रिमोट अब मशीनों के हाथ में होगा ? संदर्भ : सभी क्षेत्रों में बढ़ती एआई की उपयोगिता
मशीनों का रिमोट मनुष्य के हाथ में है। यह अब मशीनों के हाथ में जा सकता है। एआई ( आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से यह मुमकिन लगता है। जिस तरह से इसकी उपयोगिता बढ़ रही है, उससे जाहिर होता है कि मनुष्य बहुत जल्द इसका आदी हो सकता है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पूरी तरह से कंप्यूटरिंग सिस्टम पर आधारित है। अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक जॉन मैकार्थी को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जनक माना जाता है। इसकी शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी।
सरल शब्दों में इसे मशीनों द्वारा प्रदर्शित किया जाने वाला इंटेलिजेंस कह सकते हैं। इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी कहा जा सकता है। इस विषय पर 'स्टार वार', 'मैट्रिक्स', 'रोबोट', 'टर्मिनेटर', 'ब्लेड रनर' जैसी हॉलीवुड फिल्में बन चुकी हैं। 1997 में शतरंज के महान खिलाड़ी गैरी कास्पोरोव को एआई वाले सिस्टम ने ही हराया था।
एआई एक विज्ञान है जो कंप्यूटर और मशीनों को संज्ञान (  किसी भी विषय में जानना ), विचार और निर्णय लेने की क्षमता से लैस करता है।  इसका उद्देश्य है कि मशीनें मानव की तरह सोचें , सीखें, कार्य करें और समस्याओं का हल निकालें। आज सारी दुनिया समझ चुकी है कि आने वाला समय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ही है। इसमें जितने भी नये-नये शोध हो रहे हैं, उससे शोधकर्ताओं को ब्रह्मांड से लेकर मानव शरीर तक हर चीज को बेहतर ढंग से समझने में आसानी हो रही है।
आने वाले वर्षों में एआई पद्धति द्वारा संचालित स्वास्थ्य देखभाल, यातायात और मनोरंजन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की उम्मीद है। इसका विकास अग्रसर है और यह हमारे दैनिक जीवन में और अधिक स्वीकार्य हो जायेगा, जिससे उत्पादकता, दक्षता और सुविधा बढ़ेगी।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भविष्य में बहुत योगदान हो सकता है। हेल्थ,ऑटो, डिफेंस और सिक्योरिटी , मैन्युफैक्चरिंग, एजुकेशन, इंटरटेनमेंट,  वर्चुअल रियलिटी, बैंकिंग एंड फाइनेंस, वर्क प्लेस आदि में एआई एक नयी क्रांति लाने वाला है।
आज बड़े पैमाने पर दुनिया के विकसित देश डाटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास को लेकर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। चैटजीपैट नामक एआई टूल काफी चर्चा में है। ये ऐसा टूल है जिससे आप कोई सवाल पूछते हैं तो यह आपको उसका लिखित जवाब देता है। बच्चे इसे खूब पसंद कर रहे हैं। आज दुनिया के सारे देश अपना- अपना एआई सिस्टम डेवलप कर रहे हैं।
इस तरह जहां एआई से कई तरह के फायदे हैं तो इसके नुकसान भी हो सकते हैं। दुनिया में जिस प्रकार से इसका उपयोग किया जा रहा है, उससे भविष्य में नौकरियां खत्म होने का खतरा बढ़ सकता है। ज्यादा खतरा फिल्म और ग्राफिक्स डिजाइनिंग के क्षेत्र में है। इस क्षेत्र में इसका काफी प्रयोग किया जा रहा है और इसके परिणाम भी आश्चर्य जनक हैं। साथ ही निजी सुरक्षा में भी सेंध लग सकती है। इसका सदुपयोग के साथ - साथ दुरुपयोग भी हो सकता है।
सीट शेयरिंग पर फंसा पेंच संदर्भ : कौन सी पार्टी दिखायेगी दरियादिली
