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ड्रैगन ने एंटी हाइपरसोनिक विशालकाय रडार दिखाकर दुनिया को “डराया”, चीन की सेना ने जारी किया वीडियो

#china_unveiled_anti_hypersonic_missile_system

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन अपनी स्थिति लगातार बढ़ा रहा है। खुद को ताकतवर बनाने की होड़ में ड्रैगन अत्याधुनिक और पहले से भी ज्यादा विनाशक हथियारों का निर्माण कर रहा है। हाल ही में चीन के दो नए फाइटर जेट को देखा गया था, जिसके बारे में दावा किया गया कि वह छठी पीढ़ी के फाइटर जेट हैं। वहीं, अब ड्रैगन ने दुनिया को एक ऐसा रडार सिस्टम दिखाया है, जो उसे अभेद्य बनाता है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीनी नववर्ष पर देश की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को संबोधित किया। इस दौरान जिनपिंग ने अपनी लंबी दूरी की रडार सिस्टम को दुनिया को दिखाया है।चीन ने पिछले महीने के अंत में एक एडवांस लंबी दूरी के रडार का दुर्लभ फुटेज जारी किया है, जिसके बारे में कहा जा रहा है, कि वो हजारों मील दूर एडवांस मिसाइलों से लेकर हाइपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक करने और मार गिराने की ताकत रखता है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन का यह रडार एक एडवांस अलार्मिक सिस्टम है, जो चीन की सीमा से हजारों मील दूर से आ रहे खतरों का भांप सकता है और उन्हें खत्म करने की ताकत भी रखता है। पीएलए ने राष्ट्रपति को इस रडार सिस्टम का वीडिया भेजा। इसमें जमीन पर एक रडार स्टेशन को दिखाया गया।वीडियो में चीन के तीनों सेनाओं के अधिकारियों के साथ एयरस्पेस फोर्स के अधिकारी दिखाई दिए। हालांकि, यह रडार कैसा है और इसकी ताकत कितनी है, इसके बार में फिलहाल कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई।

जो वीडियो पीएलए ने जारी किया है, उसमें रडार सिस्टम के सामने खड़ा चीनी एयरस्पोस फोर्स का एक अधिकारी को ये कहते देखा जा रहा है, कि हम युद्ध के मैदान की सख्ती से निगरानी करते हैं, ताकि अगर कोई खतरा उत्पन्न होता है, तो हम फौरन प्रतिक्रिया दे सकें।

बता दें कि दुनिया में अभी किसी भी देश के पास ऐसा रडार नहीं है, जो हाइपरसोनिक मिसाइलों को मार गिरा सके। हालांकि, रूस अपने एस-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम से हाइपरसोनिक मिसाइलों को मारने की क्षमता का दावा जरूर करता है, लेकिन अभी तक उसका टेस्ट नहीं हुआ है।

आर-पार के मूड में चीन, ट्रंप को 10% के जवाब में 15% टैरिफ, अब बढ़ेगा तनाव

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा और मेक्सिको को बड़ी राहत दी। ट्रंप ने दोनों देशों पर टैरिफ लगाने के फैसले को 30 दिन के लिए टाल दिया है। हालांकि, चीन को किसी भी तरह की राहत नहीं दी। फिर क्या था अमेरिका के टैरिफ से चीन तिलमिला उठा और अमेरिका को जवाब देने की ठानी। इसी का नतीजा है कि अब चीन ने भी अमेरिका से इंपोर्ट होकर आने वाले सामानों पर टैरिफ लगाना शुरू कर दिया है। चीन ने अमेरिका के कोयला और क्रूड ऑयल समेत कई उत्पादों पर 15 पर्सेंट तक टैरिफ थोप दिया है। चीन की तरफ से लगाए गए ये टैरिफ 10 फरवरी से लागू होंगे।

चीनी वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को अमेरिकी उत्पादों पर 10 से 15 प्रतिशत टैरिफ लगाने के फैसले की जानकारी दी। बीजिंग के टैरिफ लगाए जाने से चीन में अमेरिका से आने वाले बड़ी कारों, पिक ट्रक, एलएनजी, कच्चा तेल और खेती-बाड़ी की मशीनों के आयात पर असर पड़ेगा। चीन ने कोयले और प्राकृतिक गैस पर 15 प्रतिशत और पेट्रोलियम, कृषि उपकरण, उच्च उत्सर्जन वाले वाहनों और पिकअप ट्रकों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। चीन ने कुछ प्रमुख खनिजों के निर्यात पर नियंत्रण लगाया है। साथ ही गूगल और कुछ अमेरिकी कंपनियों की जांच शुरू कर दी है।

केवल टैरिफ तक नहीं रुका चीन

चीन सिर्फ टैरिफ तक ही नहीं रुका, बल्कि उसने दो अमेरिकी कंपनियों को अपनी अविश्वसनीय संस्थाओं की सूची में डाला है। इसमें बायोटेक कंपनी इलुमिना और केल्विन क्लेन और टॉमी हिलफिगर की मालिकाना हक वाली फैशन रिटेलर कंपनी पीवीएच ग्रुप शामिल है। चीन का कहना है कि उन्होंने सामान्य बाजार व्यापार सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। टैरिफ के अलावा, चीन ने अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनी गूगल के खिलाफ एक एंटी-मोनोपॉली जांच शुरू करने की भी घोषणा की है।

चीन-अमेरिका में छिड़ा ट्रेड वॉर

अमेरिका और चीन के एक-दूसरे पर टैरिफ लगाने से दोनों मुल्कों में व्यापार के स्तर पर तनाव बढ़ गया है। इससे आने वाले दिनों में अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर तेज होने की भी संभावना है। दरअसल, चीन का जवाबी कदम ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच संभावित टेलीफोनिक बातचीत से पहले आया है। ट्रंप ने सोमवार को कहा कि शी के साथ बातचीत ‘शायद अगले 24 घंटों में’ होगी। ट्रंप ने यह भी कहा कि अगर चीन के साथ कोई समझौता नहीं हो सका, तो ‘टैरिफ बहुत, बहुत ज्यादा होंगे।

तिब्‍बत में भूकंप ने मचाई तबाही, 53 की मौत-62 घायल, भारत में भी असर

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मंगलवार की सुबह नेपाल और तिब्बत की सीमा के पास भयंकर भूकंप के कारण धरती कांप उठी है। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 7.1 मापी गई है। भूकंप की तीव्रता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके झटके भारत के बिहार, यूपी, दिल्ली एनसीआर, बंगाल समेत कई राज्यों में महसूस किए गए हैं। चीन के बयान में बताया गया कि नेपाल सीमा के पास तिब्बत क्षेत्र में आए शक्तिशाली भूकंप में अब तक 53 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 62 लोग घायल हैं। भूकंप के चलते मरने वालों की संख्‍या में लगातार इजाफा होता जा रहा है।

तिब्बत में भूकंप शिगाजे शहर में आया. शिगाजे शहर के डिंगरी काउंटी में भूकंप के झटके महसूस किए गए। हालांकि, चीन ने भूकंप की तीव्रता 6.8 दर्ज की। भूकंप 10 किलोमीटर की गहराई पर आया। यूएसजीएस रिपोर्ट के अनुसार, सुबह सात बजे के आसपास एक घंटे के भीतर कम से कम छह बार चार से पांच तीव्रता वाले भूकंप के झटके दर्ज किए गए।

भूकंप सुबह करीब 6:52 बजे आया। नेपाल के काठमांडू, धाडिंग, सिंधुपालचौक, कावरे, मकवानपुर और कई अन्य जिलों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। वहीं उत्तर भारत के भी कई शहरों में भूकंप के झटके महसूस किए गए, हालांकि भारत से अभी किसी हताहत की खबर नहीं है।

