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RSS के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रतन टाटा के निधन पर शोक जताते हुए कही ये बात

टाटा समूह के मानद चेयरमैन और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के निधन के बाद देशभर में शोक की लहर है. पीएम नरेंद्र मोदी समेत देश की दिग्गज हस्तियों ने उनके निधन पर शोक जताया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने भी रतन के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि भारत की विकास यात्रा में रतन टाटा का योगदान चिरस्मरणीय रहेगा और उन्होंने उद्योग जगत में कई स्टैंडर्ड भी स्थापित किए.

मोहन भागवत ने अपने बयान में कहा, “देश के सुप्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा का निधन सभी देशवासियों के लिए अत्यंत दुःखद है. उनके निधन से देश ने एक अपना अमूल्य रत्न को खो दिया है. भारत की विकास यात्रा में उनका योगदान चिरस्मरणीय रहेगा.” उन्होंने यह भी कहा कि रतन टाट ने उद्योग के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कई नई और प्रभावी पहल के साथ ही ढेरों श्रेष्ठ मानकों को स्थापित किया.

अपने काम से वह प्रेरणादायी रहेः भागवत

रतन टाटा के योगदान को याद करते हुए संघ प्रमुख भागवत ने कहा, “समाज के हितों के अनुकूल हर तरह के कामों में उनका निरंतर सहयोग और सहभागिता बनी रही. देश की एकात्मता और सुरक्षा की बात हो या विकास के कोई पहलू हो या फिर अपने यहां कार्यरत कर्मचारियों के हित का मामला हो रतन टाटा अपने विशिष्ट सोच और काम से प्रेरणादायी बने रहे. अनेक ऊचांइयों को छू लेने के बाद भी उनकी सहजता और विनम्रता की शैली हमारे लिए हमेशा अनुकरणीय रहेगी.” उन्होंने कहा कि उनकी पावन स्मृतियों को विनम्र अभिवादन करते हुए हम भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करते हैं.

वयोवृद्ध उद्योगपति रतन टाटा का कल बुधवार देर रात मुंबई के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वह 86 साल के थे. पद्म विभूषण रतन टाटा का दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में रात साढ़े 11 बजे निधन हो गया.

अंतिम संस्कार में शामिल होंगे अमित शाह

रतन का पार्थिव शरीर आज गुरुवार को सुबह 10 बजे से साढ़े तीन बजे तक दक्षिण मुंबई में नरीमन प्वाइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (NCPA) में लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा.

इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज गुरुवार को रतन टाटा के अंतिम संस्कार में शामिल होंगे. सूत्रों की ओर से बताया गया कि भारत सरकार की ओर से अमित शाह रतन टाटा को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे. अमित शाह उद्योगपति के अंतिम संस्कार के लिए इसलिए मुंबई जाएंगे क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आसियान-भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में शामिल होने लाओस के लिए रवाना हो रहे हैं.

महाराष्ट्र में आज राजकीय शोक

दूसरी ओर, महाराष्ट्र सरकार ने रतन टाटा के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए आज राज्य में एक दिन के शोक की घोषणा की. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हवाले से मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) ने अपने एक बयान में कहा कि महाराष्ट्र में सरकारी कार्यालयों पर राष्ट्र ध्वज गुरुवार (10 अक्टूबर) को शोक के प्रतीक के रूप में आधा झुका रहेगा. आज कोई मनोरंजन कार्यक्रम नहीं होगा.

प्रभारी मंत्री की नाराजगी पड़ी भारी, आवास विकास के अधिशासी अभियंता का तबादला हुआ कानपुर

मुरादाबाद। प्रभारी मंत्री की नाराजगी के तीसरे दिन आवास विकास परिषद के अधिशासी अभियंता का तबादला कानपुर के लिए हो गया।अधिशासी अभियंता भाजपा कार्यालय का नक्शा पास करने में हीलाहवाली का आरोप था। तीन दिन पहले सोमवार को मुरादाबाद पहुंचे जिले के प्रभारी मंत्री अनिल कुमार ने समीक्षा बैठक की थी। जिसमें मुरादाबाद नगर विधानसभा से भाजपा विधायक रितेश गुप्ता ने आवास विकास के अधिशासी अभियंता नीरज कुमार पर आम जनता के कार्यों में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया था।

नगर विधायक ने प्रभारी मंत्री को बताया था कि अधिशासी अभियंता ने भाजपा कार्यालय का नक्शा पास नहीं किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी का सही कार्य नहीं किया। प्रभारी मंत्री के नाराजगी जताने पर जिलाधिकारी ने मंगलवार को आरोपित अधिशासी अभियंता के खिलाफ शासन को पत्र भेज दिया था। अधिशासी अभियंता नीरज कुमार का तबादला शासन ने कानपुर कर दिया है। इसकी पुष्टि जिलाधिकारी व नगर विधायक ने की है।

बिहार के बाढ़ पीड़ितो के लिए रेड क्रॉस सोसायटी की ओर से दिए गए 17 वैन राहत सामग्री को राज्यपाल ने हरी झंडी दिखाकर किया रवाना,
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पटना : बिहार में दर्जनभर से अधिक जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। तकरीबन 18 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित है और उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बिहार सरकार के द्वारा लगातार राहत सामग्री मुहैया कराई जा रही है। वहीं अब रेड क्रॉस के द्वारा भी इनकी सहायता के लिए हाथ बढ़ाया गया है। रेड क्रॉस की ओर से दी गई 17 वैन राहत सामग्री बाढ़ पीड़ितों के लिए आज राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आरलेंकर ने राजभवन से राहत वैन को रवाना किया। वहीं राज्यपाल ने कहा कि जिस तरह से राज्य में आपदा आई है बाढ़ पीड़ितों के लिए राज सरकार के द्वारा लगातार काम किया जा रहा है और रेड क्रॉस के द्वारा भी राहत सामग्री को बाढ़ पीड़ितों के बीच पहुंचा जा रहा है। वही रतन टाटा के निधन पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अलंकार ने कहा वह तो स्वयं ही रतन थे। देश के लिए टाटा समूह ने जो किया है स्वतंत्रता के पहले से जो उन्होंने किया है ,जो उनके परिवार ने काम किया है वह बहुत ही आवश्यक था और इसके लिए पूरा देश उनका ऋणी है। कहा कि मुझे लगता है उनको भगवान हमेशा के लिए सद्गति प्रदान करें उन्होंने देश के लिए जो उद्योग क्षेत्र में जो काम किया है वह पूरी दुनिया जानती है ।केवल अपना देश नही पूरी दुनिया जानती है उनका स्थान बहुत ही ऊंचा है। इसके लिए मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। पटना से मनीष प्रसाद
रतन टाटा को भारत रत्न देने की मांग: शिवसेना नेता राहुल कनाल ने सीएम एकनाथ शिंदे को लिखा पत्र

शिवसेना शिंदे गुट के नेता और सीएम के करीबी राहुल कनाल ने रतन टाटा को भारत रत्न देने की मांग की है. इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने लिखा कि राज्य सरकार भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के लिए रतन टाटा का नाम प्रस्तावित करे. यह स्वीकृति ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी

बुधवार रात रतन टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. आज यानी गुरुवार को शाम 4 बजे मुंबई के वर्ली इलाके में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. इससे पहले उनके पार्थिव शरीर को मुंबई के नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स हॉल में रखा जाएगा. सुबह 10 बजे दोपहर 3.30 बजे तक लोग उनके पार्थिव शरीर का अंतिम दर्शन कर सकेंगे.

रतन टाटा देश का अभिमान- एकनाथ शिंदे

रतन टाटा के निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौर गई है. महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने भी उनके निधन पर शोक जताया है. सीएम शिंदे ने रतन टाटा को देश का अभिमान बताया है. रतन टाटा के निधन पर सीएम शिंदे ने राज्य में एक दिन के शोक की घोषणा की है.

