जगजीत सिंह डल्लेवाल पर सुप्रीम कोर्ट की पंजाब सरकार को फटकार, 31 दिसंबर तक अस्पताल भेजने का दिया समय

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सुप्रीम कोर्ट ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की सेहत को लेकर पंजाब सरकार को जमकर फटकार लगाई है। खनूरी बॉर्डर पर किसान नेता जगजीत डल्लेवाल के आमरण अनशन वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच सुनवाई की। अदालत ने डल्लेवाल की बिगड़ती सेहत पर चिंता जताई और राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि किसान नेता को चिकित्सा सहायता दी जाए। कोर्ट ने डल्लेवाल को अस्पताल ले जाने के लिए पंजाब सरकार को 31 दिसंबर तक का समय दिया है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की अवकाशकालीन पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए पंजाब सरकार को डल्लेवाल को चिकित्सकीय सहायता प्रदान करने के अपने पूर्व आदेशों का पालन ना करने पर फटकार लगाई। किसान नेता 26 नवंबर से ही अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं। उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ रही है। अदालत ने डल्लेवाल की बिगड़ती सेहत पर चिंता जताई और राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि किसान नेता को चिकित्सा सहायता दी जाए। हालांकि, अदालत जगजीत सिंह डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती करने के राज्य के प्रयासों से असंतुष्ट है। अदालत ने किसान नेता को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए मनाने के लिए 31 दिसंबर का समय दिया है।

पंजाब सरकार ने कहा कि अगर दल्लेवाल को अस्पताल में स्थानांतरित किया गया तो किसान विरोध कर सकते हैं। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मांगों के लिए आंदोलन करना लोकतांत्रिक तरीका है लेकिन किसी को अस्पताल ले जाने से रोकने के लिए आंदोलन करना कभी नहीं सुना। यह आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि पहले आप समस्याएं पैदा करते हैं और फिर कहते हैं कि आप कुछ नहीं कर सकते।

कोर्ट ने पंजाब सरकार की ओर से पेश वकील से कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे आप हलफनामे के जरिए किसानों की बातों का समर्थन कर रहे हैं। इसके अलावा कोर्ट ने ये भी कहा कि हमें उन किसानों की नीयत पर शक है, जो डल्लेवाल को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में बाधा डाल रहे हैं।

डल्लेवाल के स्वास्थ्य और जीवन की चिंता करते हुए अदालत ने पंजाब सरकार को उन्हें चिकित्सकीय सहायता सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए। अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक के खिलाफ अवमानना याचिका पर नोटिस भी जारी किया है। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि राज्य सरकार को डल्लेवाल को अस्पताल स्थानांतरित करने के उसके निर्देशों का पालन करना होगा।

चुनाव आयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची कांग्रेस, नियमों में बदलाव की मांग

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कांग्रेस चुनाव आयोग के नियमों में बदलाव को लेकर केंद्र सरकार के हालिया फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। दरअसल, केन्द्र की मोदी सरकार ने सीसीटीवी कैमरे और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए चुनाव से संबंधित नियम में बदलाव किया है, ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके। अब कांग्रेस ने हाल ही में किए गए इन संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस संबंध में मंगलवार को एक याचिका दायर की। जयराम रमेश ने याचिका दायर करने की जानकारी एक्स पर दी। जयराम रमेश ने याचिका दायर करने के बाद एक्स पर लिखा, "निर्वाचनों का संचालन नियम 1961 में हाल के संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दायर की गई है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है। इस पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी है, इसलिए इसे एकतरफा और सार्वजनिक विचार-विमर्श के बिना इतने महत्वपूर्ण नियम में इतनी निर्लज्जता से संशोधन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। उस परिस्थिति में तो विशेष रूप से नहीं जब वह संशोधन चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने वाली आवश्यक जानकारी तक सार्वजनिक पहुंच को समाप्त करता है। चुनावी प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा तेजी से कम हो रही है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे बहाल करने में मदद करेगा।"

सरकार ने किन नियमों को बदला?

चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 अनुबंधों के मुताबिक, चुनाव से संबंधित सभी 'कागजात' सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रखे जाएंगे। यानी ये सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध होंगे। अब केंद्र सरकार ने इस नियम में संशोधन किया है। इसके तहत अब नियम 93 की शब्दावली में 'कागजातों' के बाद 'जैसा कि इन नियमों में निर्दिष्ट है' शब्द जोड़े गए हैं।

चुनाव आयोग से मशवरे के बाद केंद्रीय कानून और विधि मंत्रालय की तरफ से किएगए बदलावों के बाद अब चुनाव संबंधी सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण के लिए नहीं रखा जाएगा। अब आम जनता सिर्फ उन्हीं चुनाव संबंधी दस्तावेजों को देख सकेगी, जिनका जिक्र चुनाव कराने से जुड़े नियमों में पहले से तय होगा।

इसका क्या असर होने वाला है?

चूंकि नामांकन फार्म, चुनाव एजेंट की नियुक्ति, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेजों का जिक्र चुनाव संचालन नियमों में किया गया है, इसलिए इन्हें सार्वजनिक निरीक्षण के लिए बरकरार रखा जाएगा। हालांकि, आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज चुनाव संचालन नियमों के दायरे में नहीं आते हैं। ऐसे में यह दस्तावेज जनता की पहुंच से दूर हो जाएंगे।

Pooja Enterprises, led by Mr. Sanjay Kaushal, revolutionizes the uniform and disposable wear industry across India and globally.

Pooja Enterprises from the city of Chandigarh has emerged as a manufacturing and supplying company of supreme quality uniforms and disposable wear. Initially it was operating since 2004 under sole proprietorship but the company has grown into a recognized organization not only in India but also in the international market offering segmented solutions in different sectors such as education, healthcare, corporate & hospitality.

Pooja Enterprises has wide popularity due to the vast assortment in its offer, including school uniform, formal wear, hospital uniform, chefs uniform, disposable shoe cover, disposable bouffant caps, blazers, corporate uniforms, laboratory coat with pocket, beard cover, and plastic disposable gloves. They come in durable material, quality texture and are effective when it comes to color fading; they are comfortable and thus serve the best satisfaction of the professionals and students. In this case the company sets itself apart from other manufacturers of pendants in that they can produce the designs in the logos of the brands in question.

Its collection of school uniforms, skirts, T-shirts, trousers, and the latest KV School Uniform makes Pooja Enterprises stand out in this niche. These uniforms are also crafted with minute attention to detail, offering both style and practicality. It takes the process further by arranging school uniform counters at school premises for easy accessibility by parents and students.

For the corporate world, Pooja Enterprises caters to high-end shirts and T-shirts, providing professional appeal along with comfort. Their hospital uniforms, comprising medical lab coats and other specialized ladies' uniforms, meet high standards for quality and hygiene, as they address the challenging needs of the healthcare industry. Even the hospitality sector benefits from its range of chef coats and designer chef uniforms, which are both functional and fashionable.

Behind the success of the company lies a robust manufacturing facility that is equipped with the latest machinery, enabling bulk production while upholding international standards. Wrinkle-free fabrics and perfect stitching ensure durability and aesthetic appeal for each product. The infrastructure also enables them to deliver orders on time, neatly ironed, and packed.

Mr. Sanjay Kaushal's leadership has greatly contributed to the success story of this company. With his innovative approach and strong connections in the industry, Pooja Enterprises has always been very responsive to the market's demands. Under his guidance, the company has exported its products to the United States, United Kingdom, Germany, Nepal, and Italy, increasing its international presence.

Client satisfaction is at the heart of Pooja Enterprises' philosophy. The company actively seeks feedback to refine its products and services, ensuring that every order meets the unique needs of its clients. With a focus on affordability and reliability, Pooja Enterprises has built strong partnerships with key customers such as Manchanda Mix Bag and New Public Departmental Stores.

As such, the quality assurance in which Pooja Enterprises is certified ensures that only quality raw materials are used to meet domestic and international standards. Their commitment to excellence has earned them a reputation for being unmatched in their quality uniforms and disposable wear. Hence, they emerge as an ideal choice for schools, corporations, hospitals, and hotels.

As the company continues growing, Pooja Enterprises strives to provide innovative, high-quality solutions that meet the demands of its clients while also solidifying its market leadership in the uniform and disposable wear industry.

వైఎస్ భాస్కర్ రెడ్డికి సుప్రీం కోర్టు నోటీసులు

వైఎస్ వివేకానంద రెడ్డి హత్య కేసును సీబీఐ విచారిస్తోంది. దాదాపు హత్య జరిగి ఐదేళ్లు గడిచినా ఈ దారుణానికి ఒడిగట్టింది ఎవరనే దానిపై అధికారికంగా స్పష్టత రాలేదు. ఈ హత్య చేసిందేవరో కోర్టు తుది తీర్పు తర్వాతనే తేలనుంది. సీబీఐ సుదీర్ఘకాలంగా కేసును విచారిస్తోంది. కడప ఎంపీ వైఎస్ అవినాష్ రెడ్డి తండ్రి భాస్కర్ రెడ్డి అరెస్ట్ తర్వాత ఈ కేసు విచారణలో స్పీడ్ తగ్గింది.