नेपाल में किसी तरह के नुकसान खबर नहीं

नेपाल की भूकंप निगरानी एजेंसी ने बताया है सुबह 6 बजकर 50 मिनट पर भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। नेपाल के मुताबिक, भूकंप का केंद्र चीन का डिंगी था। नेपाल की राजधानी काठमांडू में भूकंप के झटकों के कारण लोग बुरी तरह से घबरा गए और अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए। हालांकि, अब तक भूकंप के कारण देश से किसी तरह के नुकसान की कोई खबर सामने नहीं आई है।

भारत में भी महसूस किए गए झटके

भूकंप के झटके भारत के कई राज्यों में भी महसूस किए गए। इसकी जद में सबसे ज्यादा बिहार आया। इसके अलावा असम, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। इस दौरान डरे सहमे लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए। यूएसजीएस भूकंप के मुताबिक, भूकंप का केंद्र लोबुचे से 93 किमी उत्तर पूर्व में था।

नए वायरस पर क्या फिर झूठ बोल रहा चीन? कोरोना काल का डरावना मंजर फिर देखने को ना मिले

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दुनिया में पांच साल पहले कोरोना वायरस ने दस्‍तक दी थी। चीन के वुहान में सामने आए इस वायरस ने देखते ही देखते लाखों लोगों को मौत की नींद में सुला दिया। कुछ वक्‍त गुजरा, वायरस का प्रकोप कम पड़ा, लोगों ने राहत की सांस ली। अब चीन में कोरोना जैसे एक नए वायरस ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस (एचएमपीवी) की दस्‍तक की खबर है। मीडिया रिपोर्टस की मानें तो वहां के अस्पताल मरीजों से भरे पड़े हैं। यहां तक श्मशानों में भी शवों की दफनाने के लिए लंबी-लंबी कतारें देखी जा रही हैं। हालांकि, चीन इस बात को मानने से इनकार कर रहा है।

कोरोना के फैलाव के लिए दुनिया चीन को जिम्मेदार ठहराती है, लेकिन चीन ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया। जिस तरह चीन ने समय रहते कोरोना पर दुनिया को सचेत नहीं किया था। क्या उसी तरह चीन इस बार भी जानकारी छिपा रहा है?

चीन ने फ्लू के प्रकोप की खबरों को खारिज किया

दरअसल, चीन ने देश में बड़े पैमाने पर फ्लू के प्रकोप संबंधी खबरों को अधिक तवज्जो नहीं देते हुए शुक्रवार को कहा कि सर्दियों के दौरान होने वाली श्वसन संबंधी बीमारियों के मामले पिछले साल की तुलना में इस वर्ष कम गंभीर हैं। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि विदेशियों के लिए चीन की यात्रा करना सुरक्षित है। मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने देश में 'इन्फ्लूएंजा ए' और अन्य श्वसन रोगों के फैलने को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में पत्रकारों से कहा, ''सर्दियों के मौसम में श्वसन संक्रमण चरम पर होता है।''

एक तरफ सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो में चीन के अस्पतालों में मरीजों की भारी भीड़ दिख रही है। दूसरी तरफ निंग ने कहा, ''पिछले वर्ष की तुलना में ये बीमारियां कम गंभीर प्रतीत होती हैं और छोटे स्तर पर फैल रही हैं।'' उन्होंने कहा, ''मैं आपको आश्वस्त कर सकती हूं कि चीन सरकार चीनी नागरिकों और विदेशियों के स्वास्थ्य की परवाह करती है। चीन में यात्रा करना सुरक्षित है।''

क्या है तस्वीरों का सच?

चीन नए वायरस ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) से जूझ रहा है। चीन के सोशल मीडिया पर भीड़ भरे हेल्‍थ सेंटर्स की तस्‍वीरों का अंबार लगा है। चीन से सामने आई रिपोर्टों और सोशल मीडिया पोस्‍ट के मुताबिक, संक्रमितों से अस्‍पताल भरे हैं और अंतिम संस्‍कार स्‍थलों पर भीड़ बढ़ गई है। बहुत से सोशल मीडिया यूजर्स का दावा है कि इन्फ्लूएंजा ए, एचएमपीवी, माइकोप्लाज्मा निमोनिया और कोविड-19 सहित कई वायरस चीन में घूम रहे हैं। साथ ही इस तरह के दावे भी किए जा रहे हैं कि चीन ने आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी है। चीन के अधिकारियों ने लोगों से मास्‍क लगाने और लगातार हाथ धोने के लिए कहा है। हालांकि इसकी अभी तक आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

कोरोना की तरह चीन इस बार भी छिपा रहा जानकारी?

बता दें कि चीन में बच्चों में फैल रही इस बीमारी की जानकारी प्रो-मेड नाम की संस्था ने दी है। ये संस्था इंसान और पशुओं की बीमारी के फैलाव पर नज़र रखती है। इसी प्रो-मेड संस्था ने दिसंबर 2019 में कोविड 19 वायरस को लेकर चेतावनी दी थी, जबकि इसके 2 महीने बाद दुनिया को इस वायरस के खतरे का एहसास हुआ। अब प्रो-मेड ने एक बार फिर दुनिया को अलर्ट किया है, लेकिन चीन चुप्पी साधे हुए है।

चीन पर शक की क्‍या है वजह?

चीन कड़े सेंसरशिप कानूनों को लागू करता है। यही कारण है कि चीन से सच पूरी तरह से बाहर नहीं आ पाता है। ऐसे में चीन और चीन की सरकार हमेशा से ही संदेह के घेरे में रहती है।

क्या चीन वाकई 'रोगों का कारख़ाना' बन चुका है? क्या है इसके पीछे की सच्चाई?

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चीन को "रोगों का कारख़ाना" या कोविड-19 के बाद नए वायरस लगातार उभरने का स्थान मानना पूरी तरह से सटीक नहीं है। हालांकि, कुछ कारक हैं जो चीन में नए रोगों या वायरस के उभरने की दर को बढ़ाते हैं, खासकर कोविड-19 के बाद। यहां कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:

 1. घनी जनसंख्या और शहरीकरण

चीन की दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या है और यहां तेजी से शहरीकरण हो रहा है। घनी जनसंख्या, विशेषकर महानगरों में, वायरस के फैलने की संभावना को बढ़ाती है। यह जानवरों से मनुष्यों में रोग के संक्रमण और समुदायों में उनके फैलने के लिए आसान बना देती है।

2. जैव विविधता और गीले बाज़ार

चीन में वन्य जीवन की बहुत अधिक विविधता है, और कई बार यह जीवन मानवों के साथ निकट संपर्क में होता है, खासकर पारंपरिक गीले बाज़ारों में। इन बाज़ारों में, जहां जीवित जानवरों को खाने के लिए बेचा जाता है, जूणोटिक रोगों (जैसे, जो जानवरों से मनुष्यों में फैलते हैं) के फैलने की संभावना अधिक होती है। कई वायरस, जैसे SARS-CoV-2, इन प्रकार के परिवेश में उत्पन्न होते हैं।

 3. वैश्विक यात्रा और व्यापार केंद्र

चीन वैश्विक व्यापार और यात्रा का एक प्रमुख केंद्र है, जिसका मतलब है कि यहां से उत्पन्न होने वाला कोई भी नया वायरस जल्दी ही देश के अंदर और बाहर फैल सकता है। दुनिया की आपसी जुड़ाव ने वायरस को सीमा पार करने में कुछ ही घंटों या दिनों का समय दे दिया है।

 4. इंटेंसिव फार्मिंग प्रैक्टिसेस

औद्योगिक खेती के तरीके, विशेषकर जो सूअरों, मुर्गियों और अन्य मवेशियों से संबंधित हैं, रोगों के प्रसार के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। ये जानवर अक्सर बड़े और भीड़-भाड़ वाले वातावरण में रहते हैं, जिससे वायरस के फैलने और उत्परिवर्तित होने का खतरा बढ़ता है।

5. पर्यावरणीय और जलवायु संबंधी कारक

पर्यावरणीय स्थितियां, जैसे कि मानवों का प्राकृतिक आवासों से बढ़ता संपर्क, वनों की कटाई, और जलवायु परिवर्तन, वन्यजीवों और मनुष्यों को एक-दूसरे के निकट लाने का कारण बनती हैं। इससे जानवरों से मनुष्यों में रोगों का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है।

