*महात्मा गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता- कुलपति*
लखनऊ।उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज के मानविकी विद्या शाखा के तत्वावधान में सोमवार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती व अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर ‘‘भारतीय संस्कृति में अहिंसा‘‘ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफेसर प्रेम प्रकाश दुबे, निदेशक, कृषि विद्या शाखा ने कहा कि मन में किसी का अहित न सोचना ही अहिंसा है। इसी प्रकार कटु वाणी द्वारा दूसरों को नुकसान न पहुँचाना तथा सभी प्राणियों के प्रति दयाभाव रखना ही अहिंसा है। अहिंसा का सामान्य अर्थ है ‘हिंसा न करना‘ । इसका व्यापक अर्थ है किसी भी प्राणी को तन,मन,कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना।
प्रोफेसर दुबे ने कहा कि सत्य ही विधान है और उसको लागू करने का सही तरीका अहिंसा है। उन्होंने अहिंसा शब्द का प्रतिपादन करने वाले महर्षि पाणिनी से संबंधित प्रसंग का जिक्र किया एवं कहा कि महात्मा गांधी के अनुसार जो हमारे मन में प्रथम भावना आती है वही सत्य है, बाद में जो विचार आता है वह असत्य का होता है।
गांधी जी को सत्य एवं अहिंसा के प्रति दो नाटकों से प्रेरणा मिली जिसमें प्रथम नाटक श्रवण कुमार एवं द्वितीय राजा हरिश्चन्द्र से संबंधित था।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए समन्वयक प्रोफेसर सत्यपाल तिवारी, निदेशक, मानविकी विद्याशाखा ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कीे राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका थी। गांधी जी अहिंसा को बहुत बड़ी शक्ति मानते थे। अहिंसा को वीरों का आभूषण माना जाता है। उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में ‘करो या मरो‘ का नारा दिया। गांधी जी ने सनातन धर्म के दस गुणों में से अहिंसा को ग्रहण किया एवं उसका अनुसरण किया।
इसी प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भारत की अस्मिता को बचाने के लिए अपने शरीर तक को न्योछावर कर दिया। उन्होंने भारत में हरित क्रान्ति को बढ़ावा दिया जिससे भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना। उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान‘ का नारा दिया।
वाचिक स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. सतीश चन्द्र जैसल ने कहा कि सत्य सर्वोच्च कानून है तो अहिंसा सर्वोच्च कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि गांधी जी के ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम‘ ‘सबको सम्मति दे भगवान‘ के गीत से भारतीय समाज में सदभावना का विकास होता है। इसी के मद्देनजर भारत में धर्म निरपेक्षता, पंथ निरपेक्षता का संविधान में प्रावधान किया गया है।
कार्यक्रम का शुभारंभ क्रमशः मां सरस्वती, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित सभी प्राध्यापकगणों ने महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर संयोजक उप निदेशक, मानविकी प्रोफेसर विनोद कुमार गुप्ता ने गांधी रिसर्च फाउंडेशन, जलगांव की अपेक्षा के अनुरूप कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को अहिंसा की प्रतिज्ञा दिलाई।
कार्यक्रम का संचालन डॉ साधना श्रीवास्तव ने तथा आभार ज्ञापन डॉ. अतुल कुमार मिश्र ने किया। कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह के निर्देश पर आयोजन सचिव डॉ. दयानन्द उपाध्याय ने अन्य संकाय सदस्यों के साथ दो दिवसीय स्वच्छता कार्यक्रम को संपन्न करवाया। इस अवसर पर परिसर को साफ सुथरा तथा हरा भरा रखने का संकल्प लिया गया।
कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह ने अपने संदेश में कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार ही हमें एक सूत्र में बांध कर रख सकते हैं। महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। उनके सादगीपूर्ण व्यक्तित्व को आज की पीढ़ी को आत्मसात करना चाहिए।
इसके साथ ही राज्यपाल सचिवालय के निर्देश पर विश्वविद्यालय के प्रयागराज, लखनऊ, बरेली, वाराणसी, गोरखपुर, झांसी, आगरा, मेरठ, नोएडा, कानपुर, आजमगढ़ तथा अयोध्या क्षेत्रीय केन्द्र पर अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस का आयोजन कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
Oct 02 2023, 22:27