వైఎస్ భాస్కర్ రెడ్డి (YS Bhaskar Reddy)కి సుప్రీం కోర్టు (Supreme Court ) నోటీసులు (Notices) జారీ చేసింది. వైఎస్ వివేకానంద రెడ్డి హత్య కేసు (YS Vivekananda Reddy murder case)లో నిందితుడు భాస్కర్ రెడ్డికి తెలంగాణ హైకోర్టు (Telangana High Court) బెయిల్ (Bail) మంజూరు చేసింది. ఈ క్రమంలో భాస్కర్ రెడ్డికి హైకోర్టు ఇచ్చిన బెయిల్ రద్దు చేయాలని కోరుతూ సీబీఐ (CBI) సుప్రీంలో పిటీషన్ దాఖలు చేసింది. దీనిపై శుక్రవారం సిజెఐ సంజీవ్ ఖన్నా (CJI Sanjeev Khanna) నేతృత్వంలోని ధర్మాసనం ముందు విచారణ జరిగింది. అనంతరం భాస్కర్ రెడ్డికి నోటీసులు జారీచేస్తూ... తదుపరి విచారణ మార్చికి వాయిదా వేసింది.

వైఎస్ వివేకానంద రెడ్డి హత్య కేసును సీబీఐ విచారిస్తోంది. దాదాపు హత్య జరిగి ఐదేళ్లు గడిచినా ఈ దారుణానికి ఒడిగట్టింది ఎవరనే దానిపై అధికారికంగా స్పష్టత రాలేదు. ఈ హత్య చేసిందేవరో కోర్టు తుది తీర్పు తర్వాతనే తేలనుంది. సీబీఐ సుదీర్ఘకాలంగా కేసును విచారిస్తోంది. కడప ఎంపీ వైఎస్ అవినాష్ రెడ్డి తండ్రి భాస్కర్ రెడ్డి అరెస్ట్ తర్వాత ఈ కేసు విచారణలో స్పీడ్ తగ్గింది. వాస్తవానికి వైఎస్ అవినాష్ రెడ్డిని సీబీఐ అధికారులు అరెస్ట్ చేయడానికి ప్రయత్నించినా.. కుదరలేదు. చివరికి తెలంగాణ హైకోర్టులో ఆయన ముందస్తు బెయిల్ పొందడంతో అవినాష్ అరెస్ట్ విషయం వెనక్కి వెళ్లిపోయింది. ఇంత జరుగుతున్నా.. వివేకానంద రెడ్డి హత్య ఎందుకు జరిగింది.. ఈ హత్యలో ఎవరు పాత్రదారులు.. ఎవరు సూత్రదారులు అనేది రాష్ట్ర ప్రజలందరికీ తెలిసిన బహిరంగ రహస్యమే. చట్టప్రకారం దర్యాప్తు సంస్థలు విచారణ పూర్తి చేసి సాక్ష్యాధారాలను కోర్టులో సమర్పించిన తర్వాత.. న్యాయస్థానం తీర్పు తర్వాత ఈ హత్యలో దోషులు ఎవరో అధికారికంగా తేలుతుంది.

సార్వత్రిక ఎన్నికలకు ముందు సీబీఐ విచారణ మందగించింది. ఓవైపు ఎన్నికల సమయం కావడంతో కొంత గ్యాప్ ఇచ్చినట్లు తెలుస్తోంది. గత ఐదేళ్లుగా సీబీఐ ఈ కేసులో అసలు నిందితులను అరెస్ట్ చేసే ప్రయత్నం చేసినా.. గత వైసీపీ ప్రభుత్వం ఏదో విధంగా వారి విధులకు ఆటంకం కలిగిస్తూనే ఉందనే ఆరోపణలు ఉన్నాయి. నిందితులను కాపాడేందుకు జగన్ తీవ్రంగా ప్రయత్నించారనే ఆరోపణలు ఉన్నాయి. దర్యాప్తు సక్రమంగా జరగకుండా మాజీ సీఎం జగన్ కుట్రలు చేసినట్లు ప్రచారం జరిగింది. ఏకంగా సీబీఐ అధికారులపై కేసులు నమోదు చేసిన సందర్భాలు చూశాము. దర్యాప్తు సంస్థల అధికారుల నైతికతను, ఆత్మస్థైర్యాన్ని దెబ్బతీసే ప్రయత్నం గత వైసీపీ ప్రభుత్వం చేసినట్లు తెలుస్తోంది. ప్రస్తుతం వైసీపీ అధికారంలో లేదు. జగన్ ప్రజల మద్దతును కోల్పోయారు. ఈ నేపథ్యంలో సీబీఐ వివేకా కేసు దర్యాప్తును వేగవంతం చేసే అవకాశం ఉన్నట్లు తెలుస్తోంది.

2019లో వైసీపీ అధికారంలోకి రావడంతో రాష్ట్రప్రభుత్వ దర్యాప్తు సంస్థలపై విశ్వాసం లేదని.. నిందితులను ప్రభుత్వం కాపాడే అవకాశం ఉందన్న అనుమానంతో వివేకా కుమార్తె సునీత కోర్టును ఆశ్రయించారు. దీంతో ఈ కేసు దర్యాప్తును న్యాయస్థానం సీబీఐకి అప్పగించింది. సీబీఐ దర్యాప్తుతో అసలు విషయాలు బయటకు వస్తాయని అంతా భావించారు. అనుకున్నట్లుగానే కడప ఎంపీ అవినాష్ రెడ్డి పాత్ర ఈ హత్యలో ఉన్నట్లు సీబీఐ ప్రాథమికంగా ఆధారాలు సేకరించిందనే ప్రచారం జరిగింది. గూగుల్ టేకవుట్, టైమ్ లైన్ ఆధారంగా అవినాష్‌ రెడ్డికి ఈ హత్యతో ప్రమేయం ఉన్నట్లు సీబీఐ నిర్థారణకు వచ్చిందన్న ప్రచారం జరిగింది. కానీ అవినాష్ రెడ్డిని ఇప్పటిరవకు ఈ కేసులో అరెస్ట్ కాలేదు. సీఎం జగన్మోహన్ రెడ్డి అవినాష్ రెడ్డిని కాపాడుతూ వస్తున్నారనే ప్రచారం జరుగుతోంది.

అవినాష్ రెడ్డిని కస్టడీలోకి తీసుకుని సీబీఐ అధికారులు విచారిస్తే అసలు విషయాలు బయటకు వస్తాయని.. అదే జరిగితే మాజీ సీఎం జగన్‌తో పాటు ఆమె భార్య భారతి ఇరుక్కునే అవకాశం ఉండటంతోనే అవినాష్ రెడ్డిని జగన్ కాపాడుతున్నారనే చర్చ జరుగుతోంది. ఎంపీ టికెట్ కోసమే ఈ హత్యను చేసినట్లు కేసులోని కొందరు సాక్ష్యులు, నిందితులు ఇప్పటికే చెప్పారు. దీంతో ఈ విషయం బయటకు వస్తే వైసీపీతో పాటు జగన్ రాజకీయ భవిష్యత్తు ప్రమాదంలో పడే అవకాశం ఉండటంతోనే జగన్ నిందితులకు అండగా నిలుస్తున్నట్లు తెలుస్తోంది.

प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, दिल्ली-एनसीआर में स्कूलों को बंद करने के आदेश

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दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति लगातार गहराती जा रही है। दिल्ली में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कोर्ट रूम के अंदर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का स्तर 990 से ऊपर है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगर एक्यूआई 400 से नीचे चला जाता है, तब भी जीआरएपी का चौथा चरण उसके अगले आदेश तक लागू रहेगा और उसने सभी एनसीआर राज्यों को जीआरएपी का चौथा चरण लागू करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अलावा एनसीआर में भी सभी स्कूल कॉलेज बंद करने के आदेश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राज्य और केंद्र का संवैधानिक दायित्व है कि नागरिक प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्रैप चरण 3 और 4 के सभी खंडों के अलावा, सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाने चाहिए कि स्थिति सामान्य हो जाए। कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष गुरुवार तक आदेश के पालन को लेकर हलफनामा दाखिल करें। शुक्रवार को सुनवाई होगी।

ग्रैप 4 की निगरानी के लिए टीम गठित करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी एनसीआर सरकारों को ग्रैप चरण 4 को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया। साथ ही अदालत ने सभी एनसीआर राज्यों को ग्रैप 4 के तहत जरूरी कामों की निगरानी के लिए तत्काल टीमों का गठन करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि वे ग्रैप 4 में दिए गए कदमों पर तुरंत निर्णय लें और अगली सुनवाई की तारीख से पहले उन्हें उसके समक्ष रखें। कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर सरकारों को इस कदम के उल्लंघन की रिपोर्ट करने के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी निर्देश दिया।

