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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भाया पहाड़ के फलों का राजा ‘काफल’, उत्तराखंड के सीएम धामी ने किए थे गिफ्ट, प्रदेश को प्रकृति ने दिए हैं उपहार


उत्तराखंड के काफल के दीवाने अभी तक आम जनता थी, लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस लिस्ट में शामिल हो गए हैं। पीएम मोदी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने काफल भेंट किए थे। इस काफल को खाकर पीएम मोदी इसके दीवाने हो गए। ये प्रधानमंत्री खुद कह रहे हैं।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट किये गए उत्तराखंड के प्रसिद्ध फल काफल उन्हें बहुत पसंद आए। प्रधानमंत्री मोदी ने पत्र के माध्यम से मुख्यमंत्री धामी का आभार व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को संबोधित अपने पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि देवभूमि उत्तराखंड से भेजे गए रसीले और दिव्य मौसमी फल ‘काफल’ प्राप्त हुए।

पीएम मोदी ने आगे लिखा कि हमारी प्रकृति ने हमें एक से बढ़कर एक उपहार दिए हैं और उत्तराखण्ड तो इस मामले में बहुत धनी है, जहां औषधीय गुणों से युक्त कंद-मूल और फल-फूल प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैँ। काफल ऐसा ही एक फल है जिसके औषधीय गुणों का उल्लेख प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी मिलता है।

उत्तराखंड की संस्कृति में रचा बसा है काफल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि काफल उत्तराखण्ड की संस्कृति में भी रचा बसा है। इसका उल्लेख विभिन्न रूपों में यहां के लोकगीतों में भी पाया जाता है। उत्तराखण्ड जाएं और वहां मिलने वाले विभिन्न प्रकार के पहाड़ी फलों का स्वाद ना लें, तो यात्रा अधूरी लगती है। गर्मियों के मौसम में पक कर तैयार होने वाले काफल राज्य में आने वाले पर्यटकों में भी खासे लोकप्रिय हैं। अपनी बढ़ी हुई मांग के कारण मध्य हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाला यह फल स्थानीय लोगों को आर्थिक मजबूती भी प्रदान कर रहा है।

ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे काफल

पीएम मोदी ने कहा कि मुझे खुशी है कि काफल के लिए उपयुक्त बाजार सुनिश्चित कर गुणों से भरपूर इस फल को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। बाबा केदार और भगवान बद्री विशाल से उत्तराखंड के लोगों के कल्याण और राज्य की समृद्धि की कामना करता हूँ।

सीएम धामी ने जताया पीएम का आभार

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पत्र हेतु हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री जी के इन स्नेहपूर्ण शब्दों से हमारा तथा समस्त राज्यवासियों का उत्साहवर्धन हुआ है। उन्होंने काफल और उत्तराखंड के लिए कहे शब्दों के लिए पीएम का धन्यवाद दिया है।

पेट्रोल का भाव हो जाएगा 15 रूपये प्रति लीटर! नितिन गडकरी ने दिया खुश करने वाला बयान

#nitin_gadkari_-says_petrol_will_cost_rs_15_per_liter 

पेट्रोल के नाम पर ना जाने कितने रूपये हम “फूंक” देते हैं। ऑफिस से लेकर बाजार तक जाने के लिए हम गाड़ी का सहारा लेते हैं। ये गाड़ियां पानी से तो चलती नहीं है, पेट्रोल पीती हैं। जिसके लिए जेब ढीली करनी पड़ती है।इस बीच केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ऐसा बयान दिया है। जिसे सुनकर हर कोई खुशी से नाच उठेगा।जी हां, नितिन गडकरी ने कहा है कि पेट्रोल 15 रुपये लीटर हो सकता है।