उन्होंने ट्वीट कर कहा, दिग्गज उद्योगपति, पद्म विभूषण रतन टाटा के सम्मान में आज महाराष्ट्र में एक दिन का शोक मनाया जाएगा. रतन टाटा को श्रद्धांजलि के तौर पर यह राजकीय अंत्येष्टि होगी. इस दौरान राज्य में सरकारी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज आधे झुके रहेंगे और कोई भी मनोरंजन या मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाएगा. राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा

रतन टाटा का जानवरों के प्रति प्रेम: जानें कैसे उन्होंने अपने डॉगी के लिए शाही परिवार का न्यौता ठुकराया

दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के निधन से हर कोई दुख में है. अपनी सादगी के लिए फेमस रतन टाटा को जानवरों से बहुत ज्यादा प्यार था. वो खुद को डॉग लवर मानते थे. उनके दो बेहद अजीज पालतु कुत्ते थे टीटो (जर्मन शेफर्ड) और टैंगो (गोल्डन रिट्रीवर). वो हमेशा उनके साथ ही रहते थे. रतन टाटा ने तो एक बार अपने डॉगी के बीमार पड़ने पर ब्रिटिश का शाही न्यौता तक ठुकरा दिया था. यही नहीं, रतन टाटा ने आवारा जानवरों के लिए वो सब किया है, जिसे जानकर आपका भी यही कहेंगे कि इनके जैसा महान इंसान शायद ही कोई हो.

रतन टाटा ने कुछ समय पहले एक इंटरव्यू में बताया था कि डॉग्स के लिए उनका प्यार हमेशा गहरा रहा है और जब तक वह जीवित हैं तब तक ये सिलसिला जारी रहेगा. उन्होंने कहा था- मैं कुत्तों से बहुत प्यार करता हूं. जब तक जिंदा हूं उनके लिए मेरा प्यार हमेशा ऐसे ही रहेगा.

ठुकराया था शाही परिवार का सम्मान

मशहूर बिजनेसमैन और अभिनेता सुहेल सेठ ने एक इंटरव्यू में बताया- रतन टाटा ने मुझे बताया था कि उनके पालतु डॉगी टैंगो और टीटो में से एक बहुत बीमार पड़ गया था. उस वक्त उन्हें ब्रिटिश शाही परिवार से न्योता मिला था. रतन टाटा को तब वहां सम्मानित करने के लिए बकिंघम पैलेस बुलाया गया था. रतन टाटा वहां जाने ही वाले थे कि पता चला उनका एक डॉगी बीमार पड़ गया है. बस फिर क्या था. रतन टाटा ने ब्रिटेन जाने से साफ इनकार कर दिया. कहा था कि ऐसे समय में मैं अपने डॉगी को अकेला नहीं छोड़ सकता.

जानवरों के लिए अस्पताल खोला

टाटा समूह के जानवरों से लगाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने स्ट्रीट डॉग्स के लिए भोजन, पानी, खिलौने और खेलने का स्थान उपलब्ध कराया है. उन्होंने विभिन्न पशु कल्याण संगठनों, जैसे कि पीपल फॉर एनिमल्स, बॉम्बे एसपीसीए और एनिमल राहत को भी अपना समर्थन दिया. उनका मकसद सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा को दर्शाना था. कुछ दिन पहले ही रतन टाटा ने जानवरों के इलाज के लिए एक छोटा सा अस्पताल भी खोला. इसे टाटा ट्रस्ट्स स्मॉल एनिमल हॉस्पिटल नाम दिया गया है. टाटा ट्रस्ट्स स्मॉल एनिमल हॉस्पिटल का निर्माण 165 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है और यह पांच मंजिला है.

रतन टाटा का एनडी तिवारी को सम्मान: 25 मिनट तक हाथ थामे रहे, एक यादगार पल

किस्सा देहरादून का है. साल था 2010-11. उत्तराखंड सरकार ने मशहूर उद्योगपति रहे रतन टाटा को सम्मानित करने का निर्णय लिया. रमेश पोखरियाल निशंक राज्य के मुख्यमंत्री थे. इस प्रोग्राम का सरकारी स्तर खूब प्रचार भी किया गया और तय तिथि पर रतन टाटा देहरादून आए.

सभागार खचाखच भरा हुआ था. शहर ही नहीं राज्य के अनेक महत्वपूर्ण लोग बुलाए गए थे. नेता, अफसर, समाजसेवी, एक से एक चुने हुए लोगों को सरकार ने बुला रखा था. अगली पंक्ति में उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के सीएम रहे पंडित नारायण दत्त तिवारी भी बैठे थे. मंच पर सरकार ने उनके लिए जगह नहीं बनाई थी. सीएम निशंक ने रतन टाटा का स्वागत एयरपोर्ट पर किया और वे एक ही गाड़ी में बैठकर सभागार तक पहुंचे. तत्कालीन राज्यपाल मारग्रेट अल्वा ने रतन टाटा का सभागार के मुख्य द्वार पर स्वागत किया.

रतन टाटा, मारग्रेट अल्वा और निशंक एक साथ सभागार में पहुंचे. ये लोग जैसे ही सभागार में पहुंचे और धीरे-धीरे मंच की ओर आगे बढ़े, सभागार तालियों से गूंज उठा. सब लोग खड़े होकर उस महान विभूति का स्वागत कर रहे थे. इसमें नारायण दत्त तिवारी भी थे. मंच पर पहुंचने से पहले रतन टाटा की नजर अगली ही पंक्ति में बैठे तिवारी पर पड़ी तो वे रुक गए. उन्होंने तिवारी का दोनों हाथ अपने हाथों में लिया और करीब 20-25 मिनट तक दोनों ही लोग खड़े-खड़े बात करते रहे.

कैमरे तब तक उन्हीं पर फोकस किए हुए थे. सीएम निशंक, गवर्नर अल्वा भी चाहकर भी मंच पर नहीं जा पा रहे थे. दोनों ही लोग रतन टाटा के साथ ही खड़े रहे.

खड़े रह गए राज्यपाल और मुख्यमंत्री

प्रोग्राम तय समय से देर हो रहा था. आगे का शेड्यूल बिगड़ने की संभावना को देखते हुए सीएम ने टाटा से मंच की ओर बढ़ने का अनुरोध किया लेकिन उन्होंने लगभग अनसुना कर दिया और तिवारी से बातचीत में मशगूल रहे. चूंकि टाटा, तिवारी, निशंक और मारग्रेट अल्वा खड़े रहे तो सभागार में मौजूद ज्यादातर लोग भी खड़े ही रहे. अगली सुबह यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनी.

प्रोटोकॉल तोड़कर रिश्तों को दी तवज्जो

एनडी तिवारी कांग्रेस सरकार में उद्योग, वित्त समेत अनेक मंत्रालयों में लंबे समय तक कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके थे. उत्तर प्रदेश के सीएम के रूप में भी उनका प्रभाव था ही. 20-25 मिनट की इस मुलाकात में दोनों ही हस्तियों के रिश्तों में गर्माहट की जानकारी साफ-साफ देखी गयी. यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब एनडी तिवारी के पास कोई भी पद नहीं था. वे अनेक विवादों से गुजर रहे थे.

आंध्र प्रदेश के गवर्नर के रूप में उन पर आरोप लगे तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. फिर उनकी पत्नी और बेटे को लेकर भी मामला कोर्ट में चल रहा था. इसके बावजूद रतन टाटा का प्रोटोकाल तोड़कर इतना समय खड़े रहना और उनसे बातचीत में खो जाने को रिश्ते में प्रगाढ़ता का पक्का सुबूत माना जा सकता है.

विपक्ष ने भी माना योगदान

उत्तराखंड के सीएम बनने पर उन्होंने अपने पुराने रिश्तों का इस्तेमाल करके राज्य में उद्योगों की शुरुआत करवाई. आज उद्योग से जुड़ी जितनी भी बड़ी इकाइयां इस राज्य में हैं, उसमें तिवारी के योगदान को विपक्षी भी मानते हैं. उनके पहले और बाद में जितने भी सीएम हुए किसी का देश में वह प्रभाव नहीं रहा है, जो तिवारी का था. आज जब रतन टाटा ने दुनिया को अलविदा कहा तो बरबस यह आँखों देखी मुझे भी याद आ गई क्योंकि मैं तिवारी के साथ ही बैठा था.