12वीं कक्षा तक के सभी स्कूलों को बंद कर दिया जाए

कोर्ट ने एनसीआर राज्यों को आदेश दिया कि 12वीं कक्षा तक के सभी स्कूलों को बंद कर दिया जाए और सभी कक्षाओं को ऑनलाइन मोड में संचालित किया जाए। कोर्ट ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य प्राथमिकता होनी चाहिए और यह जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है कि वे प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करें।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग पर भी सवाल

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) पर भी सवाल उठाए, यह कहते हुए कि एक्यूआई 400 पार करने के बावजूद ग्रैप स्टेज 3 और स्टेज 4 को लागू करने में देरी हुई। कोर्ट ने कहा कि 12 नवंबर को एक्यूआई 400 से ऊपर पहुंच गया था, लेकिन ग्रैप स्टेज 3, 14 नवंबर को लागू किया गया और स्टेज 4 आज सुबह ही प्रभावी हो पाया।

बता दें कि रविवार को ही दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर 460 एक्यूआई की सीमा को पार कर गया था। हालात को देखते हुए उसी समय केंद्र सरकार की समिति ने दिल्ली एनसीआर में ग्रैप-4 लागू करने के आदेश जारी कर दिए थे. यह आदेश आज सोमवार की सुबह आठ बजे से लागू किए गए हैं। इस आदेश के तहत दिल्ली एनसीआर में पहली से 6 वीं तक के स्कूलों को तत्काल बंद करने और बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई करने के आदेश दिए गए थे। साथ ही कई तरह की अन्य पाबंदियां भी लागू की गई थी।

कौन हैं मोजतबा खामेनेई? जो बन सकते हैं ईरान के अगले सुप्रीम लीडर

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दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक देशों में से एक ईरान में बड़ी हलचल देखने को मिल रही है। पहले तो ये देश इजरायल के साथ युद्ध में व्यस्त है। इजराइल से जंग के बीच ईरान की राजनीति में एक बड़े बदलाव के संकेत मल रहे हैं। अचानक से सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई द्वारा अपने बेटे मोजतबा को उत्तराधिकारी बनाए जाने की खबर ने सब को चौंका दिया है।

ईरान इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई के दूसरे बेटे मोजतबा खामेनेई को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर चुना गया है।बताया जा रहा है कि यह फैसला 26 सितंबर को हुई एक सीक्रेट बैठक में लिया गया। दरअसल, वर्तमान में अयातुल्लाह अली खामेनेई की उम्र 85 वर्ष है। वह लंबे समय से गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहहे हैं। ऐसे में वह ईरान के सर्वोच्च नेता का पद छोड़ने की योजना बना रहे हैं, ताकि मोजतबा उनके जीवनकाल में ही देश का नेतृत्व संभाल सकें।

सर्वसम्मति से नेता चुने गए मोजतबा

इजराइली मीडिया आउटलेट वाईनेट न्यूज ने ईरान इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई के दूसरे बेटे मोजतबा खामेनेई को एक गुप्त बैठक के दौरान कथित तौर पर उनके पिता के उत्तराधिकारी के रूप में चुना गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 26 सितंबर को सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के अनुरोध पर ईरान के विशेषज्ञों की सभा के 60 सदस्यों की बैठक बुलाई गई थी, जिन्होंने उन्हें अपने उत्तराधिकार के संबंध में तत्काल और गोपनीय निर्णय लेने का निर्देश दिया था। सर्वसम्मति से, सभा ने खामेनेई के बेटे मोजतबा को उनके उत्तराधिकारी के रूप में चुना।

सार्वजनिक विरोध से बचने के लिए गुप्त बैठक

ईरान इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि सार्वजनिक विरोध से बचने के लिए इस फैसले को गुप्त रखा गया था। इसमें कहा गया है, व्यापक सार्वजनिक विरोध के डर से विधानसभा ने निर्णय पर अधिकतम गोपनीयता बनाए रखने का संकल्प लिया और सदस्यों को किसी भी लीक के लिए गंभीर परिणामों की चेतावनी दी गई थी।

परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी

ऐसा माना जा रहा है कि अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ संभावित सार्वजनिक प्रतिक्रिया के डर ने इन चरम उपायों को लागू किया गया। बैठक के बारे में कोई भी जानकारी लीक होने पर विधानसभा सदस्यों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी।

एक महीने तक छिपाकर रखा गया फैसला

देश में अशांति को रोकने के लिए असेंबली के विचार-विमर्श का विवरण एक महीने से अधिक समय तक छिपाया गया था। मोजतबा के चयन ने उनके सरकारी अनुभव और आधिकारिक भूमिकाओं की कमी के कारण चिंताएं पैदा की हैं। हालांकि, पिछले दो वर्षों में, उन्हें शासन के आंतरिक कामकाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए लगातार तैनात किया गया है, जो सत्ता के सुचारू हस्तांतरण को सुनिश्चित करने के लिए अली खामेनेई द्वारा एक सुनियोजित प्रयास का संकेत देता है।

कौन है मोजतबा खामेनेई?

मोजतबा खामेनेई अयातुल्लाह अली खामेनेई के दूसरे बेटे हैं। उनका जन्म 8 सितंबर, 1969, मशहद ईरान में हुआ था। उन्होंने धर्मशास्त्र की पढ़ाई की और 1999 में मौलवी बनने की पढ़ाई की। मोजतबा की पहचान एक धार्मिक और राजनीतिक व्यक्ति के रूप में है। वह सर्वोच्च नेता के कार्यालय में एक कमांडिंग ऑफिसर की भूमिका निभाते हैं। 2005 और 2009 में ईरान के चुनावों में मोजतबा महमूद अहमदीनेजाद के समर्थक थे और कथित तौर पर 2009 में अहमदीनेजाद की जीत में भी उनका हाथ था। अहमदीनेजाद की जीत के बाद जून 2009 में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिसमें मोजतबा ने कथित तौर पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों को दबाने वालों का नेतृत्व किया। हालांकि, बाद में अहमदीनेजाद के साथ उनके संबंध खराब हो गए जब उन्होंने मोजतबा खामेनेई पर सरकारी खजाने से धन के गबन का आरोप लगाया।

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कहा-घर सपना, कभी ना टूटे...

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाया है। अपराधियों और अवैध निर्माण को लेकर ‘बुलडोजर’ एक्शन काफी पॉपुलर है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के बाद देश की कई राज्यों ने क्रिमिनल्स के खिलाफ नकेल कसने के लिए ‘बुलडोजर’ एक्शन को अपनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है। बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता।. जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया।

सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए

कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है। हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं। फैसला पढ़ते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है।सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है

जस्टिस बीआर गवई बुलडोजर एक्शन पर फैसला पढ़ते हुए कहा कि, घर होना एक ऐसी लालसा है जो कभी खत्म नहीं होती। हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो। एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका को दंड के रूप में आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए? हमें विधि के शासन के सिद्धांत पर विचार करने की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान का आधार है।सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है।

अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें

बिना मुकदमे के घर तोड़कर सजा नहीं दी जा सकती है। हमारे पास आए मामलों में यह स्पष्ट है कि प्राधिकारों ने कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन किया। गाइडलाइन्स पर हमने विचार किया है। अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें। मनमानी करने वाले अधिकारियों पर एक्शन की सख्त जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था अंतरिम आदेश

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या उसे दोषी ठहराए जाने के आधार पर उसके घरों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं। किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।

पटाखों को लेकर दिल्ली पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा-शादियों और चुनाव में भी पटाखे जलाए जा रहे, क्या कार्रवाई हुई?

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सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध के उसके आदेश को गंभीरता से न लेने के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने माना कि पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश को दिल्ली पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और महज दिखावा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध था।⁠ क्या पुलिस ने बिक्री पर प्रतिबंध लगाया, आपने जो कुछ जब्त किया है, वह पटाखों का कच्चा माल हो सकता है?