अब गाड़ियां किसानों के तैयार इथेनॉल पर चलेंगी-गडकरी

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने राजस्थान के प्रतापगढ़ में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि 40 फीसदी बिजली और 60 फीसदी इथेनॉल का एवरेज पकड़ा जाएगा तो पेट्रोल का भाव 15 रुपये लीटर हो जाएगा। इससे देश की जनता का भला होगा। प्रदूषण में कमी आएगी, साथ ही किसान अन्नदाता से ऊर्जादाता बनेगा। गडकरी ने कहा कि हमारी सरकार का कमाल है कि आज हवाई जहाज का ईधन भी किसान बना रहा है। मैं अगस्त में टोयोटा कंपनी की गाड़ियां लॉन्च कर रहा हूं। अब सभी गाड़ियां किसानों के तैयार किए इथेनॉल पर चलेंगी।

परली से इथेनॉल तैयार हो रहा-गडकरी

नितिन गडकरी ने आगे कहा कि 16 लाख करोड़ का ईंधन इम्पोर्ट अब किसानों के घर में जाएगा। पानीपत से परली से इथेनॉल तैयार हो रहा है। उन्होंने कहा कि अब परली से डामर भी तैयार होगा।

कांग्रेस ने अपने लोगों की गरीबी दूर कर दी-गडकरी

सभा को संबोधित करते हुए गडकरी ने कांग्रेस पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इतने सालों तक देश का शासन किया लेकिन गरीबी दूर नहीं हुई जबकि उसी ने गरीबी हटाने का नारा दिया था। मगर ऐसा नहीं हुआ। हां एक बात जरूर हुई कि कांग्रेस ने अपने लोगों की गरीबी दूर कर दी।

एनसीपी की सरकार में एंट्री से शिदें गुट के कई नेता नाखुश, बीजेपी विधायकों में भी नाराजगी

#after_ncp_joined_our_people_are_upset 

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी)दो गुटों में बंट गई है। अजित पवार अपने चाचा शरद पवार से बगावत कर एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम पद की शपथ ली है। उनके साथ एनसीपी के 8 विधयकों ने भी शिंदे सरकार में मंत्री पद की शपथ ली है। एनसीपी नेता अजित पवार के मंत्रिमंडल में अपने समर्थकों संग शामिल होने से एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों में नाराजगी देखी जा रही है। शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता संजय शिरसाट ने कहा कि हम हमेशा से एनसीपी और शरद पवार के खिलाफ रहे हैं। संजय शिरसाट ने ये भी कहा कि अजित पवार के साथ आने ने बीजेपी विधायक भी नाखुश हैं। 

तीन पार्टियों का मंत्रीमंडल कैसे करेगा काम?

संजय शिरसाट के मुताबिक शिंदे- फडणवीस सरकार के पास 170 से ज्यादा विधायकों का संख्या बल था। ऐसे में एनसीपी को सरकार में शामिल करवाने की कोई जरूरत नहीं थी। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि राजनीति में कई बार कई समीकरण बैठाये जाते हैं। लेकिन एनसीपी नेताओं के साथ आने के बाद हमारे नेता नाराज हैं, क्योंकि एनसीपी के शामिल होने के बाद हमारे कुछ नेताओं को मनचाहा पद नहीं मिलेगा। उन्होंने ये भी कहा कि यह सच नहीं है कि हमारे सभी नेता एनसीपी के हमारे साथ आने से नाराज हैं। हमने सीएम और डिप्टी सीएम को भी इसकी जानकारी दी है और उन्हें इस मुद्दे को हल करना होगा। शिरसाट का कहना है कि हमारे विधायकों के मन में यह सवाल भी है कि आखिर तीन पार्टियों का मंत्रीमंडल किस तरह से काम करेगा?

शिंदे गुट में बेचैनी की वजह

अजित कैंप के सरकार में शामिल होने से शिंदे सेना में बेचैनी बढ़ने की वजह मलाईदार मंत्रालय हैं। सरकार में मलाईदार विभाग एनसीपी को ना मिलें, इसलिए शिंदे सेना बीजेपी पर दबाव बना रही है। वित्त, जल संसाधन और लोक निर्माण मंत्रालय एनसीपी को नहीं मिलनी चाहिए, इस तरह की मांग शिंदे सेना के मंत्रियों ने मुख्यमंत्री से की है। दरअसल शिंदे सेना के विधायकों को डर है कि अगर अजित पवार को वित्त मंत्रालय दे दिया गया तो अजित दादा विकास फंड देने में परेशानी खड़े कर सकते हैं। शिंदे सेना में जो विधायक मंत्री बनने की आस लगाए हुए थे वह सबसे ज्यादा नाराज हैं। 

विधायकों की नाराजगी कैसे दूर करेंगे शिंदे?