इस मौके पर रतन टाटा ने अपने भाषण में भी एनडी तिवारी को भरपूर सम्मान दिया. खुले मंच से उन्होंने सरकारी लाल फ़ीताशाही को विकास में सबसे बड़ा रोड़ा कहा. करप्शन से जुड़े कुछ किस्से भी सुनाए. इस तरह मंच से लेकर मंच के नीचे तक बिना किसी पद पर रहे एनडी तिवारी ने महफ़िल लूट ली और लोग उनके बारे में कई दिन तक चर्चा करते रहे.

अगर टाटा केवल मिलते और मंच पर चले जाते तो शायद वह घटना रेखांकित नहीं हो पाती लेकिन 20-25 मिनट तक हाथ में हाथ पकड़ना रिश्तों की मजबूती का स्पष्ट उदाहरण था. और यह भी कि दोनों ही लोग एक-दूसरे का समुचित सम्मान भी करते देखे गए. आज इस तरह के रिश्तों में गिरावट देखी जा रही है. टाटा का एनडी तिवारी के प्रति उठाया गया कदम उनके बड़प्पन, सदाशयी, विनम्र होने का पक्का सुबूत था.

रतन टाटा का टाटा ग्रुप के साथ नहीं था कोई खून का रिश्ता, जानें कैसे मिला ये टाइटल?

#father_of_ratan_tata_how_he_became_the_part_of_tata_group

भारत के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे। बुधवार देर रात उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। 86 वर्षीय रतन टाटा ने अपने जीवनकाल में सफलता के शिखर को छुआ। देश का हर बड़ा करोबारी उनके जैसे सफल इंसान बनने की कल्पना करता है।उद्योग के क्षेत्र में रतन टाटा का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है रतन टाटा का टाटा ग्रुप से खून का रिश्ता नहीं था। दरअसल, रतन टाटा के पिता नवल होर्मुसजी जब 13 साल के हुए तो एक दिन उनके नाम के साथ 'टाटा' सरनेम जुड़ गया।

रतन टाटा के पिता का नाम नवल टाटा था, जिनका जन्म 30 अगस्त 1904 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता यानी रतन टाटा के दादा होर्मुसजी, टाटा समूह की अहमदाबाद स्थित एडवांस मिल्स में स्पिनिंग मास्टर थे। नवल जब 4 साल के थे, तब उनके पिता होर्मुसजी का 1908 में निधन हो गया। पिता के गुजर जाने के बाद परिवार पर आर्थिक संकट आन खड़ा हुआ।

इसके बाद नवल और उनकी मां मुंबई से गुजरात के नवासारी में आ गईं। यहां रोजगार का कोई मजबूत साधन नहीं था। उनकी मां ने कपड़े की कढ़ाई का खुद का छोटा सा काम शुरू कर दिया। इस काम से होने वाली इंकम से परिवार का सिर्फ गुजारा चल रहा था। जैसे-जैसे नवल की उम्र बढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे मां को उनके भविष्य की चिंता सता रही थी।

उनके परिवार को जानने वालों ने नवल की पढ़ाई और मदद के लिए उन्हें जेएन पेटिट पारसी अनाथालय भिजवा दिया। वहां वह अपनी पढ़ाई-लिखाई करने लगे। शुरूआती पढाई उन्होंने यहीं से की। जब 13 साल के हुए तब 1917 में सर रतन टाटा (सुविख्यात पारसी उद्योगपति और जनसेवी जमशेदजी नासरवान जी टाटा के पुत्र) की पत्नी नवाजबाई जेएन पेटिट पारसी अनाथालय पहुंची। वहां उन्हें नवल दिखाई दिए। नवाजबाई को नवल बहुत पसंद आए और उन्हें अपना बेटा बनाकर गोद ले लिया। जिसके बाद ‘नवल’ टाटा परिवार से जुड़कर ‘नवल टाटा’ बन गए।

जब नवल को गोद लिया गया, तब उनकी उम्र केवल 13 साल थी। इसके बाद नवल को बेहतरीन शिक्षा मिली और उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद वे लंदन जाकर अकाउंटिंग से संबंधित कोर्स करने लगे।

1930 में नवल ने टाटा सन्स जॉइन किया, जहां उन्होंने क्लर्क-कम-असिस्टेंट सेक्रेटरी के रूप में शुरुआत की. उनकी मेहनत और योग्यता के चलते उन्हें जल्दी ही तरक्की मिलती गई। 1933 में उन्हें एविएशन डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी बनाया गया, और इसके बाद उन्होंने टाटा मिल्स और अन्य यूनिट्स में अपनी भूमिका निभाई।

28 दिसंबर, 1937 को रतन टाटा ने टाटा सन्स ग्रुप के एविएशन डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी नवल टाटा के घर जन्म लिया. उनके जन्म के ठीक 2 साल बाद नवल टाटा, टाटा मिल्स के जॉइन्ट मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए। 1941 में वे टाटा सन्स के डायरेक्टर बने, और 1961 में टाटा पावर (तब टाटा इलेक्ट्रिक कंपनीज़) के चेयरमैन के पद पर पहुंचे। 1962 में उन्हें टाटा सन्स के डिप्टी चेयरमैन का पद भी मिला। 1965 में नवल टाटा ने सर रतन टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बने और अपने आखिरी समय तक वह इससे जुड़कर समाजसेवा का काम किया।

नवल टाटा ने दो शादियां की थीं। पहली पत्नी सूनी कॉमिस्सैरिएट और दूसरी सिमोन डुनोयर थीं। सूनी कॉमिस्सैरिएट से उनके दो बच्चे रतन टाटा और जिमी टाटा हुए। 1940 में नवल टाटा का सूनी कॉमिस्सैरिएट से तलाक हो गया था। 1955 में नवल टाटा ने स्विट्जरलैंड की बिजनेसवूमन सिमोन से शादी की। जिनसे नियोल टाटा का जन्म हुआ। नवल टाटा कैंसर की बीमारी से ग्रस्त हो गए। 5 मई 1989 को मुंबई (बॉम्बे) में उनका निधन हो गया।

रतन टाटा का क्रिकेट में योगदान: टाटा टीम के लिए खेलने वाले 4 भारतीय खिलाड़ियों ने जीता वर्ल्ड कप

रतन टाटा ने बुधवार की देर रात 86 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. उनके निधन से पूरा देश शोक में है. पूरा खेल जगत उनकी आत्मा की शांति के लिए कामना कर रहा है और उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है. साथ उनके महान कामों के लिए उन्हें याद कर रहा है. आमतौर पर रतन टाटा को भारत में उद्योग के विकास के लिए जाना जाता है. लेकिन उन्हें क्रिकेट से भी काफी प्यार था. उन्होंने भारतीय क्रिकेट को आगे बढ़ाने में बहुत अहम योगदान दिया है. रतन टाटा ने क्रिकेटर्स को तैयार करने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से मजूबत किया और हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराई. इसका नतीजा रहा कि युवराज सिंह जैसे कई क्रिकेटर्स देश को मिले, जिन्होंने भारत को वर्ल्ड कप की ट्रॉफी दिलाई.

इन दिग्गजों ने जिताया वर्ल्ड कप

भारत जैसे देश में कई क्रिकेटर्स को आगे बढ़ने में पैसा और इंफ्रास्टक्चर एक बड़ा समस्या बनता है. इसलिए रतन टाटा के रहते हुए टाटा ग्रुप की कई कंपनियों ने भारतीय क्रिकेटर्स को आर्थिक रूप से मजबूत किया. उन्हें सपोर्ट करने के लिए नौकर दी और उनके करियर आगे बढ़ाने का माध्यम बनीं. इस वजह से देश को कई ऐसे क्रिकेटर्स मिले, जिन्होंने इंटरनेशनल लेवल पर अपने टैलेंट का परिचय दिया और साथ ही भारत का नाम रोशन किया. इसके अलावा उन्होंने देश को वर्ल्ड कप जीतने में भी मदद की.

इसका सबसे पहला और बड़ा उदाहरण मोहिंदर अमरनाथ हैं, जो 1983 की वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम इंडिया का हिस्सा थे. साथ ही वह इस टीम के उप कप्तान भी थे. टाटा ग्रुप की एयर इंडिया उन्हें सपोर्ट करती थी. वहीं फारुख इंजीनियर टाटा मोटर्स और रूसी सुरती इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड के लिए खेलते थे.

