बुलडोजर एक्शन पर रोक बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-कोई आरोपी या दोषी है, ये संपत्ति गिराने का आधार नहीं

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सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को बुलडोजर एक्‍शन के खिलाफ लगाई गई याचिका पर सुनवाई हुई। बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। बुलडोजर की कार्रवाई पर लगी अंतरिम रोक जारी रहेगी। संपत्तियों को गिराने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यह स्पष्ट करने जा रहे हैं कि सिर्फ इसलिए कि कोई आरोपी या दोषी है, उसकी संपत्ति को गिराने का आधार नहीं बनाया जा सकता। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सार्वजनिक सड़कों, सरकारी जमीन पर किसी भी अनधिकृत निर्माण, फिर चाहे वो धार्मिक स्थल निर्माण ही क्यों न हो, उसे संरक्षण नहीं दिया जाएगा। 

मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत की जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच कर रही है। पिछली सुनवाई में भी सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर 1 अक्टूबर तक के लिए रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता 3 राज्यों यूपी, मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार की ओर से पेश हुए।

न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली बेंच ने अपराध के आरोपी के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, चाहे वह मंदिर हो या दरगाह, उसे जाना ही होगा। सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है। जबकि आरोपियों पर बुलडोजर कार्रवाई करने वाले राज्य के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ऐसे मामलों में केवल अवैध निर्माण को ही ध्वस्त किया जा रहा है।

बेंच ने माना कि तरह की चीजें करना संवैधानिक रूप से गलत है। उन्‍होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि भले ही किसी व्‍यक्ति को दोषी ठहराया गया हो, क्या अपराध में शामिल होने पर उसके घर पर बुलडोजर एक्‍शन का आधार हो सकता है? एसजी ने नहीं में जवाब देते हुए कहा कि यह कहना कि किसी विशेष समुदाय को टारगेट किया जा रहा है, यह गलत है। बुलडोजर की कार्रवाई से 10 दिन पहले नोटिस जारी किया गया था।

एसजी ने कहा कि किसी ने एनजीटी के समक्ष याचिका दायर की है कि वन भूमि अवैध अतिक्रमण के अधीन है। बुलडोजर के कुछ उदाहरणों से कानून बनाने में मदद नहीं मिल सकती है, जिससे पूरा देश पीड़ित है। जस्टिस गवई ने कहा कि नोटिस की वैध सेवा होनी चाहिए। पंजीकृत माध्यम से यह नोटिस चिपकाने वाली बात जाएगी। डिजिटल रिकॉर्ड होना चाहिए। अधिकारी भी सुरक्षित रहेंगे। हमारे पास पर्याप्त विशेषज्ञ हैं। जस्टिस गवई ने कहा कि हम स्पष्ट करेंगे कि विध्वंस केवल इसलिए नहीं किया जा सकता कि कोई आरोपी या दोषी है। इसके अलावा इस बात पर भी विचार करें कि बुलडोजर कार्रवाई के आदेश पारित होने से पहले भी एक संकीर्ण रास्ता होना चाहिए। जस्टिस गवई ने कहा कि जब मैं बॉम्बे हाई कोर्ट में था तो मैंने खुद फुटपाथों पर अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने का निर्देश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह संपत्तियों को ध्वस्त करने के मुद्दे पर सभी नागरिकों के लिए दिशा-निर्देश तय करेगा, किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं। पीठ ने कहा कि हम जो भी तय कर रहे हैं, हम इसे पूरे देश में सभी नागरिकों, सभी संस्थानों के लिए तय कर रहे हैं, किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं। हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं। किसी धर्म विशेष के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। पीठ ने कहा कि 'वह सार्वजनिक सड़कों, सरकारी भूमि या जंगलों पर किसी भी अनधिकृत निर्माण को संरक्षण नहीं देगी। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि 'हम ये भी सुनिश्चित करेंगे कि हमारी सीमाओं या किसी भी सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण न हो सके।

नसरल्लाह के बाद याह्या सिनवार भी था निशाने पर, आखिरी वक्त में इजराइल ने रोका मारने का प्लान, जानें क्यों