विधायकों में बढ़ती इसी नाराजगी की वजह से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को अपना नागपुर दौरा बीच में छोड़कर मंगलवार रात मुंबई लौटना पड़ा था। मंगलवार देर रात तक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने मंत्रियों के साथ बैठक की और उन्हें समझाने की कोशिश की। आज शाम 7 बजे एकनाथ शिंदे अपने सभी विधायकों के साथ बैठक करेंगे।इस बैठक में विधायक अपनी नाराजगी के बारे में एकनाथ शिंदे को बताएंगे।

एक साल पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए सुनील जाखड़ को कैसे मिल गई पंजाब की कमान, जानें राजस्थान तक है कैसे “कमल” खिलाने का प्लान?

#sunil_jakhar_will_be_in_big_role_in_punjab_and_rajasthan 

भाजपा ने लोकसभा चुनाव से पहले पूर्व कांग्रेसी सुनील जाखड़ को बीजेपी ने पंजाब की कमान सौंपी है। भाजपा के लिहाज से यह चौंकाने वाला फैसला रहा क्योंकि जाखड़ को भाजपा में आए अभी करीब 1 ही साल हुआ है। पार्टी में पहली बार किसी ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाया गया है जो एक साल पहले ही पार्टी में शामिल हुआ है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि इसकी क्या वजह है?

सुनील जाखड़ को ऐसे ही भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नहीं बना दिया गया है। सुनील जाखड़ को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाना वैसे तो काफी हैरानी भरा रहा, क्योंकि जाखड़ के अलावा भाजपा में कई वरिष्ठ अन्य नेता भी थे, जो इस पद के लिए पूरी तरह से योग्य थे, लेकिन इन सबको दरकिनार कर पार्टी ने जाखड़ को जिम्मेदारी सौंपी। इसका एक लंबा राजनीतिक संदेश है। भाजपा अब सुनील जाखड़ को पंजाब में सारथी बना कांग्रेस के किले को ध्वस्त करना चाहती है। वहीं जाट और हिंदू मतदाताओं को भी लामबंद करने की योजना है।

2022 में भाजपा ने अश्वनी शर्मा की अगुवाई में पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में भाजपा को सात फीसदी से कम वोट मिले थे। वहीं पार्टी महज दो सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी। तीन कृषि कानूनों और किसान आंदोलन के बाद पंजाब में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा। पार्टी की छवि को भी गहरा झटका लगा है। अब बीजेपी सुनील जाखड़ के सहारे इस नुकसान की भरपाई करना चाहती है।

बीजेपी ने पंजाब की जिम्मेदारी सुनील जाखड़ को देकर एक तीर से दो निशाने साधे हैं। यानी पंजाब के सा-साथ राजस्थान पर भी सियासी पकड़ मजबूत बनाने का लक्ष्य है।राजस्थान में इस बार विधानसभा चुनाव से पहले सभी जातियों को साधने का काम तेज हो गया है। बीजेपी ने राजस्थान में दलितों को साधने के लिए अर्जुन राम मेघवाल को प्रमोट किया और फिर बीकानेर, सीकर, नागौर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर और झुंझुनूं में जाटों को साधने के लिए सुनील जाखड़ को पंजाब का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। सुनील जाखड़ की जड़ें राजस्थान के इन क्षेत्रों में हैं। सुनील जाखड़ भले ही पंजाब में पैदा हुए हों लेकिन उनके पिता बलराम जाखड़ सीकर से दो बार और एक बार बीकानेर से सांसद रहे हैं। उनकी राजस्थान कांग्रेस और जाटों में मजबूत पकड़ थी। ऐसे में सुनील जाखड़ को उसी नजरिए से यहां की राजनीति में देखा जा रहा है।