I.N.D.I.A गठबंधन आज तक अपना संयोजक नहीं चुन पाया है, सीटों की शेयरिंग तो दूर की बात है। इस गठबंधन के लिए सीटों का बंटवारा करना मेंढ़कों को तौलने जैसा है। फिल्म "आशा" के एक गाने की लाइन याद आती है " एक को मनाओ, तो दूसरा रूठ जाता है।
दूसरी ओर भाजपा लोकसभा चुनाव की तैयारी के मामले में इंडी गठबंधन से काफी आगे बढ़ चुकी है। इंडी गठबंधन में कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा, इसको लेकर अभी तक मंथन ही चल रहा है। आज तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया है।
जदयू अपनी सीटिंग 16 सीटों पर अपना दावा जता रहा है।  बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। इनमें भाजपा 17, जदयू 16, लोजपा 6 और कांग्रेस की मात्र एक सीट है। वहीं राजद को 2019 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी।
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर अस्तित्व में आये इंडी गठबंधन की अब तक जितनी भी बैठकें हुई हैं, उनमें सीटों की शेयरिंग पर कोई सहमति आज तक नहीं बन पायी है।
हां,  एक निर्णय सभी बैठकों में अवश्य लिया गया कि सीटों के बंटवारे पर बातचीत को जल्द से जल्द अंतिम रूप दिया जाना चाहिए। बिहार की 40 लोकसभा सीटों के लिए कांग्रेस, जदयू और राजद में खींचतान जारी है। सूत्रों के अनुसार जदयू  16 से कम सीटों पर कोई समझौता नहीं करना चाहता। जदयू की यही बात कांग्रेस और राजद को पच नहीं रही।
सीटिंग सीटों के फार्मूले के हिसाब से जदयू 16 और कांग्रेस एक अर्थात 17 सीटों का मामला तय है। बाकी बच्ची 23 सीटें कांग्रेस, राजद और लेफ्ट आपस में बाटेंगे। इनका क्या अनुपात होगा यह तो इंडी गठबंधन की अब जो भी बैठक होगी, उसी में तय हो सकेगा।
देश में जिस तरह का माहौल है और इंडी गठबंधन के नेता जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं, इससे लगता है कि गठबंधन को कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है।
और अंत में भाई, ये पब्लिक है सब कुछ जानती है।
गैजेट्स के गुलाम न बनें, सावधान रहें संदर्भ : मेटावर्स पर दुष्कर्म
आधुनिक युग में गैजेट्स के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। हर क्षेत्र में इनकी जरूरत है। दाढ़ी बनानी है ट्रिमर हाजिर है। शारीरिक जानकारी चाहिए स्मार्ट वॉच है। क्या नहीं है बाजार में। एक तरह से हम कह सकते हैं कि हम उन्हें पर निर्भर हो गये हैं।
यह सच भी है कि गैजेट्स और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जीवन में आवश्यक भूमिका निभाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के कारण ही दिव्यांग लोगों की जिंदगी में भी काफी समस्याएं हल हो पायी हैं।  गैजेट्स ने मनुष्य के जीवन को आरामदायक और आनंददायक बना दिया है।
यह विचित्र बात है कि मनुष्य ने ही मशीनें बनायीं मगर अब वह खुद इन मशीनों का गुलाम हो गया है। कुछ गैजेट्स ऐसे हैं जिनके बिना हम नहीं रह सकते। वह हैं लैपटॉप, स्मार्टफोन,  स्मार्ट वॉच, ग्राइंडर, ट्रिमर आदि। गर्मी में एसी और सर्दी में हीटर उपलब्ध है। इन गैजेट्स  के कारण ही परिजनों के बीच निकटता आती है। ये हमारे अकेलेपन को दूर करते हैं।
पर दूसरी ओर कहा जाता है कि "अति सर्वत्र वर्जते " मतलब गैजेट्स मददगार हैं तो ये हानिकारक भी हो सकते हैं। इनकी लत से बचें।
आज इंटरनेट और कुछ गैजेट्स के माध्यम से एक ऐसे काल्पनिक पात्र के रूप में काल्पनिक दुनिया ( मेटावर्स )  में विचरण कर सकते हैं और वो सभी काम कर सकते हैं जो आप वास्तविक जीवन में करते हैं। इसे हम भौतिक दुनिया का आन लाइन थ्री डी रूप कह सकते हैं।