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हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह की मौत के बाद हमास का प्रमुख याह्या सिनवार भी इजराइल के निशाने पर था। हालांकि, ऐन वक्त पर सिनवार के खात्मे का प्लान रोक दिया गया। पहले खबर थी कि इजरायल ने उसे मौत के घाट उतार दिया है। मगर अब यह कन्फर्म हो गया है कि वह मरा नहीं है। माना जा रहा है कि इजरायल ने अपने लोगों की जान बचाने की खातिर अब तक याह्या सिनवार को बख्श रखा है। 

इजरायली न्यूज आउटलेट N12 ने रविवार 29 सितम्बर की रात अपनी विशेष रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है। एन12 के अनुसार, इजरायल को एक खुफिया इनपुट मिला था। यह सिनवार को खत्म करने का बेहतरीन मौका था, लेकिन बंधकों को नुकसान पहुंचने के डर से ऐसा नहीं किया गया। बंधकों को उसी इलाके में रखा गया था, जहां हमास नेता मौजूद था।

इजरायली मीडिया एन12 न्यूज ने अपनी लेटेस्ट रिपोर्ट में खुलासा किया है कि इजरायल के पास हमास नेता याह्या सिनवार को खत्म करने का पूरा मौका था मगर आतंकी गुट की कैद में रखे गए इजरायली बंधकों को नुकसान के डर से उसने ऐसा नहीं किया। N12 न्यूज ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि इजरायल को एक ऐसी सीक्रेट सूचना मिली थी, जिससे उसे याह्या सिनवार को मार गिराने का एक अनोखा मौका मिल सकता था। मगर इजरायल ने यह मौका जानबूझकर हाथ से जाने दिया। इसकी वजह यह थी कि आतंकी संगठन हमास के सरगना याह्या सिनवार के साथ इजरायली बंधक भी रखे गए हैं।

हिज्बुल्लाह चीफ नसरल्लाह की तरह याह्या सिनवार की खुफिया लोकेशन ट्रेस की जा चुकी थी। गाजा के जिस इलाके में सिनवार छिपा था उसकी घेराबंदी IDF के स्पेशल एलीट कमांडोज ने कर ली थी। सिनवार की जिंदगी और मौत के बीच के चंद मिनटों का फासला था मगर सिनवार का हंट ऑपरेशन शुरू होता उससे पहले ही IDF ने सिनवार को मारने का प्लान बदल दिया।

अगर इजराइल सिनवार के ठिकाने पर एयर स्ट्राइक करता या फिर स्पेशल ऑपरेशन को अंजाम देता तो यकीनन इस हमले में कई बंधकों की जान जा सकती थी या फिर सिनवार अपने बचाव के लिए बंधकों का इस्तेमाल कर सकता था। उन्हें जान से मार सकता था। बस इसी नुकसान के डर इजरायल ने सिनवार के खात्मे के प्लान को रोका।

याह्या सिनवार को हमास के अपने पूर्ववर्ती इस्माइल हानिया की तेहरान में हत्या के बाद समूह का नया नेता चुना गया था। हानिया 31 जुलाई को तेहरान में हुए एक विशेष हमले में मारे गए थे। याह्या सिनवार इतना खतरनाक है कि उसे गाजा के लादेन के नाम से जाना जाता है। उसने ही 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर हमले की योजना बनाई थी। इस हमले में 1200 इजरायली मारे गए थे, जबकि 251 को हमास के आतंकी बंधक बनाकर गाजा ले गए थे।7 अक्टूबर के हमले के बाद से ही याह्या सिनवार गाजा के नीचे बनी सुरंगों में छिपकर रह रहा है।

1968 में लापता हुआ था IAF का प्लेन, 56 साल बाद चार शव, रोहतांग ला में क्रैश की पूरी कहानी