सुनील जाखड़ हिंदू जाट समुदाय से आते हैं। राजस्थान में 15 फीसदी जाट हैं, जो 50 से 60 विधानसभा सीटों पर असर डालते हैं। 2018 के चुनाव में राजस्थान की 200 सीटों में से 31 जाट उम्मीदवार जीते थे। ऐसे में सुनील जाखड़ बीजेपी के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। राजस्थान में इन दिनों कांग्रेस में जाट के दो बड़े नेता खुलकर सामने हैं। सीकर से गोविंद सिंह डोटासरा और बीकानेर से रामेश्वर डूडी की चर्चा है। बलराम जाखड़ बीकानेर और सीकर दोनों जगहों से तीन बार सांसद चुने गए थे। ऐसे में सुनील जाखड़ बीजेपी के बड़ा हथियार साबित हो सकते हैं।

अजीत अगरकर बने टीम इंडिया के चीफ सेलेक्टर, सैलरी के तौर पर मिलेगा एक करोड़ सालाना

#ajit_agarkar_team_india_new_chief_selector 

अजीत अगरकर भारतीय क्रिकेट टीम के नए मुख्य चनयकर्ता चुने गए हैं। वह चेतन शर्मा की जगह यह जिम्मेदारी संभालेंगे।बीसीसीआई ने अजीत को राष्ट्रीय चयन समिति के पद की जिम्मेदारी सौंपी और इसकी जानकारी उन्होंने ट्वीट के जरिए दी।बता दें कि ये पद पिछले 5 महीनों से खाली था। भारतीय क्रिकेट चयन समिति के पूर्व अध्यक्ष चेतन शर्मा ने एक स्टिंग ऑपरेशन में फंसने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद ये यह पद खाली था। अब अजीत अगरकर को यह जिम्मेदारी दी गई है।

अजीत अगरकर को मुख्य चयनकर्ता बनाए जाने की अटकलें काफी पहले से लगाई जा रही थीं।अजीत अगरकर ने कुछ दिन पहले ही आईपीएल टीम दिल्ली कैपिटल्स में अपने पद से इस्तीफा दिया था। इसके बाद से ही यह लगभग तय हो गया था कि वह भारतीय क्रिकेट टीम के नए मुख्य चयनकर्ता होंगे।22 जून के बीसीसीआई ने एक विज्ञापन के जरिये चयन समिति में एक खाली पद के लिए आवेदन मांगे थे। इस समय अजीत अगरकर ने आवेदन किया था और तभी से वह इस पद को भरने के लिए प्रबल दावेदार माने जा रहे थे।

वहीं, बीसीसीआई की ओर से चीफ सिलेक्टर की सैलरी में इजाफा किया गया है। बतौर चीफ सिलेक्टर अजीत अगरकर को बीसीसीआई की ओर से एक करोड़ रुपये सलाना मिलेंगे। बाकी सिलेक्टर की सैलरी में भी बीसीसीआई की ओर इजाफा किया है। ऐसी खबरें भी सामने आई थी कि सिलेक्टर की सैलरी कम होने की वजह से कोई बड़ा खिलाड़ी इस पद पर अप्लाई नहीं करना चाहता। यह जानकारी भी मिली कि वीरेंद्र सहवाग ने कम सैलरी होने की वजह से चीफ सिलेक्टर बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया।

महाराष्ट्र में जारी सियासी उठापटक के बीच राज ठाकरे का शरद पवार पर तंज, कहा-उनके आशीर्वाद के बिना कुछ भी संभव नहीं

#raj_thackeray_sees_sharad_pawar_hand_in_maharashtra_political_developments 

महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में दो फाड़ हो चुका है। इस बीच महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने एनसीपी में दरार को लेकर बड़ा बयान दिया है। मनसे चीफ ने मंगलवार को पुणे में कहा कि महाराष्ट्र के राजनीतिक महासंग्राम के पीछे खुद एनसीपी प्रमुख शरद पवार हो सकते हैं। बता दें कि एनसीपी नेता अजित पवार और आठ अन्य विधायक रविवार को राज्य की शिंदे सरकार में शामिल हो गए।