6. स्वास्थ्य और रिपोर्टिंग सिस्टम

चीन का एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी तंत्र है जो नए प्रकोपों की जल्दी पहचान और रिपोर्ट करने में सक्षम है। इसके परिणामस्वरूप, नए वायरस और रोग प्रकोपों की जल्दी पहचान की जाती है, जिससे यह धारणा बनती है कि चीन नए वायरस के लिए एक "हॉटस्पॉट" है। वास्तव में, कई देशों को समान जोखिम होते हैं लेकिन उनके पास उतने मजबूत निगरानी तंत्र नहीं होते।

चीन की उच्च जनसंख्या घनत्व, जैव विविधता, शहरीकरण और आर्थिक कनेक्शन उसे नए संक्रामक रोगों के उभरने के लिए एक हॉटस्पॉट बनाते हैं, लेकिन यही कारक वैश्विक स्तर पर भी कार्य करते हैं। दुनिया अब पहले से कहीं अधिक जुड़ी हुई है, और जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियां सभी देशों के लिए चिंता का विषय हैं, न कि केवल चीन के लिए। भविष्य में महामारी को रोकने की कुंजी वैश्विक सहयोग में है ताकि संभावित प्रकोपों को फैलने से पहले नियंत्रित किया जा सके।

शांति ड्रैगन की फितरत नहीं! अब ब्रह्मपुत्र नदी पर सबसे बड़ा बांध बनाने का ऐलान, भारत के लिए हो सकता है खतरनाक

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चीन दुनिया का सबसे विशालकाय बांध बनाने जा रहा है। चीन की सरकार ने ऐलान किया है कि वह तिब्‍बत की सबसे लंबी नदी यारलुंग त्‍सांगपो पर महाशक्तिशाली बांध बनाने जा रही है। तिब्बत से निकलते ही यारलुंग जांग्बो नदी को ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है, जो दक्षिण में भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम राज्य से होती हुई बांग्लादेश की ओर बहती है। चीन पहले ही इस नदी के ऊपरी तल में हाइड्रोपावर जेनरेशन की शुरुआत कर चुका है, जो कि तिब्बत के पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

चीन की सरकारी न्‍यूज एजेंसी शिन्‍हुआ ने बुधवार को इसकी जानकारी दी है। न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट चीन के प्रमुख उद्देश्यों को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। चीन के कार्बन पीकिंग और कार्बन न्यूट्रैलिटी लक्ष्यों को पूरा करने के साथ साथ इंजीनियरिंग जैसी इंडस्ट्रीज को प्रोत्साहित करने और तिब्बत में नौकरियों के अवसर पैदा करने में यह प्रोजेक्ट मदद करेगा। यारलुंग जांग्बो का एक भाग 50 किमी (31 मील) की छोटी सी दूरी में 2,000 मीटर (6,561 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जो विशाल हाइड्रोपावर क्षमता के साथ-साथ इंजीनियरिंग के लिए कठिन चुनौतियां भी पेश करता है।

भारत के लिए कैसे खतरनाक

चीन तिब्बत की जिस लंबी नदी को यारलुंग त्सांगपो नदी कहता है, उसे भारत में ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस विशालकाय बांध को हथियार की तरह इस्तेमाल करके भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में कभी भी बाढ़ ला सकता है। लगभग 2900 किमी लंबी ब्रह्मपुत्र नदी भारत में आने से पहले तिब्बत के पठार से होकर गुजरती है। जो कि तिब्बत में धरती की सबसे गहरी खाई बनाती है। जिसे तिब्बती बौद्ध भिक्षु बहुत पवित्र मानते हैं।

धरती की स्‍पीड को प्रभावित कर रहा चीन का बांध

वहीं अभी बिजली पैदा करने के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बांध कहे जाने वाला चीन थ्री जॉर्ज हर साल 88.2 अरब किलोवाट घंटे बिजली पैदा करता है। चीन के हुबई प्रांत में स्थित थ्री जॉर्ज बांध यांगजी नदी पर बनाया गया है।थ्री जॉर्ज बांध में 40 अरब क्‍यूबिक मीटर पानी है और यह धरती की घूमने की रफ्तार को भी प्रभावित कर रहा है। इसकी वजह से धरती की घूमने की गति में हर दिन 0.06 माइक्रोसेकंड बढ़ रहा है। इससे दुनियाभर के वैज्ञानिक काफी चिंत‍ित हैं। इस बांध को सबसे पहले साल 1919 में चीन के पहले राष्‍ट्रपति सुन यात सेन ने बनाने का प्रस्‍ताव दिया था। उन्‍होंने कहा था कि इससे जहां बाढ़ में कमी आएगी, वहीं दुनिया के सामने यह चीन के ताकत का प्रतीक बनेगा। चीन अब तिब्‍बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर नया विशालकाय बांध बनाने जा रहा है।

चीन अपनी परमाणु शक्ति बढ़ा रहा, तैयार किए 600 न्यूक्लियर हथियार, भारत के लिए कितना बड़ा खतरा?

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चीन अपने न्यूक्लियर पावर को लगातार बढ़ा रहा है। दावा किया रहा है कि उसने अपने लिए 600 के करीब परमाणु हथियार भी तैयार करके रखा है। ये दावा पेंटागन की रिपोर्ट में किया गया है। इस रिपोर्ट में इस दावे के साथ-साथ कई चौकाने वाले खुलासे भी किए गए हैं।इसमें कहा गया है कि 2030 के अंत तक चीन के पास 1000 से ज्यादा परमाणु बम होंगे। इनमें से कई को पूरी तरह से तैनाती के मोड पर रखे जाने की योजना है।चीन जिस तरह से अपने परमाणु बमों के भंडार को बढ़ा रहा है, वह भारत और अमेरिका के लिए बड़ा खतरा है।

पेंटागन की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अपने परमाणु हथियारों की संख्या में लगातार इजाफा करने में जुटा है। अगर वह इसी गति से परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाता रहा तो वर्ष 2030 उसके पास 1000 परमाणु हथियार होंगे।रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की वायु सेना अपने टेक्नोलॉजी स्टैंडर्ड में सुधार कर रही है और तेजी से टेक्नोलॉजी को अमेरिकी मानकों के बराबर ला रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने अपने ड्रोन आधुनिकीकरण के प्रयास जारी रखे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ड्रोन के लिए झुंड क्षमताओं को विकसित करने में पर्याप्त प्रयास कर रहा है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि सुधारों के बावजूद, चीन की एयर फोर्स यूएस एयर फोर्स के बराबर या उससे आगे नहीं निकल पाई है।

इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित कर रहा चीन

पेंटागन की इस रिपोर्ट के अनुसार चीन बीते कुछ समय से अपनी सेना को और अधिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने में जुटा है। यही वजह है कि वह लगातार ऐसी मिसाइलें भी बना रहा है जो दुश्मनों की नींद उड़ा सके। रिपोर्ट के अनुसार चीन नई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित करने पर जोर दे रहा है। ऐसा करने से उसकी परमाणु सक्षम मिसाइल ताकतों में इजाफा होगा। इसके साथ-साथ अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन पारंपरिक रूप से सशस्त्र इंटरकॉन्टिनेंटल रेंज मिसाइल सिस्टम विकसित करने पर विचार कर सकता है।

अमेरिका शहरों पर तक हमला करने की क्षमता

इसमें कहा गया है कि चीन एडवांस न्यूक्लियर डिलीवरी सिस्टम विकसित कर रहा है। इसे अमेरिका से दीर्घकालिक चुनौती को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है। पीपल्स रिपब्लिक आर्मी की बढ़ती हुई न्यूक्लियर फोर्स इसे अमेरिकी शहरों, सैन्य सुविधाओं और नेतृत्व स्थलों को निशाना बनाने में सक्षम करेगी। चीन की योजना ऐसे हथियार तैयार करने की है जो बहुत अधिक स्तर पर नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हों।

वॉरशिप और सबमरीन

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के पास 370 से अधिक प्लेटफार्मों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नेवी है। जहाजों की संख्या 2025 तक 395 और 2030 तक 435 जहाजों तक बढ़ने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की नेवी के पास वर्तमान में छह न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन, छह न्यूक्लियर सबमरीन और 48 डीजल से चलने वाली या एयर फ्री अटैक सबमरीन हैं। 2025 तक सबमरीन बल बढ़कर 65 और 2035 तक 80 तक पहुंचने की उम्मीद है।

रूस और उत्तर कोरिया से चीन ने बनाई दूरी

इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ने सार्वजनिक रूप से रूस और उत्तर कोरिया के बढ़ते रक्षा संबंधों से खुदको दूर कर लिया है। ऐसा माना जा रहा है कि चीन ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि शायद उसे लगता है कि इन देशों से नजदीकी उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती है।

एनएसए अजीत डोभाल का चीन दौरा, जानें 5 साल बाद हो रही ये बैठक कितनी अहम?