इन्हें भी था टाटा का सपोर्ट, जिताया वर्ल्ड कप

संजय मांजरेकर, रॉबिन उथप्पा और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गज क्रिकेटर्स भी जैसे क्रिकेटर भी टाटा इकोसिस्टम का हिस्सा थे. वह एयर इंडिया में के लिए खेल चुके हैं. वहीं इंडियन एयरलाइंस ने जवागल श्रीनाथ, युवराज सिंह, हरभजन सिंह और मोहम्मद कैफ को सपोर्ट करके उन्हें आगे बढ़ने में मदद की, जबकि अजीत अगरकर को टाटा स्टील ने मदद की.

बाद में अगरकर, युवराज और हरभजन ने 2007 के टी20 वर्ल्ड कप में अहम भूमिका निभाई. वहीं 2011 के वनडे वर्ल्ड कप युवराज और हरभजन ने शानदार प्रदर्शन किया था. मौजूदा समय में टीम इंडिया के लिए टेस्ट खेल चुके शार्दुल ठाकुर को टाटा पावर और जयंत यादव को एयर इंडिया का सपोर्ट है.

सम्पादकीय : रतन टाटा नहीं रहे लेकिन उन्होंने सफल उधमी के रूप में अपने सामजिक सरोकार के लिए युग युग तक याद किये जायेंगें

विनोद आनंद 

मौत शास्वत सत्य है! जिसे कोई टाल नहीं सकता!इस नश्वर शरीर का भौतिक स्वरूप का नष्ट होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है, लेकिन अगर इस शरीर और स्वरूप द्वारा कुछ अच्छा कर्म किया गया हो तो ऐसे लोगों का भौतिक शरीर भले हीं नष्ट हो जाए लेकिन उसका बजूद कभी समाप्त नहीं होता.

रतन टाटा एक ऐसे हीं व्यक्तित्व थे.कल बुधवार को देर शाम को उन्होंने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर इस दुनिया को अलविदा कह दिया यह दुःखद और मार्मिक क्षण है लेकिन रतन टाटा जैसे लोग कभी मरते नहीं. ये युग युग तक जिन्दा रहते हैं.

रतन टाटा एक प्रभावशाली उद्योग पति थे. वे 30 से अधिक कंपनियों को नियंत्रित कर रहे थे. छ महाद्वीप के 100 से अधिक देशों में इनके कंपनी संचालित हैं. लेकिन इन्होने कभी अपने जीवन में आडम्बर नहीं किया. कोई भी ऐसा काम या आयोजन नहीं किया जिसमे अरबो रूपये पानी के तरह बहाये गए हो. बिलकुल साधारण जीवन जिया. शालीनता और ईमानदारी से एक संत के तरह अपने जीवन के हर पल को विताया.

 लेकिन अपने कर्मचारी को उसके परिश्रम के अनुरूप वेतन, सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा और मानव कल्याण के लिए दिल खोल कर दान किया.इसी लिए इन्हे पंथ निरपेक्ष संत के रूप में भी लोग देखने लगे. वे विनम्र और दयालू थे. असाधारण इंसान थे. हमेशा परोपकार में लगे रहे. 

रतन टाटा के नेतृत्व में ना मात्र औधोगिक विस्तार हुआ बल्कि विकास के कई अध्याय की शुरुआत भी हुई जिसमे शिक्षा, चिकित्सा मानव कल्याण समेत कई परियोजनाए है.जिसकी एक लम्बी सूची है जिसे उन्होंने शुरू किया या अनुदान देकर उसे बढ़ावाया.

रतन टाटा ने भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने मातृ स्वास्थ्य, बच्चे के स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और कैंसर, मलेरिया और क्षयरोग जैसी बीमारियों के डायग्नोसिस और इलाज के लिए भी सहयोग किया है.

उन्होंने अल्ज़ाइमर रोग पर अनुसंधान के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में न्यूरोसाइंस केंद्र को ₹750 मिलियन का अनुदान भी प्रदान किया.

रतन टाटा की कैरियर की बात करें तो 1990 से 2012 तक वे टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रहे और अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक अंतरिम अध्यक्ष. 

वे अपने करियर की शुरुआत से ही दूर दृष्टि रखने वाला व्यक्ति थे अपने असाधारण कौशल से उन्होंने विश्व भर की पीढ़ियों को प्रेरित किया .

रतन टाटा ने कहा था कि -“जिन मूल्यों और नीतियों से मैंने जीने का प्रयास किया है, उनके अलावा, जो विरासत मैं छोड़ना चाहूंगा, वह एक बहुत आसान है - मैंने हमेशा उसके लिए खड़ा रखा है जिसे मैं सही बात समझता हूं, और मैंने जैसा भी हो सकता हूं, उतना ही निष्पक्ष और न्यायपूर्ण होने की कोशिश की है."

उन्होंने उन्होंने वास्तुकला में स्नातक की डिग्री के साथ कॉर्नेल विश्वविद्यालय कालेज ऑफ आर्किटेक्चर से स्नातक किया. वह 1961 में टाटा में शामिल हुए जहां उन्होंने टाटा स्टील के दुकान के फर्श पर काम किया. बाद में उन्होंने वर्ष 1991 में टाटा सन्स के चेयरमैन के रूप में सफलता हासिल की.

रतन टाटा का जीवन यात्रा विश्व में सकारात्मक प्रभाव डालने वाला रहा.उनका पूरा जीवन दर्शन पुरे दुनिया को मूल्यवान सबक प्रदान करता है. उत्कृष्टता, नवान्वेषण और अनुकूलता पर उनका ध्यान हमेशा रहा.

 टाटा समूह की सफलता तथा नैतिक नेतृत्व तथा कारपोरेट के सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और योगदान ने पूरी दुनिया को एक नया सन्देश दिया. इसके अतिरिक्त उनकी टीमवर्क और सततता पर उनका जोर एक ऐसा उदहारण है जो हर नेतृत्व करने वालों के लिए आने वाले समय में मार्गदर्शन करता रहेगा.

उनमे एक सफल प्रबंधकीय गुण के साथ करुणा और इच्छा, सभी के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करेगा. ये सबक न केवल बिज़नेस लीडर के लिए प्रासंगिक हैं, बल्कि ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए जो दुनिया में सकारात्मक प्रभाव डालना चाहता है.

आज रतन टाटा चले गए लेकिन उन्होंने एक उधमी और सफल व्यक्ति के रूप में जो रास्ता बनाया उस पर चलकर युग युगन्तर तक आने वाले पीढ़ी को मार्ग दर्शन करते रहेगा.

11 साल पहले ताजमहल का दीदार करने के लिए आए थे  रतन टाटा
लखनऊ/अागरा। टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार रात निधन हो गया। आगरा में वह 11 साल पहले ताजमहल का दीदार करने के लिए आए थे और तब यहां के उद्यमियों से भी मुलाकात की थी। एक सितंबर 2013 को रतन टाटा जब ताज देखने आए तो कहा कि ताजमहल उनके दिल में है। विजिटर बुक में लिखा कि ‘इंजीनियरिंग और वास्तुकला की महानतम प्रस्तुति ताजमहल है। यह न आज और न कल इस तरह दोबारा नहीं बन सकता है।

11 साल पहले ताज के दीदार के लिए रतन टाटा ग्रुप के को-ऑपरेटिव वाइस चेयरमैन डीके बेरी और मैक्सिको के उद्योगपति के साथ आए थे। वह एक घंटे तक ताजमहल में रहे। उन्होंने ताज की वास्तुकला और पच्चीकारी की जानकारी साथ चल रहे गाइड डॉ. मुकुल पांड्या से ली थी। आगरा की टाटा मोटर्स की डीलर डॉ. रंजना बंसल, चिकित्सक डॉ. डीवी शर्मा के साथ वह ताज में रहे। डॉ. रंजना बंसल से उन्होंने काफी देर बातें की थीं। रतन टाटा के दिल में ताज था, इसी वजह से वह ताजमहल के संरक्षण से भी जुड़े रहे थे। साल 2003 में टाटा ग्रुप ने ताजमहल कन्जरवेशन कोलेबरेटिव (टीएमसीसी) के जरिए ताजमहल विजिटर सेंटर को शुरू करने के लिए फंडिंग की थी, लेकिन पूर्वी गेट पर उनका संरक्षण का सपना पूरा नहीं हो सका था।
RSS के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रतन टाटा के निधन पर शोक जताते हुए कही ये बात

टाटा समूह के मानद चेयरमैन और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के निधन के बाद देशभर में शोक की लहर है. पीएम नरेंद्र मोदी समेत देश की दिग्गज हस्तियों ने उनके निधन पर शोक जताया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने भी रतन के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि भारत की विकास यात्रा में रतन टाटा का योगदान चिरस्मरणीय रहेगा और उन्होंने उद्योग जगत में कई स्टैंडर्ड भी स्थापित किए.

