कारस देव -एक गौ रक्षक देवता पशु-पक्षियों की व्याधि ओर उनके उपचार के लिए अकेले कारसदेवता का नाम आता
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ललितपुर। चाय की चकल्लस ने बुंदेलखंड के लोक देवता, पशु पक्षियों के रक्षक कारसदेव के बारे में परिचर्चा आयोजित करते हुए बताया कि कारसदेव पशुओ में गौ-रक्षक के साथ लोक रक्षक देवता माने गए है। भाद्रपक्ष की चतुर्थी को रात के 12 बजे उनका जन्म होना मानकर इस दिन इनकी विशेष पूजा की जाती है और भक्त रातभर ढांक (डमरू) जैसे आवाज के साथ विचित्र घुन में गोटें (गीत) गाते है, जिसमे कारसदेव के जन्म से लेकर बाल्यावस्था, युवावस्था के शौर्य का सुंदर चरित्र सुनने को मिलता है।
पशु-पक्षियों की व्याधि और उनके उपचार के लिए अकेले कारसदेवता का नाम आता है जो विशेष रूप से गौधन भैस आदि जानवरों को किसी कीड़े द्वारा सतानें, सर्प द्वारा डसने, किसी भी तंत्र-मंत्र ओघड़-मसान द्वारा प्रताडि़त करने पर उस जानवर की फरियाद कारसदेव के चबूतरे पर करने से, उस पशु का दूध अर्पित करने से वह जानवर स्वस्थ हो जाता है। चंदेलों के शासनकाल में कारसदेव की गोटों में उन्हे शंकर का अवतार मानकर स्थानीय देवों में शामिल किया गया है।
बुंदेलखंड के कण कण में कारस देव
आल्हा खण्ड से बुंदेलखंड तक आल्हा की गाथाओं, कारसदेव की गोटों, कजरीयन के राछरे, गहनई और कन्हैया आदि में इन देवों का उल्लेख मिलता है। बुंदेलखंड में गोपालक देवता के रूप में कारसदेव की पूजा की जाती है जो समूचे ब्रजमण्डल सहित बुंदेलखण्ड, मालवान्चल के हर शहर, कस्बे, जनपद व गांव में गौ-पालक, यादव, अहीर, ग्वाला, गुर्जर, गड़रिया, कुशवाहा आदि समाजों द्वारा भाद्रपक्ष को खीर पूड़ी से पूजे जाते है। इसके अलावा पूजा में दूध, दही, शुद्ध घी चढ़ा कर कारसदेव से अपने-अपने पशुओं के निरोगी रहने और सभी तरह की बाधाओं से मुक्त रखने की प्रार्थना की जाती है।
कारसदेव सच्चे अर्थों में पशुओं के रक्षक वीर योद्धा थे। यही कारण है कि उनकी मढिय़ा के सामने घोड़ा प्रतीक रूप में खड़ा किया जाता है और मान्यता है कि कारसदेवता घोड़े पर चढ़कर गोहंतायो से युद्ध कर पशुओं की सुरक्षा करते थे।
लोक देवता की जन्मकथा
कारस देव का जन्मकाल ग्यारहवी-बारहवी सदी के मध्य माना गया है जहा उनके नाम के साथ हीरामन का भी। उल्लेख मिलता है जो कारस देव के साथ गाय चराने जंगल जाया करते थे। कारसदेव के जन्म को लेकर अनेक किवदंतिया प्रचलित है जिसमें बुंदेलखंड के ग्राम झांज के गुर्जर परिवार में एक निसंतान सरनी माँ का जिक्र किया गया है कि उन्होने 12 वर्ष तक शिवजी की कठोर तपस्या निराहार रहकर की थी। एक दिन सुबह सरोवर में सरनी माँ को एक विशाल कमल का फूल दिखा जिस पर एक सुंदर सा शिशु बालक लेटा हुआ था जिसे सरनी माँ ने शिवजी की कृपा मानकर गोद में ले लिया ओर पुचकारने लगी। सरनी की एक पुत्री ऐलादी का परिचय एक गोट में मिलता है जो वीरांगना थी - बारा बरस तपिया तपी, करें न अन्न आहार। सरनी गई स्नान खों, अहेले तला के पार। कमल पर पौर्ढो राजकुमार, सौ-सौ दल कमला खिले, भ्रमर रहे गुंजार। एक कमल पर ऐसे लगे, जैसे दियला जले हजार॥ कमल पर पौर्ढो राजकुमार॥ उठा सरनी ओली लये, कारस को पुचकार जप-तप सब पूरन भये, मोरी शिव ने सुनी पुकार। कमल पर पौर्ढो राजकुमार॥ संसार में प्राय: हर आदमी अधूरा है ओर वह थक हारकर हताश हो जाता है तब देवी देवताओं की शरण में पहुंचकर मानसिक तुष्टि पाता है जो देवता के प्रसाद या वरदान की तरह उसके अंतस को आनंद से भर देती है।
सरनी माता कारसदेव को लेकर घर गई जहा उन्हे लाड प्यार से पाला। कारसदेव के हीरामन ओर सूरजपाल नाम के दो चचेरे भाई का उल्लेख मिलता है जो बहुत ही साहसी ओर वीर थे उनके पास अपार गोधन था जिसे तीनों मिलकर गाये चराने जाते थे। कारसदेव की गोटों में इसका वर्णन किया गया है। जनम के कारसदेव कनईया, पतों भेद काऊये नईया। ऐलादी ने बारह बरस सेवा कर लई, भोला अड्बंगेनाथ की।। ताली खुली भोला अड्बंगेनाथ की, आज कौ माँगों पाव। ऐलादी ऐसे वीर मांग रई, गईयन के चरैया धोरी की रखैया। सूरजपाल के भैया, जेठी बल पाय॥ परिचर्चा का समापन करते हुए परिचर्चा संयोजक पर्यावरणविद् पुष्पेन्द्र सिंह चौहान ने बताया की हमारी अनुसंधान विंग जल्दी ही बुंदेलखंड के लोक देवताओं की सूची उनके स्थान, चबूतरों की जानकारी के साथ प्रकाशित करेंगी और सरकार से उन्हें उचित संरक्षण के लिए आग्रह करेंगी।
Mar 31 2024, 18:19