इस दिवाली भी राजधानी दिल्‍ली और एनसीआर सहित पूरे उत्‍तर भारत में दिवाली के शुभ अवसर पर जमकर पटाखे चलाए गए। पटाखों पर बैन के बावजूद धड़ल्‍ले से इनका इस्‍तेमाल हुआ, जिसके चलते प्रदूषण का स्‍तर पर नई रिकॉर्ड पर पहुंच गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी धर्म ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता जो प्रदूषण को बढ़ावा दे या लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता करे। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

विशेष सेल बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रदूषण को कम रखने के लिए अपने द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में उसे सूचित करें। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से उसके आदेश के पूर्ण पालन के लिए स्पेशल सेल बनाने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि बिना लाइसेंस के कोई भी पटाखों का उत्पादन और उनकी बिक्री न कर सके।

पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आदेश जारी करके पटाखा बैन पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश दिए कोर्ट ने कहा कि कमिश्नर तुरंत एक्शन लें और पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें। कोर्ट ने 14 अक्टूबर के उस आदेश पर जिक्र किया, जिसमें 1 जनवरी, 2025 तक पटाखों पर पूर्ण बैन लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि जहां तक इसकी अनुपालना का सवाल है दिल्ली सरकार ने इसमें असहायता व्यक्त की क्योंकि इसे दिल्ली पुलिस द्वारा लागू किया जाना है। पुलिस की ओर से पेश एएसजी भाटी ने कहा कि प्रतिबंध जारी करने वाला आदेश 14 अक्टूबर को पारित किया गया था। हालांकि, हम पाते हैं कि दिल्ली पुलिस ने उक्त आदेश के कार्यान्वयन को गंभीरता से नहीं लिया।

कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए

कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हैं कि वे तुरंत सभी संबंधितों को उक्त प्रतिबंध के बारे में सूचित करने की कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए। हम आयुक्त को पटाखों पर प्रतिबंध के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने का निर्देश देते हैं। हमें आश्चर्य है कि दिल्ली सरकार ने 14 अक्टूबर तक प्रतिबंध (पटाखों पर) लगाने में देरी क्यों की। यह संभव है कि उपयोगकर्ताओं के पास उससे पहले ही पटाखों का स्टॉक रहा होगा।

बता दें कि दिल्ली सरकार ने दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध का निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके बावजूद दिवाली पर खूब पटाखे छूटे और पटाखों पर प्रतिबंध का या तो बहुत कम या कई जगहों पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पटाखों के उत्पादन और निर्माण को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपने सिर्फ कच्चा माल जब्त करके महज दिखावा किया। पटाखों पर प्रतिबंध को गंभीरता के साथ लागू नहीं किया गया।

జెత్వానీ కేసు.. సుప్రీంను ఆశ్రయించిన విద్యాసాగర్

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టులో పిటిషన్‌ వేశారు. ఏపీ హైకోర్టు ఇచ్చిన తీర్పును సవాల్‌ చేస్తూ సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ పిటిషన్ దాఖలు చేశారు. ఈ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది.

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ (Mumbai Actress Jethwani) వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టును (Supreme Court) ఆశ్రయించారు. తన అరెస్టును సమర్ధిస్తూ... ఆంధ్రప్రదేశ్‌ హైకోర్టు గత నెల 10న ఇచ్చిన తీర్పును సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేశారు. విద్యాసాగర్‌ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది. ట్రయల్‌ కోర్టులో ఇప్పటికే బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌ దాఖలు చేసినట్లు సుప్రీంకోర్టుకు విద్యాసాగర్‌ తరపు న్యాయవాదులు చెప్పారు. బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై త్వరగా నిర్ణయం తీసుకునేలా ఆదేశాలు జారీ చేయాలని విద్యాసాగర్ న్యాయవాదులు విజ్ఞప్తి చేశారు. మూడు వారాల్లో బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై నిర్ణయం తీసుకోవాలని లోయర్‌ కోర్టుకు ధర్మాసనం మార్గదర్శకాలు ఇచ్చింది. అలాగే ప్రతివాదులకు సుప్రీం ధర్మాసనం నోటీసులు జారీ చేసింది.

నటి జెత్వానీ ఇచ్చిన ఫిర్యాదు ఆధారంగా నమోదైన కేసులో విజయవాడ కోర్టు ఇచ్చిన రిమాండ్ ఉత్తర్వులను గతంలో హైకోర్టులో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేయగా.. అక్కడ ఆయనకు ఎదురుదెబ్బ తగిలిన విషయం తెలిసిందే. కుక్కల విద్యాసాగర్ అరెస్టు విషయంలో జోక్యానికి హైకోర్టు నిరాకరించింది. ‘‘పిటిషనర్‌ అరెస్టు విషయంలో చట్టం నిర్దేశించిన మార్గదర్శకాలను పోలీసులు అనుసరించలేదు.. అరెస్టుకు కారణాలను ఆయనకు వివరించలేదు. బంధువులకు తెలియజేయలేదు. అరెస్టుకు కారణాలను రిమాండ్‌కు ముందు ఆయనకు అందజేశారు. రిమాండ్‌ ఆర్డర్‌లో కూడా వీటి ప్రస్తావన లేదు.. అందుచేత రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావని, వాటిని కొట్టివేయాలి’’ అంటూ విద్యాసాగర్ తరపు న్యాయవాది కోర్టును కోరారు. అయితే కుక్కల విద్యాసాగర్‌ను అరెస్టు చేసే సమయంలో పోలీసులు చట్టనిబంధనల ప్రకారమే నడుచుకున్నారని అడ్వకేట్ జనరల్ కోర్టుకు తెలిపారు. అరెస్టు చేసేటప్పుడు నిందితుడిపై ఎవరు ఫిర్యాదు చేశారు.. ఏ కారణంతో అరెస్టు చేస్తున్నామో వారు వివరించారని.. అరెస్టు చేస్తున్న విషయాన్ని ఆయన స్నేహితుడికి కూడా తెలియపరిచారని వివరించారు. అరెస్టుకు కారణాలు చెప్పలేదని, పోలీసులు చట్టనిబంధనలు అనుసరించనందున రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావన్న విద్యాసాగర్‌ వాదనలో అర్థం లేదని ఏజీ తెలిపారు. వాదనలు ముగిసిన అనంతరం విద్యాసాగర్ పిటిషన్‌ను కొట్టివేస్తూ హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది.

మరోవైపు నటి జెత్వానీ కేసులో సీఐడీ విచారణకు కూడా ప్రారంభమైంది. ఈకేసును సీఐడీకి అప్పగిస్తూ రాష్ట్ర ప్రభుత్వం నిర్ణయం తీసుకుంది. ఈ కేసులో డీజీపీ, ఐజీ, డీఐజీ ర్యాంక్ అధికారులు ఉన్న నేపథ్యంలో వీరందరినీ విచారించాలంటే సీఐడీ అప్పగించడమే సమంజసమని సర్కార్ భావించింది. దీంతో సీఐడీ అధికారులు తమ పనిని మొదలుపెట్టారు. ముందుగా ఇబ్రహీంపట్నం పోలీస్ స్టేషన్ నుంచి రికార్డులను సీఐడీ అధికారులు స్వాధీనం చేసుకున్నారు. అలాగే మొదటి రోజు విచారణలో భాగంగా జెత్వానీ, ఆమె తల్లిదండ్రుల స్టేట్‌మెంట్‌ను సీఐడీ అధికారులు రికార్డు చేశారు.

निजी संपत्तियों के अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा-हर प्राइवेट प्रॉपर्टी को सरकार नहीं ले सकती

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सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने मंगलवार को निजी संपत्तियों के अधिग्रहण किए जाने को लेकर फैसला सुनाते हुए कहा कि हर निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत सामुदायिक संपत्ति का हिस्सा नहीं माना जा सकता। बेंच ने अपने अहम फैसले में कहा कि सरकार सभी निजी संपत्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जब तक कि सार्वजनिक हित ना जुड़ रहे हों। इस फैसले के साथ ही 9 जजों की पीठ ने 1978 के सुप्रीम कोर्ट के ही ऐतिहासिक फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जजमेंट संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे से संबंधित एक मामले में सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूंड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच दशकों पुराने इस विवाद पर अपना फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 जजों की बेंच के मामले में बहुमत से अपना फैसला सुनाया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस साल 1 मई को सुनवाई के बाद निजी संपत्ति मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिय था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'तीन जजमेंट हैं, मेरा और 6 जजों का... जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला। हम मानते हैं कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक बरकरार रखा गया था, वह बरकरार है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि सरकार के निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकने की बात कहने वाला पुराना फैसला विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हो सकती हैं, इसलिए सरकार की ओर से इन पर कब्जा नहीं किया जा सकता। बहुमत ने फैसले में व्यवस्था दी है कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है, राज्य उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सार्वजनिक हित के लिए हैं और समुदाय के पास हैं।

1978 के फैसलों को पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ ही 1978 के जस्टिस कृष्णा अय्यर के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों का सरकार द्वारा अधिग्रहण किया जा सकता है। जस्टिस अय्यर के पिछले फैसले में कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि पुराना शासन एक विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था।

जगजीत सिंह डल्लेवाल पर सुप्रीम कोर्ट की पंजाब सरकार को फटकार, 31 दिसंबर तक अस्पताल भेजने का दिया समय

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सुप्रीम कोर्ट ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की सेहत को लेकर पंजाब सरकार को जमकर फटकार लगाई है। खनूरी बॉर्डर पर किसान नेता जगजीत डल्लेवाल के आमरण अनशन वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच सुनवाई की। अदालत ने डल्लेवाल की बिगड़ती सेहत पर चिंता जताई और राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि किसान नेता को चिकित्सा सहायता दी जाए। कोर्ट ने डल्लेवाल को अस्पताल ले जाने के लिए पंजाब सरकार को 31 दिसंबर तक का समय दिया है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की अवकाशकालीन पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए पंजाब सरकार को डल्लेवाल को चिकित्सकीय सहायता प्रदान करने के अपने पूर्व आदेशों का पालन ना करने पर फटकार लगाई। किसान नेता 26 नवंबर से ही अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं। उनकी स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ रही है। अदालत ने डल्लेवाल की बिगड़ती सेहत पर चिंता जताई और राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि किसान नेता को चिकित्सा सहायता दी जाए। हालांकि, अदालत जगजीत सिंह डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती करने के राज्य के प्रयासों से असंतुष्ट है। अदालत ने किसान नेता को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए मनाने के लिए 31 दिसंबर का समय दिया है।