परंतु हर चीज के दो पहलू होते हैं, हानि और लाभ। जब हम काल्पनिक दुनिया में वास्तविक जीवन जीते हैं, तो यहां की बुराइयां उस काल्पनिक दुनिया में भी होंगी। उससे सावधान रहने की जरूरत है। इस तरह की घटना लंदन में हुई है।
जाको राखे साइयां मार सके ना कोय संदर्भ : जापान में चमत्कार
फिल्म हैरी पॉटर में एक पक्षी था फीनिक्स। बताते कि वह अपनी राख से ही जन्म लेता है। ठीक उसी तरह जापान ही एक ऐसा देश है, जो अपनी राख से दोबारा उठ खड़ा हुआ है। 
परमाणु  हमले से तबाह हुए हिरोशिमा और नागासाकी को दोबारा बसाने में जापान ने काफी मेहनत की है। सिस्टमेटिक डेवलपमेंट और जल स्रोतों के बेहतर मैनेजमेंट के कारण आज हिरोशिमा और नागासाकी काफी सुंदर दिखते हैं। दुनिया भर से लाखों की तादाद में सैलानी हर साल यहां आते हैं। हिरोशिमा मेमोरियल और म्यूजियम लोगों को परमाणु हमले की तबाही की याद दिलाते हैं।
परमाणु हमले की मार झेल चुका जापान आज अपनी तकनीक और  मेहनत की बदौलत दुनिया के सबसे विकसित देशों में शामिल है। वह अपनी परमाणु तकनीक का शांतिपूर्ण तरीके से ऊर्जा उत्पादन के लिए इस्तेमाल करने का समर्थन करता है। आज जापान विकास के नये- नये अध्याय जोड़ रहा है और दुनिया भर के बाजारों में अपना दबदबा कायम कर रहा है।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका के बम वर्षक विमान ने 6 अगस्त , 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर पर "लिटिल ब्वाय"नामक परमाणु बम से हमला किया था । इसके तीन दिन बाद ही  अमेरिका ने 9 अगस्त को जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर "फैट मैन" नामक दूसरा परमाणु बम गिराया। इन परमाणु हमलों से हजारों लोगों की तत्क्षण मौत हो गयी। यह मानव जाति के इतिहास में पहला और आखिरी परमाणु हमला था। इस परमाणु हमले को 1941 के अमेरिका के नौसैनिक बेस "पर्ल हार्बर" पर किये गये जापानी हमले का बदला माना जाता है।
वहीं नया साल 2024  जापान के लिए शुभ साबित नहीं हुआ। साल के पहले दिन ही जापान भीषण भूकंप से कांप उठा। वहीं साल के दूसरे दिन टोक्यो एयरपोर्ट पर लैंडिंग के बाद एक यात्री विमान रनवे पर खड़े दूसरे विमान से टकरा गया, जिससे उसमें आग लग गयी। मगर इसे चमत्कार ही कहेंगे कि इमरजेंसी गेट से जैसे ही सभी  379  यात्री सुरक्षित बाहर निकले, उसके कुछ देर बाद विमान में धमाका हुआ।
इस प्रकार "जाको राखे साइयां मार सके ना कोय " वाली कहावत  चरितार्थ हुई। नये साल की शुरुआत जापान के लिए दुखद और सुखद कही जा सकती है।

तनाव से दूर रहें, हार्ट स्वस्थ रहेगा संदर्भ : दिल के मरीजों की बढ़ती जा रही है संख्या
एक समय था जब हार्ट अटैक को बड़े - बूढों की बीमारी माना जाता था। लेकिन आजकल 25- 30 - 40 की उम्र वाले भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। सिद्धार्थ शुक्ला ( बिग बॉस के विजेता) , केके(  प्लेबैक सिंगर) ,  राजू श्रीवास्तव ( कॉमेडियन)  इसके उदाहरण कहे जा सकते हैं। आजकल हार्ट अटैक के मामले युवाओं में काफी तेजी से बढ़ रहे हैं।
आधुनिक युग और पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध से बदली जीवन शैली, गलत खानपान, किसी भी कारण को लेकर अत्यधिक तनाव, नींद पूरी न हो पाना और सिगरेट - शराब का अत्यधिक सेवन आदि भी हार्ट अटैक का कारण बन रहा है।
