*मनरेगा की सुस्त पड़ी रफ्तार, 63 को ही मिला 100 दिन का काम*
रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव
भदोही- महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की रफ्तार सुस्त पड़ गई है। सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर ग्राम प्रधान और अधिकारी उदासीन हैं। आलम यह है कि चालू वित्त वर्ष यानी 2023-24 में अब तक महज 63 परिवार को ही सौ दिन का काम मिला है।जिले में वित्त वर्ष 2008-09 में शुरू हुई योजना मनरेगा में अब तक अरबों रुपये खर्च हो चुके हैं। जिले में योजना की स्थिति जस की तस बनी हुई है।
रिकॉर्ड पर गौर किया जाए तो जिले में करीब एक लाख 87 हजार जॉब कार्डधारक पंजीकृत हैं। इसके सापेक्ष अब तक करीब एक लाख तीन हजार परिवारों को रोजगार मुहैया कराया गया है। शुरुआती दौर के छह वर्ष में तो स्थिति संतोषजनक रही, लेकिन चालू वित्त वर्ष में योजना पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है। अमृत सरोवर सहित अन्य प्रोजेक्ट भी ठप पड़े हैं। चालू वित्त वर्ष के पांच माह में पंजीकृत श्रमिकों में गिने-चुने ने ही रोजगार मांगा है। नियमानुसार रोजगार मांगने पर अगर विभाग काम नहीं देता है तो उसका भत्ता देना होता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए शुरू की गई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पूरी तरह फेल होती दिख रही है। मजदूरी कम मिलने के कारण भी श्रमिक इस योजना से मुंह मोड़ रहे हैं। सबसे बड़ा कारण तो यह है कि काम करने के बाद भी समय से मजदूरी नहीं मिल पाती है। ग्राम प्रधानों का कहना है कि काम करने के बाद मजदूरी नहीं मिलती है तो श्रमिक उनके घर पर विरोध करने पहुंच जाते हैं। कुछ तो जिलाधिकारी के यहां तक पहुंचकर शिकायत करते हैं कि उन्हें काम करने के बाद भी मजदूरी नहीं दी गई।
Sep 03 2023, 12:16