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7 फरवरी 1968 का दिन था। चंडीगढ़ से 98 यात्रियों को लेकर भारतीय वायुसेना के एक विमान ने लेह के लिए उड़ान भरी। बीच रास्ते में मौसम खराब हुआ तो पायलट ने तय किया कि विमान को पीछे मोड़ा जाए। रोहतांग दर्रे के ऊपर विमान से रेडियो संपर्क टूट गया। विमान खराब मौसम के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। चूंकि मलबा नहीं मिला इसलिए सभी 102 लोगों को लापता घोषित कर दिया गया। दशकों तक, विमान का मलबा और पीड़ितों के अवशेष बर्फीले इलाके में खोए रहे। इसका मलबा साल 2003 में मिला था।

2003 में अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग के पर्वतारोहियों ने विमान के मलबे को खोज निकाला। इसके बाद सेना, खासकर डोगरा स्काउट्स ने कई अभियान चलाए। 2005, 2006, 2013 और 2019 में चलाए गए सर्च ऑपरेशन में डोगरा स्काउट्स सबसे आगे रहे। 2019 तक केवल पांच शव ही बरामद हो पाए थे। ‘चंद्र भागा माउंटेन एक्सपेडीशन’ ने अब चार और शव बरामद किए हैं।

तीन जवानों की हुई पहचान

इस बार मिले चार शवों में से तीन शव सही सलामत मिले हैं जबकि चौथे के अवशेष मिले हैं। तीन सैन्यकर्मियों की पहचान उनके पास मिले दस्तावेजों से हो पाई है। ये जवान हैं सिपाही नारायण सिंह (एएमसी), मलखान सिंह (पायनियर कोर) और थॉमस चेरियन (सीईएमई)।एक अधिकारी ने बताया, 'चौथे व्यक्ति के शरीर से मिले दस्तावेजों से उसकी पहचान तो नहीं हो पाई है, लेकिन उसके परिजनों का पता चल गया है।' उन्होंने आगे कहा, 'चंद्र भागा ऑपरेशन ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सेना अपने जवानों के परिवारों को सांत्वना देने के लिए कितनी दृढ़ है। 

कैसे हुआ हादसा?

7 फरवरी 1968 की सर्दियों में जैसे ही चंडीगढ़ में सुबह हुई भारतीय वायु सेना के 25 स्क्वाड्रन के एक एंटोनोव -12 ट्रांसपोर्ट प्लेन ने कोहरे से घिरे रनवे से उड़ान भरी और लेह की ओर चला गया। विमान में सेना के 98 जवान और चार चालक दल के सदस्य थे जो अपनी ड्यूटी पर शामिल होने के लिए लेह जा रहे थे।

सुबह लगभग 6.55 बजे पायलट खराब मौसम के कारण चंडीगढ़ में एयर ट्रैफिक कंट्रोल को अपनी वापसी के बारे में बताया, लेकिन इसके तीन मिनट बाद ही विमान का संपर्क टूट गया। वो चीन की सीमा से लगे हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति क्षेत्र में गायब हो गया। कॉकपिट से कोई इमरजेंसी कॉल नहीं आई। इसके बाद भारतीय वायुसेना के हेलिकॉप्टर को सर्च ऑपरेशन पर लगाया गया, लेकिन एक हफ्ते तक उसे कोई सफलता नहीं मिली।

दिल्ली में हिरासत में लिए गए सोनम वांगचुक, जानें क्यों समर्थकों के साथ लद्दाख से आ रहे थे पैदल

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लद्दाख की समस्याओं को लेकर आवाज उठाने वाले क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक पैदल लद्दाख से दिल्ली आ रहे थे. 900 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा के बाद उन्हें दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर रोक दिया गया है और दिल्ली पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया है।सोनम वांगचुक समेत करीब 150 लोगों को दिल्ली की सीमा पर हिरासत में ले लिया है। 

लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा देने की मांग को लेकर राजधानी दिल्ली तक मार्च करने वाले सोनम वांगचुक सहित लद्दाख के करीब 150 लोगों को दिल्ली पुलिस ने शहर की सीमा पर हिरासत में ले लिया है। दिल्ली पुलिस सूत्रों के अनुसार वांगचुक समेत हिरासत में लिए गए लोगों को अलीपुर और शहर की सीमा से लगे अन्य पुलिस थानों में ले जाया गया है। दिल्ली पुलिस ने बताया कि दिल्ली की सीमाओं पर धारा 163 बीएनएस लागू कर दी गई है।