मोहन भागवत ने अपने बयान में कहा, “देश के सुप्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा का निधन सभी देशवासियों के लिए अत्यंत दुःखद है. उनके निधन से देश ने एक अपना अमूल्य रत्न को खो दिया है. भारत की विकास यात्रा में उनका योगदान चिरस्मरणीय रहेगा.” उन्होंने यह भी कहा कि रतन टाट ने उद्योग के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कई नई और प्रभावी पहल के साथ ही ढेरों श्रेष्ठ मानकों को स्थापित किया.

अपने काम से वह प्रेरणादायी रहेः भागवत

रतन टाटा के योगदान को याद करते हुए संघ प्रमुख भागवत ने कहा, “समाज के हितों के अनुकूल हर तरह के कामों में उनका निरंतर सहयोग और सहभागिता बनी रही. देश की एकात्मता और सुरक्षा की बात हो या विकास के कोई पहलू हो या फिर अपने यहां कार्यरत कर्मचारियों के हित का मामला हो रतन टाटा अपने विशिष्ट सोच और काम से प्रेरणादायी बने रहे. अनेक ऊचांइयों को छू लेने के बाद भी उनकी सहजता और विनम्रता की शैली हमारे लिए हमेशा अनुकरणीय रहेगी.” उन्होंने कहा कि उनकी पावन स्मृतियों को विनम्र अभिवादन करते हुए हम भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करते हैं.

वयोवृद्ध उद्योगपति रतन टाटा का कल बुधवार देर रात मुंबई के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वह 86 साल के थे. पद्म विभूषण रतन टाटा का दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में रात साढ़े 11 बजे निधन हो गया.

अंतिम संस्कार में शामिल होंगे अमित शाह

रतन का पार्थिव शरीर आज गुरुवार को सुबह 10 बजे से साढ़े तीन बजे तक दक्षिण मुंबई में नरीमन प्वाइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (NCPA) में लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा.

इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आज गुरुवार को रतन टाटा के अंतिम संस्कार में शामिल होंगे. सूत्रों की ओर से बताया गया कि भारत सरकार की ओर से अमित शाह रतन टाटा को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे. अमित शाह उद्योगपति के अंतिम संस्कार के लिए इसलिए मुंबई जाएंगे क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आसियान-भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में शामिल होने लाओस के लिए रवाना हो रहे हैं.

महाराष्ट्र में आज राजकीय शोक

दूसरी ओर, महाराष्ट्र सरकार ने रतन टाटा के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए आज राज्य में एक दिन के शोक की घोषणा की. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हवाले से मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) ने अपने एक बयान में कहा कि महाराष्ट्र में सरकारी कार्यालयों पर राष्ट्र ध्वज गुरुवार (10 अक्टूबर) को शोक के प्रतीक के रूप में आधा झुका रहेगा. आज कोई मनोरंजन कार्यक्रम नहीं होगा.

प्रभारी मंत्री की नाराजगी पड़ी भारी, आवास विकास के अधिशासी अभियंता का तबादला हुआ कानपुर

मुरादाबाद। प्रभारी मंत्री की नाराजगी के तीसरे दिन आवास विकास परिषद के अधिशासी अभियंता का तबादला कानपुर के लिए हो गया।अधिशासी अभियंता भाजपा कार्यालय का नक्शा पास करने में हीलाहवाली का आरोप था। तीन दिन पहले सोमवार को मुरादाबाद पहुंचे जिले के प्रभारी मंत्री अनिल कुमार ने समीक्षा बैठक की थी। जिसमें मुरादाबाद नगर विधानसभा से भाजपा विधायक रितेश गुप्ता ने आवास विकास के अधिशासी अभियंता नीरज कुमार पर आम जनता के कार्यों में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया था।

नगर विधायक ने प्रभारी मंत्री को बताया था कि अधिशासी अभियंता ने भाजपा कार्यालय का नक्शा पास नहीं किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी का सही कार्य नहीं किया। प्रभारी मंत्री के नाराजगी जताने पर जिलाधिकारी ने मंगलवार को आरोपित अधिशासी अभियंता के खिलाफ शासन को पत्र भेज दिया था। अधिशासी अभियंता नीरज कुमार का तबादला शासन ने कानपुर कर दिया है। इसकी पुष्टि जिलाधिकारी व नगर विधायक ने की है।

बिहार के बाढ़ पीड़ितो के लिए रेड क्रॉस सोसायटी की ओर से दिए गए 17 वैन राहत सामग्री को राज्यपाल ने हरी झंडी दिखाकर किया रवाना,
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पटना : बिहार में दर्जनभर से अधिक जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। तकरीबन 18 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित है और उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बिहार सरकार के द्वारा लगातार राहत सामग्री मुहैया कराई जा रही है। वहीं अब रेड क्रॉस के द्वारा भी इनकी सहायता के लिए हाथ बढ़ाया गया है। रेड क्रॉस की ओर से दी गई 17 वैन राहत सामग्री बाढ़ पीड़ितों के लिए आज राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आरलेंकर ने राजभवन से राहत वैन को रवाना किया। वहीं राज्यपाल ने कहा कि जिस तरह से राज्य में आपदा आई है बाढ़ पीड़ितों के लिए राज सरकार के द्वारा लगातार काम किया जा रहा है और रेड क्रॉस के द्वारा भी राहत सामग्री को बाढ़ पीड़ितों के बीच पहुंचा जा रहा है। वही रतन टाटा के निधन पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अलंकार ने कहा वह तो स्वयं ही रतन थे। देश के लिए टाटा समूह ने जो किया है स्वतंत्रता के पहले से जो उन्होंने किया है ,जो उनके परिवार ने काम किया है वह बहुत ही आवश्यक था और इसके लिए पूरा देश उनका ऋणी है। कहा कि मुझे लगता है उनको भगवान हमेशा के लिए सद्गति प्रदान करें उन्होंने देश के लिए जो उद्योग क्षेत्र में जो काम किया है वह पूरी दुनिया जानती है ।केवल अपना देश नही पूरी दुनिया जानती है उनका स्थान बहुत ही ऊंचा है। इसके लिए मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। पटना से मनीष प्रसाद
रतन टाटा को भारत रत्न देने की मांग: शिवसेना नेता राहुल कनाल ने सीएम एकनाथ शिंदे को लिखा पत्र

शिवसेना शिंदे गुट के नेता और सीएम के करीबी राहुल कनाल ने रतन टाटा को भारत रत्न देने की मांग की है. इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने लिखा कि राज्य सरकार भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के लिए रतन टाटा का नाम प्रस्तावित करे. यह स्वीकृति ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी

बुधवार रात रतन टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया. मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. आज यानी गुरुवार को शाम 4 बजे मुंबई के वर्ली इलाके में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. इससे पहले उनके पार्थिव शरीर को मुंबई के नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स हॉल में रखा जाएगा. सुबह 10 बजे दोपहर 3.30 बजे तक लोग उनके पार्थिव शरीर का अंतिम दर्शन कर सकेंगे.

रतन टाटा देश का अभिमान- एकनाथ शिंदे

रतन टाटा के निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौर गई है. महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने भी उनके निधन पर शोक जताया है. सीएम शिंदे ने रतन टाटा को देश का अभिमान बताया है. रतन टाटा के निधन पर सीएम शिंदे ने राज्य में एक दिन के शोक की घोषणा की है.