राज्य के मतदाताओं का अपमान-राज ठाकरे

एनसीपी नेता अजित पवार और पार्टी के आठ अन्य विधायकों के शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल होने के संबंध में पूछे गए सवाल पर राज ठाकरे ने कहा कि राज्य में जो हुआ वह बहुत घृणित है। यह राज्य के मतदाताओं के अपमान के अलावा और कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि शरद पवार ने महाराष्ट्र में यह चलन शुरू किया है। उन्होंने पहली बार 1978 में 'पुलोद' (पुरोगामी लोकशाही दल) सरकार का प्रयोग किया था। महाराष्ट्र ने कभी भी ऐसे राजनीतिक परिदृश्य नहीं देखे थे। ये सभी चीजें पवार के साथ शुरू हुईं और पवार के साथ समाप्त हुईं।

राज ठाकरे का शरद पवार को लेकर बड़ा दावा

यही नहीं, राज ठाकरे ने दावा किया कि राज्य में हुई हालिया घटनाक्रम के पीछे खुद शरद पवार हो सकते हैं। राज ठाकरे ने कहा, “प्रफुल्ल पटेल, दिलीप वाल्से-पाटिल और छगन भुजबल उनमें से नहीं हैं, जो (अपने दम पर और शरद पवार के आशीर्वाद के बिना) अजित पवार के साथ जाएंगे।”

एनसीपी के लिए आज का दिन अहम

इधर, महाराष्ट्र में एनसीपी के लिए आज का दिन अहम है। आज ये तस्वीर लगभग साफ हो जाएगी कि पार्टी में किसका पलड़ा भारी है। किस पवार के पास ज्यादा पावर है। बुधवार को शरद पवार और अजित पवार दोनों ने पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई है।आज फैसला हो जाएगा कि एनसीपी के 53 विधायकों में से कितने विधायक शरद पवार के साथ हैं और कितने अजित पवार के साथ।

आने वाले दिनों में बारिश लेकर आ सकती है “आफत”, मौसम विभाग ने 20 राज्यों में जारी किया भारी बारिश का अलर्ट

#imd_warns_of_extremely_heavy_rainfall 

पूरे देश में मॉनसून का असर देखा जा रहा है। राजधानी दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में बारिश का सिलसिला जारी है।कई जगहों पर लगातार बारिश के कारण हालात बद्दतर होते जा रहे हैं। हालांकि अभी इससे राहत मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। दरअसल, मौसम विभाग ने देश के 20 राज्यों में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया गया है।

मौसम विज्ञान विभाग ने कहा है कि दिल्ली में अगले छह से सात दिनों तक आसमान में बादल छाए रह सकते हैं तथा रुक-रुक कर बारिश होने के आसार हैं। वहीं दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत और उत्तरी महाराष्ट्र में 6 जुलाई तक और गुजरात में 8 जुलाई तक बारिश का तीव्र दौर जारी रहने की संभावना है।पूर्वानुमान में 8 जुलाई तक महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कई जिलों के लिए भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है। मौसम विभाग ने लेटेस्ट मौसम बुलेटिन में कहा कि अगले तीन दिनों के दौरान दक्षिणी भारत में भारी से बहुत भारी बारिश जारी रहने की संभावना है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, देहरादून, बागेश्वर समेत कई इलाकों में बारिश होने की संभावना है. विभाग ने इन इलाकों के लिए चेतावनी जारी की है. साथ ही 8 जुलाई तक येलो अलर्ट जारी किया है।

किन राज्यों में होगी बारिश?