वांगचुक और उनके समर्थक, केंद्र सरकार से लद्दाख के नेताओं के साथ उनकी मांगों पर बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह करने के लिए लेह से नई दिल्ली तक पदयात्रा पर थे। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी गिरफ्तारी के बारे में बताया। उन्होंने लिखा, 'मुझे हिरासत में लिया जा रहा है... दिल्ली बॉर्डर पर 150 पदयात्रियों के साथ, सैकड़ों की पुलिस फोर्स द्वारा। हमारे साथ कई बुजुर्ग, महिलाएं हैं। हमें नहीं पता क्या होगा। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में, लोकतंत्र की जननी... बापू की समाधि तक सबसे शांतिपूर्ण मार्च पर थे... हे राम!'

क्या है सोनम वांगचुक की मांगें

सोनम वांगचुक लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल कराना चाहते हैं। ताकि स्थानीय लोगों को अपनी भूमि और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करने के लिए कानून बनाने की शक्ति मिल सके। इसके अलावा वह लद्दाख को पूरण राज्य का दर्जा दिलाने की वकालत कर रहे हैं। वांगचुक लद्दाख के लिए मजबूत पारिस्थितिक सुरक्षा की भी मांग कर रहे हैं। पैदल मार्च से पहले वो अपनी मांगों को लेकर लेह में 9 दिनों का अनशन भी कर चुके हैं।

कौन हैं सोनम वांगचुक

सोनम वांगचुक शिक्षाविद और जलवायु कार्यकर्ता हैं। वह स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SECMOL) के संस्थापक-निदेशक हैं। 1993 से 2005 तक वांगचुक ने लैंडेग्स मेलॉग, जो लद्दाख की एकमात्र प्रिंटिंग पत्रिका है की स्थापना की और संपादक के रूप में कार्य किया।शिक्षा में मैकेनिकल इंजीनियर वांगचुक 30 से अधिक वर्षों से शिक्षा सुधार के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

थ्री इडियट फिल्म से चर्चा में आए

बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान की फिल्म “थ्री इडियट” सोनम वांगचुक के जीवन से प्रेरित थी। इस फिल्म के बाद वह चर्चा में आए। एनआईटी श्रीनगर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले सोनम वांगचुक शिक्षा में सुधार और लद्दाख तथा देश के विकास के लिए काम कर रहे हैं। वांगचुक ने कई आविष्कार किए हैं, जिनमें सोलर हीटेड मिलिट्री टेंट, आर्टिफिशियल ग्लेशियर और एसईसीएमओएल (SECMOL) परिसर का डिज़ाइन शामिल हैं।