उन्होंने ट्वीट कर कहा, दिग्गज उद्योगपति, पद्म विभूषण रतन टाटा के सम्मान में आज महाराष्ट्र में एक दिन का शोक मनाया जाएगा. रतन टाटा को श्रद्धांजलि के तौर पर यह राजकीय अंत्येष्टि होगी. इस दौरान राज्य में सरकारी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज आधे झुके रहेंगे और कोई भी मनोरंजन या मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाएगा. राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा

रतन टाटा का जानवरों के प्रति प्रेम: जानें कैसे उन्होंने अपने डॉगी के लिए शाही परिवार का न्यौता ठुकराया

दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के निधन से हर कोई दुख में है. अपनी सादगी के लिए फेमस रतन टाटा को जानवरों से बहुत ज्यादा प्यार था. वो खुद को डॉग लवर मानते थे. उनके दो बेहद अजीज पालतु कुत्ते थे टीटो (जर्मन शेफर्ड) और टैंगो (गोल्डन रिट्रीवर). वो हमेशा उनके साथ ही रहते थे. रतन टाटा ने तो एक बार अपने डॉगी के बीमार पड़ने पर ब्रिटिश का शाही न्यौता तक ठुकरा दिया था. यही नहीं, रतन टाटा ने आवारा जानवरों के लिए वो सब किया है, जिसे जानकर आपका भी यही कहेंगे कि इनके जैसा महान इंसान शायद ही कोई हो.

रतन टाटा ने कुछ समय पहले एक इंटरव्यू में बताया था कि डॉग्स के लिए उनका प्यार हमेशा गहरा रहा है और जब तक वह जीवित हैं तब तक ये सिलसिला जारी रहेगा. उन्होंने कहा था- मैं कुत्तों से बहुत प्यार करता हूं. जब तक जिंदा हूं उनके लिए मेरा प्यार हमेशा ऐसे ही रहेगा.

ठुकराया था शाही परिवार का सम्मान

मशहूर बिजनेसमैन और अभिनेता सुहेल सेठ ने एक इंटरव्यू में बताया- रतन टाटा ने मुझे बताया था कि उनके पालतु डॉगी टैंगो और टीटो में से एक बहुत बीमार पड़ गया था. उस वक्त उन्हें ब्रिटिश शाही परिवार से न्योता मिला था. रतन टाटा को तब वहां सम्मानित करने के लिए बकिंघम पैलेस बुलाया गया था. रतन टाटा वहां जाने ही वाले थे कि पता चला उनका एक डॉगी बीमार पड़ गया है. बस फिर क्या था. रतन टाटा ने ब्रिटेन जाने से साफ इनकार कर दिया. कहा था कि ऐसे समय में मैं अपने डॉगी को अकेला नहीं छोड़ सकता.

जानवरों के लिए अस्पताल खोला

टाटा समूह के जानवरों से लगाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने स्ट्रीट डॉग्स के लिए भोजन, पानी, खिलौने और खेलने का स्थान उपलब्ध कराया है. उन्होंने विभिन्न पशु कल्याण संगठनों, जैसे कि पीपल फॉर एनिमल्स, बॉम्बे एसपीसीए और एनिमल राहत को भी अपना समर्थन दिया. उनका मकसद सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा को दर्शाना था. कुछ दिन पहले ही रतन टाटा ने जानवरों के इलाज के लिए एक छोटा सा अस्पताल भी खोला. इसे टाटा ट्रस्ट्स स्मॉल एनिमल हॉस्पिटल नाम दिया गया है. टाटा ट्रस्ट्स स्मॉल एनिमल हॉस्पिटल का निर्माण 165 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है और यह पांच मंजिला है.

रतन टाटा का एनडी तिवारी को सम्मान: 25 मिनट तक हाथ थामे रहे, एक यादगार पल

किस्सा देहरादून का है. साल था 2010-11. उत्तराखंड सरकार ने मशहूर उद्योगपति रहे रतन टाटा को सम्मानित करने का निर्णय लिया. रमेश पोखरियाल निशंक राज्य के मुख्यमंत्री थे. इस प्रोग्राम का सरकारी स्तर खूब प्रचार भी किया गया और तय तिथि पर रतन टाटा देहरादून आए.

सभागार खचाखच भरा हुआ था. शहर ही नहीं राज्य के अनेक महत्वपूर्ण लोग बुलाए गए थे. नेता, अफसर, समाजसेवी, एक से एक चुने हुए लोगों को सरकार ने बुला रखा था. अगली पंक्ति में उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के सीएम रहे पंडित नारायण दत्त तिवारी भी बैठे थे. मंच पर सरकार ने उनके लिए जगह नहीं बनाई थी. सीएम निशंक ने रतन टाटा का स्वागत एयरपोर्ट पर किया और वे एक ही गाड़ी में बैठकर सभागार तक पहुंचे. तत्कालीन राज्यपाल मारग्रेट अल्वा ने रतन टाटा का सभागार के मुख्य द्वार पर स्वागत किया.

रतन टाटा, मारग्रेट अल्वा और निशंक एक साथ सभागार में पहुंचे. ये लोग जैसे ही सभागार में पहुंचे और धीरे-धीरे मंच की ओर आगे बढ़े, सभागार तालियों से गूंज उठा. सब लोग खड़े होकर उस महान विभूति का स्वागत कर रहे थे. इसमें नारायण दत्त तिवारी भी थे. मंच पर पहुंचने से पहले रतन टाटा की नजर अगली ही पंक्ति में बैठे तिवारी पर पड़ी तो वे रुक गए. उन्होंने तिवारी का दोनों हाथ अपने हाथों में लिया और करीब 20-25 मिनट तक दोनों ही लोग खड़े-खड़े बात करते रहे.

कैमरे तब तक उन्हीं पर फोकस किए हुए थे. सीएम निशंक, गवर्नर अल्वा भी चाहकर भी मंच पर नहीं जा पा रहे थे. दोनों ही लोग रतन टाटा के साथ ही खड़े रहे.

खड़े रह गए राज्यपाल और मुख्यमंत्री

प्रोग्राम तय समय से देर हो रहा था. आगे का शेड्यूल बिगड़ने की संभावना को देखते हुए सीएम ने टाटा से मंच की ओर बढ़ने का अनुरोध किया लेकिन उन्होंने लगभग अनसुना कर दिया और तिवारी से बातचीत में मशगूल रहे. चूंकि टाटा, तिवारी, निशंक और मारग्रेट अल्वा खड़े रहे तो सभागार में मौजूद ज्यादातर लोग भी खड़े ही रहे. अगली सुबह यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनी.

प्रोटोकॉल तोड़कर रिश्तों को दी तवज्जो

एनडी तिवारी कांग्रेस सरकार में उद्योग, वित्त समेत अनेक मंत्रालयों में लंबे समय तक कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके थे. उत्तर प्रदेश के सीएम के रूप में भी उनका प्रभाव था ही. 20-25 मिनट की इस मुलाकात में दोनों ही हस्तियों के रिश्तों में गर्माहट की जानकारी साफ-साफ देखी गयी. यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब एनडी तिवारी के पास कोई भी पद नहीं था. वे अनेक विवादों से गुजर रहे थे.

आंध्र प्रदेश के गवर्नर के रूप में उन पर आरोप लगे तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. फिर उनकी पत्नी और बेटे को लेकर भी मामला कोर्ट में चल रहा था. इसके बावजूद रतन टाटा का प्रोटोकाल तोड़कर इतना समय खड़े रहना और उनसे बातचीत में खो जाने को रिश्ते में प्रगाढ़ता का पक्का सुबूत माना जा सकता है.

विपक्ष ने भी माना योगदान

उत्तराखंड के सीएम बनने पर उन्होंने अपने पुराने रिश्तों का इस्तेमाल करके राज्य में उद्योगों की शुरुआत करवाई. आज उद्योग से जुड़ी जितनी भी बड़ी इकाइयां इस राज्य में हैं, उसमें तिवारी के योगदान को विपक्षी भी मानते हैं. उनके पहले और बाद में जितने भी सीएम हुए किसी का देश में वह प्रभाव नहीं रहा है, जो तिवारी का था. आज जब रतन टाटा ने दुनिया को अलविदा कहा तो बरबस यह आँखों देखी मुझे भी याद आ गई क्योंकि मैं तिवारी के साथ ही बैठा था.

