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NDPP की हेकानी जाखलू बनीं नागालैंड की पहली महिला विधायक, 60 साल पहले राज्य बनने के बाद से पहली बार किसी महिला उम्मीदवार को मिली जीत

नागालैंड में दीमापुर-तृतीय निर्वाचन क्षेत्र से जीतने के बाद एनडीपीपी की हेकानी जाखलू नागालैंड की पहली महिला विधायक बनीं हैं। 60 साल पहले राज्य का दर्जा प्राप्त करने के बाद से नागालैंड में पहली बार किसी महिला उम्मीदवार को जीत हासिल हुई है।  

हेकानी जाखलू राज्य में सत्तारूढ़ NPPP की उम्मीदवार हैं। जाखलू ने दीमापुर-III विधानसभा सीट से चुनाव जीता है। हेकानी जाखलू ने अपने प्रतिद्वंदी को 1,536 मतों के अंतर से हराया।

जाखलू को मिले 14 हजार से ज्यादा वोट

जाखलू ने 14,395 वोट मिले हैं। वहीं, दूसरे नंबर पर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अज़ेतो झिमोमी रहे जिन्हें 45.16 प्रतिशत वोट मिला। बता दें कि NDPP की एक और महिला उम्मीदवार सल्हौतुओनुओ क्रूस भी पश्चिमी अंगामी सीट से आगे चल रही हैं।

भारत निर्वाचन आयोग की ओर से गुरुवार को दोपहर 2.10 बजे शेयर किए गए लेटेस्ट अपडेट के मुताबिक भाजपा ने दो और एनडीपीपी ने आठ सीटों पर जीत हासिल की है। रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के प्रत्याशियों ने नोकसेन और तुएनसांग सदर- II सीट पर जीत हासिल की है।

इस साल राज्य की 15 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) भी राज्य में अपना खाता खोलने में सफल रही। इनके अलावा निर्दलीय उम्मीदवार नीसातुओ मेरो और केविपोडी सोफी ने पफुत्सेरो और दक्षिणी अंगामी-1 से जीत दर्ज की है।

उत्तरप्रदेश के हाथरस कांड में आया अदालत का फैसला, एक को उम्रकैद, तीन बरी, आधी रात शव जलाने के बाद मचा था बवाल

यूपी के चर्चित हाथरस कांड में गुरुवार को अदालत का फैसला आ गया। चार में से तीन आरोपियों को बरी कर दिया गया है। एक आरोपी संदीप को दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। संदीप को युवती की गैर इरादतन हत्या और एससी एसटी एक्ट में सजा के साथ ही 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। इसमें से 40 हजार रुपए पीड़ित परिवार को दिए जाएंगे। युवती के परिजनों की तरफ से पैरवी कर रहे वकील ने तीनों आरोपियों को भी सजा के लिए हाईकोर्ट जाने की बात कही है। 

हाथरस के चंदपा थाना क्षेत्र में सितंबर 2020 में एक युवती को गंभीर हालत में खेत में पड़ा पाया गया था। परिजनों ने गैंगरेप का आरोप लगाया था। गंभीर हालत में उसे पहले अलीगढ़ फिर दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां कई दिनों तक इलाज के बाद उसकी मौत हो गई थी।

पुलिस ने युवती का शव परिजनों को देने की जगह आधी रात मिट्टी का तेल छिड़ककर जला दिया था। इसकी तस्वीरें वायरल होने पर बवाल मच गया था। सपा कांग्रेस समेत तमाम दल सड़क पर उतर आए थे। चौतरफा घिरने के बाद पुलिस ने गांव के ही संदीप समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया था। 

हाथरस की स्पेशल एससी-एसटी कोर्ट त्रिलोक पाल सिंह की अदालत में ढाई साल तक चली सुनवाई के बाद गुरुवार को फैसला आया। परिजनों का मुख्य आरोप गैंगरेप के बाद हत्या का था। हालांकि अदालत ने गैंगरेप या हत्या का मामला नहीं माना। आरोपी बनाए गए रवि, रामू और लवकुश को रिहा कर दिया। संदीप को गैर इरादतन हत्या और एससीएसटी एक्ट में दोषी पाते हुए सजा सुनाई। 

