कर्नाटक विधानसभा चुनाव में क्या होगा जातीय समीकरण, जानें हार-जीत में इन दो समुदायों की क्या है भूमिका?
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कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। कर्नाटक में 10 मई को मतदान होगा और 13 मई को नतीजों का ऐलान होगा। ऐसे में राजनीतिक दल मजबूत उम्मीदवार की तलाश में जुट गए हैं। सभी पार्टियां जातीय समीकरण को साधते हुए उम्मीदवारों को उतारने की रणनीति पर काम कर रही है। कांग्रेस पहले ही 124 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर चुकी है।
लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय ही तय करते हैं परिणाम
देश के तमाम उत्तरी राज्यों की तरह यहां भी जातिगत और धार्मिक समीकरण चुनावों में बहुत बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय ही तय करते हैं कि कर्नाटक की सत्ता किसके हाथ रहने वाली है। कर्नाटक में हुए चुनावों का इतिहास देखें तो राज्य को मुख्यमंत्री देने वाले यही दो समुदाय थे।सिद्धारमैया एक मात्र ऐसे सीएम रहे हैं जो कुरुबा समुदाय से आते हैं। कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा के अलावा एससी और मुस्लिम समुदाय भी यहां राजनीति को खूब प्रभावित करते हैं।
किसकी कितनी हिस्सेदारी
राज्य के मतदाताओं में लिंगायत की 17 फीसदी, वोक्कालिगा 11 फीसदी, दलित 19.5, ओबीसी 20, मुस्लिम 16, अगड़े 5, इसाई, बौद्ध और जैन की सात फीसदी भागदारी है। इनमें लिंगायत, अगड़ों, बौद्ध-जैन में भाजपा का प्रभाव ज्यादा है। ओबीसी, दलित और मुस्लिम में कांग्रेस का प्रभाव माना जाता है, जबकि वोक्कालिगा समुदाय में जदएस की पकड़ मानी जाती है। हालांकि, बीते चुनावा में भाजपा और कांग्रेस वोक्कालिगा समुदाय में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी।
लिंगायतों पर सर्वाधिक पकड़ भाजपा की
कर्नाटक की राजनीति की दिशा तय करने में लिंगायत मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं। लिंगायतों पर सर्वाधिक पकड़ भाजपा की रही है, कर्नाटक भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व सीएम येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से ही ताल्लुक रखते हैं, ऐसे में भाजपा को कभी लिंगायत वोटों के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ी। हालांकि इस बार लिंगायत समाज कुछ नाराज है, लेकिन भाजपा को भरोसा है कि लिंगायत समाज का सर्वाधिक साथ उसे ही मिलेगा। कांग्रेस की भी लिंगायतों पर नजर है और इस समुदाय को वोट बैंक बनाने के लिए पार्टी लगातार भाजपा पर हमले बोल रही है।
वोक्कालिगा समुदाय पर किसकी पकड़
लिंगायत की तरह कर्नाटक की राजनीति में जिस दूसरे समुदाय का रसूख है वह है वोक्कालिगा। राज्य में वोक्कालिगा समुदाय की आबादी 11% है, लेकिन इस समुदाय पर सबसे ज्यादा पकड़ जेडीएस की मानी जाती है। चुनावी आंकड़ों के मुताबिक जेडीएस को सर्वाधिक वोट वोक्कालिगा समुदाय का ही मिलता है, हालांकि अब भाजपा इस वोट बैंक की तरफ कदम बढ़ा रही है। टीपू सुल्तान पर दिए जा रहे बयान भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
जिधर दलित मतदाताओं का हुआ झुकाव, चमक सकती है किस्मत
प्रदेश के कास्ट फैक्टर में दलित समाज का भी बहुत बड़ा रोल माना जा सकता है। राज्य में इनकी जनसंख्या 19.5% है। मतलब, जिस भी दल की तरफ दलित मतदाताओं का ज्यादा रुझान हुआ, उसकी किस्मत चमक सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस की राजनीति के दिग्गज चेहरा हैं और इसी समाज से सियासत में आगे बढ़कर देश की सबसे पुरानी पार्टी की सबसे ऊंची कुर्सी पर विराजमान हुए हैं।
ओबीसी का वोट बैंक बहुत भी महत्वपूर्ण
इसी तरह कर्नाटक में ओबीसी या अन्य पिछड़ी जातियों का वोट बैंक बहुत ही महत्वपूर्ण है। ओबीसी में अकेले कुरुबा जाति की जनसंख्या 7% है। बाकी ओबीसी की कुल आबादी भी 16% है। कुरुबा जाति पारंपरिक तौर पर भेड़ पालन से जुड़ी रही है। कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया इसी समाज से हैं। इसके अलावा बीजेपी और कांग्रेस के कई दिग्गज भी ओबीसी समाज से हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार भी अन्य पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं।
Mar 30 2023, 15:55