अगले 24 घंटे में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, झारखंड, गोवा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, असम, नगालैंड, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा में बारिश की संभावना है। वहीं ओडिशा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, ईस्ट राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में बिजली चमकने के साथ हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है। गुजरात, वेस्ट राजस्थान, सौराष्ट और कच्छ में बारिश की संभावना नहीं है।

बारिश का दौर 10 जुलाई तक जारी रहने की उम्मीद

आईएमडी की रिपोर्ट के अनुसार हल्की से लेकर मध्यम स्तर की बारिश का यह दौर 10 जुलाई तक जारी रहने की उम्मीद जताई गई है। वहीं इस दौरान अधिकतम तापमान 33 डिग्री और न्यूनतम तापमान 27 डिग्री सेल्सियस रहने के आसार हैं।

पावर की परीक्षाःएनसीपी के दोनों गुटों का शक्ति प्रदर्शन आज, दोनों गुटों ने बुलाई बैठक

#decision_regarding_real_ncp_today

महाराष्ट्र में एनसीपी के लिए आज का दिन अहम है। आज ये तस्वीर लगभग साफ हो जाएगी कि पार्टी में किसका पलड़ा भारी है। किस पवार के पास ज्यादा पावर है। बुधवार को शरद पवार और अजित पवार दोनों ने पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई है।आज फैसला हो जाएगा कि एनसीपी के 53 विधायकों में से कितने विधायक शरद पवार के साथ हैं और कितने अजित पवार के साथ।

एनसीपी में फूट पड़ने के बाद अब यह सवाल है कि असली एनसीपी कौन है? मुंबई के वाय. बी. चव्हाण सेंटर में शरद पवार ने अपने समर्थकों की बैठक दोपहर 1 बजे बुलाई है, वहीं दूसरी तरफ अजित पवार ने मुंबई के बांद्रा में एम ई टी में अपनी बैठक सुबह 11 बजे बुलाई है। यह बैठक दोनों पार्टियो के लिए काफी अहम होगी, क्योंकि आज तस्वीर साफ हो जाएगी कि असली एनसीपी कौन है। दोनों तरफ से विधायकों और सांसदों के लिए व्हिप जारी किए गए हैं। 

दोनों गुट के अपने-अपने दावे

दोनों तरफ से दावे किए जा रहे हैं। एक तरफ शरद पवार गुट की तरफ से यह दावा किया जा रहा है कि 9 विधायक जिन्होंने शपथ ली है, उनको छोड़कर कोई उनके (अजित) साथ नहीं है। वहीं दूसरी तरफ अजित पवार के खेमे की तरफ से दावा किया जा रहा है कि 40 विधायक उनके साथ हैं।

शरद पवार गुट से प्रदेशाध्यक्ष जयंत पाटील ने दावा किया है कि एनसीपी के 53 विधायकों में से मंत्रीपद की शपथ लेने वाले 9 विधायकों को छोड़कर बाकी 44 विधायक शरद पवार के साथ हैं। अजित पवार गुट से प्रफुल्ल पटेल ने दावा किया है कि अजित पवार के समर्थन में 40 विधायक हैं। अब तक दोनों ही तरफ से बस दावे हुए हैं, दावे के समर्थन में सबूत नहीं दिखाई दिए हैं। न तो राजभवन में अजित पवार ने विधायकों की लिस्ट सौंपते वक्त उनका परेड करा कर दिखाया और न ही शरद पवार गुट ने अपनी किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने समर्थक विधायकों को सामने लाकर दिखाया। ऐसे में अब दोनों तरफ की असली स्ट्रेंथ कितनी है, यह पता करने का एक ही तरीका बचता है। जिसकी मीटिंग में जितने विधायक मौजूद होंगे, वही संबंधित गुट का एक्चुअल स्ट्रेंथ होगा।

क्या है विधायकों का गणित?

