कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर में रोजगार परक प्रशिक्षण संपन्न
ममनकापुर (गोंडा) । नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर में आयोजित उर्द- मूंग बीज उत्पादन तकनीक विषयक पांच दिवसीय रोजगार परक प्रशिक्षण संपन्न हुआ । प्रशिक्षण का समापन डॉक्टर पीके मिश्रा प्रभारी अधिकारी कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर गोंडा द्वारा किया गया । उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों को उर्द व मूंग बीज उत्पादन को रोजगार के रूप में अपनाने की सलाह दी । प्रशिक्षण समन्वयक डॉक्टर रामलखन सिंह ने उर्द- मूंग के लिए भूमि एवं भूमि का चयन, भूमि की तैयारी, उन्नतशील प्रजातियां, खाद एवं उर्वरक प्रबंध, खरपतवार प्रबंधन तथा प्राकृतिक खेती की जानकारी दी ।
डॉक्टर मनोज कुमार सिंह ने कार्बनिक खादों का प्रयोग एवं सिंचाई प्रबंधन के बारे में जानकारी दी । उन्होंने बताया कि प्रति एकड़ 5 टन सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करने से भरपूर उपज प्राप्त होती है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति में सुधार होता है । कार्बनिक खादों के प्रयोग न करने के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति कमजोर होती जा रही है । कार्बनिक खादों में गोबर की सड़ी खाद, कंपोस्ट खाद एवं वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग किया जाता है । फसल अवशेष को खेत में सड़ाने से कार्बनिक खाद बन जाती है । इससे भूमि में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है । डॉ. मनीष कुमार मौर्य फसल सुरक्षा वैज्ञानिक ने भूमि की पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करने की सलाह दी । उन्होंने एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन के अंतर्गत ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया ।
डॉक्टर मौर्य ने बताया कि ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करने से खेत की मिट्टी में उपलब्ध रोगकारक, कीट एवं खरपतवारों के बीज व अवशेष तेज धूप में नष्ट हो जाते हैं । मिट्टी में वायु का संचार होता है तथा भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है । उन्होंने बीज शोधन एवं उपचार की जानकारी देते हुए बताया कि उर्द व मूंग के बीज को ट्राइकोडरमा पाउडर 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज का उपचार करें तथा एक किलोग्राम ब्युवेरिया बेसियाना को प्रति एकड़ की दर से 60 से 70 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर एक सप्ताह ढक कर रखने के बाद खेत की तैयारी करते समय खेत में मिलाने की सलाह दी । उन्होंने बताया कि ब्युवेरिया बेसियाना एक जैविक फफूंदनाशक है । इसका प्रयोग करने से फफूंद जनित रोग नष्ट हो जाते हैं । डॉक्टर दिनेश कुमार पांडेय ने फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी दी । उन्होंने बताया कि फसल अवशेष को जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है साथ ही मृदा का स्वास्थ्य खराब होता है ।
मृदा में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु एवं पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं । उन्होंने हरी हरी खाद उत्पादन तकनीक के लिए उर्दू- मूंग की फसल को अत्यन्त महत्वपूर्ण बताया । उन्होंने बताया कि उर्द- मूंग की फसल में फली तुड़ाई करने के उपरांत फसल को खेत में जुताई कर मिला देने से भूमि को हरी खाद मिल जाती है । उर्द- मूंग की फसल को हरी खाद के रूप में प्रयोग करने पर 30 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर भूमि को प्राप्त होती है । प्रशिक्षण में रामसागर वर्मा, राजेश कुमार वर्मा, महादेव यादव अजय सिंह आदि ने प्रतिभाग कर उर्द मूंग बीज उत्पादन तकनीक विषय की जानकारी प्राप्त कर स्वरोजगार अपनाने का आश्वासन दिया ।










Feb 21 2023, 16:45
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