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भारत और चीन के रिश्ते पर जमी बर्फ अब पिघलती दिख रही है। दोनों देशों के बीच एलएसी पर सीमा विवाद के कारण बीते कुछ सालों में तनाव काफी बढ़ गया था। हालांकि, कई दौर की बातचीत के बाद हालात पटरी पर आते दिख रहे हैं। इसी क्रम में मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल बीजिंग पहुंचे हैं। लगभग पांच वर्षों के अंतराल के बाद उनकी चीन की आधिकारिक यात्रा है। इससे पहले एसआर संवाद दिसंबर 2019 में नई दिल्ली में हुआ था।

अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बुधवार को कई मुद्दों पर चर्चा की। अजीत डोभाल अपने चीनी समकक्ष और विदेश मंत्री वांग यी के साथ विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) की 23वें दौर की वार्ता की। इस दौरान पूर्वी लद्दाख से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर दोनों देशों के बीच 21 अक्टूबर को हुए समझौते के बाद द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इस वार्ता का उद्देश्य पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण चार साल से अधिक समय तक प्रभावित रहे द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करना है। साथ ही दोनों देशों के बीच आई खटास को दूर करना है।

चीनी विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

अजीत डोभाल और वांग यी की विशेष बैठक से पहले चीनी विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। एक सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि चीन द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने और मतभेदों को दूर करने के लिए भारत संग काम करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि चीन और भारत के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण आम समझ को लागू करने, एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करने, बातचीत और संचार के माध्यम से आपसी विश्वास को मजबूत करने, ईमानदारी और सद्भाव के साथ मतभेदों को ठीक से सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को जल्द से जल्द स्थिर और स्वस्थ विकास की पटरी पर लाने के लिए भारत के साथ काम करने के लिए तैयार है।

कम होते तनाव के बीच दौरा कितना अहम

एनएसए का दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब दोनों देशों ने डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों से अपनी सेना को पीछे हटाने के समझौते पर सहमति बनाई है। खबरों के मुताबिक दोनों ओर से को-ऑर्डिनेट पेट्रोलिंग भी शुरू हो गई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए कॉर्प्स कमांडरों की 21 राउंड की बैठक हो चुकी है, इसके अलावा डिप्लोमेटिक लेवल पर भी कई दौर की बातचीत हुई है।

मई 2020 में शुरू हुआ था सैन्य गतिरोध

दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध मई 2020 में शुरू हुआ था। उसी साल जून में गलवां घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच घातक झड़प हुई थी, जिससे दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में गंभीर तनाव आ गया था। सैनिकों की वापसी के समझौते को 21 अक्तूबर को अंतिम रूप दिया गया था। समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिन बाद पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कजान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर बातचीत की थी। बैठक में दोनों पक्षों ने सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता सहित कई वार्ता तंत्रों को बहाल करने पर सहमति व्यक्त की थी।

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?

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अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं।

भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट

भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है।

चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?

चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही।

ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे।

भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह

शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है।

यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई

इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।

ड्रैगन ने एंटी हाइपरसोनिक विशालकाय रडार दिखाकर दुनिया को “डराया”, चीन की सेना ने जारी किया वीडियो

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हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन अपनी स्थिति लगातार बढ़ा रहा है। खुद को ताकतवर बनाने की होड़ में ड्रैगन अत्याधुनिक और पहले से भी ज्यादा विनाशक हथियारों का निर्माण कर रहा है। हाल ही में चीन के दो नए फाइटर जेट को देखा गया था, जिसके बारे में दावा किया गया कि वह छठी पीढ़ी के फाइटर जेट हैं। वहीं, अब ड्रैगन ने दुनिया को एक ऐसा रडार सिस्टम दिखाया है, जो उसे अभेद्य बनाता है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीनी नववर्ष पर देश की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को संबोधित किया। इस दौरान जिनपिंग ने अपनी लंबी दूरी की रडार सिस्टम को दुनिया को दिखाया है।चीन ने पिछले महीने के अंत में एक एडवांस लंबी दूरी के रडार का दुर्लभ फुटेज जारी किया है, जिसके बारे में कहा जा रहा है, कि वो हजारों मील दूर एडवांस मिसाइलों से लेकर हाइपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक करने और मार गिराने की ताकत रखता है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन का यह रडार एक एडवांस अलार्मिक सिस्टम है, जो चीन की सीमा से हजारों मील दूर से आ रहे खतरों का भांप सकता है और उन्हें खत्म करने की ताकत भी रखता है। पीएलए ने राष्ट्रपति को इस रडार सिस्टम का वीडिया भेजा। इसमें जमीन पर एक रडार स्टेशन को दिखाया गया।वीडियो में चीन के तीनों सेनाओं के अधिकारियों के साथ एयरस्पेस फोर्स के अधिकारी दिखाई दिए। हालांकि, यह रडार कैसा है और इसकी ताकत कितनी है, इसके बार में फिलहाल कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई।

जो वीडियो पीएलए ने जारी किया है, उसमें रडार सिस्टम के सामने खड़ा चीनी एयरस्पोस फोर्स का एक अधिकारी को ये कहते देखा जा रहा है, कि हम युद्ध के मैदान की सख्ती से निगरानी करते हैं, ताकि अगर कोई खतरा उत्पन्न होता है, तो हम फौरन प्रतिक्रिया दे सकें।

बता दें कि दुनिया में अभी किसी भी देश के पास ऐसा रडार नहीं है, जो हाइपरसोनिक मिसाइलों को मार गिरा सके। हालांकि, रूस अपने एस-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम से हाइपरसोनिक मिसाइलों को मारने की क्षमता का दावा जरूर करता है, लेकिन अभी तक उसका टेस्ट नहीं हुआ है।

आर-पार के मूड में चीन, ट्रंप को 10% के जवाब में 15% टैरिफ, अब बढ़ेगा तनाव

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा और मेक्सिको को बड़ी राहत दी। ट्रंप ने दोनों देशों पर टैरिफ लगाने के फैसले को 30 दिन के लिए टाल दिया है। हालांकि, चीन को किसी भी तरह की राहत नहीं दी। फिर क्या था अमेरिका के टैरिफ से चीन तिलमिला उठा और अमेरिका को जवाब देने की ठानी। इसी का नतीजा है कि अब चीन ने भी अमेरिका से इंपोर्ट होकर आने वाले सामानों पर टैरिफ लगाना शुरू कर दिया है। चीन ने अमेरिका के कोयला और क्रूड ऑयल समेत कई उत्पादों पर 15 पर्सेंट तक टैरिफ थोप दिया है। चीन की तरफ से लगाए गए ये टैरिफ 10 फरवरी से लागू होंगे।