इस मौके पर रतन टाटा ने अपने भाषण में भी एनडी तिवारी को भरपूर सम्मान दिया. खुले मंच से उन्होंने सरकारी लाल फ़ीताशाही को विकास में सबसे बड़ा रोड़ा कहा. करप्शन से जुड़े कुछ किस्से भी सुनाए. इस तरह मंच से लेकर मंच के नीचे तक बिना किसी पद पर रहे एनडी तिवारी ने महफ़िल लूट ली और लोग उनके बारे में कई दिन तक चर्चा करते रहे.

अगर टाटा केवल मिलते और मंच पर चले जाते तो शायद वह घटना रेखांकित नहीं हो पाती लेकिन 20-25 मिनट तक हाथ में हाथ पकड़ना रिश्तों की मजबूती का स्पष्ट उदाहरण था. और यह भी कि दोनों ही लोग एक-दूसरे का समुचित सम्मान भी करते देखे गए. आज इस तरह के रिश्तों में गिरावट देखी जा रही है. टाटा का एनडी तिवारी के प्रति उठाया गया कदम उनके बड़प्पन, सदाशयी, विनम्र होने का पक्का सुबूत था.

रतन टाटा का टाटा ग्रुप के साथ नहीं था कोई खून का रिश्ता, जानें कैसे मिला ये टाइटल?

#father_of_ratan_tata_how_he_became_the_part_of_tata_group

भारत के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे। बुधवार देर रात उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। 86 वर्षीय रतन टाटा ने अपने जीवनकाल में सफलता के शिखर को छुआ। देश का हर बड़ा करोबारी उनके जैसे सफल इंसान बनने की कल्पना करता है।उद्योग के क्षेत्र में रतन टाटा का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है रतन टाटा का टाटा ग्रुप से खून का रिश्ता नहीं था। दरअसल, रतन टाटा के पिता नवल होर्मुसजी जब 13 साल के हुए तो एक दिन उनके नाम के साथ 'टाटा' सरनेम जुड़ गया।

रतन टाटा के पिता का नाम नवल टाटा था, जिनका जन्म 30 अगस्त 1904 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता यानी रतन टाटा के दादा होर्मुसजी, टाटा समूह की अहमदाबाद स्थित एडवांस मिल्स में स्पिनिंग मास्टर थे। नवल जब 4 साल के थे, तब उनके पिता होर्मुसजी का 1908 में निधन हो गया। पिता के गुजर जाने के बाद परिवार पर आर्थिक संकट आन खड़ा हुआ।

इसके बाद नवल और उनकी मां मुंबई से गुजरात के नवासारी में आ गईं। यहां रोजगार का कोई मजबूत साधन नहीं था। उनकी मां ने कपड़े की कढ़ाई का खुद का छोटा सा काम शुरू कर दिया। इस काम से होने वाली इंकम से परिवार का सिर्फ गुजारा चल रहा था। जैसे-जैसे नवल की उम्र बढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे मां को उनके भविष्य की चिंता सता रही थी।

उनके परिवार को जानने वालों ने नवल की पढ़ाई और मदद के लिए उन्हें जेएन पेटिट पारसी अनाथालय भिजवा दिया। वहां वह अपनी पढ़ाई-लिखाई करने लगे। शुरूआती पढाई उन्होंने यहीं से की। जब 13 साल के हुए तब 1917 में सर रतन टाटा (सुविख्यात पारसी उद्योगपति और जनसेवी जमशेदजी नासरवान जी टाटा के पुत्र) की पत्नी नवाजबाई जेएन पेटिट पारसी अनाथालय पहुंची। वहां उन्हें नवल दिखाई दिए। नवाजबाई को नवल बहुत पसंद आए और उन्हें अपना बेटा बनाकर गोद ले लिया। जिसके बाद ‘नवल’ टाटा परिवार से जुड़कर ‘नवल टाटा’ बन गए।

जब नवल को गोद लिया गया, तब उनकी उम्र केवल 13 साल थी। इसके बाद नवल को बेहतरीन शिक्षा मिली और उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद वे लंदन जाकर अकाउंटिंग से संबंधित कोर्स करने लगे।

1930 में नवल ने टाटा सन्स जॉइन किया, जहां उन्होंने क्लर्क-कम-असिस्टेंट सेक्रेटरी के रूप में शुरुआत की. उनकी मेहनत और योग्यता के चलते उन्हें जल्दी ही तरक्की मिलती गई। 1933 में उन्हें एविएशन डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी बनाया गया, और इसके बाद उन्होंने टाटा मिल्स और अन्य यूनिट्स में अपनी भूमिका निभाई।

28 दिसंबर, 1937 को रतन टाटा ने टाटा सन्स ग्रुप के एविएशन डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी नवल टाटा के घर जन्म लिया. उनके जन्म के ठीक 2 साल बाद नवल टाटा, टाटा मिल्स के जॉइन्ट मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए। 1941 में वे टाटा सन्स के डायरेक्टर बने, और 1961 में टाटा पावर (तब टाटा इलेक्ट्रिक कंपनीज़) के चेयरमैन के पद पर पहुंचे। 1962 में उन्हें टाटा सन्स के डिप्टी चेयरमैन का पद भी मिला। 1965 में नवल टाटा ने सर रतन टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बने और अपने आखिरी समय तक वह इससे जुड़कर समाजसेवा का काम किया।

नवल टाटा ने दो शादियां की थीं। पहली पत्नी सूनी कॉमिस्सैरिएट और दूसरी सिमोन डुनोयर थीं। सूनी कॉमिस्सैरिएट से उनके दो बच्चे रतन टाटा और जिमी टाटा हुए। 1940 में नवल टाटा का सूनी कॉमिस्सैरिएट से तलाक हो गया था। 1955 में नवल टाटा ने स्विट्जरलैंड की बिजनेसवूमन सिमोन से शादी की। जिनसे नियोल टाटा का जन्म हुआ। नवल टाटा कैंसर की बीमारी से ग्रस्त हो गए। 5 मई 1989 को मुंबई (बॉम्बे) में उनका निधन हो गया।

रतन टाटा का क्रिकेट में योगदान: टाटा टीम के लिए खेलने वाले 4 भारतीय खिलाड़ियों ने जीता वर्ल्ड कप

रतन टाटा ने बुधवार की देर रात 86 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. उनके निधन से पूरा देश शोक में है. पूरा खेल जगत उनकी आत्मा की शांति के लिए कामना कर रहा है और उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है. साथ उनके महान कामों के लिए उन्हें याद कर रहा है. आमतौर पर रतन टाटा को भारत में उद्योग के विकास के लिए जाना जाता है. लेकिन उन्हें क्रिकेट से भी काफी प्यार था. उन्होंने भारतीय क्रिकेट को आगे बढ़ाने में बहुत अहम योगदान दिया है. रतन टाटा ने क्रिकेटर्स को तैयार करने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से मजूबत किया और हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराई. इसका नतीजा रहा कि युवराज सिंह जैसे कई क्रिकेटर्स देश को मिले, जिन्होंने भारत को वर्ल्ड कप की ट्रॉफी दिलाई.

इन दिग्गजों ने जिताया वर्ल्ड कप

भारत जैसे देश में कई क्रिकेटर्स को आगे बढ़ने में पैसा और इंफ्रास्टक्चर एक बड़ा समस्या बनता है. इसलिए रतन टाटा के रहते हुए टाटा ग्रुप की कई कंपनियों ने भारतीय क्रिकेटर्स को आर्थिक रूप से मजबूत किया. उन्हें सपोर्ट करने के लिए नौकर दी और उनके करियर आगे बढ़ाने का माध्यम बनीं. इस वजह से देश को कई ऐसे क्रिकेटर्स मिले, जिन्होंने इंटरनेशनल लेवल पर अपने टैलेंट का परिचय दिया और साथ ही भारत का नाम रोशन किया. इसके अलावा उन्होंने देश को वर्ल्ड कप जीतने में भी मदद की.

इसका सबसे पहला और बड़ा उदाहरण मोहिंदर अमरनाथ हैं, जो 1983 की वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम इंडिया का हिस्सा थे. साथ ही वह इस टीम के उप कप्तान भी थे. टाटा ग्रुप की एयर इंडिया उन्हें सपोर्ट करती थी. वहीं फारुख इंजीनियर टाटा मोटर्स और रूसी सुरती इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड के लिए खेलते थे.