जम्मू-कश्मीर में आखिरी चरण की वोटिंग जारी, सुबह 9 बजे तक 11% मतदान*
#j_k_assembly_election_third_phase_voting जम्मू-कश्मीर में आज तीसरे और आखिरी चरण की वोटिंग जारी है। जम्मू-कश्मीर के सात जिलों में 40 सीटों पर वोटिंग हो रहा है। लोग लोकतंत्र के इस पर्व में बढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पहले के दो चरणों में भारी मतदान हुआ था। पहले चरण में 18 सितंबर को 61.38 प्रतिशत और 25 सितंबर को दूसरे चरण में 57.31 प्रतिशत मतदान हुआ था। परिणाम आठ अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। *9 बजे तक हुई 11.60 फीसदी वोटिंग* जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के तहत तीसरे चरण की वोटिंग में सुबह 9 बजे तक 11.60 फीसदी मतदान हुआ है। बांदीपोरा में 11.64 फीसदी, बारामुला में 8.89 फीसदी, जम्मू में 11.46 फीसदी, कठुआ में 13.09 फीसदी, कुपवाड़ा में 11.27 फीसदी, सांबा में 13.31 फीसदी और उधमपुर में 14.23 फीसदी मतदान हुआ है। *इन उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर* तीसरे चरण के मतदान में कुछ प्रमुख उम्मीदवारों में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री सज्जाद लोन और नेशनल पैंथर्स पार्टी इंडिया के अध्यक्ष देव सिंह, जम्मू और कश्मीर के मंत्री रमन भल्ला (आर एस पुरा), उस्मान मजीद (बांदीपोरा), नजीर अहमद खान (गुरेज़), ताज मोहिउद्दीन (उड़ी), बशारत बुखारी (वगूरा-क्रीरी), इमरान अंसारी (पट्टन), गुलाम हसन मीर (गुलमर्ग) और चौधरी लाल सिंह (बसोहली) शामिल हैं। *नरेंद्र मोदी ने की वोटिंगी की अपील* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर में वोटिंग के बीच ट्वीट किया, 'जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में आज तीसरे और आखिरी दौर का मतदान है। सभी मतदाताओं से मेरा अनुरोध है कि वे लोकतंत्र के उत्सव को सफल बनाने के लिए आगे आएं और अपना वोट जरूर डालें। मुझे विश्वास है कि पहली बार वोट देने जा रहे युवा साथियों के अलावा नारीशक्ति की मतदान में बढ़-चढ़कर भागीदारी होगी।' *मल्लिकार्जुन खरगे ने चुनाव पर किया ट्वीट* कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने जम्मू-कश्मीर में तीसरे एवं अंतिम चरण का मतदान आरंभ होने के बाद मंगलवार को मतदाताओं से बड़ी संख्या में मतदान करने की अपील की और कहा कि राज्य का दर्जा छीनने वालों को सबक सिखाने का यह आखिरी मौका है।
बॉलीवुड एक्टर गोविंदा को लगी गोली, अस्पताल में कराए गए भर्ती*
#actor_govinda_shot_by_gun_admitted_to_criti_care_hospital
बॉलीवुड एक्टर और शिवसेना नेता गोविंदा से जुड़ी बुरी खबर सामने आई है। एक्टर को गोली लग गई है। बताया जा रहा है कि उनकी ही बंदूक से पैर में गोली लगी है। सुबह 4.45 बजे की घटना बताई जा रही है। एक्टर CRITI केयर अस्पताल में भर्ती हैं, जहां उनका इलाज चल रहा है। इस वक्त वह आईसीयू में हैं और उनका इलाज चल रहा है। गोविंदा आज सुबह 4.30 बजे अपने जुहू के घर से एयरपोर्ट जा रहे थे। तभी गोविंदा के लाइसेंसी बंदूक से मिस फायर हो गया है, जिसमें गोविंदा का पैर में गोली लगी है। पुलिस के मुताबिक गोविंदा खतरे के बाहर हैं। पुलिस अब इस मामले की जांच में जुट गई है। पुलिस का कहना है कि गोविंदा की बंदूक को कब्जे में ले लिया गया है और मामले की गहराई से जांच की जा रही है। बता दें कि इस साल मार्च में लोकसभा चुनाव से पहले गोविंदा मुंबई में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में शिवसेना में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा था कि वे शिवसेना में इसलिए शामिल हुए क्योंकि यह एक साफ-सुथरी पार्टी है। साथ ही साथ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की भी सराहना की थी और कुछ महीने पहले उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी। उन्होंने सोशल मीडिया पर पीएम मोदी के साथ एक तस्वीर भी शेयर की थी। एक्टर ने लिखा था, मुंबई में चुनाव प्रचार के दौरान भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से मिलना सम्मान की बात थी। गोविंदा ने अपने करियर में कई सफल फिल्में दी हैं। गोविंदा को 'कुली नंबर 1', 'हसीना मान जाएगी', 'स्वर्ग', 'साजन चले ससुराल', 'राजा बाबू', 'राजाजी', 'पार्टनर' जैसी मेगा हिट फिल्मों के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने अपने किरदार से लोगों को खूब हंसाया। कॉमेडी ब्लॉकबस्टर फिल्में देने के लिए बॉलीवुड में उनकी अलग पहचान है। आखिरी बार एक्टर साल 2019 में फिल्म 'रंगीला राजा' में नजर आ थे। ये फिल्म पर्दे पर खासा सफल नहीं रही। इन दिनों वो कई टीवी रियलिटी डांस शोज का भी हिस्सा बनते हैं।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के तीसरे व आखिरी चरण के लिए कल होगी वोटिंग, जानें कहां-कितने कैंडिडेट