चीनी वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को अमेरिकी उत्पादों पर 10 से 15 प्रतिशत टैरिफ लगाने के फैसले की जानकारी दी। बीजिंग के टैरिफ लगाए जाने से चीन में अमेरिका से आने वाले बड़ी कारों, पिक ट्रक, एलएनजी, कच्चा तेल और खेती-बाड़ी की मशीनों के आयात पर असर पड़ेगा। चीन ने कोयले और प्राकृतिक गैस पर 15 प्रतिशत और पेट्रोलियम, कृषि उपकरण, उच्च उत्सर्जन वाले वाहनों और पिकअप ट्रकों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। चीन ने कुछ प्रमुख खनिजों के निर्यात पर नियंत्रण लगाया है। साथ ही गूगल और कुछ अमेरिकी कंपनियों की जांच शुरू कर दी है।

केवल टैरिफ तक नहीं रुका चीन

चीन सिर्फ टैरिफ तक ही नहीं रुका, बल्कि उसने दो अमेरिकी कंपनियों को अपनी अविश्वसनीय संस्थाओं की सूची में डाला है। इसमें बायोटेक कंपनी इलुमिना और केल्विन क्लेन और टॉमी हिलफिगर की मालिकाना हक वाली फैशन रिटेलर कंपनी पीवीएच ग्रुप शामिल है। चीन का कहना है कि उन्होंने सामान्य बाजार व्यापार सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। टैरिफ के अलावा, चीन ने अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनी गूगल के खिलाफ एक एंटी-मोनोपॉली जांच शुरू करने की भी घोषणा की है।

चीन-अमेरिका में छिड़ा ट्रेड वॉर

अमेरिका और चीन के एक-दूसरे पर टैरिफ लगाने से दोनों मुल्कों में व्यापार के स्तर पर तनाव बढ़ गया है। इससे आने वाले दिनों में अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर तेज होने की भी संभावना है। दरअसल, चीन का जवाबी कदम ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच संभावित टेलीफोनिक बातचीत से पहले आया है। ट्रंप ने सोमवार को कहा कि शी के साथ बातचीत ‘शायद अगले 24 घंटों में’ होगी। ट्रंप ने यह भी कहा कि अगर चीन के साथ कोई समझौता नहीं हो सका, तो ‘टैरिफ बहुत, बहुत ज्यादा होंगे।

तिब्‍बत में भूकंप ने मचाई तबाही, 53 की मौत-62 घायल, भारत में भी असर

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मंगलवार की सुबह नेपाल और तिब्बत की सीमा के पास भयंकर भूकंप के कारण धरती कांप उठी है। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 7.1 मापी गई है। भूकंप की तीव्रता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके झटके भारत के बिहार, यूपी, दिल्ली एनसीआर, बंगाल समेत कई राज्यों में महसूस किए गए हैं। चीन के बयान में बताया गया कि नेपाल सीमा के पास तिब्बत क्षेत्र में आए शक्तिशाली भूकंप में अब तक 53 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 62 लोग घायल हैं। भूकंप के चलते मरने वालों की संख्‍या में लगातार इजाफा होता जा रहा है।

तिब्बत में भूकंप शिगाजे शहर में आया. शिगाजे शहर के डिंगरी काउंटी में भूकंप के झटके महसूस किए गए। हालांकि, चीन ने भूकंप की तीव्रता 6.8 दर्ज की। भूकंप 10 किलोमीटर की गहराई पर आया। यूएसजीएस रिपोर्ट के अनुसार, सुबह सात बजे के आसपास एक घंटे के भीतर कम से कम छह बार चार से पांच तीव्रता वाले भूकंप के झटके दर्ज किए गए।

भूकंप सुबह करीब 6:52 बजे आया। नेपाल के काठमांडू, धाडिंग, सिंधुपालचौक, कावरे, मकवानपुर और कई अन्य जिलों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। वहीं उत्तर भारत के भी कई शहरों में भूकंप के झटके महसूस किए गए, हालांकि भारत से अभी किसी हताहत की खबर नहीं है।

नेपाल में किसी तरह के नुकसान खबर नहीं

नेपाल की भूकंप निगरानी एजेंसी ने बताया है सुबह 6 बजकर 50 मिनट पर भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। नेपाल के मुताबिक, भूकंप का केंद्र चीन का डिंगी था। नेपाल की राजधानी काठमांडू में भूकंप के झटकों के कारण लोग बुरी तरह से घबरा गए और अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए। हालांकि, अब तक भूकंप के कारण देश से किसी तरह के नुकसान की कोई खबर सामने नहीं आई है।

भारत में भी महसूस किए गए झटके

भूकंप के झटके भारत के कई राज्यों में भी महसूस किए गए। इसकी जद में सबसे ज्यादा बिहार आया। इसके अलावा असम, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। इस दौरान डरे सहमे लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए। यूएसजीएस भूकंप के मुताबिक, भूकंप का केंद्र लोबुचे से 93 किमी उत्तर पूर्व में था।

नए वायरस पर क्या फिर झूठ बोल रहा चीन? कोरोना काल का डरावना मंजर फिर देखने को ना मिले

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दुनिया में पांच साल पहले कोरोना वायरस ने दस्‍तक दी थी। चीन के वुहान में सामने आए इस वायरस ने देखते ही देखते लाखों लोगों को मौत की नींद में सुला दिया। कुछ वक्‍त गुजरा, वायरस का प्रकोप कम पड़ा, लोगों ने राहत की सांस ली। अब चीन में कोरोना जैसे एक नए वायरस ह्यूमन मेटान्यूमो वायरस (एचएमपीवी) की दस्‍तक की खबर है। मीडिया रिपोर्टस की मानें तो वहां के अस्पताल मरीजों से भरे पड़े हैं। यहां तक श्मशानों में भी शवों की दफनाने के लिए लंबी-लंबी कतारें देखी जा रही हैं। हालांकि, चीन इस बात को मानने से इनकार कर रहा है।

कोरोना के फैलाव के लिए दुनिया चीन को जिम्मेदार ठहराती है, लेकिन चीन ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया। जिस तरह चीन ने समय रहते कोरोना पर दुनिया को सचेत नहीं किया था। क्या उसी तरह चीन इस बार भी जानकारी छिपा रहा है?

चीन ने फ्लू के प्रकोप की खबरों को खारिज किया

दरअसल, चीन ने देश में बड़े पैमाने पर फ्लू के प्रकोप संबंधी खबरों को अधिक तवज्जो नहीं देते हुए शुक्रवार को कहा कि सर्दियों के दौरान होने वाली श्वसन संबंधी बीमारियों के मामले पिछले साल की तुलना में इस वर्ष कम गंभीर हैं। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि विदेशियों के लिए चीन की यात्रा करना सुरक्षित है। मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने देश में 'इन्फ्लूएंजा ए' और अन्य श्वसन रोगों के फैलने को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में पत्रकारों से कहा, ''सर्दियों के मौसम में श्वसन संक्रमण चरम पर होता है।''

एक तरफ सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो में चीन के अस्पतालों में मरीजों की भारी भीड़ दिख रही है। दूसरी तरफ निंग ने कहा, ''पिछले वर्ष की तुलना में ये बीमारियां कम गंभीर प्रतीत होती हैं और छोटे स्तर पर फैल रही हैं।'' उन्होंने कहा, ''मैं आपको आश्वस्त कर सकती हूं कि चीन सरकार चीनी नागरिकों और विदेशियों के स्वास्थ्य की परवाह करती है। चीन में यात्रा करना सुरक्षित है।''

क्या है तस्वीरों का सच?

चीन नए वायरस ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (एचएमपीवी) से जूझ रहा है। चीन के सोशल मीडिया पर भीड़ भरे हेल्‍थ सेंटर्स की तस्‍वीरों का अंबार लगा है। चीन से सामने आई रिपोर्टों और सोशल मीडिया पोस्‍ट के मुताबिक, संक्रमितों से अस्‍पताल भरे हैं और अंतिम संस्‍कार स्‍थलों पर भीड़ बढ़ गई है। बहुत से सोशल मीडिया यूजर्स का दावा है कि इन्फ्लूएंजा ए, एचएमपीवी, माइकोप्लाज्मा निमोनिया और कोविड-19 सहित कई वायरस चीन में घूम रहे हैं। साथ ही इस तरह के दावे भी किए जा रहे हैं कि चीन ने आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी है। चीन के अधिकारियों ने लोगों से मास्‍क लगाने और लगातार हाथ धोने के लिए कहा है। हालांकि इसकी अभी तक आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

कोरोना की तरह चीन इस बार भी छिपा रहा जानकारी?