वादी पक्ष के अधिवक्ता का बयान

वादी पक्ष के अधिवक्ता महिपाल ने बताया कि संदीप को आजीवन कारावास, 50 हजार का जुर्माना की सजा सुनाई गई है। इसमें से 40 हजार रुपये पीड़ित पक्ष को देने का आदेश है। उन्होंने कहा, फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट जाएंगे। एक आरोपी को दोषी करार कराने और सजा दिलाने में कामयाब रहे। अन्य के खिलाफ भी इसी फैसले को आधार बनाते हुए अपर कोर्ट जाएंगे।

कंधार हाईजैक कांड में रिहा आतंकी मुश्ताक अहमद जरगर के खिलाफ बड़ी कार्रवाई, एनआईए ने जब्त की संपत्ति

#thepropertyofterroristzargar_attached 

जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने एक और बड़ी कार्रवाई की है।एनआईए ने श्रीनगर में स्थित आतंकी मुश्ताक अहमद जरगर उर्फ लट्राम की संपत्ति को कुर्क कर लिया है। 1999 में कंधार हाईजैक कांड में विमान यात्रियों के बदले जिन आतंकियों को रिहा किया गया था, उनमें जरगर भी शामिल था। 

एनआईए ने गुरुवार को एक बड़ी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान की सरजमीं पर सक्रिय आतंकवादी संगठन अल-उमर मुजाहिदीन के चीफ कमांडर मुश्ताक जरगर उर्फ लटराम की श्रीनगर स्थित प्रॉपर्टी कुर्क कर ली है। एनआईए ने गृह मंत्रालय के आदेश पर यह बड़ी कार्रवाई की है। श्रीनगर में गनाई मोहल्ला के जामा मस्जिद इलाके में नौहट्टा स्थित जरगर के दो घरों को यूएपीए के प्रावधानों के तहत कुर्क किया गया है।

यूएपीए के तहत आतंकवादी घोषित

पिछले साल अप्रैल में लट्राम को यूएपीए के तहत एक आतंकवादी के रूप में नामित किया गया था। इसी फैसले के बाद सुरक्षा एजेंसियों को उसकी संपत्ति कुर्क करने का अधिकार मिला। पिछले साल गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया था कि मुश्ताक जरगर अपने संपर्कों अल-कायदा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे कट्टरपंथी आतंकवादी समूहों से करीबी के कारण न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में शांति के लिए खतरा है और केंद्र सरकार का मानना है कि वह आतंकवाद में शामिल है। अब एनआईए ने उसके खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है।

रिहाई के बाद से पाकिस्तान में सक्रिय

बता दें कि 24 दिसंबर 1999 में नेपाल की राजधानी काठमांडू से भारत की राजधानी दिल्ली के लिए उड़ी इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट को आतंकवादियों ने हाइजैक कर लिया। इसमें 176 यात्री और 15 क्रू मेंबर्स सवार थे। प्लेन हाईजैक के बदले आतंकियों ने भारत की जेल में बंद तीन आतंकियों मसूद अजहर, उमर शेख और मुश्ताक अहमद जरगर उर्फ लट्राम को छोड़ने का सौदा किया था। भारतीय एजेंसियों के अनुसार, मुश्ताक अहमद जरगर उर्फ लट्राम अपनी रिहाई के बाद से पाकिस्तान में सक्रिय है और जम्मू-कश्मीर में लगातार आतंकवाद को पनाह दे रहा है।

कौन है मुश्ताक जरगर ?

मुश्ताक जरगर 1989 में पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण में भी शामिल था। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट से जुड़े होने के दौरान जरगर ने जम्मू-कश्मीर में कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया था। वो हत्याओं और जघन्य अपराधों में शामिल रहा था. वह हत्याओं सहित अन्य जघन्य अपराधों में भी शामिल था। 1990 के दशक की शुरुआत में खूंखार माने जाने वाले जरगर ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट से संबंध तोड़ अपना खुद का अलग आतंकी संगठन अल-उमर मुजाहिदीन बना लिया था। 90 के दशक में मुश्ताक की गिनती खूंखार आतंकियों में होने लगी थी। 1989 में वो तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी और महबूबा मुफ्ती की बहन रुबैया सईद की किडनैपिंग में अपनी भूमिका के चलते सुर्खियों में आया था।