इन्हें भी था टाटा का सपोर्ट, जिताया वर्ल्ड कप

संजय मांजरेकर, रॉबिन उथप्पा और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गज क्रिकेटर्स भी जैसे क्रिकेटर भी टाटा इकोसिस्टम का हिस्सा थे. वह एयर इंडिया में के लिए खेल चुके हैं. वहीं इंडियन एयरलाइंस ने जवागल श्रीनाथ, युवराज सिंह, हरभजन सिंह और मोहम्मद कैफ को सपोर्ट करके उन्हें आगे बढ़ने में मदद की, जबकि अजीत अगरकर को टाटा स्टील ने मदद की.

बाद में अगरकर, युवराज और हरभजन ने 2007 के टी20 वर्ल्ड कप में अहम भूमिका निभाई. वहीं 2011 के वनडे वर्ल्ड कप युवराज और हरभजन ने शानदार प्रदर्शन किया था. मौजूदा समय में टीम इंडिया के लिए टेस्ट खेल चुके शार्दुल ठाकुर को टाटा पावर और जयंत यादव को एयर इंडिया का सपोर्ट है.

सम्पादकीय : रतन टाटा नहीं रहे लेकिन उन्होंने सफल उधमी के रूप में अपने सामजिक सरोकार के लिए युग युग तक याद किये जायेंगें

विनोद आनंद 

मौत शास्वत सत्य है! जिसे कोई टाल नहीं सकता!इस नश्वर शरीर का भौतिक स्वरूप का नष्ट होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है, लेकिन अगर इस शरीर और स्वरूप द्वारा कुछ अच्छा कर्म किया गया हो तो ऐसे लोगों का भौतिक शरीर भले हीं नष्ट हो जाए लेकिन उसका बजूद कभी समाप्त नहीं होता.

रतन टाटा एक ऐसे हीं व्यक्तित्व थे.कल बुधवार को देर शाम को उन्होंने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर इस दुनिया को अलविदा कह दिया यह दुःखद और मार्मिक क्षण है लेकिन रतन टाटा जैसे लोग कभी मरते नहीं. ये युग युग तक जिन्दा रहते हैं.

रतन टाटा एक प्रभावशाली उद्योग पति थे. वे 30 से अधिक कंपनियों को नियंत्रित कर रहे थे. छ महाद्वीप के 100 से अधिक देशों में इनके कंपनी संचालित हैं. लेकिन इन्होने कभी अपने जीवन में आडम्बर नहीं किया. कोई भी ऐसा काम या आयोजन नहीं किया जिसमे अरबो रूपये पानी के तरह बहाये गए हो. बिलकुल साधारण जीवन जिया. शालीनता और ईमानदारी से एक संत के तरह अपने जीवन के हर पल को विताया.

 लेकिन अपने कर्मचारी को उसके परिश्रम के अनुरूप वेतन, सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा और मानव कल्याण के लिए दिल खोल कर दान किया.इसी लिए इन्हे पंथ निरपेक्ष संत के रूप में भी लोग देखने लगे. वे विनम्र और दयालू थे. असाधारण इंसान थे. हमेशा परोपकार में लगे रहे. 

रतन टाटा के नेतृत्व में ना मात्र औधोगिक विस्तार हुआ बल्कि विकास के कई अध्याय की शुरुआत भी हुई जिसमे शिक्षा, चिकित्सा मानव कल्याण समेत कई परियोजनाए है.जिसकी एक लम्बी सूची है जिसे उन्होंने शुरू किया या अनुदान देकर उसे बढ़ावाया.

रतन टाटा ने भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने मातृ स्वास्थ्य, बच्चे के स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और कैंसर, मलेरिया और क्षयरोग जैसी बीमारियों के डायग्नोसिस और इलाज के लिए भी सहयोग किया है.

उन्होंने अल्ज़ाइमर रोग पर अनुसंधान के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में न्यूरोसाइंस केंद्र को ₹750 मिलियन का अनुदान भी प्रदान किया.

रतन टाटा की कैरियर की बात करें तो 1990 से 2012 तक वे टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रहे और अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक अंतरिम अध्यक्ष. 

वे अपने करियर की शुरुआत से ही दूर दृष्टि रखने वाला व्यक्ति थे अपने असाधारण कौशल से उन्होंने विश्व भर की पीढ़ियों को प्रेरित किया .

रतन टाटा ने कहा था कि -“जिन मूल्यों और नीतियों से मैंने जीने का प्रयास किया है, उनके अलावा, जो विरासत मैं छोड़ना चाहूंगा, वह एक बहुत आसान है - मैंने हमेशा उसके लिए खड़ा रखा है जिसे मैं सही बात समझता हूं, और मैंने जैसा भी हो सकता हूं, उतना ही निष्पक्ष और न्यायपूर्ण होने की कोशिश की है."

उन्होंने उन्होंने वास्तुकला में स्नातक की डिग्री के साथ कॉर्नेल विश्वविद्यालय कालेज ऑफ आर्किटेक्चर से स्नातक किया. वह 1961 में टाटा में शामिल हुए जहां उन्होंने टाटा स्टील के दुकान के फर्श पर काम किया. बाद में उन्होंने वर्ष 1991 में टाटा सन्स के चेयरमैन के रूप में सफलता हासिल की.

रतन टाटा का जीवन यात्रा विश्व में सकारात्मक प्रभाव डालने वाला रहा.उनका पूरा जीवन दर्शन पुरे दुनिया को मूल्यवान सबक प्रदान करता है. उत्कृष्टता, नवान्वेषण और अनुकूलता पर उनका ध्यान हमेशा रहा.

 टाटा समूह की सफलता तथा नैतिक नेतृत्व तथा कारपोरेट के सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और योगदान ने पूरी दुनिया को एक नया सन्देश दिया. इसके अतिरिक्त उनकी टीमवर्क और सततता पर उनका जोर एक ऐसा उदहारण है जो हर नेतृत्व करने वालों के लिए आने वाले समय में मार्गदर्शन करता रहेगा.

उनमे एक सफल प्रबंधकीय गुण के साथ करुणा और इच्छा, सभी के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करेगा. ये सबक न केवल बिज़नेस लीडर के लिए प्रासंगिक हैं, बल्कि ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए जो दुनिया में सकारात्मक प्रभाव डालना चाहता है.

आज रतन टाटा चले गए लेकिन उन्होंने एक उधमी और सफल व्यक्ति के रूप में जो रास्ता बनाया उस पर चलकर युग युगन्तर तक आने वाले पीढ़ी को मार्ग दर्शन करते रहेगा.

11 साल पहले ताजमहल का दीदार करने के लिए आए थे  रतन टाटा
लखनऊ/अागरा। टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार रात निधन हो गया। आगरा में वह 11 साल पहले ताजमहल का दीदार करने के लिए आए थे और तब यहां के उद्यमियों से भी मुलाकात की थी। एक सितंबर 2013 को रतन टाटा जब ताज देखने आए तो कहा कि ताजमहल उनके दिल में है। विजिटर बुक में लिखा कि ‘इंजीनियरिंग और वास्तुकला की महानतम प्रस्तुति ताजमहल है। यह न आज और न कल इस तरह दोबारा नहीं बन सकता है।

11 साल पहले ताज के दीदार के लिए रतन टाटा ग्रुप के को-ऑपरेटिव वाइस चेयरमैन डीके बेरी और मैक्सिको के उद्योगपति के साथ आए थे। वह एक घंटे तक ताजमहल में रहे। उन्होंने ताज की वास्तुकला और पच्चीकारी की जानकारी साथ चल रहे गाइड डॉ. मुकुल पांड्या से ली थी। आगरा की टाटा मोटर्स की डीलर डॉ. रंजना बंसल, चिकित्सक डॉ. डीवी शर्मा के साथ वह ताज में रहे। डॉ. रंजना बंसल से उन्होंने काफी देर बातें की थीं। रतन टाटा के दिल में ताज था, इसी वजह से वह ताजमहल के संरक्षण से भी जुड़े रहे थे। साल 2003 में टाटा ग्रुप ने ताजमहल कन्जरवेशन कोलेबरेटिव (टीएमसीसी) के जरिए ताजमहल विजिटर सेंटर को शुरू करने के लिए फंडिंग की थी, लेकिन पूर्वी गेट पर उनका संरक्षण का सपना पूरा नहीं हो सका था।