पंजाब सरकार ने कहा कि अगर दल्लेवाल को अस्पताल में स्थानांतरित किया गया तो किसान विरोध कर सकते हैं। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मांगों के लिए आंदोलन करना लोकतांत्रिक तरीका है लेकिन किसी को अस्पताल ले जाने से रोकने के लिए आंदोलन करना कभी नहीं सुना। यह आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि पहले आप समस्याएं पैदा करते हैं और फिर कहते हैं कि आप कुछ नहीं कर सकते।

कोर्ट ने पंजाब सरकार की ओर से पेश वकील से कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे आप हलफनामे के जरिए किसानों की बातों का समर्थन कर रहे हैं। इसके अलावा कोर्ट ने ये भी कहा कि हमें उन किसानों की नीयत पर शक है, जो डल्लेवाल को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने में बाधा डाल रहे हैं।

डल्लेवाल के स्वास्थ्य और जीवन की चिंता करते हुए अदालत ने पंजाब सरकार को उन्हें चिकित्सकीय सहायता सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए। अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक के खिलाफ अवमानना याचिका पर नोटिस भी जारी किया है। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि राज्य सरकार को डल्लेवाल को अस्पताल स्थानांतरित करने के उसके निर्देशों का पालन करना होगा।

चुनाव आयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची कांग्रेस, नियमों में बदलाव की मांग

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कांग्रेस चुनाव आयोग के नियमों में बदलाव को लेकर केंद्र सरकार के हालिया फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। दरअसल, केन्द्र की मोदी सरकार ने सीसीटीवी कैमरे और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए चुनाव से संबंधित नियम में बदलाव किया है, ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके। अब कांग्रेस ने हाल ही में किए गए इन संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस संबंध में मंगलवार को एक याचिका दायर की। जयराम रमेश ने याचिका दायर करने की जानकारी एक्स पर दी। जयराम रमेश ने याचिका दायर करने के बाद एक्स पर लिखा, "निर्वाचनों का संचालन नियम 1961 में हाल के संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दायर की गई है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है। इस पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी है, इसलिए इसे एकतरफा और सार्वजनिक विचार-विमर्श के बिना इतने महत्वपूर्ण नियम में इतनी निर्लज्जता से संशोधन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। उस परिस्थिति में तो विशेष रूप से नहीं जब वह संशोधन चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने वाली आवश्यक जानकारी तक सार्वजनिक पहुंच को समाप्त करता है। चुनावी प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा तेजी से कम हो रही है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे बहाल करने में मदद करेगा।"

सरकार ने किन नियमों को बदला?

चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 अनुबंधों के मुताबिक, चुनाव से संबंधित सभी 'कागजात' सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रखे जाएंगे। यानी ये सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध होंगे। अब केंद्र सरकार ने इस नियम में संशोधन किया है। इसके तहत अब नियम 93 की शब्दावली में 'कागजातों' के बाद 'जैसा कि इन नियमों में निर्दिष्ट है' शब्द जोड़े गए हैं।

चुनाव आयोग से मशवरे के बाद केंद्रीय कानून और विधि मंत्रालय की तरफ से किएगए बदलावों के बाद अब चुनाव संबंधी सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण के लिए नहीं रखा जाएगा। अब आम जनता सिर्फ उन्हीं चुनाव संबंधी दस्तावेजों को देख सकेगी, जिनका जिक्र चुनाव कराने से जुड़े नियमों में पहले से तय होगा।

इसका क्या असर होने वाला है?

चूंकि नामांकन फार्म, चुनाव एजेंट की नियुक्ति, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेजों का जिक्र चुनाव संचालन नियमों में किया गया है, इसलिए इन्हें सार्वजनिक निरीक्षण के लिए बरकरार रखा जाएगा। हालांकि, आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज चुनाव संचालन नियमों के दायरे में नहीं आते हैं। ऐसे में यह दस्तावेज जनता की पहुंच से दूर हो जाएंगे।

Pooja Enterprises, led by Mr. Sanjay Kaushal, revolutionizes the uniform and disposable wear industry across India and globally.

Pooja Enterprises from the city of Chandigarh has emerged as a manufacturing and supplying company of supreme quality uniforms and disposable wear. Initially it was operating since 2004 under sole proprietorship but the company has grown into a recognized organization not only in India but also in the international market offering segmented solutions in different sectors such as education, healthcare, corporate & hospitality.

Pooja Enterprises has wide popularity due to the vast assortment in its offer, including school uniform, formal wear, hospital uniform, chefs uniform, disposable shoe cover, disposable bouffant caps, blazers, corporate uniforms, laboratory coat with pocket, beard cover, and plastic disposable gloves. They come in durable material, quality texture and are effective when it comes to color fading; they are comfortable and thus serve the best satisfaction of the professionals and students. In this case the company sets itself apart from other manufacturers of pendants in that they can produce the designs in the logos of the brands in question.

Its collection of school uniforms, skirts, T-shirts, trousers, and the latest KV School Uniform makes Pooja Enterprises stand out in this niche. These uniforms are also crafted with minute attention to detail, offering both style and practicality. It takes the process further by arranging school uniform counters at school premises for easy accessibility by parents and students.

For the corporate world, Pooja Enterprises caters to high-end shirts and T-shirts, providing professional appeal along with comfort. Their hospital uniforms, comprising medical lab coats and other specialized ladies' uniforms, meet high standards for quality and hygiene, as they address the challenging needs of the healthcare industry. Even the hospitality sector benefits from its range of chef coats and designer chef uniforms, which are both functional and fashionable.

Behind the success of the company lies a robust manufacturing facility that is equipped with the latest machinery, enabling bulk production while upholding international standards. Wrinkle-free fabrics and perfect stitching ensure durability and aesthetic appeal for each product. The infrastructure also enables them to deliver orders on time, neatly ironed, and packed.

Mr. Sanjay Kaushal's leadership has greatly contributed to the success story of this company. With his innovative approach and strong connections in the industry, Pooja Enterprises has always been very responsive to the market's demands. Under his guidance, the company has exported its products to the United States, United Kingdom, Germany, Nepal, and Italy, increasing its international presence.

Client satisfaction is at the heart of Pooja Enterprises' philosophy. The company actively seeks feedback to refine its products and services, ensuring that every order meets the unique needs of its clients. With a focus on affordability and reliability, Pooja Enterprises has built strong partnerships with key customers such as Manchanda Mix Bag and New Public Departmental Stores.

As such, the quality assurance in which Pooja Enterprises is certified ensures that only quality raw materials are used to meet domestic and international standards. Their commitment to excellence has earned them a reputation for being unmatched in their quality uniforms and disposable wear. Hence, they emerge as an ideal choice for schools, corporations, hospitals, and hotels.

As the company continues growing, Pooja Enterprises strives to provide innovative, high-quality solutions that meet the demands of its clients while also solidifying its market leadership in the uniform and disposable wear industry.

వైఎస్ భాస్కర్ రెడ్డికి సుప్రీం కోర్టు నోటీసులు

వైఎస్ వివేకానంద రెడ్డి హత్య కేసును సీబీఐ విచారిస్తోంది. దాదాపు హత్య జరిగి ఐదేళ్లు గడిచినా ఈ దారుణానికి ఒడిగట్టింది ఎవరనే దానిపై అధికారికంగా స్పష్టత రాలేదు. ఈ హత్య చేసిందేవరో కోర్టు తుది తీర్పు తర్వాతనే తేలనుంది. సీబీఐ సుదీర్ఘకాలంగా కేసును విచారిస్తోంది. కడప ఎంపీ వైఎస్ అవినాష్ రెడ్డి తండ్రి భాస్కర్ రెడ్డి అరెస్ట్ తర్వాత ఈ కేసు విచారణలో స్పీడ్ తగ్గింది.

వైఎస్ భాస్కర్ రెడ్డి (YS Bhaskar Reddy)కి సుప్రీం కోర్టు (Supreme Court ) నోటీసులు (Notices) జారీ చేసింది. వైఎస్ వివేకానంద రెడ్డి హత్య కేసు (YS Vivekananda Reddy murder case)లో నిందితుడు భాస్కర్ రెడ్డికి తెలంగాణ హైకోర్టు (Telangana High Court) బెయిల్ (Bail) మంజూరు చేసింది. ఈ క్రమంలో భాస్కర్ రెడ్డికి హైకోర్టు ఇచ్చిన బెయిల్ రద్దు చేయాలని కోరుతూ సీబీఐ (CBI) సుప్రీంలో పిటీషన్ దాఖలు చేసింది. దీనిపై శుక్రవారం సిజెఐ సంజీవ్ ఖన్నా (CJI Sanjeev Khanna) నేతృత్వంలోని ధర్మాసనం ముందు విచారణ జరిగింది. అనంతరం భాస్కర్ రెడ్డికి నోటీసులు జారీచేస్తూ... తదుపరి విచారణ మార్చికి వాయిదా వేసింది.