बता दें कि विधानपरिषद में एनसीपी के 9 विधायक हैं। शरद पवार के साथ 5 एमएलसी हैं। वहीं अजित के साथ 4 एमएलसी विधायक हैं। महाराष्ट्र में एनसीपी के 53 विधायक हैं। ऐसे में पार्टी तोड़ने के लिए और नए गुट बनाने के लिए करीब 36 विधायक चाहिए लेकिन मौजूदा स्थिति में एक सीट उपचुनाव में है। हारे और एक विधायक नवाब मलिक जेल में हैं यानीकि अब विधायको की संख्या 52 हो गई है।

दिल्ली सरकार और एलजी में फिर ठनी, दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों में नौकरी कर रहे 400 निजी लोगों को बर्खास्त करने पर अरविंद केजरीवाल ने किया ऐल

दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों में नौकरी कर रहे 400 निजी लोगों को बर्खास्त किए जाने को लेकर अरविंद केजरीवाल और एलजी में एक बार फिर ठन गई है। दिल्ली सरकार ने एलजी के इस फैसले को अदालत में चुनौती देने का ऐलान कर दिया है।

उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दिल्ली सरकार द्वारा अपने विभिन्न विभागों में नियुक्त लगभग 400 निजी व्यक्तियों की सेवाओं को समाप्त करने के बाद, आम आदमी पार्टी (AAP) के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने सोमवार को जारी एक बयान में कहा कि वे इस फैसले को अदालत में चुनौती देगी।

एलजी ने सोमवार को दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों में लगे 400 निजी व्यक्तियों की सेवा समाप्त कर दी थी। उन्होंने कहा था कि ये व्यक्ति गैर-पारदर्शी तरीके से और सक्षम प्राधिकारी की अनिवार्य मंजूरी के बिना लगे हुए थे।

सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया, "एलजी दिल्ली को पूरी तरह से बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। उन्होंने इन 400 प्रतिभाशाली युवा पेशेवरों को केवल इसलिए दंडित करने का फैसला किया क्योंकि उन्होंने दिल्ली सरकार के साथ जुड़ने का फैसला किया। जब एलजी ने यह फैसला लिया तो प्राकृतिक न्याय के किसी भी सिद्धांत का पालन नहीं किया गया।"

इसमें आगे कहा गया, "एक भी कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया और किसी भी स्तर पर कोई स्पष्टीकरण या जवाब नहीं मांगा गया। इस असंवैधानिक फैसले को अदालत में चुनौती दी जाएगी।"

बयान में कहा गया, "एलजी के पास ऐसा करने की शक्ति नहीं है। वह गैरकानूनी और संविधान के खिलाफ काम कर रहे हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य दिल्ली सरकार को पंगु बनाने के लिए हर दिन नए तरीके ढूंढना है ताकि दिल्ली के लोगों को परेशानी हो।"

आगे कहा गया कि हटाए गए ये सभी लोग आईआईएम अहमदाबाद, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, एनएएलएसएआर, जेएनयू, एनआईटी, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, कैम्ब्रिज आदि जैसे शीर्ष कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से थे और विभिन्न विभागों में उत्कृष्ट काम कर रहे थे। इन सभी को उचित प्रक्रिया और प्रशासनिक मानदंडों का पालन करते हुए काम पर रखा गया था।

वहीं, एलजी सक्सेना द्वारा दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत लगभग 400 निजी व्यक्तियों की सेवाएं समाप्त करते हुए कहा गया है कि ये निजी व्यक्ति गैर-पारदर्शी तरीके से और सक्षम प्राधिकारी की अनिवार्य मंजूरी के बिना लगे हुए थे। इन व्यक्तियों की नियुक्तियों में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा निर्धारित एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य आरक्षण नीति का भी पालन नहीं किया गया।

सेवा विभाग ने पाया कि ऐसे कई निजी व्यक्ति पदों के लिए जारी विज्ञापनों में निर्धारित शैक्षणिक योग्यता और कार्य अनुभव के पात्रता मानदंडों को भी पूरा नहीं करते हैं। संबंधित प्रशासनिक विभागों ने भी इन निजी व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत कार्य अनुभव प्रमाणपत्रों की सत्यता को सत्यापित नहीं किया, जो कई मामलों में हेराफेरी और धांधली पाई गई।

उपराज्यपाल ने सेवा विभाग के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया कि दिल्ली सरकार के सभी विभाग, निगम, बोर्ड, सोसाइटी और उनके प्रशासनिक नियंत्रण के तहत अन्य स्वायत्त निकाय इन निजी व्यक्तियों की नियुक्तियों को तुरंत समाप्त कर दें, जिनमें एलजी या सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी नहीं ली गई है। .