बता दें कि चीन में बच्चों में फैल रही इस बीमारी की जानकारी प्रो-मेड नाम की संस्था ने दी है। ये संस्था इंसान और पशुओं की बीमारी के फैलाव पर नज़र रखती है। इसी प्रो-मेड संस्था ने दिसंबर 2019 में कोविड 19 वायरस को लेकर चेतावनी दी थी, जबकि इसके 2 महीने बाद दुनिया को इस वायरस के खतरे का एहसास हुआ। अब प्रो-मेड ने एक बार फिर दुनिया को अलर्ट किया है, लेकिन चीन चुप्पी साधे हुए है।

चीन पर शक की क्‍या है वजह?

चीन कड़े सेंसरशिप कानूनों को लागू करता है। यही कारण है कि चीन से सच पूरी तरह से बाहर नहीं आ पाता है। ऐसे में चीन और चीन की सरकार हमेशा से ही संदेह के घेरे में रहती है।

क्या चीन वाकई 'रोगों का कारख़ाना' बन चुका है? क्या है इसके पीछे की सच्चाई?

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चीन को "रोगों का कारख़ाना" या कोविड-19 के बाद नए वायरस लगातार उभरने का स्थान मानना पूरी तरह से सटीक नहीं है। हालांकि, कुछ कारक हैं जो चीन में नए रोगों या वायरस के उभरने की दर को बढ़ाते हैं, खासकर कोविड-19 के बाद। यहां कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:

 1. घनी जनसंख्या और शहरीकरण

चीन की दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या है और यहां तेजी से शहरीकरण हो रहा है। घनी जनसंख्या, विशेषकर महानगरों में, वायरस के फैलने की संभावना को बढ़ाती है। यह जानवरों से मनुष्यों में रोग के संक्रमण और समुदायों में उनके फैलने के लिए आसान बना देती है।

2. जैव विविधता और गीले बाज़ार

चीन में वन्य जीवन की बहुत अधिक विविधता है, और कई बार यह जीवन मानवों के साथ निकट संपर्क में होता है, खासकर पारंपरिक गीले बाज़ारों में। इन बाज़ारों में, जहां जीवित जानवरों को खाने के लिए बेचा जाता है, जूणोटिक रोगों (जैसे, जो जानवरों से मनुष्यों में फैलते हैं) के फैलने की संभावना अधिक होती है। कई वायरस, जैसे SARS-CoV-2, इन प्रकार के परिवेश में उत्पन्न होते हैं।

 3. वैश्विक यात्रा और व्यापार केंद्र

चीन वैश्विक व्यापार और यात्रा का एक प्रमुख केंद्र है, जिसका मतलब है कि यहां से उत्पन्न होने वाला कोई भी नया वायरस जल्दी ही देश के अंदर और बाहर फैल सकता है। दुनिया की आपसी जुड़ाव ने वायरस को सीमा पार करने में कुछ ही घंटों या दिनों का समय दे दिया है।

 4. इंटेंसिव फार्मिंग प्रैक्टिसेस

औद्योगिक खेती के तरीके, विशेषकर जो सूअरों, मुर्गियों और अन्य मवेशियों से संबंधित हैं, रोगों के प्रसार के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। ये जानवर अक्सर बड़े और भीड़-भाड़ वाले वातावरण में रहते हैं, जिससे वायरस के फैलने और उत्परिवर्तित होने का खतरा बढ़ता है।

5. पर्यावरणीय और जलवायु संबंधी कारक

पर्यावरणीय स्थितियां, जैसे कि मानवों का प्राकृतिक आवासों से बढ़ता संपर्क, वनों की कटाई, और जलवायु परिवर्तन, वन्यजीवों और मनुष्यों को एक-दूसरे के निकट लाने का कारण बनती हैं। इससे जानवरों से मनुष्यों में रोगों का संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है।

6. स्वास्थ्य और रिपोर्टिंग सिस्टम

चीन का एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी तंत्र है जो नए प्रकोपों की जल्दी पहचान और रिपोर्ट करने में सक्षम है। इसके परिणामस्वरूप, नए वायरस और रोग प्रकोपों की जल्दी पहचान की जाती है, जिससे यह धारणा बनती है कि चीन नए वायरस के लिए एक "हॉटस्पॉट" है। वास्तव में, कई देशों को समान जोखिम होते हैं लेकिन उनके पास उतने मजबूत निगरानी तंत्र नहीं होते।

चीन की उच्च जनसंख्या घनत्व, जैव विविधता, शहरीकरण और आर्थिक कनेक्शन उसे नए संक्रामक रोगों के उभरने के लिए एक हॉटस्पॉट बनाते हैं, लेकिन यही कारक वैश्विक स्तर पर भी कार्य करते हैं। दुनिया अब पहले से कहीं अधिक जुड़ी हुई है, और जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियां सभी देशों के लिए चिंता का विषय हैं, न कि केवल चीन के लिए। भविष्य में महामारी को रोकने की कुंजी वैश्विक सहयोग में है ताकि संभावित प्रकोपों को फैलने से पहले नियंत्रित किया जा सके।

शांति ड्रैगन की फितरत नहीं! अब ब्रह्मपुत्र नदी पर सबसे बड़ा बांध बनाने का ऐलान, भारत के लिए हो सकता है खतरनाक

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चीन दुनिया का सबसे विशालकाय बांध बनाने जा रहा है। चीन की सरकार ने ऐलान किया है कि वह तिब्‍बत की सबसे लंबी नदी यारलुंग त्‍सांगपो पर महाशक्तिशाली बांध बनाने जा रही है। तिब्बत से निकलते ही यारलुंग जांग्बो नदी को ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है, जो दक्षिण में भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम राज्य से होती हुई बांग्लादेश की ओर बहती है। चीन पहले ही इस नदी के ऊपरी तल में हाइड्रोपावर जेनरेशन की शुरुआत कर चुका है, जो कि तिब्बत के पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

चीन की सरकारी न्‍यूज एजेंसी शिन्‍हुआ ने बुधवार को इसकी जानकारी दी है। न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट चीन के प्रमुख उद्देश्यों को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। चीन के कार्बन पीकिंग और कार्बन न्यूट्रैलिटी लक्ष्यों को पूरा करने के साथ साथ इंजीनियरिंग जैसी इंडस्ट्रीज को प्रोत्साहित करने और तिब्बत में नौकरियों के अवसर पैदा करने में यह प्रोजेक्ट मदद करेगा। यारलुंग जांग्बो का एक भाग 50 किमी (31 मील) की छोटी सी दूरी में 2,000 मीटर (6,561 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है, जो विशाल हाइड्रोपावर क्षमता के साथ-साथ इंजीनियरिंग के लिए कठिन चुनौतियां भी पेश करता है।

भारत के लिए कैसे खतरनाक

चीन तिब्बत की जिस लंबी नदी को यारलुंग त्सांगपो नदी कहता है, उसे भारत में ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस विशालकाय बांध को हथियार की तरह इस्तेमाल करके भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में कभी भी बाढ़ ला सकता है। लगभग 2900 किमी लंबी ब्रह्मपुत्र नदी भारत में आने से पहले तिब्बत के पठार से होकर गुजरती है। जो कि तिब्बत में धरती की सबसे गहरी खाई बनाती है। जिसे तिब्बती बौद्ध भिक्षु बहुत पवित्र मानते हैं।

धरती की स्‍पीड को प्रभावित कर रहा चीन का बांध

वहीं अभी बिजली पैदा करने के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बांध कहे जाने वाला चीन थ्री जॉर्ज हर साल 88.2 अरब किलोवाट घंटे बिजली पैदा करता है। चीन के हुबई प्रांत में स्थित थ्री जॉर्ज बांध यांगजी नदी पर बनाया गया है।थ्री जॉर्ज बांध में 40 अरब क्‍यूबिक मीटर पानी है और यह धरती की घूमने की रफ्तार को भी प्रभावित कर रहा है। इसकी वजह से धरती की घूमने की गति में हर दिन 0.06 माइक्रोसेकंड बढ़ रहा है। इससे दुनियाभर के वैज्ञानिक काफी चिंत‍ित हैं। इस बांध को सबसे पहले साल 1919 में चीन के पहले राष्‍ट्रपति सुन यात सेन ने बनाने का प्रस्‍ताव दिया था। उन्‍होंने कहा था कि इससे जहां बाढ़ में कमी आएगी, वहीं दुनिया के सामने यह चीन के ताकत का प्रतीक बनेगा। चीन अब तिब्‍बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर नया विशालकाय बांध बनाने जा रहा है।

चीन अपनी परमाणु शक्ति बढ़ा रहा, तैयार किए 600 न्यूक्लियर हथियार, भारत के लिए कितना बड़ा खतरा?