వైఎస్ వివేకానంద రెడ్డి హత్య కేసును సీబీఐ విచారిస్తోంది. దాదాపు హత్య జరిగి ఐదేళ్లు గడిచినా ఈ దారుణానికి ఒడిగట్టింది ఎవరనే దానిపై అధికారికంగా స్పష్టత రాలేదు. ఈ హత్య చేసిందేవరో కోర్టు తుది తీర్పు తర్వాతనే తేలనుంది. సీబీఐ సుదీర్ఘకాలంగా కేసును విచారిస్తోంది. కడప ఎంపీ వైఎస్ అవినాష్ రెడ్డి తండ్రి భాస్కర్ రెడ్డి అరెస్ట్ తర్వాత ఈ కేసు విచారణలో స్పీడ్ తగ్గింది. వాస్తవానికి వైఎస్ అవినాష్ రెడ్డిని సీబీఐ అధికారులు అరెస్ట్ చేయడానికి ప్రయత్నించినా.. కుదరలేదు. చివరికి తెలంగాణ హైకోర్టులో ఆయన ముందస్తు బెయిల్ పొందడంతో అవినాష్ అరెస్ట్ విషయం వెనక్కి వెళ్లిపోయింది. ఇంత జరుగుతున్నా.. వివేకానంద రెడ్డి హత్య ఎందుకు జరిగింది.. ఈ హత్యలో ఎవరు పాత్రదారులు.. ఎవరు సూత్రదారులు అనేది రాష్ట్ర ప్రజలందరికీ తెలిసిన బహిరంగ రహస్యమే. చట్టప్రకారం దర్యాప్తు సంస్థలు విచారణ పూర్తి చేసి సాక్ష్యాధారాలను కోర్టులో సమర్పించిన తర్వాత.. న్యాయస్థానం తీర్పు తర్వాత ఈ హత్యలో దోషులు ఎవరో అధికారికంగా తేలుతుంది.

సార్వత్రిక ఎన్నికలకు ముందు సీబీఐ విచారణ మందగించింది. ఓవైపు ఎన్నికల సమయం కావడంతో కొంత గ్యాప్ ఇచ్చినట్లు తెలుస్తోంది. గత ఐదేళ్లుగా సీబీఐ ఈ కేసులో అసలు నిందితులను అరెస్ట్ చేసే ప్రయత్నం చేసినా.. గత వైసీపీ ప్రభుత్వం ఏదో విధంగా వారి విధులకు ఆటంకం కలిగిస్తూనే ఉందనే ఆరోపణలు ఉన్నాయి. నిందితులను కాపాడేందుకు జగన్ తీవ్రంగా ప్రయత్నించారనే ఆరోపణలు ఉన్నాయి. దర్యాప్తు సక్రమంగా జరగకుండా మాజీ సీఎం జగన్ కుట్రలు చేసినట్లు ప్రచారం జరిగింది. ఏకంగా సీబీఐ అధికారులపై కేసులు నమోదు చేసిన సందర్భాలు చూశాము. దర్యాప్తు సంస్థల అధికారుల నైతికతను, ఆత్మస్థైర్యాన్ని దెబ్బతీసే ప్రయత్నం గత వైసీపీ ప్రభుత్వం చేసినట్లు తెలుస్తోంది. ప్రస్తుతం వైసీపీ అధికారంలో లేదు. జగన్ ప్రజల మద్దతును కోల్పోయారు. ఈ నేపథ్యంలో సీబీఐ వివేకా కేసు దర్యాప్తును వేగవంతం చేసే అవకాశం ఉన్నట్లు తెలుస్తోంది.

2019లో వైసీపీ అధికారంలోకి రావడంతో రాష్ట్రప్రభుత్వ దర్యాప్తు సంస్థలపై విశ్వాసం లేదని.. నిందితులను ప్రభుత్వం కాపాడే అవకాశం ఉందన్న అనుమానంతో వివేకా కుమార్తె సునీత కోర్టును ఆశ్రయించారు. దీంతో ఈ కేసు దర్యాప్తును న్యాయస్థానం సీబీఐకి అప్పగించింది. సీబీఐ దర్యాప్తుతో అసలు విషయాలు బయటకు వస్తాయని అంతా భావించారు. అనుకున్నట్లుగానే కడప ఎంపీ అవినాష్ రెడ్డి పాత్ర ఈ హత్యలో ఉన్నట్లు సీబీఐ ప్రాథమికంగా ఆధారాలు సేకరించిందనే ప్రచారం జరిగింది. గూగుల్ టేకవుట్, టైమ్ లైన్ ఆధారంగా అవినాష్‌ రెడ్డికి ఈ హత్యతో ప్రమేయం ఉన్నట్లు సీబీఐ నిర్థారణకు వచ్చిందన్న ప్రచారం జరిగింది. కానీ అవినాష్ రెడ్డిని ఇప్పటిరవకు ఈ కేసులో అరెస్ట్ కాలేదు. సీఎం జగన్మోహన్ రెడ్డి అవినాష్ రెడ్డిని కాపాడుతూ వస్తున్నారనే ప్రచారం జరుగుతోంది.

అవినాష్ రెడ్డిని కస్టడీలోకి తీసుకుని సీబీఐ అధికారులు విచారిస్తే అసలు విషయాలు బయటకు వస్తాయని.. అదే జరిగితే మాజీ సీఎం జగన్‌తో పాటు ఆమె భార్య భారతి ఇరుక్కునే అవకాశం ఉండటంతోనే అవినాష్ రెడ్డిని జగన్ కాపాడుతున్నారనే చర్చ జరుగుతోంది. ఎంపీ టికెట్ కోసమే ఈ హత్యను చేసినట్లు కేసులోని కొందరు సాక్ష్యులు, నిందితులు ఇప్పటికే చెప్పారు. దీంతో ఈ విషయం బయటకు వస్తే వైసీపీతో పాటు జగన్ రాజకీయ భవిష్యత్తు ప్రమాదంలో పడే అవకాశం ఉండటంతోనే జగన్ నిందితులకు అండగా నిలుస్తున్నట్లు తెలుస్తోంది.

प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, दिल्ली-एनसीआर में स्कूलों को बंद करने के आदेश

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दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति लगातार गहराती जा रही है। दिल्ली में प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कोर्ट रूम के अंदर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का स्तर 990 से ऊपर है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगर एक्यूआई 400 से नीचे चला जाता है, तब भी जीआरएपी का चौथा चरण उसके अगले आदेश तक लागू रहेगा और उसने सभी एनसीआर राज्यों को जीआरएपी का चौथा चरण लागू करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अलावा एनसीआर में भी सभी स्कूल कॉलेज बंद करने के आदेश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राज्य और केंद्र का संवैधानिक दायित्व है कि नागरिक प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्रैप चरण 3 और 4 के सभी खंडों के अलावा, सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाने चाहिए कि स्थिति सामान्य हो जाए। कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष गुरुवार तक आदेश के पालन को लेकर हलफनामा दाखिल करें। शुक्रवार को सुनवाई होगी।

ग्रैप 4 की निगरानी के लिए टीम गठित करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सभी एनसीआर सरकारों को ग्रैप चरण 4 को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया। साथ ही अदालत ने सभी एनसीआर राज्यों को ग्रैप 4 के तहत जरूरी कामों की निगरानी के लिए तत्काल टीमों का गठन करने का भी निर्देश दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि वे ग्रैप 4 में दिए गए कदमों पर तुरंत निर्णय लें और अगली सुनवाई की तारीख से पहले उन्हें उसके समक्ष रखें। कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर सरकारों को इस कदम के उल्लंघन की रिपोर्ट करने के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी निर्देश दिया।

12वीं कक्षा तक के सभी स्कूलों को बंद कर दिया जाए

कोर्ट ने एनसीआर राज्यों को आदेश दिया कि 12वीं कक्षा तक के सभी स्कूलों को बंद कर दिया जाए और सभी कक्षाओं को ऑनलाइन मोड में संचालित किया जाए। कोर्ट ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य प्राथमिकता होनी चाहिए और यह जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है कि वे प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करें।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग पर भी सवाल

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) पर भी सवाल उठाए, यह कहते हुए कि एक्यूआई 400 पार करने के बावजूद ग्रैप स्टेज 3 और स्टेज 4 को लागू करने में देरी हुई। कोर्ट ने कहा कि 12 नवंबर को एक्यूआई 400 से ऊपर पहुंच गया था, लेकिन ग्रैप स्टेज 3, 14 नवंबर को लागू किया गया और स्टेज 4 आज सुबह ही प्रभावी हो पाया।