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जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के तीसरे और आखिरी चरण के लिए 1 अक्तूबर को मतदान होगा। सात जिलों की 40 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद हो रहे पहले चुनाव में लोगों का खीसा उत्साह देखा जा रहा है। अब तक दो चरणों के चुनाव में मतदाताओं में उत्साह देखने को मिला है। 18 सितंबर को पहले चरण में 61.38 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि 26 सितंबर को दूसरे चरण में 57.31 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई। आखिरी चरण के मतदान के बाद 8 अक्तूबर को मतगणना होगी।

इस चरण के प्रचार के दौरान बीजेपी, कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बीच पाकिस्तान, अनुच्छेद 370, आतंकवाद और आरक्षण सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर देखने को मिला। तीसरे चरण की जिन 40 सीटों पर चुनाव है, उसमें 24 सीटें जम्मू क्षेत्र की है तो 16 सीटें कश्मीर रीजन की है। इस अहम चरण में सात जिलों जम्मू संभाग के जम्मू, उधमपुर, सांबा और कठुआ तथा कश्मीर संभाग के बारामूला, बांदीपोरा और कुपवाड़ा की कुल 40 सीट के लिए मतदान होगा। इस चरण में पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद (कांग्रेस) और मुजफ्फर बेग सहित 415 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर है।

जम्मू संभाग की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर है, कुछ जगह ही नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) है, किंतु कश्मीर की अधिकतर सीटों पर त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबला है। दिलचस्प यह भी है कि प्रदेश की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस दोनों का भविष्य इसी चरण पर टिका है। इसी कारण इन दोनों दलों ने इन सीटों पर प्रचार में पूरा दम दिया। भाजपा के दिग्गज नेता समेत गृह मंत्री और प्रधानमंत्री ने भी चुनावी रैलियां कीं। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी ने पूरे चुनाव में जम्मू-कश्मीर में एक जनसभा की वह भी इसी चरण में। राहुल गांधी की भी रैलियां थीं और कांग्रेस अध्यक्ष भी आए।

उत्तर कश्मीर के इलाके में पीडीपी और नेशनल कॉफ्रेंस जैसी मुख्यधारा की राजनीतिक दलों के साथ-साथ अलगगावादियों का भी सियासी आधार है। सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और इंजीनियर राशिद की पार्टी एआईपी दोनों की शुरुआत कुपवाड़ा जिले से हुई। इसी इलाके में ही इनका सियासी आधार है. इस बार चुनाव में जिस तरह इंजीनियर राशिद और सज्जाद लोन ही नहीं बल्कि जमात-ए-इस्लामी और निर्दलीय भी चुनावी मैदान में उतरे हैं, उसके चलते नार्थ कश्मीर के इलाके का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है।

भारत के खिलाफ नई-नई चालें चल रहा चीन, अब तिब्बत में ऊंचाई वाले हेलीपोर्ट का निर्माण

#china_is_making_heliports_and_helipads_on_high_altitudes_near_lac

वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पूर्वी लद्दाख सेक्टर में चीन के साथ पिछले करीब साढ़े 4 साल से जारी तनाव अभी कम नहीं हुआ है। हालांकि, चीन लगातार भारत के खिलाफ नई-नई चालें चलता रहा है। चीन पहले से ही एलएसी से सटे इलाकों पर सैकड़ों मॉडर्न गांव बसा चुका है, जिसे जियाओकांग कहा जाता है। इन गांवों को उसने ऐसे बसाया है ताकि उनका सैन्य इस्तेमाल भी किया जा सके। अब एक बार फिर चीन ने कुछ ऐसा किया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है।