महाराष्ट्र उपचुनाव में भाजपा-शिंदे गठबंधन को बड़ा झटका 28 साल बाद मिली करारी हार

 महाराष्ट्र उपचुनाव में बीजेपी-शिंदे गठबंधन को झटका लगा है। पुणे की कस्बा पेठ विधानसभा सीट बीजेपी-शिंदे गठबंधन हार गया है। 28 साल बाद ये सीट कांग्रेस ने छीनी है। कांग्रेस के उम्मीदवार रवींद्र धंगेकर को जीत मिली है। कांग्रेस कैंडिडेट ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को 10 हजार वोटों के अंतर से हरा दिया है।

प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कमेटी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का करेगी चयन : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) और निर्वाचन आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था बनाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ अपने फैसले में कहा कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कमेटी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी। हालांकि, नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही रहेगा।

चुनाव आयोग की निष्पक्षता सबसे अहम

जज जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की बेंच ने याचिका में चुनाव आयोग में सीबीआई की तर्ज पर नियुक्ति की मांग को लेकर एकमत से फैसला सुनाया। पीठ ने पिछले साल 24 नवंबर को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मत फैसले में चुनाव प्रक्रियाओं में निष्पक्षता सुनिश्चित करने पर जोर देते हुए कहा कि लोकतंत्र लोगों की इच्छा से जुड़ा है। संविधान पीठ ने कहा कि लोकतंत्र नाजुक है और कानून के शासन पर बयानबाजी इसके लिए नुकसानदेह हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव में निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, वर्ना इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। कोर्ट ने कहा कि भारत का निर्वाचन आयोग (ईसीआई) स्वतंत्र व निष्पक्ष तरीके से काम करने के लिए बाध्य है और उसे संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करना चाहिए

क्यों उठा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सवाल?

इससे पहले शीर्ष अदालत ने पूर्व नौकरशाह अरुण गोयल को निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करने में केंद्र द्वारा दिखाई गई जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उनकी फाइल 24 घंटे में विभागों से बिजली की गति से पास हो गई। हालांकि, केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत की टिप्पणियों का जोरदार विरोध किया था। अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने तर्क दिया था कि उनकी नियुक्ति से संबंधित पूरे मामले को संपूर्णता से देखने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने पूछा था कि केंद्रीय कानून मंत्री ने चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री को सिफारिश की गई चार नामों के एक पैनल को कैसे चुना, जबकि उनमें से किसी ने भी कार्यालय में निर्धारित छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है। चुनाव आयोग अधिनियम, 1991 के तहत चुनाव आयोग का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, लागू हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति पर दखल दिया था। अदालत ने चुनाव आयुक्त के तौर पर अरुण गोयल की नियुक्ति से संबंधित मूल रिकॉर्ड मांगे थे। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल किया था कि अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त पद पर कैसे नियुक्ति की गई है। पीठ ने कहा था कि वह सिर्फ तंत्र को समझना चाहती है।

अभी तक कैसे होती थी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति की ओर से की जाती है। आमतौर पर देखा गया है कि इस सिफारिश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल ही जाती है। इसी के चलते चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। चुनाव आयुक्त का एक तय कार्यकाल होता है, जिसमें 6 साल या फिर उनकी उम्र (जो भी ज्यादा हो) को देखते हुए रिटायरमेंट दिया जाता है। चुनाव आयुक्त के तौर पर कोई सेवानिवृत्ति की अधिकतम उम्र 65 साल निर्धारित की गई है। यानी अगर कोई 62 साल की उम्र में चुनाव आयुक्त बनता है तो उन्हें तीन साल बाद ये पद छोड़ना पड़ेगा। 

कैसे हटते हैं चुनाव आयुक्त?

रिटायरमेंट और कार्यकाल पूरा होने के अलावा चुनाव आयुक्त कार्यकाल से पहले भी इस्तीफा दे सकते हैं और उन्हें हटाया भी जा सकता है। उन्हें हटाने की शक्ति संसद के पास है। चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जजों की ही तरह वेतन और भत्ते दिए जाते हैं।

अदानी समूह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया स्वागत, कहा, इससे चीजें स्पष्ट होंगी और ‘सचाई की जीत’ अवश्य रूप से होगी