बता दें कि रविवार को ही दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर 460 एक्यूआई की सीमा को पार कर गया था। हालात को देखते हुए उसी समय केंद्र सरकार की समिति ने दिल्ली एनसीआर में ग्रैप-4 लागू करने के आदेश जारी कर दिए थे. यह आदेश आज सोमवार की सुबह आठ बजे से लागू किए गए हैं। इस आदेश के तहत दिल्ली एनसीआर में पहली से 6 वीं तक के स्कूलों को तत्काल बंद करने और बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई करने के आदेश दिए गए थे। साथ ही कई तरह की अन्य पाबंदियां भी लागू की गई थी।

कौन हैं मोजतबा खामेनेई? जो बन सकते हैं ईरान के अगले सुप्रीम लीडर

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दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक देशों में से एक ईरान में बड़ी हलचल देखने को मिल रही है। पहले तो ये देश इजरायल के साथ युद्ध में व्यस्त है। इजराइल से जंग के बीच ईरान की राजनीति में एक बड़े बदलाव के संकेत मल रहे हैं। अचानक से सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई द्वारा अपने बेटे मोजतबा को उत्तराधिकारी बनाए जाने की खबर ने सब को चौंका दिया है।

ईरान इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई के दूसरे बेटे मोजतबा खामेनेई को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर चुना गया है।बताया जा रहा है कि यह फैसला 26 सितंबर को हुई एक सीक्रेट बैठक में लिया गया। दरअसल, वर्तमान में अयातुल्लाह अली खामेनेई की उम्र 85 वर्ष है। वह लंबे समय से गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहहे हैं। ऐसे में वह ईरान के सर्वोच्च नेता का पद छोड़ने की योजना बना रहे हैं, ताकि मोजतबा उनके जीवनकाल में ही देश का नेतृत्व संभाल सकें।

सर्वसम्मति से नेता चुने गए मोजतबा

इजराइली मीडिया आउटलेट वाईनेट न्यूज ने ईरान इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई के दूसरे बेटे मोजतबा खामेनेई को एक गुप्त बैठक के दौरान कथित तौर पर उनके पिता के उत्तराधिकारी के रूप में चुना गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, 26 सितंबर को सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के अनुरोध पर ईरान के विशेषज्ञों की सभा के 60 सदस्यों की बैठक बुलाई गई थी, जिन्होंने उन्हें अपने उत्तराधिकार के संबंध में तत्काल और गोपनीय निर्णय लेने का निर्देश दिया था। सर्वसम्मति से, सभा ने खामेनेई के बेटे मोजतबा को उनके उत्तराधिकारी के रूप में चुना।

सार्वजनिक विरोध से बचने के लिए गुप्त बैठक

ईरान इंटरनेशनल की रिपोर्ट बताती है कि सार्वजनिक विरोध से बचने के लिए इस फैसले को गुप्त रखा गया था। इसमें कहा गया है, व्यापक सार्वजनिक विरोध के डर से विधानसभा ने निर्णय पर अधिकतम गोपनीयता बनाए रखने का संकल्प लिया और सदस्यों को किसी भी लीक के लिए गंभीर परिणामों की चेतावनी दी गई थी।

परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी

ऐसा माना जा रहा है कि अलोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ संभावित सार्वजनिक प्रतिक्रिया के डर ने इन चरम उपायों को लागू किया गया। बैठक के बारे में कोई भी जानकारी लीक होने पर विधानसभा सदस्यों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी गई थी।

एक महीने तक छिपाकर रखा गया फैसला

देश में अशांति को रोकने के लिए असेंबली के विचार-विमर्श का विवरण एक महीने से अधिक समय तक छिपाया गया था। मोजतबा के चयन ने उनके सरकारी अनुभव और आधिकारिक भूमिकाओं की कमी के कारण चिंताएं पैदा की हैं। हालांकि, पिछले दो वर्षों में, उन्हें शासन के आंतरिक कामकाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए लगातार तैनात किया गया है, जो सत्ता के सुचारू हस्तांतरण को सुनिश्चित करने के लिए अली खामेनेई द्वारा एक सुनियोजित प्रयास का संकेत देता है।

कौन है मोजतबा खामेनेई?

मोजतबा खामेनेई अयातुल्लाह अली खामेनेई के दूसरे बेटे हैं। उनका जन्म 8 सितंबर, 1969, मशहद ईरान में हुआ था। उन्होंने धर्मशास्त्र की पढ़ाई की और 1999 में मौलवी बनने की पढ़ाई की। मोजतबा की पहचान एक धार्मिक और राजनीतिक व्यक्ति के रूप में है। वह सर्वोच्च नेता के कार्यालय में एक कमांडिंग ऑफिसर की भूमिका निभाते हैं। 2005 और 2009 में ईरान के चुनावों में मोजतबा महमूद अहमदीनेजाद के समर्थक थे और कथित तौर पर 2009 में अहमदीनेजाद की जीत में भी उनका हाथ था। अहमदीनेजाद की जीत के बाद जून 2009 में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जिसमें मोजतबा ने कथित तौर पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों को दबाने वालों का नेतृत्व किया। हालांकि, बाद में अहमदीनेजाद के साथ उनके संबंध खराब हो गए जब उन्होंने मोजतबा खामेनेई पर सरकारी खजाने से धन के गबन का आरोप लगाया।

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, कहा-घर सपना, कभी ना टूटे...

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बुलडोजर एक्शन पर अहम फैसला सुनाया है। अपराधियों और अवैध निर्माण को लेकर ‘बुलडोजर’ एक्शन काफी पॉपुलर है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के बाद देश की कई राज्यों ने क्रिमिनल्स के खिलाफ नकेल कसने के लिए ‘बुलडोजर’ एक्शन को अपनाया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है। बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता।. जस्टिस बी.आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये फैसला सुनाया।

सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए

कोर्ट ने कहा है कि किसी का घर सिर्फ इस आधार पर नहीं तोड़ा जा सकता कि वह किसी आपराधिक मामले में दोषी या आरोपी है। हमारा आदेश है कि ऐसे में प्राधिकार कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा है कि मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं। फैसला पढ़ते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है।सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है

जस्टिस बीआर गवई बुलडोजर एक्शन पर फैसला पढ़ते हुए कहा कि, घर होना एक ऐसी लालसा है जो कभी खत्म नहीं होती। हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो। एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका को दंड के रूप में आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए? हमें विधि के शासन के सिद्धांत पर विचार करने की आवश्यकता है जो भारतीय संविधान का आधार है।सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो सकता है।

अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें

बिना मुकदमे के घर तोड़कर सजा नहीं दी जा सकती है। हमारे पास आए मामलों में यह स्पष्ट है कि प्राधिकारों ने कानून को ताक पर रखकर बुलडोजर एक्शन किया। गाइडलाइन्स पर हमने विचार किया है। अवैध तरीके से घर तोड़ा तो मुआवजा दें। मनमानी करने वाले अधिकारियों पर एक्शन की सख्त जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया था अंतरिम आदेश

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या उसे दोषी ठहराए जाने के आधार पर उसके घरों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं। किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।

पटाखों को लेकर दिल्ली पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा-शादियों और चुनाव में भी पटाखे जलाए जा रहे, क्या कार्रवाई हुई?

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सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध के उसके आदेश को गंभीरता से न लेने के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने माना कि पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के निर्देश को दिल्ली पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों पर प्रतिबंध पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और महज दिखावा किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखों के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध था।⁠ क्या पुलिस ने बिक्री पर प्रतिबंध लगाया, आपने जो कुछ जब्त किया है, वह पटाखों का कच्चा माल हो सकता है?

इस दिवाली भी राजधानी दिल्‍ली और एनसीआर सहित पूरे उत्‍तर भारत में दिवाली के शुभ अवसर पर जमकर पटाखे चलाए गए। पटाखों पर बैन के बावजूद धड़ल्‍ले से इनका इस्‍तेमाल हुआ, जिसके चलते प्रदूषण का स्‍तर पर नई रिकॉर्ड पर पहुंच गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि कोई भी धर्म ऐसी किसी गतिविधि को बढ़ावा नहीं देता जो प्रदूषण को बढ़ावा दे या लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता करे। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि अगर पटाखे इसी तरह से फोड़े जाते रहे तो इससे नागरिकों का सेहत का मौलिक अधिकार प्रभावित होगा।

विशेष सेल बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रदूषण को कम रखने के लिए अपने द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में उसे सूचित करें। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से उसके आदेश के पूर्ण पालन के लिए स्पेशल सेल बनाने का निर्देश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि बिना लाइसेंस के कोई भी पटाखों का उत्पादन और उनकी बिक्री न कर सके।

पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आदेश जारी करके पटाखा बैन पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करने के निर्देश दिए कोर्ट ने कहा कि कमिश्नर तुरंत एक्शन लें और पटाखों की ऑनलाइन सेल भी बंद करें। कोर्ट ने 14 अक्टूबर के उस आदेश पर जिक्र किया, जिसमें 1 जनवरी, 2025 तक पटाखों पर पूर्ण बैन लगाया गया था। कोर्ट ने कहा कि जहां तक इसकी अनुपालना का सवाल है दिल्ली सरकार ने इसमें असहायता व्यक्त की क्योंकि इसे दिल्ली पुलिस द्वारा लागू किया जाना है। पुलिस की ओर से पेश एएसजी भाटी ने कहा कि प्रतिबंध जारी करने वाला आदेश 14 अक्टूबर को पारित किया गया था। हालांकि, हम पाते हैं कि दिल्ली पुलिस ने उक्त आदेश के कार्यान्वयन को गंभीरता से नहीं लिया।

कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए

कोर्ट ने कहा कि हम दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हैं कि वे तुरंत सभी संबंधितों को उक्त प्रतिबंध के बारे में सूचित करने की कार्रवाई करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी लाइसेंस धारक पटाखे न बेचे या न बनाए। हम आयुक्त को पटाखों पर प्रतिबंध के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने का निर्देश देते हैं। हमें आश्चर्य है कि दिल्ली सरकार ने 14 अक्टूबर तक प्रतिबंध (पटाखों पर) लगाने में देरी क्यों की। यह संभव है कि उपयोगकर्ताओं के पास उससे पहले ही पटाखों का स्टॉक रहा होगा।

बता दें कि दिल्ली सरकार ने दिवाली से पहले पटाखों पर प्रतिबंध का निर्देश जारी किया था। हालांकि इसके बावजूद दिवाली पर खूब पटाखे छूटे और पटाखों पर प्रतिबंध का या तो बहुत कम या कई जगहों पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। इस पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने हलफनामा दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पटाखों के उत्पादन और निर्माण को लेकर क्या-क्या कदम उठाए गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि आपने सिर्फ कच्चा माल जब्त करके महज दिखावा किया। पटाखों पर प्रतिबंध को गंभीरता के साथ लागू नहीं किया गया।

జెత్వానీ కేసు.. సుప్రీంను ఆశ్రయించిన విద్యాసాగర్

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టులో పిటిషన్‌ వేశారు. ఏపీ హైకోర్టు ఇచ్చిన తీర్పును సవాల్‌ చేస్తూ సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ పిటిషన్ దాఖలు చేశారు. ఈ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది.

ముంబై నటి కాదంబరి జెత్వానీ (Mumbai Actress Jethwani) వ్యవహారంలో ప్రధాన నిందితుడు కుక్కల విద్యాసాగర్ సుప్రీంకోర్టును (Supreme Court) ఆశ్రయించారు. తన అరెస్టును సమర్ధిస్తూ... ఆంధ్రప్రదేశ్‌ హైకోర్టు గత నెల 10న ఇచ్చిన తీర్పును సుప్రీంలో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేశారు. విద్యాసాగర్‌ పిటిషన్‌పై జస్టిస్‌ ఎంఎం సుందరేష్‌, జస్టిస్‌ అరవింద్‌ కుమార్‌ల ధర్మాసనం విచారణ జరిపింది. ట్రయల్‌ కోర్టులో ఇప్పటికే బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌ దాఖలు చేసినట్లు సుప్రీంకోర్టుకు విద్యాసాగర్‌ తరపు న్యాయవాదులు చెప్పారు. బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై త్వరగా నిర్ణయం తీసుకునేలా ఆదేశాలు జారీ చేయాలని విద్యాసాగర్ న్యాయవాదులు విజ్ఞప్తి చేశారు. మూడు వారాల్లో బెయిల్‌ అప్లికేషన్‌పై నిర్ణయం తీసుకోవాలని లోయర్‌ కోర్టుకు ధర్మాసనం మార్గదర్శకాలు ఇచ్చింది. అలాగే ప్రతివాదులకు సుప్రీం ధర్మాసనం నోటీసులు జారీ చేసింది.

నటి జెత్వానీ ఇచ్చిన ఫిర్యాదు ఆధారంగా నమోదైన కేసులో విజయవాడ కోర్టు ఇచ్చిన రిమాండ్ ఉత్తర్వులను గతంలో హైకోర్టులో విద్యాసాగర్ సవాల్ చేయగా.. అక్కడ ఆయనకు ఎదురుదెబ్బ తగిలిన విషయం తెలిసిందే. కుక్కల విద్యాసాగర్ అరెస్టు విషయంలో జోక్యానికి హైకోర్టు నిరాకరించింది. ‘‘పిటిషనర్‌ అరెస్టు విషయంలో చట్టం నిర్దేశించిన మార్గదర్శకాలను పోలీసులు అనుసరించలేదు.. అరెస్టుకు కారణాలను ఆయనకు వివరించలేదు. బంధువులకు తెలియజేయలేదు. అరెస్టుకు కారణాలను రిమాండ్‌కు ముందు ఆయనకు అందజేశారు. రిమాండ్‌ ఆర్డర్‌లో కూడా వీటి ప్రస్తావన లేదు.. అందుచేత రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావని, వాటిని కొట్టివేయాలి’’ అంటూ విద్యాసాగర్ తరపు న్యాయవాది కోర్టును కోరారు. అయితే కుక్కల విద్యాసాగర్‌ను అరెస్టు చేసే సమయంలో పోలీసులు చట్టనిబంధనల ప్రకారమే నడుచుకున్నారని అడ్వకేట్ జనరల్ కోర్టుకు తెలిపారు. అరెస్టు చేసేటప్పుడు నిందితుడిపై ఎవరు ఫిర్యాదు చేశారు.. ఏ కారణంతో అరెస్టు చేస్తున్నామో వారు వివరించారని.. అరెస్టు చేస్తున్న విషయాన్ని ఆయన స్నేహితుడికి కూడా తెలియపరిచారని వివరించారు. అరెస్టుకు కారణాలు చెప్పలేదని, పోలీసులు చట్టనిబంధనలు అనుసరించనందున రిమాండ్‌ ఉత్తర్వులు చెల్లుబాటు కావన్న విద్యాసాగర్‌ వాదనలో అర్థం లేదని ఏజీ తెలిపారు. వాదనలు ముగిసిన అనంతరం విద్యాసాగర్ పిటిషన్‌ను కొట్టివేస్తూ హైకోర్టు తీర్పునిచ్చింది.

మరోవైపు నటి జెత్వానీ కేసులో సీఐడీ విచారణకు కూడా ప్రారంభమైంది. ఈకేసును సీఐడీకి అప్పగిస్తూ రాష్ట్ర ప్రభుత్వం నిర్ణయం తీసుకుంది. ఈ కేసులో డీజీపీ, ఐజీ, డీఐజీ ర్యాంక్ అధికారులు ఉన్న నేపథ్యంలో వీరందరినీ విచారించాలంటే సీఐడీ అప్పగించడమే సమంజసమని సర్కార్ భావించింది. దీంతో సీఐడీ అధికారులు తమ పనిని మొదలుపెట్టారు. ముందుగా ఇబ్రహీంపట్నం పోలీస్ స్టేషన్ నుంచి రికార్డులను సీఐడీ అధికారులు స్వాధీనం చేసుకున్నారు. అలాగే మొదటి రోజు విచారణలో భాగంగా జెత్వానీ, ఆమె తల్లిదండ్రుల స్టేట్‌మెంట్‌ను సీఐడీ అధికారులు రికార్డు చేశారు.

निजी संपत्तियों के अधिग्रहण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा-हर प्राइवेट प्रॉपर्टी को सरकार नहीं ले सकती

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सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने मंगलवार को निजी संपत्तियों के अधिग्रहण किए जाने को लेकर फैसला सुनाते हुए कहा कि हर निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत सामुदायिक संपत्ति का हिस्सा नहीं माना जा सकता। बेंच ने अपने अहम फैसले में कहा कि सरकार सभी निजी संपत्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, जब तक कि सार्वजनिक हित ना जुड़ रहे हों। इस फैसले के साथ ही 9 जजों की पीठ ने 1978 के सुप्रीम कोर्ट के ही ऐतिहासिक फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जजमेंट संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे से संबंधित एक मामले में सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूंड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच दशकों पुराने इस विवाद पर अपना फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 9 जजों की बेंच के मामले में बहुमत से अपना फैसला सुनाया। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस साल 1 मई को सुनवाई के बाद निजी संपत्ति मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिय था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'तीन जजमेंट हैं, मेरा और 6 जजों का... जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धुलिया का असहमति वाला। हम मानते हैं कि अनुच्छेद 31सी को केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक बरकरार रखा गया था, वह बरकरार है।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि सरकार के निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकने की बात कहने वाला पुराना फैसला विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हो सकती हैं, इसलिए सरकार की ओर से इन पर कब्जा नहीं किया जा सकता। बहुमत ने फैसले में व्यवस्था दी है कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है, राज्य उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सार्वजनिक हित के लिए हैं और समुदाय के पास हैं।

1978 के फैसलों को पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ ही 1978 के जस्टिस कृष्णा अय्यर के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों का सरकार द्वारा अधिग्रहण किया जा सकता है। जस्टिस अय्यर के पिछले फैसले में कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि पुराना शासन एक विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था।