चीन, तिब्बत में हेलिकॉप्टर बेस का जाल बिछा रहा है। तक्षशिला इंस्टिट्यूशन की एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि तिब्बत में चीन के लगभग 90% हेलीपैड समुद्र तल से 3,300 से 5,300 मीटर (10,000 से 17,400 फीट) की ऊंचाई पर हैं। इनमें से 80% हेलीपैड 3,600 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर हैं। यह खुलासा भारत के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि चीन इन हेलीपैड का इस्तेमाल सैनिकों और हथियारों को तेजी से सीमा पर पहुंचाने के लिए कर सकता है।

रिसर्च में यह भी बताया गया है कि चीन इन हेलीपैड का निर्माण भारत और भूटान के साथ लगती सीमा के पास कर रहा है। ये हेलीपैड चीन की सैन्य रणनीति का अहम हिस्सा हैं और इनसे भारत के लिए खतरा बढ़ गया है। रिसर्च में 109 हेलीपैड का अध्ययन किया गया है। इनमें से केवल दो हेलीपैड 780 से 2600 मीटर की ऊंचाई पर हैं। 32 हेलीपैड 2700 से 3600 मीटर, 44 हेलीपैड 3700 से 4300 मीटर और 25 हेलीपैड 4400 से 4700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। छह हेलीपैड 4800 से 5400 मीटर की ऊंचाई पर हैं।

बेंगलुरु स्थित तक्षशिला इंस्टिट्यूशन में भूस्थानिक अनुसंधान कार्यक्रम के प्रमुख प्रोफेसर वाई नित्यानंदम ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस पर लेख लिखा है। इसमें उन्होंने कहा कि चीन इन हेलीपैड का इस्तेमाल सैन्य अभियानों के लिए कर सकता है। नया हेलीपोर्ट पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी और टोही गतिविधियों को तेज करने की अनुमति देगा।

यह घने जंगलों वाले क्षेत्र में रसद संबंधी चुनौतियों को कम करता है, जहां ऊबड़-खाबड़ पहाड़ सैन्य आवाजाही को मुश्किल बनाते हैं। हेलीपोर्ट के निर्माण से 'दूरदराज के क्षेत्रों में सैनिकों की तेजी से तैनाती, गश्त को मजबूत करना और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण, दूरदराज के स्थानों में चीन की समग्र सैन्य उपस्थिति को बढ़ाना' संभव हो गया है।

UNSC में भारत चाहता है पक्की जगह, अब तक स्थायी सदस्य ना बन पाने की वजह सिर्फ चीन नहीं

#india_permanent_seat_in_unsc_then_where_is_problem

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुए 7 दशक से ज्यादा वक्त बीत गए। तब से दुनिया बहुत बदल गई, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का ढांचा नहीं बदला है। भारत लगातार सुरक्षा परिषद में सुधार की पुरजोर वकालत कर रहा है। यूएनएससी में अपनी स्थायी सदस्यता की दावेदारी कर रहा। अब उसकी दावेदारी को और मजबूती मिली है। अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने भी भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने का समर्थन किया है। रूस पहले से ही भारत की दावेदारी के सपोर्ट में रहा है। सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य में भारत के सामने सिर्फ चीन ही बाधा है।

आज के वैश्विक परिदृश्य को बेहतर ढंग से दर्शाने के लिए स्थायी सदस्यों की संख्या का विस्तार करने की मांग बढ़ रही है। खासकर भारत इसे पुरजोर तरीके से उठा रहा है। भारत का तर्क है कि 1945 में स्थापित 15-सदस्यीय परिषद 'पुराना है और 21वीं सदी के वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करने में नाकाम है।

मौजूदा यूएनजीए सेशन में जी-4 देशों- भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी ने सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग को जबरदस्त तरीके से उठाया है। ये चारों देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए एक दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं। उनकी मांग है कि संयुक्त राष्ट्र में वर्तमान भू-राजनैतिक वास्तविकताओं की झलक दिखनी चाहिए ताकि यह वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के लिए भी फिट रहे।

