भारत से पहले भी कई देश भेज चुके हैं सूर्य मिशन, नासा का पार्कर सोलर प्रोब सूरज के अध्यय के लिए साबित हुआ है मील का पत्थर
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चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) अब सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य एल-1 मिशन लॉन्च करने जा रहा है।आज यह मिशन लॉन्च किया जाएगा। आदित्य-एल1 भारत का पहला जबकि दुनिया का 23 वां सौर मिशन है। जी हां, भारत से पहेल कई देशों ने सूरज का अध्ययन करने के लिए अपने मिशन भेजे हैं। सूर्य के अध्ययन के लिए अब तक केवल अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा, यूरोपीय स्पेस एजेंसी और जर्मन एयरोस्पेस सेंटर ने अलग अलग और संयुक्त अंतरिक्ष अभियान भेजे हैं। जिनमें कई अलग-अलग देशों को सफलता भी मिली है।
पहले जानते हैं कि भारत के आदित्य-एल1 मिशन के बारे में। आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला मिशन है। इसके साथ ही इसरो ने इसे पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन कहा है। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में स्थापित करने की योजना है जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर है। आदित्य एल-1 सौर कोरोना (सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग) की बनावट और इसके तपने की प्रक्रिया, इसके तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन (सूरज में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट जो सीधे पृथ्वी की ओर आते हैं) की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।
सबसे पहले और सबसे ज्यादा मिशन भेजे हैं नासा ने
सूर्य को जानने के लिए नासा ने तीन मुख्य मिशन भेजे हैं- सोहो (सोलर एंड हेलियोस्फ़ेरिक ऑब्जर्वेटरी), पार्कर सोलर प्रोब और आइरिस (इंटरफ़ेस रिजन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ़)।इसके अलावा नासा ने कई अन्य सूर्य मिशन भेजे हैं, जिनमें एस, विंड, हिनोड, सोलर डायनामिक्स ऑब्ज़र्वेटरी और स्टीरियो शामिल हैं।सोहो मिशन को नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने संयुक्त रूप से लॉन्च किया था। पार्कर सोलर प्रोब चार साल से सूर्य की सतह के सबसे क़रीब चक्कर लगा रहा है। आइरिस (इंटरफ़ेस रिजन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ) सूर्य के सतह की हाई रिजोल्यूशन तस्वीरें ले रहा है।सूर्य के अध्ययन में अभी तक सबसे बड़ा मील का पत्थर साबित हुआ है नासा का पार्कर सोलर प्रोब मिशन, जो सूर्य के सबसे क़रीब पहुंचने वाला एकमात्र अंतरिक्षयान है।
नासा का पार्कर सोलर प्रोब मिशन
नासा ने अगस्त 2018 में पार्कर सोलर प्रोब लॉन्च किया। उसके तीन साल बाद ही इसने अपने मकसद में क़ामयाबी हासिल कर ली। नासा ने 14 दिसम्बर 2021 में एलान किया कि पार्कर सोलर प्रोब सूर्य के ऊपरी वायुमंडल से होकर गुजरा था, जिसे कोरोना कहते हैं। उसने वहां आवेशित कणों के नमूने लिये और सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की जानकारी जुटाई। नासा ने दावा किया कि इतिहास में ये पहली बार हुआ कि किसी अंतरिक्ष यान ने सूर्य को ‘टच’ किया था। नासा कहना है कि इस अंतरिक्ष यान ने 28 अप्रैल 2021 को आठवां फ्लॉयबॉय किया (सूर्य के सबसे क़रीब उड़ान) और इसी दौरान उसने कोरोना (सौर आभा मंडल) में प्रवेश किया। इस मिशन ने जो डेटा जुटाया है उससे पता चलता है कि सोलर विंड में आड़े तिरछे जो आकार हैं, जिन्हें स्विचबैक्स कहते हैं, वे अपवाद नहीं बल्कि कॉमन हैं।
नासा का ईएसए के साथ सोलर आर्बिटर मिशन
फरवरी 2020 में नासा ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के साथ मिलकर सोलर ऑर्बिटर लॉन्च किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि सूर्य ने पूरे सौर मंडल में लगातार बदलते अंतरिक्ष वातावरण को कैसे बनाया और नियंत्रित किया। इसे 9 फ़रवरी 2020 में अंतरिक्ष में छोड़ा गया था और सात साल तक इसके काम करते रहने की संभावना है।सोलर आर्बिटर ने 30 मार्च 2022 को सूर्य के सबसे नजदीक (सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी के एक तिहाई दूरी पर) एक वीडियो बनाया है जिसे यूरोपीयन स्पेस एजेंसी ने जारी भी किया है।स्पेस एजेंसी के मुताबिक ये सूर्य के दक्षिणी ध्रुव से लिया गया है।ये अंतरिक्ष यान सूर्य और पृथ्वी की दूरी की एक चौथाई दूरी पर आम तौर पर चक्कर लगा रहा है। सोलर ऑर्बिटर 2025 में ग्रह शुक्र के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल करके अपने कक्ष में थोड़ा झुकेगा ताकि अंतरिक्ष यान के उपकरण सूर्य के ध्रुवों का अध्ययन कर सके।ये अंतरिक्ष यान सूर्य की अत्यधिक गर्मी को सहने लायक बनाया गया है। इससे सूर्य के सबसे अंदरूनी हिस्सों का अध्ययन किया जाना ताकि उसके बारे में बेहतर समझदारी हासिल की जा सके और उन चीजों के अनुमान भी लगाए जा सकें, जिनसे पृथ्वी पर जीवन संभव है।
जापान का सूर्य मिशन
जापान की जापान एयरोस्पेस एक्स्प्लोरेशन एजेंसी ने 1981 में अपना पहला सौर अवलोकन उपग्रह, हिनोटोरी लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य कठोर एक्स-रे का उपयोग करके सौर ज्वालाओं का अध्ययन करना था। जापान एयरोस्पेस एक्स्प्लोरेशन एजेंसी के अन्य सौर मिशनों की बात करें तो, 1991 में लॉन्च किया गया योहकोह (SOLAR-A) है, 1995 में एसओएचओ (नासा और ईएसए के साथ) और 1998 में NASA के साथ ट्रांजिएंट रीजन और कोरोनल एक्सप्लोरर (TRACE)। 2006 में हिनोड (SOLAR-B) मिशन लॉन्च किया गया था, जो परिक्रमा करने वाली सौर वेधशाला योहकोह (SOLAR-A) का अगला चरण था। जापान ने इसे अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर लॉन्च किया था। वेधशाला उपग्रह हिनोड का उद्देश्य पृथ्वी पर सूर्य के प्रभाव का अध्ययन करना है।
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का मिशन
अक्तूबर 1990 में, ईएसए ने सूर्य के ध्रुवों के ऊपर और नीचे अंतरिक्ष के वातावरण का अध्ययन करने के लिए यूलिसिस लॉन्च किया था। नासा और और जापान एयरोस्पेस एक्स्प्लोरेशन एजेंसी के सहयोग से लॉन्च किए गए सौर मिशनों के अलावा, ईएसए ने अक्तूबर 2001 में Proba-2 लॉन्च किया था। प्रोबा-2, प्रोबा श्रृंखला का दूसरा मिशन है। प्रोबा-2 पर चार प्रयोग थे, जिनमें से दो सौर अवलोकन प्रयोग थे। ईएसए के आगामी सौर मिशन प्रोबा-3 और स्माइल हैं जिन्हे क्रमशः 2024 और 2025 में लॉन्च किया जाएगा।
Sep 02 2023, 11:39