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चीन अपने न्यूक्लियर पावर को लगातार बढ़ा रहा है। दावा किया रहा है कि उसने अपने लिए 600 के करीब परमाणु हथियार भी तैयार करके रखा है। ये दावा पेंटागन की रिपोर्ट में किया गया है। इस रिपोर्ट में इस दावे के साथ-साथ कई चौकाने वाले खुलासे भी किए गए हैं।इसमें कहा गया है कि 2030 के अंत तक चीन के पास 1000 से ज्यादा परमाणु बम होंगे। इनमें से कई को पूरी तरह से तैनाती के मोड पर रखे जाने की योजना है।चीन जिस तरह से अपने परमाणु बमों के भंडार को बढ़ा रहा है, वह भारत और अमेरिका के लिए बड़ा खतरा है।

पेंटागन की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अपने परमाणु हथियारों की संख्या में लगातार इजाफा करने में जुटा है। अगर वह इसी गति से परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाता रहा तो वर्ष 2030 उसके पास 1000 परमाणु हथियार होंगे।रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की वायु सेना अपने टेक्नोलॉजी स्टैंडर्ड में सुधार कर रही है और तेजी से टेक्नोलॉजी को अमेरिकी मानकों के बराबर ला रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने अपने ड्रोन आधुनिकीकरण के प्रयास जारी रखे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ड्रोन के लिए झुंड क्षमताओं को विकसित करने में पर्याप्त प्रयास कर रहा है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि सुधारों के बावजूद, चीन की एयर फोर्स यूएस एयर फोर्स के बराबर या उससे आगे नहीं निकल पाई है।

इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित कर रहा चीन

पेंटागन की इस रिपोर्ट के अनुसार चीन बीते कुछ समय से अपनी सेना को और अधिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने में जुटा है। यही वजह है कि वह लगातार ऐसी मिसाइलें भी बना रहा है जो दुश्मनों की नींद उड़ा सके। रिपोर्ट के अनुसार चीन नई इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित करने पर जोर दे रहा है। ऐसा करने से उसकी परमाणु सक्षम मिसाइल ताकतों में इजाफा होगा। इसके साथ-साथ अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन पारंपरिक रूप से सशस्त्र इंटरकॉन्टिनेंटल रेंज मिसाइल सिस्टम विकसित करने पर विचार कर सकता है।

अमेरिका शहरों पर तक हमला करने की क्षमता

इसमें कहा गया है कि चीन एडवांस न्यूक्लियर डिलीवरी सिस्टम विकसित कर रहा है। इसे अमेरिका से दीर्घकालिक चुनौती को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है। पीपल्स रिपब्लिक आर्मी की बढ़ती हुई न्यूक्लियर फोर्स इसे अमेरिकी शहरों, सैन्य सुविधाओं और नेतृत्व स्थलों को निशाना बनाने में सक्षम करेगी। चीन की योजना ऐसे हथियार तैयार करने की है जो बहुत अधिक स्तर पर नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हों।

वॉरशिप और सबमरीन

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के पास 370 से अधिक प्लेटफार्मों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नेवी है। जहाजों की संख्या 2025 तक 395 और 2030 तक 435 जहाजों तक बढ़ने की उम्मीद है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की नेवी के पास वर्तमान में छह न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन, छह न्यूक्लियर सबमरीन और 48 डीजल से चलने वाली या एयर फ्री अटैक सबमरीन हैं। 2025 तक सबमरीन बल बढ़कर 65 और 2035 तक 80 तक पहुंचने की उम्मीद है।

रूस और उत्तर कोरिया से चीन ने बनाई दूरी

इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन ने सार्वजनिक रूप से रूस और उत्तर कोरिया के बढ़ते रक्षा संबंधों से खुदको दूर कर लिया है। ऐसा माना जा रहा है कि चीन ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि शायद उसे लगता है कि इन देशों से नजदीकी उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती है।

एनएसए अजीत डोभाल का चीन दौरा, जानें 5 साल बाद हो रही ये बैठक कितनी अहम?

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भारत और चीन के रिश्ते पर जमी बर्फ अब पिघलती दिख रही है। दोनों देशों के बीच एलएसी पर सीमा विवाद के कारण बीते कुछ सालों में तनाव काफी बढ़ गया था। हालांकि, कई दौर की बातचीत के बाद हालात पटरी पर आते दिख रहे हैं। इसी क्रम में मंगलवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल बीजिंग पहुंचे हैं। लगभग पांच वर्षों के अंतराल के बाद उनकी चीन की आधिकारिक यात्रा है। इससे पहले एसआर संवाद दिसंबर 2019 में नई दिल्ली में हुआ था।

अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बुधवार को कई मुद्दों पर चर्चा की। अजीत डोभाल अपने चीनी समकक्ष और विदेश मंत्री वांग यी के साथ विशेष प्रतिनिधियों (एसआर) की 23वें दौर की वार्ता की। इस दौरान पूर्वी लद्दाख से सैनिकों की वापसी और गश्त को लेकर दोनों देशों के बीच 21 अक्टूबर को हुए समझौते के बाद द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करने के लिए कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इस वार्ता का उद्देश्य पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण चार साल से अधिक समय तक प्रभावित रहे द्विपक्षीय संबंधों को बहाल करना है। साथ ही दोनों देशों के बीच आई खटास को दूर करना है।

चीनी विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

अजीत डोभाल और वांग यी की विशेष बैठक से पहले चीनी विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। एक सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि चीन द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने और मतभेदों को दूर करने के लिए भारत संग काम करने को तैयार है। उन्होंने कहा कि चीन और भारत के नेताओं के बीच महत्वपूर्ण आम समझ को लागू करने, एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करने, बातचीत और संचार के माध्यम से आपसी विश्वास को मजबूत करने, ईमानदारी और सद्भाव के साथ मतभेदों को ठीक से सुलझाने और द्विपक्षीय संबंधों को जल्द से जल्द स्थिर और स्वस्थ विकास की पटरी पर लाने के लिए भारत के साथ काम करने के लिए तैयार है।

कम होते तनाव के बीच दौरा कितना अहम

एनएसए का दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब दोनों देशों ने डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों से अपनी सेना को पीछे हटाने के समझौते पर सहमति बनाई है। खबरों के मुताबिक दोनों ओर से को-ऑर्डिनेट पेट्रोलिंग भी शुरू हो गई है। इस विवाद को सुलझाने के लिए कॉर्प्स कमांडरों की 21 राउंड की बैठक हो चुकी है, इसके अलावा डिप्लोमेटिक लेवल पर भी कई दौर की बातचीत हुई है।

मई 2020 में शुरू हुआ था सैन्य गतिरोध

दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध मई 2020 में शुरू हुआ था। उसी साल जून में गलवां घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच घातक झड़प हुई थी, जिससे दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में गंभीर तनाव आ गया था। सैनिकों की वापसी के समझौते को 21 अक्तूबर को अंतिम रूप दिया गया था। समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दिन बाद पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के कजान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर बातचीत की थी। बैठक में दोनों पक्षों ने सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता सहित कई वार्ता तंत्रों को बहाल करने पर सहमति व्यक्त की थी।