संकट में फंसे उद्योगपति गौतम अडाणी ने सुप्रीम कोर्ट के हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में समूह पर लगाए गए आरोपों की समयबद्ध जांच के आदेश का स्वागत किया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने समूह की कंपनियों के शेयरों में आई हालिया गिरावट की जांच के लिए समिति के गठन का भी आदेश दिया है। इसपर अपनी प्रतिक्रिया में अडाणी ने वीरवार को कहा कि इससे चीजें स्पष्ट होंगी और ‘सचाई की जीत’ अवश्य रूप से होगी।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के आदेश के बाद अडाणी ने ट्वीट किया, अडाणी समूह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करता है। इससे चीजें समयबद्ध तरीके से अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचेंगी। सचाई की जीत होगी। 

सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) को हिंडनबर्ग के अडाणी समूह पर आरोपों को लेकर दो माह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया। अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों में हालिया गिरावट की जांच के लिए पीठ ने एक समिति के गठन का भी आदेश दिया है।

उत्तराखंड : पौड़ी गढ़वाल में महसूस किए गए भूकंप के झटके, रिक्टर स्केल पर 2.4 रही तीव्रता


उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में भूकंप के झटके महसूस किए गए। जानकारी के अनुसार पौड़ी गढ़वाल में आए भूकंप की तीव्रता रिएक्टर स्केल 2.4 मापी गई है। भूकंप के झटके से लोग भयभीत हैं। हालांकि कोई नुकसान नहीं हुआ है।

नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के अनुसार भूकंप की तीव्रता रिएक्टर स्केल पर 2.4 मापी गई है। इससे पहले 20 फरवरी को उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में तड़के भूकंप का हल्का झटका महसूस किया गया था। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 2.5 मापी गई थी।

*नगालैंड की जनता का ऐतिहासिक निर्णय, एनडीपीपी की हेकानी जाखलू को बनाया राज्य की पहली महिला विधायक*

#hekanijakhalucreateshistoryfirsttimeawomanwontheassemblypollnagaland

नगालैंड में जनता ने इस बार के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक निर्णय दिया है।यहां पहली बार कोई महिला विधायक चुनी गई है। एनडीपीपी की हेकानी जाखलू नागालैंड की पहली महिला विधायक बनीं हैं। दीमापुर तृतीय विधानसभा से हेकानी जखालू ने जीत दर्ज की है। 

60 साल पहले राज्य का दर्जा प्राप्त करने के बाद से नागालैंड में पहली बार किसी महिला उम्मीदवार को जीत हासिल हुई है।48 वर्षीय जाखलू राज्य की पहली महिला उम्मीदवार हैं जो विधायक बनी हैं। उन्होंने अपने निकटतम उम्मीदवार लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के एज़ेटो ज़िमोमी को 1536 मतों से पराजित किया। हेकानी जाखलू को कुल 14395 मत मिले, जबकि एज़ेटो ज़िमोमी को कुल 12859 मत मिले। मत प्रतिशत के हिसाब से हेखानी जाखलू 45.16 फीसदी मत मिले, जबकि उनके एजेटो जिमोमी को 40.34 फीसदी मत मिले।

मौजूदा विधायक को दी मात

एज़ेटो झिमोमी मौजूदा विधायक हैं।दो बार के विधायक झिमोमी को एनडीपीपी ने उम्मीदवार नहीं बनाया तो उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की पार्टी से मैदान में उतरे थे। क्षेत्र से अन्य तीन उम्मीदवार वेटेट्सो लासुह (कांग्रेस), लोकप्रिय कार्यकर्ता कहुतो चिशी (निर्दलीय) और लुन तुंगनुंग (निर्दलीय) थे।

नगालैंड में चार महिलाएं थी मैदान में

राज्य में विधानसभा चुनाव में इस बार चार महिला उम्मीदवारों को टिकट मिला था। हेकानी इनमें से एक थीं। चुनाव के दौरान हेकानी का प्रचार करने के लिए मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के साथ असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा भी पहुंचे थे। Hu

नागालैंड में एनडीपीपी-बीजेपी की वापसी तय, 15 सीटों पर कब्जा, 21 पर आगे*

#nagaland_election_result_2023 

त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय विधानसभा चुनाव की वोटों की गिनती जारी है। कुछ सीटों पर नतीजे आ चुके हैं और कुछ पर पार्टियों ने बढ़त बना ली है।नागालैंड में बीजेपी-एनडीपीपी गठबंधन की सत्ता में वापसी तय मानी जा रही है। अब तक के रूझानो के मुताबिक नगालैंड में भी भाजपा गठबंधन को बहुमत तय नजर रहा है।नागालैंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने फिर से परचम फहरा दिया है।

इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के मुताबिक बीजेपी ने अब तक 4 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है, वहीं 8 पर बढ़त बनाए हुए है। वहीं एनडीपीपी ने 11 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है और 13 सीटों परआगे चल रही है।वहीं केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने दो सीटों पर जीत दर्ज की है।

Bharatiya Janata Party 4 8 12

Independent 3 1 4

Janata Dal (United) 0 1 1

Lok Janshakti Party(Ram Vilas) 1 2 3

Naga Peoples Front 0 2 2

National People's Party 2 3 5

Nationalist Congress Party 2 5 7

Nationalist Democratic Progressive Party 11 13 24

Republican Party of India (Athawale) 2 0 2

*सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमेटी करेगी निर्वाचन आयुक्त का चुनाव*

#supremecourtorderpanelselectingelectioncommissioner

चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई चीफ की तर्ज पर ही मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की जानी चाहिए।कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई का पैनल इनकी नियुक्ति करेगा। पहले सिर्फ केंद्र सरकार इनका चयन करती थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारत के प्रधान न्यायाधीश की समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाएगी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर नेता प्रतिपक्ष मौजूद नहीं हैं तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को समिति में लिया जाएगा। 5 सदस्यीय बेंच ने कहा कि ये कमेटी नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को करेगी। इसके बाद राष्ट्रपति मुहर लगाएंगे। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में साफ कहा कि यह प्रोसेस तब तक लागू रहेगी, जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं बना लेती। 

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने पिछले साल 24 नवंबर को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मत फैसले में चुनाव प्रक्रियाओं में निष्पक्षता सुनिश्चित करने पर जोर देते हुए कहा कि लोकतंत्र लोगों की इच्छा से जुड़ा है। संविधान पीठ ने कहा कि लोकतंत्र नाजुक है और कानून के शासन पर बयानबाजी इसके लिए नुकसानदेह हो सकती है। 

न्यायमूर्ति के एम जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखी जानी चाहिए। नहीं तो इसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि वोट की ताकत सुप्रीम है, इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं। इसलिए इलेक्शन कमीशन का स्वतंत्र होना जरूरी है। यह भी जरुरी है कि यह अपनी ड्यूटी संविधान के प्रावधानों के मुताबिक और कोर्ट के आदेशों के आधार पर निष्पक्ष रूप से कानून के दायरे में रहकर निभाए।

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली बनाने की मांग

कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली बनाए जाने की मांग की गई थी। साल 2018 में चुनाव आयोग के कामकाज में पारदर्शिता को लेकर कई याचिकाएं दायर हुईं थीं। याचिकाकर्ता अनूप बरांवल ने याचिका दायर कर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसे सिस्टम की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन सब याचिकाओं को क्लब करते हुए इसे 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था।बता दें कि कॉलेजियम सिस्टम जजों की नियुक्ति के लिए होता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जज होते हैं। कॉलेजियम जजों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार को नाम भेजता है। इस पर केंद्र मुहर लगाती है, जिसके बाद जजों की नियुक्ति होती है।

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए देश में कोई कानून नहीं

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर फिलहाल देश में कोई कानून नहीं है। नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया केंद्र सरकार के हाथ में है। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति की ओर से की जाती है। आमतौर पर देखा गया है कि इस सिफारिश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल ही जाती है। इसी के चलते चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। 

चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर विवाद कब से

पिछले साल इस मामले में उस वक्त तूल पकड़ा, जब 19 नवंबर को केंद्र सरकार ने पंजाब कैडर के आईएएस अफसर अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्त किया था। अरुण गोयल की नियुक्त पर इसलिए विवाद हुआ, क्योंकि वो 31 दिसंबर 2022 को रिटायर होने वाले थे। 18 नवंबर को उन्हें वीआरएस दिया गया और अगले ही दिन चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया था। इस नियुक्ति पर सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने एक याचिका दायर कर सवाल उठाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति पर दखल दिया था। अदालत ने चुनाव आयुक्त के तौर पर अरुण गोयल की नियुक्ति से संबंधित मूल रिकॉर्ड मांगे थे। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल किया था कि अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त पद पर कैसे नियुक्ति की गई है। पीठ ने कहा था कि वह सिर्फ तंत्र को समझना चाहती है।