कॉरपोरेट कल्चर में ऑफिस के काम करने के तरीकों में बहुत बदलाव आया है। काम का बोझ,  टारगेट पूरा न हो पाना और कंपटीशन के चलते युवा हमेशा तनाव में रहते हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि वह अपने तनाव को कम करें। इसके लिए एक समय में एक ही काम करें। मल्टी टॉक्सकिंग से बचें। कोरोना काल में " वर्क एट होम " की मजबूरी अब आफत बनती जा रही है। वर्तमान समय में ज्यादातर लोग घर से ही काम कर रहे हैं। ऐसे में युवा एक ही जगह पर लगातार काफी देर बैठे रहते हैं। उनके पास एक्सरसाइज या कोई दूसरी फिजिकल एक्टिविटी के लिए समय नहीं रहता।
बदलती जीवन शैली के कारण युवाओं में डायबिटीज, हाइपरटेंशन आदि का जोखिम बढ़ता जा रहा है। आजकल युवाओं की पहली पसंद फास्ट फूड बने हुए हैं। गलत खानपान के कारण शरीर में कोलेस्ट्रॉल बढ़ता जाता है और इंसुलिन की मात्रा कम होने लगती है। इससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। आज युवाओं का ज्यादातर समय फोन और लैपटॉप पर बीतता है। स्क्रीन टाइम ज्यादा होने से उनकी नींद पूरी नहीं होती। इससे शरीर पर बुरा असर पड़ता है। इस स्थिति को देखते हुए लोगों को सावधान होने की जरूरत है।
और अंत में नियमित व्यायाम ( एक्सरसाइज) और स्वस्थ भोजन को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। हृदय को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम बहुत ही जरूरी है। इसलिए स्वस्थ जीवन शैली अपनायें और मस्त रहें।
ज्ञान अर्जित कर मनुष्य बनें संदर्भ : राजद विधायक के बिगड़े बोल
मनुष्य के नीचे गिरने की कोई सीमा नहीं होती । वह पशुता से भी नीचे जा सकता है । यह मनुष्य की फितरत है । यह गिरावट उसके संस्कार , ज्ञान और विवेक पर निर्भर करती है । वेदों में सभी मनुष्यों को उपदेश दिया गया है कि "मनुर्भव" अर्थात ज्ञान अर्जित कर मनुष्य बनो।
जिनके पास पूर्ण बुद्धि और विवेक होता है वह उत्तम पुरुष कहलाता है । वहीं अल्प बुद्धि वाला मनुष्य मनुष्य रूपी पशु के समान होता है।
आजकल लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए कुछ लोग ( I.N.D.I.A. गठबंधन के)  कभी सनातन धर्म तो कभी हिंदू देवी-देवताओं के बारे में विवादास्पद बयान बाजी करते रहते हैं। इससे सनातन धर्मियों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है। वहीं इस तरह के बयान देने से सनातन धर्म का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। संसार के करीब करीब सभी धर्मों में वर्णन है कि किसी भी धर्म का अपमान नहीं करना चाहिए।
कहा भी गया है कि जिसका न प्रारंभ है और जिसका न अंत है, उस सत्य को ही सनातन कहा जाता है। एक उदाहरण से इसे समझते हैं कि अलग-अलग रंगों की गायों का दूध सफेद ही होता है। उसी तरह अलग-अलग धर्मों, पंथों और मतों आदि के द्वारा भी एक ही तरह की शिक्षा दी जाती है कि सभी धर्मों का आदर करें।
और अंत में किसी के कुछ भी कह देने से कुछ भी नहीं हो सकता। इस तरह के नेताओं के बयान से इंडी गठबंधन की लुटिया ही डूबेगी। लोकसभा चुनाव से पहले इस तरह के बयानों से विपक्षियों को ही नुकसान होगा।
नया साल लाये जीवन में एक नया उत्साह संदर्भ : 2023 अलविदा
नये साल का पहला दिन एक वैश्विक पर्व की तरह मनाया जाता है। इसे मनाने की परंपराएं दुनिया की तरह रंगीन हैं। यह सारी दुनिया के लिए नयी उम्मीदों, नयी शुरुआत तथा आने वाले समय के रोमांच को अनुभव करने का उत्सव है।
नये साल का पहला दिन आपके जीवन में प्रियजनों के करीब आने और खोये हुए  दोस्तों के साथ संपर्क को पुनर्जीवित करने का एक शानदार अवसर है। सभी लोग बीत रहे साल को अलविदा कह नये साल का इस उम्मीद के साथ स्वागत करते हैं कि यह सबके जीवन में बहुत सारी खुशियां लेकर आयेगा।