हालांकि, यदि कोई प्रशासनिक विभाग इस तरह की व्यस्तताओं को जारी रखना उचित समझता है, तो वह उचित औचित्य के साथ विस्तृत मामलों का प्रस्ताव ला सकता है और उन्हें विचार और अनुमोदन के लिए उपराज्यपाल को प्रस्तुत करने के लिए सेवा विभाग, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) को भेज सकता है। .

सेवा विभाग ने 23 विभागों से प्राप्त जानकारी इकट्ठी की थी, जिन्होंने ऐसे निजी व्यक्तियों को विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया है। यह देखा गया कि 45 दिनों या उससे अधिक समय तक चलने वाली अस्थायी नियुक्तियों में आरक्षण के लिए डीओपीटी द्वारा निर्धारित एससी/एसटी/ओबीसी के लिए आरक्षण के प्रावधानों का भी इन संलग्नताओं में पालन नहीं किया गया है।

*अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले शाह फैसल का यू-टर्न, कहा- मेरी तरह अधिकतर कश्मीरियों के लिए ये अतीत की बात*

#ias_officer_shah_faisal_statement_on_article_370 

देश में एक बार फिर अनुच्छेद-370 पर बसह शुरू हो गई है।दरअसल, अनुच्छेद 370 के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 11 जुलाई को सुनवाई होगी। इसको निरस्त करने को चुनौती देने का मामला साल 2019 में संविधान पीठ को सौंपा गया था लेकिन अब तक सुनवाई नहीं हुई है। जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले धारा 370 को हटाए जाने के चार साल बाद देश के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रेस रिलीज जारी करके बताया कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में पांच जजों की बेंच इस मामले को सुनेगी। इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत होंगे।

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक, पांच न्यायाधीशों की पीठ दिशानिर्देश पारित करने के लिए आईएएस अधिकारी शाह फैसल की तरफ से दायर याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने भी 370 को खत्म करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 

हालांकि, मंगलवार को शाह फैसल ने कहा कि उन्होंने बहुत पहले ही याचिका वापस ले ली है। शाह फैसल ने इसको लेकर एक ट्वीट भी किया। फैसल ने ट्विटर पर लिखा, ‘मेरी तरह अधिकतर कश्मीरियों के लिए (अनुच्छेद) 370 अतीत की बात है। हिंद महासागर में झेलम और गंगा हमेशा के लिये विलीन हो गई हैं। इसे वापस नहीं लिया जा सकता है। अब सिर्फ आगे बढ़ा जा सकता है।

वहीं, न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए शाह फैसल ने बताया कि उन्होंने बहुत पहले ही याचिका वापस ले ली है। यह सिर्फ याचिकाओं के समूह का शीर्षक है और एक बार आदेश जारी होने के बाद नाम बदल जाएगा। अनुच्छेद 370 एक नियति है। आज का कश्मीर 2019 के कश्मीर से बहुत कम मिलता जुलता है।

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के वर्ष 2010 बैच के अधिकारी फैसल को अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने और जम्मू कश्मीर राज्य को केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के एक वर्ष से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया था। उन्होंने सेवा से इस्तीफा देकर एक राजनैतिक दल ‘जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट’ की शुरुआत की थी। हालांकि, सरकार ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया और फैसल को बाद में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय में तैनात कर दिया गया। फैसल ने वर्ष 2019 में केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी। सरकार ने अप्रैल 2022 में फैसल की इस्तीफा वापस लेने के निवेदन को स्वीकार कर लिया और उनकी सेवा को बहाल कर दिया। इसी महीने में फैसल ने न्यायालय के सामने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाले सात याचिकाकर्ताओं की सूची में से नाम हटाने के लिए आवेदन दिया था।