ट्रंप ने बढ़ाई 'ड्रैगन' की टेंशन! इसे चीन में नियुक्त किया अमेरिकी राजदूत

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई सरकार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन सरकार के अंतर्राष्ट्रीयवाद के दृष्टिकोण से बिल्कुल अलग काम करने जा रही है। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप के हालिया फैसले के बाद कहा जा सकता है। डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद से लगातार अपनी टीम बनाने तैयारी में लगे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने चीन को लेकर भी पत्ते खोल दिए हैं। ट्रंप ने जॉर्जिया डेविड पर्ड्यू को चीन में एंबेसडर के लिए नॉमिनेट किया है।

ट्रंप ने गुरुवार को फैसले की जानकारी दी। अलजजीरा की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “फॉर्च्यून 500 के सीईओ के रूप में, जिनका 40 साल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करियर रहा है और जिन्होंने अमेरिकी सीनेट में सेवा की है। डेविड चीन के साथ हमारे संबंधों को बनाने में मदद करने के लिए बहुमूल्य विशेषज्ञता लेकर आए हैं। वह सिंगापुर और हांगकांग में रह चुके हैं और उन्होंने अपने करियर के अधिकांश समय एशिया और चीन में काम किया है।”

पर्ड्यू की नियुक्ति के लिए अमेरिकी सीनेट की मंजूरी की आवश्यकता होगी, लेकिन उनके अनुमोदन की संभावना है, क्योंकि सदन में रिपब्लिकन का बहुमत है। राजदूत के रूप में पर्ड्यू को शुरुआत से ही चुनौतीपूर्ण कार्यभार का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि ट्रम्प अमेरिका को चीन के साथ एक व्यापक व्यापार युद्ध में ले जाने के लिए तैयार हैं।

अभी हाल ही में ट्रंप ने अवैध अप्रवास और ड्रग्स पर लगाम लगाने के अपने प्रयास के तहत पदभार संभालते ही मैक्सिको, कनाडा और चीन पर व्यापक नए टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि वह कनाडा और मैक्सिको से देश में प्रवेश करने वाले सभी उत्पादों पर 25 प्रतिशत कर लगाएंगे और चीन से आने वाले सामानों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे, जो उनके पहले कार्यकारी आदेशों में से एक है।

इसके बाद वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने इस सप्ताह के प्रारंभ में चेतावनी दी थी कि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो सभी पक्षों को नुकसान होगा। दूतावास के प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक्स पर पोस्ट किया कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है। कोई भी व्यापार युद्ध या टैरिफ युद्ध नहीं जीतेगा। उन्होंने कहा कि चीन ने पिछले साल नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने में मदद करने के लिए कदम उठाए थे।

धमकियों पर कितना अमल करेंगे ट्रंप?

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्रंप वास्तव में इन धमकियों पर अमल करेंगे या वे इन्हें बातचीत की रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर टैरिफ लागू किए जाते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए गैस से लेकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया अमेरिकी जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मेक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

ट्रंप की चीन विरोधी टीम!

इससे पहले भी ट्रंप ने मार्को रूबियो और माइक वाल्ट्ज जैसे नेताओं को नई सरकार में अहम भूमिका के लिए चुना है। ये दोनों ही नेता चीन के विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के प्रति सख्त रुख की नीति पर ही काम करने जा रहे हैं।

भारत के प्रति अचानक क्यों प्रेम दिखाने लगा चीन, कहीं ट्रंप की वापसी का तो नहीं है असर?

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अमेरिका में फिर से डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में वापसी का वैश्विक असर देखा जा रहा है। हर देश ट्रंप के साथ अपने हितों को साधने के लिए कोशिश कर रहा है। चीन को सबसे ज्यादा डर कारोबार को लेकर है। माना जा रहा है कि जनवरी में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर लगने वाला टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पहले से ही धीमी आर्थिक गति की मार झेल रहे चीन के लिए यह बड़ा धक्का होगा। ऐसे में चीन की अकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है। खासकर भारत के साथ ड्रैगन के तेवर में तेजी से बदलाव हुए हैं।

भारत-चीन के बीच कम हो रही कड़वाहट

भारत और चीन के बीच संबंधों की बात करें तो सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ अक्सर उसके संबंध तनावपूर्ण ही रहेंगे है, लेकिन अचनाक से भारत और चीन के बीच कड़वाहट कम होती दिख रही है। पहले दोनों देशों के बीच एलएसी पर सहमति बनी है। बीते माह दोनों देशों ने एलएसी के विवाद वाले हिस्से से अपनी-अपनी सेना वापस बुला ली। फिर रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच प्रतिनिधि मंडल स्तर की बातचीत हुई। अब दोनों देश के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने पर जोर बढ़ रहा है। अब ब्राजील में जी20 देशों की बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात हुई। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदियों के जल बंटवारे और दोनों देशों के बीच डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने के मुद्दों पर बात बढ़ी है। चीन की ओर से भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम हो रहा है।

चीन के ढीले पड़े तेवर की क्या है वजह?

चीन के ढीले पड़े तेवर के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इसकी वजह क्या है। दरअसल, जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीता है, तब से चीन डरा हुआ है। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर नकेल कसने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही वजह है कि अब चीन ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले अमेरिका के साथ मधुर संबंधों को बनाए रखने की बातें करने लगा है। इसके लिए वह भारत से भी तनाव कम करने के लिए तैयार है। अमेरिका में आगामी ट्रंप प्रशासन का दबाव कम करने के लिए चीन अब भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है।यह बात अमेरिका-भारत सामरिक एवं साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने कही।

ट्रंप का वापसी से डरा ड्रैगन

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अपनाने वाला नेता माना जाता है। उन्होंने सत्ता संभालने से पहले ही इसकी झलक दे दी है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति बनते ही वह चीन से होने वाले सभी आयात पर टैरिफ में भारी बढ़ोतरी करेंगे। उनका कहना है कि वह अमेरिका फर्स्ट की नीति पर चलते हुए अमेरिका को चीनी माल के लिए डंपिंग स्थन नहीं बनने देंगे।

भारत के साथ संबंध सुधारने की ये है वजह

शी जिनपिंग समझ चुके हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले से हिली हुईं है। चीन का विकास दर घटता जा रहा है। 22 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2024-25 में चीन की विकास दर गिरावट के साथ 4.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि भारत का जीडीपी ग्रोथ 7 फीसदी रह सकता है। अमेरिका की ओर से दवाब बढ़ने की आशंकाओं में चीन के पास भारत के साथ संबंधों को सुधराने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं बचता। भारत में चीनी निवेश के सख्त नियम है, और भारत जैसे बढ़ते बाजार में चीन अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में संबंधों को सुधारने पर जोर दे रहा है।

यूएस से होने वाले नुकसान की यहां होगी भरपाई

इस वक्त भारत को चीनी निर्यात 100 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है। चीन के लिए भारत दुनिया का एक बड़ा बाजार है। वह इसकी अनदेखी नहीं कर सकता है। वैसे चीन एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। बीते साल 2023 में उसका कुल निर्यात 3.38 ट्रिलियन डॉलर का रहा। भारत की कुल अर्थव्यवस्था ही करीब 3.5 ट्रिलिनय डॉलर की है। चीन और अमेरिका के बीच करीब 500 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। यूरोपीय संघ भी उसका एक सबसे बड़ा साझेदार है। लेकिन भारत दुनिया में एक उभरता हुआ बाजार है।चीन आने वाले दिनों में अमेरिका में होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई भारत को निर्यात बढ़ाकर कर सकता है। ऐसे में कहा जा रहा है कि भारत और चीन के रिश्ते में नरमी का कहीं यही राज तो नहीं है।