हर साल की तरह इस साल भी अलग-अलग देशों में नये साल के उत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं।
नया साल लाये जीवन में एक नया उत्साह।
महक उठे बगिया सबकी पाकर इसका प्यार।।
और अंत में नया साल सभी लोगों के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आये।
नये साल की शुभकामनाएं।
शिक्षा और जागरूकता ही है हल संदर्भ : जादू - टोना कर आठ साल की बच्ची की हत्या
जादू हाथ की सफाई के साथ-साथ विज्ञान, गणित, कला तथा बातों से प्रभावित करने की क्रिया कही जा सकती है। इसमें कभी-कभी सम्मोहन विद्या का भी प्रयोग किया जाता है।  जो जादू स्टेज पर जादूगर या मैजिशियन दिखाते हैं या जो स्वयंभू बाबा लोग हवा में हाथ हिला कर भभूत या सोना निकाल कर दिखाते हैं या सड़क पर जो मदारी अपना करतब दिखाते हैं, वह सिर्फ और सिर्फ हाथ की सफाई ही होता है।
जादू- टोना एक प्रकार से अंधविश्वास है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। भारत में भी जहां अशिक्षा है और पिछड़े इलाके हैं, वहां डायन आदि के आरोप लगाकर महिलाओं को सार्वजनिक रूप से सजा दी जाती है। डायन प्रथा बिहार के कई इलाकों में आज भी बदस्तूर जारी है। इसमें जादू -टोना के नाम पर महिलाओं की बलि तक दे दी जाती है। अफसोस की बात यह है कि आधुनिक युग में भी हमारा समाज जादू -टोना जैसी मानसिकता से ग्रस्त है।
संपत्ति विवाद है कारण : जादू -टोना और डायन के नाम पर सामाजिक अत्याचारों का शिकार हुई महिलाओं में करीब 90% मामलों की जड़ में संपत्ति या जमीन विवाद ही शामिल होता है। दूसरी ओर जब कोई महिला पुरुष प्रधान समाज में मूल्य एवं सामंती सांस्कृतिक प्रतिमानों को जब अस्वीकार करती है तो उसे डायन करार दे दिया जाता है। इसे अंजाम देने में गांव के प्रमुख लोग, पंचायत और परिजन आदि ही शामिल होते हैं। बिहार के सुदूर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को डायन बताकर उनको प्रताड़ित ( हत्या तक) करने की प्रथा आज भी जारी है।
बिहार में हाल ही में जादू -टोना के नाम पर एक आठ साल की बच्ची की हत्या कर दी गयी । तांत्रिक क्रियाओं से जुड़ी हत्याओं को अंधविश्वास और अशिक्षा से जोड़ना आसान लगता है, लेकिन ऐसे मामलों में शिक्षित, मध्यवर्गीय परिवारों से जुड़े लोग भी शामिल पाये जाते हैं। इसलिए इस तरह की घटनाओं का गहरा विश्लेषण जरूरी हो जाता है ।
और अंत में इस सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए कानून बनाने से केवल आधी जीत ही हासिल होगी, क्योंकि अभी अंधविश्वास, जादू - टोना या मानव बलि से निपटने के लिए कोई कानून नहीं है। केवल आईपीसी ( इंडियन पेनल कोड) की कुछ धाराओं के तहत ऐसे अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है।इसकी पूर्णत: रोकथाम के लिए समुदायों, धार्मिक गुरुओं आदि को शामिल कर लोगों के बीच जागरूकता लानी होगी।
सब डोल रहे गलबहियां डाल संदर्भ : इंडी का पीएम चेहरा कौन
आत्म सम्मान को ताक पर रख कर डोल रहे गलबहियां डाल।
सभी चाहते पीएम बनना मगर नहीं गल रही किसी की दाल।।
अंग्रेजों की राह पर चल कर बांट रहे हैं लोगों को।
घटक दलों की कारस्तानी से सभी नोचते अपने बाल।।
मुफ्त की रेबड़ी बांट रहे सब सोच रहे होगा कल्याण।
इंडी का चेहरा बनने को सभी चल रहे अपनी चाल।।
जदयू में लग रही सेंध और कांग्रेस हो रही बेचैन।
चुनावी समर पार करने को सभी का हो रहा हाल बेहाल।।

रविशंकर शर्मा