सवाल उठता है कि जब लगभग सभी देश भारत को स्थायी सदस्यता देने के पक्षधर हैं तो फिर पेंच फंसता कहां है? इस सवाल का जवाब चीन और अमेरिका हैं।

हां, भले ही पिछले हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन किया था। हालांकि, भारत की इस समस्या के लिए बहुत हद तक अमेरिका भी जिम्मेदार है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का सोशलिस्ट लोकतंत्र होने की वजह से हम तत्कालीन सोवियत संघ के ज्यादा नजदीक थे। जिस वजह से अमेरिका हमारे खिलाफ था। जैसा हम 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी देख चुके हैं।

यही वजह है कि अमेरिका हर जगह भारत का न सिर्फ विरोध करता था बल्कि भारत के खिलाफ अपने सारे सहयोगी देशों को भी इस्तेमाल करता था। यही वजह है कि अमेरिका का बनाया हुआ भारत विरोधी माहौल लंबे समय तक कायम रहा। इसी सिलसिले में ब्रिटेन भी भारत की स्थायी सीट का विरोध करता था।

हालांकि, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन किया था। उसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा के 79वें सत्र में ऐलान किया कि उनका देश भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाए जाने के पक्ष में हैं। अब ब्रिटेन के पीएम कीर स्टार्मर में भी इस बात का समर्थन किया है।

सीजेआई ने पश्चिम बंगाल सरकार से सीसीटीवी कैमरों पर प्रगति पर उठाए सवाल

पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों ने घोषणा की है कि वे कार्यस्थलों पर उनकी सुरक्षा और संरक्षा के बारे में राज्य सरकार के आश्वासन का आकलन करने के बाद मेडिकल कॉलेजों में अपना पूर्ण ‘काम बंद’ करने का फैसला वापस लेंगे । यह निर्णय 30 सितंबर, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में आरजी कर मामले की सुनवाई के बाद लिया जाएगा। मामले में याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में “खतरे की संस्कृति” के बारे में चिंताजनक चिंता जताई है।

उनका तर्क है कि परीक्षा कुंजी की बिक्री, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और मेडिकल छात्रों और जूनियर डॉक्टरों के यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार जैसे व्यापक मुद्दे प्रचलित हैं। कोर्ट ने इन आरोपों की गंभीरता को स्वीकार करते हुए कहा है कि अगर इनमें से कुछ भी सच है, तो वह उन्हें अत्यंत गंभीरता से लेगा।

21 सितंबर को, जूनियर डॉक्टरों ने 42 दिनों के अंतराल के बाद पश्चिम बंगाल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में आंशिक रूप से अपने कर्तव्यों को फिर से शुरू किया। वे आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ड्यूटी पर मौजूद एक महिला डॉक्टर के बलात्कार-हत्या के विरोध में 'काम बंद' कर रहे थे।

गुरुवार को जूनियर डॉक्टरों ने मुख्य सचिव मनोज पंत को एक ईमेल भेजा, जिसमें उन्होंने अपनी मांगों को दोहराया, जिन्हें राज्य सरकार ने "अभी तक पूरा नहीं किया है।" दो पन्नों के पत्र में, पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फोरम के प्रतिनिधियों ने 18 सितंबर को राज्य सचिवालय में पंत के साथ अपनी बैठक का संदर्भ दिया, जिसके दौरान उनकी मांगों पर "मौखिक रूप से सहमति" बनी थी।

पश्चिम बंगाल के विभिन्न सरकारी अस्पतालों के जूनियर डॉक्टरों ने अन्य नागरिकों के साथ मिलकर रविवार को पूरे राज्य में मशाल जुलूस निकाला। रैलियाँ कई स्थानों पर हुईं, जैसे आरजी कर अस्पताल, सगोर दत्ता अस्पताल, एसएसकेएम अस्पताल, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज और दक्षिण कोलकाता के जादवपुर।

पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट द्वारा आयोजित - राज्य के विभिन्न मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक छाता समूह - रैलियों ने मेडिकल कॉलेजों में "धमकी की संस्कृति" को समाप्त करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला, जहाँ छात्रों को कथित तौर पर धमकी का सामना करना पड़ता है।